लेजिसलेटिव ब्रीफ

    जन विश्वास (प्रावधानों में संशोधन) बिल, 2022

बिल की मुख्‍य विशेषताएं

  • जन विश्वास (प्रावधानों में संशोधन) बिल, 2022 के तहत विभिन्न क्षेत्रों से संबंधित 42 कानूनों में संशोधन का प्रयास है, जिनमें कृषि, पर्यावरण और मीडिया एवं पब्लिकेशन शामिल हैं। जिन कानूनों में संशोधन किया जाएगा, उनमें भारतीय डाक घर एक्ट, 1898, पर्यावरण (संरक्षण) एक्ट, 1986, सार्वजनिक देयता बीमा एक्ट, 1991 और सूचना प्रौद्योगिकी एक्ट, 2000 शामिल हैं।    
  • बिल कई जुर्मानों (फाइन) को अर्थदंड (पैनेल्टी) में बदलता है जिसका अर्थ यह है कि सजा देने के लिए अदालत में मुकदमा चलाने की जरूरत नहीं है। यह कई अपराधों के लिए सजा के तौर पर कारावास को भी हटाता है। भारतीय डाक घर एक्ट, 1898 के तहत सभी अपराधों को हटाया जा रहा है।   
  • निर्दिष्ट एक्ट्स में कुछ अपराधों के लिए जुर्माने और अर्थदंड को बढ़ाया जा रहा है। इन जुर्मानों और अर्थदंड को हर तीन वर्षों में न्यूनतम राशि से 10% तक बढ़ाया जाएगा।
  • बिल एडजुडिकेटिंग अधिकारियों की नियुक्ति के प्रावधान के लिए कुछ एक्ट्स में संशोधन करता है। ये अधिकारी अर्थदंड को तय करेंगे। इसके अलावा वह अपीलीय तंत्र को भी निर्दिष्ट करता है।

 

प्रमुख मुद्दे और विश्‍लेषण

  • बिल भारतीय डाक घर एक्ट, 1898 के सभी अपराधों को हटाता है। इससे दो प्रश्न उठते हैं। पहला, चूंकि इस एक्ट के तहत कई अपराध सिर्फ डाक घर अधिकारियों द्वारा किए जा सकते हैं, इसलिए यह स्पष्ट नहीं है कि इन अपराधों को हटाना जीवन और कारोबारी सुगमता में सुधार के कथित उद्देश्य के साथ कैसे प्रासंगिक है। दूसरा, हटाए गए अपराधों में पोस्टल सामान को गैरकानूनी तरीके से खोलना भी शामिल है। इस अपराध के लिए सजा को हटाने से प्राइवेसी का अनुचित अतिक्रमण हो सकता है। 
  • पर्यावरणीय अपराधों के लिए अर्थदंड निर्धारित करने के लिए जिन एडजुडिकेटिंग अधिकारियों को नियुक्त किया जाएगा, वे कार्यपालिका के वरिष्ठ अधिकारी होते हैं। ऐसी सजा पर फैसला देने के लिए उनके पास जरूरी तकनीकी और न्यायिक क्षमता की कमी हो सकती है।
  • बिल पर्यावरण संरक्षण के लिए शिक्षा, जागरूकता और अनुसंधान हेतु एक पर्यावरण संरक्षण फंड की स्थापना करता है। इस फंड को बनाने का कारण स्पष्ट नहीं है क्योंकि उसका उद्देश्य वही है जो केंद्रीय और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड्स के मौजूदा फंड्स का है। 
  • बिल उच्च मूल्य के बैंक नोट (विमुद्रीकरण) एक्ट, 1978 के तहत अपराधों को अपराधमुक्त करता है। 16 जनवरी, 1978 को उच्च मूल्य वाले बैंक नोटों को लीगल टेंडर के तौर पर हटाने के लिए इस कानून का इस्तेमाल किया गया था। यह समय सीमा उस कानून के तहत रेगुलेटरी अनुपालन पर भी लागू होती है। इसलिए 45 वर्षों के बाद इस कानून के तहत दंड में संशोधन प्रासंगिक नहीं हो सकता है। 

