लेजिसलेटिव ब्रीफ

निशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा अधिकार (दूसरा संशोधन) बिल, 2017

बिल की मुख्‍य विशेषताएं

  • बाल शिक्षा अधिकार एक्ट, 2009 प्राथमिक शिक्षा, यानी कक्षा आठ पूरी होने तक बच्चों को पिछली कक्षा में रोकने (डिटेंशन) को प्रतिबंधित करता है। बिल इस प्रावधान को संशोधित करता है और कहता है कि कक्षा 5 और कक्षा 8 में प्रत्येक शैक्षणिक वर्ष के अंत में नियमित परीक्षा संचालित की जाएगी। अगर बच्चा उस परीक्षा में फेल हो जाता है तो उसे अतिरिक्त शिक्षण दिया जाएगा और दोबारा परीक्षा ली जाएगी।
     
  • अगर बच्चा दोबारा परीक्षा में फेल होता है तो संबंधित केंद्र या राज्य सरकार स्कूल को बच्चे को पिछली कक्षा में रोकने की अनुमति देने का फैसला कर सकती है।

प्रमुख मुद्दे और विश्‍लेषण

  • इस संबंध में भिन्न-भिन्न मत हैं कि क्या बच्चों को प्राथमिक स्कूल की परीक्षा में फेल होने पर पिछली कक्षा में रोका जाना चाहिए। कुछ लोगों का तर्क है कि ऑटोमैटिक प्रमोशन देने से बच्चों में सीखने और टीचरों में सिखाने का भाव कम होता है। दूसरे लोग तर्क देते हैं कि बच्चों को उसी कक्षा में रोकने के परिणामस्वरूप बच्चे स्कूल छोड़ देते हैं (ड्रॉप आउट) और यह उन व्यवस्थागत कारकों पर ध्यान नहीं देता, जोकि पढ़ाई को प्रभावित करते हैं, जैसे टीचरों की क्वालिटी, स्कूल और मूल्यांकन करने का तरीका।    
  • अधिकतर राज्यों ने जो सुझाव दिए थे, बिल के मूल्यांकन और डिटेंशन संबंधी प्रावधान उससे भिन्न हैं। इस संबंध में प्रश्न यह है कि क्या संसद को ये फैसले लेने चाहिए अथवा इसे राज्य विधानमंडलों पर छोड़ देना चाहिए।
     
  • यह अस्पष्ट है कि परीक्षा कौन कराएगा (जिसके बाद बच्चों को पिछली कक्षा में रोका जा सकता है): केंद्र, राज्य या स्कूल। 

भाग क : बिल की मुख्य विशेषताएं

संदर्भ

निशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा अधिकार (आरटीई) एक्ट, 2009 के अंतर्गत छह से 14 वर्ष के बीच के सभी बच्चों को अपने पड़ोस के स्कूल में प्राथमिक शिक्षा (कक्षा 1-8) प्राप्त करने का अधिकार है।[1] आरटीई एक्ट के अन्य प्रावधानों में, प्राथमिक शिक्षा समाप्त होने तक किसी भी बच्चे को किसी कक्षा में रोका नहीं जा सकता। अगली कक्षा में इस ऑटोमैटिक प्रमोशन से यह सुनिश्चित होता है कि पहले की कक्षा में बच्चे को न रोकने के परिणामस्वरूप वह स्कूल नहीं छोड़ता।[2]  आरटीई एक्ट के लागू होने से पहले राज्यों को नो डिटेंशन (बच्चे को पिछली कक्षा में न रोकने) नीति के संबंध में फ्लेक्सिबिलिटी मिली हुई थी। उदाहरण के लिए गोवा में कक्षा 3 तक, तमिलनाडु में कक्षा 5 तक और असम में कक्षा 7 तक बच्चे को पिछली कक्षा में नहीं रोका जाता था।[3]

हाल के वर्षों में दो एक्सपर्ट कमिटियों ने आरटीई एक्ट के नो डिटेंशन प्रावधान की समीक्षा की और यह सुझाव दिया कि इसे हटा दिया जाए या चरणबद्ध तरीके से समाप्त कर दिया जाए।3,[4] नो डिटेंशन प्रावधान को हटाने के लिए आरटीई एक्ट में संशोधन हेतु 11 अगस्त, 2017 को लोकसभा में आरटीई (दूसरा संशोधन) बिल, 2017 पेश किया गया।

