लेजिसलेटिव ब्रीफ

मोटर वाहन (संशोधन) बिल, 2016

बिल की मुख्‍य विशेषताएं

  • बिल थर्ड पार्टी इंश्योरेंस, टैक्सी एग्रीगेटरों के रेगुलेशन और सड़क सुरक्षा जैसे विषयों को संबोधित करने के लिए मोटर वाहन एक्ट, 1988 में संशोधन करता है।
     
  • एक्ट के तहत, मोटर वाहन दुर्घटनाओं में थर्ड पार्टी इंश्योरर का दायित्व असीमित है। बिल मोटर दुर्घटना होने पर थर्ड पार्टी इंश्योरेंस की अधिकतम सीमा, मृत्यु की स्थिति में 10 लाख रुपए और गंभीर चोट की स्थिति में पांच लाख रुपए निर्धारित करता है।
      
  • बिल मोटर वाहन दुर्घटना फंड का प्रावधान करता है जो भारत में सड़कों का प्रयोग करने वाले व्यक्तियों को कुछ विशेष प्रकार की दुर्घटनाओं की स्थिति में अनिवार्य बीमा कवर प्रदान करेगा।
     
  • बिल टैक्सी एग्रीगेटरों की परिभाषा प्रदान करता है, जिससे संबंधित दिशानिर्देशों को केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित किया जाएगा।
  • बिल निम्न प्रावधान करता है: (i) ड्राइवर लाइसेंसिंग की मौजूदा श्रेणियों में संशोधन, (ii) खराबी होने पर वाहनों का रीकॉल, (iii) दीवानी या आपराधिक कार्रवाई से नेक व्यक्तियों का संरक्षण, और (iv) 1988 के एक्ट के तहत अनेक अपराधों पर दंड में वृद्धि।

प्रमुख मुद्दे और विश्‍लेषण

  • बिल थर्ड पार्टी इंश्योरेंस की अधिकतम सीमा तो निर्धारित करता है लेकिन थर्ड पार्टी इंश्योरेंस के लिए अदालतों द्वारा निर्णीत मुआवजे की अधिकतम राशि निर्धारित नहीं करता। अगर अदालतें अधिकतम दायित्व की निर्धारित राशि से अधिक मुआवजा दिए जाने का निर्णय देती हैं तो यह स्पष्ट नहीं है कि शेष राशि का भुगतान कौन करेगा।
     
  • एक्ट के तहत हिट और रन पीड़ितों को सांत्वना कोष से मुआवजा मिलता है। बिल नए मोटर वाहन दुर्घटना कोष की स्थापना का प्रावधान करता है। चूंकि हिट और रन दुर्घटनाओं में मुआवजा देने के लिए एक कोष पहले से मौजूद है, इसलिए नए दुर्घटना कोष की स्थापना का उद्देश्य स्पष्ट नहीं है।
     
  • राज्य केंद्र सरकार के दिशानिर्देशों के अनुसार टैक्सी एग्रीगेटरों को लाइसेंस जारी करेंगे। वर्तमान में राज्य सरकारें टैक्सी चलाने से संबंधित दिशानिर्देश बनाती है। संभव है कि एग्रीगेटरों से संबंधित दिशानिर्देशों पर राज्यों और केंद्र सरकार में भिन्नताएं हों।
     
  • दुर्घटना पीड़ितों को अंतरिम राहत पर प्रस्तावित योजना के प्रावधानों का उल्लंघन करने पर बिल में दंड का प्रावधान है लेकिन ये दंड किन अपराधों के लिए दिए जाएंगे, यह स्पष्ट नहीं है। कहा जा सकता है कि अपराध की प्रकृति को जाने बिना दंड का प्रावधान करना अनुपयुक्त है।

बिल सड़क सुरक्षा से संबंधित अन्य मुद्दों को संबोधित नहीं करता जिन्हें कई दूसरी कमिटियों ने चिन्हित किया है जैसे: (i) सड़क सुरक्षा एजेंसियों की स्थापना, और (ii) सड़क की डिजाइन और इंजीनियरिंग में सुधार करना।

भाग क : बिल की मुख्य विशेषताएं [1]

संदर्भ

पिछले कुछ वर्षों में शहरीकरण और आय बढ़ने के कारण भारत में मोटर वाहनों की संख्य में भी लगातार वृद्धि हो रही है।[2]  2005 से 2013 के बीच भारत में पंजीकृत मोटर वाहनों की संख्या में 123% की वृद्धि हुई।[3] 2005 से 2015 के बीच सड़क दुर्घटनाओं में भी 14% की वृद्धि हुई और इन दुर्घटनाओं में मौतों की संख्या भी 54% बढ़ गई।[4]  इस अवधि में सड़क नेटवर्क में 44% की बढ़ोतरी हुई।[5] 