 

भाग क : बिल की मुख्य विशेषताएं

संदर्भ

विश्व बैंक की कारोबारी सुगमता सूची में व्यापारिक गतिविधियों के विभिन्न पहलु शामिल होते हैं जिसमें अनुबंध प्रवर्तन और कर अनुपालन शामिल है।[1] 2013 में 185 देशों की सूची में भारत का स्थान 132वां था और 2020 में इसमें सुधार हुआ। 2020 की सूची में भारत का स्थान 63वां था। इसके बाद विश्व बैंक ने कहा कि वह अब रिपोर्ट जारी नहीं करेगा।1,[2],[3] पिछले कुछ वर्षों के दौरान विभिन्न विशेषज्ञ समितियों, जिसमें वाणिज्य संबंधी स्टैंडिंग कमिटी और कंपनी कानून समिति शामिल हैं, ने सुझाव दिया कि व्यापारिक गतिविधियों में बाधाओं को कम करने के लिए सुधार किए जाने चाहिए।[4] कंपनी कानून समिति ने कहा कि तकनीकी या प्रक्रियागत उल्लंघनों के लिए आपराधिक दायित्व, व्यापारिक गतिविधियों में रुकावट बनते हैं।[5],[6] इसके परिणाम के तौर पर 2019 और 2020 में कंपनी एक्ट, 2013 में संशोधन किए गए ताकि अपराधों को दीवानी उल्लंघनों के तौर पर फिर से वर्गीकृत किया जा सके, जिसे सरकारी अधिकारी द्वारा दिया जा सकता है।[7],[8]  

जन विश्वास (प्रावधानों में संशोधन) बिल, 2022 को लोकसभा में 22 दिसंबर, 2022 को पेश किया गया। यह कुछ अपराधों को डीक्रिमिनलाइज करने, व्यक्तियों और कारोबारों पर अनुपालन का बोझ कम करने और कारोबारी सुगमता सुनिश्चित करने के लिए 42 कानूनों में संशोधन करता है। इस बिल को ज्वाइंट पार्लियामेंटरी कमिटी (चेयरश्री पी.पी. चौधरी) को भेजा गया था जिसने 17 मार्च, 2023 को अपनी रिपोर्ट सौंप दी।[9]  

कमिटी ने कुछ अपराधों की गंभीरता में संशोधनों का सुझाव दिया। उदाहरण के लिए मर्चेंट शिपिंग एक्ट, 1958 के तहत किसी दुर्घटना में जहाज के शामिल होने पर अधिसूचित प्राधिकरण को इसकी सूचना न देने की स्थिति में एक साल की कैद, 10,000 रुपए तक का जुर्माना या दोनों हैं। बिल इसमें संशोधन करता है और पांच लाख रुपए तक का अर्थदंड लगाता है। कमिटी ने सुझाव दिया कि ऐसे उल्लंघनों के पर्यावरणीय प्रभावों के कारण इस संशोधन को हटा दिया जाए।बिल द्वारा कुछ कानूनों को डिक्रिमिनाइज किया गया है, जैसे बॉयलर्स एक्ट, 1923। इनके लिए कमिटी ने सुझाव दिया कि एडजुडिकेटिंग अधिकारियों और एडजुडिकेटिंग अधिकारियों से कम से कम एक रैंक ऊपर के अपीलीय अधिकारियों के प्रावधान के लिए संशोधन किए जाएं।9

