बिल का सारांश

टैक्सेशन कानून (संशोधन) बिल, 2019

  • वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 25 नवंबर, 2019 को लोकसभा में टैक्सेशन कानून (संशोधन) बिल, 2019 पेश गया। यह बिल सितंबर 2019 में जारी अध्यादेश का स्थान लेता है। बिल इनकम टैक्स एक्ट, 1961 (आईटी एक्ट) और फाइनांस (संख्या 2) एक्ट, 2019 में संशोधन करता है। बिल में प्रावधान है कि कुछ कटौतियों का दावा न करने वाली घरेलू कंपनियों के पास निचली दर पर टैक्स चुकाने का विकल्प है। यह कैपिटल गेन्स पर सरचार्ज की वसूली से संबंधित कुछ प्रावधानों में भी संशोधन करता है।
     
  • घरेलू कंपनियों के लिए 22% की टैक्स दर: वर्तमान में 400 करोड़ रुपए तक के वार्षिक टर्नओवर वाली घरेलू कंपनियां 25% की दर से इनकम टैक्स चुकाती हैं। दूसरी घरेलू कंपनियों के लिए यह दर 30% है। बिल में प्रावधान है कि अगर घरेलू कंपनियां इनकम टैक्स एक्ट के अंतर्गत कुछ कटौतियों का दावा नहीं करतीं तो उनके पास 22% की दर से इनकम टैक्स चुकाने का विकल्प है। इनमें निम्नलिखित के लिए प्रदत्त कटौतियां शामिल हैं: (i) स्पेशल इकोनॉमिक जोन्स के अंतर्गत स्थापित नई यूनिट्स, (ii) अधिसूचित पिछड़े क्षेत्रों में नए संयंत्र या मशीनरी में निवेश करना, (iii) वैज्ञानिक अनुसंधान, कृषि विस्तारीकरण और कौशल विकास के प्रॉजेक्ट्स पर व्यय, (iv) नए संयंत्र या मशीनरी का ह्रास (कुछ मामलों में), और (v) इनकम टैक्स एक्ट में विभिन्न प्रावधान (अध्याय VI-ए के अंतर्गत)।
     
  • नई घरेलू मैन्यूफैक्चरिंग कंपनियों के लिए 15% की टैक्स दर: अगर नई घरेलू मैन्यूफैक्चरिंग कंपनियां एक्ट के अंतर्गत उपरिलिखित के अनुसार कुछ कटौतियों का दावा नहीं करतीं, तो वे 15% की दर से इनकम टैक्स चुकाने का विकल्प चुन सकती हैं। उन्हें 30 सितंबर, 2019 के बाद स्थापित और रजिस्टर होना चाहिए और 1 अप्रैल, 2023 से पहले मैन्यूफैक्चरिंग शुरू कर देना चाहिए। इनमें निम्नलिखित कंपनियां शामिल नहीं होंगी: (i) मौजूदा व्यापार के विभाजन या पुनर्निर्माण से बनी कंपनियां, (ii) मैन्यूफैक्चरिंग के अलावा दूसरे व्यापार में संलग्न, और (iii) भारत में पहले इस्तेमाल होने वाले संयंत्र या मशीनरी का प्रयोग करने वाली कंपनियां (कुछ विशिष्ट शर्तों को छोड़कर)।
     
  • बिल कुछ विशिष्ट कारोबार की व्याख्या करता है जिन्हें मैन्यूफैक्चरिंग का कारोबार नहीं माना जाएगा। इनमें निम्नलिखित शामिल हैं: (i) कंप्यूटर सॉफ्टवेयर का विकास, (ii) खनन, (iii) किताबों की प्रिंटिंग, (iv) सिनेमैटोग्राफ फिल्मों का निर्माण, और (v) सरकार द्वारा अधिसूचित कोई व्यवसाय।
     
  • टैक्स की नई दरों की एप्लिकेबिलिटी: कंपनियां 2019-20 के वित्तीय वर्ष से नई टैक्स दरों (यानी आकलन वर्ष 2020-21) का विकल्प चुन सकती हैं। एक बार विकल्प चुनने के बाद आगे के वर्षों में यही विकल्प लागू होगा। अगर नए विकल्प चुनने वाली कंपनियां कुछ शर्तों का पालन नहीं करतीं तो वे उस वर्ष और आगे के वर्षों के लिए नए विकल्प का प्रयोग नहीं कर सकतीं। कुछ मामलों में अगर किसी कंपनी के लिए 15% टैक्स दर का विकल्प अवैध हो जाता है तो वह 22% टैक्स दर को चुन सकती हैं।
     
