लेजिसलेटिव ब्रीफ

वक्फ (संशोधन) बिल, 2024

बिल की मुख्‍य विशेषताएं

  • बिल केंद्रीय वक्फ परिषद और वक्फ बोर्ड्स की संरचना में बदलाव करता है ताकि उनमें गैर मुस्लिम सदस्यों को शामिल किया जा सके।

  • सर्वेक्षण आयुक्त की जगह कलेक्टर को लाया गया है और उसे वक्फ संपत्तियों के सर्वेक्षण का अधिकार दिया गया है।

  • वक्फ के तौर पर चिन्हित सरकारी संपत्तियां वक्फ नहीं रहेंगी। ऐसी संपत्तियों के स्वामित्व का निर्धारण कलेक्टर द्वारा किया जाएगा।

  • ट्रिब्यूनल के निर्णय को अंतिम निर्णय मानने के प्रावधान को रद्द कर दिया गया है। बिल में उच्च न्यायालय में प्रत्यक्ष अपील का प्रावधान किया गया है।

प्रमुख मुद्दे और विश्‍लेषण

  • वक्फ को मुस्लिम कानून के अनुसार प्रबंधित किया जाता है। बिल राज्य वक्फ बोर्ड्स और केंद्रीय वक्फ परिषद में गैर मुस्लिम सदस्यों की अनुमति देता है और ऐसा करना अनिवार्य करता है। बिल ऐसे निकायों में मुख्यतया गैर मुस्लिम सदस्यों को शामिल करने की जगह बनाता है। हिंदू और सिख बंदोबस्ती को प्रशासित करने वाले ऐसे संस्थानों में मुख्य रूप से उनके संबंधित धर्मों के सदस्य शामिल होते हैं। 

  • वक्फ ट्रिब्यूनल्स से मुस्लिम कानून के विशेषज्ञों को हटाने से वक्फ संबंधी संपत्तियों का निवारण प्रभावित हो सकता है।

  • बिल वक्फ के निर्माण को कम से कम पांच वर्ष तक इस्लाम का पालन करने वाले व्यक्तियों तक सीमित करता है। इस मापदंड का तर्क अस्पष्ट है। यह प्रावधान पांच वर्ष से कम समय से इस्लाम का पालन करने वाले लोगों, और ऐसा पांच वर्षों से अधिक समय तक करने वालों के बीच अंतर पैदा करता है।

भाग क : बिल की मुख्य विशेषताएं

संदर्भ

वक्फ किसी व्यक्ति द्वारा ऐसे उद्देश्य के लिए संपत्ति का स्थायी समर्पण होता है जिसे मुस्लिम कानून द्वारा पवित्र, धार्मिक या धर्मार्थ माना जाता है।[1] इन उद्देश्यों में निम्नलिखित शामिल हैं: (i) मस्जिद और कब्रिस्तान का रखरखाव, (ii) शिक्षण संस्थानों और स्वास्थ्य सेवा केंद्रों की स्थापना, और (iii) गरीब और विकलांग लोगों को वित्तीय सहायता प्रदान करना।[2]

धर्मार्थ और धार्मिक संस्थाएं संविधान की समवर्ती सूची में शामिल हैं।[3] इसीलिए संसद और राज्य विधानमंडल, दोनों के पास उन पर कानून बनाने की शक्तियां हैं। वर्तमान में भारत में वक्फ का निर्माण और प्रबंधन वक्फ एक्ट, 1995 के तहत किया जाता है।1 इस एक्ट से पहले 1913, 1923 और 1954 में इससे संबंधित कई कानून पारित किए जा चुके हैं।[4] उत्तर प्रदेश और बंगाल जैसे राज्यों ने वक्फ को प्रशासित करने के लिए अलग कानून पारित किए हैं।[5] हालांकि 1995 के एक्ट के जरिए इन सभी को निरस्त कर दिया गया था।

भारत में निम्नलिखित के जरिए वक्फ का निर्माण किया जा सकता है: (i) मौखिक या लिखित बैनामे (डीड) के माध्यम से संपत्ति की घोषणा, (ii) धार्मिक या धर्मार्थ उद्देश्यों के लिए जमीन का लंबे समय से इस्तेमाल, या (iii) उत्तराधिकारी न रहने पर बंदोबस्ती। वक्फ का निर्माण करने वाला वाकिफ कहलाता है। इसका प्रबंधन एक प्रशासक (मुतवल्ली) द्वारा किया जाता है। सितंबर 2024 तक भारत में 8.7 लाख पंजीकृत अचल वक्फ संपत्तियां हैं।[6],[7] सामाजिक न्याय एवं सशक्तीकरण से संबंधित स्टैंडिंग कमिटी (2014) ने कहा था कि ज्यादातर राज्यों ने वक्फ संपत्तियों का सर्वेक्षण पूरा नहीं किया है।[8] अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय के अनुसार, भारत में विश्व की सबसे ज्यादा वक्फ संपत्तियां हैं।7 सच्चर समिति (2006) ने अनुमान लगाया था कि वक्फ संपत्तियों की मार्केट वैल्यू 1.2 लाख करोड़ रुपए है।2 

