स्टैंडिंग कमिटी की रिपोर्ट का सारांश

वक्फ संपत्तियां (अनाधिकृत कब्जा करने वालों की बेदखली) बिल, 2014

  • सामाजिक न्याय और सशक्तीकरण पर स्टैंडिंग कमिटी (चेयरपर्सनः रमेश बैस) ने 12 अगस्त, 2015 को वक्फ संपत्तियां (अनाधिकृत कब्जा करने वालों की बेदखली), बिल, 2014 पर अपनी रिपोर्ट सौंपी। इस बिल को 18 फरवरी, 2014 को राज्यसभा में पेश किया गया था और 5 मार्च, 2014 और तत्पश्चात 16 सितंबर, 2014 को विचारार्थ स्टैंडिंग कमिटी को सौंपा गया था।
     
  • बिल वक्फ संपतियों से अनाधिकृत कब्जा करने वालों को बेदखल करने की प्रक्रिया को प्रस्तावित करता है और इस संबंध में, दंड का प्रावधान करता है।
     
  • वक्फ बोर्ड के कार्यः कमिटी ने पाया कि वक्फ बोर्ड के कार्यों से जुड़े अनेक मसले हैं। इनमें शामिल हैं- उनके संविधान में असामान्य विलंब, कम योग्य सदस्यों की नियुक्ति, ढांचागत कमियां इत्यादि। अगर इन मुद्दों पर काम नहीं किया गया, तो वक्फ संपत्तियों में अतिक्रमण और अनाधिकृत कब्जा जारी रहेगा। यह सुझाव दिया गया कि केंद्र सरकार को समय-समय पर बोर्ड के कार्य पर निगरानी रखनी होगी और उन्हें निर्देश जारी करने होंगे।
     
  • अनाधिकृत कब्जे की परिभाषाः बिल के तहत, केवल एक व्यक्ति को ही अनाधिकृत कब्जा करने वाला माना जाता है। कमिटी ने सुझाव दिया कि इसके दायरे में निजी और सार्वजनिक संस्थान भी लाए जाने चाहिए। इसके अतिरिक्त, अगर मूल किरायेदार की मृत्यु हो जाती है तो उसके साथ रहने वाले दूसरे व्यक्तियों का वक्फ संपत्ति पर अवैध कब्जा नहीं माना जाएगा।
     
  • बेदखली के आधारः बिल किसी भी वक्फ संपत्ति पर अनाधिकृत कब्जा करने वालों को बेदखल करने की प्रक्रिया को प्रस्तुत करता है, फिर भी वह बेदखली के आधार को स्पष्ट नहीं करता। वक्फ एक्ट, 1995 और संबंधित कानून भी इस पहलू पर मौन हैं। कमिटी ने सुझाव दिया है कि बिल में बेदखली के आधार स्पष्ट होने चाहिए। इसके अतिरिक्त, कारण बताओ की अवधि (कब्जा करने वालों की अपनी बेदखली के खिलाफ) सात दिन से 15 दिन कर दी जानी चाहिए।
     
  • बेदखली के लिए बल का प्रयोगः बिल वक्फ संपदा अधिकारियों को अनुमति देता है कि वे उन अनाधिकृत कब्जा करने वालों के खिलाफ बल का प्रयोग कर सकते हैं जो बेदखली के आदेश का पालन नहीं करते। कमिटी ने सुझाव दिया है कि बेदखली की प्रक्रिया को संयम के साथ तथा संबंधित जिलाधिकारी, आयुक्त और पुलिस अधीक्षक के सहयोग के अंजाम दिया जाना चाहिए।
     
  • अनाधिकृत संरचना को हटानाः बिल वक्फ संपदा अधिकारी को अधिकृत करता है कि वह बिना नोटिस दिए किसी ढांचे, सामान, फिक्स्चर, मवेशी आदि को वक्फ संपत्ति से हटा सकता है। इस संदर्भ में कमिटी ने कहा कि इस प्रकार की पाबंदियों के साथ, दुकान चलाने वाले किसी किरायेदार को दुकान या कारोबार चलाने की अनुमति नहीं मिल सकती, इसलिए इस प्रावधान पर पुनर्विचार किया जाना चाहिए।
     
  • वक्फ संपदा अधिकारियों की शक्तियां: बिल के तहत जांच करते समय वक्फ संपदा अधिकारियों में दीवानी अदालत की शक्तियों को निहित किया गया है। इस संबंध में, बिल में ऐसे अधिकारियों की किसी कानूनी योग्यता को स्पष्ट नहीं किया गया है। यह सुझाव दिया गया है कि लोक सेवाओं से इन अधिकारियों को नियुक्त किया जाए।
     
  • दंडः बिल में वक्फ संपत्ति के अवैध कब्जे के लिए छह माह तक के सामान्य कारावास और 5,000 रुपये के मुआवजे का प्रावधान है। कमिटी ने सुझाव दिया है कि इसे तीन साल तक के कड़े कारावास और एक लाख तक के जुर्माने में बदल देना चाहिए।
     
  • इसके अतिरिक्त, बिल के तहत अगर बेदखल किया गया व्यक्ति संपत्ति पर फिर से कब्जा कर लेता है तो उसे एक साल की सजा और 5,000 रुपये तक जुर्माना हो सकता है। कमिटी ने कहा है कि दंड को बढ़ाकर पांच साल तक का कड़ा कारवास और पांच लाख रुपये तक का जुर्माना कर दिया जाना चाहिए।
     
  • बिल का दायराः बिल 1958 के प्राचीन स्मारक और पुरातात्विक स्थल एवं अवशेष एक्ट के तहत आने वाली संरक्षित संपत्तियों पर लागू नहीं होता। कमिटी ने सुझाव दिया है कि ऐसे संरक्षित स्थलों के उन हिस्सों पर यह बिल लागू होना चाहिए जहां कोई मसजिद, दरगाह या अशूरखाना हो। केवल उन पुरातात्विक स्थलों को इससे हटा दिया जाना चाहिए, जोकि मसजिद नहीं हैं।

 

यह सारांश मूल रूप से अंग्रेजी में तैयार किया गया था। हिंदी रूपांतरण में किसी भी प्रकार की अस्पष्टता की स्थिति में अंग्रेजी के मूल सारांश से इसकी पुष्टि की जा सकती है।