भ्रष्टाचार निवारण एक्ट, 1988: 2015 के संशोधनों के साथ 2013 के बिल की तुलना

वर्तमान में भ्रष्टाचार निवारण एक्ट, 1988 सरकारी कर्मचारियों के भ्रष्ट आचरण से संबंधित विषयों को रेगुलेट करता है। 19 अगस्त, 2013 को राज्यसभा में भ्रष्टाचार निवारण (संशोधन) बिल, 2013 पेश किया गया। [1]  बिल, एक्ट के तहत रिश्वत देना अपराध घोषित करता है, रिश्वत लेने की परिभाषा को व्यापक बनाता है और व्यावसायिक संगठनों को अपने दायरे में लाता है। विधि और न्याय पर गठित स्टैंडिंग कमिटी ने इस बिल की जांच की और 6 फरवरी, 2014 को अपनी रिपोर्ट सौंपी। वर्तमान में बिल राज्यसभा में लंबित है।

भ्रष्टाचार निवारण (संशोधन) बिल, 2013 के कुछ संशोधनों को राज्यसभा में 5 मई, 2015 को वितरित किया गया था।[2] 27 नवंबर, 2015 को सरकार ने उन्हीं संशोधनों को एक बार फिर से वितरित किया।[3]

नीचे दी गई तालिका में 1988 के एक्ट के प्रावधानों की तुलना 2013 के बिल और 2015 के संशोधनों से की गई है।

तालिका 1 : भ्रष्टाचार निवारण (संशोधन) बिल, 2013 के प्रावधानों के साथ 2015 के प्रस्तावित संशोधनों की तुलना

भ्रष्टाचार निवारण एक्ट, 1988

भ्रष्टाचार निवारण (संशोधन) बिल, 2013

आधिकारिक संशोधन- नवंबर 2015

अनुचित लाभ की परिभाषा

कोई प्रावधान नहीं।

·    कोई प्रावधान नहीं। 

·    रिश्वत से संबंधित अपराधों को स्पष्ट करने के लिए वित्तीय या अन्य लाभ जैसे शब्दों का प्रयोग।

·    बिल में वित्तीय या अन्य लाभ के स्थान पर अनुचित लाभ का प्रयोग।

·    अनुचित लाभ में कानूनी पारिश्रमिक के अतिरिक्त अन्य सभी प्रकार के पारितोषिक शामिल हैं।

सरकारी कर्मचारी द्वारा रिश्वत लेना

धारा 7-9: एक पब्लिक सर्वेंट ने रिश्वत ली है (ऐसा माना जाएगा), अगर:

i)      वह वेतन के अतिरिक्त, कोई अन्य पारितोषिक लेता है या लेने का प्रयास करता है। यह पारितोषिक सरकारी काम को करने या करने का इरादा रखने के बदले होना चाहिए

ii)     वह ऐसे सरकारी काम के बदले पारितोषिक लेता है जोकि किसी का पक्ष लेने या पक्ष न लेने के लिए किया जाए।

iii)     वह किसी पब्लिक सर्वेंट को व्यक्तिगत रूप से प्रभावित करने के बदले अन्य व्यक्ति से पारितोषिक लेता है।

·    दंड: 3 से 7 वर्ष का कारावास और जुर्माना।

बिल एक्ट के प्रावधानों को निम्नलिखित से बदलता है:

·    एक पब्लिक सर्वेंट ने रिश्वत ली है (ऐसा माना जाएगा), अगर:

i)      वह सरकारी काम को गलत ढंग से करने के लिए वित्तीय या अन्य लाभ लेने का आग्रह करता है या स्वीकार करता है या हासिल करने का प्रयास करता है।

ii)     उसका वित्तीय या अन्य लाभ लेने का आग्रह करना या उसे स्वीकार करना या हासिल करने का प्रयास करना और ऐसा आग्रह करना ही अपने-आप में सरकारी काम को गलत तरीके से करना कहा जाएगा।

iii)     वह वित्तीय या अन्य लाभ के बदले किसी अन्य पब्लिक सर्वेंट को अपना सरकारी काम गलत ढंग से करने के लिए बहकाता है।

सरकारी काम को निम्नलिखित रूप से पारिभाषित किया गया है: i) सार्वजनिक प्रकृति का काम, ii) नौकरी के दौरान किया जाने वाला काम, iii) निष्पक्ष भाव और अच्छी नीयत से किया गया काम।

