बिल का सारांश

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023

  • भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 को लोकसभा में 11 अगस्त, 2023 को पेश किया गया। यह दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 को निरस्त करती है। यह संहिता भारतीय दंड संहिता, 1860 सहित कई एक्ट्स के तहत अपराधों के लिए गिरफ्तारीअभियोजन और जमानत की प्रक्रिया प्रदान करती है। बिल में संहिता के अधिकांश प्रावधानों को बरकरार रखा गया है। बिल के तहत प्रस्तावित प्रमुख बदलावों में निम्न शामिल हैं:

  • विचाराधीन कैदियों की हिरासत: संहिता के तहतअगर किसी आरोपी ने जांच या मुकदमे के दौरान किसी अपराध के लिए कारावास की अधिकतम अवधि का आधा हिस्सा हिरासत में बिताया हैतो उसे उसके निजी बांड पर रिहा किया जाना चाहिए। यह उन अपराधों पर लागू नहीं होता जिनमें मौत की सज़ा हो सकती है। बिल में कहा गया है कि यह प्रावधान निम्नलिखित पर भी लागू नहीं होगा: (i) आजीवन कारावास की सजा वाले अपराधऔर (ii) ऐसे व्यक्ति जिनके खिलाफ एक से अधिक अपराधों में कार्यवाही लंबित है। इसमें आगे कहा गया है कि पहली बार अपराध करने वाले लोगों को जमानत पर रिहा किया जाएगा, अगर उन्होंने अपराध के लिए दी जा सकने वाली अधिकतम कारावास की एक तिहाई अवधि हिरासत में पूरी कर ली है। जिस जेल में आरोपी को हिरासत में लिया गया हैउसके सुपरिंटेंडेंट को ऐसे विचाराधीन कैदियों को जमानत पर रिहा करने के लिए आवेदन करना होगा।

  • इलेक्ट्रॉनिक मोड में कार्यवाही और जांचबिल में प्रावधान है कि सभी जांच, पूछताछ और कार्यवाही इलेक्ट्रॉनिक मोड में की जा सकती है। बिल जांच, पूछताछ या कार्यवाही के लिए उन इलेक्ट्रॉनिक कम्यूनिकेशन उपकरणों को पेश करने का भी प्रावधान करता है, जिनमें डिजिटल सबूत होने की संभावना है। इलेक्ट्रॉनिक कम्यूनिकेशन में मोबाइल, कंप्यूटर या टेलीफोन जैसे उपकरणों के माध्यम से किया जाने वाला कम्यूनिकेशन शामिल है।

  • आरोपी की मेडिकल जांच: संहिता बलात्कार के मामलों सहित कुछ मामलों में आरोपी की मेडिकल जांच की अनुमति देती है। यह जांच कम से कम सब-इंस्पेक्टर स्तर के पुलिस अधिकारी के अनुरोध पर एक पंजीकृत मेडिकल प्रैक्टीशनर द्वारा की जाती है। बिल में प्रावधान है कि कोई भी पुलिस अधिकारी ऐसी जांच के लिए अनुरोध कर सकता है।

  • फॉरेंसिक जांचबिल उन सभी अपराधों के लिए फॉरेंसिक जांच को अनिवार्य करता है जिनकी सजा कम से कम सात वर्ष का कारावास है। ऐसे मामलों में फॉरेंसिक एक्सपर्ट्स क्राइम सीन पर जाएंगे ताकि फॉरेंसिक सबूतों को इकट्ठा किया जा सके और मोबाइल फोन या किसी दूसरे इलेक्ट्रॉनिक उपकरण पर उस प्रक्रिया को रिकॉर्ड करेंगे। अगर राज्य के पास फॉरेंसिक सुविधा नहीं है तो उसे दूसरे राज्य की इस सुविधा का इस्तेमाल करना चाहिए।

  • हथियार रखने से प्रतिबंधित करने की शक्तिसंहिता जिला मजिस्ट्रेट को यह अधिकार देती है कि वे किसी भी जुलूससामूहिक अभ्यास या सार्वजनिक स्थानों पर हथियारों के साथ सामूहिक प्रशिक्षण में हथियार ले जाने पर रोक लगा सकते हैं। यह सार्वजनिक शांतिसार्वजनिक सुरक्षा या सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखने के लिए किया जा सकता है। इस तरह के प्रतिबंध छह महीने तक लागू रह सकते हैं। हालांकिप्रावधान को संहिता के तहत अधिसूचित नहीं किया गया था। बिल इस प्रावधान को हटाता है।

