लेजिसलेटिव ब्रीफ

क्रिमिनल लॉ (संशोधन) अध्यादेश, 2018

अध्यादेश की मुख्‍य विशेषताएं

  • अध्यादेश महिलाओं के बलात्कार की सजा को सात वर्ष से बढ़ाकर 10 वर्ष करने के लिए आईपीसी, 1860 में संशोधन करता है।
  • 12 वर्ष से कम उम्र की लड़कियों के बलात्कार और सामूहिक बलात्कार के लिए 20 वर्ष का न्यूनतम कारावास होगा जिसे आजीवन कारावास या मृत्यु दंड तक बढ़ाया जा सकता है।
  • 16 वर्ष से कम उम्र की लड़कियों के बलात्कार के लिए 20 वर्ष या आजीवन कारावास की सजा का प्रावधान है।

प्रमुख मुद्दे और विश्‍लेषण

  • अध्यादेश लड़कियों के बलात्कार की सजा को बढ़ाने के लिए आईपीसी, 1860 में संशोधन करता है। पर नाबालिग लड़कों के बलात्कार की सजा में कोई बदलाव नहीं किया गया है। इस प्रकार नाबालिग लड़कों के साथ बलात्कार पर कम अवधि की सजा का प्रावधान है, जबकि नाबालिग लड़कियों के साथ बलात्कार की सजा ज्यादा लंबी हो जाती है। दोनों स्थितियों में सजा की अवधियों (क्वांटम ऑफ पनिशमेट) के बीच काफी अंतर आ जाता है।
  • अध्यादेश 12 वर्ष से कम उम्र की लड़कियों के बलात्कार के लिए मृत्यु दंड का प्रावधान करता है। बलात्कार के लिए मृत्यु दंड देने पर भिन्न-भिन्न विचार हैं। कुछ लोगों का कहना है कि मृत्यु दंड देने से व्यक्ति अपराध करने से हतोत्साहित होता है और अपराध रुकता है। कुछ लोगों का तर्क है कि मृत्यु दंड बलात्कार के अनुपात में ज्यादा बड़ा दंड है।

भाग क : अध्यादेश की मुख्य विशेषताएं

संदर्भ

भारतीय दंड संहिता (आईपीसी), 1860 और यौन अपराधों से बाल सुरक्षा (पॉक्सो) एक्ट, 2012 के अंतर्गत महिलाओं और नाबालिग बच्चों से बलात्कार अपराध है। 2016 में बलात्कार के कुल 39,068 मामलों में 21% मामले 16 वर्ष से कम उम्र की नाबालिग लड़कियों से संबंधित थे।[1] पिछले वर्ष कई राज्यों ने ऐसे बिल पेश और पारित किए थे जिनमें 12 वर्ष से कम उम्र की लड़कियों से बलात्कार पर मृत्यु दंड का प्रावधान था।[2] 21 अप्रैल, 2018 को सरकार ने क्रिमिनल लॉ (संशोधन) अध्यादेश, 2018 जारी किया। 

प्रमुख विशेषताएं

अध्यादेश आईपीसी, 1860, पॉक्सो एक्ट, 2012 और महिलाओं से बलात्कार से संबंधित दूसरे कानूनों में संशोधन करता है। पॉक्सो एक्ट, 2012 कहता है कि नाबालिगों के बलात्कार के मामलों में वह दंड लागू होगा, जोकि पॉक्सो, 2012 और आईपीसी, 1860 के अंतर्गत दिए जाने वाले दंड में से अधिक होगा।

