नियम और रेगुलेशन की समीक्षा 

इनफॉरमेशन टेक्नोलॉजी (इंटरमीडियरी के लिए दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया की आचार संहिता) नियम, 2021

 

 इनफॉरमेशन टेक्नोलॉजी एक्ट, 2000 के सेक्शन (87) के सब-सेक्शन (1) और सबसेक्शन (2) के क्लॉज (जेड) और (जेडजी) के अंतर्गत 25 फरवरी, 2021 को जारी जी.एस.आर. 139 (ई)

 नियमों की मुख्य विशेषताएं 
  • भारत में एक अधिसूचित सीमा से अधिक पंजीकृत यूजर्स वाले सोशल मीडिया इंटरमीडियरीज़ को महत्वपूर्ण सोशल मीडिया इंटरमीडियरीज़ (एसएसएमईज़) के तौर पर वर्गीकृत किया गया है। एसएसएमईज़ से कुछ अतिरिक्त ड्यू डेलिजेंस (सम्यक उद्यम) की अपेक्षा की गई है, जैसे अनुपालन के लिए कर्मचारियों की नियुक्ति, अपने प्लेटफॉर्म पर कुछ शर्तों के अंतर्गत इनफॉरमेशन के पहले ओरिजिनेटर की पहचान को एनेबल करना और कुछ खास किस्म के कंटेट को चिन्हित करने के लिए तकनीक आधारित उपाय करना। 
  • नियम ऐसे फ्रेमवर्क बनाते हैं जिनके जरिए ऑनलाइन पब्लिशर्स अपने न्यूज और करंट अफेयर्स कंटेंट और क्यूरेटेड ऑडियो-विजुअल कंटेट को रेगुलेट कर सकें। 
  • सभी इंटरमीडियरीज़ से यह अपेक्षा की जाती है कि वे यूजर्स या पीड़ितों की शिकायतों को दूर करने के लिए शिकायत निवारण प्रणाली तैयार करेंगे। पब्लिशर्स के लिए तीन स्तरीय शिकायत निवारण प्रणाली का प्रावधान है जिसमें कई स्तर के सेल्फ रेगुलेशन की व्यवस्था है। 

मुख्य मुद्दे और विश्लेषण 

  • नियम कुछ मामलों में एक्ट के अंतर्गत सौंपी गई शक्तियों से इतर जाते हैं जैसे जब वे महत्वपूर्ण सोशल मीडिया इंटरमीडियरीज़ और ऑनलाइन पब्लिशर्स का रेगुलेशन करते हैं, और कुछ इंटरमीडियरीज़ से इनफॉरमेशन के पहले ओरिजिनेटर की पहचान करने की अपेक्षा करते हैं।
  • ऑनलाइन कंटेंट पर पाबंदी लगाने का आधार व्यापक है और फ्रीडम ऑफ स्पीच को प्रभावित कर सकता है।
  • अगर कानून प्रवर्तन करने वाली एजेंसियां इंटरमीडियरीज़ से इनफॉरमेशन का अनुरोध करती हैं तो इससे जुड़ा कोई प्रक्रियागत सुरक्षात्मक उपाय उपलब्ध नहीं है। 
  • अगर मैसेजिंग सर्विसेज़ से यह कहा जाता है कि वे इनफॉरमेशन के पहले ओरिजिनेटर की पहचान को प्लेटफॉर्म पर एनेबल करें तो इससे लोगों की प्राइवेसी पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है। 

इंटरमीडियरीज़ ऐस एंटिटी होत हैं जोकि दूसरे लोगों की ओर से डेटा को स्टोर या ट्रांजिट करत हैं, और इनमें टेलीकॉम और इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर, ऑनलाइन मार्केटप्लेट, सर्च इंजन और सोशल मीडिया साइट्स शामिल हैं।[1]  आईटी एक्ट, 2000 को 2008 में संशोधित किया गया था ताकि इंटरमीडियरीज़ को थर्ड पार्टी इनफॉरमेशन की लायबिलिटी से छूट दी जा सके।[2] इसके बाद इस एक्ट के अंतर्गत आईटी (इंटरमीडियरी के लिए दिशानिर्देश) नियम, 2011 बनाए गए ताकि इन रियायतों का दावा करने के लिए इंटरमीडियरीज़ के लिए ड्यू डेलिजेंस की शर्तों को निर्दिष्ट किया जा सके।[3]  इनफॉरमेशन टेक्नोलॉजी (इंटरमीडियरीज़ के लिए दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया की आचार संहिता) नियम, 2021 को 25 फरवरी, 2021 को अधिसूचित किया गया था जोकि 2011 के नियमों का स्थान लेते हैं।[4] 2021 के नियमों में कुछ प्रावधान जोड़े गए हैं जिनमें कुछ सोशल मीडिया इंटरमीडियरीज़ के लिए अतिरिक्त ड्यू डेलिजेंस और न्यूज एवं करंट अफेयर्स, तथा क्यूरेटेड ऑडियो-विजुअल कंटेंट के ऑनलाइन पब्लिशर्स के कंटेंट को रेगुलेट करने के लिए फ्रेमवर्क शामिल है। इलेक्ट्रॉनिक्स और इनफॉरमेशन टेक्नोलॉजी मंत्रालय ने कहा है कि निम्नलिखित कारणों से ये परिवर्तन जरूरी थे: (iचाइल्ड पोर्नोग्राफी और यौन हिंसा दर्शाने वाले कंटेट का मौजूद होना, (iiफेक न्यूज का फैलना, (iiiसोशल मीडिया का दुरुपयोग, (ivओटीटी प्लेटफॉर्म्स और न्यूज पोर्टल्स सहित ऑनलाइन पब्लिशर्स के मामले में कंटेंट का रेगुलेशन, (vडिजिटल प्लेटफॉर्म्स में पारदर्शिता और जवाबदेही की कमी, और (viडिजिटल मीडिया प्लेटफॉर्म्स के यूजर्स के अधिकार।[5],[6],[7],[8] 2021 के नियमों की वैधता को कई उच्च न्यायालयों में चुनौती दी जा चुकी है।[9],[10]

 

 

