लेजिसलेटिव ब्रीफ

कृषि अध्यादेश, 2020

अध्यादेश की मुख्‍य विशेषताएं

  • किसान उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अध्यादेश, 2020 इस बात की अनुमति देता है कि एपीएमसी बाजारों के भौतिक परिसर के बाहर कृषि उपज का व्यापार किया जा सकता है। यह व्यापार राज्य के भीतर किया जा सकता है और राज्यों के बीच भी। राज्य सरकारों को एपीएमसी क्षेत्रों के बाहर बाजार फीस, सेस या प्रभार वसूलने से प्रतिबंधित किया गया है।
      
  • किसान समझौता अध्यादेश किसी कृषि उत्पाद के उत्पादन या पालन से पहले किसान और खरीदार के बीच एक समझौते के जरिए कॉन्ट्रैक्ट खेती के लिए फ्रेमवर्क बनाता है। यह तीन स्तरीय विवाद निपटान प्रणाली का प्रावधान करता हैकन्सीलिएशन बोर्ड, सब डिविजिनल मेजिस्ट्रेट और अपीलीय अथॉरिटी।  
     
  • अनिवार्य वस्तु (संशोधन) अध्यादेश, 2020 में केंद्र सरकार को यह अनुमति दी गई है कि वह सिर्फ असामान्य परिस्थितियों (जैसे युद्ध और अकाल) में कुछ खाद्य पदार्थों की सप्लाई को रेगुलेट कर सकती है। कृषि उत्पाद पर स्टॉक की सीमा तभी लागू हो सकती है, जब दाम बहुत अधिक बढ़ जाते हैं।

प्रमुख मुद्दे और विश्‍लेषण

  • तीनों अध्यादेशों का उद्देश्य कृषि उत्पादों के लिए खरीदारों की उपलब्धता बढ़ाना है। इसके लिए लाइसेंस या स्टॉक लिमिट के बिना उन्हें मुक्त रूप से व्यापार की अनुमति दी गई है जिससे प्रतिस्पर्धा बढ़े और परिणामस्वरूप किसानों को बेहतर कीमतें मिल सकें। हालांकि अध्यादेशों का उद्देश्य व्यापार में उदारीकरण और खरीदारों की संख्या को बढ़ाना है लेकिन सिर्फ रेगुलेशन खत्म करने से अधिक खरीदार आकर्षित नहीं होंगे।  
     
  • कृषि संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (2018-19) ने कहा था कि किसानों को लाभकारी कीमतें मिलें, यह सुनिश्चित करने के लिए पारदर्शी, आसानी से उपलब्ध होने वाला और कुशल मार्केटिंग प्लेटफॉर्म जरूरी है। अधिकतर किसानों की पहुंच सरकारी खरीद केंद्रों और एपीएमसी बाजारों तक नहीं होती। कमिटी ने कहा था कि छोटे ग्रामीण बाजार कृषि मार्केटिंग के लिए व्यावहारिक विकल्प के तौर पर उभर सकते हैं, अगर उन्हें पर्याप्त संरचनागत सुविधाएं मुहैय्या कराई जाएं।
     
  • स्टैंडिंग कमिटी ने यह सुझाव भी दिया था कि ग्रामीण कृषि मार्केटिंग योजना (जिसका उद्देश्य देश भर की 22,000 हाटों में इंफ्रास्ट्रक्चर और सिविल सुविधाओं में सुधार करना है) को पूरी तरह केंद्रीय वित्त पोषित योजना बनाया जाना चाहिए और उसे यह सुनिश्चित करने के लिए विस्तार दिया जाना चाहिए कि देश की हर पंचायत में हाट मौजूद हो।