प्रमुख विशेषताएं

  • एक्ट के अंतर्गत कक्षा 8 समाप्त होने तक किसी भी बच्चे को पिछली कक्षा में रोका नहीं जाएगा। बिल इस प्रावधान में संशोधन करता है और कहता है कि प्रत्येक शैक्षणिक वर्ष के अंत में कक्षा 5 और कक्षा 8 में नियमित परीक्षा संचालित की जाएगी। अगर बच्चा उस परीक्षा में फेल हो जाता है तो उसे अतिरिक्त शिक्षण दिया जाएगा और परिणाम घोषित होने के दो महीने के भीतर दोबारा परीक्षा देने का अवसर दिया जाएगा।
     
  • अगर बच्चा दोबारा परीक्षा में भी फेल हो जाता है तो संबंधित केंद्र या राज्य सरकार स्कूलों को इस बात की अनुमति दे सकती हैं कि वे बच्चे को पिछली कक्षा में रोक दें। इसके अतिरिक्त केंद्र या राज्य सरकार यह तय कर सकती हैं कि बच्चे को किस तरीके और किन स्थितियों में रोका जा सकता है। 

भाग ख:  प्रमुख मुद्दे और विश्‍लेषण

बच्चों को पिछली कक्षा में रोकने का तर्क

इस पर भिन्न-भिन्न विचार हैं कि क्या प्राथमिक स्कूल में बच्चों को परीक्षा में फेल होने पर पिछली कक्षा में रोका जाना चाहिए। 

पिछली कक्षा में रोकने के लाभ और हानियां

कुछ लोगों का तर्क है कि ऑटोमैटिक प्रमोशन देने से बच्चों में सीखने और टीचरों में सिखाने को बढ़ावा नहीं मिलता।4  केंद्रीय शिक्षा सलाहकार बोर्ड (केब, 2014), राष्ट्रीय उपलब्धि सर्वेक्षण (2012) और आर्थिक सर्वेक्षण (2016-17) ने गौर किया कि आरटीई एक्ट के लागू होने के बाद भी प्राथमिक शिक्षा में शिक्षण स्तर गिरा है (देखें परिशिष्ट)।3,[5],6  2016 में कक्षा 3 के 58% बच्चे कक्षा 1 के स्तर का पाठ पढ़ने में असमर्थ थे। राष्ट्रीय स्तर पर कक्षा 3 के 73% बच्चे बेसिक अर्थमैटिक करने में असमर्थ थे।[6]  केब सब कमिटी (2014) ने सुझाव दिया कि अगली कक्षा में प्रमोशन देने के लिए इस बात का मूल्यांकन करना जरूरी है कि बच्चे ने क्या सीखा है। इससे गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने की स्कूलों और शिक्षकों की जिम्मेदारी में भी सुधार होगा। इसके अतिरिक्त अनेक राज्यों ने आरटीई एक्ट को बदलने का अनुरोध किया था ताकि जो बच्चे पर्याप्त नहीं सीख पाए, उन्हें पिछली कक्षा में रोका जा सके।[7]       

दूसरे लोग यह तर्क देते हैं कि पिछली कक्षा में रोकने से बच्चा अनुत्पादक हो सकता है जोकि हतोत्साहित करने वाला है और वह स्कूल छोड़ने पर मजबूर हो सकता है।6  विशेषज्ञों के अनुसार, परीक्षा में फेल होने के बाद कक्षा दोहराने पर यह माना जाता है कि सारी गलती बच्चे की है और शिक्षण परिणामों को प्रभावित करने वाले अन्य कारकों को नकार दिया जाता है।[8],[9]  बच्चे पर्याप्त नहीं सीख पाते तो इसके कई कारण हो सकते हैं जैसे पेशेवर क्वालिफाइड शिक्षकों की कमी, शिक्षकों का अनुपस्थित होना, सीमित इंफ्रास्ट्रक्चर और शिक्षा एवं आकलन की सतत तथा व्यापक मूल्यांकन (सीसीई) प्रणाली को पूरी तरह से लागू न करना।3,4उल्लेखनीय है कि अगस्त, 2017 में आरटीई (संशोधन) एक्ट, 2017 को पारित किया गया ताकि आरटीई एक्ट के अंतर्गत शिक्षकों की जो न्यूनतम क्वालिफिकेशन निर्दिष्ट की गई है, उसे हासिल करने की समय सीमा को चार वर्षों तक बढ़ाया जा सके। यह अतिरिक्त समय सीमा इसलिए दी गई थी क्योंकि राज्यों ने सेवारत अप्रशिक्षित शिक्षकों का प्रशिक्षण पूरा नहीं किया था।[10]