मुख्य विशेषताएं 

  • बिल 42 कानूनों में संशोधन करता है, जिनमें निम्नलिखित शामिल हैंभारतीय डाक घर एक्ट, 1898, पर्यावरण (संरक्षण) एक्ट, 1986, सार्वजनिक देयता बीमा एक्ट, 1991 और सूचना प्रौद्योगिकी एक्ट, 2000।
  • कुछ अपराधों को अपराध मुक्त (डीक्रिमिनलाइज) करना: बिल कुछ कानूनों में कुछ अपराधों को कैद की सजा से मुक्त करता है और उनके लिए सिर्फ मौद्रिक दंड का प्रावधान करता है। उदाहरण के लिए सूचना प्रौद्योगिकी एक्ट, 2000 के तहत कानूनी अनुबंध का उल्लंघन करते हुए व्यक्तिगत सूचना का खुलासा करने पर तीन वर्ष तक की कैद, या पांच लाख रुपए तक का जुर्माना या दोनों भुगतने पड़ सकते हैं। बिल इसे 25 लाख रुपए तक के अर्थदंड से बदलता है। कुछ एक्ट्स में अपराधों को अपराध मुक्त किया गया है, और जुर्मानों को अर्थदंड में बदला गया है। उदाहरण के लिए पेटेंट एक्ट, 1970 के तहत अगर कोई व्यक्ति किसी वस्तु के भारत में पेटेंटकृत होने का झूठा दावा करता है तो यह अपराध एक लाख रुपए तक के जुर्माने के अधीन है। बिल इस जुर्माने को अर्थदंड में बदलता है जोकि 10 लाख रुपए तक हो सकता है।  
  • अपराधों को हटानाबिल कुछ अपराधों को हटाता है। इसमें भारतीय डाक घर एक्ट, 1898 के तहत सभी अपराध शामिल हैं। 
  • जुर्मानों और अर्थदंड में संशोधन: बिल कुछ निर्दिष्ट एक्ट्स में विभिन्न अपराधों के लिए जुर्माने और अर्थदंड को बढ़ाता है। इन जुर्मानों और अर्थदंड को हर तीन वर्षों में न्यूनतम राशि से 10तक बढ़ाया जाएगा।
  • एडजुडिकेटिंग अधिकारियों की नियुक्ति: केंद्र सरकार अर्थदंड निर्धारित करने के लिए एक या एक से अधिक एडजुडिकेटिंग अधिकारियों की नियुक्ति कर सकती है। ये अधिकारी सबूतों के लिए व्यक्तियों को समन कर सकते हैं और संबंधित कानूनों के उल्लंघन की जांच कर सकते हैं। इन कानूनों में कृषि उपज (ग्रेडिंग और मार्किंग) एक्ट, 1937 और सार्वजनिक देयता बीमा एक्ट, 1991 शामिल हैं। बिल इन अधिकारियों के आदेश के खिलाफ अपीलीय व्यवस्था को भी निर्दिष्ट करता है। जैसे पर्यावरणीय (संरक्षण) एक्ट, 1986 में एडजुडिकेटिंग अधिकारियों के आदेश के खिलाफ राष्ट्रीय हरित ट्रिब्यूनल में 60 दिनों के भीतर अपील दायर की जा सकती है। 

 

भाग ख: प्रमुख मुद्दे और विश्‍लेषण

भारतीय डाक घर एक्ट, 1898 के तहत अपराधों को हटाना

बिल भारतीय डाक घर एक्ट, 1898 के तहत सभी अपराधों और अर्थदंड को हटाता है। इससे दो मुद्दे उठते हैं। 

एक्ट के तहत अपराधों को हटाना विधायी उद्देश्य से प्रासंगिक नहीं हो सकता

जिन अपराधों को हटाया गया है, उनमें से कुछ डाक घर में काम करने वाले अधिकारियों द्वारा किए जाते हैं, जैसे पोस्टल सामान की चोरी या बेइमानी से दुरुपयोग और पोस्टल चिन्हों से संबंधित धोखाधड़ी। यह अस्पष्ट है कि इन अपराधों को क्यों हटाया गया है, चूंकि ये बिल के उद्देश्य के मद्देनजर प्रासंगिक नहीं हो सकते। बिल का कथित उद्देश्य है, जीवन और कारोबारी सुगमता को बढ़ावा देने के लिए कुछ अपराधों को अपराध मुक्त करना।  

