स्टैंडिंग कमिटी की रिपोर्ट का सारांश

भ्रष्टाचार निवारण (संशोधन) बिल, 2013

  • कार्मिक, लोक शिकायत, कानून और न्याय पर गठित स्टैंडिंग कमिटी (अध्यक्ष: श्री शांताराम नाईक) ने6 फरवरी, 2013 को भ्रष्टाचार निवारण (संशोधन) बिल, 2013 पर अपनी रिपोर्ट दी। बिल को 19 अगस्त, 2013 को राज्यसभा में पेश किया गया था।
     
  • बिल भ्रष्टाचार निवारण एक्ट, 1988 में संशोधन करता है। बिल, एक्ट के तहत रिश्वत देना अपराध घोषित करता है, रिश्वत लेने की परिभाषा को व्यापक बनाता है और व्यावसायिक संगठनों को दायरे में लाता है।
     
  • कमिटी ने सुझाव दिया कि बिल में'भ्रष्टाचार' और 'भ्रष्ट प्रथाओं' की परिभाषा को शामिल किया जाए। इसके अलावा, सरकारी कर्मचारी की परिभाषा में सेवानिवृत्त अधिकारियों को उस प्रावधान के अनुसार शामिल किया जाना चाहिए जो सेवानिवृत्त सरकारी कर्मचारियों पर मुकदमे के लिए पूर्व अनुमति की सुरक्षा प्रदान करता है।
     
  • बिल में सुझाव दिया गया है कि सरकार को ऐसे नियम और विनियमतैयार करने चाहिए जिससे जबरन रिश्वतख़ोरी के अवसरों का कम होना सुनिश्चित किया जा सके।
     
  • कमिटी की राय थी कि'माल और सेवा की समयबद्ध डिलिवरी के लिए नागरिकों के अधिकार और उनकी शिकायतों का निपटारा बिल, 2011' और 'व्हिसल ब्लोअर संरक्षण बिल, 2011' जैसे कानून जो कि संसद में लंबित पड़े हैं उन्हें लागू किया जाए। ऐसा करने से उन व्यक्तियों की चिंताओं का निवारण हो सकेगा जिन्हें सेवाओं की प्राप्ति के लिए रिश्वत देने को मजबूर होना पड़ता है और भ्रष्टाचार के मामलों की रिपोर्ट करने के लिए प्रोत्साहन मिलेगा।
     
  • कमिटी ने व्यावसायिक संगठनों (केवल जुर्माना) और संगठनों के साथ संबंधित व्यक्तियों (तीन से सात वर्ष का कारावास, जो दस वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है) को दिए जाने वाले दंड में अंतर पर गौर किया। कमिटी की राय थी कि व्यावसायिक संगठनों के लिए तय दंड संगठन के मुखिया के लिए तय दंड के साथ होना चाहिए।
     
  • कमिटी ने बिल में संपत्ति की कुर्की और जब्ती पर एक अलग क्लॉज़ डालने की सराहना की।
     
  • बिल में सरकारी कर्मचारी के विरुद्ध आय से अधिक संपत्ति के मामले में उसकी नीयत साबित करना शामिल किया गया है। कमिटी ने सुझाव दिया कि इस प्रावधान को हटाया जाए। सरकारी कर्मचारी द्वारा आय से अधिक संपत्ति के स्रोत के बारे में स्पष्ट रूप से नहीं बता पाने को ही मुकदमे के लिए पर्याप्त माना जाए।
     
  • कमिटी ने सुझाव दिया कि भ्रष्टाचार के आदी अपराधियों के लिए न्यूनतम सज़ा को तीन से बढ़ाकर पाँच वर्ष किया जाए जिसे 10 वर्ष तक बढ़ाया जा सकता हो। इससे लोकपाल और लोकयुक्त एक्ट, 2013 के साथ एकरूपता  सुनिश्चित होगी।
     
  • कमिटी की राय में, भ्रष्टाचार के मामलों में मुकदमे के लिए समय सीमा लोकपाल और लोकयुक्त के विचारार्थ मामलों में दिए गए समय अनुसार तय होनी चाहिए।

 

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