 मुख्य विशेषताएं

  • इंटरमीडियरीज़ का ड्यू डेलिजेंस: आईटी एक्ट के अंतर्गत एक इंटरमीडियरी थर्ड पार्टी की उस इनफॉरमेशन के लिए जवाबदेह नहीं होता, जिसे वह होल्ड या ट्रांज़मिट करता है। हालांकि इस छूट का दावा करने के लिए उसे आईटी एक्ट और इनफॉरमेशन टेक्नोलॉजी (इंटरमीडियरीज़ के लिए दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया की आचार संहिता) नियम, 2021 (जो 2011 के नियमों का स्थान लेते हैं) के अंतर्गत ड्यू डेलिजेंस की शर्तों का पालन करना होगा। 2011 के नियमों के अंतर्गत शर्तों में निम्नलिखित शामिल हैं: (i) सर्विस एग्रीमेंट्स में कंटेंट की श्रेणियों को स्पष्ट करना जिन्हें यूजर्स को अपलोड या शेयर करने की अनुमति नहीं है, (ii) अदालत या सरकार का आदेश मिलने के 36 घंटे के अंदर कंटेट को हटाना, (iii) कानून का प्रवर्तन करने वाली एजेंसियों की सहायता करना, (iv) ब्लॉक किए गए कंटेट और संबंधित रिकॉर्ड्स को 90 दिनों के लिए बरकरार रखना, और (v) यूजर्स और प्रभावित लोगों को शिकायत निवारण व्यवस्था प्रदान करना और शिकायत अधिकारी नियुक्त करना। 2021 के नियम इन शर्तों को बरकरार रखते हैं और इनमें निम्नलिखित को जोड़ते हैं: (i) यूजर्स जिस तरह के कंटेंट को अपलोड या शेयर नहीं कर सकते, उनकी श्रेणियों में संशोधन करना, और (ii) सभी शर्तों के लिए कड़ी समय अवधि निर्धारित करना।   
  • महत्वपूर्ण सोशल मीडिया इंटरमीडियरीज़: 2021 के नियम स्पष्ट करते हैं कि सोशल मीडिया इंटरमीडियरीज़ ऐसी इंटरमीडियरीज़ होते हैं जोकि मुख्य रूप से या पूरी तरह से दो या उससे अधिक यूजर्स के बीच ऑनलाइन इंट्रैक्शन को एनेबल करते हैं। एक अधिसूचित सीमा से अधिक पंजीकृत यूजर्स वाले इंटरमीडियरीज़ को महत्वपूर्ण सोशल मीडिया इंटरमीडियरीज़ (एसएसएमईज़) के तौर पर वर्गीकृत किया जाएगा। इन एसएसएमआईज़ के अतिरिक्त ड्यू डेलिजेंस में निम्नलिखित शामिल हैं:

कार्मिकएसएसएमआई को निम्नलिखित को नियुक्त करना होगाः (i) नियमों और एक्ट के अनुपालन को सुनिश्चित करने के लिए एक मुख्य अनुपालन अधिकारी (कंप्लायंस ऑफिसर), (ii) कानून प्रवर्तन करने वाली एजेंसियों के साथ सहयोग करने के लिए नोडल व्यक्ति, और (iii) शिकायत अधिकारी। इनमें से सभी भारत में निवास करने चाहिए।

इनफॉरमेशन के पहले ओरिजिनेटर को चिन्हित करना: मुख्य रूप से मैसेजिंग सेवाएं प्रदान करने वाले एसएसएमआई को अपने प्लेटफॉर्म पर भारत में इनफॉरमेशन के पहले ओरिजिनेटर की पहचान को एनेबल करना चाहिए। अदालत या आईटी एक्ट के अंतर्गत किसी संबंधित अधिकारी के आदेश पर इसकी मांग की जा सकती है। ऐसे आदेश विशिष्ट आधार पर दिए जाएंगे जिनमें राष्ट्रीय सुरक्षा, सार्वजनिक व्यवस्था और यौन हिंसा जैसे कुछ अपराधों के निवारण, उनका पता लगाने और उनकी जांच शामिल हैं। अगर ओरिजिनेटर कम कठोर तरीकों से चिन्हित किया जा सकता है तो ऐसे आदेश नहीं जारी किए जाएंगे।  

टेक्नोलॉजी आधारित उपायएसएसएमआई निम्नलिखित को चिन्हित करने के लिए तकनीक आधारित उपाय करेंगे: (i) बच्चों के यौन उत्पीड़न और बलात्कार को दर्शाने वाला कंटेंट, या (ii) किसी अदालती या सरकारी आदेश के जरिए पहले ब्लॉक की गई इनफॉरमेशन जैसी कोई दूसरी इनफॉरमेशन। ऐसे उपायों को: (i) फ्री स्पीच या यूजर्स की प्राइवेसी के हितों के अनुपात में होने चाहिए, और (ii) उनका मानवीय निरीक्षण होना चाहिए और समय-समय पर समीक्षा होनी चाहिए।  

यूजर आधारित शर्ते: एसएसएमआई यूजर्स को निम्नलिखित प्रदान करेंगे: (i) पहचान को स्वेच्छा से सत्यापित करने की व्यवस्था, (ii) शिकायतों की स्थिति की जांच करने की व्यवस्था, (iii) अगर शिकायत पर कोई कार्रवाई नहीं की गई तो उसका स्पष्टीकरण, और (iv) अगर एसएसएमआई यूजर्स के कंटेट को अपने हिसाब से ब्लॉक करता है तो उसका नोटिस, और विवाद निवारण की व्यवस्था।   