तालिका 1: क्रिमिनल लॉ (संशोधन) अध्यादेश, 2018 में प्रस्तावित मुख्य संशोधन

महिला की उम्र

अपराध

आईपीसी 1860 के अंतर्गत दंड

क्रिमिनल लॉ (संशोधन) अध्यादेश, 2018

12 वर्ष से कम

बलात्कार

·    न्यूनतम: 10 वर्ष

·    अधिकतम: आजीवन कारावास

·    न्यूनतम : 20 वर्ष

·    अधिकतम आजीवन कारावास या मृत्यु दंड

सामूहिक बलात्कार

·    न्यूनतम : 20 वर्ष

·    अधिकतम: आजीवन कारावास

·    न्यूनतम : आजीवन कारावास

·    अधिकतम: आजीवन कारावास या मृत्यु दंड

12 - 16 वर्ष

बलात्कार

·    न्यूनतम : 10 वर्ष

·    अधिकतम: आजीवन कारावास

·    न्यूनतम: 20 वर्ष

·    अधिकतम: कोई परिवर्तन नहीं

सामूहिक बलात्कार

·    न्यूनतम : 20 वर्ष

·    अधिकतम: आजीवन कारावास  

·    न्यूनतम: आजीवन कारावास

·    अधिकतम: कोई प्रावधान नहीं

16 वर्ष और अधिक

बलात्कार

·    न्यूनतम : 7 वर्ष

·    अधिकतम: आजीवन कारावास

·     न्यूनतम: 10 वर्ष

·     अधिकतम: कोई परिवर्तन नहीं

Sources: Indian Penal Code, 1860; The Criminal Laws (Amendment) Ordinance, 2018; PRS.

  • आपराधिक दंड संहिता प्रक्रिया, 1973 के अंतर्गत बच्चों के बलात्कार के मामलों में जांच तीन महीनों में पूरी होनी चाहिए चाहिए। अध्यादेश बलात्कार के सभी मामलों में इस अवधि को दो महीने करता है।
  • अध्यादेश 16 वर्ष के कम उम्र की नाबालिग लड़कियों के बलात्कार के मामलों में अग्रिम जमानत पर रोक लगाता है। इसके अतिरिक्त बलात्कार के मामलों में दंड के फैसले के खिलाफ किसी भी अपील की सुनवाई छह महीने में पूरी होनी चाहिए।

भाग ख:  प्रमुख मुद्दे और विश्‍लेषण

बलात्कार की परिभाषा और सजा में लिंग आधारित भेदभाव  

बलात्कार की परिभाषा जेंडर न्यूट्रल नहीं है

पॉक्सो एक्ट, 2012 का कहना कि नाबालिगों के बलात्कार के मामलों में पीड़ित लड़का या लड़की हो सकता है (और अपराधी भी किसी भी लिंग का हो सकता है)। आईपीसी, 1860 में बलात्कार तभी अपराध के रूप में परिभाषित है, जब अपराधी पुरुष हो और पीड़ित महिला। लॉ कमीशन (2000) की रिपोर्ट और जस्टिस वर्मा कमिटी (2013) ने सुझाव दिया था कि बलात्कार की परिभाषा जेंडर न्यूट्रल होनी चाहिए और पुरुषों और महिलाओं, दोनों पर लागू होनी चाहिए।[3],[4]अध्यादेश इस बारे में कुछ नहीं कहता।

लड़कियों बनाम लड़कों के बलात्कार की सजा में अत्यधिक अंतर

पॉक्सो एक्ट कहता है कि नाबालिगों के बलात्कार के मामलों में वह सजा लागू होगी, जो पॉक्सो या आईपीसी, दोनों में निर्दिष्ट सजा में से अधिक होगी। इस एक्ट में बलात्कार के लिए एक बराबर सजा है, भले ही पीड़ित लड़का हो या लड़की। हालांकि आईपीसी के प्रावधान, जोकि महिला पीड़ितों के बलात्कार पर ही लागू होते हैं, में अधिक सजा निर्दिष्ट है। अध्यादेश इस अंतर को और बढ़ाता है। तालिका 2 में नाबालिग लड़कों और लड़कियों के बलात्कार की सजा में मौजूद अंतर को प्रदर्शित किया गया है।  

तालिका 2: नाबालिग लड़कों और लड़कियों के बीच बलात्कार की सजा में अंतर

आयु (वर्षों में)

लड़के

लड़कियां (2018 के अध्यादेश से पहले)

लड़कियां (2018 के अध्यादेश से बाद)

12 से कम

10 वर्ष से लेकर आजीवन कारावास

10 वर्ष से लेकर आजीवन कारावास  

20 वर्ष से लेकर आजीवन कारावास/मृत्यु दंड

12-16

7 वर्ष से लेकर आजीवन कारावास

10 वर्ष से लेकर आजीवन कारावास

20 वर्ष से लेकर आजीवन कारावास

16-18

7 वर्ष से लेकर आजीवन कारावास

7 वर्ष से लेकर आजीवन कारावास  

10 वर्ष से लेकर आजीवन कारावास

Sources: POCSO, 2012; Indian Penal Code, 1860; The Criminal Law (Amendment) Ordinance, 2018; PRS.

