स्टैंडिंग कमिटी की रिपोर्ट का सारांश

ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) बिल, 2016

  • सामाजिक न्याय और सशक्तीकरण (चेयरपर्सन : रमेश बैस) संबंधी स्टैंडिंग कमिटी ने 21 जुलाई, 2017 को ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) बिल, 2016 पर अपनी रिपोर्ट सौंपी। बिल 2 अगस्त, 2016 को लोकसभा में पेश किया गया था और 8 सितंबर, 2016 को जांच के लिए स्टैंडिंग कमिटी को भेजा गया था।
     
  • ‘ट्रांसजेंडर व्यक्तियों’ की परिभाषा: बिल के अंतर्गत ट्रांसजेंडर व्यक्ति की परिभाषा में ऐसे व्यक्ति शामिल हैं जोकि (i) न तो पूरी तरह से महिला हैं और न ही पुरुष, (ii) महिला और पुरुष, दोनों का संयोजन हैं, या (iii) न तो महिला हैं और न ही पुरुष। बिल में यह अपेक्षा भी गई है कि ऐसे व्यक्तियों का लिंग जन्म के समय नियत लिंग से मेल न खाता हो, और इसमें इंटरसेक्स भिन्नताओं और लिंग विलक्षणताओं वाले व्यक्तियों के साथ ट्रांस-मेन (परा-पुरुष) और ट्रांस-विमेन (परा-स्त्री) भी आते हैं।
     
  • स्टैंडिंग कमिटी ने गौर किया कि यह परिभाषा अंतरराष्ट्रीय नियमों के विपरीत है और लिंग पहचान को खुद निर्धारित करने के अधिकार का उल्लंघन करती है। कमिटी ने सुझाव दिया कि इस परिभाषा में परिवर्तन किया जाना चाहिए ताकि ऐसे व्यक्तियों को भी इसमें शामिल किया जा सके जिनका लिंग जन्म के समय नियत लिंग से मेल न खाता हो और जिनमें ट्रांस-मेन, ट्रांस-विमेन, लिंग विलक्षणता वाले व्यक्ति, और अन्य सामाजिक-सांस्कृतिक पहचान वाले व्यक्ति शामिल हों। इसके अतिरिक्त सेक्स रीअसाइनमेंट सर्जरी (एसआरएस) और हारमोनल थेरेपी के बिना भी ट्रांसजेंडर व्यक्ति ‘पुरुष’, ‘महिला’ या ‘ट्रांसजेंडर’ के रूप में अपनी पहचान चुन सकता है।
     
  • ट्रांसजेंडर व्यक्ति के रूप में सर्टिफिकेशन की प्रक्रिया : बिल के अनुसार, एक ट्रांसजेंडर व्यक्ति को ‘ट्रांसजेंडर’ के रूप में अपने लिंग की पहचान के लिए सर्टिफिकेट हासिल करना होगा। यह सर्टिफिकेट स्क्रीनिंग कमिटी के सुझाव पर जिलाधीश (डिस्ट्रिक्ट मैजिस्ट्रेट) द्वारा दिया जाएगा। अगर इसके बाद भी लिंग में परिवर्तन होता है तो संशोधित सर्टिफिकेट हासिल किया जा सकता है। कमिटी ने सुझाव दिया कि सर्टिफिकेट में पहचान केवल ‘ट्रांसजेंडर’ के रूप में इंगित की जाए, और ‘पुरुष’ या ‘महिला’ के रूप में नहीं। इसके बाद संशोधित सर्टिफिकेट के प्रावधान को हटा दिया जाना चाहिए।
     
  • कमिटी ने यह सुझाव भी दिया कि स्क्रीनिंग कमिटी के फैसले के संबंध में समय-सीमा, दिशानिर्देश और अपील का अधिकार विनिर्दिष्ट किया जाए।
     
  • स्क्रीनिंग कमिटी में सीएमओ : बिल के अनुसार, स्क्रीनिंग कमिटी में चीफ मेडिकल ऑफिसर (सीएमओ) को शामिल किया जाना चाहिए। कमिटी ने यह सुझाव भी दिया कि सीएमओ की भूमिका की स्पष्ट रूप से व्याख्या की जाए।
     