  • डिजिटल मीडिया पब्लिशर्स: 2021 के नियम ऑनलाइन पब्लिशर्स के लिए निम्नलिखित से संबंधित कुछ शर्तो को निर्दिष्ट करते हैं: (i) न्यूज़ और करंट अफेयर्स कंटेंट, जिसमें ऑनलाइन पेपर्स, न्यूज़ पोर्टल्स, एग्रीगेटर्स और एजेंसियां शामिल हैं, और (ii) क्यूरेटेड ऑडियो-विजुअल कंटेंट, जिसे ऑडियो-विजुअल कंटेंट का क्यूरेटेड कैटेलॉग कहा जाता है (न्यूज़ और करंट अफेयर्स को छोड़कर), जिस पर पब्लिशर का स्वामित्व होता है, उसे लाइसेंस मिला होता है या उसे ट्रांजमिट करने का कॉन्ट्रैक्ट मिला होता है और वह मांग पर उपलब्ध कराया जाता है। नियमों के तहत इन पब्लिशर्स को रेगुलेट करने के लिए तीन स्तरीय संरचना तैयार की गई है: (i) पब्लिशर का सेल्फ रेगुलेशन, (ii) पब्लिशर्स के संगठनों द्वारा खुद का रेगुलेशन, और (ii) केंद्र सरकार का निरीक्षण।
  • आचार संहितान्यूज़ और करंट अफेयर्स के पब्लिशर्स के लिए निम्नलिखित मौजूदा संहिताएं लागू होंगी: (i) भारतीय प्रेस काउंसिल द्वारा पत्रकारिता के आचरण के नियम, और (ii) केबल टेलीविजन नेटवर्क्स रेगुलेशन एक्ट, 1995 के अंतर्गत कार्यक्रम संहिता। क्यूरेटेड कंटेंट के ऑनलाइन पब्लिशर्स के लिए नियम आचार संहिता निर्दिष्ट करती हैं। इस संहिता में पब्लिशर्स से निम्नलिखित की अपेक्षा है: (i) कंटेट को आयु उपयुक्त श्रेणियों में वर्गीकृत करना, आयु उपयुक्त कंटेट तक बच्चों का एक्सेस प्रतिबंधित करना और आयु सत्यापन की व्यवस्था को लागू करना, (ii) भारत की संप्रभुता और अखंडता, राष्ट्रीय सुरक्षा को प्रभावित करने और जन व्यवस्था को नुकसान पहुंचाने की आशंका वाले कंटेट को प्रदर्शित करने में विवेक का इस्तेमाल करना, (iii) भारत की विविध जातियों और धर्मों की आस्था और प्रथाओं को दिखाने से पहले उन पर विचार करना, और (iv) विकलांग व्यक्तियों के लिए कंटेट को और सुगम बनाना।
  • शिकायत निवारणअगर पब्लिशर के कंटेट से किसी व्यक्ति को पीड़ा पहुंची हो तो वह पब्लिशर से शिकायत कर सकता है। पब्लिशर को 15 दिनों के भीतर उसका जवाब देना होगा। अगर व्यक्ति समाधान से संतुष्ट नहीं या निर्दिष्ट समय में शिकायत का जवाब नहीं मिलता तो वह व्यक्ति पब्लिशर्स के संगठन को अपनी शिकायत भेज सकता है। संगठन भी उस शिकायत को 15 दिनों में दूर करेगा। इसके अतिरिक्त (i) अगर शिकायतकर्ता या संगठन द्वारा किन्हीं विशेष स्थितियों में शिकायत को आगे बढ़ाया जाता है, या (ii) मंत्रालय खुद उसे रेफर करता है तो सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय द्वारा गठित अंतर विभागीय कमिटी उस शिकायत पर विचार करेगी।
  • मंत्रालय द्वारा निरीक्षणसूचना एवं प्रसारण मंत्रालय (i) सेल्फ रेगुलेटिंग निकायों के लिए आचार संहिताओं सहित एक चार्टर छापेगा, (ii) पब्लिशर्स को एडवाइजरी और आदेश जारी करेगा, (iii) आपात स्थिति में कंटेंट ब्लॉक करने की शक्ति होगी (अंतर विभागीय कमिटी द्वारा समीक्षा के अधीन)। कंटेंट ब्लॉक करने वाले निर्देश की समीक्षा कैबिनेट सेक्रेटरी की अध्यक्षता वाली कमिटी करेगी।  

मुख्य मुद्दे और विश्लेषण

ऑनलाइन इंटरमीडियरीज़ का रेगुलेशन

इंटरमीडियरीज़ में बहुत सी एंटिटीज़ शामिल होती हैं जोकि इंटरनेट पर डेटा के फ्लो को आसान बनाती हैं। इनमें टेलीकॉम सर्विस प्रोवाइडर्स, इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर्स, सर्च इंजन्स, ऑनलाइन मार्केटप्लेस, पेमेंट साइट्स, साइबर कैफे, मैसेजिंग सर्विसेज़ और सोशल मीडिया साइट्स शामिल हैं। इनमें से कई इंटरमीडियरीज़ सिर्फ पाइपलाइन की तरह काम करती हैं या स्टोरेज प्रोवाइडर्स होती हैं, और उन्हें अपने प्लेटफॉर्म पर ट्रांसमिट या स्टोर होने वाले कंटेंट की जानकारी नहीं होती। दूसरी तरफ कई इंटरमीडियरीज़ को अपने प्लेटफॉर्म पर यूजर जनरेटेड कंटेंट की जानकारी हो सकती है। इससे यह सवाल खड़ा होता है कि इंटरमीडियरीज़ को अपने प्लेटफॉर्म पर यूजर जनरेटेड कंटेंट के लिए किस हद तक जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए। 

यूरोपीय संघ और भारत के क्षेत्राधिकारों में इंटरमीडियरीज़ को एक सुरक्षित हार्बर मॉडल के जरिए रेगुलेट किया जाता है। इस मॉडल के अंतर्गत अगर इंटरमीडियरीज़ कुछ शर्तो का पालन करते हैं तो उन्हें किसी गैरकानूनी यूजर जनरेटेड कंटेंट की जिम्मेदारी से मुक्त कर दिया जाता है।[11],[12],[13] ये इंटरमीडियरीज़ किसी भी जिम्मेदारी से मुक्त रहते हैं, लेकिन उन्हें जिम्मेदार माना जाता है, अगर उन्हें गैर कानूनी कार्य की जानकारी है और वे उसे रोकने के लिए पर्याप्त प्रयास न कर रहे।13  वे गैर कानूनी कंटेंट को हटाने के लिए 'ध्यान देने के कर्तव्योंऔर 'नोटिस और टेक डाउनजिम्मेदारियों के अधीन हैं।13 