  • टैक्स की नई दरों पर सरचार्ज: वर्तमान में एक से 10 करोड़ रुपए के बीच की आय वाली घरेलू कंपनियों को टैक्स पर 7% सरचार्ज देना होता है। 10% करोड़ रुपए से अधिक की आय वाली कंपनियों को 12% सरचार्ज देना होता है। बिल में प्रावधान है कि नई टैक्स दरों (15% या 22%, जो भी लागू हो) को चुनने वाली कंपनियों को संबंधित प्रावधान के अंतर्गत 10% सरचार्ज देना होगा।
     
  • न्यूनतम वैकल्पिक टैक्स (मैट): बिल ने वित्तीय वर्ष 2019-20 से मैट की दर 5% से 15% की है। कुछ मामलों में कंपनी को अपने लाभ का एक निश्चित प्रतिशत टैक्स के रूप में चुकाना होता है। जिस दर पर यह टैक्स चुकाया जाता है, वह मैट कहलाती है। मैट उन स्थितियों में लागू होता है, जब एक्ट के अंतर्गत कटौतियों का दावा करने के बाद कंपनी का देय टैक्स मैट द्वारा निर्धारित राशि से कम हो। बिल विनिर्दिष्ट करता है कि नई दरों पर टैक्स चुकाने का विकल्प चुनने वाली घरेलू कंपनियों पर मैट लागू नहीं होगा।
     
  • कैपिटल गेन्स पर सरचार्ज: कुछ मामलों में सिक्योरिटीज़ के ट्रांसफर होने से प्राप्त होने वाले कैपिटल गेन्स पर टैक्स और सरचार्ज वसूले जाते हैं। इनमें निम्नलिखित शामिल हैं: (i) सिक्योरिटीज़ से विदेशी संस्थागत निवेशकों को होने वाले कैपिटल गेन्स (विदेशी मुद्रा में खरीदी जाने वाली यूनिट्स के अतिरिक्त), और (ii) व्यक्तियों, व्यक्तियों के निकायों और व्यक्तियों के संगठनों को लघु अवधि और दीर्घावधि की सिक्योरिटीज़ (जैसे कंपनियों में इक्विटी शेयर और इक्विटी ओरिएंटेड फंड्स एवं बिजनेस ट्रस्ट्स) से प्राप्त होने वाले कैपिटल गेन्स, जिन पर सिक्योरिटीज़ ट्रांजैक्शन टैक्स लगते हैं।
     
  • इन मामलों में सरचार्ज निम्नलिखित दर पर लागू होता है: (i) 50 लाख से एक करोड़ रुपए के बीच की आय पर टैक्स का 10%, (ii) एक करोड़ से दो करोड़ रुपए के बीच की आय पर टैक्स का 15%, (iii) दो करोड़ से पांच करोड़ रुपए के बीच की आय पर टैक्स का 25%, और (iv) पांच करोड़ रुपए से अधिक की आय पर टैक्स का 37%। बिल दो करोड़ रुपए से अधिक की कुल आय पर कैपिटल गेन्स की कटौती (उपरिलिखित के अनुसार) की अनुमति देता है। इसके अतिरिक्त ऐसे मामलों में कैपिटल गेन्स की कटौती के बाद अगर संशोधित कुल आय दो करोड़ रुपए से कम या उसके बराबर है तो 15% की फ्लैट दर पर सरचार्ज वसूला जाएगा।
     
  • शेयरों के बाय-बैक पर टैक्स: शेयरों के बाय-बैक का अर्थ है, कंपनी द्वारा खुद अपने शेयरों को खरीदना। जब कंपनी इस प्रकार की खरीद से आय अर्जित करती है (मूल इश्यू प्राइज के मुकाबले बढ़ा हुआ शेयर प्राइज), तो कंपनी को इस आय पर 20% टैक्स चुकाना होता है। बिल कुछ लिस्टेड कंपनियों को इस नियम से छूट देता है। इनमें वे कंपनियां शामिल हैं जिन्होंने 5 जुलाई, 2019 से पहले शेयरों के बाय-बैक से संबंधित घोषणा की है (सिक्योरिटीज़ एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया (सिक्योरिटीज़ का बाय-बैक) रेगुलेशन, 2018 के प्रावधानों के अनुरूप)।

  

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