बिल का सारांश

फाइनांशियल रेज़ोल्यूशन और डिपॉजिट इंश्योरेंस बिल, 2017

  • वित्त मंत्री अरुण जेटली ने लोकसभा में 10 अगस्त, 2017 को फाइनांशियल रेज़ोल्यूशन और डिपॉजिट इंश्योरेंस बिल, 2017 पेश किया। यह बिल वित्तीय फर्मों (जैसे बैंकों और बीमा कंपनियों) में बैंकरप्सी से निपटने के लिए एक फ्रेमवर्क तैयार करने का प्रयास करता है। बिल डिपॉजिट इंश्योरेंस और क्रेडिट गारंटी कॉरपोरेशन एक्ट, 1962 को रद्द करता है और 12 अन्य कानूनों में संशोधन करता है।
     
  • यह बिल वित्तीय फर्मों पर लागू होगा। साथ ही वित्तीय सेवाएं प्रदान करने वाले उन सभी प्रोवाइडरों पर लागू होगा, जिन्हें केंद्र सरकार द्वारा ‘नियमानुसार महत्वपूर्ण वित्तीय संस्थान’ कहा गया है।
     
  • रेज़ोल्यूशन कॉरपोरेशन : केंद्र सरकार एक रेज़ोल्यूशन कॉरपोरेशन की स्थापना करेगी। इस कॉरपोरेशन में एक चेयरपर्सन होगा और उसके सदस्यों में वित्त मंत्रालय, आरबीआई और सेबी इत्यादि के प्रतिनिधि शामिल होंगे।

कार्य : कॉरपोरेशन के कार्यों में निम्नलिखित शामिल है : (i) बैंकों को डिपॉजिट इंश्योरेंस देना (दिवालिया होने की स्थिति में उपभोक्ताओं को डिपॉजिट से भुगतान करने के लिए), (ii) जोखिमों के आधार पर सर्विस प्रोवाइडरों (जैसे बैंकों और बीमा कंपनियों) को वर्गीकृत करना, और (iii) दिवालिया होने की स्थिति में सर्विस प्रोवाइडरों का निपटान (रेजोल्यूशन)। कॉरपोरेशन सर्विस प्रोवाइडरों की गतिविधियों की जांच कर सकती है या अगर बिल के प्रावधानों का उल्लंघन होता है तो तलाशी और कब्जे की कार्रवाई कर सकती है।

  • जोखिम आधारित वर्गीकरण : कॉरपोरेशन, संबंधित रेगुलेटरों (जैसे बैंकों के लिए आरबीआई और बीमा कंपनियों के लिए इरडा) की सलाह से दिवालिया होने के जोखिम के आधार पर सर्विस प्रोवाइडरों के वर्गीकरण के मानदंड विनिर्दिष्ट कर सकता है।

तालिका 1: दिवालिया होने के जोखिम पर आधारित श्रेणियां

श्रेणियां

दिवालिया होने की आशंका

लो

स्वीकार्य स्तर से काफी कम

मॉडरेट

स्वीकार्य स्तर से थोड़ा कम

मैटीरियल

स्वीकार्य स्तर से ऊपर

इमिनेंट

स्वीकार्य स्तर से काफी कम

क्रिटिकल

सर्विस प्रोवाइडर बैंकरप्सी के कगार पर

Sources: The Financial Resolution and Deposit Insurance Bill, 2017; PRS.

  • ‘इमिनेंट’ या ‘क्रिटिकल’ की श्रेणी में आने वाला सर्विस प्रोवाइडर रेगुलेटर को रेस्टोरेशन प्लान और कॉरपोरेशन को रेज़ोल्यूशन प्लान सौंपेगा। इन प्लान्स में निम्नलिखित से संबंधित जानकारी होगी : (i) एसेट्स और देनदारियों के विवरण, (ii) जोखिम आधारित वर्गीकरण में अपनी स्थिति सुधारने के लिए उठाए जाने वाले कदम, और (iii) सर्विस प्रोवाइडर के रेज़ोल्यूशन के लिए जरूरी सूचना।
     
  • रेज़ोल्यूशन : क्रिटिकल की श्रेणी में आने वाले सर्विस प्रोवाइडर के रेज़ोल्यूशन के लिए कॉरपोरेशन जिन विकल्पों का प्रयोग करेगा, उनमें निम्नलिखित शामिल हैं : (i) एसेट्स और देनदारियों को किसी दूसरे व्यक्ति को हस्तांतरित करना, (ii) विलय (मर्जर) या अधिग्रहण, और (iii) लिक्विडेशन, इत्यादि।
     
  • प्रबंधन : सर्विस प्रोवाइडर जिस तारीख से ‘क्रिटिकल’ की श्रेणी में शामिल होगा, कॉरपोरेशन उसी दिन से उसका प्रबंधन अपने हाथ में ले लेगा।
     
  • समय सीमा : सर्विस प्रोवाइडर जिस तारीख से ‘क्रिटिकल’ की श्रेणी में शामिल होगा, रेज़ोल्यूशन की प्रक्रिया उसके एक वर्ष के भीतर पूरी हो जाएगी। इस समय सीमा को एक साल के लिए बढ़ाया जा सकता है (यानी दो वर्षों की अधिकतम अवधि)। अगर इस समय अवधि में सर्विस प्रोवाइडर के रेज़ोल्यूशन की प्रक्रिया पूरी नहीं होती तो उसे लिक्विडेट कर दिया जाएगा।
     
  • एसेट्स का लिक्विडेशन और वितरण : सर्विस प्रोवाइडर के एसेट्स को लिक्विडेट करने के लिए कॉरपोरेशन को नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल की मंजूरी लेनी होगी।

एसेट्स की बिक्री से होने वाली प्राप्तियों को जिस वरीयता क्रम से वितरित किया जाएगा, वे इस प्रकार है : (i) बीमाकृत डिपॉजिटरों को कॉरपोरेशन द्वारा चुकाया गया डिपॉजिट इंश्योरेंस, (ii) रेज़ोल्यूशन की कीमत, (iii) कामगारों (वर्कमेन) की 24 महीने की देय राशि और सुरक्षित क्रेडिटर, (iv) कर्मचारियों का 12 महीने का वेतन, (v)  बिना बीमा वाले डिपॉजिटरों की राशि और बीमा संबंधी दूसरी राशियां, (vi) असुरक्षित क्रेडिटर्स, (vii) सरकारी बकाया और शेष सुरक्षित क्रेडिटर (अगर उन्होंने अपने कोलेट्रल का इस्तेमाल करने का विकल्प चुना है तो बकाया ऋण), (viii) बकाया ऋण और देय राशि, और (ix) शेयरहोल्डर्स।

  • अपराध : बिल संपत्ति को छिपाने और सबूतों को नष्ट करने या फर्जीवाड़ा करने पर दंड विनिर्दिष्ट करता है। दंड अपराध की प्रकृति पर आधारित हैं जिसमें अधिकतम सजा पांच वर्ष की कैद और जुर्माना है।

 

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