विचारणीय मुद्दे:

आय-कर बिल, 2025

आय-कर एक्ट, 1961 व्यक्तियों और कंपनियों पर आयकर लगाने की रूपरेखा प्रदान करता है।[1] वित्त मंत्रालय (2009) ने कहा था कि वर्तमान कानून करदाताओं के लिए समझने में जटिल है। इसके कई कारण हैं, जैसे: (i) कई संशोधन, (ii) वाणिज्य की बढ़ती जटिलता और कर चोरी को कम करने के प्रयासों के कारण बार-बार आवश्यक परिवर्तन, और (iii) विभिन्न स्तरों पर न्यायालयों द्वारा दिए गए निर्णय।[2] 

पिछले वर्षों में 1961 के एक्ट के स्थान पर कई बिल लाने के प्रयास किए गए हैं। इस कानून को बदलने के लिए प्रत्यक्ष कर संहिता बिल, 2010 को संसद में प्रस्तुत किया गया था।2,[3] हालांकि यह बिल पारित नहीं हुआ, फिर भी 1961 के कानून में संशोधन करके बिल में निहित कुछ प्रावधानों और विशेषज्ञ समितियों के सुझावों को शामिल किया गया। इस संरचना में किए गए प्रमुख परिवर्तनों में निम्नलिखित शामिल हैं: (i) नई कर व्यवस्था के अंतर्गत व्यक्तिगत आयकर का सरलीकरण, (ii) कॉरपोरेट कर की दर में कमी, (iii) सामान्य बचाव विरोधी (एंटी-अवॉयडेंस) नियमों को शुरू करना (आक्रामक कर नियोजन की जांच के लिए), और (iv) संपत्ति कर का उन्मूलन (संपत्ति कर एक्ट, 1957 में संशोधन के माध्यम से)।

आय-कर बिल, 2025 को 13 फ़रवरी, 2025 को लोकसभा में पेश किया गया।[4] यह आय-कर एक्ट, 1961 का स्थान लेगा। इसे लोकसभा की सिलेक्ट कमिटी (चेयर: श्री बैजयंत पांडा) को भेजा गया है। कमिटी की रिपोर्ट 21 जुलाई, 2025 को लोकसभा में पेश की गई।[5]

