बिल का सारांश 

चार्टर्ड एकाउंटेंट्स, कॉस्ट और वर्क्स एकाउंटेंट्स तथा कंपनी सचिव (संशोधन) बिल, 2021 

  • लोकसभा में 17 दिसंबर, 2021 को चार्टर्ड एकाउंटेंट्स, कॉस्ट और वर्क्स एकाउंटेंट्स तथा कंपनी सचिव (संशोधन) बिल, 2021 को पेश किया गया। बिल चार्टर्ड एकाउंटेंट्स एक्ट, 1949, कॉस्ट और वर्क्स एकाउंटेंट्स एक्ट, 1959 और कंपनी सचिव एक्ट, 1980 में संशोधन करने का प्रयास करता है। ये तीनों एक्ट्स क्रमशः चार्टर्ड एकाउंटेंट्स, कॉस्ट और वर्क्स एकाउंटेंट्स तथा कंपनी सचिव के पेशों के रेगुलेशन का प्रावधान करते हैं। बिल इन एक्ट्स के अंतर्गत अनुशासनात्मक तंत्र को मजबूत करने का प्रयास करता है, और भारतीय चार्टर्ड एकाउंटेंट्स संस्थान, भारतीय कॉस्ट एकाउंटेंट्स संस्थान तथा भारतीय कंपनी सचिव संस्थान के सदस्यों के खिलाफ मामलों के समयबद्ध निपटान का प्रावधान करता है। बिल की मुख्य विशेषताओं में निम्नलिखित शामिल हैं: 
     
  • फर्मों का पंजीकरणबिल कहता है कि फर्मों को संस्थानों में पंजीकरण कराना होगा, और इसके लिए उन्हें संस्थानों की संबंधित परिषदों में आवेदन करना होगा। परिषदों को फर्मों का रजिस्टर बनाना होगा जिसमें किसी भी कार्रवाई योग्य शिकायत के लंबित होने या फर्मों के खिलाफ जुर्माना लगाने जैसे विवरण होने चाहिए। 
     
  • अनुशासन निदेशालयएक्ट्स के अंतर्गत तीन संस्थानों की संबंधित परिषदों में से प्रत्येक को एक अनुशासन निदेशालय बनाना होगा जिसका प्रमुख निदेशक (अनुशासन) होगा जोकि संस्थान का एक अधिकारी हो। बिल कहता है कि प्रत्येक निदेशालय में कम से कम दो संयुक्त निदेशक होने चाहिए।
     
  • एक्ट्स के अंतर्गत शिकायत मिलने पर निदेशक कथित दुर्व्यवहार पर प्रथम दृष्टया राय कायम करता है। दुर्व्यवहार के आधार पर निदेशक उस मामले को अनुशासन बोर्ड या अनुशासन समिति के सामने रखता है। बिल इसमें संशोधन करता है ताकि निदेशक को यह अधिकार दिया जा सके कि वह सदस्यों या फर्मों के खिलाफ स्वतंत्र रूप से जांच शुरू करे। शिकायत मिलने के 30 दिनों के भीतर निदेशक को यह तय करना होगा कि उस शिकायत पर कार्रवाई होनी चाहिए अथवा नहीं। अगर शिकायत कार्रवाई योग्य है तो निदेशक को 30 दिनों के भीतर बोर्ड या समिति (जैसा भी मामला हो) को प्रारंभिक जांच रिपोर्ट सौंपनी होगी। एक्ट्स के अंतर्गत बोर्ड या समिति की अनुमति मिलने पर शिकायत वापस ली जा सकती है। बिल में प्रावधान है कि निदेशालय में दर्ज की गई शिकायत को किसी भी स्थिति में वापस नहीं लिया जा सकता।
     
  • अनुशासन बोर्ड: तीनों एक्ट्स के अंतर्गत प्रत्येक परिषद एक अनुशासन बोर्ड का गठन करता है। बोर्ड के सदस्यों में निम्नलिखित शामिल हैं: (i) पीठासीन अधिकारी (कानूनी अनुभव और अनुशासनात्मक मामलों की जानकारी वाले), (ii) दो सदस्य, और (iii) सचिव के रूप में निदेशक (अनुशासन)। चार्टर्ड एकाउंटेंट्स एक्ट, 1949 के अंतर्गत दो में से एक सदस्य को केंद्र सरकार नामित करती है और दूसरा परिषद का सदस्य होता है। दो अन्य एक्ट्स में दोनों सदस्य परिषदों या संस्थानों से होते हैं।
     
  • बिल तीनों परिषदों को कई बोर्ड्स बनाने का अधिकार देता है। पीठासीन अधिकारी और दो में से एक सदस्य को संस्थान का सदस्य नहीं होना चाहिए और उन्हें केंद्र सरकार द्वारा उस पैनल से नामित किया जाएगा जो उसे परिषदें प्रदान करेंगी। संस्थान का कोई उपसचिव स्तर का अधिकारी बोर्ड के सचिव के तौर पर काम करेगा। प्रारंभिक जांच रिपोर्ट मिलने के बाद बोर्ड को 90 दिनों के भीतर अपनी जांच पूरी करनी होगी।
     
  • अनुशासन समितितीनों एक्ट्स के अंतर्गत परिषदें अनुशासन समितियों का गठन करती हैं। इनमें निम्नलिखित शामिल होते हैं: (i) पीठासीन अधिकारी (परिषद के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष), (ii) परिषद से चुने गए दो सदस्य, और (iii) केंद्र सरकार द्वारा नामित दो सदस्य। बिल एक्ट्स में संशोधन करता है और प्रावधान करता है कि पीठासीन अधिकारी को संस्थानों का सदस्य नहीं होना चाहिए और उसे केंद्र सरकार द्वारा नामित होना चाहिए। समिति को प्रारंभिक जांच रिपोर्ट मिलने के 180 दिनों के भीतर अपनी जांच पूरी करनी चाहिए। 
     
  • सजाएक्ट्स के अंतर्गत पेशेवर या दूसरे दुर्व्यवहार के मामलों में समितियां निम्नलिखित कर सकती हैं: (i) संस्थान के रजिस्टर से सदस्य का नाम हटाना या उसे फटकार लगाना, या (ii)  पांच लाख रुपए तक का जुर्माना लगाना। बिल जुर्माने की अधिकतम राशि को दस लाख रुपए करता है। बिल यह भी जोड़ता है कि अगर फर्म का पार्टनर या मालिक पिछले पांच वर्षों में दोबारा दुर्व्यवहार का अपराधी पाया जाता है तो समिति फर्म के खिलाफ कार्रवाई कर सकती है। इस कार्रवाई में निम्नलिखित शामिल हैं: (i) फर्म को चार्टर्ड एकाउंट, कॉस्ट एकाउंटेंट या कंपनी सचिव के पेशे से संबंधित कार्य करने से अधिकतम दो वर्ष के लिए, जैसा भी मामला हो, प्रतिबंधित करना, या (ii) अधिकतम 50 लाख रुपए तक का जुर्माना लगाना।  

 

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