सरकारी काम गलत तरीके से करने में निम्नलिखित शामिल है: i) प्रासंगिक उम्मीद का उल्लंघन, ii) सरकारी काम को करने में असफलता जोकि उम्मीद का उल्लंघन करना कहलाता है।

प्रासंगिक उम्मीद को निम्नलिखित रूप से पारिभाषित किया गया है i) अच्छी नीयत से किया गया काम, या ii) विश्वास से किया गया काम।

·    दंड: 3 से 7 वर्ष का कारावास और जुर्माना।

संशोधन 2013 के बिल के प्रावधानों को निम्नलिखित से बदलते हैं:

·    एक पब्लिक सर्वेंट ने रिश्वत ली है (ऐसा माना जाएगा), अगर:

i)      वह किसी अन्य व्यक्ति से अनुचित लाभ हासिल करता है या हासिल करने को राजी होता है या स्वीकार करता है या हासिल करने का प्रयास करता है।

) वह किसी अन्य व्यक्ति से अनुचित लाभ हासिल करता है या हासिल करने को राजी होता है या स्वीकार करता है या हासिल करने का प्रयास करता है, यह जानते हुए कि इसके परिणामस्वरूप सरकारी काम गलत ढंग से किया जाएगा;

) वह किसी सरकारी काम को गलत ढंग से करने के पारितोषिक के रूप में किसी अन्य व्यक्ति से अनुचित लाभ हासिल करता है या हासिल करने को राजी होता है या स्वीकार करता है या हासिल करने का प्रयास करता है;

) वह किसी अनुचित लाभ के परिणामस्वरूप या उसकी उम्मीद में अपना सरकारी काम गलत ढंग से करता है।

·    फिर भी, अगर उसने अपना सरकारी काम बेईमानी से नहीं किया है तो वह रिश्वत लेने का अपराध नहीं माना जाएगा।

·    दंड: 3 से 7 वर्ष का कारावास और जुर्माना।

सरकारी कर्मचारी को रिश्वत देना

·    एक्ट में कोई विशिष्ट प्रावधान नहीं है।

·    यह उकसाने के प्रावधान के तहत आता है।

·    रिश्वत देने के अपराध में शामिल है:

(i) निम्नलिखित उद्देश्य से किसी अन्य व्यक्ति को वित्तीय या अन्य लाभ की पेशकश करना या वादा करना या लाभ देना:

() पब्लिक सर्वेंट को उसका सरकारी काम गलत ढंग से करने के लिए बहकाना, या

() सरकारी कर्मचारी को अपना काम गलत ढंग से करने के लिए पुरस्कृत करना, या

(ii) किसी सरकारी कर्मचारी को वित्तीय या अन्य लाभ की पेशकश करना, यह जानते हुए कि ऐसी स्वीकृति ही सरकारी काम को गलत ढंग से करना कही जाएगी।

·    इसमें एक प्रावधान शामिल किया गया है जो कहता है कि किसी व्‍यक्ति को रिश्‍वत देने का दोषी नहीं माना जाएगा, यदि वह कानून का प्रवर्तन करने वाली अथॉरिटी या जांच एजेंसी को सूचित करने के बाद, किसी लोक सेवक के खिलाफ जांच में सहयोग के लिए ऐसा करता है।

·    संशोधनों में रिश्वत के प्रकारों को स्पष्ट किया गया है जिन्हें इसके तहत लाया जाएगा। इनमें स्वेच्छा से दी जाने वाली रिश्वत (जैसे नीलामी के जरिये लाइसेंस हासिल करना) और सामान्य हकों (राशन कार्ड का आवेदन) को हासिल करने के लिए दी जाने वाली रिश्वत शामिल हैं।

व्यावसायिक संगठन द्वारा रिश्वत देना

·    कोई प्रावधान नहीं।

·    यह उकसाने के प्रावधान के तहत आता है।

·     व्यवसाय में लाभ हासिल करने या उसे कायम रखने के लिए इनाम की पेशकश करना।

·    संगठन और उसके मुखिया को उत्तरदायी नहीं माना जाएगा, अगर यह साबित हो जाता है कि संगठन ने पर्याप्त उपाय किए थे और मुखिया को उस काम की जानकारी नहीं थी।