सड़कों पर वाहनों की संख्या तो बढ़ी लेकिन उसे नियंत्रित करने के लिए कोई समन्वित नीति तैयार नहीं की गई। इसके कारण सड़क दुर्घटनाओं की संख्या मं वृद्धि हुई।2सड़क दुर्घटनाओं की बढ़ती संख्या के मद्देनजर सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने 2007 में सड़क सुरक्षा पर एक कमिटी (चेयर : एस. सुंदर) का गठन किया जिससे सड़क यातायात संबंधी चोटों और मौतों के असर (मैग्नीट्यूड) की जांच की जा सके। कमिटी ने सुझाव दिया कि राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर सड़क सुरक्षा अथॉरिटी बनाई जाएं।[6]  अप्रैल 2016 में केंद्र सरकार ने सड़क परिवहन क्षेत्र में सुधारों के लिए सुझाव देने हेतु राज्य परिवहन मंत्रियों के एक समूह का गठन किया (चेयर : यूनुस खान, परिवहन मंत्री, राजस्थान)। इस समूह ने सुझाव दिया कि सड़क सुरक्षा से जुड़ी समस्याओं के समाधान के लिए मोटर वाहन एक्ट, 1988 में सुधार किया जाना चाहिए।   

मोटर वाहन (संशोधन) बिल, 2016 को लोकसभा में 9 अगस्त, 2016 को सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी द्वारा पेश किया गया। बिल मोटर वाहन एक्ट, 1988 को संशोधित करने का प्रयास करता है। मोटर वाहन एक्ट, 1988 वह प्रमुख केंद्रीय कानून है जोकि मोटर वाहनों की लाइसेंसिंग और पंजीकरण तथा वाहन चालकों को रेगुलेट करता है। यह बिल विभिन्न मुद्दों को संबोधित करता है जैसे सड़क सुरक्षा, थर्ड पार्टी इंश्योरेंस, टैक्सी एग्रीगेटरों का रेगुलेशन, असुरक्षित वाहनों का रीकॉल और सड़क दुर्घटनाओं की स्थिति में पीड़ितों को मुआवजा।

प्रमुख विशेषताएं

  • ड्राइविंग लाइसेंस: 1988 के एक्ट के तहत, ड्राइविंग लाइसेंस 20 वर्ष की अवधि तक वैध रहता है, या जब तक कि व्यक्ति 50 वर्ष का नहीं हो जाता, इनमें से जो पहले हो। 50 वर्ष की आयु के बाद लाइसेंस पांच वर्ष की अवधि के लिए वैध रहता है। बिल इस प्रावधान में संशोधन करते हुए लाइसेंस की वैधता की अनेक श्रेणियां बनाता है। अगर लाइसेंस का आवेदन करने वाले (i) व्यक्ति की उम्र 30 वर्ष से कम है तो उसका लाइसेंस उसके 40 वर्ष का होने तक वैध रहेगा, (ii) व्यक्ति की उम्र 30 से 50 वर्ष के बीच है तो उसका लाइसेंस 10 वर्ष तक वैध रहेगा, (iii) व्यक्ति की उम्र 50 से 55 वर्ष के बीच है तो उसका लाइसेंस उसके 60 वर्ष का होने तक वैध रहेगा, (iv) व्यक्ति की उम्र 55 वर्ष से अधिक है तो उसका लाइसेंस पांच वर्ष की अवधि के लिए वैध रहेगा। 
     
  • एग्रीगेटर लाइसेंस: बिल में एग्रीगेटर को डिजिटल इंटरमीडियरी या मार्केट प्लेस के रूप में पारिभाषित किया गया है। परिवहन के उद्देश्य से ड्राइवर से कनेक्ट होने के लिए यात्री एग्रीगेटर की सेवाओं का इस्तेमाल कर सकता है। राज्य केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित दिशानिर्देशों के आधार पर एग्रीगेटरों को लाइसेंस देगा। एग्रीगेटरों को इनफॉरमेशन टेक्नोलॉजी एक्ट, 2000 का अनुपालन भी करना होगा।
     
  • वाहनों का रीकॉल: बिल केंद्र सरकार को मोटर वाहन को रीकॉल का आदेश देने की अनुमति देता है, अगर वाहन की खराबी के कारण (i) पर्यावरण को नुकसान हो, या (ii) ड्राइवर को नुकसान हो, या (iii) सड़क का प्रयोग करने वाले किसी अन्य को नुकसान हो, या (iv) खराबी के बारे में केंद्र सरकार को सूचित किया गया हो। ऐसे में मैन्यूफैक्चरर को (i) ग्राहकों को वाहन की पूरी कीमत की भरपाई करनी होगी, या (ii) समान या उससे बेहतर स्पेसिफिकेशन वाले वाहन से खराब वाहन को बदलना होगा।
     
  • नेक व्यक्तियों का संरक्षण: बिल कहता है कि नेक व्यक्ति (गुड समैरिटन) ऐसा व्यक्ति होता है जो दुर्घटना के समय पीड़ित की आपात मेडिकल या गैर मेडिकल मदद करता है। यह मदद (i) सदभावना पूर्वक, (ii) स्वैच्छिक, और (iii) किसी पुरस्कार की अपेक्षा के बिना होनी चाहिए। ऐसा व्यक्ति दुर्घटना के शिकार व्यक्ति को किसी प्रकार की चोट लगने या उसकी मृत्यु होने की स्थिति में किसी दीवानी या आपराधिक कार्रवाई के लिए जिम्मेदार नहीं होगा।
     
