लेजिसलेटिव ब्रीफ

भारतीय उच्च शिक्षा आयोग (विश्वविद्यालय अनुदान आयोग एक्ट, 1956 का निरस्तीकरण) ड्राफ्ट बिल, 2018

बिल की मुख्‍य विशेषताएं

  • बिल विश्वविद्यालय अनुदान आयोग एक्ट, 1956 को रद्द करता है और भारतीय उच्च शिक्षा आयोग (एचईसीआई) की स्थापना करता है।
     
  • एचईसीआई पाठ्यक्रमों में शिक्षण परिणामों और वाइस चांसलर्स के लिए पात्रता संबंधी मानदंडों को निर्दिष्ट करेगा और न्यूनतम मानदंडों का पालन न करने वाले उच्च शिक्षण संस्थानों को बंद करने का आदेश देगा। इस प्रकार आयोग उच्च शिक्षा में शैक्षणिक मानदंडों को बरकरार रखेगा।
     
  • डिग्री या डिप्लोमा देने वाले प्रत्येक उच्च शिक्षण संस्थान को शिक्षण संबंधी अपनी पहली गतिविधि संचालित करने के लिए आयोग को आवेदन देना होगा। आयोग के पास अनुमति रद्द करने का अधिकार होगा जिसका आधार निर्दिष्ट किया गया है।
     
  • बिल केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री की अध्यक्षता में सलाहकार परिषद की स्थापना करता है। यह परिषद केंद्र और राज्यों के बीच उच्च शिक्षा के मानदंडों का समन्वय और निर्धारण करेगी।

प्रमुख मुद्दे और विश्‍लेषण

  • बिल का उद्देश्य उच्च शिक्षण संस्थानों की स्वायत्तता को बढ़ावा देना है। हालांकि बिल के कुछ प्रावधान इस उल्लिखित लक्ष्य को पूरा नहीं करते। यह कहा जा सकता है कि उच्च शिक्षण संस्थानों को अधिक स्वायत्तता देने की बजाय बिल एचईसीआई को व्यापक रेगुलेटरी नियंत्रण प्रदान करता है।
     
  • वर्तमान में प्रोफेशनल कोर्सेज पढ़ाने वाले संस्थानों को 14 प्रोफेशनल परिषदें रेगुलेट करती हैं। बिल इनमें से कानूनी और आर्किटेक्ट की शिक्षा को एचईसीआई के दायरे में लाना चाहता है। यह अस्पष्ट है कि केवल इन्हीं दो क्षेत्रों को एचईसीआई के रेगुलेटरी दायरे में क्यों शामिल किया जा रहा है और बाकी की प्रोफेशनल शिक्षा को नहीं।  
     
  • वर्तमान में यूजीसी के पास विश्वविद्यालयों और कॉलेजों को अनुदान आबंटित और संवितरित करने की शक्ति है। बिल यूजीसी को रिप्लेस तो करता है लेकिन अनुदान संवितरित करने के संबंध में कोई प्रावधान नहीं करता। इससे यह सवाल उठता है कि क्या उच्च शिक्षण संस्थानों को अनुदान देने में एचईसीआई की कोई भूमिका होगी।
     
  • इस समय केंद्रीय उच्च शिक्षा सलाहकार बोर्ड (केब) शिक्षा संबंधी मामलों में केंद्र और राज्यों के बीच समन्वय करता है और उन्हें सलाह देता है। बिल एक सलाहकार परिषद की स्थापना करता है और एचईसीआई से यह अपेक्षा करता है कि वह उसके सुझावों को लागू करे। इससे एचईसीआई के स्वतंत्र रेगुलेटर के रूप में काम करने में अड़चनें आ सकती हैं।

भाग क : बिल की मुख्य विशेषताएं

संदर्भ

भारत में शिक्षा को संविधान की समवर्ती सूची में शामिल किया गया है जिसका अर्थ है उस पर केंद्र और राज्य, दोनों कानून बना सकते हैं।[1]  इसके अतिरिक्त केंद्र उच्च शिक्षा के मानदंड निर्धारित कर सकता है और राज्य विश्वविद्यालयों को स्थापित, उन्हें रेगुलेट और बंद कर सकते हैं।1