सभी पंजीकृत अचल वक्फ संपत्तियों में से 7% पर कब्जा है, 2% पर मुकदमा चल रहा है, और 50% की स्थिति अज्ञात है।6 इन संपत्तियों में से आधी: (i) कब्रिस्तान (17%), (ii) खेतिहर जमीन (16%), (iii) मस्जिदें (14%) और (iv) दुकानें (13%) हैं। जिन राज्यों की हिस्सेदारी सबसे ज्यादा है, वे हैं: (i) उत्तर प्रदेश (27%), (ii) पश्चिम बंगाल (9%), और (iii) पंजाब (9%)। (राज्यवार वितरण के लिए अनुलग्नक की तालिका 5 देखें)।

पिछले कुछ वर्षों में भारत में वक्फ को प्रशासित करने वाले कानूनों का दायरा बढ़ा है। 1913 का एक्ट सिर्फ वक्फ बैनामों को वैधता प्रदान करता है। 1923 में इसका दायरा बढ़ाया गया है ताकि वक्फ संपत्ति के पंजीकरण को अनिवार्य किया जा सके। 1954 में वक्फ की बेहतर तरीके से पहचान करने और उसके प्रबंधन के लिए केंद्रीय वक्फ परिषद और राज्य वक्फ बोर्ड्स का गठन किया गया। 1995 के एक्ट में निम्नलिखित को प्रस्तावित किया गया: (i) वक्फ संबंधित विवादों पर निर्णय लेने के लिए ट्रिब्यूनल्स, और (ii) बोर्ड में निर्वाचित सदस्य और इस्लामिक धर्मशास्त्र के नामित विद्वान।

भारत में कई समितियों ने वक्फ की स्थिति की समीक्षा की।[9],[10],इन समितियों ने कई मुद्दों पर प्रकाश डाला, जैसे: (i) अप्राप्त राजस्व क्षमता, (ii) अतिक्रमण, (iii) खराब रखरखाव, (iv) वक्फ ट्रिब्यूनल में मामलों का लंबित होना, और (v) सर्वेक्षण करने में पारदर्शिता और दक्षता की कमी। 2013 में इस एक्ट में संशोधन किया गया और निम्नलिखित को शामिल किया गया: (i) अतिक्रमण करने वाले की परिभाषा, (ii) ट्रिब्यूनल के आकार का विस्तार, और (iii) वक्फ के प्रबंधन पर वक्फ बोर्ड्स की अधिक निगरानी।[11] 

वक्फ (संशोधन) बिल, 2024 को लोकसभा में 28 अगस्त, 2024 को पेश किया गया था। यह बिल 1995 के वक्फ एक्ट में निम्नलिखित संशोधन करता है: (i) परिषद और बोर्ड्स की संरचना, (ii) वक्फ बनाने का मानदंड, और (iii) वक्फ संपत्ति को चिन्हित करने की बोर्ड की शक्तियां। बिल को ज्वाइंट पार्लियामेंटरी कमिटी (चेयर: श्री जगदंबिका पाल) को भेजा गया है।

मुख्य विशेषताएं

बिल में मुख्य परिवर्तनों में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • वक्फ की स्थापना: एक्ट में निम्नलिखित के जरिए वक्फ की स्थापना की अनुमति है: (i) घोषणा, (ii) लंबे समय से उपयोग के आधार पर मान्यता (उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ), या (iii) उत्तराधिकारी न रहने पर बंदोबस्ती (वक्फ-अलल-औलाद)। बिल में कहा गया है कि कम से कम पांच वर्ष तक इस्लाम का पालन करने वाला व्यक्ति ही वक्फ की घोषणा कर सकता है। बिल स्पष्ट करता है कि घोषित की जा रही संपत्ति पर व्यक्ति का स्वामित्व होना चाहिए। बिल उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ को हटाता है। इसमें यह भी कहा गया है कि वक्फ-अलल-औलाद के परिणामस्वरूप दाता के उत्तराधिकारी, जिसमें महिलाएं भी शामिल हैं, को विरासत के अधिकार से वंचित नहीं किया जाना चाहिए।