  • इलेक्ट्रॉनिक सेवाएं: बिल कुछ सेवाओं के कंप्यूटरीकरण का प्रावधान करता है। इनमें निम्नलिखित शामिल हैं: (i) लाइसेंस जारी करना या परमिट देना, (ii) फॉर्म भरना या आवेदन करना (जैसे लाइसेंस और पंजीकरण), (iii) धन की प्राप्ति (जैसे जुर्माना राशि), (iv) पते में परिवर्तन। बिल राज्य सरकारों के लिए यह अनिवार्य करता है कि वे राष्ट्रीय राजमार्गों, राज्य राजमार्गों और शहरी सड़कों की इलेक्ट्रॉनिक निगरानी और प्रवर्तन सुनिश्चित करें। ऐसी निगरानी के लिए केंद्र सरकार द्वारा नियम बनाए जाएंगे। 
     
  • दंड: बिल एक्ट के तहत विभिन्न अपराधों के लिए दंड को बढ़ाता है। उदाहरण के लिए शराब या ड्रग्स के नशे में वाहन चलाने के लिए अधिकतम दंड 2,000 रुपए से बढ़ाकर 10,000 रुपए कर दिया गया है। अगर मोटर वाहन मैन्यूफैक्चरर मोटर वाहनों के निर्माण या रखरखाव के मानदंडों का अनुपालन करने में असफल रहता है तो अधिकतम 100 करोड़ रुपए तक का दंड या एक वर्ष तक का कारावास या दोनों दिए जा सकते हैं।
     
  • मुआवजा और बीमा: बिल मोटर वाहन दुर्घटनाओं की स्थिति में मुआवजे या बीमा प्रावधानों में भी परिवर्तन करता है। इनका विवरण तालिका 1 में दिया गया है। 

तालिका 1: 1988 के एक्ट और 2016 के बिल के तहत मोटर दुर्घटनाओं में मुआवजा

योजना/ कोष

दुर्घटना का प्रकार

प्रबंधन

वित्त पोषण का स्रोत

कवरेज/ मुआवजा

1988 के एक्ट के तहत दुर्घटना का मुआवजा

सांत्वना कोष

हिट और रन

जनरल इंश्योरेंस कॉरपोरेशन (केंद्र सरकार का पूर्ण स्वामित्व)

जनरल इश्योरेंस कॉरपोरेशन (मुख्य रूप से बीमा के अन्य उत्पादों के व्यवसाय से अर्जित प्रीमियम के जरिए)

1988 का एक्ट:

·   गंभीर चोट: 12,000 रुपए

·   मृत्यु: 25,000 रुपए

2016 का बिल:

·   गंभीर चोट: 50,000 रुपए

·   मृत्यु: दो लाख रुपए या अधिक, जैसा केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित किया जाए

सभी मोटर वाहनों के लिए थर्ड पार्टी इंश्योरेंस अनिवार्य

सभी दुर्घटनाएं

बीमा कंपनी

बीमा प्रीमियम

1988 का एक्ट

·   बीमा कंपनी को खर्च की उस पूरी राशि को कवर करना होगा जिसे अदालत ने तय किया है। 

2016 का बिल

·   बीमा कंपनी पर मृत्यु की स्थिति में 10 लाख रुपए तक के और गंभीर चोट की स्थिति में पांच लाख रुपए तक के भुगतान का दायित्व होगा।

2016 के बिल के तहत प्रस्तावित नए फंड

सड़क दुर्घटना के पीड़ितों का कैशलेस उपचार

सभी दुर्घटनाएं

केंद्र सरकार

निर्दिष्ट नहीं

2016 का बिल

गोल्डन आवर (स्वर्णिम घंटा) में सड़क दुर्घटना के पीड़ितों के लिए कैशलेस उपचार: घातक चोट के बाद की वह समयावधि होती है जब तुरंत मेडिकल देखभाल से मौत को मात देने की संभावना सबसे ज्यादा होती है।

थर्ड पार्टी इंश्योरेंस के जरिए मुआवजे का दावा करने वालों के लिए अंतरिम राहत

सभी दुर्घटनाएं

केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित अथॉरिटी

निर्दिष्ट नहीं

2016 का बिल

मुआवजा स्पष्ट नहीं है। 

केंद्र सरकार ऐसी अंतरिम राहत प्रदान करने के लिए योजनाएं बना सकती है।

मोटर वाहन दुर्घटना कोष- अनिवार्य बीमा कवर

§ सभी दुर्घटनाएं (केवल शुरुआती इलाज के लिए),

§ हिट और रन दुर्घटनाएं,

§ दुर्घटनाएं जिसमें किसी की भी गलती तय नहीं की जा सके

केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित अथॉरिटी

(i) केंद्र सरकार द्वारा स्वीकृत सेस या टैक्स, या

(ii) केंद्र सरकार द्वारा प्रदत्त अनुदान या ऋण, या

(iii) केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित कोई अन्य स्रोत

2016 का बिल

·   दुर्घटना में गंभीर रूप से घायल व्यक्ति का तब तक उपचार, जब तक कि वह स्थिर नहीं हो जाता,