मुख्य विशेषताएं

  • मौजूदा संरचना कायम रहेगी: बिल आय-कर एक्ट, 1961 का स्थान लेने का प्रयास करता है। बिल में 1961 के एक्ट के अधिकांश प्रावधानों को बरकरार रखा गया है। इसका मुख्य उद्देश्य भाषा को सरल बनाना और अनावश्यक प्रावधानों को हटाना है। बिल में कानून को सरल बनाने के लिए शामिल किए गए कुछ उपायों में निम्नलिखित शामिल हैं: (i) अप्रचलित प्रावधानों को हटाना, (ii) स्पष्टीकरणों और प्रावधानों को उप-धाराओं में बदलना, और (iii) विभिन्न प्रावधानों में फॉर्मूला और तालिकाओं को शामिल करना। व्यक्तियों और निगमों के लिए कर की दरें और व्यवस्थाएं अपरिवर्तित रहेंगी। अधिकांश परिभाषाएं भी बरकरार रखी गई हैं। अपराधों और दंडों में कोई बदलाव नहीं हुआ है। बिल के लागू होने की तारीख 1 अप्रैल, 2026 प्रस्तावित है।
  • स्कीम बनाने की शक्ति: एक्ट सूचना के फेसलेस कलेक्शन और कर मामलों के निर्धारण का प्रावधान करता है। बिल में इन प्रावधानों को बरकरार रखा गया है। एक्ट में निम्नलिखित क्षेत्रों के लिए फेसलेस व्यवस्था के विशिष्ट प्रावधान भी हैं: (i) जांच या मूल्यांकन, (ii) आदेशों में संशोधन, और (iii) कर संग्रह और वसूली। बिल केंद्र सरकार को यह अधिकार देता है कि वह अधिक दक्षता, पारदर्शिता और जवाबदेही के लिए नई स्कीम बना सकती है। ऐसा निम्नलिखित द्वारा किया जा सकता है: (i) प्रौद्योगिकी के माध्यम से निर्धारिती (एसेसी) के साथ इंटरफेस को समाप्त करना और (ii) पैमाने की अर्थव्यवस्थाओं और कार्यात्मक विशेषज्ञता के माध्यम से संसाधन उपयोग को अनुकूलित करना। केंद्र सरकार द्वारा बनाई गई स्कीम्स को संसद के समक्ष रखा जाना चाहिए।
  • वर्चुअल डिजिटल स्पेस: एक्ट आयकर अधिकारियों को इमारतों में प्रवेश करने और तलाशी लेने एवं ताले तोड़ने की अनुमति देता है। ऐसा तब किया जा सकता है, जब किसी व्यक्ति ने एक्ट के तहत समन जारी करने के बावजूद कुछ दस्तावेज या बही खाते प्रस्तुत नहीं किए हों। एक्ट अधिकारियों को इलेक्ट्रॉनिक दस्तावेज़ों का निरीक्षण करने का भी अधिकार देता है। बिल इन प्रावधानों को बरकरार रखता है और अधिकारियों को तलाशी और जब्ती की कार्यवाही के दौरान वर्चुअल डिजिटल स्पेस तक पहुंच प्राप्त करने की भी अनुमति देता है। अधिकारियों के पास किसी भी आवश्यक एक्सेस कोड को ओवरराइड करके पहुंच प्राप्त करने की शक्ति होगी। बिल में वर्चुअल डिजिटल स्पेस को एक ऐसे वातावरण, क्षेत्र या परिमंडल के रूप में परिभाषित किया गया है जो कंप्यूटर टेक्नोलॉजी के माध्यम से निर्मित और अनुभव किया जाता है। इसमें ईमेल सर्वर, सोशल मीडिया एकाउंट, ऑनलाइन निवेश, ट्रेडिंग खाते और संपत्ति के स्वामित्व का विवरण स्टोर करने के लिए वेबसाइट्स शामिल हैं।
  • कर संधियों की व्याख्या: यह एक्ट केंद्र सरकार को दोहरे कराधान के मामलों में राहत प्रदान करने के लिए अन्य देशों के साथ समझौते करने की अनुमति देता है। यह निर्दिष्ट करता है कि अगर ऐसे समझौतों में इस्तेमाल किया गया कोई शब्द न तो समझौते में और न ही एक्ट में परिभाषित किया गया है, तो इसका अर्थ केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित किया जाएगा। बिल इन प्रावधानों को बरकरार रखता है और इसमें यह जोड़ता है कि अगर किसी संधि में कोई शब्द संधि, एक्ट या केंद्र सरकार की अधिसूचना में परिभाषित नहीं है, तो उसका अर्थ किसी अन्य केंद्रीय कानून के अनुसार ही दिया जाएगा।

विचारणीय मुद्दे

आयकर संरचना का सरलीकरण

इस बिल में 1961 के एक्ट की रूपरेखा और संरचना को बरकरार रखा गया है। इसमें व्यक्तियों और कॉरपोरेट्स के लिए कर की दरें और स्लैब, परिभाषाएं, कर व्यवस्था की संरचना, और अपराध एवं दंड जैसे अधिकांश प्रावधान बरकरार हैं। बिल का उद्देश्य आयकर कानून को संक्षिप्त, स्पष्ट और पठनीय बनाना है। वित्त मंत्रालय (2009) ने कहा था कि प्रत्यक्ष कर संहिता को: (i) कर आधार के विघटन को रोकने के लिए छूट को कम से कम करना चाहिए, और (ii) कर बचाव और आक्रामक कर नियोजन को रोकने के लिए अस्पष्टता को कम करना चाहिए।2  यह बिल आयकर संरचना को सरल बनाने और इन लक्ष्यों को पूरा करने में शायद पर्याप्त न हो।