व्यवस्थागत कारण, जो शिक्षा के स्तर को प्रभावित करते हैं

यह कहा जा सकता है कि ऐसे दूसरे कारक हैं जो आरटीई के कार्यान्वयन को प्रभावित करते हैं और जिनका असर निम्न स्तरीय शिक्षा के रूप में दिखाई देता है। अनेक विशेषज्ञ निकायों, जैसे केब सब कमिटी (2014), नई शिक्षा नीति की विकास संबंधी कमिटी (2016), भारतीय नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (कैग) (2017) इत्यादि ने यह स्पष्ट किया था कि मौजूदा शिक्षा प्रणाली इतनी साधन संपन्न नहीं है कि आरटीई एक्ट को पूरी तरह से लागू कर सके।3,4,[11]इसमें शिक्षकों, स्कूल की जिम्मेदारी, मूल्यांकन की प्रकृति और आयु के उपयुक्त शिक्षा से जुड़े मुद्दे शामिल हैं।3,4,11,[12]

  • शिक्षक : प्राथमिक शिक्षा की चुनौतियों के मद्देनजर विशेषज्ञों ने शिक्षकों की भूमिका से संबंधित विभिन्न मुद्दों को चिन्हित किया है। इनमें निम्नलिखित शामिल हैं: (i) शिक्षकों की जवाबदेही और मूल्यांकन न होना, (ii) शिक्षकों के शिक्षा पाठ्यक्रम का पर्याप्त गुणवत्तापूर्ण न होना और बी.एड और डी.एड कोर्सेज के पाठ्यक्रम में जरूरी परिवर्तन, (iii) सेवारत शिक्षकों के सतत प्रशिक्षण की जरूरत और स्किल सेट का अपग्रेडेशन, (iv) अपर्याप्त विद्यार्थी शिक्षक अनुपात और गैर शैक्षणिक उद्देश्यों के लिए शिक्षकों की तैनाती, और (v) शिक्षकों के पदों की रिक्तियां।4,11,12
  • स्कूल की जिम्मेदारी : केब (2014) ने सुझाव दिया कि सभी शिक्षकों, स्कूल प्रबंधकों और विभाग के अधिकारियों की प्रदर्शन प्रबंधन प्रणाली शुरू की जानी चाहिए जिसमें उन सभी के प्रदर्शन को इस बात से जोड़कर देखा जाए कि उनके विद्यार्थियों ने क्या सीखा। स्कूल की जवाबदेही के ऐसे मानक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मौजूद हैं। उदाहरण के लिए युनाइटेड स्टेट्स में नो चाइल्ड लेफ्ट बिहाइंड एक्ट के अंतर्गत स्कूल से यह अपेक्षा की जाती है कि कक्षा 3 से 8 के विद्यार्थियों के लिए रीडिंग और मैथमैटिक्स की शिक्षा का वार्षिक मूल्यांकन किया जाए। अगर स्कूल न्यूनतम टेस्ट स्कोर हासिल करने में असफल रहता है तो इसके कई परिणाम हो सकते हैं, जैसे शिक्षकों या हेडमास्टर को नौकरी से हटाना, स्कूल को रीस्ट्रक्चर या बंद करना या विद्यार्थियों को दूसरे स्कूल में ट्रांसफर करने का विकल्प।[13]
  • मूल्यांकन की प्रकृति: आरटीई के अंतर्गत सतत तथा व्यापक मूल्यांकन (सीसीई) प्राथमिक शिक्षा की मूल्यांकन प्रणाली है। सीसीई (जैसे पेपर-पेंसिल टेस्ट, चित्र बनाना और पिक्चर्स को पढ़ना और मौखिक रूप से अभिव्यक्त करना) का यह अर्थ नहीं है कि मूल्यांकन ही न किया जाए, बल्कि इसका यह अर्थ है कि परीक्षा की परंपरागत प्रणाली से अलग किस्म का मूल्यांकन किया जाए। यह कहा गया कि सीसीई का पर्याप्त रूप से कार्यान्वयन या निरीक्षण नहीं किया जा रहा।3इसके अतिरिक्त यह सुझाव दिया गया कि मूल्यांकन प्रणाली को उचित तरीके से तैयार प्रयोग करने से सिखाने और सीखने की गुणवत्ता में सुधार हो सकता है और उसमें नए प्रयोग किए जा सकते हैं।[14]
  • आयु के उपयुक्त शिक्षा: आरटीई एक्ट के अंतर्गत बच्चे को उस कक्षा में भर्ती किया जाना चाहिए जोकि उसकी आयु के अनुरूप हो, चाहे उसका सीखने का स्तर कोई भी हो। इसका परिणाम यह हो सकता है कि एक ही कक्षा में पढ़ने वाले बच्चों, जोकि इस बात पर निर्भर करता है कि स्कूल में उनका दाखिला कब हुआ, की सीखने की जरूरतें अलग-अलग हों। यह सुझाव दिया गया कि बच्चे को विशेष प्रशिक्षण दिया जाए और प्रशिक्षण का समय बच्चे के अनुसार समायोजित किया जाए। इससे बच्चा अन्य बच्चों के समान स्तर पर पहुंच सकेगा और कक्षा में उसका एकीकरण सुनिश्चित होगा।12