  • ‘भेदभाव’ की परिभाषा: कमिटी ने टिप्पणी की कि हालांकि बिल ट्रांसजेंडर व्यक्ति से भेदभाव को प्रतिबंधित करता है लेकिन इस शब्द की व्याख्या नहीं करता। कमिटी ने सुझाव दिया कि बिल में ‘भेदभाव’ की परिभाषा को शामिल किया जाना चाहिए, जैसे योग्यकार्ता सिद्धांतों में किया गया है (जोकि सेक्सुअल ओरिएंटेशन और लिंग पहचान से संबंधित अंतरराष्ट्रीय सिद्धांत हैं)। इसके अतिरिक्त बिल कहता है कि कोई भी व्यक्ति किसी ट्रांसजेंडर व्यक्ति से भेदभाव नहीं कर सकता। कमिटी ने सुझाव दिया है कि सार्वजनिक और निजी इस्टैबलिशमेंट्स द्वारा किए जाने वाले भेदभाव को भी प्रतिबंधित किया जाना चाहिए। यह सुझाव भी दिया गया कि भेदभाव का सामना करने वाले व्यक्तियों के लिए शिकायत निवारण तंत्र को इस बिल में शामिल किया जाए।
     
  • इस्टेबलिशमेंट्स में शिकायत निवारण : बिल के अनुसार, 100 से अधिक व्यक्तियों वाले इस्टेबलिशमेंट्स में एक व्यक्ति को शिकायत अधिकारी के रूप में निर्दिष्ट करना अपेक्षित है। कमिटी ने सुझाव दिया कि इस अपेक्षा को सभी इस्टेबलिशमेंट्स पर लागू किया जाना चाहिए, चाहे उनमें कितनी भी संख्या में कर्मचारी कार्य करते हों। इसके अतिरिक्त शिकायत अधिकारी के कर्तव्य और जिम्मेदारियां भी स्पष्ट की जानी चाहिए।
     
  • परिवार : बिल कहता है कि ट्रांसजेंडर की स्थिति के आधार पर किसी ट्रांसजेंडर व्यक्ति को उसके माता-पिता या तत्काल परिवार से अलग नहीं किया जाएगा, सिवाय उस अदालती आदेश के जो उस व्यक्ति के हित में हो। कमिटी ने सुझाव दिया कि यह प्रावधान केवल ट्रांसजेंडर बच्चे पर लागू होना चाहिए।
     
  • स्वास्थ्य सेवा : बिल कहता है कि केंद्र या राज्य सरकार द्वारा निर्धारित प्रावधानों में निम्नलिखित शामिल होंगे (i) ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए व्यापक मेडिकल बीमा योजना, और (ii) एसआरएस और हारमोनल थेरेपी से पहले और उसके बाद काउंसिलिंग। कमिटी ने सुझाव दिया कि बिल में मेडिकल बीमा में एसआरएस, हारमोनल थेरेपी और स्वास्थ्य संबंधी दूसरे मुद्दों को स्पष्ट किया जाना चाहिए।.
     
  • अपराध और दंड : बिल स्पष्ट करता है कि ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के खिलाफ विभिन्न अपराध करने पर जुर्माने के साथ छह महीने से लेकर दो वर्षों तक की कैद हो सकती है। इन अपराधों में निम्नलिखित शामिल हैं : (i) बंधुआ मजदूरी और भीख मांगना, (ii) सार्वजनिक स्थलों में पहुंच या आवास की सुविधा देने से इनकार करना, और (iii) शारीरिक, यौन और आर्थिक उत्पीड़न करना। कमिटी ने सुझाव दिया कि भारतीय दंड संहिता के समान विभिन्न अपराधों के लिए ग्रेडेड दंड होना चाहिए जोकि अपराध की गंभीरता पर आधारित हो।
     
  • अन्य सुझाव : स्टैंडिंग कमिटी ने बिल में अन्य विशिष्ट प्रावधानों के समावेश का सुझाव दिया, जैसे (i) इंटरसेक्स भिन्नताओं वाले व्यक्तियों को पारिभाषित किया जाए ताकि अपनी यौन विशिष्टताओं में भिन्नता प्रदर्शित करने वालों को इसमें शामिल किया जा सके, (ii) सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों की श्रेणी में आरक्षण दिया जाए और (iii) नागरिक अधिकारों, जैसे विवाहर, पार्टनरशिप, तलाक और गोद लेने को मान्यता दी जाए।

 

 

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