उदाहरण के लिए, बिल ने व्यक्तिगत आयकर के लिए दो कर व्यवस्थाओं को बरकरार रखा है। पुरानी कर व्यवस्था के तहत, व्यक्ति कई तरह की कटौतियों और छूटों का लाभ उठा सकते थे, जबकि नई कर व्यवस्था में उनमें से अधिकांश को हटा दिया गया है। नई कर व्यवस्था की शुरुआत करते समय, वित्त मंत्री ने कहा था कि विभिन्न छूटों और कटौतियों के कारण पुरानी कर व्यवस्था का प्रशासन और अनुपालन बोझिल हो गया था।[6]  वर्तमान में व्यक्ति हर साल रिटर्न दाखिल करते समय पुरानी और नई कर व्यवस्थाओं में से किसी एक को चुन सकते हैं। 2023-24 के लिए, 72% करदाताओं ने नई कर व्यवस्था के तहत अपना रिटर्न दाखिल करना चुना है।[7] चालू वित्त वर्ष से प्रभावी नई कर व्यवस्था के तहत कर छूट में वृद्धि के साथ यह आंकड़ा और बढ़ सकता है।[8] 

पिछले कुछ वर्षों में विशेषज्ञ निकायों ने आयकर संरचना को और सरल और बेहतर बनाने के लिए कुछ सुझाव दिए हैं। तालिका 1 में उन प्रमुख सुझावों को सूचीबद्ध किया गया है जिन्हें बिल में शामिल नहीं किया गया है।2,[9],[10],[11

 तालिका 1: आयकर संरचना में संशोधन पर कुछ प्रमुख सुझाव  

सुझाए गए परिवर्तन

प्रस्ताव

औचित्य

कर छूट से संबंधित

कृषि आय पर आयकर से पूरी छूट हटाई जाए [नोट: कृषि आय पर कर राज्य सूची में है (प्रविष्टि 46)]

 

केलकर समिति (2002), शोम आयोग (2014)

कृषि आय छूट का दुरुपयोग करों से बचने के साधन के रूप में होने की आशंका है। इस पर कर लगाने से हॉरिजोंटल समता को बढ़ावा मिलेगा। संविधान के अनुसार यह राज्यों के अधिकार क्षेत्र में है। कोई भी राज्य इस पर कर नहीं लगाता।

भारत में निवासी लेकिन सामान्यतः निवासी नहीं श्रेणी को हटाएं

केलकर समिति (2002)

इस श्रेणी का व्यक्ति भारत के साथ-साथ विदेशों में भी विदेशी स्रोतों से प्राप्त आय पर कर से बच सकता है; अधिकांश देशों में केवल दो श्रेणियां हैं - निवासी और अनिवासी

मौजूदा लाभ और समायोजन मॉडल के बजाय व्यावसायिक आय की गणना के लिए आय-व्यय मॉडल को अपनाना

वित्त मंत्रालय (2009)

विवादों को कम करेगा, क्रिएटिव एकाउंटिंग को रोकेगा, और यूएसए, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों के मानदंडों के अनुरूप होगा

 

पूंजीगत परिसंपत्तियों की परिभाषा के अंतर्गत बहिष्करण से मुक्ति (एक्सक्लूजन ऑफ एक्सक्लूजन) को संबोधित करना

आईसीएआई (2024)

पूंजीगत संपत्ति की परिभाषा में व्यक्तिगत संपत्ति और कृषि भूमि शामिल नहीं है। हालांकि इन बहिष्करणों में और भी बहिष्करण हैं: (i) व्यक्तिगत संपत्ति में आभूषण, पुरातात्विक संग्रह और पेंटिंग जैसी वस्तुएं शामिल नहीं हैं; (ii) कृषि भूमि में कुछ क्षेत्रों की भूमि शामिल नहीं है, जैसे कि नगरपालिकाओं या छावनी बोर्डों के अधिकार क्षेत्र में