हाल के वर्षों में एक्सेस एनेबल करने, सूचनाओं के आदान-प्रदान को सुविधाजनक बनाने और बड़े पैमाने पर सूचनाओं को साझा करने में कुछ ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स की केंद्रीय भूमिका रही है।[14] कई ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स सिर्फ इनफॉरमेशन को होस्ट नहीं करते, बल्कि ऐसी एंटिटीज़ के तौर पर काम कर रहे हैं जो इसका प्रबंधन करते हैं कि कोई कंटेंट कैसे डिस्प्ले और ऑनलाइन शेयर किया जा रहा है, और वे मॉडरेशन, क्यूरेशन और सुझाव देने जैसे कार्य करते हैं।14 ऐसी चिंता जताई जा रही है कि गैरकानूनी या हानिकारक कंटेट जैसे बच्चों के यौन उत्पीड़न की सामग्री, आतंकवाद को बढ़ावा देने वाले कंटेट, भ्रामक सूचनाओं, हेट स्पीच और वोटर मैन्यूपुलेशन को फैलाने में इन प्लेटफॉर्म्स का दुरुपयोग किया जा रहा है।5,6,7,8,14  इससे ऐसे कंटेट को फैलने से रोकने, उसकी पहचान करने और फिर उसे हटाने में प्लेटफॉर्म्स की भूमिका और जिम्मेदारियों पर सवाल खड़े होते हैं।14  

कई प्लेटफॉर्म्स ऐसे कंटेट क पब्लिशकेशन को खुद रेगुलेट कर रहे हैं। हालांकि इस कारण चिंता जताई गई है कि इस तरह प्लेटफॉर्म्स मनमानी कार्रवाई कर सकते हैं और बोलने तथा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर असर हो सकता है।6  ये घटनाक्रम इंटरमीडियरीज़ के रेगुलेटरी फ्रेमवर्क के लिए एक महत्वपूर्ण चुनौती पेश करते हैंताकि चिन्हित करनेमॉडरेशन और क्यूरेशन और व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा में प्लेटफार्मों और सरकारों की भूमिका के बीच सही संतुलन कायम किया जा सके।14 2021 के नियम इनमें से कुछ मुद्दों को हल कर सकते हैं। इनके तहत कुछ प्रावधानों के प्रभावों पर निम्नलिखित खंडों में चर्चा की गई है।

एक्ट: सेक्शन 87 (1), 87 (2) (जेड), 2 (जेडजी), 69ए, 79

नियम: 2 (1) (टी), 2 (1) (यू), 2 (1) (वी), 2 (1) (डब्ल्यू), 6, 8

 नियम एक्ट के अंतर्गत सौंपी गई शक्तियों से इतर जा सकते हैं

केंद्र सरकार ने एक्ट के अंतर्गत नियम बनाने की निम्नलिखित शक्तियों के अनुसार, 2021 के नियमों को निर्धारित किया है: (i) एक्ट के प्रावधानों को लागू करना, (ii) इनफॉरमेशन तक जनता की पहुंच को रोकने के लिए सेफगार्ड या प्रक्रियाओं को निर्दिष्ट करना, और (iii) थर्ड पार्टी इनफॉरमेशन की लायबिलिटी से छूट के लिए इंटरमीडियरीज़ को किन ड्यू डेलिजेंस का इस्तेमाल करना होगा, इसे निर्दिष्ट करना। 2021 के नियम नई प्रकार की एंटिटीज़ को परिभाषित करते हैं, उनकी बाध्यताओं के बारे में बताते हैं और उनमें से कुछ एंटिटीज़ के लिए नए रेगुलेटरी फ्रेमवर्क को निर्दिष्ट करते हैं। ये एक्ट के अंतर्गत कार्यपालिका को दी गई शक्तियों से आगे जा सकता है। ऐसे मामलों पर नीचे चर्चा की गई है। वैसे सर्वोच्च न्यायालय ने अपने कई फैसलों में कहा है कि नियम एक्ट के दायरे, या उसके प्रावधानों या उसे सक्षम बनाने के सिद्धांतों को नहीं बदल सकते।[15],[16],[17]  

इंटरमीडियरीज़ की नई श्रेणियों के लिए विशेष बाध्यताएंएक्ट इंटरमीडियरीज़ को परिभाषित करता है और उनकी बाध्यताओं का उल्लेख करता है। इनमें निम्नलिखित शामिल हैं: (iअदालत या सरकार के आदेश के बाद कंटेट को हटाना, (ii) कुछ इनफॉरमेशन को बरकरार रखना, (iii) कुछ स्थितियों में कानून प्रवर्तन करने वाली एजेंसियों को इनफॉरमेशन और मदद देना, और (iv) इंटरमीडियरी की लायबिलिटी से छूट के लिए ड्यू डेलिजेंस पर ध्यान देना। नियम इंटरमीडियरीज़ की दो नई श्रेणियां परिभाषित करते हैं: (iसोशल मीडिया इंटरमीडियरी और (ii) महत्वपूर्ण सोशल मीडिया इंटरमीडियरी (एसएसएमआईज़)। नियमों में एसएसएमआईज़ के लिए अतिरिक्त ड्यू डेलिजेंस को भी निर्दिष्ट किया गया है। इनमें निम्नलिखित शामिल हैं: (iकुछ कर्मचारियों की नियुक्ति, (ii) इनफॉरमेशन के पहले ओरिजिनेटर की पहचान को चिन्हित करना (जहां एसएसएमआईज़ मुख्य रूप से मैसेजिंग सर्विस देते हैं) और (iii) बेस्ट-एफर्ट आधार पर कुछ खास किस्म क इनफॉरमेशन को चिन्हित करने के लिए तकनीक आधारित उपाय करना। नियम केंद्र सरकार को निम्नलिखित के लिए सशक्त करते हैं: (iएसएसएमआईज़ के तौर पर वर्गीकरण हेतु सीमा निर्धारित करना, (ii) किसी अन्य इंटरमीडियरीज़ से एसएसएमईज़ के लिए जरूरी अतिरिक्त ड्यू डेलिजेंस के अनुपालन की अपेक्षा करना। इंटरमीडियरीज़ की नई श्रेणियों को परिभाषित करना, और सरकार को इन परिभाषाओं के अंतर्गत सीमाएं निर्दिष्ट करने और चुनींदा एंटिटीज़ पर बाध्यताएं लगाने की शक्ति देना, एक्ट के अंतर्गत सरकार को सौंपी गई शक्तियों से परे जा सकता है। नई एंटिटीज़ की परिभाषा और उनकी बाध्यताओं जैसे प्रावधानों को पेरेंट एक्ट में निर्दिष्ट किया जा सकता है।

