स्टैंडिंग कमिटी की रिपोर्ट का सारांश

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023

  • गृह मामलों से संबंधित स्टैंडिंग कमिटी (चेयर: श्री बृजलाल) ने 10 नवंबर, 2023 को भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (बीएनएसएस) पर अपनी रिपोर्ट सौंपी। यह बिल आपराधिक दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (सीआरपीसी) का स्थान लेता है, जोकि आपराधिक दंड प्रक्रिया पर मुख्य कानून है। बीएनएसएस में बड़े पैमाने पर सीआरपीसी के प्रावधानों को बरकरार रखा गया है। 11 अगस्त, 2023 को इस बिल को स्टैंडिंग कमिटी के पास भेजा गया था। कमिटी ने बिल के कुछ प्रावधानों में बदलाव का सुझाव दिया है। कमिटी के आठ सदस्यों ने असहमति के नोट्स सौंपे। कमिटी के मुख्य सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं:
  • संज्ञेय मामलों की जांच करने की शक्ति: बीएनएसएस के तहत, पुलिस स्टेशन का कोई भी प्रभारी अधिकारी मजिस्ट्रेट के आदेश के बिना अपने अधिकार क्षेत्र के भीतर किसी भी संज्ञेय मामले की जांच कर सकता है। हालांकि गंभीर अपराधों के लिए, पुलिस अधीक्षक (एसपी) या पुलिस उपाधीक्षक को अपराध की जांच करने की आवश्यकता हो सकती है। यह मानते हुए कि एसपी जिले का प्रभारी है और उसकी पर्यवेक्षी भूमिका है, कमिटी ने सुझाव दिया कि अधीनस्थ अधिकारियों को ऐसी जांच संभालनी चाहिए।
  • विचाराधीन कैदी: सीआरपीसी के तहत अगर किसी विचाराधीन कैदी ने किसी अपराध के लिए कारावास की अधिकतम अवधि का आधा हिस्सा हिरासत में बिताया है तो उसे उसके निजी बांड पर रिहा किया जाना चाहिए। यह उन अपराधों पर लागू नहीं होता, जिनमें मौत की सजा हो सकती है। बीएनएसएस के अनुसार, यह प्रावधान इन पर भी लागू नहीं होगा: (i) ऐसे अपराध जिनमें आजीवन कारावास की सजा मिली है और (ii) ऐसे व्यक्ति जिनके पर एक से अधिक अपराधों के लिए कार्यवाही लंबित है। कमिटी ने सुझाव दिया कि उन विचाराधीन कैदियों को जमानत दी जानी चाहिए जिन्होंने खुद पर लगाए गए सबसे गंभीर अपराध के लिए अधिकतम सजा काट ली है। हालांकि अगर कई अपराधों के लिए लगातार सजा दी गई है तो यह प्रावधान लागू नहीं होगा।
  • पुलिस हिरासत: सीआरपीसी के तहत, एक न्यायिक मजिस्ट्रेट किसी आरोपी व्यक्ति को 15 दिनों तक हिरासत में रखने के लिए अधिकृत कर सकता है। बीएनएसएस के अनुसार, 15 दिन की हिरासत को शुरुआती 40, 60 या 90 दिनों के दौरान भागों में रखा जा सकता है। कमिटी ने कहा कि अधिकारी इस सेक्शन का दुरुपयोग कर सकते हैं क्योंकि यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि पहले 15 दिनों में हिरासत में क्यों नहीं लिया गया। कमिटी ने उचित संशोधन के साथ क्लॉज को स्पष्ट करने का सुझाव दिया।
  • जांच अधिकारी: बीएनएसएस के अनुसार, अगर कोई अधिकारी जिसने किसी जांच या ट्रायल के लिए दस्तावेज़ या रिपोर्ट तैयार की है, पर वह अनुपलब्ध है, तो न्यायालय यह सुनिश्चित करेगा कि उनका परवर्ती (सक्सेसर) अधिकारी दस्तावेज़ पर बयान दे। इस प्रावधान के दायरे में आने वाले अधिकारियों में लोक सेवक और जांच अधिकारी शामिल हैं। कमिटी ने कहा कि जांच अधिकारियों के पास जांच के तहत मामले की महत्वपूर्ण जानकारी होती है। उनकी जिरह काफी महत्वपूर्ण होती है, खासकर जब उनके द्वारा तैयार किए गए दस्तावेजों को सबूत के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। कमिटी ने जांच अधिकारियों को इस प्रावधान से हटाने का सुझाव दिया।
  • ऑडियो-वीडियो रिकॉर्डिंग: बीएनएसएस सबूत रिकॉर्ड करने जैसी विभिन्न प्रक्रियाओं के लिए ऑडियो-विज़ुअल और इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों को औपचारिक रूप से अपनाने की शुरुआत करती है। कमिटी ने सुझाव दिया कि ऐसी रिकॉर्डिंग सुरक्षा उपायों के साथ की जानी चाहिए।
  • विशेष प्रक्रिया: भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस), 2023 (जो भारतीय दंड संहिता, 1860 का स्थान लेती है) संगठित अपराध और आतंकवाद के अपराधों को प्रस्तुत करती है। बीएनएस की समीक्षा करते हुए कमिटी ने बीएनएसएस में एक प्रावधान जोड़ने का सुझाव दिया। इसके तहत वरिष्ठ पुलिस अधिकारी यह तय करेगा कि आतंकवादी अपराध के लिए बीएनएसएस के तहत एफआईआर दर्ज की जाए, अथवा गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम एक्ट, 1967 के तहत। इसके अतिरिक्त उसने बीएनएसएस में संगठित अपराध के लिए एक अलग प्रक्रिया शामिल करने का सुझाव दिया।
  • आजीवन कारावास की सजा को कम करना: सीआरपीसी संबंधित सरकार को आजीवन कारावास की सजा को अधिकतम 14 वर्ष तक कम करने की अनुमति देता है। बीएनएसएस इसमें संशोधन करती है ताकि सरकार को आजीवन कारावास की सजा को कम से कम सात वर्ष तक बदलने की अनुमति मिल सके। कमिटी ने सुझाव दिया कि आजीवन कारावास के दोषियों को दी जाने वाली न्यूनतम और अधिकतम सजा, दोनों को निर्दिष्ट किया जाए ताकि अपराध की गंभीरता को देखते हुए उचित सजा सुनिश्चित हो।
  • असहमति के नोट्स: असहमत सदस्यों के नोट्स में निम्नलिखित शामिल हैं: (i) बिल काफी हद तक मौजूदा कानूनों के समान हैं, (ii) बिल के लिए केवल हिंदी नाम होने से संविधान का उल्लंघन हो सकता है, और (iii) प्रस्तावित बिल पर विशेषज्ञों और आम लोगों से पर्याप्त परामर्श नहीं किया गया है। दो सदस्यों के सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं: (i) पुलिस हिरासत को भागों में रखने की अनुमति न दी जाए क्योंकि यह आरोपी की स्वतंत्रता का उल्लंघन करता है, (ii) सहायक सत्र न्यायाधीश के पद को वापस लाया जाए और (iii) शारीरिक रूप से गवाही को अनिवार्य किया जाए जिससे यह सुनिश्चित होगा कि गवाह दबाव में नहीं है।

 

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