अध्यादेश का सारांश

क्रिमिनल लॉ (संशोधन) अध्यादेश, 2018

  • क्रिमिनल लॉ (संशोधन) अध्यादेश, 2018 को 21 अप्रैल, 2018 को जारी किया गया। यह अध्यादेश नाबालिगों (माइनर्स) के बलात्कार से संबंधित कुछ कानूनों में संशोधन करता है। ये संशोधन निम्नलिखित हैं:

भारतीय दंड संहिता (आईपीसी), 1860 में संशोधन

  • बलात्कार की सजा को बढ़ाना: आईपीसी, 1860 के अंतर्गत बलात्कार के अपराध के लिए कम से कम सात वर्ष के सश्रम कारावास से लेकर आजीवन कारावास तक का दंड दिया जाता है और साथ में जुर्माना भी लगाया जाता है। अध्यादेश न्यूनतम कारावास की अवधि को बढ़ाकर सात वर्ष से दस वर्ष करता है।
     
  • नए अपराध: अध्यादेश नाबालिगों के बलात्कार से संबंधित तीन नए अपराधों को प्रस्तुत करता है और एक के लिए दंड को बढ़ाता है:

तालिका 1: आईपीसी, 1860 के अंतर्गत नए अपराध

आयु वर्ग

अपराध

दंड

12 वर्ष से कम

बलात्कार

कम से कम 20 वर्ष का सश्रम कारावास जिसे आजीवन कारावास तक बढ़ाया जा सकता है- साथ ही पीड़िता के मेडिकल और पुनर्वास के खर्चे को पूरा करने के लिए जुर्माना, अथवा मृत्यु।

सामूहिक बलात्कार

आजीवन कारावास- साथ ही पीड़िता के मेडिकल और पुनर्वास के खर्चे को पूरा करने के लिए जुर्माना, अथवा मृत्यु।

16 वर्ष से कम

बलात्कार

इससे पहले बलात्कार के लिए दस वर्ष के कारावास जिसे आजीवन कारावास तक बढ़ाया जा सकता था, की सजा का प्रावधान था। इसके साथ जुर्माना भी लगाया जाता था। इसे बढ़ाकार कम से कम 20 वर्ष का सश्रम कारावास किया गया है जिसे आजीवन कारावास तक बढ़ाया जा सकता है। साथ ही पीड़िता के मेडिकल और पुनर्वास के खर्चे को पूरा करने के लिए जुर्माने का प्रावधान भी है। 

सामूहिक बलात्कार

आजीवन कारावास- साथ ही पीड़िता के मेडिकल और पुनर्वास के खर्चे को पूरा करने के लिए जुर्माना।

Sources: Indian Penal Code, 1860; The Criminal Law (Amendment) Ordinance, 2018; PRS.

  • यौन अपराधों से बाल सुरक्षा एक्ट (पॉक्सो), 2012 में संशोधन: पॉक्सो, 2012 के अंतर्गत नाबालिगों (18 वर्ष से कम उम्र के) के बलात्कार के लिए कम से कम सात वर्ष या आजीवन कारावास, साथ में जुर्माने का दंड दिया जाता है। 12 वर्ष से कम उम्र के नाबालिगों के बलात्कार या नाबालिगों के सामूहिक बलात्कार के लिए कम से कम दस वर्षों के सश्रम कारावास या आजीवन कारावास, साथ में जुर्माने का दंड दिया जाता है। अध्यादेश पॉक्सो, 2012 में संशोधन करता है और कहता है कि ऐसे सभी अपराधों के लिए वह दंड लागू होगा, जोकि पॉक्सो, 2012 और आईपीसी, 1860 के अंतर्गत दिए जाने वाले दंड में से अधिक होगा।

आपराधिक दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी), 1973 में संशोधन