  • वक्फ का सर्वेक्षण: एक्ट के तहत वक्फ संपत्तियों के प्रारंभिक सर्वेक्षण के लिए एक सर्वेक्षण अधिकारी की नियुक्ति की गई है। बिल इसके स्थान पर जिला कलेक्टर को सर्वेक्षण का अधिकार देता है।

  • वक्फ के तौर पर सरकारी संपत्ति: बिल में कहा गया है कि वक्फ के रूप में पहचानी गई कोई भी सरकारी संपत्ति वक्फ नहीं रहेगी।  अनिश्चितता की स्थिति में क्षेत्र का कलेक्टर स्वामित्व का निर्धारण करेगा और राज्य सरकार को एक रिपोर्ट सौंपेगा। सरकारी संपत्ति समझे जाने पर कलेक्टर राजस्व रिकार्ड को अपडेट करेगा।

  • केंद्रीय वक्फ परिषद: एक्ट के तहत वक्फ के प्रभारी केंद्रीय मंत्री परिषद के पदेन अध्यक्ष होते हैं। परिषद के सदस्यों में संसद सदस्य, राष्ट्रीय स्तर के प्रतिष्ठित व्यक्ति, सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश और मुस्लिम कानून के प्रतिष्ठित विद्वान शामिल हैं। एक्ट के अनुसार परिषद के सभी सदस्य मुस्लिम होने चाहिए, मंत्री को छोड़कर, और इनमें कम से कम दो महिलाएं होनी चाहिए। बिल परिषद में नियुक्त सांसदों, पूर्व न्यायाधीशों और प्रतिष्ठित व्यक्तियों के लिए मुस्लिम होने की आवश्यकता को हटाता है। इसमें आगे कहा गया है कि दो सदस्य गैर मुस्लिम होने चाहिए।

  • वक्फ बोर्ड्स की संरचना: एक्ट में प्रावधान है कि बोर्ड के लिए राज्य के मुस्लिम (i) सांसदों, (ii) एमएलए और एमएलसी, और (iii) बार काउंसिल सदस्यों के इलेक्टोरल कॉलेज में से प्रत्येक से दो सदस्यों का निर्वाचन किया जाएगा। बिल राज्य सरकार को यह अधिकार देता है कि वह उपरिलिखित समूहों में से प्रत्येक के एक व्यक्ति को बोर्ड में नामित कर सकती है। उनका मुस्लिम होना जरूरी नहीं है। बिल में कहा गया है कि बोर्ड में निम्नलिखित होने चाहिए: (i) दो गैर मुस्लिम सदस्य, और (ii) शिया, सुन्नी और मुस्लिमों के पिछड़े वर्गों में से कम से कम एक सदस्य। एक्ट में प्रावधान है कि कम से कम दो सदस्य महिलाएं होनी चाहिए। बिल में कहा गया है कि दो मुस्लिम सदस्य महिलाएं होंगी।

  • ट्रिब्यूनल की संरचना: एक्ट के तहत गठित ट्रिब्यूनल में निम्नलिखित शामिल होंगे: (i) वर्ग-1 रैंक के जज, जिला, सत्र या सिविल जज (अध्यक्ष), (ii) अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट के बराबर एक राज्य अधिकारी, और (ii) मुस्लिम कानून का एक विशेषज्ञ। बिल ट्रिब्यूनल से मुस्लिम कानून के विशेषज्ञ को हटाता है, और इसकी संरचना में बदलाव करके निम्नलिखित को शामिल करता है: (i) इसके अध्यक्ष के रूप में एक वर्तमान या पूर्व जिला न्यायालय न्यायाधीश, और (ii) राज्य सरकार के संयुक्त सचिव रैंक का एक वर्तमान या पूर्व अधिकारी।

  • ट्रिब्यूनल के आदेशों के खिलाफ अपील: एक्ट के तहत, ट्रिब्यूनल के निर्णय अंतिम होते हैं और न्यायालयों में इसके निर्णयों के खिलाफ अपील नहीं की जा सकती। बोर्ड या पीड़ित पक्ष के आवेदन पर उच्च न्यायालय अपनी मर्जी से मामलों पर विचार कर सकता है। बिल ट्रिब्यूनल के निर्णयों को अंतिम मानने वाले प्रावधानों को हटाता है। ट्रिब्यूनल के आदेशों के खिलाफ 90 दिनों के भीतर उच्च न्यायालय में अपील की जा सकती है।

