लेजिसलेटिव ब्रीफ

कंपनी एक्ट, 2013 का संशोधन मसौदा

बिल के मसौदे की मुख्‍य विशेषताएं

  • मसौदा बिल कहता है कि कंपनी और उसके समूह की दूसरी कंपनियों के साथ किसी स्वतंत्र निदेशक का कुल मौद्रिक संबंध, उसकी कुल आय के 25% हिस्से से ज्यादा नहीं होना चाहिए।
     
  • एक्ट में यह अपेक्षा की गई है कि कुछ कंपनियां अपने लाभ का 2% हिस्सा कॉरपोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी (सीएसआर) प्रॉजेक्ट्स पर खर्च करेंगी। अगर इतनी राशि खर्च नहीं की जाती तो कंपनी को अपनी वार्षिक रिपोर्ट में इसका कारण बताना पड़ेगा। मसौदा बिल सीएसआर फंड्स को तीन वर्षों में खर्च करने का प्रावधान करता है।

प्रमुख मुद्दे और विश्‍लेषण

  • मसौदा बिल सीएसआर फंड्स को खर्च करने का प्रावधान करता है। कुछ लोगों का कहना है कि सीएसआर फंड्स को खर्च करना अनिवार्य किया जाना चाहिए। दूसरों का कहना है कि इन फंड्स को खर्च न करने के कारण बताने से कानून के अनुपालन पर पर्याप्त नजर रखी जा सकती है।
     
  • एक्ट के अंतर्गत निदेशकों का इस्तीफा तत्काल प्रभावी माना जाता है। मसौदा बिल कहता है कि स्वतंत्र निदेशकों के इस्तीफे को 30 दिन बाद प्रभावी माना जाएगा। इससे कंपनी पर उनकी देयता (लायबिलिटी) की अवधि बढ़ सकती है।

भाग क : बिल की मुख्य विशेषताएं

संदर्भ

कंपनी एक्ट, 2013 सभी तरह की कंपनियों को बनाने, उनके कामकाज और उन्हें समाप्त करने को रेगुलेट करता है। जुलाई 2018 में सरकार ने एक्ट के अंतर्गत अपराधों की समीक्षा करने के लिए एक कमिटी का गठन किया था।[1] कमिटी ने कंपनी की प्रबंधन संबंधी संरचना को मजबूत करने के लिए कुछ सुझाव दिए। जैसे कंपनी के साथ स्वतंत्र निदेशकों के मौद्रिक संबंधों से जुड़े प्रावधानों में बदलाव और कंपनी के लाभ प्राप्त (बेनेफिशियल) शेयरहोल्डर्स की पहचान। इन सुझावों के आधार पर कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय ने नवंबर 2018 में एक्ट के संशोधन मसौदे को प्रकाशित किया (मसौदा बिल)।

प्रमुख विशेषताएं

  • डीमेटीरियलाइज्ड शेयरों को जारी करना: एक्ट के अंतर्गत कुछ विशेष श्रेणी की पब्लिक कंपनियों से केवल डीमैटीरियलाइज्ड प्रारूप में शेयरों को जारी करने की अपेक्षा की जाती है। यह प्रावधान दूसरी श्रेणी की कंपनियों के लिए भी अनिवार्य किया गया है।
     
  • स्वतंत्र निदेशक: एक्ट के अंतर्गत स्वतंत्र निदेशक का पारिश्रमिक या कंपनी के साथ उसका लेनदेन पिछले दो वर्षों में उसकी कुल आय के 10% हिस्से से अधिक नहीं होना चाहिए। मसौदा बिल कहता है कि कंपनी और उसके समूह की दूसरी कंपनियों के साथ निदेशक का कुल मौद्रिक संबंध, उसकी आय के 25% हिस्से से ज्यादा नहीं होना चाहिए। इस आय में कंपनी की सेवाओं के लिए उसे प्राप्त होने वाली आय 10% से अधिक नहीं होनी चाहिए।
     
  • केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित संस्था के मूल्यांकन के बाद ही कोई व्यक्ति स्वतंत्र निदेशक के रूप नियुक्त किया जा सकता है। लेकिन सरकार किसी व्यक्ति को इस मूल्यांकन से छूट दे सकती है।
     
  • इसके अतिरिक्त मसौदा बिल कहता है कि कंपनी के स्वतंत्र निदेशक का इस्तीफा, उसके नोटिस देने के 30 दिन बाद लागू होगा।
     
