बिल का सारांश

क्वालिफाइड फाइनांशियल कॉन्ट्रैक्ट्स की द्विपक्षीय नेटिंग बिल, 2020

  • लोकसभा में 14 सितंबर, 2020 को क्वालिफाइड फाइनांशियल कॉन्ट्रैक्ट्स की द्विपक्षीय नेटिंग बिल, 2020 पेश किया गया। यह बिल उन क्वालिफाइड फाइनांशियल कॉन्ट्रैक्ट्स की द्विपक्षीय नेटिंग के लिए कानूनी संरचना प्रदान करता है जो ओवर द काउंटर डेरेवेटिव्स कॉन्ट्रैक्ट्स हैं।
  • द्विपक्षीय नेटिंग: दो पक्षों के बीच सौदे से उत्पन्न दावों की भरपाई को नेटिंग कहा जाता है जिसमें एक पक्ष से दूसरे पक्ष को देय या प्राप्य राशि का निर्धारण किया जाता है। बिल क्वालिफाइड फाइनांशियल कॉन्ट्रैक्ट्स की नेटिंग को लागू करता है।
  • क्वालिफाइड फाइनांशियल कॉन्ट्रैक्ट्स (क्यूएफसी): क्यूएफसी ऐसा कोई भी द्विपक्षीय कॉन्ट्रैक्ट है जिसे संबंधित अथॉरिटी ने क्यूएफसी के तौर पर अधिसूचित किया है। यह अथॉरिटी भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई), सिक्योरिटी एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया (सेबी), इंश्योरेंस रेगुलेटरी एंड डेवलपमेंट अथॉरिटी ऑफ इंडिया (इरडा), पेंशन फंड रेगुलेटरी एंड डेवलपमेंट अथॉरिटी (पीएफआरडीए) या इंटरनेशनल फाइनांशियल सर्विसेज़ अथॉरिटी (आईएफएससीए) हो सकती है। केंद्र सरकार अधिसूचना के जरिए कुछ पक्षों के बीच या कुछ शर्तों वाले कॉन्ट्रैक्ट्स को क्यूएफसी की सूची से हटा सकती है।
  • क्वालिफाइड फाइनांशियल मार्केट भागीदार: संबंधित अथॉरिटी अधिसूचना के जरिए अपने द्वारा रेगुलेट किसी एंटिटी को क्वालिफाइड फाइनांशियल मार्केट भागीदार के तौर पर नामित कर सकती है जो क्यूएफसी से संबंधित कार्य करती हो। इसमें नॉन बैंकिंग फाइनांस कंपनियां (एनबीएफसी), बीमा कंपनियां और पेंशन फंड जैसी एंटिटी शामिल हैं।
  • एप्लिकेबिलिटी: बिल के प्रावधान दो क्वालिफाइड मार्केट भागीदारों के बीच क्यूएफसी पर लागू होंगे जिसमें से कम से कम एक पक्ष निर्दिष्ट अथॉरिटी (आरबीआई, सेबी, इरडा, पीएफआरडीए या आईएफएससीए) द्वारा रेगुलेटेड है।
  • नेटिंग का लागू होना (एनफोर्सेबिलिटी): बिल में प्रावधान है कि क्यूएफसी की नेटिंग उस स्थिति में लागू की जाएगी, जब कॉन्ट्रैक्ट में नेटिंग एग्रीमेंट हो। नेटिंग एग्रीमेंट एक ऐसा एग्रीमेंट है जिसमें दो या उससे अधिक क्यूएफसीज़ से संबंधित राशि की नेटिंग का प्रावधान होता है। नेटिंग एग्रीमेंट में कोलेट्रेल अरेंजमेंट भी शामिल हो सकता है। कोलेट्रल अरेंजमेंट एक किस्म की सुरक्षा होती है जोकि नेटिंग एग्रीमेंट में एक या उससे अधिक क्यूएफसी को दी जाती है। इसमें एसेट्स का वचन देना, या कोलेट्रल या थर्ड पार्टी गारंटर को टाइटल ट्रांसफर करने से संबंधित समझौता शामिल हो सकता है। एक नेटिंग समझौते में नॉन क्वालिफाइड फाइनांशियल कॉन्ट्रैक्ट्स को शामिल करने से समझौते के अंतर्गत क्यूएफसी की नेटिंग की एनफोर्सेबिलिटी अमान्य नहीं होगी।
