बिल का सारांश

इनसॉल्वेंसी और बैंकरप्सी संहिता (संशोधन) बिल, 2025

 

  • इनसॉल्वेंसी और बैंकरप्सी संहिता (संशोधन) बिल, 2025 को 12 अगस्त, 2025 को लोकसभा में पेश किया गया। यह इनसॉल्वेंसी और बैंकरप्सी संहिता, 2016 में संशोधन करता है। इनसॉल्वेंसी वह स्थिति होती है, जब कोई संस्था अपना बकाया ऋण चुकाने में असमर्थ होती है। यह संहिता कंपनियों और व्यक्तियों की इनसॉल्वेंसी के रेज़ोल्यूशन के लिए एक समयबद्ध प्रक्रिया प्रदान करती है।

  • लेनदार की तरफ से शुरू की गई इनसॉल्वेंसी रेज़ोल्यूशन की प्रक्रिया: संहिता एक कॉरपोरेट इनसॉल्वेंसी रेज़ोल्यूशन प्रक्रिया (सीआईआरपी) का प्रावधान करती है। सीआईआरपी की शुरुआत कॉरपोरेट देनदार या उनके लेनदार की तरफ से की जा सकती है। रेज़ोल्यूशन पर फैसला लेने के लिए लेनदारों की एक कमिटी (सीओसी) का गठन किया जा सकता है। इस प्रक्रिया के दौरान कंपनी का प्रबंधन सीओसी के पास चला जाता है। सीओसी एक रेज़ोल्यूशन प्रोफेशनल (आरपी) की नियुक्ति करती है जो कंपनी के मामलों का प्रबंधन करता है और सीआईआरपी का संचालन करता है।

  • संहिता वैकल्पिक प्रक्रियाओं को भी निर्दिष्ट करती है: (i) छोटी कंपनियों और स्टार्टअप्स के लिए त्वरित समयसीमा के साथ एक फास्ट-ट्रैक इनसॉल्वेंसी रेज़ोल्यूशन प्रक्रिया, और (ii) एमएसएमई के लिए एक प्री-पैकेज्ड इनसॉल्वेंसी रेज़ोल्यूशन प्रक्रिया जो केवल देनदार शुरू कर सकता है, और कंपनी का प्रबंधन देनदार के पास रहता है। बिल में फास्ट-ट्रैक इनसॉल्वेंसी रेज़ोल्यूशन प्रक्रिया को हटाया दिया गया है। इसमें सरकार द्वारा अधिसूचित कॉरपोरेट देनदारों की कुछ श्रेणियों के लिए लेनदारों की तरफ से शुरू की गई इनसॉल्वेंसी रेज़ोल्यूशन की प्रक्रिया (सीआईआईआरपी) पेश की गई है। सीआईआईआरपी केवल निर्दिष्ट वित्तीय लेनदारों द्वारा ही शुरू की जा सकती है। इस प्रक्रिया को शुरू करने के लिए, ऐसे कम से कम 51% लेनदारों की सहमति (ऋण के मूल्य के अनुसार) आवश्यक है। सीआईआईआरपी शुरू करने वाले लेनदार को देनदार को सूचित करना होगा और उसे अपना पक्ष रखने के लिए कम से कम 30 दिन का समय देना होगा। देनदार प्रक्रिया शुरू होने के खिलाफ राष्ट्रीय कंपनी कानून ट्रिब्यूनल (एनसीएलटी) के समक्ष आपत्ति भी दर्ज करा सकता है। सीआईआईआरपी के दौरान कंपनी का प्रबंधन देनदार के पास रहेगा, जो आरपी की निगरानी के अधीन होगा।

  • एनसीएलटी सीआईआईआरपी को सीआईआरपी में परिवर्तित कर सकता है, अगर: (i) उसे निर्धारित समय-सीमा (शुरुआत के समय 150 दिन, जिसे 45 दिनों तक बढ़ाया जा सकता है) के भीतर रेज़ोल्यूशन प्लान नहीं मिलता, (ii) प्लान को अस्वीकार कर देता है, या (iii) यह निर्धारित करता है कि देनदार ने आरपी के साथ सहयोग नहीं किया।