परीक्षा और डिटेंशन के संबंध में राज्यों के लिए फ्लेक्सिबिलिटी

कक्षा 5 और कक्षा 8 में परीक्षाओं के जरिए बच्चों के सीखने के स्तर का आकलन करने के लिए बिल आरटीई एक्ट, 2009 में संशोधन करता है। बिल राज्यों को यह निर्धारित करने की अनुमति देता है कि क्या इन परीक्षाओं में फेल होने पर बच्चों को पिछली कक्षा में रोका जाए। अनेक राज्यों ने अनुरोध किया था कि आरटीई एक्ट में बच्चों को फेल न करने का प्रावधान संशोधित किया जाए। फिर भी उन राज्यों ने बच्चों के सीखने के स्तर का आकलन करने और उन्हें पिछली कक्षा में रोकने से संबंधित जो विचार पेश किए थे, बिल के प्रावधान उससे अलग हैं।7  उदाहरण के लिए परीक्षाएं संचालित करने के संबंध में (i) हिमाचल प्रदेश ने कक्षा 3 में इंटरनल परीक्षाएं और कक्षा 5 एवं 8 में थर्ड पार्टी परीक्षा कराने का सुझाव दिया, और (ii) पंजाब और ओड़िशा ने सुझाव दिया कि कक्षा 1 से कक्षा 8 तक प्रत्येक कक्षा में परीक्षाएं कराई जाएं। बच्चों को पिछली कक्षा में रोकने के संबंध में : (i) आंध्र प्रदेश और हिमाचल प्रदेश ने कक्षा 3 में भी ऐसा ही करने का सुझाव दिया, (ii) दिल्ली ने कक्षा 4 से ही ऐसा करने को कहा, और (iii) महाराष्ट्र और तेलंगाना ने आरटीई एक्ट के अंतर्गत मौजूदा नो-डिटेंशन प्रावधान को जारी रखने का सुझाव दिया।7

शिक्षा संविधान की समवर्ती सूची में शामिल है, और केंद्रीय कानून राज्य कानून से अधिक महत्वपूर्ण हो जाएगा। इससे यह सवाल उठता है कि क्या केंद्रीय कानून में कुछ बातें स्पष्ट होनी चाहिए जैसे किन कक्षाओं में परीक्षाएं होनी चाहिए और किन कक्षाओं में बच्चों को रोका जाना चाहिए या ऐसे निर्णय राज्य विधानमंडल पर छोड़ दिए जाने चाहिए ताकि वे अपने स्थानीय संदर्भों और जरूरतों के आधार पर निर्णय ले सकें। 

परीक्षा कौन कराएगा, इस संबंध में स्पष्टता की कमी

बिल सभी स्कूलों में शैक्षणिक वर्ष के अंत में कक्षा 5 और कक्षा 8 में नियमित परीक्षा कराने के लिए आरटीई एक्ट में संशोधन करता है। लेकिन बिल में यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि इन परीक्षाओं को कौन कराएगा, यानी परीक्षाएं केंद्र द्वारा संचालित की जाएंगी, अथवा राज्य या स्कूल द्वारा। उल्लेखनीय है कि एक्ट का जो प्रावधान प्राथमिक शिक्षा में बोर्ड की परीक्षाओं को प्रतिबंधित करता है, उसमें परिवर्तन नहीं किया गया है।

परिशिष्ट

सरकारी और सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों में प्राथमिक शिक्षा में विद्यार्थियों के शिक्षण स्तर को सुनिश्चित करने के लिए राष्ट्रीय शैक्षणिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) प्रत्येक तीन वर्ष में राष्ट्रीय उपलब्धि सर्वेक्षण (एनएएस) कराता है। 2012 और 2015 में एनएएस (कक्षा 5) के मुख्य निष्कर्ष निम्नलिखित हैं[15]:

  • 34 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में कक्षा 5 (2015) के विद्यार्थियों ने 45% रीडिंग कॉन्प्रेहेंशन आइटम्स और 46% ने मैथेमैटिक्स आइटम्स के सही उत्तर दिए। उल्लेखनीय है कि विद्यार्थियों का औसतन प्रदर्शन 2012 की तुलना में 2015 में गिरा है।  
     
  • रीडिंग कॉन्प्रेहेंशन आइटम्स के लिहाज से देखा जाए (देखें रेखाचित्र 1) तो 2015 में 19 राज्यों का स्कोर 2012 की तुलना में कम है। केवल अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह और पुद्दुचेरी में औसत उपलब्धि स्कोर 2012 की तुलना में 2015 में महत्वपूर्ण रूप से अधिक है।
     
  • मैथेमैटिक्स के लिहाज से देखा जाए तो (देखें रेखाचित्र 2) तो 2015 में 20 राज्यों के स्कोर 2012 की तुलना में कम हैं। केवल 3 राज्यों में औसत उपलब्धि स्कोर 2012 की तुलना में महत्वपूर्ण रूप से अधिक हैं।

रेखाचित्र 1: 2012 और 2015 में रीडिंग कॉन्प्रेहेंशन (कक्षा 5) में राज्यों का प्रदर्शन

रेखाचित्र 2: 2012 और 2015 में मैथेमैटिक्स (कक्षा 5) में राज्यों का प्रदर्शन

Sources: National Achievement Survey, 2012 and 2015, National Council of Educational Research and Training; PRS.

Note1. Arunachal Pradesh, Manipur, Telangana, Lakshadweep, and Dadra & Nagar Haveli did not participate in NAS, 2012.

  1. 2. The scores range between 0 and 400. They are scaled for consistency and comparability across states by adjusting for the testsdifficulty level and the student ability level.

 

[1]The Right of Children to Free and Compulsory Education (RTE) Act, 2009.

[2]Statement of Objects and Reasons, RTE (Second Amendment) Bill, 2017.

[3]Report of CABE Sub Committee on Assessment on implementation of CCE and no detention provision, 2014, Ministry of Human Resource Development, http://mhrd.gov.in/sites/upload_files/mhrd/files/document-reports/AssmntCCE.pdf.

[4].  “Report of the Committee for Evolution of the New Education Policy, Ministry of Human Resource Development, April 30, 2016, http://www.nuepa.org/New/download/NEP2016/ReportNEP.pdf.  

[5].  “A summary of Indias National Achievement Survey, Class VIII, 2012, National Council of Educational Research and Training, http://mhrd.gov.in/sites/upload_files/mhrd/files/upload_document/11-March-National-Summary-Report-NAS-Class-VIII.pdf.

[6].  Economic Survey, 2016-17, http://indiabudget.nic.in/es2016-17/echapter_vol2.pdf.

[7].  Unstarred question no. 641, Ministry of Human Resource Development, Lok Sabha, February 6, 2017, http://164.100.47.190/loksabhaquestions/annex/11/AU641.pdf.

[8].  Wasted Opportunities: When Schools Fail Repetition and drop-out in primary schools, UNESCO, 1998, http://unesdoc.unesco.org/images/0011/001139/.pdf.

[9]Dissent note of Prof. Nargis Panchapakesan in the Report of the CABE Sub Committee.

[10].  Statement of Objects and Reasons, RTE (Amendment) Bill, 2017

[11].  “Implementation of RTE Act, 2009, Comptroller and Auditor General of India, July 21, 2017, http://www.cag.gov.in/content/report-no23-2017-compliance-audit-union-government-implementation-right-children-free-and.

[12].  “Report to the People on Education, 2011-12, Ministry of Human Resource Development, http://mhrd.gov.in/sites/upload_files/mhrd/files/document-reports/RPE_2011-12.pdf.

[13].  K-12 Education: Highlights of the No Child Left Behind Act of 2001, Library of Congress. Congressional Research Service, February 28, 2005, https://digital.library.unt.edu/ark:/67531/metadc824710/m1/1/.

[14].  World Development Report, 2018, World Bank, http://www.worldbank.org/en/publication/wdr2018.

[15]What students of class V know and can do, National Achievement Survey, Class V (Cycle 4), 2015, http://www.ncert.nic.in/departments/nie/esd/pdf/NAS_Class_V_(Cycle%204)_Summary_Report_National.pdf.

 

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