एक्ट के तहत अपराधों को हटाने से प्राइवेसी के मुद्दे उठते हैं

एक्ट पोस्टल सामान को गैर कानूनी तरीके से खोलने पर डाक घरों के अधिकारियों को दो वर्ष की कैद या जुर्माना, या दोनों की सजा देता है। पोस्टल अधिकारियों के अलावा दूसरे लोगों पर भी मेल बैग खोलने पर अर्थदंड लगाया जाता है। बिल इन सभी प्रावधानों को हटाता है। इससे प्राइवेसी से संबंधित सवाल खड़े हो सकते हैं। अत्यधिक व्यक्तिगत सूचना, जैसे स्वास्थ्य बीमा से संबंधित जानकारी और क्रेडिट कार्ड के स्टेटमेंट डाक से प्राप्त किए जा सकते हैं। इन अपराधों को हटाने से प्राइवेसी के अतिक्रमण के खिलाफ सुरक्षात्मक उपाय खत्म हो जाएंगे। यह 2017 में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा मान्यता प्राप्त प्राइवेसी के अधिकार के खिलाफ हो सकता है। ये उल्लंघन दूसरे कानूनों, जैसे भारतीय दंड संहिता, 1860 के दायरे में नहीं आते, जिसके तहत तभी दंड दिया जाता है, जब उल्लंघन के साथ चोरी या दुरुपयोग भी किया गया हो।[10] 

 पर्यावरणीय कानूनों के तहत शामिल एडजुडिटेकिंग अधिकारियों की क्षमता

बिल वायु (प्रदूषण का निवारण और नियंत्रण) एक्ट, 1981 (एयर एक्ट) और पर्यावरण (संरक्षण) एक्ट, 1986 (ईपी एक्ट) के तहत अधिनिर्णय (एडजुडिकेटिंग) की प्रक्रिया में संशोधन करता है। वर्तमान में दोनों कानूनों के उल्लंघन पर अदालत में तभी मुकदमा चलाया जा सकता है, जब निर्दिष्ट अथॉरिटीज़ या कोई ऐसा व्यक्ति शिकायत करे, जिसने इन अथॉरिटीज़ को शिकायत दर्ज कराने के अपने इरादे के बारे में 60 दिनों का नोटिस दिया है।[11] एयर एक्ट के तहत ये अथॉरिटीज़ हैं, केंद्रीय प्रदूषण बोर्ड (सीपीसीबी) और संबंधित राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड्स (एसपीसीबीज़)। ईपी एक्ट के तहत ये अथॉरिटीज़ केंद्र सरकार के अधिसूचित अधिकारी हैं। बिल में प्रावधान है कि दोनों एक्ट्स के तहत एडजुडिकेटिंग अधिकारी अर्थदंड पर फैसला करेंगे। बिल ईपी एक्ट के तहत अदालत में शिकायत दर्ज कराने का भी प्रावधान करता है। इन आदेशों के खिलाफ राष्ट्रीय हरित ट्रिब्यूनल में अपील की जा सकती है। दोनों एक्ट्स के तहत एडजुडिकेटिंग अधिकारी केंद्र सरकार का ज्वाइंट सेक्रेटरी या उससे उच्च पद का अधिकारी या राज्य सरकार का सेक्रेटरी होगा। एडजुडिकेशन की यह नई प्रक्रिया कुछ मुद्दों को उठाती है।

एडजुडिकेटिंग अधिकारियों की स्वतंत्रता

सरकारें या उनकी एजेंसियां एयर एक्ट और ईपी एक्ट का उल्लंघन कर सकती हैं। उदाहरण के लिए अत्यधिक खनन करने के लिए केंद्र सरकार और तेलंगाना सरकार की संयुक्त उपक्रम वाली सिंगरेनी कोलियरीज कंपनी लिमिटेड पर 2022 में राष्ट्रीय हरित ट्रिब्यूनल ने अर्थदंड लगाया।[12] प्रश्न यह है कि ऐसे मामलों में क्या सरकारी अधिकारी एडजुडिकेटिंग अधिकारियों के रूप में पर्याप्त रूप से स्वतंत्र होंगे।