भाग क : अध्यादेशों की मुख्य विशेषताएं

संदर्भ

भारत में कृषि बाजारों को मुख्य रूप से कृषि उत्पाद मार्केटिंग कमिटियों (एपीएमसी) द्वारा रेगुलेट किया जाता है। एपीएमसी के गठन का उद्देश्य क्रेता और विक्रेताओं के बीच उचित व्यापार को सुनिश्चित करना और किसान उत्पादों के लिए लाभकारी मूल्य हासिल करना था।[1] एपीएमसी निम्नलिखित कर सकती है: (i) खरीदारों, कमीशन एजेंट्स, और निजी बाजारों को लाइसेंस देकर किसान उपज के व्यापार को रेगुलेट करना, (ii) ऐसे व्यापार के लिए बाजार फीस और दूसरे प्रभारों की वसूली, और (iii) व्यापार को आसान बनाने के लिए अपने बाजारों में जरूरी इंफ्रास्ट्रक्चर प्रदान करना। 

कृषि संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (2018-19) ने गौर किया था कि एपीएमसी कानूनों को सच्ची भावना से लागू नहीं किया जाता है और उसमें तत्काल सुधार करने की जरूरत है। कमिटी ने जिन मुद्दों को चिन्हित किया था, उनमें निम्न शामिल हैं: (i) अधिकतर एपीएमसीज़ में सीमित संख्या में व्यापारी व्यापार करते हैं जिससे कार्टेलाइजेशन होता है और प्रतिस्पर्धा कम होती है, और (ii) कमीशन चार्ज और बाजार फीस के रूप में अनुचित कटौतियां होती हैं।13  व्यापारी, कमीशन एजेंट और दूसरे पदाधिकारी अपने संगठन बना लेते हैं जिससे मार्केट यार्ड्स में नए लोगों का प्रवेश, कड़ी प्रतिस्पर्धा नहीं हो पाती।[2]   मार्केटिंग के कई चैनलों (जैसे अधिक खरीदार, निजी बाजार, व्यापारियों और रीटेल उपभोक्ताओं को सीधी बिक्री और ऑनलाइन लेनदेन) और प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देने में भी ये एक्ट्स बाधा बनते हैं।13 

2017-18 के दौरान केंद्र सरकार ने मॉडल एपीएमसी और कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग एक्ट्स को जारी किया था जिसमें किसान उत्पाद के निर्बाध व्यापार, कई मार्केटिंग चैनलों के जरिए प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देने और पूर्व सहमति वाले कृषि ठेकों को बढ़ावा देने की अनुमति दी गई थी।[3],[4] स्टैंडिंग कमिटी (2018-19) ने कहा था कि राज्यों ने मॉडल एक्ट्स में सुझाए गए कई सुधारों को लागू नहीं किया।13  उसने सुझाव दिया था कि केंद्र सरकार को एक ऐसी कमिटी बनानी चाहिए जिसमें सभी राज्यों के कृषि मंत्री शामिल हों ताकि आम सहमति कायम की जा सके और कृषि मार्केटिंग के लिए एक लीगल फ्रेमवर्क तैयार किया जा सके। जुलाई 2019 में सात मुख्यमंत्रियों की एक हाई पावर्ड कमिटी का गठन किया गया। इसका उद्देश्य निम्नलिखित पर चर्चा करना था: (i) मॉडल एक्ट्स को राज्यों द्वारा मंजूर करना और उन्हें एक तय समय सीमा में लागू करना, और (ii) कृषि मार्केटिंग और इंफ्रास्ट्रक्चर में निजी निवेश को आकर्षित करने के लिए अनिवार्य वस्तुएं एक्ट, 1955 (जिसमें अनिवार्य वस्तुओं के उत्पादन, सप्लाई और व्यापार संबंधी प्रावधान हैं) में बदलाव करना।[5]

केंद्र सरकार ने 5 जून, 2020 को तीन अध्यादेश जारी किए: (i) किसान उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अध्यादेश, 2020 (ii) मूल्य आश्वासन और कृषि सेवाओं पर किसान (सशक्तीकरण और संरक्षण) समझौता अध्यादेश, 2020, और (iii) अनिवार्य वस्तुएं (संशोधन) अध्यादेश, 2020।[6],[7],[8] अध्यादेश सामूहिक रूप से निम्नलिखित का प्रयास करते हैं (i) राज्य एपीएमसी कानूनों के अंतर्गत अधिसूचित बाजारों के बाहर किसान उपज के निर्बाध व्यापार को सरल बनाना, (ii) कॉन्ट्रैक्ट पर खेती के लिए फ्रेमवर्क स्पष्ट करना, और (iii) रीटेल कीमतों में जबरदस्त बढ़ोतरी होने पर कृषि उपज के स्टॉक की सीमा को लागू करना। तीनों अध्यादेशों का उद्देश्य किसानों को लंबी अवधि के बिक्री अनुबंधों में प्रवेश करने की अनुमति देना, खरीदारों की उपलब्धता को बढ़ाना और खरीदारों को थोक में कृषि उत्पाद खरीदने की अनुमति देना है। 