कराधान में समानता बनाए रखना

न्यूनतम वैकल्पिक कर (एमएटी) को समाप्त करना

केलकर समिति (2002)

एमएटी उन कंपनियों को दंडित करता है जिनका बही लाभ अधिक है लेकिन कर योग्य आय कम है

 

होल्डिंग अवधि के आधार पर अल्पकालिक और दीर्घकालिक पूंजीगत परिसंपत्तियों के बीच भेद को हटाना

वित्त मंत्रालय (2009)

अनुपालन का सरलीकरण

एलएलपी और पार्टनरशिप फर्मों के लिए कर की दर को कंपनियों की दरों के अनुरूप करना

आईसीएआई (2024)

फर्मों और एलएलपी पर 30% की उच्च दर से कर लगाया जाता है, जबकि कुछ कॉरपोरेट संस्थाएं 25% की रियायती दर का लाभ उठा सकती हैं, कई व्यवसाय संरचना के इस लचीलेपन के लिए फर्म/एलएलपी मॉडल चुन सकते हैं, उच्च दर इस विकल्प को हतोत्साहित कर सकती है

मुद्रास्फीति के लिए कर स्लैब के स्वत: समायोजन का प्रावधान

 

वित्त संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (2012)

कर लाभों के वास्तविक मूल्य को संरक्षित करने, ब्रैकेट क्रिप (मुद्रास्फीति के कारण व्यक्ति को उच्च कर ब्रैकेट में धकेलना) से बचने और आवधिक संशोधनों की आवश्यकता को कम करने में मदद करता है

कर व्यवस्था में सुधार

केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) और केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर एवं सीमा शुल्क बोर्ड (सीबीआईसी) का एकीकरण;

राजस्व सचिव का पद हटाकर उनके कार्य बोर्ड को सौंपना;

बोर्ड के कामकाज को देखने के लिए एक गवर्निंग काउंसिल और नीति एवं कानून पर सुझाव देने के लिए कर परिषद की स्थापना

शोम आयोग (2014)

राजस्व सचिव कर प्रशासन के शीर्ष पर होते हैं और कर प्रशासन के विशेषज्ञ न होने के बावजूद, वित्त मंत्री तक पहुंचने से पहले कर प्रशासन के मामले में अंतिम निर्णय उनका ही होता है;

सीबीडीटी और सीबीआईसी के बीच अलगाव कृत्रिम है और सहयोग का अभाव है।

 

बैंकिंग क्षेत्र के अनुरूप कर लोकपाल की स्थापना

केलकर समिति (2002)

शिकायत निवारण के लिए एक स्वतंत्र प्रणाली प्रदान करेगा।

[नोट: आयकर लोकपाल की स्थापना 2003 में सीबीडीटी के दिशानिर्देशों के तहत की गई थी और बाद में 2019 में इसे बंद कर दिया गया।[12]]

एक्ट के माध्यम से आर्बिट्रेशन और सुलह जैसी वैकल्पिक विवाद समाधान प्रक्रियाएं शुरू करना

शोम आयोग (2014)

मुकदमेबाजी के स्तर तक पहुंचने वाले विवादों को कम करने में मदद मिलेगी

अपीलों के निपटान के लिए अनिवार्य समय सीमा

आईसीएआई (2024)

"जहां यह संभव हो, वहां हो सकता है" शब्दों का प्रयोग एक वर्ष की समय-सीमा को गैर-अनिवार्य बना देता है, आयुक्त (अपील) के समक्ष बड़ी संख्या में मामले लंबित हैं