भाग ख: मुख्य मुद्दे और विश्लेषण

वक्फ के गवर्नेंस में मुस्लिमों के प्रतिनिधित्व को कम करना

1913, 1923, 1954 और 1995 के वक्फ एक्ट्स में यह अपेक्षित है कि वक्फ का निर्माण मुस्लिम कानून के अनुसार किया जाए।1,4  मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) एप्लिकेशन एक्ट, 1937 में यह निर्दिष्ट किया गया है कि वक्फ से संबंधित सभी सवालों में, निर्णय से संबंधित नियम, जहां पक्ष मुस्लिम हैं, मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) होगा।[12]  इस प्रकार ये मुस्लिमों के विशेष कानून हैं, जोकि दूसरे धर्मनिरपेक्ष कानूनों, जैसे भारतीय ट्रस्ट एक्ट, 1882 और सोसायटीज़ रजिस्ट्रेशन एक्ट, 1860, से अलग हैं। इन कानूनों के तहत धर्मार्थ उद्देश्यों के लिए संस्थानों का निर्माण भी किया जा सकता है।[13],[14] एक्ट के तहत वक्फ को प्रशासित करने वाले निकायों में विशेष रूप से मुस्लिम सदस्य होने चाहिए। बिल इन निकायों में गैर मुस्लिम सदस्यों को शामिल करने के लिए इस प्रावधान में संशोधन करता है।

वक्फ मुस्लिम पर्सनल कानून का एक हिस्सा है। वक्फ को प्रशासित करने वाले संस्थानों में गैर मुस्लिम सदस्यों के बहुमत की अनुमति देने से संविधान के अनुच्छेद 26 का उल्लंघन हो सकता है। अनुच्छेद 26 में प्रावधान है कि धार्मिक समुदायों को अपने मामले प्रशासित और प्रबंधित करने का मौलिक अधिकार है। कुछ अन्य धार्मिक और धर्मार्थ संस्थानों को प्रशासित करने वाले कानूनों के अनुसार अधिकांश बोर्ड सदस्यों और प्रशासकों को उनके धार्मिक संप्रदाय से संबंधित होना आवश्यक है।[15],[16],[17] (संबधित कानूनों पर अधिक जानकारी के लिए तालिका 2 को देखें।)  

केंद्रीय वक्फ परिषद और वक्फ बोर्ड्स में गैर मुस्लिम सदस्य

वक्फ एक्ट, 1995 के अनुसार केंद्रीय वक्फ परिषद और राज्य वक्फ बोर्ड्स में ज्यादातर मुस्लिम सदस्य होने चाहिए। बिल इस प्रावधान को बदलता है, और इन निकायों में गैर मुस्लिम सदस्यों की मौजूदगी को अनिवार्य करता है। यह वक्फ परिषद और राज्य वक्फ बोर्ड्स में गैर मुस्लिमों के बहुमत की भी अनुमति देता है। एक्ट के तहत राज्य वक्फ बोर्ड्स में आठ में से चार सदस्य निर्वाचित होते हैं, और चार को राज्य सरकार द्वारा नामित किया जाता है। बिल इसमें बदलाव करता है और राज्य सरकार को बोर्ड के सभी सदस्यों को नामित करने की अनुमति देता है।

एक्ट के तहत वक्फ के प्रभारी मंत्री द्वारा केंद्रीय वक्फ परिषद की अध्यक्षता की जाती है। मंत्री को छोड़कर परिषद के सभी सदस्य मुस्लिम होने चाहिए। बिल इस अनिवार्यता को खत्म करता है कि कुछ सदस्य मुस्लिम होने चाहिए। यह अनिवार्य करता है कि दो सदस्य गैर मुस्लिम होने चाहिए। बिल परिषद के 22 में से 12 सदस्यों के गैर मुस्लिम होने की गुंजाइश छोड़ता है।

एक्ट कहता है कि राज्य वक्फ बोर्ड के सभी सदस्य मुस्लिम होंगे। बिल इसमें बदलाव करके, अनिवार्य करता है कि कम से कम दो गैर मुस्लिम सदस्य होंगे और बोर्ड के 11 में से सात सदस्यों के गैर मुस्लिम होने की अनुमति देता है।

एक्ट यह अनिवार्य करता है कि बोर्ड के दो सदस्य महिलाएं होंगी। बिल इसमें संशोधन करता है और अनिवार्य करता है कि दो मुस्लिम सदस्य महिलाएं होंगी। गैर मुस्लिम सदस्यों के लिए ऐसी अनिवार्यता नहीं है।