मुख्य विशेषताएं

किसान उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अध्यादेश, 2020

  • किसान उपज का व्यापार: अध्यादेश अनुमति देता है कि उपज का राज्यों के बीच और राज्य के भीतर व्यापार निम्नलिखित के बाहर भी किया जा सकता है: (i) राज्य एपीएमसी एक्ट्स के अंतर्गत गठित मार्केट कमिटी द्वारा संचालित मार्केट यार्ड्स के भौतिक परिसर, और (ii) राज्य एपीएमसी एक्ट्स के अंतर्गत अधिसूचित अन्य बाजार, जैसे निजी मार्केट यार्ड्स और मार्केट सब यार्ड्स, प्रत्यक्ष मार्केटिंग कलेक्शन सेंटर्स और निजी किसान उपभोक्ता मार्केट यार्ड्स। उपज के उत्पादन, उसे जमा और एकत्र करने वाली किसी भी जगह पर व्यापार किया जा सकता है, जिसमें निम्नलिखित शामिल हैं: (i) फार्म गेट्स, (ii) कारखाने के परिसर, (iii) वेयरहाउस, (iv) सिलो, और (v) कोल्ड स्टोरेज।
     
  • इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग: अध्यादेश निर्दिष्ट व्यापार क्षेत्र में किसान उपज (किसी राज्य एपीएमसी एक्ट के अंतर्गत रेगुलेटेड कृषि उत्पाद) की इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग की अनुमति देता है। इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग और ट्रांज़ैक्शन प्लेटफॉर्म को तैयार किया जा सकता है ताकि किसान उपज को इलेक्ट्रॉनिक उपकरण और इंटरनेट के जरिए खरीदा और बेचा जा सके। इन प्लेटफॉर्म्स को निम्नलिखित एंटिटीज़ बना और संचालित कर सकती हैं: (i) कंपनियां, पार्टनरशिप फर्म्स या पंजीकृत सोसायटियां, जिसके पास इनकम टैक्स एक्ट, 1961 के अंतर्गत परमानेंट एकाउंट नंबर हो या ऐसा कोई दस्तावेज जिसे केंद्र सरकार ने अधिसूचित किया हो, और (ii) किसान उत्पादक संगठन या कृषि सहकारी संघ।
     
  • बाजार फीस समाप्त: अध्यादेश के अंतर्गत व्यापार क्षेत्र के बाहर किसान उपज का व्यापार करने पर राज्य सरकार किसानों, व्यापारियों और इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म्स से कोई बाजार फीस, सेस या प्रभार नहीं वसूलेगी।

मूल्य आश्वासन और कृषि सेवाओं पर किसान (सशक्तीकरण और संरक्षण) समझौता अध्यादेश, 2020

  • कृषि समझौता: अध्यादेश में प्रावधान है कि किसी कृषि उत्पाद के उत्पादन या पालन से पहले किसान और खरीदार के बीच कृषि समझौता किया जाएगा। समझौते की अवधि एक फसल मौसम या पशु का एक प्रजनन चक्र होगा। इसकी अधिकतम अवधि पांच वर्ष होगी, जब तक कि उत्पादन चक्र पांच वर्ष से अधिक न हो। 
     
  • क़ृषि उत्पाद का मूल्य निर्धारण: कृषि उत्पाद की खरीद का मूल्य समझौते में दर्ज होगा। मूल्य में बदलाव की स्थिति में समझौते में उत्पाद के लिए गारंटीशुदा मूल्य और गारंटीशुदा मूल्य के अतिरिक्त राशि का स्पष्ट संदर्भ उल्लेख होना चाहिए। इसके अतिरिक्त मूल्य के निर्धारण के तरीके का उल्लेख भी कृषि समझौते में होगा।
     