एडजुडिकेटिंग अधिकारियों की न्यायिक और तकनीकी क्षमता

बिल के तहत ईपी एक्ट या उसके तहत नियमों और निर्देशों का अनुपालन न करने 5,000 रुपए से 15 लाख रुपए (न्यूनतम सीमा से 300 गुना) के बीच का अर्थदंड है। बिल ईपी एक्ट के तहत जुर्माने तय करने के लिए एडजुडिकेटिंग अधिकारियों के लिए मानदंड भी शामिल करता है। इनमें निम्नलिखित शामिल हैं(i) जनसंख्या और प्रभावित इलाका, (ii) उल्लंघन की अवधि और फ्रीक्वेंसी, (iii) प्रभावितों की संवेदनशीलता, और (iv) उल्लंघन से अनुचित लाभ। अर्थदंड के व्यापक दायरे और विभिन्न मानदंडों के बीच संतुलन बनाने में विवेक के इस्तेमाल को देखते हुए, ईपी एक्ट और एयर एक्ट, दोनों में मामलों पर निर्णय, प्रभावी रूप से एक न्यायिक भूमिका है। इस प्रकार सवाल यह है कि क्या एडजुडिकेटिंग अधिकारी, जोकि केंद्र सरकार का ज्वाइंट सेक्रेटरी या राज्य सरकार का सेक्रेटरी होगा, इन अर्थदंडों पर फैसला लेने के लिए सक्षम होगा।

इसके अतिरिक्त एयर एक्ट के तहत अपराधों के लिए कानूनी प्रक्रियाओं में तकनीक पहलू महत्वपूर्ण होते हैं। इन अधिकारियों में एयर एक्ट और ईपी एक्ट के तहत सभी अर्थदंडों पर फैसला लेने के लिए जरूरी तकनीकी क्षमता का अभाव हो सकता है। उदाहरण के लिए एयर एक्ट के तहत सीपीसीबी या एक एसपीसीबी द्वारा अदालत में शिकायत दर्ज कराई जा सकती है, या किसी ऐसे व्यक्ति के द्वारा जिसने संबंधित प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड में पहले नोटिस दिया है। एक्ट प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड्स के अधिकारियों को वायु उत्सर्जन के सैंपल जमा करने का अधिकार देता है। फिर एक्सपर्ट एनालिस्ट्स इन सैंपल्स का विश्लेषण करते हैं, जिनकी रिपोर्ट कानूनी प्रक्रिया में सबूत के तौर पर पेश की जा सकती है। 

बिल में प्रावधान है कि एयर एक्ट के तहत एडजुडिकेटिंग अधिकारी के पूछताछ करने का तरीका और अर्थदंड के संबंध में फैसला लेना, नियमों द्वारा निर्दिष्ट किया जाएगा। एडजुडिकेटिंग अधिकारी के सामने प्रक्रियाओं के दौरान पर्यावरणीय क्षति का आकलन करने में प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड्स की भूमिका बिल में निर्दिष्ट नहीं है।

एडजुडिकेटिंग अधिकारियों और न्यायपालिका के बीच संबंध

बिल के अनुसार, ईपी एक्ट के तहत उल्लंघनों के खिलाफ शिकायतें प्राप्त करने और उनकी सुनवाई करने के लिए एडजुडिकेटिंग अधिकारी जिम्मेदार होंगे। उनके फैसलों के खिलाफ राष्ट्रीय हरित ट्रिब्यूनल में अपील की जा सकती है, जिसके फैसलों के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में अपील की जा सकती है। बिल एडजुडिकेटिंग अधिकारी को भी यह अधिकार देता है कि वे ईपी एक्ट के तहत अपराधों के लिए अदालत में शिकायत दर्ज करा सकते हैं। सवाल यह है कि जब एडजुडिकेटिंग अधिकारी भी अदालत में शिकायत दर्ज करा सकते हैं तो फिर एक समानांतर प्रक्रिया की क्या जरूरत है। यह एक एडजुडिकेटरी संस्था की भूमिका को प्रॉसीक्यूशन के साथ मिलाना हो सकता है।  