  • हस्ताक्षर और उंगलियों की छाप: संहिता मेट्रोपॉलिटन/न्यायिक मजिस्ट्रेट को अधिकार देती है कि वह किसी भी व्यक्ति को हस्ताक्षर या हैंडराइटिंग के नमूने देने के आदेश दे सकते हैं। ऐसा आदेश संहिता के तहत किसी भी जांच या कार्यवाही के लिए दिया जा सकता है। हालांकि ऐसा नमूना उस व्यक्ति से जमा नहीं किया जा सकता जिसे जांच के तहत गिरफ्तार नहीं किया गया हो। बिल में इसका विस्तार करते हुए उंगलियों के निशान और आवाज के नमूनों (वॉयस सैंपल) को शामिल किया गया है। ये नमूने किसी ऐसे व्यक्ति से भी लिए जा सकते हैं जिसे गिरफ्तार नहीं किया गया हो।

  • कार्यवाहियों के लिए समय-सीमा: बिल विभिन्न कार्यवाहियों के लिए समय-सीमा निर्धारित करता है। उदाहरण के लिएइसके तहत बलात्कार पीड़ितों की जांच करने वाले मेडिकल प्रैक्टीशनर्स को सात दिनों के भीतर जांच अधिकारी को अपनी रिपोर्ट सौंपनी होगी। अन्य निर्दिष्ट समय- सीमाओं में निम्नलिखित शामिल हैं: (i) बहस पूरी होने के 30 दिनों के भीतर फैसला देना (जिसे 60 दिनों तक बढ़ाया जा सकता है), (ii) पीड़ित को 90 दिनों के भीतर जांच की प्रगति के बारे में सूचित करनाऔर (iii) आरोपों पर पहली सुनवाई से 60 दिनों के भीतर सत्र न्यायालय द्वारा आरोप तय करना।

  • अपराधी की गैरमौजूदगी में मुकदमा: बिल घोषित अपराधी की गैरमौजूदगी में मुकदमा चलाने और फैसला सुनाने का प्रावधान करता है। ऐसा तब किया जाएगा जब ऐसा व्यक्ति मुकदमे से बचने के लिए फरार हो गया हो और उसकी गिरफ्तारी की तत्काल कोई संभावना न हो। घोषित अपराधी उस व्यक्ति को कहा जाता है जो: (i) कम से कम 10 साल की कैद या मौत की सजा वाले अपराध का आरोपी है और (ii) अदालत द्वारा निर्दिष्ट निर्दिष्ट समय और स्थान पर मौजूद होने में विफल रहता है।

  • मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट: संहिता राज्य सरकारों को दस लाख से अधिक आबादी वाले किसी भी शहर या कस्बे को महानगरीय क्षेत्र के रूप में अधिसूचित करने का अधिकार देती है। ऐसे क्षेत्रों में मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट होते हैं। बिल इस प्रावधान को हटाता है।

 

अस्वीकरणः प्रस्तुत रिपोर्ट आपके समक्ष सूचना प्रदान करने के लिए प्रस्तुत की गई है। पीआरएस लेजिसलेटिव रिसर्च (पीआरएस) के नाम उल्लेख के साथ इस रिपोर्ट का पूर्ण रूपेण या आंशिक रूप से गैर व्यावसायिक उद्देश्य के लिए पुनःप्रयोग या पुनर्वितरण किया जा सकता है। रिपोर्ट में प्रस्तुत विचार के लिए अंततः लेखक या लेखिका उत्तरदायी हैं। यद्यपि पीआरएस विश्वसनीय और व्यापक सूचना का प्रयोग करने का हर संभव प्रयास करता है किंतु पीआरएस दावा नहीं करता कि प्रस्तुत रिपोर्ट की सामग्री सही या पूर्ण है। पीआरएस एक स्वतंत्र, अलाभकारी समूह है। रिपोर्ट को इसे प्राप्त करने वाले व्यक्तियों के उद्देश्यों अथवा विचारों से निरपेक्ष होकर तैयार किया गया है। यह सारांश मूल रूप से अंग्रेजी में तैयार किया गया था। हिंदी रूपांतरण में किसी भी प्रकार की अस्पष्टता की स्थिति में अंग्रेजी के मूल सारांश से इसकी पुष्टि की जा सकती है।