बिल का सारांश

राष्ट्रीय मेडिकल कमीशन बिल, 2017

  • स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री जे.पी.नड्डा ने 29 दिसंबर, 2017 को लोकसभा में राष्ट्रीय मेडिकल कमीशन बिल, 2017 पेश किया। बिल भारतीय मेडिकल काउंसिल एक्ट, 1956 को निरस्त करने और ऐसी मेडिकल शिक्षा प्रणाली प्रदान करने का प्रयास करता है, जो निम्नलिखित सुनिश्चित करती हों : (i) पर्याप्त और उच्च क्वालिटी वाले मेडिकल प्रोफेशनलों की उपलब्धता, (ii) मेडिकल प्रोफेशनलों द्वारा नवीनतम मेडिकल अनुसंधानों का उपयोग, (iii) मेडिकल संस्थानों का नियत समय पर आकलन और (iv) एक प्रभावी शिकायत निवारण प्रणाली। बिल की मुख्य विशेषताओं में निम्नलिखित शामिल हैं :
     
  • राष्ट्रीय मेडिकल कमीशन का गठन : बिल राष्ट्रीय मेडिकल कमीशन (एनएमसी) का गठन करता है। बिल के पास होने के तीन वर्षों के भीतर राज्य सरकारों को राज्य स्तर पर राज्य मेडिकल काउंसिलों का गठन करना होगा। एनएमसी में 25 सदस्य होंगे जिन्हें केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त किया जाएगा। एक सर्च कमिटी केंद्र सरकार को चेयरपर्सन और पार्ट टाइम सदस्यों के पदों के लिए नामों का सुझाव देगी। इन पदों का कार्यकाल अधिकतम चार वर्षों का होगा। सर्च कमिटी में सात सदस्य होंगे, जिनमें कैबिनेट सचिव और केंद्र सरकार द्वारा नामित तीन विशेषज्ञ शामिल होंगे (इनमें से दो मेडिकल क्षेत्र के विशेषज्ञ होंगे)।
     
  • एनएमसी के सदस्यों में निम्नलिखित शामिल होंगे : (i) चेयरपर्सन, (ii) अंडर-ग्रैजुएट मेडिकल एजुकेशन बोर्ड के प्रेज़िडेंट, (iii) पोस्ट-गैजुएट मेडिकल एजुकेशन बोर्ड के प्रेज़िडेंट, (iv) स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय के स्वास्थ्य सेवा महानिदेशक, (v) भारतीय मेडिकल रिसर्च काउंसिल के महानिदेशक, और (vi) पांच सदस्य (पार्ट टाइम), जिन्हें बिल के अंतर्गत निर्धारित क्षेत्रों से पंजीकृत मेडिकल प्रैक्टीशनरों द्वारा चुना जाएगा।
     
  • राष्ट्रीय मेडिकल कमीशन के कार्य : एनएमसी के कार्यों में निम्नलिखित शामिल हैं : (i) मेडिकल संस्थानों और मेडिकल प्रोफेशनलों को रेगुलेट करने के लिए नीतियां बनाना, (ii) स्वास्थ्य सेवा से संबंधित मानव संसाधनों और इंफ्रास्ट्रक्चर की जरूरत का आकलन करना, (iii) यह सुनिश्चित करना कि राज्य मेडिकल काउंसिल बिल में दिए गए रेगुलेशनों का पालन कर रही हैं अथवा नहीं, (iv) बिल के अंतर्गत रेगुलेट होने वाले प्राइवेट मेडिकल संस्थानों और मानद (डीम्ड) विश्वविद्यालयों की अधिकतम 40% सीटों की फीस तय करने के लिए दिशानिर्देश बनाना।
     
  • मेडिकल एडवाइजरी काउंसिल : बिल के अंतर्गत केंद्र सरकार एक मेडिकल एडवाइजरी काउंसिल का गठन करेगी। काउंसिल वह मुख्य प्लेटफॉर्म होगा, जिसके जरिए राज्य/केंद्र शासित प्रदेश एनएमसी से संबंधित अपने विचार और चिंताओं को साझा कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त काउंसिल एनएमसी को इस संबंध में सलाह देगी कि किस प्रकार सभी लोगों को समान रूप से मेडिकल शिक्षा प्राप्त हो सके।
     
  • स्वायत्त (ऑटोनॉमस) बोर्ड्स : बिल एनएमसी की निगरानी में स्वायत्त बोर्ड्स का गठन करता है। प्रत्येक स्वायत्त बोर्ड में प्रेज़िडेंट और दो सदस्य होंगे, जिन्हें केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त किया जाएगा। ये बोर्ड हैं : (i) अंडर-ग्रैजुएट मेडिकल एजुकेशन बोर्ड (यूजीएमईबी) और पोस्ट-गैजुएट मेडिकल एजुकेशन बोर्ड (पीजीएमईबी) : ये बोर्ड क्रमशः अंडर-ग्रैजुएट और पोस्ट-ग्रैजुएट स्तरों पर मेडिकल क्वालिफिकेशन के मानक, पाठ्यक्रम, दिशानिर्देश निर्धारित करने और उन्हें मान्यता देने के लिए जिम्मेदार होंगे, (ii) मेडिकल एसेसमेंट और रेटिंग बोर्ड (एमएआरबी) : एमएआरबी के पास उन मेडिकल संस्थानों से मौद्रिक जुर्माना वसूलने की शक्ति होगी जो यूजीएमईबी और पीजीएमईबी द्वारा निर्धारित किए गए न्यूनतम मानकों का पालन करने में अंसफल रहते हैं। एमएआरबी नए मेडिकल कॉलेजों को स्थापित करने की अनुमति भी प्रदान करेगा, और (iii) एथिक्स और मेडिकल रजिस्ट्रेशन बोर्ड : यह बोर्ड सभी लाइसेंसी मेडिकल प्रैक्टीशनरों का राष्ट्रीय रजिस्टर मेनटेन करेगा, और प्रोफेशनल आचरण को रेगुलेट करेगा। जिन लोगों का नाम इस रजिस्टर में दर्ज होगा, उन्हें ही मेडिसिन प्रैक्टिस करने की अनुमति दी जाएगी।
     
  • प्रवेश परीक्षाएं : बिल द्वारा रेगुलेट किए जाने वाले सभी मेडिकल संस्थानों में अंडर-ग्रैजुएट मेडिकल शिक्षा में प्रवेश के लिए यूनिफॉर्म नेशनल एलिजिबिलिटी कम इंट्रेंस टेस्ट (नीट) होगा। इन सभी मेडिकल संस्थानों में प्रवेश के लिए कॉमन काउंसिलिग का तरीका एनएमसी द्वारा विनिर्दिष्ट किया जाएगा।
     
  • मेडिकल संस्थानों से ग्रैजुएट होने वाले विद्यार्थियों को प्रैक्टिस करने के लिए लाइसेंस हासिल करने हेतु राष्ट्रीय लाइसेंशिएट परीक्षा देनी होगी। मेडिकल संस्थानों में पोस्ट-ग्रैजुएट कोर्सों में प्रवेश हासिल करने के लिए राष्ट्रीय लाइसेंशिएट परीक्षा आधार का काम भी करेगी।

 

 

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