 प्रस्तावित और मौजूदा फंड्स के बीच फंक्शनल ओवरलैप

बिल ईपी एक्ट के तहत पर्यावरणीय संरक्षण फंड की स्थापना का प्रावधान जोड़ता है। इस फंड का इस्तेमाल पर्यावरणीय संरक्षण के लिए शिक्षा, जागरूकता फैलाने और शोध के लिए, इसके अलावा इन एक्ट्स को लागू करने में होने वाले खर्च के लिए किया जाएगा। ऐसे दूसरे फंड्स भी हैं जो ऐसे ही उद्देश्य पूरे करते हैं, इसलिए सवाल यह है कि क्या यह नया फंड जरूरी है।

सीपीसीबी और एसपीसीबी के अपने खुद के फंड्स भी हैं।[13],[14]  सीबीसीपी और एसपीसीबी, दोनों की जिम्मेदारी एयर एक्ट और ईपी एक्ट के प्रावधानों को लागू करना है।[15],[16],[17],[18] वे वायु और जल प्रदूषण के नियंत्रण के लिए शोध, कार्यक्रम कार्यान्वयन और मीडिया प्रोग्राम्स भी संचालित करते हैं।[19]  चूंकि ये फंड्स पहले से ही पर्यावरण संरक्षण के लिए शिक्षा, जागरूकता और शोध के लिए प्रावधान करते हैं, इसलिए उसी उद्देश्य के लिए नए फंड की जरूरत अस्पष्ट है। नियंत्रक और महालेखा परीक्षक की 2017 की एक रिपोर्ट के अनुसार, सीपीसीबी और एसपीसीबी के पास पर्याप्त धनराशि है, लेकिन उन्हें पूर्ण रूप से इस्तेमाल करने के लिए कर्मचारियों और इंफ्रास्ट्रक्चर का अभाव है।[20] नए फंड के साथ भी ऐसे ही समस्याएं पैदा हो सकती हैं। 

उच्च मूल्य के बैंक नोट (विमुद्रीकरण) एक्ट, 1978 में संशोधन का तर्क 

उच्च मूल्य के बैंक नोट (विमुद्रीकरण) एक्ट, 1978 गैरकानूनी लेनदेन पर नियंत्रण का प्रयास करता है, जोकि उच्च मूल्य वाले बैंक नोट्स पर निर्भर होती है। एक्ट ने 16 जनवरी, 1978 से उन्हें लीगल टेंडर के तौर पर बंद करने की घोषणा की थी।[21]  इनमें 1,000 रुपए, 5,000 रुपए और 10,000 रुपए के मूल्य वाले बैंक नोट शामिल थे। एक्ट के अनुसार बैंकों को अपने पास रखे उच्च मूल्य वाले बैंक नोटों की मात्रा के बारे में घोषणाएं तैयार करनी होंगी और उन्हें भारतीय रिज़र्व बैंक को प्रस्तुत करना होगा।[22]  कोई भी व्यक्ति 19 जनवरी, 1978 से पहले कुछ विवरण प्रदान करने वाली घोषणा के साथ उन्हें जमा करके ऐसे बैंक नोटों को बदल सकता था।[23] अपराधों में समय सीमा से पहले इस घोषणा को प्रस्तुत करने में विफल होनाया जानबूझकर गलत घोषणा प्रस्तुत करना शामिल है। एक्ट में गलत रिटर्न देने वाले बैंक अधिकारियोंया बैंक नोट जमा करते समय गलत घोषणा करने वाले व्यक्तियों के लिए कारावास का प्रावधान है। बिल इन अपराधों के लिए सजा के रूप में कारावास को हटाने का प्रयास करता है। ये बैंक नोट वैध मुद्रा नहीं रहे और इन्हें बदलने की समय सीमा 45 साल पहले समाप्त हो गई थी। इसलिए यह स्पष्ट नहीं है कि ये दंड आज भी प्रासंगिक क्यों हैंऔर इन्हें कम करने की आवश्यकता क्यों है। बिल संबंधी ज्वाइंट पार्लियामेंटरी कमिटी (2023) ने एक्ट को ही निरस्त करने का सुझाव दिया है।9

 

[2]. “World Bank Group to Discontinue Doing Business Report”, World Bank, September 16, 2021, https://www.worldbank.org/en/news/statement/2021/09/16/world-bank-group-to-discontinue-doing-business-report.