इनफॉरमेशन के पहले ओरिजिनेटर की पहचाननियमों में एसएसएमआईज़, जोकि मुख्य रूप से या सिर्फ मैसेजिंग की प्रकृति वाली सेवा प्रदान करते हैं, से अपेक्षित है कि वे अपने प्लेटफॉर्म पर भारत के भीतर इनफॉरमेशन के पहले ओरिजिनेटर की पहचान को एनेबल करेंगे। इस नियम से संबंधित प्रावधान पेरेंट एक्ट में नहीं है। नियम कुछ विवरण भी निर्दिष्ट करते हैं, जैसे (i) पहले ओरिजिनेटर की इनफॉरमेशन सिर्फ सरकारी या अदालती आदेश के जरिए मांगी जा सकती है, (ii) वे आधार जिन पर आदेश दिए जा सकते हैं, और (iii) अगर इनफॉरमेशन हासिल करने के लिए ऐसे माध्यम उपलब्ध हैं जिनसे कम दखलंदाजी होती है तो ऐसा आदेश नहीं दिया जाएगा। यह प्रश्न किया जा सकता है कि क्या यह विधायी नीति बनाने जैसा है और, इसलिए, इसका प्रावधान पेरेंट एक्ट में होना चाहिए।

ऑनलाइन पब्लिशर्स का रेगुलेशननियमों में न्यूज और करंट अफेयर्स तथा क्यूरेटेड ऑडियो-विजुअल कंटेंट (जैसे फिल्म, सिरीज़ और पॉडकास्ट) के ऑनलाइन पब्लिशर्स के लिए रेगुलेटरी फ्रेमवर्क को निर्दिष्ट किया गया है। इन पब्लिशर्स का रेगुलेशन आईटी एक्ट के दायरे से बाहर जा सकता है। ऑनलाइन पब्लिशर्स पर आगे चर्चा की गई है। 

एक्ट: सेक्शन 69 

नियम: 3 (1) (बी), 3 (1) (डी)(2) (ए), 4 (डी)

 कंटेंट को प्रतिबंधित करने के कुछ आधार बोलने की स्वतंत्रता को प्रभावित कर सकते हैं

संविधान बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के संबंध में कुछ उचित प्रतिबंधों की अनुमति देता है, जैसे राष्ट्रीय सुरक्षा, सार्वजनिक व्यवस्था, शालीनता और नैतिकता।[18]  आईटी एक्ट ऐसे कंटेंट को अपलोड या शेयर करने पर प्रतिबंध लगाता है जोकि अश्लील, यौन रूप से स्पष्ट, बाल यौन शोषण से संबंधित है, या व्यक्ति की प्राइवेसी का उल्लंघन करता है।[19]  2021 के नियम अतिरिक्त प्रतिबंधों को निर्दिष्ट करते हैं कि इंटरमीडियरी प्लेटफॉर्म के यूजर्स किस प्रकार की इनफॉरमेशन को क्रिएट, अपलोड या शेयर नहीं कर सकते। इनमें निम्नलिखित शामिल हैं: (iबच्चों के लिए हानिकारक(iiलिंग के आधार पर अपमानजनकऔर (iiiजान-बूझकर या इरादतन किसी इनफॉरमेशन को फैलाना जोकि प्रकृति में स्पष्ट रूप से गलत या भ्रामक हैलेकिन उचित रूप से एक तथ्य के रूप में मानी जा सकती है  कुछ प्रतिबंध व्यक्तिपरक और व्यापक हैं और इंटरमीडियरी प्लेटफॉर्म्स के यूजर्स की बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को प्रभावित कर सकते हैं। 

सर्वोच्च न्यायालय (2015) ने कहा था कि बोलने पर प्रतिबंध, जिससे वह उचित हो, बहुत बारीकी से लगाया जाना चाहिए, ताकि सिर्फ वही प्रतिबंधित किया जाए जो बहुत अनिवार्य है।[20] अदालत ने यह भी कहा था कि संविधान के अंतर्गत बोलने की स्वतंत्रता को सीमित किया जा सकता है, जब वह उकसाने के स्तर तक पहुंच जाए। अन्य प्रकार की अभिव्यक्तियां, भले ही वे आपत्तिजनक या अलोकप्रिय हों, संविधान के अंतर्गत संरक्षित हैं। 

नियमों में इंटरमीडियरीज़ से अपेक्षित है कि वे यूजर्स के सर्विस एग्रीमेंट में इन प्रतिबंधों को शामिल करें। इसका मतलब है कि यूजर्स को पहले ही संयम बरतना चाहिए और इंटरमीडियरीज़ इन आधारों पर कंटेंट की वैधता की व्याख्या और उन पर फैसला कर सकते हैं। नियमों के अंतर्गत ऐसे व्यापक आधारों से व्यक्ति के सामने यह स्पष्ट नहीं होगा कि क्या प्रतिबंधित है और इससे उनकी बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर चिलिंग इफेक्ट (सजा का डर) पैदा हो सकता है। ऐसा भी हो सकता है कि इंटरमीडियरीज़ बहुत अधिक अनुपालन करने लगें, चूंकि लायबिलिटी से छूट उनके ड्यू डेलिजेंस पर निर्भर है।

अधीनस्थ विधान पर लोकसभा की कमिटी (2013) ने इंटरमीडियरी दिशानिर्देशों पर 2011 के नियमों की समीक्षा करते हुए कहा था कि नियमों में इस्तेमाल किए गए आधारों की परिभाषाओं को नियमों में शामिल किया जाना चाहिए ताकि कोई अस्पष्टता न रहे, अगर ये परिभाषाएं दूसरे कानूनों में मौजूद हैं।[21] अगर दूसरे कानूनों में ये परिभाषित नहीं हैं तो इन आधारों को परिभाषित किया जाना चाहिए और नियमों में शामिल किया जाना चाहिए ताकि यह सुनिश्चित हो कि किसी डेलिगेटेड लेजिसलेशन के जरिए अपराधों की कोई नई श्रेणी नहीं बनाई जा रही।21 2021 के नियमों में उपरिलिखित शब्दों की परिभाषाएं या संदर्भ नहीं दिए गए हैं, इसलिए इससे इन शब्दों की व्याख्या को लेकर अस्पष्टता हो सकती है। 

एक्ट: सेक्शन 69 

नियम 3 (1) (जे)

 सरकारी एजेंसियों की तरफ से इनफॉरमेशन के अनुरोध की प्रक्रिया के साथ सुरक्षात्मक उपाय नहीं