उच्च शिक्षा को कई अथॉरिटीज़ रेगुलेट करती हैं। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) सामान्य विषयों को पढ़ाने वाले विश्वविद्यालयों और कॉलेजों को रेगुलेट करता है।[2] उसके पास मानदंड बनाने और उन्हें बरकरार रखने तथा अनुदान देने की शक्ति है। अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (एआईसीटीई) तकनीकी शिक्षा, जैसे इंजीनियरिंग, प्रबंधन और आर्किटेक्ट को रेगुलेट करती है।[3]  इसके अतिरिक्त मेडिकल, कानूनी, नर्सिंग या शिक्षकों की शिक्षा से संबंधित पाठ्यक्रम चलाने वाले संस्थानों को 14 प्रोफेशनल परिषदें रेगुलेट करती हैं, जैसे मेडिकल काउंसिल, बार काउंसिल और नर्सिंग काउंसिल।

पिछले कुछ वर्षों के दौरान राष्ट्रीय ज्ञान आयोग (2009), यशपाल कमिटी (2010) और नई शिक्षा नीति के विकास पर गठित कमिटी (2016) ने उच्च शिक्षा की उपलब्धता, क्वालिटी, फंडिंग और गवर्नेस से संबंधित सुधार के लिए उपाय सुझाए थे।[4],[5],[6]  यह कहते हुए कि मौजूदा प्रणाली बहुत अधिक रेगुलेटेड है लेकिन वहां गवर्नेंस कम है, कमिटियों ने सभी मौजूदा रेगुलेटरों को एक स्वतंत्र रेगुलेटर में शामिल करने का सुझाव दिया था। इस संस्था की परिकल्पना इस प्रकार की गई थी कि वह उच्च शिक्षण संस्थानों की शैक्षणिक और संस्थागत स्वायत्तता में दखलंदाजी किए बिना अपना रेगुलेटरी कामकाज करेगी।4 

2011 में उच्च शिक्षा और अनुसंधान बिल, 2011 को संसद में पेश किया गया जोकि उच्च शिक्षा के सभी रेगुलेटरों को एक सिंगल रेगुलेटर में समाहित करने का प्रयास करता था। हालांकि 2014 में इस बिल को वापस ले लिया गया।

हाल के वर्षों में सरकार ने इस क्षेत्र में स्वायत्तता को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न उपाय किए हैं, जैसे: (i) इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट एक्ट, 2017 को पारित करना, जोकि आईआईएम के बोर्ड्स में सरकारी प्रतिनिधत्व को कम करता है और बोर्ड को निदेशक नियुक्त करने की अनुमति देता है, (ii) विश्वविद्यालयों को ग्रेडेड स्वायत्तता देने और कॉलेजों को स्वायत्त बनाने से संबंधित यूजीसी दिशानिर्देश, और (iii) सरकार द्वारा छह संस्थानों को उत्कृष्ट संस्थान (इंस्टीट्यूशंस ऑफ एमिनेंस) घोषित करना जोकि विदेशी विद्यार्थियों को दाखिल करने, फीस तय करने और विदेशी फैकेल्टी की भर्ती करने के लिए स्वायत्त होंगे।[7],[8],[9]भारतीय उच्च शिक्षा आयोग (विश्वविद्यालय अनुदान आयोग एक्ट, 1956 का निरस्तीकरण) ड्राफ्ट बिल, 2018 को 27 जून, 2018 को जारी किया गया। यह बिल विश्वविद्यालय अनुदान आयोग एक्ट, 1956 को रद्द करता है।

तालिका 1: उच्च शिक्षण संस्थानों के प्रकार

संस्थानों के प्रकार

संख्या

निर्माण की प्रक्रिया

केंद्रीय विश्वविद्यालय

48

संसद के कानून द्वारा स्थापित

राज्य स्तरीय विश्वविद्यालय

394

राज्य विधानमंडल के कानून द्वारा स्थापित

निजी विश्वविद्यालय

325

राज्य विधानमंडल के कानून द्वारा स्थापित

मानद विश्वविद्यालय

125

यूजीसी के सुझावों के बाद केंद्र सरकार दर्जा देती है। अपना सिलेबस, दाखिले के मानदंड और फीस तय करने की स्वायत्तता

राष्ट्रीय महत्व के संस्थान

91

संसद के एक्ट द्वारा दर्जा दिया जाता है। विश्वविद्यालय से संबद्धता के बिना डिग्री दे सकते हैं।

कॉलेज

39,050

सरकारी विश्वविद्यालय से संबद्धता अनिवार्य है। सहायता प्राप्त, गैर सहायता प्राप्त या स्वायत्त हो सकते हैं।

Sources: The University Grants Commission; All India Survey on Higher Education 2017-18; PRS.