तालिका 1: एक्ट और बिल में वक्फ बोर्ड्स की संरचना

मानदंड

वक्फ एक्ट, 1995

वक्फ (संशोधन) बिल, 2024

कुल सदस्य

8-12 सदस्य

11 सदस्य तक

नियुक्ति की प्रकृति

निर्वाचित और नामित, सभी मुस्लिम

सभी नामित

संरचना में बदलाव

निर्वाचित (प्रत्येक में 1-2)

  • मुस्लिम सांसद
  • मुस्लिम एमएलए/एमएलसी
  • मुस्लिम बार काउंसिल सदस्य
  • मुतवल्ली

नामित, गैर मुस्लिम हो सकते हैं

  • एक अध्यक्ष
  • एक सांसद
  • एक विधायक
  • दो प्रोफेशनल
  • राज्य सरकार का एक अधिकारी
  • बार परिषद का एक सदस्य

नामित

  • एक मुस्लिम प्रोफेशनल
  • दो विद्वान; शिया और सुन्नी धर्मशास्त्र
  • राज्य सरकार का एक मुस्लिम अधिकारी

मुस्लिम होना चाहिए

  • एक मुतवल्ली
  • इस्लामिक धर्मशास्त्र का एक विद्वान
  • पंचायत/म्युनिसिपैलिटी के दो सदस्य

स्रोत: वक्फ एक्ट, 1995; वक्फ (संशोधन) बिल, 2024; पीआरएस।

मुख्य कार्यकारी अधिकारी का मुस्लिम होना जरूरी नहीं

एक्ट के तहत राज्य सरकारों को राज्य वक्फ बोर्ड में एक मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) की नियुक्ति करनी होती है। सीईओ राज्य सरकार का उप सचिव रैंक के बराबर का मुस्लिम अधिकारी होता है। अगर उस रैंक पर कोई मुस्लिम अधिकारी न हो तो उसी रैंक के एक मुस्लिम अधिकारी की नियुक्ति की जा सकती है। सीईओ को वक्फ बैनामे, वक्फ के उद्देश्य और मुस्लिम कानून का अनुपालन करते हुए काम करना होता है। बिल इस शर्त हटाता है कि सीईओ को मुस्लिम होना चाहिए। दूसरे धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्ती कानूनों के तहत सीईओ के बराबर के प्रशासकों को उस संबंधित धर्म से जुड़ा हुआ होना चाहिए (देखें तालिका 2)।

सच्चर समिति (2006) ने कहा था कि वक्फ से संबंधित मामलों को अच्छी तरह से निपटाने के लिए इस्लामिक कानून के जानकार सरकारी अधिकारियों की जरूरत है।2 

 

 

तालिका 2: धार्मिक और धर्मार्थ संस्थानों को प्रशासित करने वाले विभिन्न कानूनों के बीच तुलना

कानून

कर्नाटक हिंदू धार्मिक संस्थान और धर्मार्थ बंदोबस्ती एक्ट, 1997

आंध्र प्रदेश धर्मार्थ और हिंदू धार्मिक और बंदोबस्ती एक्ट, 1987

सिख गुरुद्वारा एक्ट, 1925

बोर्ड

राज्य धार्मिक परिषद के सभी सदस्य हिंदू होने चाहिए।

आंध्र प्रदेश धार्मिक परिषद के 21 में से 13 सदस्य हिंदू होने चाहिए। 

बोर्ड के सभी सदस्य सिख होने चाहिए।

सीईओ/ आयुक्त/कार्यकारी अधिकारी

आयुक्त और कार्यकारी अधिकारी, जोकि लोक सेवक होते हैं, को हिंदू होना चाहिए।

कार्यकारी अधिकारी को हिंदू होना चाहिए।

कार्यकारी समिति के सभी सदस्य सिख होने चाहिए।

स्रोत: कर्नाटक हिंदू धार्मिक संस्थान और धर्मार्थ बंदोबस्ती एक्ट, 1997; आंध्र प्रदेश धर्मार्थ और हिंदू धार्मिक और बंदोबस्ती एक्ट, 1987; सिख गुरुद्वारा एक्ट, 1925; पीआरएस।

वक्फ ट्रिब्यूनल से मुस्लिम कानून के विशेषज्ञ को हटाना

एक्ट के तहत राज्यों को वक्फ से जुड़े विवादों को निपटाने के लिए ट्रिब्यूनल का गठन करना होता है। इस ट्रिब्यूनल के तीन सदस्यों में शामिल हैं: (i) वर्ग-1 रैंक के जज, जिला, सत्र या सिविल जज (अध्यक्ष), (ii) अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट के बराबर का एक राज्य अधिकारी, और (ii) मुस्लिम कानून और न्यायशास्त्र का एक विशेषज्ञ। बिल ट्रिब्यूनल से मुस्लिम कानून के विशेषज्ञ को हटाता है।