·   हिट और रन दुर्घटना में मौत के उन मामलों में मुआवजा, जिनमें किसी व्यक्ति को जिम्मेदार नहीं माना जा सकता,

·   गंभीर चोट के उन मामलों में मुआवजा, जिनमें किसी व्यक्ति को जिम्मेदार नहीं माना जा सकता।

·   प्रत्येक मामले में केंद्र सरकार अधिकतम दायित्व निर्धारित करेगी। 

स्रोत: मोटर वाहन एक्ट, 1988; मोटर वाहन (संशोधन) बिल, 2016; पीआरएस। 

भाग ख:  प्रमुख मुद्दे और विश्‍लेषण

थर्ड पार्टी इंश्योरेंस के लिए सीमित दायित्व के संबंध में स्पष्टता की कमी

थर्ड पार्टी इंश्योरेंस ए नामक व्यक्ति द्वारा मृत्यु, चोट या संपत्ति की हानि की स्थिति में बी नामक व्यक्ति के दावों से स्वयं को सुरक्षित करने के लिए किसी इंश्योरर (बीमा कंपनी) से खरीदा गया दायित्व होता है। 1988 के एक्ट के अंतर्गत सभी मोटर वाहनों के लिए थर्ड पार्टी इंश्योरेंस अनिवार्य है और थर्ड पार्टी इंश्योरर का दायित्व असीमित है। इसका अर्थ यह है कि इंश्योरर को अदालत द्वारा तय किए गए दायित्व की पूरी राशि को कवर करना होगा। वर्तमान में अदालतों द्वारा मुआवजे की राशि की गणना अनेक कारकों के आधार पर की जाती है, जैसे आयु, पीड़ित की आय क्षमता, और यह करोड़ों रुपए तक हो सकता है।[7] 

बिल मोटर दुर्घटना की स्थिति में थर्ड पार्टी इंश्योरेंस के लिए अधिकतम दायित्व निर्धारित करता है। मृत्यु की स्थिति में यह 10 लाख रुपए और गंभीर चोट की स्थिति में पांच लाख रुपए तय किया गया है। इसका अर्थ यह है कि बीमा कंपनी पर केवल इन निर्धारित राशियों तक की राशि को चुकाने का दायित्व है। हालांकि बिल में अदालतों द्वारा निर्धारित मुआवजे की राशि की अधिकतम सीमा तय नहीं की गई है। अगर अदालत बिल में निर्धारित अधिकतम दायित्व से अधिक की मुआवजा राशि का आदेश देती है, तो यह स्पष्ट नहीं है कि शेष राशि को कौन चुकाएगा। इस स्थिति में संभावित स्थितियां क्या हो सकती हैं, इसे निम्नलिखित तालिका 2 में स्पष्ट किया गया है।

तालिका 2: अगर अदालत आदेश देती है कि मुआवजे की राशि 10 लाख रुपए (2016 के बिल के तहत अधिकतम दायित्व) से अधिक होगी तो सीमित दायित्व के कारण किस प्रकार की स्थितियां पैदा होंगी

इंश्योरर का दायित्व

अतिरिक्त राशि का भुगतान

समस्याएं

मामला 1: इंश्योरर पीड़ित के वारिस/प्रतिनिधि को अदालत द्वारा निर्धारित मुआवजे की पूरी राशि चुकाता है।

बीमा कंपनी इंश्योर्ड पक्ष (वाहन के मालिक) से अतिरिक्त राशि को रीकवर करती है।  

किसी व्यक्ति से अतिरिक्त राशि रीकवर करना बीमा कंपनियों के लिए मुश्किल होगा। ऐसे मामलों में, अगर बीमा कंपनियों को अधिकतम दायित्व से अधिक की राशि को चुकाना जारी रखना पड़ता है तो दायित्व की अधिकतम सीमा निर्धारित करने का उद्देश्य विफल हो जाएगा।

मामला 2: इंश्योरर केवल दायित्व की अधिकतम राशि चुकाता है, यानी 10 लाख रुपए।

मोटर वाहन का मालिक पीड़ित के वारिस/प्रतिनिधि को शेष राशि प्रत्यक्ष रूप से चुकाता है।

अगर मोटर वाहन के मालिक की इतनी वित्तीय क्षमता नहीं है कि वह अतिरिक्त मुआवजा राशि चुका सके, तो पीड़ित को पूरा मुआवजा नहीं मिलेगा, जैसा कि अदालत ने निर्धारित किया है। इससे थर्ड पार्टी इंश्योरेंस का उद्देश्य विफल हो जाएगा जोकि यह सुनिश्चित करता है कि दुर्घटना की स्थिति में पीड़ित को मुआवजा प्राप्त हो।[8] 