प्रमुख विशेषताएं

बिल भारतीय उच्च शिक्षा आयोग (एचईसीआई) की स्थापना करता है। वह विश्वविद्यालय अनुदान आयोग एक्ट, 1956 को रद्द करता है।

  • कवरेज: बिल उच्च शिक्षण संस्थानों पर लागू होता है जिनमें संसद या राज्य विधानमंडलों के कानूनों द्वारा स्थापित विश्वविद्यालय, मानद विश्वविद्यालय और कॉलेज शामिल हैं। बिल में राष्ट्रीय महत्व के संस्थान शामिल नहीं हैं।
     
  • सामान्य विषयों के अतिरिक्त एचईसीआई कानूनी और आर्किटेक्ट की शिक्षा के मानदंडों को निर्धारित करेगा और उन्हें बरकरार रखेगा, जबकि बार काउंसिल और काउंसिल ऑफ आर्किटेक्चर की भूमिका सीमित हो जाएगी और वे सिर्फ प्रोफेशनल प्रैक्टिस के मानदंडों को विर्निदष्ट करेंगी।

एचईसीआई के कार्य

  • एचईसीआई उच्च शिक्षण संस्थानों की स्वायत्तता को बढ़ावा देने के उपाय सुझाएगा और उच्च शिक्षा में शैक्षणिक मानदंडों की बहाली सुनिश्चित करेगा। वह निम्नलिखित के लिए नियम बनाएगा: (i) पाठ्यक्रमों का शिक्षण परिणाम, (ii) शिक्षण और अनुसंधान के मानदंड, (iii) संस्थानों के वार्षिक प्रदर्शन के लिए मूल्यांकन प्रक्रिया, (iv) संस्थानों का एक्रेडेशन, और (v) संस्थानों को बंद करने का आदेश।
     
  • इसके अतिरिक्त एचईसीआई निम्नलिखित के लिए भी नियम बना सकता है: (i) संस्थानों को शैक्षणिक कार्य शुरू करने के लिए अधिकृत करना, (ii) डिग्री या डिप्लोमा देना, (iii) विश्वविद्यालयों से संस्थानों की संबद्धता, (iv) स्वायत्तता देना, (v) ग्रेडेड स्वायत्तता, (vi) वाइस चांसलर्स की नियुक्ति के पात्रता संबंधी मानदंड, (vii) संस्थानों को स्थापित करना और उन्हें बंद करना, और (viii) फीस का रेगुलेशन।

एचईसीआई की संरचना

  • एचईसीआई में 14 सदस्य होंगे। एक सर्च कमिटी आयोग के चेयरपर्सन और सदस्यों के पदों के लिए केंद्र सरकार को नामों का सुझाव देगी। सर्च कमिटी में कैबिनेट सचिव (चेयरपर्सन), उच्च शिक्षा सचिव और तीन प्रख्यात शिक्षाविद सहित पांच सदस्य होंगे। आयोग के वाइस चेयरपर्सन और सदस्यों की नियुक्ति के लिए सर्च कमिटी में आयोग के चेयरपर्सन को भी शामिल किया जाएगा।
     
  • चेयरपर्सन और वाइस चेयरपर्सन के पदों के लिए सर्च कमिटी ऐसे लोगों के नामों का सुझाव देगी, जो भारत के नागरिक हैं, और (i) कम से कम पिछले दस वर्षों से प्रोफेसर हैं, या (ii) ऐसे प्रशासक हैं जिनमें संस्थाओं की स्थापना की प्रामाणिक क्षमता है।
     
  • एचईसीआई के सदस्यों में निम्नलिखित शामिल हैं: (i) चेयरपर्सन, (ii) वाइस चेयरपर्सन, (iii) केंद्र सरकार के तीन सचिव, (iv) अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद और राष्ट्रीय शिक्षक शिक्षा परिषद के दो चेयरपर्सन्स, (v) एक्रेडेशन निकायों के दो चेयरपर्सन्स, (vi) शैक्षणिक उत्कृष्टता का दर्जा प्राप्त विश्वविद्यालयों के दो वाइस चांसलर्स, (vii) विश्वविद्यालयों के दो सेवारत प्रोफेसर, और (viii) उद्योग का अनुभवी व्यक्ति।

