अध्यादेश का सारांश

बैंकिंग रेगुलेशन (संशोधन) अध्यादेश, 2020

  • बैंकिंग रेगुलेशन (संशोधन) अध्यादेश, 2020 को 26 जून, 2020 को जारी किया गया। यह अध्यादेश बैंकिंग रेगुलेशन एक्ट, 1949 में संशोधन करता है। एक्ट बैंकों के कामकाज को रेगुलेट करता है और विभिन्न पहलुओं का विवरण प्रदान करता है जैसे बैंकों की लाइसेंसिंग, प्रबंधन और संचालन।
     
  • एक्सक्लूजन्स: एक्ट कुछ कोऑपरेटिव सोसायटीज़ पर लागू नहीं होता, जैसे प्राइमरी कृषि ऋण सोसायटीज़ और कोऑपरेटिव लैंड मॉर्गेज बैंक। अध्यादेश निम्नलिखित को एक्ट के प्रावधानों से हटाने के लिए इसमें संशोधन करता है: (i) प्राइमरी कृषि ऋण सोसायटीज़, और (ii) कोऑपरेटिव सोसायटीज़ जिनका मुख्य कारोबार कृषि विकास के लिए दीर्घकालीन वित्त प्रदान करना है। इसके अतिरिक्त इन सोसायटीज़ को निम्नलिखित नहीं करना चाहिए (i) अपने नाम में ‘बैंक,’ ‘बैंकर’ या ‘बैंकिंग’ शब्दों का इस्तेमाल, और (ii) चेक क्लीयर करने वाली एंटिटीज़ के तौर पर व्यवहार।
     
  • मोरटोरियम के बिना पुनर्गठन या एकीकरण की योजना बनाने की शक्ति: एक्ट के अंतर्गत भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) केंद्र सरकार को किसी बैंकिंग कंपनी को मोरटोरियम में रखने का आवेदन कर सकता है। मोरटोरियम के दौरान बैंक के खिलाफ छह महीने तक कोई कानूनी कार्रवाई नहीं की जा सकती या ऐसी कोई कार्रवाई जारी नहीं रखी जा सकती। इस अवधि के दौरान बैंक कोई भुगतान नहीं कर सकता या अपनी देनदारियों को नहीं चुका सकता। अध्यादेश कहता है कि मोरटोरियम के दौरान बैंक लोन नहीं दे सकता और न ही किसी क्रेडिट इंस्ट्रूमेंट में निवेश कर सकता है।
     
  • इसके अतिरिक्त मोरटोरियम के दौरान अगर आरबीआई को यह प्रतीत होता है कि बैंक के उचित प्रबंधन के लिए, या जमाकर्ताओं, आम लोगों या बैंकिंग प्रणाली के हित के लिए ऐसा आदेश जरूरी है तो वह बैंक के पुनर्गठन या एकीकरण के लिए योजना बना सकता है। अध्यादेश आरबीआई को इस बात की अनुमति देता है कि वह मोरटोरियम के बिना भी पुनर्गठन या एकीकरण की योजना शुरू कर सकता है।
     
  • कोऑपरेटिव बैंकों का शेयर और सिक्योरिटी जारी करना: अध्यादेश में प्रावधान है कि कोऑपरेटिव बैंक फेस वैल्यू पर या अपने सदस्यों अथवा अपने संचालन क्षेत्र में निवास करने वाले अन्य व्यक्तियों को प्रीमियम पर इक्विटी शेयर, प्रिफ्ररेंस शेयर या स्पेशल शेयर जारी कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त वह ऐसे लोगों को दस वर्ष या उससे अधिक की परिपक्वता के साथ अनसिक्योर्ड डिबेंचर्स या बॉन्ड्स या इस जैसी दूसरी सिक्योरिटीज़ जारी कर सकते हैं। इसके लिए उन्हें आरबीआई की पूर्व मंजूरी लेनी होगी और आरबीआई की दूसरी शर्तों, जो भी निर्दिष्ट हों, को मानना होगा।
     
  • अध्यादेश का कहना है कि कोई भी व्यक्ति कोऑपरेटिव बैंक के शेयर्स को सरेंडर करने पर भुगतान की मांग के लिए अधिकृत नहीं है। इसके अतिरिक्त कोऑपरेटिव बैंक केवल आरबीआई द्वारा निर्दिष्ट किए जाने पर ही अपने शेयर कैपिटल को विदड्रॉ या कम कर सकता है।
     
  • बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स का सुपरसेशन: एक्ट कहता है कि आरबीआई कुछ स्थितियों में मल्टी स्टेट कोऑपरेटिव बैंक के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स का अधिकतम पांच वर्षों के लिए सुपरसेशन कर सकता है। इन स्थितियों में ऐसे मामले शामिल हैं जहां आरबीआई के लिए जनहित में या जमाकर्ताओं की सुरक्षा के लिए बोर्ड का सुपरसेशन जरूरी है। अध्यादेश कहता है कि अगर कोऑपरेटिव बैंक किसी राज्य के रजिस्ट्रार ऑफ कोऑपरेटिव सोसायटीज में पंजीकृत है तो आरबीआई संबंधित राज्य सरकार की सलाह से बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स को सुपसीड करेगा और उस अवधि के लिए ऐसा करेगा, जिसे निर्दिष्ट किया गया हो।
     
  • कोऑपरेटिव बैंकों को छूट देने की शक्ति: अध्यादेश कहता है कि आरबीआई अधिसूचना के जरिए कोऑपरेटिव बैंक या कोऑपरेटिव बैंकों की किसी श्रेणी को एक्ट के कुछ प्रावधानों से छूट दे सकता है। ये कुछ प्रकार के रोजगार पर प्रतिबंध, बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स के क्वालिफिकेशन और चेयरपर्सन की नियुक्ति से जुड़े प्रावधान हैं। छूट की समय अवधि और शर्तों को आरबीआई द्वारा निर्दिष्ट किया जाएगा।
     
  • कुछ प्रावधान हटाए गए: अध्यादेश एक्ट से कुछ प्रावधानों को हटाता है। इनमें निम्नलिखित शामिल हैं: एक्ट कोऑपरेटिव बैंकों को अपने खुद के शेयर्स की सिक्योरिटी पर लोन या एडवांस लेने से प्रतिबंधित करता है। इसके अतिरिक्त वह कोऑपरेटिव बैंकों के निदेशकों, और ऐसी निजी कंपनियों, जिनमें बैंक के निदेशक या चेयरपर्सन का हित हो, को अनसिक्योर्ड लोन्स या एडवांस देने से प्रतिबंधित करता है। एक्ट अनसिक्योर्ड लोन्स या एडवांस देने की शर्तों को निर्दिष्ट करता है और यह भी स्पष्ट करता है कि किस तरीके से आरबीआई को लोन रिपोर्ट किए जा सकते हैं। अध्यादेश एक्ट से इस प्रावधान को हटाता है।
     
  • एक्ट के अनुसार, कोऑपरेटिव बैंक आरबीआई की अनुमति के बिना नए स्थान पर बिजनेस नहीं शुरू कर सकता और न ही अपने मौजूदा शहर, कस्बे या गांव के बाहर लोकेशन बदल सकता है। अध्यादेश इस प्रावधान को हटाता है। वह इस प्रावधान को भी हटाता है कि अधिसूचित कोऑपरेटिव बैंक भारत में अपनी अधिकतम 40% डिमांड और टाइम लायबिलिटी की कीमत वाले एसेट्स को ही बरकरार रख सकता है।
     
  • अध्यादेश का प्रभाव: अध्यादेश के जारी होने की तारीख से उसके निम्नलिखित प्रावधान लागू होंगे: (i) कुछ कोऑपरेटिव सोसायटीज़ के लिए एक्सक्लूजन को हटाना, और (ii) मोरटोरियम के बिना पुनर्गठन और एकीकरण की शक्तियां। अन्य प्रावधानों को बाद की तारीख में अधिसूचित किया जाएगा।

 

अस्वीकरणः प्रस्तुत रिपोर्ट आपके समक्ष सूचना प्रदान करने के लिए प्रस्तुत की गई है। पीआरएस लेजिसलेटिव रिसर्च (पीआरएस) के नाम उल्लेख के साथ इस रिपोर्ट का पूर्ण रूपेण या आंशिक रूप से गैर व्यावसायिक उद्देश्य के लिए पुनःप्रयोग या पुनर्वितरण किया जा सकता है। रिपोर्ट में प्रस्तुत विचार के लिए अंततः लेखक या लेखिका उत्तरदायी हैं। यद्यपि पीआरएस विश्वसनीय और व्यापक सूचना का प्रयोग करने का हर संभव प्रयास करता है किंतु पीआरएस दावा नहीं करता कि प्रस्तुत रिपोर्ट की सामग्री सही या पूर्ण है। पीआरएस एक स्वतंत्र, अलाभकारी समूह है। रिपोर्ट को इसे प्राप्त करने वाले व्यक्तियों के उद्देश्यों अथवा विचारों से निरपेक्ष होकर तैयार किया गया है। यह सारांश मूल रूप से अंग्रेजी में तैयार किया गया था। हिंदी रूपांतरण में किसी भी प्रकार की अस्पष्टता की स्थिति में अंग्रेजी के मूल सारांश से इसकी पुष्टि की जा सकती है।