बिल का सारांश

क्रिमिनल लॉ (संशोधन) बिल, 2018

  • गृह राज्य मंत्री किरेन रिजीजू ने 23 जुलाई, 2018 को लोकसभा में क्रिमिनल लॉ (संशोधन) बिल, 2018 को पेश किया। यह बिल क्रिमिनल लॉ (संशोधन) अध्यादेश, 2018 का स्थान लेता है। बिल बलात्कार से संबंधित कुछ कानूनों में संशोधन करता है। ये संशोधन निम्नलिखित हैं:

भारतीय दंड संहिता (आईपीसी), 1860 में संशोधन: 

  • बलात्कार की सजा को बढ़ाना: आईपीसी, 1860 के अंतर्गत बलात्कार के अपराध के लिए कम से कम सात वर्ष के सश्रम कारावास से लेकर आजीवन कारावास तक का दंड दिया जाता है और साथ में जुर्माना भी लगाया जाता है। न्यूनतम कारावास को बढ़ाकर सात वर्ष से दस वर्ष किया गया है।

तालिका 1: आईपीसी, 1860 के अंतर्गत नए अपराध

आयु

अपराध

आईपीसी 1860

2018 का बिल

12 वर्ष से कम

बलात्कार

·   न्यूनतम: 10 वर्ष

·   अधिकतम: आजीवन कारावास

·   न्यूनतम: 20 वर्ष

·   अधिकतम: आजीवन कारावास या मृत्यु दंड

सामूहिक बलात्कार

·   न्यूनतम: 20 वर्ष

·   अधिकतम: आजीवन कारावास

·  न्यूनतम: आजीवन कारावास

·  अधिकतम:  आजीवन कारावास या मृत्यु दंड

16 वर्ष से कम

बलात्कार

·   न्यूनतम: 10 वर्ष

·   अधिकतम: आजीवन कारावास

·  न्यूनतम:  20 वर्ष

·  अधिकतम: कोई परिवर्तन नहीं

सामूहिक बलात्कार

·   न्यूनतम: 20 वर्ष

·  अधिकतम: आजीवन कारावास

·  न्यूनतम: आजीवन कारावास

·  अधिकतम : कोई प्रावधान नहीं

16 वर्ष और अधिक

बलात्कार

·   न्यूनतम: 7 वर्ष

·   अधिकतम: आजीवन कारावास

·  न्यूनतम: 10 वर्ष  

·  अधिकतम: कोई परिवर्तन नहीं

Sources: Indian Penal Code, 1860; The Criminal Law (Amendment) Bill, 2018; PRS.

  • नए अपराध: बिल नाबालिग लड़कियों के बलात्कार के दंड को बढ़ाने के लिए तीन नए अपराधों को प्रस्तुत करता है।
     
  • बार-बार अपराध करने वाले अपराधी: आईपीसी, 1860 कहता है कि अगर कोई व्यक्ति दूसरी बार बलात्कार का अपराध करता है तो उसे आजीवन कारावास या मृत्यु दंड दिया जा सकता है। आईपीसी का यह प्रावधान अब इस बिल में आने वाले नए अपराधों पर भी लागू होगा।
     
  • यौन अपराधों से बाल सुरक्षा एक्ट (पॉक्सो), 2012 में संशोधन: पॉक्सो, 2012 में नाबालिगों के बलात्कार के दंड से संबंधित प्रावधान हैं। यह कहता है कि नाबालिगों के बलात्कार के मामलों में वह दंड लागू होगा, जोकि पॉक्सो, 2012 और आईपीसी, 1860 के अंतर्गत दिए जाने वाले दंड में से अधिक होगा। यह प्रावधान अब बिल में आने वाले नए अपराधों पर भी लागू होगा।

आपराधिक दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी), 1973 में संशोधन: 

  • समयबद्ध जांच: सीआरपीसी, 1973 के अनुसार किसी बच्चे के बलात्कार की जांच तीन महीने में पूरी होनी चाहिए। बिल इस अवधि को तीन महीने से दो महीने करता है। इसके अतिरिक्त बिल बलात्कार के सभी अपराधों में जांच की यही समय सीमा तय करता है (भले ही पीड़ित की आयु कोई भी हो)।
     
  • अपील: बिल के अनुसार बलात्कार के मामलों में दंड के फैसले के खिलाफ किसी भी अपील की सुनवाई छह महीने के भीतर पूरी होनी चाहिए।
     
  • अग्रिम जमानत (एंटिसिपेटरी बेल): सीआरपीसी, 1973 में उन शर्तों को सूचीबद्ध किया गया है जिनके अंतर्गत अग्रिम जमानत दी जाती है। बिल कहता है कि 16 वर्ष से कम उम्र की नाबालिग लड़की के बलात्कार और सामूहिक बलात्कार पर अग्रिम जमानत का प्रावधान लागू नहीं होगा।
     
  • मुआवजा: सीआरपीसी, 1973 के अनुसार सभी बलात्कार पीड़ितों को राज्य सरकार द्वारा मुफ्त मेडिकल उपचार और मुआवजा दिया जाएगा। इस प्रावधान में 16 वर्ष से कम उम्र की नाबालिग लड़कियों के बलात्कार और सामूहिक बलात्कार को शामिल किया गया है।
     
  • पूर्व मंजूरी: सीआरपीसी, 1973 के अनुसार कुछ अपराधों, जैसे बलात्कार को छोड़कर दूसरे सभी अपराधों में सभी सरकारी कर्मचारियों पर मुकदमा चलाने के लिए पूर्व मंजूरी की जरूरत होती है। इस प्रावधान में 16 वर्ष से कम उम्र की नाबालिग लड़कियों के बलात्कार और सामूहिक बलात्कार को शामिल किया गया है।
     
  • भारतीय साक्ष्य (इंडियन एविडेंस) एक्ट, 1872: भारतीय साक्ष्य एक्ट के अंतर्गत यह निर्धारित करने में कि कोई कृत्य सहमति से था अथवा नहीं, पीड़िता का पूर्व यौन अनुभव या चरित्र मायने नहीं रखता। इस प्रावधान में 16 वर्ष से कम उम्र की नाबालिग लड़कियों के बलात्कार और सामूहिक बलात्कार को शामिल किया गया है।

 

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