उच्च शिक्षण संस्थानों को डिग्री या डिप्लोमा देने का अधिकार

  • डिग्री या डिप्लोमा देने वाले प्रत्येक उच्च शिक्षण संस्थान को शिक्षण संबंधी अपनी पहली गतिविधि संचालित करने के लिए आयोग को आवेदन देना होगा। अनुमति देने के लिए एचईसीआई को यह सुनिश्चित करना होगा कि सभी संस्थान शैक्षणिक गुणवत्ता के विनिर्दिष्ट नियमों का पालन करते हैं। एचईसीआई को एक निश्चित समयावधि में संस्थान को इस बारे में अधिसूचित करना होगा कि वे अपने कामकाज को शुरू कर सकते हैं। मौजूदा उच्च शिक्षण संस्थानों के पास तीन वर्ष की अवधि के लिए डिग्री देने का अधिकार होगा।
     
  • एचईसीआई के पास यह अधिकार होगा कि अगर शैक्षणिक संस्थान (i) लगातार या जानबूझकर नियमों का अनुपालन नहीं कर रहा, (ii) अपने कर्तव्यों और बाध्यताओं को अच्छी तरह से नहीं निभा रहा, या (iii) अब मौजूद ही नहीं है तो वह इस अनुमति को रद्द कर सकता है।

सलाहकार परिषद

  • बिल मानव संसाधन विकास मंत्री की अध्यक्षता में एक सलाहकार परिषद की स्थापना करता है। यह परिषद निम्नलिखित मुद्दों पर सलाह देगी : (i) केंद्र और राज्य सरकारों के बीच समन्वय, और (ii) उच्च शिक्षा के लिए मानदंडों का निर्धारण। एचईसीआई सलाहकार परिषद की सलाह को लागू करने के लिए कदम उठाएगी।
     
  • परिषद में आयोग के सदस्य, और राज्यों की सभी उच्च शिक्षा परिषदों के चेयरपर्सन्स या वाइस चेयरपर्सन्स शामिल होंगे।

सजा

  • अगर कोई विश्वविद्यालय (i) एचईसीआई के नियमों का उल्लंघन करते हुए किसी उच्च शिक्षण संस्थान को संबद्धता प्रदान करता है, या (ii) एचआईसीआई के नियमों या मानदंडों का उल्लंघन करता है तो एचईसीआई जुर्माना लगा सकता है या विश्वविद्यालय के डिग्री देने के अधिकार को रद्द कर सकता है।
     
  • अगर विश्वविद्यालय जुर्माना नहीं भरता, तो ऐसे संस्थान के प्रबंधकों को अधिकतम तीन वर्ष के कारावास की सजा हो सकती है।

भाग ख: प्रमुख मुद्दे और विश्‍लेषण

उच्च शिक्षण संस्थानों की स्वायत्तता

बिल मौजूदा विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के स्थान पर भारतीय उच्च शिक्षा आयोग (एचईसीआई) की स्थापना करता है। मंत्रालय ने कहा है कि एचईसीआई उच्च शिक्षण संस्थानों की स्वायत्तता को बढ़ावा देने के उपाय करेगा, रेगुलेशन के दायरे को कम करेगा और उच्च शिक्षण संस्थानों के प्रबंधन में दखलंदाजी को समाप्त करेगा।[10]  इसके अतिरिक्त एचईसीआई का एक कार्य यह है कि वह उच्च शिक्षण संस्थानों को स्वायत्तता और शैक्षणिक स्वतंत्रता देने के लिए नियम बनाएगा। हालांकि बिल के कुछ प्रावधान संस्थानों को अधिक स्वायत्तता देने के उल्लिखित लक्ष्य को पूरा नहीं करते। यह कहा जा सकता है कि बिल उच्च शिक्षण संस्थानों को अधिक स्वायतत्ता देने की बजाय उनके शैक्षणिक, प्रशासनिक और वित्तीय मामलों पर आयोग को व्यापक नियंत्रण प्रदान करता है।  

उदाहरण के लिए अगले पृष्ठ पर दी गई तालिका 2 से प्रदर्शित होता है कि एचईसीआई मौजूदा यूजीसी के कई कार्य करेगा, जैसे निम्नलिखित के संबंध में नियम बनाना : (i) उच्च शिक्षण संस्थानों की स्थापना, (ii) गवर्नेंस कैसे किया जाएगा, (iii) फैकेल्टी की क्वालिफिकेशन, (iv) फीस का रेगुलेशन, और (v) एक्रेडेशन। इसके अतिरिक्त बिल रेगुलेटर के रूप में एचईसीआई को अतिरिक्त अधिकार प्रदान करता है और उसके नियंत्रण क्षेत्र को बढ़ाता है। इनमें निम्नलिखित शामिल हैं:

  • डिग्री देने की अनुमति: मौजूदा संरचना के अंतर्गत केवल संसद या राज्य विधानमंडलों के कानूनों द्वारा स्थापित विश्वविद्यालय, मानद विश्वविद्यालय और संसद द्वारा विशेष रूप से अधिकृत संस्थान ही डिग्री दे सकते हैं। उन्हें यूजीसी की मंजूरी की जरूरत नहीं होती। हालांकि बिल का कहना है कि सभी उच्च शिक्षण संस्थानों को अपने शैक्षणिक कार्यों को शुरू करने के लिए एचईसीआई की अनुमति की जरूरत होगी। इसके अतिरिक्त सभी मौजूदा उच्च शिक्षण संस्थानों को तीन वर्षों के अंदर एचईसीआई से अनुमति हासिल करनी होगी।
     
  • संस्थानों को बंद करना: वर्तमान में अगर कोई शिक्षण संस्थान नियमों का पालन नहीं करता तो यूजीसी उसे अनुदान देना बंद कर देता है। हालांकि यूजीसी संस्थान को बंद करने का आदेश नहीं दे सकता। बिल एचईसीआई को यह शक्ति प्रदान करता है कि अगर संस्थान न्यूनतम मानदंडों का पालन नहीं करते या निश्चित समयावधि में एक्रेडेशन नहीं लेते तो वह उन्हें बंद करने का आदेश दे सकता है। इसके अतिरिक्त बिल एचईसीआई के फैसलों के खिलाफ अपील की किसी प्रणाली को विनिर्दिष्ट नहीं करता।

यह देखते हुए कि एचईसीआई यूजीसी के कार्यों के अतिरिक्त दूसरे कार्य भी करेगा, यह अस्पष्ट है कि बिल किस तरह इन उच्च शिक्षण संस्थानों की स्वायत्तता को बढ़ावा देगा। मौजूदा प्रणाली की समीक्षा करते हुए 2009 में राष्ट्रीय ज्ञान आयोग ने कहा था कि यूजीसी फीस से लेकर करिकुलम तक, संस्थानों के लगभग हर पहलू को रेगुलेट करने का प्रयास करता है। इससे न तो संस्थानों की स्वायत्तता की रक्षा होती है और न ही वे जवाबदेह बनते हैं।5  इसके अतिरिक्त यशपाल कमिटी (2010) ने सुझाव दिया था कि एक ऐसी महत्वपूर्ण रेगुलेटरी संस्था की जरूरत है जिसके रेगुलेटरी कार्यों से विश्वविद्यालयों की शैक्षणिक और संस्थागत स्वायत्तता में दखंलदाजी न हो।4

2017 में यूजीसी ने विश्वविद्यालयों और कॉलेजों को विभिन्न पहलुओं के संबंध में स्वायत्तता देने के लिए रेगुलेशंस जारी किए : (i) नया कोर्स शुरू करना, (ii) अध्ययन के कोर्सेज़ और सिलेबस निर्धारित करना, (iii) विद्यार्थियों के प्रदर्शन की मूल्यांकन प्रक्रिया को विकसित करना, (iv) अपने स्तर पर कोर्सेज़ की फीस तय करना, और (v) विदेशी फैकेल्टी को नौकरी पर रखना।7,8   बिल इन शक्तियों को एचईसीआई में निहित करता है।

मौजूदा रेगुलेटरी संरचना और प्रस्तावित बिल के बीच तुलना

राष्ट्रीय ज्ञान आयोग (एनकेसी) (2009) और यशपाल कमिटी (2010) ने उच्च शिक्षा में सुधार के उपाय सुझाए थे। हालांकि उनके अधिकतर सुझावों को बिल में शामिल नहीं किया गया है। निम्नलिखित तालिका में हम यूजीसी एक्ट, 1956 और एक्सपर्ट कमिटियों के सुझावों से 2018 के बिल की तुलना कर रहे हैं।    

तालिका 2: यूजीसी और एक्सपर्ट कमिटियों के सुझावों से प्रस्तावित बिल की तुलना

 

विश्वविद्यालय अनुदान आयोग एक्ट, 1956

एनकेसी और यशपाल कमिटी के सुझाव

उच्च शिक्षा आयोग का ड्राफ्ट बिल, 2018

क्षेत्राधिकार

·   सामान्य विषय (14 विषयों के अतिरिक्त, जिनकी अपनी रेगुलेटरी संस्थाएं हैं) पढ़ाने वाले विश्वविद्यालय और कॉलेज।

