स्टैंडिंग कमिटी की रिपोर्ट का सारांश

भारतीय साक्ष्य बिल, 2023

  • गृह मामलों से संबंधित स्टैंडिंग कमिटी (चेयर: श्री बृजलाल) ने 10 नवंबर, 2023 को भारतीय साक्ष्य बिल, 2023 (बीएसबी) पर अपनी रिपोर्ट सौंपी। बिल भारतीय साक्ष्य एक्ट, 1872 (आईईए) का स्थान लेता है जो भारतीय अदालतों में सबूतों को पेश करने से संबंधित प्रावधान करता है। एक्ट सभी सिविल और क्रिमिनल कार्यवाहियों पर लागू होता है। बीएसबी आईईए के अधिकतर प्रावधानों को बरकरार रखता है। बिल में प्रस्तावित मुख्य बदलावों में इलेक्ट्रॉनिक या डिजिटल रिकॉर्ड को प्राथमिक सबूत के रूप में स्वीकार करना शामिल है। 11 अगस्त, 2023 को इस बिल को गृह मामलों से संबंधित स्टैंडिंग कमिटी के पास भेजा गया था। कमिटी ने बिल के कुछ प्रावधानों में बदलाव करने का सुझाव दिया है। कमिटी के आठ सदस्यों ने असहमति के नोट्स सौंपे। कमिटी के मुख्य निष्कर्षों और सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं:
  • इलेक्ट्रॉनिक सबूत के साथ छेड़छाड़: आईईए के तहत इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड सहायक सबूत के रूप में स्वीकार्य हैं। बीएसबी के तहत, इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड को मुख्य सबूत के रूप में वर्गीकृत किया गया है। मुख्य सबूत में मूल दस्तावेज़ और उसके हिस्से शामिल होते हैं। सहायक सबूत में ऐसे दस्तावेज़ शामिल होते हैं जो मूल दस्तावेज़ के कंटेंट को साबित कर सकते हैं। कमिटी ने कहा कि इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल रिकॉर्ड की प्रामाणिकता और अखंडता की रक्षा करना जरूरी है क्योंकि उनमें छेड़छाड़ की आशंका होती है। कमिटी ने सुझाव दिया कि इसमें एक प्रावधान जोड़ा जाए। इस प्रावधान के तहत यह अनिवार्य किया जाए कि जांच के दौरान सबूत के रूप में जमा किए गए सभी इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल रिकॉर्ड को उचित तरीके से चेन ऑफ कस्टडी के जरिए से सुरक्षित रूप से हैंडिल और प्रोसेस किया जाएगा। कमिटी ने भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता में सबूतों की ऑडियो-वीडियो रिकॉर्डिंग के संबंध में भी इसी तरह के संशोधन का सुझाव दिया है, जो आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973 का स्थान लेगी।
  • इलेक्ट्रॉनिक सबूत की स्वीकार्यता: आईईए के अनुसार, इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड को एक प्रमाणपत्र के जरिए प्रामाणित किया जाना चाहिए। कमिटी ने कहा कि बीएसबी निर्दिष्ट करता है कि इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड को मुख्य साक्ष्य के जरिए साबित किया जाना चाहिए (क्लॉज 59)। हालांकि बिल इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड की स्वीकार्यता पर आईईए के सेक्शन को भी बरकरार रखता है (क्लॉज 63) जिसके लिए प्रमाणपत्र के प्रमाणीकरण की जरूरत होती है। कमिटी ने सुझाव दिया कि इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड को क्लॉज 63 के अनुसार साबित किया जाए जिसमें इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड की स्वीकार्यता का प्रावधान है।
  • इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड को प्रमाणित करने के लिए प्रमाणपत्र: कमिटी ने कहा कि इलेक्ट्रॉनिक उपकरण के प्रभारी व्यक्ति और एक विशेषज्ञ द्वारा भरा गया प्रमाणपत्र इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड की स्वीकार्यता के प्रावधान के तहत सभी आवश्यकताओं को पूरा नहीं करता है। उदाहरण के लिए, प्रमाणपत्र निम्नलिखित के संबंध में कोई जानकारी नहीं देता: (i) उपकरण की स्थिति और (ii) रिकॉर्ड प्रस्तुत करने वाले व्यक्ति का वैध नियंत्रण। कमिटी ने कहा कि ऐसी कमियां सबूत के रूप में प्रस्तुत इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल रिकॉर्ड की प्रामाणिकता, विश्वसनीयता और अखंडता को खतरे में डाल सकती हैं जिससे उनमें छेड़छाड़ की आशंका हो सकती है। उसने सुझाव दिया कि इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड की स्वीकार्यता से संबंधित सेक्शन के तहत आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए प्रमाणपत्र में संशोधन किया जाए।
  • फैक्ट्स इन इश्यू: बीएसबी के तहत कुछ मामलों में मृत व्यक्ति, या किसी नदारद व्यक्ति द्वारा दिए गए बयानों को फैक्ट्स इन इश्यू या प्रासंगिक तथ्य माना जा सकता है। कमिटी ने कहा कि आईईए के ऐसे ही सेक्शन में ‘फैक्ट्स इन इश्यू’ का उल्लेख नहीं है और यह सिर्फ ‘प्रासंगिक तथ्यों’ का इस्तेमाल करता है। उसने कहा कि न्यायिक भाषा में 'फैक्ट्स इन इश्यू' और 'प्रासंगिक तथ्य' के अलग-अलग अर्थ हैं। कमिटी की राय थी कि प्रविष्टि गलत है। उसने इस प्रावधान से 'फैक्ट्स इन इश्यू' शब्द को हटाने का सुझाव दिया। फैक्ट्स इन इश्यू किसी भी ऐसे तथ्य को कहा जाता है जो कानूनी कार्यवाही में दावा किए गए या अस्वीकार किए गए किसी भी अधिकार, दायित्व या विकलांगता के अस्तित्व, प्रकृति या सीमा को निर्धारित करता है। प्रासंगिक तथ्य किसी दिए गए मामले से संबंधित तथ्य है।
  • असहमति के नोट: असहमत सदस्यों के नोट्स में निम्नलिखित शामिल हैं: (i) बिल काफी हद तक मौजूदा कानूनों के समान हैं, (ii) बिल के लिए केवल हिंदी नाम होने से संविधान का उल्लंघन हो सकता है, और (iii) प्रस्तावित बिल पर विशेषज्ञों और आम लोगों से पर्याप्त परामर्श नहीं किया गया है। 

 

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