स्रोत: मोटर वाहन (संशोधन) बिल, 2016; पीआरएस।

असीमित दायित्व के प्रावधान के साथ, हाल के वर्षों में मुआवजे की राशि इतनी बढ़ रही है कि बीमा कंपनियों को थर्ड पार्टी इंश्योरेंस के कारोबार में घाटा उठाना पड़ रहा है।[9] प्रतिक्रियास्वरूप, बीमा के प्रीमियम लगातार बढ़ रहे हैं। 2016-17 में बीमा नियामक और विकास प्राधिकरण (इरडा) ने चार पहिया वाहनों के प्रीमियम को पूर्व की दरों की तुलना में 50% से 83% तक बढ़ाने (इंजन की क्षमता पर निर्भर) का प्रस्ताव रखा था।[10]  इंश्योरर के दायित्व की अधिकतम सीमा निर्धारित करने से भविष्य में मोटर वाहन दुर्घटना बीमा के प्रीमियम के बढ़ने को रोका जा सकता है। 2016 के बिल की पड़ताल करने वाली स्टैंडिंग कमिटी ने दायित्व निर्धारित करने से संबंधित प्रावधान को हटाने का सुझाव दिया है।[11]

उल्लेखनीय है कि भारत के अन्य परिवहन कानून मृत्यु या चोट की स्थिति में मुआवजा की अधिकतम राशि का प्रावधान करते हैं। उदाहरण के लिए कैरिएज बाय एयर एक्ट, 1972 के अंतर्गत मृत्यु या शारीरिक चोट की स्थिति में मुआवजे की अधिकतम राशि एसडीआर 113,100 (3 मार्च, 2017 को एक्सचेंज रेट के आधार पर लगभग 1.02 करोड़ रुपए) है।[12] रेलवे दुर्घटना एवं अप्रिय घटनाएं (मुआवजा) नियम, 1990 के अंतर्गत मृत्यु की स्थिति में मुआवजा राशि चार लाख रुपए और चोट की स्थिति में 32,000 से चार लाख रुपए के बीच (चोट के प्रकार पर निर्भर) है।[13] कुछ देशों, जैसे ब्रिटेन, में थर्ड पार्टी इंश्योरेंस के लिए अधिकतम सीमा निर्धारित की गई है और मोटर वाहन मालिकों को अतिरिक्त प्रीमियम पर अतिरिक्त बीमा खरीदने की अनुमति दी गई है।[14] 

हिट और रन मामलों के लिए फंड के मौजूद होने के कारण नए फंड की जरूरत अस्पष्ट है

बिल में केंद्र सरकार से मोटर वाहन दुर्घटना कोष स्थापित करने की अपेक्षा की गई है जोकि भारत में सड़क का प्रयोग करने वाले सभी व्यक्तियों को निम्नलिखित स्थितियों में अनिवार्य बीमा कवर प्रदान करेगा: (i) दुर्घटना में गंभीर रूप से घायल व्यक्ति का तब तक उपचार, जब तक कि वह स्थिर नहीं हो जाता, और (ii) मौत या गंभीर चोट के उन मामलों में मुआवजा, जिनमें दुर्घटना के लिए किसी व्यक्ति को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। केंद्र सरकार ऐसे मामलों में अधिकतम दायित्व को निर्धारित करेगी। इस कोष में निम्नलिखित के माध्यम से धन जमा किया जाएगा: (i) सेस या कर, जैसा कि केंद्र सरकार द्वारा अनुमोदित किया जाए, (ii) केंद्र सरकार द्वारा दिया गया अनुदान या ऋण, अथवा (iii) केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित अन्य कोई स्रोत।

वर्तमान में, 1988 का एक्ट हिट और रन पीड़ितों को मुआवजा प्रदान करने के लिए सांत्वना कोष का प्रावधान करता है। नया मोटर वाहन दुर्घटना कोष भी हिट और रन दुर्घटनाओं सहित दूसरी दुर्घटनाओं के मामले में मुआवजे का प्रस्ताव रखता है। चूंकि सांत्वना कोष पहले से मौजूद है, ऐसी स्थिति में हिट और रन मामलों में नए मोटर वाहन दुर्घटना कोष का उद्देश्य स्पष्ट नहीं है। उदाहरण के लिए यह स्पष्ट नहीं है कि दुर्घटना के पीड़ितों को एक कोष से मुआवजा मिलेगा या दोनों कोषों से (किसी हिट और रन मामले में)। इसके अतिरिक्त अगर प्रस्तावित मोटर वाहन दुर्घटना कोष को सेस या टैक्स से वित्त पोषित किया जाएगा तो मोटर वाहन मालिकों को अनिवार्य थर्ड पार्टी इंश्योरेंस प्रीमियम के अतिरिक्त टैक्स भी चुकाना पड़ सकता है।

एग्रीगेटर कंपनियों के संबंध में केंद्र के दिशानिर्देशों पर स्पष्टता का अभाव

बिल एग्रीगेटर को ऐसे डिजिटल इंटरमीडियरी या मार्केट प्लेस के रूप में पारिभाषित करता है जिसका प्रयोग यात्री द्वारा परिवहन के उद्देश्य के लिए ड्राइवर से कनेक्ट होने के लिए किया जा सकता है। राज्य केंद्र सरकार द्वारा जारी दिशानिर्देशों के आधार पर एग्रीगेटरों को लाइसेंस जारी करेगा। हालांकि बिल में यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि इन दिशानिर्देशों में क्या शामिल होगा।