  • समयबद्ध जांच: सीआरपीसी, 1973 के अनुसार किसी बच्चे के बलात्कार की जांच तीन महीने में पूरी होनी चाहिए। अध्यादेश जांच खत्म होने की अवधि को तीन महीने से दो महीने करता है। इसके अतिरिक्त अध्यादेश कहता है कि बलात्कार के सभी अपराधों में जांच की यही समय सीमा लागू होगी (जिसमें बलात्कार, सामूहिक बलात्कार और 12 वर्ष और 16 वर्ष की नाबालिगों का बलात्कार शामिल है)
     
  • अपील: अध्यादेश के अनुसार बलात्कार के मामलों में दंड के फैसले के खिलाफ किसी भी अपील की सुनवाई छह महीने के भीतर पूरी होनी चाहिए।
     
  • अग्रिम जमानत (एंटिसिपेटरी बेल): सीआरपीसी, 1973 में उन शर्तों को सूचीबद्ध किया गया है जिनके अंतर्गत अग्रिम जमानत दी जाती है। अध्यादेश कहता है कि 12 वर्ष और 16 वर्ष की उम्र से कम की नाबालिग लड़की के बलात्कार और सामूहिक बलात्कार पर अग्रिम जमानत का प्रावधान लागू नहीं होगा।
     
  • मुआवजा: सीआरपीसी, 1973 के अनुसार सभी बलात्कार पीड़ितों को राज्य सरकार द्वारा मुफ्त मेडिकल उपचार और मुआवजा दिया जाएगा। इस प्रावधान में 12 वर्ष और 16 वर्ष की नाबालिग लड़कियों के बलात्कार और सामूहिक बलात्कार को शामिल किया गया है।
     
  • पूर्व मंजूरी: सीआरपीसी, 1973 के अनुसार कुछ अपराधों, जैसे बलात्कार को छोड़कर दूसरे सभी अपराधों में सभी सरकारी कर्मचारियों पर मुकदमा चलाने के लिए पूर्व मंजूरी की जरूरत होती है। इस प्रावधान में 12 वर्ष और 16 वर्ष की नाबालिग लड़कियों के बलात्कार और सामूहिक बलात्कार को शामिल किया गया है।
     
  • भारतीय साक्ष्य (इंडियन एविडेंस) एक्ट, 1872: भारतीय साक्ष्य एक्ट के अंतर्गत यह निर्धारित करने में कि कोई कृत्य सहमति से था अथवा नहीं, पीड़िता का पूर्व यौन अनुभव या चरित्र मायने नहीं रखता। इस प्रावधान में 12 वर्ष और 16 वर्ष की नाबालिग लड़कियों के बलात्कार और सामूहिक बलात्कार को शामिल किया गया है।

 

 

अस्वीकरणः प्रस्तुत रिपोर्ट आपके समक्ष सूचना प्रदान करने के लिए प्रस्तुत की गई है। पीआरएस लेजिसलेटिव रिसर्च (पीआरएस) की स्वीकृति के साथ इस रिपोर्ट का पूर्ण रूपेण या आंशिक रूप से गैर व्यावसायिक उद्देश्य के लिए पुनःप्रयोग या पुनर्वितरण किया जा सकता है। रिपोर्ट में प्रस्तुत विचार के लिए अंततः लेखक या लेखिका उत्तरदायी हैं। यद्यपि पीआरएस विश्वसनीय और व्यापक सूचना का प्रयोग करने का हर संभव प्रयास करता है किंतु पीआरएस दावा नहीं करता कि प्रस्तुत रिपोर्ट की सामग्री सही या पूर्ण है। पीआरएस एक स्वतंत्र, अलाभकारी समूह है। रिपोर्ट को इसे प्राप्त करने वाले व्यक्तियों के उद्देश्यों अथवा विचारों से निरपेक्ष होकर तैयार किया गया है। यह सारांश मूल रूप से अंग्रेजी में तैयार किया गया था। हिंदी रूपांतरण में किसी भी प्रकार की अस्पष्टता की स्थिति में अंग्रेजी के मूल सारांश से इसकी पुष्टि की जा सकती है।