बिल का सारांश

उपभोक्ता संरक्षण बिल, 2019

  • उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्री रामविलास पासवान ने 8 जुलाई, 2019 को लोकसभा में उपभोक्ता संरक्षण बिल, 2019 पेश किया। बिल उपभोक्ता संरक्षण एक्ट, 1986 का स्थान लेता है। बिल की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं :
     
  • उपभोक्ता की परिभाषा : उपभोक्ता वह व्यक्ति है जो अपने इस्तेमाल के लिए कोई वस्तु खरीदता है या सेवा प्राप्त करता है। इसमें वह व्यक्ति शामिल नहीं है जो दोबारा बेचने के लिए किसी वस्तु को हासिल करता है या कमर्शियल उद्देश्य के लिए किसी वस्तु या सेवा को प्राप्त करता है। इसके अंतर्गत इसमें इलेक्ट्रॉनिक तरीके, टेलीशॉपिंग, मल्टी लेवल मार्केटिंग या सीधे खरीद के जरिए किया जाने वाला सभी तरह का ऑफलाइन या ऑनलाइन लेनदेन शामिल है।
     
  • उपभोक्ताओं के अधिकार : बिल में उपभोक्ताओं के छह अधिकारों को स्पष्ट किया गया है जिनमें निम्नलिखित शामिल हैं : (i) ऐसी वस्तुओं और सेवाओं की मार्केटिंग के खिलाफ सुरक्षा जो जीवन और संपत्ति के लिए जोखिमपरक हैं, (ii) वस्तुओं या सेवाओं की क्वालिटी, मात्रा, शक्ति, शुद्धता, मानक और मूल्य की जानकारी प्राप्त होना, (iii) प्रतिस्पर्धात्मक मूल्यों पर वस्तु और सेवा उपलब्ध होने का आश्वासन प्राप्त होना, और (iv) अनुचित या प्रतिबंधित व्यापार की स्थिति में मुआवजे की मांग करना।
     
  • केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण अथॉरिटी : केंद्र सरकार उपभोक्ताओं के अधिकारों को बढ़ावा देने, उनका संरक्षण करने और उन्हें लागू करने के लिए केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण अथॉरिटी (सीसीपीए) का गठन करेगी। यह अथॉरिटी उपभोक्ता अधिकारों के उल्लंघन, अनुचित व्यापार और भ्रामक विज्ञापनों से संबंधित मामलों को रेगुलेट करेगी। महानिदेशक की अध्यक्षता में सीसीपीए की एक अन्वेषण शाखा (इनवेस्टिगेशन विंग) होगी, जो ऐसे उल्लंघनों की जांच या इनवेस्टिगेशन कर सकती है।
     
  • सीसीपीए निम्नलिखित कार्य करेगी : (i) उपभोक्ता अधिकारों के उल्लंघन की जांच, इनवेस्टिगेशन और उपयुक्त मंच पर कानूनी कार्यवाही शुरू करना, (ii) जोखिमपरक वस्तुओं को रीकॉल या सेवाओं को विदड्रॉ करने के आदेश जारी करना, चुकाई गई कीमत की भरपाई करना और अनुचित व्यापार को बंद कराना, जैसा कि बिल में स्पष्ट किया गया है, (iii) संबंधित ट्रेडर/मैन्यूफैक्चरर/एन्डोर्सर/एडवरटाइजर/पब्लिशर को झूठे या भ्रामक विज्ञापन को बंद करने या उसे सुधारने का आदेश जारी करना, (iv) जुर्माना लगाना, और (v) खतरनाक और असुरक्षित वस्तुओं और सेवाओं के प्रति उपभोक्ताओं को सेफ्टी नोटिस जारी करना।
     
  • भ्रामक विज्ञापनों के लिए जुर्माना : सीसीपीए झूठे या भ्रामक विज्ञापन के लिए मैन्यूफैक्चरर या एन्डोर्सर पर 10 लाख रुपए तक का जुर्माना लगा सकती है। दोबारा अपराध की स्थिति में यह जुर्माना 50 लाख रुपए तक बढ़ सकता है। मैन्यूफैक्चरर को दो वर्ष तक की कैद की सजा भी हो सकती है जो हर बार अपराध करने पर पांच वर्ष तक बढ़ सकती है।
     
  • सीसीपीए भ्रामक विज्ञापनों के एन्डोर्सर को उस विशेष उत्पाद या सेवा को एक वर्ष तक एन्डोर्स करने से प्रतिबंधित भी कर सकती है। एक बार से ज्यादा बार अपराध करने पर प्रतिबंध की अवधि तीन वर्ष तक बढ़ाई जा सकती है। हालांकि ऐसे कई अपवाद हैं जब एन्डोर्सर को ऐसी सजा का भागी नहीं माना जाएगा।
     
  • उपभोक्ता विवाद निवारण कमीशन : जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तरों पर उपभोक्ता विवाद निवारण कमीशनों (सीडीआरसीज़) का गठन किया जाएगा। एक उपभोक्ता निम्नलिखित के संबंध में आयोग में शिकायत दर्ज करा सकता है : (i) अनुचित और प्रतिबंधित तरीके का व्यापार, (ii) दोषपूर्ण वस्तु या सेवाएं, (iii) अधिक कीमत वसूलना या गलत तरीके से कीमत वसूलना, और (iv) ऐसी वस्तुओं या सेवाओं को बिक्री के लिए पेश करना, जो जीवन और सुरक्षा के लिए जोखिमपरक हो सकती हैं। अनुचित कॉन्ट्रैक्ट के खिलाफ शिकायत केवल राज्य और राष्ट्रीय सीडीआरसीज़ में फाइल की जा सकती हैं। जिला सीडीआरसी के आदेश के खिलाफ राज्य सीडीआरसी में सुनवाई की जाएगी। राज्य सीडीआरसी के आदेश के खिलाफ राष्ट्रीय सीडीआरसी में सुनवाई की जाएगी। अंतिम अपील का अधिकार सर्वोच्च न्यायालय को होगा।
     
  • सीडीआरसीज़ का क्षेत्राधिकार: जिला सीडीआरसी उन शिकायतों के मामलों को सुनेगा, जिनमें वस्तुओं और सेवाओं की कीमत एक करोड़ रुपए से अधिक न हो। राज्य सीडीआरसी उन शिकायतों के मामले में सुनवाई करेगा, जिनमें वस्तुओं और सेवाओं की कीमत एक करोड़ रुपए से अधिक हो, लेकिन 10 करोड़ रुपए से अधिक न हो। 10 करोड़ रुपए से अधिक की कीमत की वस्तुओं और सेवाओं के संबंधित शिकायतें राष्ट्रीय सीडीआरसी द्वारा सुनी जाएंगी।
     
  • उत्पाद की जिम्मेदारी (प्रोडक्ट लायबिलिटी): उत्पाद की जिम्मेदारी का अर्थ है, उत्पाद के मैन्यूफैक्चरर, सर्विस प्रोवाइडर या विक्रेता की जिम्मेदारी। यह उसकी जिम्मेदारी है कि वह किसी खराब वस्तु या दोषी सेवा के कारण होने वाले नुकसान या चोट के लिए उपभोक्ता को मुआवजा दे। मुआवजे का दावा करने के लिए उपभोक्ता को बिल में स्पष्ट खराबी या दोष से जुड़ी कम से कम एक शर्त को साबित करना होगा।

 

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