·   सभी विषय पढ़ाने वाले उच्च शिक्षण संस्थान।

·   मेडिकल और बार काउंसिल्स को छोड़कर सभी प्रोफेशनल परिषदों को समाप्त कर दिया जाए। प्रोफेशनल परिषदें क्वालिफाइंग परीक्षाएं लें (एनकेसी)।

·   सभी प्रोफेशनल परिषदें क्वालिफाइंग परीक्षाएं लें (यशपाल)।

·   सामान्य विषय (कानून और आर्किटेक्चर सहित) पढ़ाने वाले उच्च शिक्षण संस्थान।

·   बार काउंसिल और काउंसिल ऑफ आर्किटेक्चर जैसी प्रोफेशनल परिषदें प्रोफेशन में दाखिल होने के लिए क्वालिफाइंग परीक्षाएं लें।

अनुदान

·   नियम बनाता और अनुदान संवितरित करता है।

·   रेगुलेशन को अनुदान संवितरण से अलग किया जाए। यूजीसी को सिर्फ सरकारी राशि का संवितरण करना चाहिए।

·   कोई विनिर्देश नहीं।

रेगुलेटर की भूमिका

·   विश्वविद्यालय द्वारा दी जाने वाली डिग्री, निर्देश के न्यूनतम मानक, फैकेल्टी की न्यूनतम क्वालिफिकेशन, विश्वविद्यालय से कॉलेज की संबद्धता के न्यूनतम नियमों को विनिर्दिष्ट करता है।

·   डिग्री के लिए नियम बनाए जाएं, संस्थागत स्वायत्तता में दखलंदाजी किए बिना रेगुलेटरी कामकाज किए जाएं। विश्वविद्यालयों को खुद अपना रेगुलेशन करने लायक बनाया जाए (यशपाल)।

·   किसी संस्था की शैक्षणिक विश्वसनीयता और वित्तीय व्यावहार्यता का मूल्यांकन करने के बाद डिग्री देने की शक्ति प्रदान की जाए (एनकेसी)।

·   डिग्री/डिप्लोमा देने, पाठ्यक्रमों के शिक्षण परिणामों, शिक्षण के मानदंड, विश्वविद्यालयों के वार्षिक प्रदर्शन के मूल्यांकन, फैकेल्टी की न्यूनतम क्वालिफिकेशन, विश्वविद्यालय से कॉलेज की संबद्धता के न्यूनतम नियमों को विनिर्दिष्ट करेगा।

·   संस्थानों को स्वायत्तता देने के मानदंड बनाएगा और ग्रेडेड स्वायत्तता देगा।

फीस

·   उच्च शिक्षण संस्थानों द्वारा वसूली जाने वाली फीस को तय करने के नियम बनाता है।

·   अगर कम से कम दो बैंक बिना कोलेट्रल के लोन देने को तैयार हों तो संस्थानों को अपनी फीस खुद तय करने दें।

·   उच्च शिक्षण संस्थानों द्वारा वसूली जाने वाली फीस को तय करने के नियम बनाएगा।

डिग्री देने का अधिकार

·   संसद या राज्य विधानमंडल के कानून द्वारा स्थापित विश्वविद्यालय या मानद विश्वविद्यालय डिग्री दे सकते हैं।

·   रेगुलेटर संस्थान को डिग्री देने की शक्ति दे सकता है। उसे प्रवेश के मानदंड भी बनाने चाहिए।

·   उच्च शिक्षण संस्थानों को डिग्री देने के लिए एचईसीआई से अनुमति लेनी होगी।

एक्रेडेशन

·   स्वैच्छिक, राष्ट्रीय मूल्यांकन और प्रत्ययन परिषद (एनएएसी) (यूजीसी की स्वायत्त संस्था) नियम बनाती है।

·   एक्रेडेशन के नियम बनाएं और एक्रेडेटिंग एजेंसियों को सर्टिफाई करें जोकि सरकार से स्वतंत्र हों।

·   अनिवार्य, एचईसीआई एक्रेडेशन की प्रणाली बनाए।

संस्थान के प्रमुख की नियुक्ति

·   कोई विनिर्देश नहीं।

·    वाइस चांसलर्स और डायरेक्टर्स की नियुक्ति स्वतंत्र सर्च कमिटी द्वारा की जाए और वह सिर्फ सहकर्मियों के फैसलों (पीयर जजमेंट) पर आधारित हों।

·   (i) वाइस चांसलर्स, (ii) प्रो वाइस चांसलर्स, (iii) डायरेक्टर्स, और (iv) डीन्स के लिए नियम बनाएगा।

संस्थान को बंद करना

·   कोई विनिर्देश नहीं।.