इसमें एक प्रावधान शामिल किया गया है जो केंद्र सरकार को दिशानिर्देश तय करने का निर्देश देता है। इनके दिशानिर्देशों के माध्यम से व्‍यावसायिक संगठन ऐसी प्रक्रियाएं अपना सकते हैं जिनसे संगठन से जुड़े व्यक्ति किसी पब्लिक सर्वेंट को रिश्वत न दे सकें।

व्यावसायिक संगठन के मुखिया का दोषी होना

धारा 18 (2): अगर अपराध संगठन के मुखिया की सहमति से किया जाए, या अगर वह आरोप्य है, तो ऐसे अधिकारी को उस अपराध के लिए दोषी माना जाना चाहिए।

·    अगर किसी व्यावसायिक संगठन को रिश्वत देने का दोषी पाया जाता है तो उस संगठन के लिए यह कार्य करने वाला व्यक्ति और संगठन का मुखिया, दोनों दोषी माने जाएंगे।

·    व्यावसायिक संगठन के मुखिया को यह साबित करना होगा कि यह अपराध बिना उसकी जानकारी के किया गया था या उसने उसे रोकने की पूरी कोशिश की थी।

संशोधन इस प्रावधान को निम्नलिखित से बदलते हैं:

अगर कोई व्यावसायिक संगठन रिश्वत देने का दोषी पाया जाता है तो यह साबित करना अभियोजन पक्ष की जिम्मेदारी है कि यह अपराध व्यावसायिक संगठन के निदेशक, प्रबंधक, सचिव या अन्य अधिकारी की सहमति या प्रश्रय से किया गया है।

उकसाना

·    किसी पब्लिक सर्वेंट द्वारा किसी अन्य कर्मचारी को प्रभावित करने से संबंधित अपराध के लिए उकसाने को इस एक्ट में शामिल किया गया है।

·    किसी व्यक्ति द्वारा निम्नलिखित से संबंधित अपराध के लिए उकसाने को एक्ट में शामिल किया गया है i) रिश्वत लेना और ii) व्यावसायिक लेनदेन से जुड़े व्यक्ति से बहुमूल्य चीज लेना।

बिल सभी अपराधों के लिए किसी भी व्यक्ति द्वारा उकसाने का प्रावधान एक्ट में शामिल करता है।

 

बिल के दायरे से आपराधिक दुर्व्यवहार से संबंधित अपराध करने के प्रयास को हटाया गया है।

आपराधिक दुर्व्यवहार

धारा 13: इसमें निम्नलिखित शामिल हैं:

i)     आदतन रिश्वत या मुफ्त में बहुमूल्य वस्तु लेना।

ii)    किसी व्यक्ति द्वारा सौंपी गई प्रॉपर्टी पर धोखे से कब्जा करना।

iii)   अवैध तरीके से बहुमूल्य वस्तु या पुरस्कार लेना।

iv)    किसी बहुमूल्य वस्तु या नकद पुरस्कार के बदले अपने पद का दुरुपयोग करना।

v)    बिना किसी सार्वजनिक हित के बहुमूल्य वस्तु या नकद पुरस्कार लेना।

vi)    आय के ज्ञात स्रोतों से अधिक नकद या प्रॉपर्टी रखना।

बिल एक्ट के प्रावधानों को निम्नलिखित से बदलता है:

i)     सरकारी कर्मचारी को सौंपी गई प्रॉपर्टी पर धोखे से कब्जा करना।

ii)    अवैध साधनों द्वारा जान-बूझकर नकद या प्रॉपर्टी इकट्ठी करना और आय के ज्ञात स्रोतों से अधिक प्रॉपर्टी या संसाधन रखना।

·    संशोधनों में जान बूझकर के स्थान पर सेवाकाल के दौरान जान बूझकर गलत माध्‍यमों से संपत्ति इकट्ठा करना शामिल किया गया है।

·    इस प्रावधान के लिए दिए गए स्पष्टीकरण के अनुसार, यह माना जाएगा कि व्‍यक्ति ने जान-बूझकर प्रॉपर्टी जोड़ी है।

