बिल का सारांश

असिस्टेड रीप्रोडक्टिव टेक्नोलॉजी (रेगुलेशन) बिल, 2020

  • असिस्टेड रीप्रोडक्टिव टेक्नोलॉजी (एआरटी): बिल के अनुसार, एआरटी में ऐसी सभी तकनीक शामिल हैं जिनमें मानव शरीर के बाहर स्पर्म या ओसाइट (अपरिपक्व एग सेल) को रखकर किसी महिला की प्रजनन प्रणाली में गैमेट या भ्रूण को प्रत्यारोपित करके गर्भावस्था हासिल की जाती है। एआरटी सेवाओं के उदाहरणों में गैमेट (स्पर्म या ओसाइट) डोनेशन, इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (लैब में एग को फर्टिलाइज करना), और जेस्टेशनल सेरोगेसी (जब बच्चा सेरोगेट माता से बायोलॉजिकली संबंधित नहीं होता) शामिल हैं। एआरटी सेवाएं निम्नलिखित के जरिए प्रदान की जाती हैं: (i) एआरटी क्लिनिक, जोकि एआरटी संबंधी उपचार और प्रक्रियाएं प्रदान करते हैं, और (ii) एआरटी बैंक जोकि गैमेट्स को स्टोर और सप्लाई करते हैं।
     
  • एआरटी क्लिनिक और बैंकों का रेगुलेशन: बिल के अनुसार, हर एआरटी क्लिनिक और बैंक को नेशनल रजिस्ट्री ऑफ बैंक्स एंड क्लिनिक्स ऑफ इंडिया में रजिस्टर होना चाहिए। बिल के अंतर्गत नेशनल रजिस्ट्री बनाई जाएगी और वह देश में सभी एआरटी क्लिनिक्स और बैंक्स के विवरणों वाले केंद्रीय डेटाबेस की तरह काम करेगी। राज्य सरकारें रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया को आसान बनाने के लिए रजिस्ट्रेशन अथॉरिटीज़ की नियुक्तियां करेंगी। क्लिनिक और बैंकों को सिर्फ तभी रजिस्टर किया जाएगा, अगर वे कुछ मानदंडों का पालन करेंगे (विशेषज्ञता प्राप्त कर्मचारी, भौतिक इंफ्रास्ट्रक्चर और डायगनॉस्टिक सुविधाएं)। रजिस्ट्रेशन पांच वर्षों के लिए वैध होगा और अगले पांच वर्षों के लिए रीन्यू किया जा सकता है। अगर बिल के प्रावधानों का उल्लंघन होगा तो रजिस्ट्रेशन रद्द या सस्पेंड किया जा सकता है।
     
  • गैमेट डोनेशन और सप्लाई की शर्तें: गैमेट डोनर्स की स्क्रीनिंग, सीमन का कलेक्शन और स्टोरेज और ओसाइट डोनर का प्रावधान सिर्फ रजिस्टर्ड एआरटी बैंक द्वारा किया जा सकता है। बैंक सिर्फ 21 और 55 वर्ष की आयु वाले पुरुष का सीमन और 23 से 35 वर्ष की आयु की महिलाओं का ओसाइट ले सकता है। ओसाइट डोनर सिर्फ एक शादीशुदा महिला हो सकती है जिसका खुद का एक जीवित बच्चा हो (न्यूनतम तीन वर्ष की आयु)। कोई महिला सिर्फ एक बार ओसाइट दान कर सकती है और उससे सात से अधिक बार ओसाइट पुनर्प्राप्त नहीं किया जा सकता। बैंक सिंगल डोनर से प्राप्त गैमेट को एक से अधिक कमीशनिंग कपल (सेवा प्राप्त करने वाला कपल) को नहीं दे सकते।
     
  • एआरटी सेवाओं की शर्तें: एआरटी प्रक्रिया को सिर्फ सेवा की मांग करने वाले दोनों पक्षों और डोनर की लिखित सहमति से संचालित किया जाएगा। एआरटी सेवा की मांग करने वाला पक्ष ओसाइट डोनर को बीमा कवरेज देगा (किसी नुकसान या डोनर की मौत के लिए)। क्लिनिक पर इस बात का प्रतिबंध है कि वह किसी को पूर्व निर्धारित लिंग का बच्चा नहीं देगा। बिल में यह अपेक्षित है कि भ्रूण के प्रत्यारोपण से पहले जेनेटिक बीमारी की जांच की जाए।
     
  • एआरटी के जरिए जन्मे बच्चे के अधिकार: एआरटी से जन्मे बच्चे को कमीशनिंग कपल का बायोलॉजिकल बच्चा माना जाएगा और वह कमीशनिंग कपल के प्राकृतिक बच्चे को उपलब्ध सभी अधिकारों और सुविधाओं का पात्र होगा। डोनर का बच्चे पर कोई पेरेंटल अधिकर नहीं होगा।
     
  • राष्ट्रीय और राज्य बोर्ड्स: बिल में प्रावधान है कि सेरोगेसी (रेगुलेशन) बिल, 2019 के अंतर्गत गठित राष्ट्रीय और राज्य बोर्ड्स एआरटी सेवाओं के रेगुलेशन के लिए क्रमशः राष्ट्रीय और राज्य बोर्ड्स के तौर पर काम करेंगे। राष्ट्रीय बोर्ड की मुख्य शक्तियों और कार्यों में निम्नलिखित शामिल हैं: (i) एआरटी संबंधी नीतिगत मामलों में केंद्र सरकार को सलाह देना, (ii) बिल के कार्यान्वयन की समीक्षा करना और उसकी निगरानी करना, (iii) एआरटी क्लिनिक्स और बैंकों के लिए आचार संहिता और मानदंड बनाना, और (iv) बिल के अंतर्गत गठित विभिन्न निकायों का पर्यवेक्षण। राष्ट्रीय बोर्ड के सुझावों, नीतियों और रेगेलुशंस के अनुसार राज्य बोर्ड एआरटी की नीतियों और दिशानिर्देशों के प्रवर्तन के बीच समन्वय स्थापित करेंगे।
     
  • अपराध और सजा: बिल के अंतर्गत अपराधों में निम्नलिखित शामिल हैं: (i) एआरटी के जरिए जन्मे बच्चों का परित्याग या उनका शोषण, (ii) मानव एंब्रेयो या गैमेट्स को खरीदना, बेचना, व्यापार या आयात करना, (ii) डोनर्स हासिल करने के लिए बिचौलियों का इस्तेमाल करना, (iv) कमीशनिंग कपल, महिला या गैमेट डोनर का किसी तरह से शोषण करना, और (v) पुरुष या जानवर में मानव एंब्रेयो का प्रत्यारोपित करना। पहली बार अपराध करने पर पांच से दस लाख रुपए का जुर्माना हो सकता है। इसके बाद अपराध करने पर आठ से 12 वर्ष की कैद हो सकती है, और 10 से 20 लाख रुपए का जुर्माना हो सकता है। 
     
  • सेक्स सिलेक्टिव एआरटी का विज्ञापन करने या ऐसी पेशकश करने वाले क्लिनिक और बैंक को 10 लाख से 25 लाख रुपए तक का जुर्माना भरना पड़ सकता है, या पांच से 10 वर्ष की कैद हो सकती है या दोनों भुगतने पड़ सकते हैं।
     
  • राष्ट्रीय या राज्य बोर्ड या उनके द्वारा अधिकृत किसी अधिकारी की शिकायत के अतिरिक्त अदालतें बिल के अंतर्गत अपराधों का संज्ञान नहीं लेंगी।

 

 

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