·   कोई सुझाव नहीं।

·   संस्थान बंद कर सकता है, अगर: (i) संस्थान उच्च शिक्षा के न्यूनतम मानदंडों का पालन नहीं करता, या (ii) निश्चित समय सीमा में एक्रेडेशन नहीं लेता।

सजा देने की शक्ति

·   अगर उच्च शिक्षण संस्थान यूजीसी एक्ट के अंतर्गत मंजूरी लिए बिना डिग्री देता है या स्वयं को विश्वविद्यालय कहता है तो 1,000 रुपए का जुर्माना लगाया जा सकता है। मंजूरी वापस लेने की शक्ति नहीं है।

·   अगर संस्थान यूजीसी के सुझावों का पालन नहीं करता तो उसे अनुदान देना बंद किया जा सकता है।

·   कोई सुझाव नहीं।

·   अगर उच्च शिक्षण संस्थान बिना अनुमति लिए डिग्री देता है या किसी नियम का उल्लंघन करता है तो आयोग: (i) जुर्माना लगा सकता है, या (ii) डिग्री देने से जुड़ी मंजूरी को वापस ले सकता है।

·   अगर ऐसे संस्थान के प्रबंधक जुर्माना नहीं भरते तो उन्हें अधिकतम तीन वर्ष तक के कारावास की सजा हो सकती है।

Sources: The University Grants Commission Act, 1956; The Draft Higher Education Commission (Repeal of the University Grants Commission Act, 1956) Bill, 2018; The National Knowledge Commission (2006-09); The Yashpal Committee (2010); PRS.

प्रोफेशनल शिक्षा का रेगुलेशन

वर्तमान में मेडिकल, कानूनी, नर्सिंग या आर्किटेक्चर की शिक्षा से संबंधित प्रोफेशनल कोर्सेज़ चलाने वाले उच्च शिक्षण संस्थानों को 14 प्रोफेशनल परिषदें रेगुलेट करती हैं, जैसे मेडिकल काउंसिल, बार काउंसिल, नर्सिंग काउंसिल और काउंसिल फॉर आर्किटेक्चर। इन परिषदों को निम्नलिखित अधिकार हैं : (i) प्रोफेशन में दाखिले के लिए क्वालिफाइंग परीक्षाएं कराना, और (ii) प्रोफेशनल प्रैक्टिस के मानदंड विनिर्दिष्ट करना। बिल कानूनी और आर्किटेक्चर की शिक्षा को एचईसीआई के दायरे में लाता है और बार काउंसिल एवं काउंसिल ऑफ आर्किटेक्चर की भूमिका को सीमित करता है। बिल के अनुसार, अब वे सिर्फ प्रोफेशनल प्रैक्टिस को रेगुलेट करेंगे। यह अस्पष्ट है कि केवल कानूनी और आर्किटेक्चर की शिक्षा को एचईसीआई के रेगुलेटरी दायरे में क्यों शामिल किया गया है और बाकी की प्रोफेशनल शिक्षा को नहीं।

उल्लेखनीय है कि राष्ट्रीय ज्ञान आयोग (2009) और यशपाल कमिटी (2010) ने उच्च शिक्षा के स्वतंत्र रेगुलेटर के अंतर्गत सभी प्रोफेशनल परिषदों के शैक्षिक कार्यों को शामिल करने का सुझाव दिया था।5,4उनका कहना था कि प्रोफेशनल परिषदों की भूमिका को केवल क्वालिफाइंग परीक्षाएं कराने तक सीमित होना चाहिए और सभी शैक्षिक फैसलों को विश्वविद्यालयों पर छोड़ दिया जाना चाहिए। बिल इससे विपरीत दिशा में जाता है, क्योंकि उसके अनुसार एचईसीआई कानूनी और आर्किटेक्चर की शिक्षा के लिए भी शैक्षणिक मानदंड बनाएगा। 

