स्टैंडिंग कमिटी की रिपोर्ट का सारांश

असिस्टेड रीप्रोडक्टिव टेक्नोलॉजी (रेगुलेशन) बिल, 2020

 

  • स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (चेयर: राम गोपाल यादव) ने असिस्टेड रीप्रोडक्टिव टेक्नोलॉजी (रेगुलेशन) बिल, 2020 पर अपनी रिपोर्ट सौंपी। यह बिल असिस्टेड रीप्रोडक्टिव टेक्नोलॉजी (एआरटी) सेवाओं के रेगुलेशन के प्रावधान का प्रयास करता है। एआरटी में ऐसी सभी तकनीक शामिल हैं जिनमें मानव शरीर के बाहर स्पर्म या ओसाइट (अपरिपक्व एग सेल) को रखकर किसी महिला की प्रजनन प्रणाली में गैमेट (स्पर्म या एग) को प्रत्यारोपित करके गर्भावस्था हासिल की जाती है।
  • एआरटी बैंक: बिल के अंतर्गत एआरटी बैंक निम्नलिखित के लिए रजिस्टर्ड एंटिटी के तौर पर काम करता है: (i) गैमेट डोनर्स की स्क्रीनिंग, और (ii) सीमन का कलेक्शन, स्क्रीनिंग और स्टोरेज। कमिटी ने कहा कि इस परिभाषा में एआरटी बैंकों की भूमिका स्पष्ट नहीं है। इसके अतिरिक्त गैमेट डोनर्स की स्क्रीनिंग एक जटिल प्रक्रिया है जिसके लिए स्पेशलाइज्ड डॉक्टरों की मौजूदगी जरूरी होती है। संभव है कि एआरटी बैंक्स के पास ऐसे डॉक्टर्स न हों। कमिटी ने सुझाव दिया कि स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग को एआरटी बैंक्स की भूमिका, तथा उनमें स्पेशलिस्ट्स होने का प्रावधान स्पष्ट करना चाहिए। इसके अतिरिक्त गैमेट्स की स्क्रीनिंग एआरटी क्लिनिक द्वारा की जानी चाहिए और बैंकों की जिम्मेदारी गैमेट्स का कलेक्शन, स्टोरेज और सप्लाई होना चाहिए।
  • एआरटी और सेरोगेसी को रेगुलेट करने वाले निकाय: कमिटी ने कहा कि सेरोगेसी (रेगुलेशन) बिल, 2020 और एआरटी (रेगुलेशन) बिल, 2020, दोनों के अंतर्गत अथॉरिटीज़ का संयोजन और कुछ कार्य एक समान हैं। इन कार्यों में निम्नलिखित शामिल हैं: (i) क्लिनिक या बैंक को रजिस्ट्रेशन देना, उसे स्थगित या रद्द करना, (ii) क्लिनिक्स और बैंक के लिए कामकाज के मानदंडों को लागू करना, और (iii) एक्ट और संबंधित नियमों के उल्लंघनों की शिकायतों की जांच करना। कमिटी ने सुझाव दिया कि केंद्र सरकार को एप्रोप्रिएट एआरटी और सेरोगेसी रजिस्ट्रेशन अथॉरिटी नाम का एक कॉमन इंस्टीट्यूशन बनाना चाहिए ताकि वह दोनों कानूनों के अंतर्गत इन एक समान कार्यों को कर सके। इसके अतिरिक्त कमिटी ने यह सुझाव भी दिया कि राष्ट्रीय सेरोगेसी बोर्ड को राष्ट्रीय सेरोगेसी और एआरटी बोर्ड नाम दिया जाना चाहिए, चूंकि वह भी एआरटी सेवाओं को रेगुलेट करेगा।