वक्फ किसी ऐसे उद्देश्य के लिए संपत्ति का स्थायी समर्पण होता है जिसे मुस्लिम कानून द्वारा पवित्र, धार्मिक या धर्मार्थ माना जाता है। एक लाभार्थी मुस्लिम कानून द्वारा स्वीकृत ऐसी धार्मिक, धर्मार्थ और पवित्र वस्तुओं से लाभ उठा सकता है। यह दलील दी जा सकती है कि मुस्लिम कानून के सिद्धांतों के अनुसार वक्फ से संबंधित विवादों को निपटाने के लिए ट्रिब्यूनल में मुस्लिम कानून की विशेषज्ञता वाले एक सदस्य की आवश्यकता है। कंपनी एक्ट, 2013 और बिजली एक्ट, 2003 जैसे अन्य कानूनों में अपीलीय ट्रिब्यूनल्स में न्यायिक सदस्यों के अलावा तकनीकी विशेषज्ञों की आवश्यकता होती है।[18],[19]

पांच वर्षों की धार्मिक संबद्धता अनुच्छेद 14 का उल्लंघन कर सकती है

1913, 1923, 1954 और 1995 के कानूनों में वक्फ को केवल इस्लाम को मानने वाले व्यक्तियों द्वारा संपत्ति के स्थायी समर्पण के रूप में परिभाषित किया गया था।1,4 1995 के एक्ट में 2013 में संशोधन करके वक्फ के दायरे को व्यापक बनाया गया ताकि कोई भी, गैर मुस्लिम लोग भी, संपत्ति को समर्पित कर सकें।[20]  2024 का बिल इस स्थिति को उलटता है, और एक आवश्यकता जोड़ता है कि वक्फ का निर्माण करने वाले व्यक्ति को कम से कम पांच वर्षों तक इस्लाम का पालन करना चाहिए।[21] 

यह पांच वर्ष से कम समय से इस्लाम का पालन करने वाले लोगों और ऐसा पांच वर्षो से अधिक समय तक करने वाले लोगों के बीच अंतर पैदा करता है। इस भेदभाव का तर्क भी अस्पष्ट है। ऐसे भेदभाव का स्पष्ट उद्देश्य न होने के कारण, यह संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) का उल्लंघन हो सकता है।[22] अनुच्छेद 14 दो वर्गों के साथ भिन्न-भिन्न प्रकार के व्यवहार की अनुमति देता है, अगर इस भेदभाव से कोई स्पष्ट सार्वजनिक उद्देश्य पूरा होता हो।

ट्रस्ट कानून से तुलना

वक्फ के अलावा ट्रस्टों के माध्यम से भी बंदोबस्ती की जा सकती है। ये ट्रस्ट भारतीय ट्रस्ट एक्ट, 1882 द्वारा प्रशासित होते हैं।13 महाराष्ट्र और गुजरात जैसे कुछ राज्यों ने सार्वजनिक ट्रस्टों को संचालित करने के लिए एक चैरिटी आयुक्त की स्थापना की है।[23]  निम्नलिखित तालिका में वक्फ एक्ट, 1995 और भारतीय ट्रस्ट एक्ट, 1882 के कुछ प्रमुख प्रावधानों के बीच तुलना की गई है।

तालिका 3: वक्फ एक्ट और भारतीय ट्रस्ट एक्ट के बीच तुलना

मानदंड

वक्फ एक्ट, 1995

भारतीय ट्रस्ट एक्ट, 1882

दाता/निर्माता

अनुबंध के लिए सक्षम कोई भी व्यक्ति (बिल इसे मुस्लिमों तक सीमित करता है)

अनुबंध में प्रवेश करने के लिए पात्र कोई भी व्यक्ति

दान का उद्देश्य

कोई भी चल या अचल संपत्ति

कोई भी चल या अचल संपत्ति

दान का तरीका

वक्फ निम्नलिखित के जरिए निर्मित किया जा सकता है: (i) घोषणा, (ii) लंबे समय से इस्तेमाल, या (iii) उत्तराधिकारी न रहने पर बंदोबस्ती

ट्रस्ट को निम्नलिखित के जरिए बनाया जा सकता है: (i) लिखित घोषणा और पंजीकरण, या (ii) ट्रस्टीज़ को संपत्ति के स्वामित्व का हस्तांतरण