नियमों में इंटरमीडियरीज़ से अपेक्षित है कि वे सरकारी एजेंसी के अनुरोध करने पर अपने नियंत्रण या कब्जे में मौजूद जानकारी उसे देंगे। जो सरकारी एजेंसी जांच या सुरक्षात्मक या साइबरसिक्योरिटी की गतिविधियों के लिए कानूनन अधिकृत है, वह ऐसा अनुरोध कर सकती है। ऐसा अनुरोध पहचान के सत्यापन, या अपराधों के निवारण, उसका पता लगाने, जांच, या अभियोजन के लिए किया जा सकता है। हालांकि नियमों में इन कार्रवाइयों के लिए किसी प्रक्रियागत सुरक्षात्मक उपाय या शर्त के बारे में नहीं बताया गया है। 

2009 में अधिसूचित नियमों में प्रक्रियागत और सुरक्षात्मक उपायों को निर्दिष्ट किया गया था। इंटरमीडियरीज़ द्वारा इनफॉरमेशन का इंटरसेप्शन, मॉनिटरिंग या डिक्रिप्शन इनके अधीन है।[22]  इसमें कहा गया है कि केंद्र या राज्य के गृह सचिव (टाली न जा सकने वाली परिस्थितियों और सुदूर क्षेत्रों के मामले में अपवाद है) द्वारा ये आदेश दिए जाने चाहिए, और ये कमिटी की समीक्षा के अधीन हैं (इस कमिटी की अध्यक्षता कैबिनेट सचिव या राज्य के मुख्य सचिव करेंगे)। इसके अतिरिक्त ऐसे आदेश जारी करने वाले अधिकारी को पहले जानकारी हासिल करने के वैकल्पिक माध्यमों पर विचार करना चाहिए।22

इसके अतिरिक्त 2021 के नियम यह तय नहीं करते कि मांगी गई इनफॉरमेशन की सीमा क्या होगी या वह किस प्रकार की होनी चाहिए। उदाहरण के लिए मांगी गई इनफॉरमेशन व्यक्तियों का पर्सनल डेटा हो सकता है, जैसे दूसरों से उनकी बातचीत का ब्यौरा। ऐसी शक्तियां, वह भी बिना सुरक्षात्मक उपाय के, जैसा कि 2009 के नियमों में हैं, व्यक्तियों की प्राइवेसी पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती हैं।   

 नियम: 4 (2)

   ट्रेसेबिलिटी को एनेबल करने से व्यक्तियों की प्राइवेसी पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है

नियमों में महत्वपूर्ण सोशल मीडिया इंटरमीडियरीज़, जोकि मुख्य रूप से या सिर्फ मैसेजिंग की प्रकृति वाली सेवा प्रदान करते हैं, से अपेक्षित है कि वे अपने प्लेटफॉर्म पर भारत के भीतर इनफॉरमेशन के पहले ओरिजिनेटर की पहचान को एनेबल करेंगे (इसे सामान्य तौर पर ट्रेसेबिलिटी कहा जाता है)। नियम कहते हैं कि : (i) यह पहचान अदालती आदेश द्वारा या 2009 के नियमों के तहत किसी संबंधित अधिकारी (केंद्र या राज्य सरकार का गृह सचिव) द्वारा मांगी जानी चाहिए, (ii) पहचान करने के आदेश निर्दिष्ट उद्देश्यों के लिए दिए जाने चाहिए जिसमें राज्य की संप्रभुता और सुरक्षा, सार्वजनिक व्यवस्था, और यौन हिंसा (बलात्कार, यौन रूप से स्पष्ट सामग्री या बाल यौन उत्पीड़न सामग्री) से संबंधित अपराधों की रोकथाम, उन्हें चिन्हित करना और उनकी जांच शामिल है, और (iii) अगर अपेक्षित इनफॉरमेशन हासिल करने के लिए ऐसे माध्यम उपलब्ध हैं जिनसे कम दखलंदाजी होती है तो ऐसा आदेश नहीं दिया जाएगा।

इस तरह पहचान को एनेबल करने से सभी यूजर्स की बातचीत की प्राइवेसी का स्तर कम हो सकता है। मैसेजिंग प्लेटफॉर्म पर इनफॉरमेशन के पहले ओरिजिनेर की पहचान करने के लिए सर्विस प्रोवाइडर को कुछ अतिरिक्त इनफॉरमेशन को स्थायी रूप से स्टोर करना होगा: (i) जिन सभी ने मैसेज का आदान-प्रदान किया है, और (ii) सटीक मैसेज या खास तौर से मैसेज को स्पष्ट करने वाले विवरण, जिससे विचाराधीन जानकारी का उसके साथ मिलान किया जा सके। सर्विस प्रोवाइडर को अपने प्लेटफॉर्म पर हर मैसेज के लिए ऐसा करना होगा ताकि उस मैसेज के पहले ओरिजिनेटर को ढूंढा जा सके। उल्लेखनीय है कि किसी मैसेज के विवरणों को स्थायी रूप से स्टोर करना, इंटरनेट पर मैसेजिंग सर्विस देने के लिए तकनीकी रूप से जरूरी नहीं है। नियमों में यह भी निर्दिष्ट नहीं है कि पहले ओरिजिनेटर को निर्धारित करने के लिए मैसेजिंग स्रविस को कितने समय पहले तक की जांच करनी होगी। कुल मिलाकर, इस शर्त के कारण मैसेजिंग सर्विस ज्यादा से ज्यादा पर्सनल डेटा को अपने पास बनाए रखेंगी जोकि डेटा मिनिमाइजेशन के सिद्धांत के खिलाफ जाता है। डेटा मिनिमाइजेशन का अर्थ है, सिर्फ डेटा प्रोसेसिंग के खास उद्देश्य को पूरा करने के लिए जरूरी डेटा को जमा करना, और इसे व्यक्तिगत प्राइवेसी के संरक्षण के महत्वपूर्ण सिद्धांत के रूप में मान्यता दी गई है।[23],[24] 

सर्वोच्च न्यायालय (2017) ने कहा था कि प्राइवेसी के अधिकार का उल्लंघन, उस उल्लंघन की जरूरत के अनुपात मे होना चाहिए।[25]  ट्रेसेबिलिटी कुछ खास अपराधों की रोकथाम, उसकी पहचान और जांच के लिए जरूरी है। जरूरी मैसेजेज़ की ट्रेसेबिलिटी के लिए,  जोकि जांच के उद्देश्य के लिए जरूरी हो सकता है, ऑनलाइन मैसेजिंग सर्विसेज़ के सभी यूजर्स की बातचीत की प्राइवेसी के स्तर को स्थायी रूप से कम करना पड़ेगा। इसलिए, प्रश्न यह है कि क्या यह कार्रवाई उद्देश्य के अनुपात में मानी जा सकती है। 