[3]. “Doing Business in 2013”, World Bank, accessed March 24, 2023, https://www.doingbusiness.org/content/dam/doingBusiness/media/Annual-Reports/English/DB13-full-report.pdf.

[4]. Report No. 122, Standing Committee on Commerce: ‘Ease of Doing Business’, Rajya Sabha, December 12, 2015, https://rajyasabha.nic.in/rsnew/Committee_site/Committee_File/ReportFile/13/13/122_2016_6_12.pdf.

[5]. “Report of the Company Law Committee on Decriminalization of the Limited Liability Partnership Act, 2008”, Company Law Committee, January 2021, https://www.mca.gov.in/bin/dms/getdocument?mds=bwsK%252FBEAFTVdpdKuv5IR5w%253D%253D&type=open

[6]. “Report of the Company Law Committee (2019)”, Company Law Committee, November 2019, https://www.mca.gov.in/Ministry/pdf/CLCReport_18112019.pdf

[7]. The Companies (Amendment) Act, 2019, https://www.mca.gov.in/Ministry/pdf/AMENDMENTACT_01082019.pdf

[8]. The Companies (Amendment) Act, 2020 https://www.mca.gov.in/Ministry/pdf/AmendmentAct_29092020.pdf

[9]. “Report of the Joint Committee on the Jan Vishwas (Amendment Of Provisions) Bill, 2022”, March 20, 2023,  https://prsindia.org/files/bills_acts/bills_parliament/2022/Joint_Committee_on_the_Jan_Vishwas_(Amendment_of_Provisions)_Bill_2022.pdf

[10]. Section 403, and Section 461, The Indian Penal Code, 1860.

[11] Section 43, the Air (Prevention and Control of Pollution) Act, 1981; Section 19, the Environment (Protection) Act, 1986.

[12]. Banothu Nandu Nayak v. Singareni Collieries Co. Ltd, Original Application No. 174 of 2020 (SZ), National Green Tribunal, https://greentribunal.gov.in/gen_pdf_test.php?filepath=L25ndF9kb2N1bWVudHMvbmd0L2Nhc2Vkb2MvanVkZ2VtZW50cy9DSEVOTkFJLzIwMjItMTEtMjkvMTY2OTg4Nzk2MjIxODc1NzI1MDYzODg3N2RhN2I4MTMucGRm.

[13]. Section 34, 35, 36 and Section 37, The Water (Prevention and Control of Pollution) Act, 1974.

[14]. Detailed Demand For Grants, Ministry of Environment, Forests, and Climate Change, 2022-23, https://www.indiabudget.gov.in/doc/eb/sbe28.pdf.

[15]. Section 3, The Air (Prevention and Control of Pollution) Act, 1981.

[16]. Rule 3, The Environment (Protection) Rules, 1986.

[17]. S.O. 327(E)., Ministry of Environment and Forests, April 10, 2001, https://cpcb.nic.in/7thEditionPollutionControlLawSeries2021.pdf

[18]. S.O. 157(E)., Ministry of Environment and Forests, February 27, 1996, https://cpcb.nic.in/7thEditionPollutionControlLawSeries2021.pdf.

[19]. Section 16 and Section 17, The Water (Prevention and Control of Pollution) Act, 1974.

[20]. Report No. 39, Comptroller and Auditor General of India, ‘Environmental Clearance and Post Clearance Monitoring’, March 10, 2017. https://cag.gov.in/uploads/download_audit_report/2016/Union_Government_Report_39_of_2016_PA.pdf.

[21]. Section 3, The High Denomination Bank Notes (Demonetisation) Act, 1978.

[22]. Section 5, The High Denomination Bank Notes (Demonetisation) Act, 1978.

[23]. Section 7, The High Denomination Bank Notes (Demonetisation) Act, 1978.

 

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