उपयोग

मुस्लिम कानून के अनुसार धार्मिक, पवित्र या धर्मार्थ उद्देश्य

वैध उद्देश्य के लिए बनाया जाना चाहिए

वसीयत करने की क्षमता

कोई भी मुसलमान वसीयत के जरिए अपनी एक तिहाई से अधिक संपत्ति का दान नहीं कर सकता*

कोई भी मुसलमान वसीयत के जरिए अपनी एक तिहाई से अधिक संपत्ति का दान नहीं कर सकता*

प्रशासक

मुतवल्ली

ट्रस्टी प्रशासक होता है, जब तक कि वह लिखित घोषणा के जरिए किसी और को यह जिम्मेदारी नहीं सौंप देता

प्रशासित करने की प्रणाली

राज्य वक्फ बोर्ड्स

कुछ राज्यों में सार्वजनिक ट्रस्टों के लिए एक चैरिटी आयुक्त होता है**

विवाद निवारण

वक्फ ट्रिब्यूनल

दीवानी अदालतें

नोट: *यह 1937 के शरीयत एक्ट के अनुसार है। **उदाहरण के लिए महाराष्ट्र पब्लिक ट्रस्ट्स एक्ट, 1950 और बॉम्बे पब्लिक ट्रस्ट्स (गुजरात संशोधन) एक्ट, 1962 में चैरिटी आयुक्त का प्रावधान है। स्रोत: वक्फ एक्ट, 1995, भारतीय ट्रस्ट्स एक्ट, 1882; पीआरएस।

ड्राफ्टिंग में त्रुटियां

एक्ट में यह प्रावधान है कि राज्य वक्फ बोर्ड के सभी सदस्य मुस्लिम होंगे। अगर कोई सदस्य मुस्लिम नहीं है तो वह अयोग्य हो सकता है। बिल इस प्रावधान को बरकरार रखता है। हालांकि बिल में यह अनिवार्य किया गया है कि बोर्ड में दो गैर मुस्लिम सदस्य होंगे। इस प्रकार विरोधाभास पैदा होता है।

एक्ट में उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ को मान्यता दी गई है, और कहा गया है कि ऐसी संपत्ति उपयोगकर्ता के मौजूद न रहने पर भी वक्फ बनी रहेगी। बिल उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ को हटाता है। यह अस्पष्ट है कि यह परिवर्तन सिर्फ भविष्य में लागू होगा या क्या यह मौजूदा उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ संपत्तियों पर भी पूर्वव्यापी रूप से लागू होगा। अगर यह पूर्वव्यापी रूप से लागू होगा तो मौजूदा उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ संपत्तियां, वक्फ नहीं रह सकतीं।

विभिन्न देशों में वक्फ कानूनों के बीच तुलना

विभिन्न देशों में वक्फ कानून अलग-अलग हैं। मलयेशिया में कुछ राज्यों के अपने संबंधित वक्फ कानून हैं।[24],[25],[26]  इंडोनेशिया, बांग्लादेश और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) के राष्ट्रीय कानून हैं।[27],[28],[29] (देखें तालिका 4)।

तालिका 4: विभिन्न देशों में वक्फ कानूनों के बीच तुलना

मानदंड

संयुक्त अरब अमीरात

इंडोनेशिया

मलयेशिया

बांग्लादेश

कानून का प्रकार

केंद्रीय कानून

केंद्रीय कानून

राज्य कानून

केंद्रीय कानून

वक्फ का निर्माता

किसी व्यक्ति या कानूनी संस्था द्वारा निर्मित किया जा सकता है

किसी व्यक्ति, संगठन या कानूनी संस्था द्वारा निर्मित किया जा सकता है

किसी भी व्यक्ति द्वारा निर्मित किया जा सकता है

इस्लाम का पालन करने वाले किसी भी व्यक्ति द्वारा निर्मित किया जा सकता है

मान्यता प्राप्त वक्फ के प्रकार

घोषणा द्वारा वक्फ, उत्तराधिकारियों को वक्फ (फैमिली वक्फ), संयुक्त वक्फ (वक्फ फॉर फैमिली एंड चैरिटी)

घोषणा द्वारा वक्फ और उत्तराधिकारियों को वक्फ

घोषणा द्वारा वक्फ और उत्तराधिकारियों को वक्फ

घोषणा द्वारा वक्फ, उत्तराधिकारियों को वक्फ और उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ

प्रशासनिक संरचना

ट्रस्टी द्वारा प्रशासित। एक मस्जिद या कब्रिस्तान, या कोई भी संपत्ति जिसका कोई ट्रस्टी नहीं है, प्रत्येक अमीरात में बंदोबस्ती के लिए संबंधित अधिकारी द्वारा प्रबंधित की जाती है