  • क्लोज-आउट नेटिंग की व्यवस्था: क्लोज-आउट नेटिंग का अर्थ है, संबंधित क्यूएफसी के सभी दायित्वों का खत्म होना। इस प्रक्रिया को क्यूएफसी का कोई पक्ष निम्नलिखित स्थितियों में शुरू कर सकता है: (i)  किसी पक्ष द्वारा डीफॉल्ट (क्यूएफसी के दायित्व को पूरा न करना), या (ii) समाप्ति की घटना, जैसा कि नेटिंग एग्रीमेंट में निर्दिष्ट हो, जोकि एक या दोनों पक्षों को एग्रीमेंट के अंतर्गत लेनदेन को समाप्त करने का अधिकार देती हो। अगर एक पक्ष को एडमिनिस्ट्रेशन में रखा गया है, तो उस पक्ष या एडमिनिस्ट्रेशन प्रैक्टीशनर की सहमति जरूरी नहीं है। एडमिनिस्ट्रेशन का अर्थ मोराटोरियम में रखना, वाइंडिंग अप की प्रक्रिया, इनसॉल्वेंसी या बैंकरप्सी इत्यादि आते हैं। एडमिनिस्ट्रेशन प्रैक्टीशनर एक ऐसी एंटिटी है जोकि उस पक्ष के मामलों का प्रबंधन करता है।
  • क्यूएफसी के पक्षों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि कॉन्ट्रैक्ट के अंतर्गत एक पक्ष से दूसरे पक्ष को देय सभी दायित्व एकल शुद्ध राशि में बदल जाएं। नेटिंग से क्यूएफसी से उत्पन्न मौजूदा और भविष्य के दायित्वों को लिक्विडेट कर दिया जाएगा। क्लोज- आउट नेटिंग के अंतर्गत देय/प्राप्य शुद्ध राशि निम्नलिखित के जरिए निर्धारित की जाएगी: (i) पक्षों द्वारा किए गए नेटिंग एग्रीमेंट के अनुसार, अगर वह मौजूद है, या (ii) पक्षों के बीच एग्रीमेंट के जरिए, या (iii) मध्यस्थता के जरिए। अगर एग्रीमेंट में कुछ और प्रावधान नहीं है तो कोलेट्रल अरेंजमेंट के अंतर्गत दिए गए कोलेट्रल को किसी एंटिटी की सहमति के बिना लिक्विडेट किया जा सकता है।
  • क्लोज-आउट नेटिंग का लागू होना: क्लोज-आउट नेटिंग इनसॉल्वेंट पक्ष या कोलेट्रेल देने वाले व्यक्ति (अगर एप्लिकेबल है) पर लागू किया जाता है। क्लोज-आउट ऐसे पक्ष पर भी लागू किया जाता है जिसे एडमिनिस्ट्रेशन के अंतर्गत रखा गया है, और यह निषेधाज्ञा, मोराटोरियम, इनसॉल्वेंसी, रेज़ोल्यूशन, वाइंडिंग अप या किसी कानून के अंतर्गत जारी अदालती आदेश के बावजूद लागू होता है।
  • एडमिनिस्ट्रेशन प्रैक्टीशनर की शक्तियों की सीमा तय: एडमिनिस्ट्रेशन प्रैक्टीशनर इनसॉल्वेंट पक्ष या नॉन इनसॉल्वेंट पक्ष के बीच किसी नेटिंग एग्रीमेंट के अधीन या उसके संबंध में कैश ट्रांसफर, कोलेट्रल या किसी अन्य हितों को बेअसर नहीं कर सकता।  
  • अनुसूचियों में संशोधन की शक्ति: केंद्र सरकार अधिसूचना के जरिए उन अथॉरिटीज़ और एक्ट्स की सूची में संशोधन कर सकती है जोकि क्यूएफसी की पक्षकार एंटिटीज़ को रेगुलेट करते हैं।

 

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