संस्थानों को अनुदान देने के संबंध में स्पष्टता का अभाव

वर्तमान में यूजीसी के पास विश्वविद्यालयों और कॉलेजों को अनुदान आबंटित और संवितरित करने की शक्ति है। बिल यूजीसी को समाप्त करता है लेकिन वह अनुदान संवितरित करने से संबंधित कोई प्रावधान नहीं करता। इससे सवाल उठता है कि क्या उच्च शिक्षण संस्थानों को अनुदान देने में एचईसीआई की कोई भूमिका होगी। मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने कहा था कि अनुदान संवितरण के लिए अलग से एक संस्था बनाई जाएगी, जोकि मेरिट आधारित पद्धति के आधार पर काम करेगी।[11] लेकिन बिल में इससे संबंधित कोई प्रावधान नहीं हैं।

राष्ट्रीय ज्ञान आयोग (2009) ने सुझाव दिया था कि इन कामों को अलग-अलग कर दिया जाए। एक स्वतंत्र रेगुलेटर उच्च शिक्षण संस्थानों के लिए मानदंडों का निर्धारण करे और यूजीसी अनुदान संवितरण के लिए जिम्मेदार हो।5  इसके अतिरिक्त उच्च शिक्षा और अनुसंधान बिल, 2011 में, जिसे बाद में वापस ले लिया गया था, अनुदान संवितरण के लिए अलग संस्था बनाने का प्रस्ताव था, जबकि रेगुलेटर का काम अनुदान संवितरण के लिए नियम बनाना था।

सलाहकार परिषद की भूमिका

बिल केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री की अध्यक्षता में सलाहकार परिषद की स्थापना करता है। यह परिषद निम्नलिखित मुद्दों पर सलाह देगी : (i) केंद्र और राज्य सरकारों के बीच समन्वय, और (ii) उच्च शिक्षा के लिए मानदंड बनाना।

वर्तमान में केंद्रीय उच्च शिक्षा सलाहकार बोर्ड (केब) शिक्षा संबंधी मामलों में केंद्र और राज्यों के बीच समन्वय करता है और उन्हें सलाह देता है। हालांकि यूजीसी और एआईसीटीई जैसी रेगुलेटरी संस्थाएं केब के सुझावों को मानने के लिए कानूनी रूप से बाध्य नहीं हैं। बिल एचईसीआई के लिए यह अनिवार्य करता है कि वह सलाहकार परिषद के सुझावों को लागू करे। इससे एचईसीआई के स्वतंत्र रेगुलेट के रूप में काम करने में अड़चनें आ सकती हैं।

 

[1]. Union List: Entries 63, 64, 65 and 66. State List: Entry 32. Concurrent List: Entry 25.

[2]. The University Grants Commission Act, 1956

[3]. The All India Council for Technical Education Act, 1987.

[4]. “ Report of the Committee to Advise on Renovation and Rejuvenation of Higher Education, 2009, http://mhrd.gov.in/sites/upload_files/mhrd/files/document-reports/YPC-Report.pdf.

[5]. “Report to the Nation: 2006-2009, National Knowledge Commission, March 2009, http://www.aicte-india.org/downloads/nkc.pdf.

[6]. Report of the Committee on the Evolution of the New Education Policy, Ministry of Human Resource Development, March 30, 2016, http://www.prsindia.org/uploads/media/Report%20Summaries/Committee%20Report%20for%20Evolution%20of%20the%20New%20Education%20Policy.pdf.

[7]. The University Grants Commission (Categorization of Universities (only) for Grant of Graded Autonomy) Regulations, 2018, University Grants Commission, February 12, 2018, https://www.ugc.ac.in/pdfnews/1435338_182728.pdf.

[8]. University Grants Commission (Conferment of Autonomous Status Upon Colleges and Measures for Maintenance of Standards in Autonomous Colleges) Regulations, 2018, University Grants Commission, February 12, 2018, https://www.ugc.ac.in/pdfnews/2838506_182734.pdf.

[9]. ‘Government declares 6 educational Institutions of Eminence; 3 Institutions from Public Sector and 3 from Private Sector shortlisted, Ministry of Human Resource Development, July 11, 2018, http://mhrd.gov.in/sites/upload_files/mhrd/files/IoE_PR.pdf.

[10]. ‘Government approves draft Act for setting up of Higher Education Commission of India by repealing UGC Act, Ministry of Human Resource Development, June 27, 2018, http://mhrd.gov.in/sites/upload_files/mhrd/files/PR%20on%20HECI%20.pdf.

[11]. ‘The grant disbursal function to Universities and Colleges will be located in an independent entity which works in a transparent, merit-based approach through an ICT enabled platform, Press Information Bureau, Ministry of Human Resource Development, July 23, 2018.

 

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