उल्लेखनीय है कि ट्रेसेबिलिटी के मुद्दे से संबंधित एक मामला वर्तमान में सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष लंबित है।[26]

 नियम: 8, 9, 10, 11, 12, 13, 14, 15, 16, 17 

 ऑनलाइन पब्लिशर्स के कंटेंट के रेगुलेशन के लिए फ्रेमवर्क

प्रिंट, फिल्म और रेडियो सहित परंपरागत मीडिया के कंटेट को विशिष्ट कानूनों और लाइसेंस एग्रीमेंट्स (टीवी और रेडियो के मामले में) के तहत रेगुलेट किया जाता है।[27],[28],[29],[30]  इन रेगुलेशंस के जरिए यह सुनिश्चित करने का प्रयास किया गया है कि जनता को जो कंटेंट आसानी से उपलब्ध होता है, उसमें सामुदायिक मानक प्रदर्शित होते हैं। इसके अलावा यह प्रयास किया गया है कि कुछ कंटेंट का एक्सेस, उसकी आयु उपयुक्तता के आधार पर प्रतिबंधित किया जाए और अगर उसे गैरकानूनी समझा जा सकता है।[31]  इनमें से कुछ ऑपरेशंस की आर्थिक लागत और लाइसेंस की कुछ शर्तों का अर्थ यह है कि उनकी संख्या कम है। पिछले कुछ वर्षों में इंटरनेट न्यूज और इंटरटेनमेंट कंटेंट के पब्लिकेशन के लिए मुख्यधारा का बड़ा माध्यम बन गया है। डिजिटल मीडिया के कंटेंट के रेगुलेशन का फ्रेमवर्क, परंपरागत मीडिया के समान नहीं हो सकता, चूंकि इस सिलसिले में निम्नलिखित चुनौतियां हैं(i) यह परिभाषित करना कि पब्लिशर कौन है, इसलिए ऑनलाइन पब्लिश करने वाले व्यक्तियों और व्यवसायों को एक ही तरह से रेगुलेट नहीं किया जा सकता, (ii) रेगुलेट किए जाने वाले कंटेंट की मात्रा, और (iii) प्रवर्तन (इंटरनेट की सीमा पारीय प्रकृति का अर्थ यह है कि भारत में पब्लिशर की भौतिक उपस्थिति जरूरी नहीं है)। आईटी एक्ट के तहत 2021 के नियमों में न्यूज और करंट अफेयर्स के ऑनलाइन पब्लिशर्स के कंटेंट और क्यूरेटेड ऑडियो-विजुअल कंटेंट (जैसे फिल्में, सिरीज़ और पॉडकास्ट) के रेगुलेशन के लिए फ्रेमवर्क दिया गया है। इन नियमों से संबंधित मुद्दों पर यहां चर्चा की गई है।   

2021 के नियमों के तहत ऑनलाइन पब्लिशर्स का रेगुलेशन पेरेंट एक्ट के दायरे से इतर हो सकता है 

फ्रेमवर्क ऑनलाइन पब्लिशर्स के कंटेंट के रेगुलेशन के लिए नियमों और निगरानी की व्यवस्था का प्रावधान करते हैं। 2021 के नियमों पर केंद्र सरकार के प्रेस नोट मे कहा गया है कि ऑनलाइन पब्लिशर्स ऐसे डिजिटल प्लेटफॉर्म होते हैं जिनका प्रबंधन आईटी एक्ट करता है।6  आईटी एक्ट का उद्देश्य इलेक्ट्रॉनिक डेटा इंटरचेंज और इलेक्ट्रॉनिक कम्यूनिकेशन के दूसरे साधनों द्वारा किए जाने वाले लेनदेन को कानूनी मान्यता प्रदान करना, और दस्तावेजो की इलेक्ट्रॉनिक फाइलिंग को आसान बनाना है।[32] एक्ट यौन रूप से स्पष्ट सामग्री, बाल यौन शोषण की सामग्री जैसे निर्दिष्ट कंटेंट को पब्लिश करने सहित साइबर अपराध और दूसरों की प्राइवेसी का उल्लंघन करने वाले कंटेट को प्रतिबंधित करता है।

प्रेस परिषद एक्ट, 1978, प्रेस और पुस्तकों का रजिस्ट्रेशन एक्ट, 1867, केबल टेलीविजन नेटवर्क्स (रेगुलेशन) एक्ट, 1995 और सिनेमैटोग्राफ एक्ट, 1952 जैसे कानून क्रमश: प्रिंट में न्यूज के पब्लिशर्स, न्यूज के टेलीविजन ब्रॉडकास्ट और ऑडियो-विजुअल कंटेंट, और फिल्मों (अन्य मीडिया के जरिए ऐसा ही कंटेंट) को रेगुलेट करने वाले विशिष्ट कानून हैं ।27,28,29,30 इन श्रेणियों के पब्लिशर्स के कंटेंट के रेगुलेशन में प्रेस की स्वतंत्रता और कलात्मक अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मामले आते हैं। यह प्रश्न किया जा सकता है कि क्या आईटी एक्ट के तहत ऑनलाइन पब्लिशर्स के रेगुलेशन की परिकल्पना की गई है और इसलिए, क्या 2021 के नियम इस संबंध में एक्ट के दायरे से परे जाते हैं।  

डिजिटल न्यूज मीडिया के लिए निगरानी की व्यवस्था में प्रिंट न्यूज को मिली स्वतंत्रता का अभाव है