  • शिकायत निवारण: बिल के अनुसार, हर एआरटी क्लिनिक और बैंक में एक शिकायत निवारण सेल होगा। कमिटी ने सुझाव दिया कि मरीजों की शिकायतों को दूर करने के लिए 30 दिन की समय सीमा होनी चाहिए। इसके अतिरिक्त व्यक्ति एआरटी सेवाओं से संबंधित शिकायतों के लिए अदालत भी जा सकता है। हालांकि अदालतों के दबाव को कम करने के लिए बिल को रजिस्ट्रेशन अथॉरिटी में स्वतंत्र और पक्षपात रहित शिकायत निवारण सेल का प्रावधान करना चाहिए। इससे एआरटी क्लिनिक्स और बैंक्स के खिलाफ शिकायतों को दूर किया जा सकेगा।  
  • डेटा प्रोटेक्शन और प्राइवेसी: बिल में निर्दिष्ट किया गया है कि एआरटी क्लिनिक्स और बैंक्स द्वारा जमा किए गए डेटा (जैसे इस्तेमाल की गई प्रक्रियाएं) को डेटा प्राप्त होने के एक महीने के भीतर केंद्रीय डेटाबेस (नेशनल रजिस्ट्री) में ट्रांसफर कर दिया जाना चाहिए। एआरटी क्लिनिक्स और बैंक्स को इस डेटा को कम से कम 10 वर्षों तक स्टोर करना होगा। नेशनल रजिस्ट्री को निरीक्षण के लिए इस डेटा को राष्ट्रीय बोर्ड के साथ साझा करना होगा। कमिटी ने कहा कि यह पर्सनल डेटा है जिससे कमीशनिंग कपल्स, महिला या डोनर्स की पहचान जाहिर हो सकती है। उसने सुझाव दिया कि मरीजों और कमीशनिंग कपल्स के पर्सनल डेटा को ऐसे प्रारूप में बदल दिया जाना चाहिए जिसमें डेटा प्रिंसिपल (जिस व्यक्ति का डेटा है) की पहचान न की जा सके। डेटा विशिष्ट उद्देश्य के लिए जमा किया जाना चाहिए और उसे उतने समय के लिए रखा जाना चाहिए जितना समय उस उद्देश्य के लिए जरूरी हो। इसके अतिरिक्त बिल में प्राइमरी सोर्स पर डेटा को अनाम करने का प्रावधान शामिल होना चाहिए। कमिटी ने यह सुझाव भी दिया कि डेटा की गोपनीयता कानून के अनुरूप होनी चाहिए जैसा कि जस्टिस के.एस.पुट्टास्वामी (सेवानिवृत्त) बनाम भारत संघ के फैसले, पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन बिल, 2019 और स्वास्थ्य एवं परिवार कल्यण मंत्रालय द्वारा जारी राष्ट्रीय डिजिटल हेल्थ ब्ल्यूप्रिंट में कहा गया है।
  • पॉस्थमस (मरणोपरांत) रीप्रोडक्शन: प्रॉस्थमस रीप्रोडक्शन का मतलब होता है, किसी मृत व्यक्ति के गैमट का इस्तेमाल करके रीप्रोडक्शन। कमिटी ने सुझाव दिया कि प्रॉस्थमस रीप्रोडक्शन की अनुमति दी जानी चाहिए। किसी मृत व्यक्ति की पूर्व सहमति के बिना भी, सिवाय उन स्थितियों को छोड़कर, जब मृत व्यक्ति ने इस बारे में पहले ही आपत्ति जता दी हो।   
  • स्टैंर्डडाइजेशन: कमिटी ने कहा कि एआरटी सेवाओं की कीमत हर क्लिनिक में अलग अलग है। उसने सुझाव दिया कि एआरटी सेवाओं की एक समान लागत और विश्वस्तरीय क्वालिटी स्टैंडर्ड्स को सुनिश्चित करने के लिए स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रक्रियाएं बनाई जानी चाहिए। इसके अतिरिक्त राष्ट्रीय बोर्ड के अंतर्गत निरीक्षण प्रणाली बनाई जानी चाहिए ताकि निजी सेवा प्रदाताओं द्वारा एआरटी सेवाओं के कमर्शियलाइजेशन पर प्रतिबंध लगाया जा सके।

 

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