स्टैंडिंग कमिटी की रिपोर्ट का सारांश

अंतरराज्यीय नदी जल विवाद (संशोधन) बिल, 2017

  • जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (चेयर : हुकुम सिंह) ने 10 अगस्त, 2017 को ‘अंतरराज्यीय नदी जल विवाद (संशोधन) बिल, 2017’ पर अपनी रिपोर्ट सौंपी। बिल अंतरराज्यीय नदी जल विवाद एक्ट, 1956 में संशोधन करने का प्रयास करता है। कमिटी के मुख्य निष्कर्ष और सुझाव निम्नलिखित हैं :
     
  • विवाद निवारण समिति : बिल में यह अपेक्षा की गई है कि केंद्र सरकार विवाद निवारण समिति (डीआरसी) का गठन करेगी ताकि दोस्ताना तरीके से राज्यों के बीच के जल विवादों को सुलझाया जा सके। कमिटी ने कहा है कि बिल में डीआरसी की संरचना सुस्पष्ट की जानी चाहिए जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि विवाद निवारण के प्रारंभिक चरण में कोई कमी न रह जाए। यह सुझाव दिया गया कि डीआरसी में चेयरपर्सन और तीन सदस्यों (विशेषज्ञ के रूप में) के साथ हर उस राज्य का एक सदस्य शामिल होना चाहिए जोकि विवाद में एक पक्ष है। यह भी कहा गया कि कमिटी के निष्कर्षों को सार्वजनिक किया जाना चाहिए। इसके लिए बिल में एक नया क्लॉज जोड़ा जा सकता है।
     
  • विवाद को ट्रिब्यूनल के विचारार्थ भेजने की समय अवधि : बिल के अंतर्गत, अगर डीआरसी विवाद को हल न कर सके तो उसके रिपोर्ट सौंपने के तीन महीने के भीतर मामले को ट्रिब्यूनल के विचारार्थ भेजा जाएगा। कमिटी ने सुझाव दिया है कि तीन महीने की समय अवधि को कम करके, एक महीने किया जा सकता है।
     
  • अंतरराज्यीय नदी जल विवाद ट्रिब्यूनल की स्थापना : बिल अंतरराज्यीय नदी जल विवाद ट्रिब्यूनल की स्थापना करता है। सभी मौजूदा ट्रिब्यूनलों को भंग कर दिया जाएगा और उन ट्रिब्यूनलों में लंबित विवादों को नए गठित ट्रिब्यूनल में स्थानांतरित कर दिया जाएगा। मौजूदा ट्रिब्यूनलों के चेयरपर्सन और अन्य सदस्य, जिन्होंने अंतरराज्यीय नदी जल विवाद (संशोधन) एक्ट, 2017 के लागू होने की तारीख को सत्तर वर्ष की आयु पूरी कर ली है, एक्ट के लागू होने के तीन महीने के बाद अपने पद पर नहीं रहेंगे। कमिटी ने टिप्पणी की कि इस तीन महीने की अवधि के दौरान चेयरपर्सन और अन्य सदस्यों के अपने पद पर बने रहने से कोई सार्वजनिक हित हासिल होने वाला नहीं है। कमिटी ने सुझाव दिया कि बिल से इस प्रावधान को हटाया जाना चाहिए।
     
  • ट्रिब्यूनल की संरचना : बिल के अंतर्गत ट्रिब्यूनल के चेयरपर्सन, वाइस चेयरपर्सन और अन्य सदस्यों को भारत के मुख्य न्यायाधीश द्वारा नामित किया जाएगा। कमिटी ने सुझाव दिया कि ट्रिब्यूनल के चेयरपर्सन, वाइस चेयरपर्सन और अन्य सदस्यों को चुनने के लिए चार सदस्यों के कोलेजियम की रचना की जानी चाहिए। इन चार सदस्यों में निम्नलिखित शामिल होंगे : (i) प्रधानमंत्री या उनके नॉमिनी, (ii) मुख्य न्यायाधीश या उनके नॉमिनी, जोकि सर्वोच्च न्यायालय के कोई न्यायाधीश हों, (iii) विपक्ष के नेता, और (iv) जल संसाधन मंत्री।
     
  • असेसर की नियुक्ति : बिल के अंतर्गत केंद्र सरकार प्रत्येक जल विवाद के असेसर के रूप में सेंट्रल वॉटर इंजीनियरिंग सर्विस के दो विशेषज्ञों को नियुक्त कर सकती है, जोकि चीफ इंजीनियर के पद से निचले स्तर के अधिकारी नहीं होने चाहिए। ये असेसर कार्यवाही के दौरान ट्रिब्यूनल को सलाह देंगे। कमिटी ने सुझाव दिया कि परस्पर हितों का टकराव न हो, इसलिए असेसर को उन राज्यों से संबंधित नहीं होना चाहिए जोकि उस खास विवाद में एक पक्ष हों।
     
  • विवाद पर निर्णय देने की समय अवधि : कमिटी ने टिप्पणी की कि बिल के अंतर्गत किसी विवाद पर अंतिम निर्णय हासिल करने में छह वर्ष का समय लग जाएगा। यह कहा गया कि यह अवधि बहुत लंबी है, विशेष रूप से जब डीआरसीज़ पहले से ही इन विषयों पर व्यापक रूप से विचार विमर्श कर चुकी होती हैं। कमिटी ने सुझाव दिया कि ट्रिब्यूनल द्वारा विवादों पर निर्णय देने की समय अवधि को और कम करके अधिकतम दो वर्ष किया जाना चाहिए।
     
  • ट्रिब्यूनल का निर्णय : कमिटी ने यह भी कहा कि ट्रिब्यूनल के परिणाम/निष्कर्षों को ‘रिपोर्ट’ के रूप में वर्गीकृत नहीं किया जा सकता, जैसा कि बिल में वर्तमान में किया गया है। यह सुझाव दिया गया कि ‘रिपोर्ट’ शब्द के स्थान पर किसी जूडीशियल शब्द का प्रयोग किया जाना चाहिए जैसे आदेश या अधिनिर्णय (अवॉर्ड), चूंकि ट्रिब्यूनल का निर्णय अदालती हुक्मनामे (डिक्री) के समान होता है। यह सुझाव भी दिया गया कि ट्रिब्यूनल के अधिनिर्णय को समय पर लागू किया जाना सुनिश्चित होना चाहिए।

 

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