प्रिंट न्यूज के मामले में कंटेंट रेगुलेशन के लिए निगरानी की व्यवस्था, भारतीय प्रेस परिषद (पीसीआई) के तहत आती है जोकि एक स्वतंत्र वैधानिक निकाय है। पीसीआई के मुख्य उद्देश्यों में से एक है, प्रेस की स्वतंत्रता को बरकरार रखना। परिषद में एक चेयरपर्सन और अन्य 28 सदस्य हैं जिनमें वर्किंग जर्नलिस्ट्स, न्यूजपेपर के मैनेजमेंट के प्रतिनिधि, संसद सदस्य और डोमेन एक्सपर्ट शामिल हैं। लोकसभा अध्यक्ष, राज्यसभा अध्यक्ष और पीसीआई द्वारा निर्वाचित एक सदस्य द्वारा चेयरपर्सन को चुना जाता है। पीसीआई के मुख्य कार्यों में निम्नलिखित शामिल हैं: (i) मानकों के उल्लंघन की शिकायतों पर फैसला सुनाना, (ii) आचार संहिता के उल्लंघन पर निर्देश जारी करना, जैसे आलोचना और निंदा करना, और चेतावनी देना। डिजिटल न्यूज मीडिया के मामले में ऐसी कार्रवाई के लिए, निगरानी की व्यवस्था सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के तहत होगी। इसलिए डिजिटल न्यूज के लिए निगरानी स्वतंत्र वैधानिक निकाय द्वारा नहीं की जाएगी, जैसा कि प्रिंट पब्लिकेशन के लिए की जाती है।

उल्लेखनीय है कि टीवी न्यूज के कंटेट को केबल टेलीविजन नेटवर्क्स (रेगुलेशन) एक्ट, 1995 (सीटीएन एक्ट) के तहत रेगुलेट किया जाता है।29 सीटीएन एक्ट केंद्र सरकार को अधिकार देता है कि वह पब्लिशर्स के लिए प्रोग्राम कोड और एडवर्टाइजिंग कोड को निर्दिष्ट करे जिनका वे पालन करेंगे। अगर वे इन संहिताओं का उल्लंघन करते हैं तो केंद्र सरकार जनहित में कुछ निर्दिष्ट आधार पर कार्यक्रम के प्रसारण पर प्रतिबंध लगा सकती है। टीवी ब्रॉडकास्टर्स के लिए तीन स्तरीय सेल्फ-रेगुलेशन की व्यवस्था, ऑनलाइन पब्लिशर्स की ही तरह, जून 2021 में सीटीएन एक्ट के तहत निर्दिष्ट की गई।[33]

 

 एक्ट: सेक्शन 69

 नियम: 14, 16

 ऑनलाइन पब्लिशर्स के कंटेंट की इमरजेंसी ब्लॉकिंग की प्रक्रिया में उचित सुरक्षात्मक उपाय नहीं हैं

 

नियम के अनुसार, आपातस्थिति में सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के सचिव द्वारा ऑनलाइन पब्लिशर के कंटेट को ब्लॉक करने का आदेश जारी किया जा सकता है। पब्लिशर को सुनवाई का मौका दिए बिना ऐसे आदेश कुछ आधार पर दिए जा सकते हैं, जिसमें राष्ट्रीय और सार्वजनिक व्यवस्था शामिल है। एक अंतर विभागीय समिति इस आदेश की जांच करती है और आदेश की पुष्टि या उसे निरस्त करने पर सुझाव देती है। नियमों में इस पूरी प्रक्रिया के दौरान पब्लिशर को सुनवाई का मौका नहीं दिया गया है। आचार संहिता के उल्लंघन की जांच के दौरान जो प्रक्रिया निर्धारित की गई है, यह उसके विपरीत है। इस प्रक्रिया के तहत संबंधित पब्लिशर को यह अनुमति दी गई है कि वह समिति के सामने पेश हो और अपना जवाब और स्पष्टीकरण सौंपे। 

 नियम: 3 (1) (डब्ल्यू)

 सोशल मीडिया इंटरमीडियरी की परिभाषा बहुत व्यापक हो सकती है

नियमों में एक सोशल मीडिया इंटरमीडियरी को एक ऐसी इंटरमीडियरी के रूप में परिभाषित किया गया है जोकि मुख्य रूप से या पूरी तरह से दो या उससे अधिक यूजर्स के बीच ऑनलाइन इंट्रैक्शन को एनेबल करते हैं और उन्हें अपनी सेवाओं का इस्तेमाल करके, इनफॉरेशन को क्रिएट, अपलोड, शेयर, वितरित करने, उनमें परिवर्तन करने या एक्सेस करने की अनुमति देते हैं। इस परिभाषा में कोई भी इंटरमीडियरी शामिल हो सकता है जो अपने यूजर्स के बीच बातचीत को सक्षम बनाता है। इसमें ईमेल सर्विस प्रोवाइडर, ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्मवीडियो कॉन्फ्रेंसिंग प्लेटफॉर्म और इंटरनेट टेलीफोनी सर्विस प्रोवाइडर शामिल हो सकते हैं।   

 

[1]Section 2 (1) (w)The Information Technology Act, 2000.

[5]Official Debates, Rajya Sabha, July 26, 2018.

[6]. “Government notifies Information Technology (Intermediary Guidelines and Digital Media Ethics CodeRules 2021, Press Information Bureau, Ministry of Electronics and Information Technology, February 25, 2021.

[7]Suo Moto Writ Petition No3 of 2015, Supreme Court of India, December 11, 2018.

[9]W.P. (CivilNo6272 of 2021, Kerala High Court.

[10]W.P. (CivilNo 3125 of 2021, Delhi High Court.

[13] “Reform of the EU Liability Regime for Online Intermediaries, European Parliamentary Research Service, May 2020.

[14]. “Liability of online platforms, European Parliamentary Research Service, February 2021

[16]State of Karnataka v Ganesh Kamath, 1983 SCR (2665, March 31, 1983.

[17]Kerala State Electricity Board vs Indian Aluminium Company, 1976 SCR (1552, September 1, 1975.

[18]Article 19, The Constitution of India.

[19].  Section 67, 67A, and 67B, The Information Technology Act, 2000.

[20]Shreya Singhal vs Union of India, Writ Petition (CriminalNo167 Of 2012, Supreme Court of India, March 24, 2015.

[25]Justice K.S.Puttswamy (Retdvs Union of India, W.P.(CivilNo 494 of 2012, Supreme Court of India, August 24, 2017.

[26]Facebook Inc vs Antony Clement Rubin, Diary No 32478/2019, Admitted on January 30, 2020, Supreme Court of India.

[31]. “The Challenge of managing digital content, International Telecommunications Union, August 23, 2017

[32]Introduction to the Information Technology Act, 2000.

[33]The Cable Television Networks (AmendmentRules, 2021 issued under the Cable Television Networks (RegulationAct, 1995.

 

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