अगर अपील निर्धारित समय सीमा के भीतर अंतिम रूप से निपटाई नहीं जाती है तो करदाता के पक्ष में मामला स्वीकार किया जाएगा

शोम आयोग (2014)

समयबद्धता और निर्णय की गुणवत्ता के संदर्भ में स्पष्ट जवाबदेही निर्धारित करने में मदद मिलेगी

स्रोत: प्रत्यक्ष करों पर टास्क फोर्स की रिपोर्ट (चेयर: डॉ. विजय एल. केलकर), दिसंबर 2002; कर प्रशासन सुधार आयोग की रिपोर्ट (चेयर: डॉ. पार्थसारथी शोम), मई 2014; प्रत्यक्ष कर संहिता पर चर्चा पत्र, वित्त मंत्रालय, अगस्त 2009; 49वीं रिपोर्ट: प्रत्यक्ष कर संहिता बिल, 2010, वित्त संबंधी स्टैंडिंग कमिटी, 2012; आयकर एक्ट, 1961 की व्यापक समीक्षा पर सुझाव, भारतीय चार्टर्ड एकाउंटेंट्स संस्थान, 2024; पीआरएस।

बिल पर्याप्त सुरक्षा उपायों के बिना वर्चुअल डिजिटल स्पेस तक पहुंच की अनुमति देता है

एक्ट के तहत अधिकारियों को तलाशी और जब्ती की कार्यवाही के दौरान इलेक्ट्रॉनिक दस्तावेजों का निरीक्षण करने की अनुमति है। बिल इसे बरकरार रखता है और अधिकारियों को किसी व्यक्ति के वर्चुअल डिजिटल स्पेस तक पहुंच बनाने की शक्ति भी प्रदान करता है। अधिकारियों के पास किसी भी आवश्यक एक्सेस कोड को ओवरराइड करके पहुंच प्राप्त करने की शक्ति होगी। बिल में वर्चुअल डिजिटल स्पेस को एक ऐसे वातावरण, क्षेत्र या परिमंडल के रूप में परिभाषित किया गया है जो कंप्यूटर टेक्नोलॉजी के माध्यम से निर्मित और अनुभव किया जाता है। इसमें ईमेल सर्वर, सोशल मीडिया एकाउंट, ऑनलाइन निवेश, ट्रेडिंग खाते और संपत्ति के स्वामित्व का विवरण स्टोर करने के लिए वेबसाइट्स शामिल हैं। ऐसे वर्चुअल डिजिटल स्पेस में व्यक्तिगत जानकारी प्राइवेसी के मौलिक अधिकार के तहत सुरक्षित है। सर्वोच्च न्यायालय (2017) ने कहा है कि प्राइवेसी के अधिकार को कानून द्वारा प्रतिबंधित किया जा सकता है, लेकिन तभी जब यह आवश्यक और उद्देश्य के अनुपात में हो।[13]  बिल में इस मौलिक अधिकार के उल्लंघन के खिलाफ सुरक्षा उपायों का अभाव हो सकता है।

बिल में अधिकारियों से ऐसी कार्रवाइयों की आवश्यकता स्पष्ट करने की अपेक्षा नहीं की गई है। अगर उनके पास "विश्वास करने का कारण" है, जो न्यूनतम सीमा हो सकती है, तो अधिकारी ऐसी कार्रवाई कर सकते हैं। इनफॉरमेशन टेक्नोलॉजी एक्ट, 2000 और दूरसंचार एक्ट, 2023 जैसे कानूनों में व्यक्तियों की व्यक्तिगत जानकारी तक पहुंचने से पहले "आवश्यकता" या "औचित्य" स्थापित करने की आवश्यकता होती है।[14],[15] उनके तहत नियमों में अधिकारियों को यह मूल्यांकन करने की आवश्यकता होती है कि क्या वैकल्पिक उपाय मौजूद हैं।[16],[17]  बिल के तहत कार्रवाई आनुपातिक नहीं भी हो सकती है। ईमेल और सोशल मीडिया जैसे एकाउंट्स में अक्सर व्यक्तियों के व्यक्तिगत संवाद होते हैं, जो किसी भी कर-संबंधी जांच से संबंधित नहीं हो सकते हैं। ऐसी जानकारी तक पहुंच की अनुमति देना उन व्यक्तियों (जिनके साथ करदाता संवाद कर रहा है) की गोपनीयता का उल्लंघन भी हो सकता है जो मामले से संबंधित नहीं हैं।