  • विवाद निपटारा: अध्यादेश में कहा गया है कि विवाद निपटारे के लिए कन्सीलिएशन बोर्ड और सुलह की प्रक्रिया हेतु कृषि समझौता प्रदान किया जाए। बोर्ड में समझौते के विभिन्न पक्षों का निष्पक्ष और संतुलित प्रतिनिधित्व होना चाहिए। सबसे पहले सभी विवादों को समाधान के लिए बोर्ड को संदर्भित किया जाना चाहिए। अगर तीस दिनों में बोर्ड विवाद का निपटारा नहीं कर पाता, तो पक्ष समाधान के लिए सब डिविजनल मेजिट्रेट से संपर्क कर सकते हैं। सभी पक्षों के पास यह अधिकार होगा कि मेजिस्ट्रेट के फैसले के खिलाफ अपीलीय अथॉरिटी (कलेक्टर या एडिशनल कलेक्टर की अध्यक्षता वाली) में अपील कर सकें। मेजिस्ट्रेट और अपीलीय अथॉरिटी को आवेदन प्राप्त होने के तीस दिनों के भीतर विवाद का निपटारा करना होगा। मेजिस्ट्रेट या अपीलीय अथॉरिटी समझौते का उल्लंघन करने वाले पक्ष पर जुर्माना लगा सकते हैं। हालांकि किसी बकाये की वसूली के लिए किसान की खेती की जमीन के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जा सकती।

अनिवार्य वस्तुएं (संशोधन) अध्यादेश, 2020

  • खाद्य पदार्थों का रेगुलेशन: एक्ट केंद्र सरकार को कुछ वस्तुओं (जैसे खाद्य पदार्थ, उर्वरक और पेट्रोलियम उत्पाद) को अनिवार्य वस्तुओं के रूप में निर्दिष्ट करने का अधिकार देता है। केंद्र सरकार ऐसी अनिवार्य वस्तुओं के उत्पादन, सप्लाई, वितरण, व्यापार और वाणिज्य को रेगुलेट या प्रतिबंधित कर सकती है। अध्यादेश में यह प्रावधान किया गया है कि केंद्र सरकार केवल असामान्य परिस्थितियों में कुछ खाद्य पदार्थों, जैसे अनाज, दालों, आलू, प्याज, खाद्य तिलहन और तेलों की सप्लाई को रेगुलेट कर सकती है। इन परिस्थितियों में निम्नलिखित शामिल हैं(i) युद्ध, (ii) अकाल, (iii) असामान्य मूल्य वृद्धि, और (iv) गंभीर प्रकृति की प्राकृतिक आपदा।
     
  • स्टॉक लिमिट लागू करना: एक्ट के अंतर्गत केंद्र सरकार यह रेगुलेट कर सकती है कि कोई व्यक्ति किसी अनिवार्य वस्तु का कितना स्टॉक रख सकता है। स्टॉक की सीमा निम्नलिखित स्थितियों में लागू की जा सकती है(i) अगर बागवानी उत्पाद के रीटेल मूल्य में 100% की वृद्धि होती है, और (ii) नष्ट न होने वाले कृषि खाद्य पदार्थों के रीटेल मूल्य में 50% की वृद्धि होती है। वृद्धि की गणना, पिछले 12 महीने के मूल्य, या पिछले पांच महीने के औसत रीटेल मूल्य (इनमें से जो भी कम होगा) के आधार पर की जाएगी।

 