·    इसमें ज्ञात स्रोतों से अधिक संसाधन या प्रॉपर्टी इकट्ठा करना शामिल है।

·    ‘आय के ज्ञात स्रोतों’ का अर्थ है वैध स्रोत से प्राप्त आय।

आदतन अपराधी

धारा 14: दंड: पांच से 10 वर्ष का कारावास और जुर्माना।

दंड: तीन से 10 वर्ष का कारावास और जुर्माना।

दंड: तीन से 10 वर्ष का कारावास और जुर्माना।

जांच के लिए पूर्व अनुमति

कोई प्रावधान नहीं है।

कोई प्रावधान नहीं है।

·    किसी सरकारी कर्मचारी द्वारा कथित रूप से अपने सरकारी काम को गलत ढंग से करने के अपराध की जांच से पहले एक पुलिस अधिकारी को उपयुक्त अथॉरिटी से अनुमति लेनी होगी, जैसा कि लोकपाल और लोकायुक्‍त एक्ट, 2013 में प्रदत्त है।

·    कुछ ऐसे मामलों में जिनमें स्‍वयं या किसी और के लिए रिश्‍वत लेने के आरोप में मौके पर ही व्‍यक्ति को गिरफ्तार किया गया हो, ऐसी अनुमति जरूरी नहीं होगी।

प्रॉपर्टी की जब्ती

कोई प्रावधान नहीं है।

·    इस संबंध मे नया अध्याय प्रस्तावित करता है।

·    अगर जांच करने वाले अधिकृत पुलिस अधिकारी को ऐसा लगता है कि सरकारी कर्मचारी ने कोई अपराध किया है, तो वह सरकारी कर्मचारी की प्रॉपर्टी को जब्त करने के संबंध में विशेष न्यायाधीश से संपर्क कर सकता है।

·    इस संबंध में प्रॉपर्टी को जब्त करने और आदेशों के निष्पादन के लिए आपराधिक कानून संशोधन अध्यादेश, 1944 के प्रावधान लागू होंगे।

·    जिला जज (अध्‍यादेश में) के स्‍थान पर मामले विशेष न्‍यायाधीश को सौंपे जाएंगे।

मुकदमे की सुनवाई के लिए समयावधि

धारा 4: समयावधि का उल्लेख नहीं है।

समयावधि का उल्लेख नहीं है।

·    विशेष न्‍यायाधीश द्वारा सुनवाई दो वर्ष में पूरी होनी चाहिए।

·    अगर सुनवाई इस समयावधि में पूरा नहीं होती तो विलंब के कारण रिकॉर्ड किए जाने चाहिए। इसके साथ छह महीने की अवधि और दी जाएगी। ऐसा हर बार विलंब होने के बाद किया जाएगा लेकिन यह प्रक्रिया दो वर्ष की अवधि पूरी होने के बाद ही अपनाई जाएगी।

·    सुनवाई पूरी होने की कुल अवधि चार वर्ष से अधिक नहीं होनी चाहिए।

नियम बनाने की शक्ति

कोई प्रावधान नहीं है।

कोई प्रावधान नहीं है।

·    संशोधनों के प्रावधान केंद्र सरकार को नियम बनाने का अधिकार प्रदान करते हैं। 

·    संशोधनों में व्यावसायिक संगठनों के लिए दिशानिर्देश दिए गए हैं जिससे वे अपने कर्मचारियों को रिश्वत देने से रोकने के लिए पर्याप्त उपाय कर सकें।

नोट : बिल मूल एक्ट के कुछ विशेष प्रावधानों की संख्या के संबंध में कुछ परिवर्तन करता है। तालिका में दिसंबर 2013 में लोकपाल औऱ लोकायुक्त एक्ट, 2013 द्वारा भ्रष्टाचार निवारण एक्ट, 1988 में किए गए संशोधनों को प्रदर्शित किया गया है।

Sources: The Prevention of Corruption Act, 1988, The Prevention of Corruption (Amendment) Bill, 2013; Notice of Amendments in Rajya Sabha, May 5, 2015 and November 27, 2015; PRS.

 

[1]. The Prevention of Corruption (Amendment) Bill, 2013, http://www.prsindia.org/administrator/uploads/general/1376983957~~PCA%20Bill%202013.pdf.

[2]. Notice of amendments to the Prevention of Corruption (Amendment) Bill, 2013, Rajya Sabha, May 5, 2015, http://www.prsindia.org/uploads/media/Corruption/PCA-%20Notice%20of%20Amendments.pdf;

[3]. Notice of amendments to the Prevention of Corruption (Amendment) Bill, 2013, Rajya Sabha, November 27, 2015; http://www.prsindia.org/uploads/media/Corruption/List%20of%20Amendments-%20PCA%20November.pdf.

 

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