ड्राफ्टिंग से संबंधित मुद्दे

लोकसभा की सिलेक्ट कमिटी ने बिल की ड्राफ्टिंग में कुछ समस्याएं पाईं।उसने कहा कि हालांकि बिल का उद्देश्य मूलभूत परिवर्तन करना नहीं है, फिर भी प्रावधानों की भाषा में कुछ चूक या परिवर्तन के कारण निहितार्थों में परिवर्तन हो सकते हैं।तालिका 2 में उन प्रमुख मुद्दों की एक विस्तृत सूची है जिनका समाधान करने का सुझाव कमिटी ने दिया है। उसने कुछ प्रावधानों को स्पष्ट करने को भी कहा था, साथ ही 2024 और 2025 के फाइनांस एक्ट्स में शामिल न किए गए प्रावधानों को शामिल करने तथा संदर्भ संबंधी और टाइपोग्राफिकल त्रुटियों को दूर करने को भी कहा था।वित्त मंत्रालय ने कमिटी के सुझावों को स्वीकार कर लिया है।5

तालिका 2: आयकर बिल, 2025 में ड्राफ्टिंग संबंधी मुद्दों की सूची

क्लॉज

प्रावधान

मुद्दे

2(49)

'आय' की परिभाषा 1961 के एक्ट के सेक्शंस को संदर्भित करती है

बिल में जिस एक्ट को निरस्त करने का प्रयास किया गया है, उसका निरंतर संदर्भ लेना जरूरी होगा

148, 200, 201

कुछ कंपनियों के मामले में शेयरधारकों को दिए जाने वाले अंतर-कॉरपोरेट लाभांश के लिए कटौती को हटा दिया गया है

कंपनी और शेयरधारकों पर ऐसी आय की स्थिति में दोहरा कराधान होगा; एक्ट में इस कटौती का प्रावधान है

 

162

इसमें नियंत्रण, प्रबंधन या पूंजी में भागीदारी मात्र के लिए "संबद्ध उद्यम" शब्द का इस्तेमाल किया गया है; यह हस्तांतरण मूल्य निर्धारण प्रावधानों के मामले में लागू होता है

एक्ट की स्थिति में परिवर्तन करता है कि भागीदारी के संबंध में कुछ निश्चित सीमा भी पूरी होनी चाहिए

 

9(6)(ए)(iii)

भारत के बाहर गतिविधि के लिए किसी अनिवासी द्वारा अर्जित रॉयल्टी पर कर लगाया जा सकता है

यह एक्ट और बिल के सामान्य सिद्धांत का खंडन करता है कि गैर-निवासियों के लिए केवल भारत से प्राप्त आय ही कर योग्य है

536(2)(एन)

मार्च 2026 तक होने वाले दीर्घकालिक पूंजीगत घाटे को अल्पकालिक पूंजीगत लाभ के विरुद्ध समायोजित करने की अनुमति देता है

यह एक्ट और बिल के सामान्य सिद्धांत का खंडन करता है कि दीर्घकालिक पूंजीगत हानि को केवल दीर्घकालिक पूंजीगत लाभ के विरुद्ध समायोजित किया जा सकता है, क्योंकि उन पर कम दर से कर लगाया जाता है

138, 139, 141, 142, 143

निर्दिष्ट व्यवसायों के लिए लाभ से जुड़े कुछ प्रोत्साहनों के संबंध में 1961 के एक्ट के सेक्शंस को संदर्भित करता है