वक्फ निकाय के कार्य: (i) वक्फ के विकास में प्रशासक को सलाह देना, और (ii) बड़ी वक्फ संपत्तियों का प्रबंधन और विकास करना

सभी संपत्तियां परिषद (मजलिस) में निहित हैं जो एकमात्र ट्रस्टी है।  वह आगे वक्फ प्रबंधन समिति की नियुक्ति करती है

प्रशासक निम्नलिखित कार्य करता है: (i) वक्फ का सर्वेक्षण, (ii) वक्फ का विकास, और (iii) वित्तीय निगरानी

प्रशासनिक संरचना का संयोजन

ऐसी अथॉरिटी का संयोजन नहीं दिया गया है

 

20-30 सदस्य। सभी मुस्लिम आस्था वाले इंडोनेशियाई नागरिक होने चाहिए

परिषद में अधिकतम 16 सदस्य होते हैं। पांच को इस्लामी कानून का ज्ञान होना चाहिए और चार को मुस्लिम होना चाहिए

प्रशासक और प्रशासक को सलाह देने वाली समिति को मुस्लिम होना चाहिए

 

विवाद

ऐसे विवादों से निपटने के लिए संबंधित अदालत

पहले चरण में विचार-विमर्श। सफल होने पर इन्हें अदालतों में मध्यस्थता और आर्बिट्रेशन के माध्यम से निपटाया जा सकता है

शरिया अदालत विवादों का निपटारा करती है।  राज्य फतवा समिति उन मामलों का प्रबंधन करती है जहां इस्लामी कानून सवालों के घेरे में होता है  

 

प्रशासक वक्फ संपत्ति से संबंधित फैसले लेता है

 

नोट: मलयेशिया का नेशनल लैंड कोड ट्रस्ट की परिभाषा से 'वकाफ' को बाहर करता है। स्रोत: संयुक्त अरब अमीरात: वक्फ (बंदोबस्ती) पर 2018 का फेडरल कानून संख्या 5, इंडोनेशिया: 2004 का सेंट्रल कानून संख्या 41, मलयेशिया: वकाफ (सेलांगोर राज्य) एनैक्टमेंट, 2015, वकाफ (सबाह राज्य) एनैक्टमेंट, 2018, वकाफ (तेरेंगानु) एनैक्टमेंट, 2016, बांग्लादेश: वक्फ अध्यादेश, 1962; पीआरएस।

 

अनुलग्नक

तालिका 5: अचल संपत्तियों की पंजीकृत संख्या का राज्यवार वितरण (शीर्ष सात)

राज्य/यूटी

संपत्ति

% में

राज्य/यूटी

संपत्ति

% में

उत्तर प्रदेश

2,32,547

27%

कर्नाटक

62,830

7%

पश्चिम बंगाल

80,480

9%

केरल

53,282

6%

पंजाब

75,965

9%

तेलंगाना 

45,682

5%

तमिलनाडु

66,092

8%

अन्य

2,55,450

29%

 

 

 

कुल

8,72,328

100%

नोट: इसमें शिया और सुन्नी वक्फ बोर्ड दोनों के तहत पंजीकृत संपत्तियां शामिल हैं। यहां संपत्ति की संख्याएं दी गई हैं, क्षेत्रफल नहीं। स्रोत: भारत की वक्फ संपत्ति प्रबंधन प्रणाली, अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय; पीआरएस।

 


[2]. Report on the Social, Economic and Educational Status of the Muslim Community of India, Prime Minister’s High Level Committee, Cabinet Secretariat, Government of India, November 2006. 

[3]. Entry No. 28, List III – Concurrent List, Constitution of India.

[6]. Immovable property registered Waqf Board-wise, Waqf Assets Management System of India, Ministry of Minority Affairs, accessed on September 23, 2024.

[7]. Press Release, Explainer on Waqf Amendment Bill, 2024, Ministry of Minority Affairs, September 13, 2024. 

[8]. Report No. 20, Standing Committee on Social Justice and empowerment, Ministry of Minority Affairs, Lok Sabha, August 12, 2015.

[9]. Report No. 3, Joint Parliamentary Committee on Amendments to the Wakf Act, 1995, Rajya Sabha, March 4, 2008.

[10]. Report of the Select Committee on The Wakf (Amendment) Bill, 2010, Rajya Sabha, December 16, 2011.

[18]. Section 410, The Companies Act, 2013

[19]. Section 112, The Electricity Act, 2003

[22]. Article 14, (Part III – Fundamental Rights), Constitution of India, 1950.

[29]. Federal Law No. 5 of 2018 on Waqf (Endowment).

 

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