वर्तमान में सभी टैक्सी परमिटों (एग्रीगेटरों, रेडियो टैक्सी सहित) को राज्य परिवहन अथॉरिटीज द्वारा जारी किया जाता है। 1988 का एक्ट राज्य परिवहन अथॉरिटीज को इस बात की अनुमति देता है कि वे इन परमिटों में अतिरिक्त शर्तों को भी जोड़ सकती हैं जैसे किराये की दर, यात्रियों की अधिकतम संख्या, टैक्सियों में मीटर लगाने की शर्त, इत्यादि। इसके अनुरूप राज्यों ने टैक्सी ऑपरेशन के लिए अपने खुद के दिशानिर्देश तैयार किए हैं। उदाहरण के लिए दिल्ली में दिल्ली रेडियो टैक्सी स्कीम, 2006 और कर्नाटक में कर्नाटक मोटर वाहन नियम, 1989 लागू है, इत्यादि।[15],[16]हाल ही में, महाराष्ट्र ने महाराष्ट्र राज्य टैक्सी नियम, 2016 का मसौदा जारी किया है। इन नियमों में एग्रीगेटर सेवाओं के विभिन्न पहलुओं, जैसे ऑपरेशनल इंफ्रास्ट्रक्चर, वाहन की प्रोफाइल, ड्राइवर की प्रोफाइल, लाइसेंस देना और टैक्सी का किराया, पर दिशानिर्देश दिए गए हैं।[17] 

कुल मिलाकर, राज्य सरकारें टैक्सियों से संबंधित दिशानिर्देशों को निर्धारित करती हैं (जैसे वाहन चलने से संबंधित नियम)। दूसरी ओर एग्रीगेटरों से जुड़े दिशानिर्देश (जिसमें टैक्सी के रूप में किसी वाहन को चलाने से जुड़ी शर्तें भी शामिल हो सकती हैं) बनाने का काम केंद्र सरकार द्वारा किया जाता है। ऐसे में इस तरह के मामले भी हो सकते हैं जिनमें राज्यों के दिशानिर्देश केंद्र के दिशानिर्देशों से भिन्न हों। अगर ऐसी स्थिति होगी तो केंद्र सरकार के दिशानिर्देश बहाल होंगे क्योंकि मोटर वाहन कानून संविधान की सातवीं अनुसूची की समवर्ती सूची में आते हैं।[18]  2016 के बिल की पड़ताल करने वाली स्टैंडिंग कमिटी ने सुझाव दिया है कि एग्रीगेटरों से संबंधित केंद्र सरकार के दिशानिर्देशों का अनुपालन करना राज्यों के लिए वैकल्पिक होना चाहिए। 11 

दंड का निर्धारण है लेकिन अपराध का विवरण नहीं

बिल केंद्र सरकार को इस बात की अनुमति देता है कि वह मोटर वाहन दुर्घटना के लिए थर्ड पार्टी इंश्योरेस के तहत मुआवजे की मांग करने वाले व्यक्तियों को अंतरिम राहत प्रदान करने के लिए योजना बनाए। इस योजना में उस प्रक्रिया का भी उल्लेख होगा जिसके जरिए दुर्घटना में शामिल मोटर वाहन के मालिक से योजना के तहत चुकाई जाने वाली राशि वसूली जाएगी। योजना के किसी प्रावधान का उल्लंघन करने पर दो वर्ष की कैद की सजा या 25,000 रुपए से पांच लाख रुपए के बीच का जुर्माना हो सकता है। जहां बिल इस योजना के प्रावधानों के उल्लंघन के लिए दंड का निर्दारण करता है, वहीं उन अपराधों का विवरण नहीं देता जिसके कारण ऐसे दंड दिए जा सकते हैं।

इसका अर्थ यह है कि सरकार योजना की अधिसूचना के जरिए उन अपराधों को स्पष्ट कर सकती है जिसके कारण ऐसे दंड दिए जा सकते हैं। प्रश्न यह है कि क्या अपराधों को स्पष्ट करने का कार्य कार्यकारिणी को सौंपना उपयुक्त है। 

राज्यों को सड़क सुरक्षा की इलेक्ट्रॉनिक निगरानी करनी चाहिए

बिल राज्य सरकारों के लिए यह अनिवार्य करता है कि वे केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित दिशानिर्देशों के आधार पर राष्ट्रीय राजमार्गों, राज्य राजमार्गों और शहरी सड़कों की इलेक्ट्रॉनिक निगरानी और प्रवर्तन सुनिश्चित करे। यह अस्पष्ट है कि ऐसे सुरक्षा उपायों को लागू करने की कीमत कौन चुकाएगा।