बलात्कार पर मृत्यु दंड की सजा पर भिन्न-भिन्न विचार

अध्यादेश 12 वर्ष के कम उम्र की लड़कियों के बलात्कार पर मृत्यु दंड देने के लिए आईपीसी, 1860 में संशोधन करता है। हालांकि मृत्यु दंड को लेकर काफी सवाल उठते रहे हैं, हम यहां बलात्कार के अपराध में मृत्यु दंड प्रस्तावित करने पर चर्चा कर रहे हैं।

बलात्कार के मामलों में सजा पर विचार करते समय जस्टिस वर्मा कमिटी (2013) ने इस बात पर भी विचार किया था कि क्या मृत्यु दंड दिया जाना चाहिए।4कमिटी ने कहा था कि हालांकि बलात्कार एक हिंसक अपराध था, दंड उसके अनुपात मे होना चाहिए, चूंकि सर्वाइवर को रीहैबलिटेट (पुर्नवास) करना संभव है। कमिटी ने बलात्कार के लिए सजा को आजीवन कारावास तक करने का समर्थन किया था लेकिन मृत्यु दंड का नहीं।4 लॉ कमीशन (2015) ने कहा था कि नाबालिग लड़कों और लड़कियों के बलात्कार और मृत्यु से संबंधित मामलों में अदालतों ने अलग-अलग फैसले किए हैं। किन्हीं मामलों में मृत्यु दंड दिया है, किन्हीं मामलों में मृत्यु दंड नहीं दिया है।[5]  मार्च 2013 में संसद ने क्रिमिनल लॉ (संशोधन) एक्ट, 2013 पारित किया ताकि बलात्कार के उन मामलों में मृत्यु दंड देने के लिए आईपीसी, 1860 में संशोधन किया जा सके, जहां बलात्कार के साथ की गई क्रूरता से पीड़ित की मृत्यु हो जाए या वह लगातार वेजिटेटिव स्टेट (निष्क्रिय) में चली जाए, या अगर अपराधी कई बार अपराध कर चुका हो।

दूसरी ओर यह कहा गया कि बलात्कार में मृत्यु दंड देने से लोगों को ऐसे अपराध करने से रोका जा सकता है और इस प्रकार अपराधों में कमी आ सकती है।6  इसके अतिरिक्त मृत्यु दंड देने से पीड़ित को रीट्रिब्यूटिव जस्टिस (जैसे को तैसा) मिलेगा।[6] पिछले वर्ष विभिन्न अदालती फैसलों में मृत्यु दंड की सजा को दुर्लभ से दुर्लभतम (रेयरेस्ट ऑफ रेयर) मामलों तक सीमित कर दिया गया और यह निर्धारित करने के लिए मानदंड जारी किया गया कि आरोपी को मृत्यु दंड देना चाहिए अथवा नहीं।[7]  इसका यह अर्थ है कि अदालतें केवल असाधारण स्थितियों में बलात्कार के लिए मृत्यु दंड दे सकती हैं जिनमें वे मामले शामिल हैं जब दोषी के सुधार और पुनर्वास की कल्पना नहीं की जा सकती।4

 

[1]. Crime in India – 2016, The National Crime Records Bureau, http://ncrb.gov.in/StatPublications/CII/CII2016/pdfs/Crime%20Statistics%20-%202016.pdf

[2]. These states include Haryana, Madhya Pradesh, Rajasthan, and Arunachal Pradesh, https://www.thehindu.com/news/national/arunachal-prescribes-death-for-raping-girls-under-12/article23274886.ece.

[3]. Report No. 172: Review of Rape Laws, Law Commission of India, March 2000.

[4]. Report of the Committee on Amendments to Criminal Law, 2013, January 23, 2013.

[5]. Report No. 262: The Death Penalty, Law Commission of India, August 2015. 

[6]. Report No. 35: Capital Punishment, Law Commission of India, September 1967.

[7]. Bachan Singh vs. State of Punjab (1980) (1980) (2 SCC 684), Macchi Singh vs State of Punjab (1983) 3 SCC 470.

 

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