मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) बिल, 2017: 2017 के बिल और 2018 के संशोधनों के बीच तुलना

मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) बिल, 2017 को विधि और न्याय मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने 28 दिसंबर, 2017 को लोकसभा में पेश किया और उसी दिन बिल पारित हो गया।[1]  बिल तीन तलाक को अमान्य और गैर कानूनी घोषित करता है और गुजारे भत्ते एवं बच्चों की कस्टडी से संबंधित प्रावधान करता है। वर्तमान में बिल राज्यसभा में लंबित है।

9 अगस्त, 2018 को बिल के कुछ संशोधनों को राज्यसभा में सर्कुलेट किया गया।[2] यहां प्रस्तुत तालिका में 2017 के बिल और 2018 के प्रस्तावित संशोधनों के बीच तुलना की गई है।

तालिका 1: 2017 के बिल और 2018 के प्रस्तावित संशोधनों के बीच तुलना

मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) बिल, 2017

2017 के बिल के आधिकारिक संशोधन

 

घोषणा का प्रभाव

 

·  बिल के अनुसार तीन तलाक (जिसमें तलाक-ए-बिद्दत या किसी भी दूसरी तरह का तलाक शामिल है जिसके परिणामस्वरूप मुस्लिम पुरुष अपनी पत्नी को इंस्टेंट या इररिवोकेबल-जिसे पलटा न जा सके-तलाक दे देता है) कहना, उसे लिखकर देना या उसका इलेक्ट्रॉनिक रूप, अमान्य (यानी कानून द्वारा लागू नहीं) और गैरकानूनी है।

· कोई परिवर्तन नहीं। 

अपराध

 

·  बिल तीन तलाक को एक संज्ञेय और गैर जमानती अपराध घोषित करता है (एक संज्ञेय अपराध वह होता है जिसमें पुलिस अधिकारी बिना वारंट के किसी व्यक्ति को गिरफ्तार कर सकता है)। 

·  अपराध केवल तभी संज्ञेय होगा, जब अपराध से संबंधित सूचना: (i) विवाहित महिला (जिसे तीन तलाक कहा गया है), या (ii) उससे रक्त या विवाह से जुड़े किसी व्यक्ति ने दी हो। 

·  मेजिस्ट्रेट महिला (जिसे तीन तलाक कहा गया है) की सुनवाई के बाद आरोपी को जमानत दे सकता है या अगर वह इस बात से संतुष्ट हो जाए कि जमानत देने के पर्याप्त आधार हैं। 

·  महिला (जिसे तीन तलाक कहा गया है) के अनुरोध पर मेजिस्ट्रेट द्वारा अपराध को शमनीय माना जा सकता है। शमनीय या कम्पाउंडिंग का अर्थ वह प्रक्रिया है जिसमें दोनों पक्ष कानूनी कार्यवाहियों को रोकने और विवाद को निपटाने के लिए सहमत हो जाते हैं। कम्पाउंडिंग के नियम और शर्तों को मेजिस्ट्रेट द्वारा निर्धारित किया जाएगा।  

 

दंड

 

·  तीन तलाक कहने पर पति को तीन साल तक की सजा भुगतनी पड़ सकती है एवं जुर्माना भरना पड़ सकता है।

·  कोई परिवर्तन नहीं।

 

गुजारा भत्ता और कस्टडी

 

·  जिस मुस्लिम महिला को तीन तलाक कहा गया है, वह: (i) अपने और अपने निर्भर बच्चों के लिए गुजारे भत्ते, और (ii) अवयस्क बच्चों की कस्टडी की मांग कर सकती है। गुजारे भत्ते की राशि और कस्टडी की शर्तों को मेजिस्ट्रेट द्वारा तय किया जाएगा। 

·  कोई परिवर्तन नहीं। 

 

Sources: The Muslim Women (Protection of Rights on Marriage) Bill, 2017; Notice of Amendments in Rajya Sabha, August 9, 2018; PRS.

 

[1] The Muslim Women (Protection of Rights on Marriage) Bill, 2018, http://www.prsindia.org/uploads/media/Muslim%20Women%20(Protection%20of%20Rights%20on%20Marriage)/Muslim%20Women%20(Protection%20of%20Rights%20on%20Marriage)%20Bill,%202017.pdf

[2] Notice of Amendments in Rajya Sabha, August 9, 2018, http://www.prsindia.org/uploads/media/Muslim%20Women%20(Protection%20of%20Rights%20on%20Marriage)/Triple%20Talaq%20Notice%20of%20Amendments.pdf.

 

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