बिल में जिस एक्ट को निरस्त करने का प्रयास किया गया है, उसका निरंतर संदर्भ आवश्यक होगा। कमिटी ने कहा था कि इन प्रावधानों में सनसेट क्लॉज हैं और इन्हें चरणबद्ध तरीके से समाप्त किया जाना है, इसलिए उसने सुझाव दिया था कि इन्हें सेविंग्स क्लॉज में हस्तांतरित किया जाना चाहिए

स्रोत: आयकर बिल, 2025 पर लोकसभा की सिलेक्ट कमिटी की रिपोर्ट, जुलाई 2025; पीआरएस।

 

[1] The Income Tax Act, 1961 as amended up to the Finance Act, 2025,

[2] The Discussion Paper on the Direct Taxes Code, Ministry of Finance, August 2009, https://prsindia.org/files/bills_acts/bills_parliament/1970/Discussion_Paper.pdf; Revised Discussion Paper on the Direct Taxes Code, Ministry of Finance, https://prsindia.org/files/bills_acts/bills_parliament/1970/DTC__RevisedDiscussionPaper__June_2010.pdf

[3] The Draft Direct Taxes Code Bill, 2009, Ministry of Finance, August 2009, https://prsindia.org/files/bills_acts/bills_parliament/1970/Direct_Taxes_Code_Bill_2009.pdf.

[4] The Income Tax Bill, 2025, as introduced in Lok Sabha on February 13, 2025, https://prsindia.org/files/bills_acts/bills_parliament/2025/The_Income-tax_Bill,_2025.pdf.

[5] The Report of the Select Committee of Lok Sabha on the Income-Tax Bill, 2025, July 2025, https://prsindia.org/files/bills_acts/bills_parliament/2025/Select_Committee_Report_the_Income-Tax_Bill,2025.pdf.

[7] “Record 7.28 crore ITRs filed for AY 2024-25 till 31st July, 2024”, Press Information Bureau, Ministry of Finance, August 2, 2024, https://www.pib.gov.in/PressReleasePage.aspx?PRID=2040669.

[8] Explanatory Memorandum to the Finance Bill, 2025, Union Budget 2025-26, 

[9] Report of the Task Force on Direct Taxes, Ministry of Finance, 2002, https://prsindia.org/files/bills_acts/bills_parliament/1970/kelkar_direct_taxes.pdf

[10] Reports of the Tax Administration Reforms Commission and status of its recommendations, Ministry of Finance, https://dor.gov.in/files/inline-documents/Status_Of_TARC_Recommendations.pdf.

[11] Suggestions on Comprehensive Review of the Income Tax Act, 1961, Institute of Chartered Accountants of India.

[12] “Cabinet approves Abolition of Institution of Income-Tax Ombudsman and Indirect Tax Ombudsman”, Press Information Bureau, Union Cabinet, February 6, 2019, https://www.pib.gov.in/Pressreleaseshare.aspx?PRID=1562981.

[13] Justice K.S. Puttaswamy (Retd) vs. Union of India, W.P. (Civil) No 494 of 2012, Supreme Court of India, August 24, 2017, https://indiankanoon.org/doc/91938676/.

[15] Section 20, The Telecommunications Act, 2023, https://www.indiacode.nic.in/bitstream/123456789/20101/1/A2023-44.pdf.

[16] Rule 3(6), The Telecommunications (Procedures and Safeguards for Lawful Interception) Rules, 2024, https://egazette.gov.in/WriteReadData/2024/256724.pdf.

[17] Rule 8, The Information Technology (Procedure and Safeguards for Interception, Monitoring, and Decryption of Information) Rules, 2009, https://upload.indiacode.nic.in/showfile?actid=AC_CEN_45_76_00001_200021_1517807324077&type=rule&filename=decryption_of_information_rules_2009.pdf.

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