भाग ख: प्रमुख मुद्दे और विश्‍लेषण

किसान उपज के लिए खरीदारों की उपलब्धता और इंफ्रास्ट्रक्चर

व्यापार और वाणिज्य अध्यादेश में खरीदारों को यह स्वतंत्रता दी गई है कि वे लाइसेंस के बिना या कोई शुल्क चुकाए बिना एपीएमसी के बाहर किसान उपज खरीद सकते हैं। कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग अध्यादेश में खरीदारों और किसानों के बीच कॉन्ट्रैक्ट (फसल मौसम के शुरू होने से पहले) का फ्रेमवर्क दिया गया है जिसमें किसानों के लिए न्यूनतम कीमत और खरीदारों के लिए सुनिश्चित सप्लाई की गारंटी होती है। तीसरा अध्यादेश अनिवार्य वस्तु एक्ट में संशोधन करता है। यह अध्यादेश कहता है कि रीटेल कीमतों के बढ़ने पर कृषि उत्पाद के लिए स्टॉक की सीमा तय की जाएगी और वैल्यू चेन के हिस्सेदारों और निर्यातकों को इस सीमा से छूट देता है। इन अध्यादेशों का उद्देश्य किसान उपज के खरीदारों की उपलब्धता को बढ़ाना है। इसके लिए उन्हें लाइसेंस और स्टॉक की सीमा के बिना मुक्त रूप से व्यापार करने की अनुमति दी जाएगी जिससे उनके बीच प्रतिस्पर्धा बढ़े और किसानो को बेहतर कीमतें उपलब्ध हों।[9]  अध्यादेश का उद्देश्य व्यापार का उदारीकरण और खरीदारों की संख्या को बढ़ाना है लेकिन अधिक से अधिक खरीदारों को आकर्षित करने के लिए सिर्फ यही पर्याप्त नहीं।

उदाहरण के लिए बिहार ने कृषि क्षेत्र में निजी निवेश को आकर्षित करने तथा संबंधित सब डिविजनल कार्यालयों को बाजार का प्रभार देने के लिए 2006 में अपने एपीएमसी एक्ट को निरस्त कर दिया था।[10]  इससे जरूरी मार्केटिंग इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी हो गई क्योंकि उचित रखरखाव न होने के कारण मौजूदा इंफ्रास्ट्रक्चर नष्ट हो गया।1,2 अगर बाजार रेगुलेट नहीं होंगे तो किसानों को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ेगा, जैसे अधिक लेनदेन शुल्क और मूल्यों एवं उत्पाद के आगमन की सूचना न होना।2 कृषि मार्केटिंग सुधारों के लिए 2010 में गठित राज्य मंत्रियों की कमिटी ने गौर किया था कि बाजार को पूरी तरह रेगुलेशन से मुक्त करने से निजी निवेश आकर्षित नहीं होता।2  उसने कहा था कि उपयुक्त कानूनी और संस्थागत संरचना की जरूरत है जिसमें विकासात्मक प्रकार का रेगुलेशन हो। इससे बाजार का व्यवस्थित कामकाज सुनिश्चित होगा और इंफ्रास्ट्रक्चर विकास में निवेश होगा।2  कृषि संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (2018-19) ने सुझाव दिया था कि केंद्र सरकार को उन राज्यों में मार्केटिंग इंफ्रास्ट्रक्चर बनाया चाहिए जहां एपीएमसी बाजार नहीं हैं (जैसे बिहार, केरल, मणिपुर और कुछ केंद्र शासित प्रदेश)।1,[11]

उल्लेखनीय है कि अध्यादेश मौजूदा एपीएमसी कानूनों को रद्द नहीं करते (जैसा कि बिहार में किया गया), लेकिन एपीएमसी के नियंत्रण में आने वाले बाजारों की भौतिक सीमाओं के संबंध में कमिटियों के रेगुलेशन को सीमित करते हैं। अध्यादेश से प्रतिस्पर्धा बढ़ सकती है जिससे एपीएमसीज़ अधिक कुशलता से मार्केटिंग के लिए मूल्य संवर्धित सेवाएं प्रदान कर सकेंगी।[12]  इसके अतिरिक्त एपीएमसी बाजारों में मौजूदा मूल्य मानदंड का काम करेंगे और बाजार के बाहर उत्पाद बेचने वाले किसानों को बेहतर कीमतें मिल सकेंगी। 