राज्य में इलेक्ट्रॉनिक निगरानी सुनिश्चित करने के लिए राज्यों की ओर से बड़ा इंफ्रास्ट्रक्चर निवेश करना पड़ सकता है (जैसे सीसीटीवी कैमरा, स्पीड डिटेक्टर्स, प्रशिक्षण कार्यक्रम, इत्यादि)। बिल यह स्पष्ट नहीं करता कि क्या केंद्रीय योजना के जरिए या केंद्र द्वारा राज्यों को अतिरिक्त अनुदान देकर इन कीमतों का वहन किया जाएगा। बिल के वित्तीय ज्ञापन में ऐसे इंफ्रास्ट्रक्चर को लागू करने के लिए राज्यों को वित्तीय सहायता देने का कोई प्रावधान नहीं है। 2016 के बिल की पड़ताल करने वाली स्टैंडिंग कमिटी ने सुझाव दिया है कि सरकार को सड़कों को सुरक्षित बनाने के लिए राज्यों को तकनीकी विशेषज्ञता तथा लॉजिस्टिक्स प्रदान करना चाहिए।11

सड़क सुरक्षा से संबंधित अन्य मुद्दे

उद्देश्यों और कारण के कथन के अनुसार, बिल सड़क सुरक्षा से संबंधित मुद्दों पर केंद्रित है। जबकि बिल में अनेक मुद्दों पर विचार किया गया है, विभिन्न विशेषज्ञों ने सड़क सुरक्षा से संबंधित अन्य चिंताओं पर प्रकाश डाला है। इनमें से कुछ को नीचे स्पष्ट किया गया है। 

सड़क सुरक्षा के लिए कोई एजेंसी जिम्मेदार नहीं

भारत में राष्ट्रीय सड़क सुरक्षा परिषद, सड़क सुरक्षा की एपेक्स एडवाइजरी बॉडी है जिसके प्रमुख सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री हैं। सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय का परिवहन प्रभाग सड़कों पर वाहनों की सुरक्षित आवाजाही और सुरक्षा संबंधी जागरूकता पर नजर रखता है। 

सड़क सुरक्षा पर सुंदर कमिटी ने यह पाया कि भारत के मौजूदा संस्थानों में सड़क सुरक्षा की जांच-पड़ताल करने की पर्याप्त क्षमता नहीं है।6  सड़क सुरक्षा की जिम्मेदारी विभिन्न निकायों को दी गई है और इन निकायों के बीच कोई प्रभावी समन्वय नहीं है। इसके अतिरिक्त राष्ट्रीय सड़क सुरक्षा परिषद को पर्याप्त वैधानिक सहयोग, संसाधन या सड़क सुरक्षा को प्रभावित करने वाले अधिकार नहीं दिए गए हैं। इसकी तुलना में अन्य देशों, जैसे अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और स्वीडन में राष्ट्रीय सरकारी एजेंसियां यातायात की सुरक्षा और प्रबंधन के लिए जिम्मेदार होती हैं।6

सुंदर कमिटी ने राष्ट्रीय और राज्य स्तरों पर सड़क सुरक्षा और यातायात प्रबंधन बोर्डों के गठन का सुझाव दिया था। ऐसी अथॉरिटीज निम्नलिखित कार्य करेंगी: (i) सड़कों से संबंधित मानदंड बनाएंगी और ऑडिट करेंगी, (ii) वाहन सुरक्षा की विशेषताएं निर्धारित करेंगी, (iii) सड़क सुरक्षा से जुड़े शोध करेंगी, और (iv) ड्राइवर लाइसेंसिंग और वाहन पंजीकरण के संबंध में दिशानिर्देशों का सुझाव देंगी। 2016 का मौजूदा बिल ऐसी किसी एजेंसी का प्रस्ताव नहीं रखता जोकि सड़क सुरक्षा के लिए विशेष रूप से जिम्मेदार हो। 2016 के बिल की पड़ताल करने वाली स्टैंडिंग कमिटी ने उच्च अधिकार प्राप्त सड़क सुरक्षा बोर्ड के गठन का प्रस्ताव रखा है जिसमें केंद्र और राज्य सरकार के प्रतिनिधि शामिल हों।11  

सड़क दुर्घटनाओं की रिपोर्टिंग में त्रुटि हो सकती है

भारत में वाहन चालक की त्रुटियों के कारण 77% दुर्घटनाएं होती है।[19]  सड़क दुर्घटनाओं के अन्य कारणों में अन्य वाहनों के ड्राइवरों की त्रुटियां, मोटर वाहन में खराबी, पैदल यात्री की गलतियां, मौसम, सड़कों की खराब इंजीनियरिंग, इत्यादि शामिल हैं। परिवहन संबंधी स्टैंडिंग कमिटी ने पाया कि चालक की गलती के कारण होने वाली अधिकतर दुर्घटनाएं भ्रम उत्पन्न कर सकती हैं। ऐसी दुर्घटनाओं की गलत रिपोर्टिंग करने या रिपोर्टिंग न करने के कारण यह होता है।

सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने फरवरी 2017 में मानकीकृत दुर्घटना रिकॉर्डिंग फॉर्म को अनुमोदित किया।[20] इस फॉर्म में निम्नलिखित सूचनाएं होंगी: (i) दुर्घटना का आइडेंडिटिफिकेशन/लोकेशन, (ii) सड़क की स्थितियां, जैसे ढाल, गड्ढे, (iii) दुर्घटना में शामिल वाहन का विवरण, (iv) पीड़ित का विवरण, और (v) यातायात नियमों का उल्लंघन।

सड़कों के खराब डिजाइन और इंजीनियरिंग

राष्ट्रीय परिवहन विकास नीति कमिटी ने टिप्पणी की है कि खराब ड्राइवरों की बजाय खराब तरह से डिजाइन की गई सड़कों को जिम्मेदार माना जाना चाहिए।2  उसने सुझाव दिया कि सड़कों का डिजाइन इस प्रकार होना चाहिए कि वह ड्राइवर के बर्ताव को सुरक्षित विकल्प की तरफ मोड़े। स्वीडन और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में यह माना जाता है कि मनुष्य गलती करेंगे और इसलिए सड़क परिवहन प्रणालियों की डिजाइनिंग की तरफ ध्यान दिया जाना चाहिए जिससे मानव त्रुटि को कम किया जा सके।2

 

Notes

[1].  This Brief has been written on the basis of the Motor Vehicle (Amendment) Bill, 2016 which was introduced in Lok Sabha on August 9, 2016.  The Bill was referred to the Standing Committee on Transport, Tourism, and Culture on August 16, 2016. 

[2].  “Volume 3, Chapter 2, Roads and Road Transport”, India Transport Report: Moving India to 2032, National Transport Development Policy Committee, June 17, 2014, http://planningcommission.nic.in/sectors/NTDPC/volume3_p1/roads_v3_p1.pdf.

[3].  Table No 20.1: Number of motor vehicles registered in India, Statistical Yearbook of India 2016, Ministry of Statistics and Programme Implementation. 

[4].  Road Accidents in India 2015, Ministry of Road Transport and Highways, May 2015, http://morth.nic.in/showfile.asp?lid=2143.

[5].  Basic Road Statistics 2014-15, Ministry of Road Transport and Highways http://morth.nic.in/showfile.asp?lid=2445.

[6].  Report of the Committee on Road Safety and Management, February 2007, http://morth-roadsafety.nic.in//admnis/admin/showimg.aspx?ID=29.

[7].  Second Schedule to the Motor Vehicles Act, 1988. 

[8].  “Skandia Insurance Co. Ltd. vs. Kokila Chandravadan & Ors.”, Supreme Court of India, April 1, 1987, http://judis.nic.in/supremecourt/imgs1.aspx?filename=8760.

[9].  The incurred claims ratio for the motor insurance business ranged between 84% and 103% between 2006-07 and 2014-15.  The claims ratio for private motor insurance companies has increased from 64% in 2006-07 to 82% in 2014-15.  Handbook on Indian Insurance Statistics for years 2006-07 to 2014-15, Insurance Regulatory and Development Authority of India.

[10].  Annexure II: Proposed premium for the FY 2016-17, Insurance Regulatory and Development Authority of India, September 21, 2016. 

[11].  243rd Report: The Motor Vehicles (Amendment) Bill, 2016, Standing Committee on Transport, Tourism and Culture, February 8, 2017, http://www.prsindia.org/uploads/media/Motor%20Vehicles,%202016/SCR-%20Motor%20Vehicles%20Bill,%202016.pdf.

[12].  The Carriage by Air Act, 1972, Ministry of Civil Aviation, http://dgca.nic.in/nat_conv/The%20Carriage%20by%20Air%20Act%20and%20Amendment%202009.pdf.

[13].  The Railway Accidents and Untoward Incidents (Compensation) Rules, 1990, http://www.indianrailways.gov.in/railwayboard/uploads/codesmanual/IRCTCD/TrafficCommericalDepartmentAppendix4.htm.

[14].  Part VI: Third Party Liabilities, Road Traffic Act, 1988, http://www.legislation.gov.uk/ukpga/1988/52/part/VI.

[15].  Radio Taxi Scheme, 2006, Transport Department, Government of NCT of Delhi, http://www.delhi.gov.in/DoIT/DoIT_Transport/trrs31.pdf.

[16].  The Karnataka Motor Vehicle Rules, 1989, Transport Department, Government of Karnataka, http://transport.karnataka.gov.in/uploads/notice/Revised_M_V.pdf.

[17].  Notification: Draft Rules - Maharashtra City Taxi Rules, 2016, Motor Vehicle Department, Maharashtra, October 2016, http://www.mahatranscom.in/pdf/Aggregator%20Rules-15_10_2016.pdf.

[18].  Entry 35 of the Concurrent List of the Constitution.

[19].  Road accidents in India 2015, Transport Research Wing, Ministry of Road Transport and Highways, May 23, 2016, http://morth.nic.in/showfile.asp?lid=2143.

[20].  “Ministry of Road Transport’s New Format for Reporting Accidents”, Press Information Bureau, Ministry of Road Transport and Highways, February 21, 2017. 

 

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