  • धर्मार्थ कंपनियां: एक्ट के अंतर्गत एक अलाभकारी धर्मार्थ कंपनी (सेक्शन 8 के अंतर्गत) कुछ नियमों का पालन करने के बाद किसी दूसरी प्रकार की कंपनी में बदली जा सकती है। इस प्रावधान को हटा दिया गया है।  
     
  • कॉरपोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी (सीएसआर) : एक्ट के अंतर्गत एक निश्चित शुद्ध संपत्ति (नेट वर्थ), टर्नओवर या मुनाफे वाली कंपनियों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे अपने तीन वित्तीय वर्षों के औसत शुद्ध लाभ का 2% हिस्सा अपनी सीएसआर नीति पर खर्च करेंगी। अगर सीएसआर फंड्स को पूरी तरह खर्च नहीं किया जाता, तो कंपनी को अपनी वार्षिक रिपोर्ट में इसका कारण बताना होगा। मसौदा बिल के अनुसार किसी एक वर्ष में खर्च न होने वाली राशि को वित्तीय वर्ष समाप्त होने के 30 दिनों के अंदर अनस्पेंड सीएसआर एकाउंट में ट्रांसफर करना होगा और उसे ट्रांसफर की तिथि के तीन वर्षों के अंदर खर्च करना होगा।
     
  • स्ट्राइकिंग ऑफ: अगर कंपनी का नाम रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज से हटा दिया जाता है तो कंपनी भंग हो जाती है। मसौदा बिल के अनुसार भंग होने के बाद कंपनी की संपत्तियां बोर्ड ऑफ एडमिनिस्ट्रेटर्स (बीओए) में निहित हो जाएंगी। इस बोर्ड को सरकार द्वारा बनाया जाएगा। बोर्ड कंपनी की संपत्तियों की बिक्री कर सकता है और उससे प्राप्त होने वाली आय को भारत के समेकित कोष में जमा कर देगा। यह प्रावधान 26 दिसंबर, 2016 से लागू होगा (जब यह प्रावधान अधिसूचित किया गया था)। एनसीएलटी उस कंपनी का नाम रजिस्ट्रार में 20 वर्षों के अंदर बहाल कर सकता है। बहाली के बाद संपत्ति की बिक्री से प्राप्त आय को कंपनी को लौटाया जा सकता है। जो संपत्ति नहीं बेची गई है, वह भी बोर्ड द्वारा लौटाई जा सकती है।
     
  • पद धारण करने पर प्रतिबंध: एक्ट के अंतर्गत केंद्र सरकार या कुछ शेयरहोल्डर्स कंपनी में कुप्रबंधन के खिलाफ राहत देने के लिए एनसीएलटी में आवेदन कर सकते हैं। मसौदा बिल कहता है कि इस आवेदन में सरकार फ्रॉड या लापरवाही जैसे कारण बताते हुए कंपनी के किसी अधिकारी के खिलाफ मामला भी बना सकती है और कह सकती है कि वह कंपनी में अपने पद पर बने रहने लायक नहीं है। अगर एनसीएलटी उस अधिकारी के खिलाफ आदेश जारी करता है तो वह पांच वर्षों तक किसी भी कंपनी में किसी भी पद पर नहीं रह सकता।  

भाग ख: प्रमुख मुद्दे और विश्‍लेषण

कॉरपोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी (सीएसआर) नीतियों पर व्यय

सीएसआर नीतियों पर खर्च करने की अनिवार्यता

एक्ट के अंतर्गत कुछ कंपनियों से यह सुनिश्चित करने की अपेक्षा की जाती है कि वे अपने पिछले तीन वित्तीय वर्षों के औसत शुद्ध लाभों के कम से कम 2% हिस्से को उसी वर्ष कंपनी के सीएसआर प्रॉजेक्ट्स पर खर्च करें। अगर कंपनी को पर्याप्त लाभ नहीं होता या वह सीएसआर प्रॉजेक्ट्स पर निर्धारित राशि खर्च नहीं करती, तो उसे अपनी वार्षिक रिपोर्ट में इसका कारण स्पष्ट करना होगा। मसौदा बिल कहता है कि खर्च न होने वाली राशि को एक अलग अनस्पेंड सीएसआर एकाउंट में ट्रांसफर किया जाना चाहिए और तीन वर्षों में उसे खर्च किया जाना चाहिए। प्रश्न यह है कि क्या वार्षिक रिपोर्ट में कारण बताना पर्याप्त है या क्या उसे खर्च करना अनिवार्य किया जाना चाहिए।