ग्रामीण कृषि बाजारस्टैंडिंग कमिटी ने कहा था कि किसानों को लाभकारी कीमतें मिलें, यह सुनिश्चित करने के लिए पारदर्शी, आसानी से उपलब्ध होने वाला और कुशल मार्केटिंग प्लेटफॉर्म जरूरी है।1 अधिकतर किसानों की पहुंच सरकारी खरीद केंद्रों और एपीएमसी बाजारों तक नहीं होती।1  छोटे और सीमांत किसानों (देश की 86% कृषि योग्य भूमि उन्हीं के पास है) को एपीएमसी बाजारों में अपने उत्पाद को बेचने में कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है, जैसे बिक्री योग्य अधिशेष न होना, निकटस्थ एपीएमसी बाजार से अधिक दूरी और परिवहन के साधन का अभाव।1 एपीएमसी बाजार का औसत क्षेत्र 496 वर्ग किलोमीटर है जोकि 2006 में राष्ट्रीय किसान आयोग (चेयरडॉ. एम.एस.स्वामीनाथन) द्वारा 80 वर्ग किलोमीटर के सुझाव से बहुत अधिक है।1  

स्टैंडिंग कमिटी (2018-19) ने कहा था कि अगर ग्रामीण हाटों (छोटे ग्रामीण बाजारों) को पर्याप्त संरचनात्मक सुविधाएं प्रदान की जाएं तो वे कृषि मार्केटिंग के लिए व्यावहारिक विकल्प के तौर पर उभर सकते हैं। उसने सुझाव दिया था कि ग्रामीण कृषि मार्केटिंग योजना (जिसका उद्देश्य देश भर की 22,000 हाटों में इंफ्रास्ट्रक्चर और सिविल सुविधाओं में सुधार करना है) को पूरी तरह केंद्रीय वित्त पोषित योजना बनाया जाना चाहिए और उसे यह सुनिश्चित करने के लिए विस्तार दिया जाना चाहिए कि देश की हर पंचायत में हाट मौजूद हो। केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के जरिए ग्रामीण हाटों में बुनियादी इंफ्रास्ट्रक्चर और कृषि बाजार इंफ्रास्ट्रक्चर फंड के जरिए मार्केटिंग इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास का प्रस्ताव रखा है।[13]  इस फंड को नाबार्ड द्वारा गठित किया जाएगा ताकि राज्यों को ग्रामीण हाटों में मार्केटिंग इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास के लिए रियायती ब्याज दरों पर 1,000 करोड़ रुपए प्रदान किए जा सकें।13

 

[2].  Report of Committee of State Ministers, In-charge of Agriculture Marketing to Promote Reforms, January 2013, https://dmi.gov.in/Documents/stminprreform.pdf.

[3].  Model Agricultural Produce and Livestock Marketing (Promotion and FacilitationAct, 2017, Ministry of Agriculture and Farmers’ Welfare, April 2017.

[4].  Model Agricultural Produce and Livestock Contract Farming (Promotion and FacilitationAct, 2018, Ministry of Agriculture and Farmers’ Welfare, December 2017

[5].  High Powered Committee of Chief Ministers constituted for Transformation for Indian Agriculture’”, Press Information Bureau, NITI Aayog, July 1, 2019.

[6].  The Farmers’ Produce Trade and Commerce (Promotion and FacilitationOrdinance, 2020, Ministry of Agriculture and Farmers’ Welfare, June 5, 2020.

[7].  The Essential Commodities (AmendmentOrdinance, 2020, Ministry of Consumer Affairs, Food and Public Distribution, June 5, 2020.

[9].  “PM chairs Cabinet Meeting to give historic boost to Rural India, Press Information Bureau, Ministry of Agriculture and Farmers’ Welfare, June 3, 2020.

[10].  Investment in Agricultural Marketing and Market Infrastructure – A Case Study of Bihar, Research Report, National Institute of Agricultural Marketing, 2011-12.

[11].  Conference of Agriculture Ministers of the States on Model Acts, Ministry of Agriculture and Farmers’ Welfare, July 8, 2019.

[12].  F.No26011/3/2020-M.II., Agricultural Marketing Division, Ministry of Agriculture and Farmers’ Welfare, June 5, 2020.

[13].  Report No8, Standing Committee on Agriculture (2019-20): Action taken by the government on the report Agriculture Marketing and Role of Weekly Gramin Haats, Lok Sabha, December 12, 2019.

 

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