ज्वाइंट पार्लियामेंटरी कमिटी की रिपोर्ट का सारांश 

जैव विविधता (संशोधन) बिल, 2021  

  •  ज्वाइंट पार्लियामेंटरी कमिटी (चेयर: डॉ. संजय जायसवाल) ने 2 अगस्त, 2022 को जैव विविधता (संशोधन) बिल, 2021 पर अपनी रिपोर्ट को संसद के पटल पर रखा। इस बिल को 16 दिसंबर, 2021 को लोकसभा में पेश किया गया था। बिल जैव विविधता एक्ट, 2002 में संशोधन करता है। एक्ट में जैव विविधता के संरक्षण तथा जैव विविधता और संबंधित ज्ञान तक पहुंच के लाभों को स्थानीय समुदायों के साथ साझा करने का प्रावधान है। कमिटी के मुख्य निष्कर्षों और सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं:
  • संहिताबद्ध परंपरागत ज्ञान: बिल संहिताबद्ध परंपरागत ज्ञान को लाभ साझाकरण के प्रावधानों से छूट देता है। हालांकि इसमें ‘संहिताबद्ध परंपरागत ज्ञान की परिभाषा नहीं दी गई है। कमिटी ने कहा कि आयुष चिकित्सा प्रणाली का ज्यादातर परंपरागत ज्ञान संहिताबद्ध है। उसने कहा कि लोक जैव विविधता रजिस्टर में दर्ज परंपरागत ज्ञान को भी संहिताबद्ध माना जा सकता है।  इससे स्थानीय परंपरागत ज्ञान के बहुत से धारक लाभों से वंचित हो सकते हैं। इस रजिस्टर को स्थानीय प्रशासन द्वारा तैयार किया जाता है ताकि एक्ट के प्रावधानों के अनुसार, जैव विविधता को दर्ज किया जा सके। कमिटी ने सुझाव दिया कि बिल में इन शब्दों को परिभाषित किया जाए। इन्हें ड्रग्स और कॉस्मैटिक्स एक्ट, 1940 की पहली अनुसूची में निर्दिष्ट आधिकारिक पुस्तकों से प्राप्त ज्ञान के रूप में परिभाषित किया जाना चाहिए। अनुसूची में आयुर्वेद, सिद्ध और अन्य पारंपरिक चिकित्सा प्रणालियों की पुस्तकों की सूची है।
  • औषधीय पौधों की खेती: बिल उन औषधीय पौधों को लाभ साझाकरण के प्रावधानों से छूट देता है जिनकी खेती की जाती है। उसमें कहा गया है कि केंद्र सरकार ऐसे औषधीय पौधों के लिए सर्टिफिकेशन ऑफ ओरिजिन को जारी करने का तरीका निर्दिष्ट कर सकती है। कमिटी ने सुझाव दिया कि केंद्र को नियम बनाने की शक्ति न दी जाए। इसकी बजाय उसने सुझाव दिया कि बिल में ही सर्टिफिकेट जारी करने से संबंधित स्पष्टीकरण होना चाहिए। बिल में यह प्रावधान होना चाहिए कि संबंधित स्थानीय प्रशासन की पुस्तकों में प्रविष्टि के जरिए सर्टिफिकेट ऑफ ओरिजिन प्राप्त हो।
  • विदेशी नियंत्रित कंपनीबिल में प्रावधान है कि भारत में निगमित कंपनी, जोकि विदेशी नियंत्रित कंपनी है, को कुछ निर्दिष्ट गतिविधियों के लिए राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण से मंजूरी लेनी होगी। बिल के तहत विदेशी नियंत्रित कंपनी का अर्थ कंपनी एक्ट, 2013 के अनुसार एक विदेशी द्वारा नियंत्रित कंपनी है। कंपनी एक्ट एक विदेशी कंपनी को ऐसी कंपनी या बॉडी कॉरपोरेट के रूप में परिभाषित करता है, जो भारत के बाहर निगमित की गई है’। कमिटी ने सुझाव दिया कि इसके स्थान पर विदेशी नियंत्रित कंपनी को ऐसी कंपनी के रूप में परिभाषित किया जाना चाहिए जोकि भारत में निगमित या पंजीकृत की गई है, जिसे कंपनी एक्ट के अनुसार एक विदेशी द्वारा नियंत्रित किया जाता है। 
  • जैविक संसाधनों को प्रोत्साहन: एक्ट में प्रावधान है कि एक्ट के तहत गठित फंड्स को निर्दिष्ट उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल किया जाए जिसमें जैव संसाधनों का प्रोत्साहन और संरक्षण शामिल है। उसमें केंद्र सरकार से यह भी अपेक्षित है कि वह जैव विविधता के प्रोत्साहन, संरक्षण और सतत प्रयोग के लिए राष्ट्रीय रणनीतियां और कार्यक्रम बनाए। बिल ऊपरी मामलों में जैव संसाधनों के प्रोत्साहन के संदर्भ को हटाता है। कमिटी ने सुझाव दिया कि बिल को ऐसे सभी स्थानों पर जैव संसाधनों के प्रोत्साहन के प्रावधानों को बहाल रखना चाहिए। उसने सुझाव दिया कि केंद्र सरकार को राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों की सलाह से राष्ट्रीय रणनीतियां और योजनाएं बनानी चाहिए। 
  • निवासियों का संरक्षणएक्ट में स्थानीय निकायों से यह अपेक्षित है कि वे कुछ कार्य करने के लिए अपने क्षेत्र में जैव विविधता प्रबंधन समिति का गठन करें। इन कार्यों में निम्नलिखित शामिल हैं: (i) जैव विविधता के संरक्षण और सतत प्रयोग को प्रोत्साहन, जिसमें निवासियों, लोक किस्मों, नस्लों, भू प्रजाति और सूक्ष्म जीवियों का संरक्षण शामिल है, और (ii) जैव विविधता का दस्तावेजीकरण। बिल निवासियों के संरक्षण के संदर्भ को हटाता है। कमिटी ने सुझाव दिया कि निवासियों के संरक्षण के प्रावधान को बहाल रखा जाए। उसने यह सुझाव भी दिया कि समिति के कार्यों में जल स्रोतों में जीवित वस्तुओं के संरक्षण को शामिल किया जाए।
  • सजाबिल एक्ट के अंतर्गत अपराधों को डीक्रिमिनलाइज करता है और उन्हें एक लाख रुपए से लेकर 50 लाख रुपए के बीच के जुर्माने में बदलता है। जहां नुकसान सजा की राशि से अधिक का हुआ है, वहां जुर्माना नुकसान के अनुरूप वसूला जाए। दोबारा उल्लंघन करने पर एक करोड़ रुपए तक का अतिरिक्त जुर्माना भरना पड़ सकता है। कमिटी ने कहा कि दंड संरचना इतनी कम नहीं होनी चाहिए कि उल्लंघन करने वाले दंड की छोटी राशि चुकाकर बच जाएं। उसने सुझाव दिया कि जुर्माना (i) कंपनी को होने वाले लाभ, और (ii) कंपनी के आकार के अनुपात में होना चाहिए। 

 

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