स्टैंडिंग कमिटी की रिपोर्ट का सारांश

भारतीय न्याय संहिता, 2023

  • गृह मामलों से संबंधित स्टैंडिंग कमिटी (चेयर: श्री बृजलाल) ने 10 नवंबर, 2023 को भारतीय न्याय संहिता, 2023 (बीएनएस) पर अपनी रिपोर्ट सौंपी। बीएनएस भारतीय न्याय संहिता, 1860 (आईपीसी) का स्थान लेती है, जोकि आपराधिक मामलों से संबंधित प्रमुख कानून है। बीएनएस में बड़े पैमाने पर आईपीसी के प्रावधानों को बरकरार रखा गया है। 11 अगस्त, 2023 को इस बिल को स्टैंडिंग कमिटी के पास भेजा गया था। कमिटी ने बीएनएस के कुछ प्रावधानों में बदलाव का सुझाव दिया है। कमिटी के आठ सदस्यों ने असहमति के नोट्स सौंपे। कमिटी के मुख्य सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • बीएनएस द्वारा हटाए गए अपराध: बीएनएस व्यभिचार (एडल्ट्री) और समलैंगिक (सेम सेक्स) यौन गतिविधियों (आईपीसी का सेक्शन 377) से संबंधित अपराधों को हटाता है। कमिटी ने कहा कि 2018 में सर्वोच्च न्यायालय ने व्यभिचार से संबंधित सेक्शन को रद्द कर दिया था। अदालत ने कहा था कि यह प्रावधान पुराना, मनमाना और पितृसत्तात्मक है, क्योंकि यह किसी महिला की स्वायत्तता, प्रतिष्ठा और प्राइवेसी का हनन करता है। भारतीय समाज में विवाह की पवित्रता को मान्यता देते हुए कमिटी ने सुझाव दिया कि व्यभिचार के सेक्शन को बरकरार रखा जाए और उसे सभी जेंडर्स पर लागू किया जाए। आईपीसी के सेक्शन 377 के संबंध में कमिटी ने कहा कि इसे हटाने का मतलब यह है कि पुरुषों, ट्रांसजेंडरों के साथ सहमति के बिना किए गए यौन अपराधों और पशुओं के साथ बनाए गए यौन संबंधों को दंडित नहीं किया जाएगा। उसने सुझाव दिया कि प्रस्तावित कानून में सेक्शन 377 को शामिल किया जाए।

  • मानसिक बीमारी (मेंटल इलनेस): आईपीसी के तहत विकृत दिमाग (अनसाउंड माइंड) वाले व्यक्ति द्वारा किए गए गए कृत्य को अपराध नहीं माना जा सकता। बीएनएस इस प्रावधान को बरकरार रखता है, लेकिन ‘अनसाउंड माइंड’ के स्थान पर ‘मेंटल इलनेस’ का प्रयोग करता है। कमिटी ने कहा कि ‘मेंटल इलनेस’ यानी मानसिक बीमारी की परिभाषा ‘अनसाउंड माइंड’ यानी विकृत दिमाग की तुलना में व्यापक है, क्योंकि इसमें मूड स्विंग्स या इच्छा से नशा जैसी स्थितियां भी शामिल हैं। उसने सुझाव दिया कि ‘मेंटल इलनेस’ के स्थान पर ‘अनसाउंड माइंड’ का ही प्रयोग किया जाए।

  • संगठित अपराध: बीएनएस संगठित अपराध को तीन या अधिक व्यक्तियों द्वारा अकेले या संयुक्त रूप से अपराध सिंडिकेट के सदस्यों के रूप में या उसकी ओर से की जाने वाली निरंतर गैरकानूनी गतिविधि के रूप में परिभाषित करता है। संगठित अपराध की कोशिश करने या अपराध करने पर मृत्युदंड या आजीवन कारावास और कम से कम 10 लाख रुपए का जुर्माना भुगतना होगा, अगर इससे किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है। कमिटी की राय थी कि अपराध करने और अपराध करने की कोशिश करने में कोई अंतर नहीं किया गया है। उसने स्पष्टता के लिए दोनों को अलग करने का सुझाव दिया। इसके अलावा उसने कहा कि इसका दायरा बढ़ाने के लिए 'तीन या अधिक व्यक्तियों के समूह' के स्थान पर 'दो या अधिक व्यक्तियों' का प्रयोग किया जाए।