  • समूह की इनसॉल्वेंसी: यह बिल केंद्र सरकार को एक समूह का हिस्सा बनने वाले दो या दो से अधिक कॉरपोरेट देनदारों के खिलाफ इनसॉल्वेंसी की प्रक्रिया के लिए नियम निर्धारित करने का अधिकार देता है। इन नियमों में कार्यवाही के लिए एक सामान्य एनसीएलटी बेंच, एक सामान्य रेज़ोल्यूशन प्रोफेशनल की नियुक्ति और एक संयुक्त सीओसी के गठन जैसे विवरण निर्दिष्ट किए जाएंगे।

  • सीमा पारीय इनसॉल्वेंसी: यह संहिता सीमा पारीय इनसॉल्वेंसी से संबंधित नहीं है। सीमा पारीय इनसॉल्वेंसी का अर्थ ऐसा देनदार है जिसकी कई देशों में संपत्तियां या लेनदार हों। यह बिल केंद्र सरकार को सीमा पारीय इनसॉल्वेंसी रेज़ोल्यूशन की प्रक्रिया के प्रबंधन और संचालन के तरीके और शर्तें निर्धारित करने का अधिकार देता है।

  • सीआईआरपी को दाखिल करना: संहिता में कहा गया है कि अगर चूक सिद्ध हो जाती है, आवेदन पूरा हो जाता है और प्रस्तावित आरपी के खिलाफ कोई अनुशासनात्मक कार्यवाही लंबित नहीं है, तो एनसीएलटी सीआईआरपी को स्वीकार कर सकता है। एनसीएलटी आवेदन प्राप्त होने के 14 दिनों के भीतर आदेश पारित करेगा। बिल उपरोक्त शर्तों के पूरा होने पर आवेदन को स्वीकार करना अनिवार्य बनाता है। यह निर्दिष्ट करता है कि: (i) किसी आवेदन को अस्वीकार करने के लिए किसी अन्य आधार पर विचार नहीं किया जा सकता है, (ii) अगर 14 दिनों के भीतर कोई आदेश पारित नहीं होता है, तो एनसीएलटी को लिखित में कारण दर्ज करने होंगे और (ii) वित्तीय संस्थानों के रिकॉर्ड चूक का पर्याप्त प्रमाण होंगे।

  • लिक्विडेशन के मामलों में सीओसी की शक्तियां: देनदार लिक्विडेशन तब करता है, जब: (i) रेज़ोल्यूशन प्लान निर्धारित समय-सीमा के भीतर स्वीकृत नहीं होता, या (ii) सीओसी लिक्विडेशन के लिए वोट करती है। बिल सीओसी को निम्नलिखित अधिकार देता है: (i) लिक्विडेशन प्रक्रिया की निगरानी, और (ii) लिक्विडेशन को रिप्लेस करना।

  • लिक्विडेशन के लिए समय सीमा: बिल में यह भी कहा गया है कि एनसीएलटी को आवेदन या सूचना की तारीख से 30 दिनों के भीतर लिक्विडेशन का आदेश पारित करना होगा। इसमें यह भी निर्दिष्ट किया गया है कि लिक्विडेशन की कार्यवाही 180 दिनों में पूरी होनी चाहिए, जिसे 90 दिनों तक बढ़ाया जा सकता है। संहिता के तहत, कोई कंपनी स्वैच्छिक लिक्विडेशन के लिए आवेदन कर सकती है। बिल में यह भी कहा गया है कि स्वैच्छिक लिक्विडेशन की कार्यवाही एक वर्ष के भीतर पूरी होनी चाहिए।

  • तुच्छ कार्यवाही के लिए सजा: बिल में अधिनिर्णय प्राधिकारी (कॉरपोरेट देनदारों के लिए एनसीएलटी और व्यक्तिगत देनदारों के लिए डेट रिकवरी ट्रिब्यूनल) के समक्ष तुच्छ या तंग करने वाली कार्यवाही दायर करने पर दंड का प्रावधान किया गया है। इस अपराध के लिए एक लाख रुपए से लेकर दो करोड़ रुपए तक का जुर्माना लगाया जा सकता है।

 

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