सीएसआर पर गठित कमिटी (2015) में कहा गया था कि सीएसआर प्रॉजेक्ट्स को शुरू करने में लंबा समय लगता है। इस कारण इस मद की राशि खर्च नहीं हो पाती।[2]  कमिटी ने सुझाव दिया था कि कंपनियों को खर्च न होने वाली राशि को अगले साल ट्रांसफर कर देना चाहिए और पांच वर्ष बाद उसे एक्ट के अंतर्गत सूचीबद्ध फंड्स में से किसी एक फंड (जैसे पीएम राहत कोष) में ट्रांसफर कर देना चाहिए। हालांकि पिछले कई वर्षों से विभिन्न कमिटियों ने यह सुझाव दिया था कि वार्षिक रिपोर्ट में सीएसआर फंड्स को खर्च न करने के कारण बताना पर्याप्त है।[3],[4]    

वित्तीय वर्ष के समाप्त होने के तीस दिनों के अंदर अनस्पेंड सीएसआर फंड्स का ट्रांसफर जरूरी  

मसौदा बिल में अपेक्षा की गई है कि सीएसआर की जो राशि खर्च नहीं हुई है, उसे वित्तीय वर्ष के समाप्त होने के 30 दिनों के अंदर अनस्पेंड सीएसआर एकाउंट में ट्रांसफर कर दिया जाना चाहिए। कंपनियों के लिए 30 दिनों के अंदर अपने सीएसआर व्यय को ऑडिट करके उसे किसी फंड में ट्रांसफर करना मुश्किल हो सकता है।

ऑडिट में यह अपेक्षा की जाती है कि कंपनी के वित्तीय वक्तव्य की विस्तृत जांच की जाएगी। इसके बाद ऑडिट को कंपनी के बोर्ड द्वारा मंजूर किया जाता है और वार्षिक आम बैठक में उसे प्रस्तुत किया जाता है। संभव है कि कंपनियां 30 दिनों में इस प्रक्रिया को पूरा न कर पाएं। इसके फलस्वरूप ऐसी स्थिति उत्पन्न हो सकती है कि फंड्स को तात्कालिक (प्रोविजनल) व्यय के आधार पर ट्रांसफर कर दिया जाए। संभव है कि यह ऑडिट किए हुए सीएसआर फंड्स से मेल न खाए। ऐसी स्थिति में कंपनी को इस आधार पर सजा दी जा सकती है कि उसने मसौदा बिल के प्रावधानों का पालन नहीं किया। उल्लेखनीय है कि एक्ट के सेक्शन 96 के अंतर्गत कंपनियों को अपने ऑडिट एकाउंट्स को अंतिम रूप देने के लिए छह महीने की मोहलत दी जाती है।

इस्तीफे के बाद स्वतंत्र निदेशकों की लायबिलिटी की अवधि को बढ़ाना

एक्ट के अंतर्गत किसी निदेशक का इस्तीफा उस तारीख से प्रभावी माना जाता है, जिस तारीख को उसने इस्तीफे का पत्र दिया हो, या जिस तारीख को कंपनी ने उस पत्र को प्राप्त किया हो (इन दोनों में से जो तारीख बाद की हो)। मसौदा बिल के अनुसार कंपनी द्वारा नोटिस प्राप्त करने की तारीख के बाद 30वें दिन इस्तीफा प्रभावी माना जाएगा। यह प्रश्न किया जा सकता है कि स्वतंत्र निदेशक के इस्तीफे की प्रभावी तारीख को बढ़ाना, क्या उचित है।

स्वतंत्र निदेशक को अपने कार्यकाल के दौरान कंपनी के अनुचित कार्यों के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है, अगर वे कार्य उसकी जानकारी में हों, सहमति से हों या अगर उसने सक्रिय रूप से अपनी जिम्मेदारी न निभाई हो। अगर इस्तीफा तत्काल प्रभावी नहीं होगा तो इस्तीफा देने के बाद भी उपरिलिखित परिस्थितियों में स्वतंत्र निदेशक को जिम्मेदार ठहाराया जा सकेगा।

 

[1].  Report of the Committee to Review Offences Under the Companies Act, 2013, August 14, Ministry of Corporate Affairs.

[2]Report of the High Level Committee on CSR, Ministry of Corporate Affairs, September 2015.

[3].  The Companies Bill, 2009, Standing Committee on Finance, 21st Report, 15th Lok Sabha, August 31, 2010.

[4]Report of the Company Law Committee, Ministry of Corporate Affairs, February 2016.

 

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