  • मामूली संगठित अपराध: बीएनएस मामूली संगठित अपराध को परिभाषित और उसे दंडित करता है। इन अपराधों में निम्नलिखित शामिल हैं: (i) चोरी के प्रकार, जैसे वाहन चोरी और पॉकेटमारी, (ii) टिकटों की अवैध बिक्री, और (iii) किसी गिरोह द्वारा किए गए किसी अन्य प्रकार के संगठित अपराध। इन अपराधों से नागरिकों में सामान्य तौर पर असुरक्षा की भावना पैदा होनी चाहिए। विशेषज्ञों ने कमिटी को बताया था कि 'असुरक्षा की सामान्य भावना' शब्द अस्पष्ट है। कमिटी ने प्रावधान को फिर से लिखने का सुझाव दिया।

  • आतंकवाद: बीएनएस आतंकवाद को अपराध के तौर पर जोड़ता है, और इसे ऐसे कृत्य के तौर पर परिभाषित करता है जिसमें देश की एकता, अखंडता और सुरक्षा को नुकसान पहुंचाना या जनता को डराना शामिल है। आतंकवादी कृत्यों में सरकार को इस तरह से उकसाना या डराना शामिल है जिससे किसी लोक सेवक की मृत्यु हो सकती है। कमिटी ने आतंकवादी कृत्यों को वर्गीकृत करने में अस्पष्टताओं का हल निकालने के लिए 'डराना' को परिभाषित करने का सुझाव दिया।

  • सामुदायिक सेवा: बिल दंड के तौर पर सामुदायिक सेवा को प्रस्तुत करता है। कमिटी ने इन शब्दों और ‘सामुदायिक सेवा’ की प्रकृति को परिभाषित करने का सुझाव दिया।

  • लापरवाही से मृत्यु का कारण बनना: जो कोई भी लापरवाही से मौत का कारण बनता है और घटना की रिपोर्ट नहीं करता, उसे 10 वर्ष तक की कैद और जुर्माना हो सकता है। कमिटी ने कहा कि यह आत्म-अपराध के खिलाफ मौलिक अधिकार का उल्लंघन हो सकता है। कमिटी ने सुझाव दिया कि अगर इस प्रावधान को बरकरार रखा जाना है, तो इसे केवल मोटर वाहन दुर्घटनाओं तक ही सीमित रखा जाए।

  • समूह द्वारा हत्या: बीएनएस कुछ आधार पर पांच या उससे अधिक व्यक्तियों द्वारा हत्या करने पर अलग दंड का प्रावधान करता है। इसमें कम से कम सात वर्ष की कैद से लेकर आजीवन कारावास या मौत तक की सजा हो सकती है। कमिटी ने भारत के अटॉर्नी जनरल और सॉलिसिटर जनरल से परामर्श के बाद सात वर्ष की कैद को हटाने का सुझाव दिया।

  • असहमति के नोट्स: असहमत सदस्यों के नोट्स में निम्नलिखित शामिल हैं: (i) बिल काफी हद तक मौजूदा कानूनों के समान हैं, (ii) बिल के लिए केवल हिंदी नाम होने से संविधान का उल्लंघन हो सकता है, और (iii) प्रस्तावित बिल पर विशेषज्ञों और आम लोगों से पर्याप्त परामर्श नहीं किया गया है। दो सदस्यों के सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं: (i) एकांत कारावास के प्रावधान को हटाना, (ii) व्यभिचार को अपराध की श्रेणी से बाहर करना, और (iii) रिकॉर्ड किए गए कारण के बिना सरकार को सजा कम करने की अनुमति न देना।

 

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