स्टैंडिंग कमिटी की रिपोर्ट का सारांश

राष्ट्रीय एंटी-डोपिंग बिल, 2021 

  • शिक्षा, महिला, बाल, युवा एवं खेल से संबंधित स्टैंडिंग कमिटी (चेयर: डॉ. विनय पी. सहस्रबुद्धे) ने 23 मार्च, 2022 को राष्ट्रीय एंटी-डोपिंग बिल, 2021 पर अपनी रिपोर्ट सौंपी। बिल को 17 दिसंबर, 2021 को लोकसभा में पेश किया गया था और 25 दिसंबर, 2021 को कमिटी को भेजा गया था। कमिटी के मुख्य निष्कर्षों और सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं:  
     
  • राष्ट्रीय बोर्ड के लिए चयन की व्यवस्था: बिल खेलों में राष्ट्रीय एंटी-डोपिंग बोर्ड की स्थापना का प्रावधान करता है। बोर्ड के कार्यों में एंटी-डोपिंग रेगुलेशंस पर सरकार को सुझाव देना और एंटी-डोपिंग पर अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं के अनुपालन को सुनिश्चित करना है। बोर्ड राष्ट्रीय एंटी-डोपिंग एजेंसी (नाडा) की गतिविधियों का निरीक्षण करेगा और उन्हें निर्देश जारी करेगा। बोर्ड में एक चेयरपर्सन और दो सदस्य होंगे, जिनकी नियुक्ति केंद्र सरकार करेगी। कमिटी ने सुझाव दिया कि बोर्ड के चेयरपर्सन और सदस्यों के चयन और नियुक्ति के लिए एक व्यवस्था तैयार की जा सकती है। इससे केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त व्यक्ति (व्यक्तियों) की उचित जांच सुनिश्चित होगी। उल्लेखनीय है कि बोर्ड की नियुक्ति संबंधी चयन प्रक्रिया के बारे में बिल में प्रावधान नही किया गया है। 
     
  • नाबालिग एथलीट्स की सुरक्षा: कमिटी ने कहा कि बिल बालिग और नाबालिग एथलीट्स के बीच अंतर नहीं करता। विश्व एंटी-डोपिंग संहिता (वाडा संहिता) कहती है कि संरक्षित वर्ग के एथलीट्स (16 वर्ष के कम आयु के एथलीट्स सहित) पर कम संख्या में पाबंदियां लगाई जा सकती हैं। कमिटी ने सुझाव दिया कि नाबालिग एथलीट्स की सुरक्षा की व्यवस्था को सुनिश्चित करने के लिए नियमों में नाबालिग और बालिग एथलीट्स के बीच अंतर किया जाना चाहिए।   
     
  • थेराप्यूटिक यूज की छूट (टीयूई): वाडा संहिता के अनुसार, अगर कोई एथलीट बीमार है या उसकी ऐसी स्थिति है कि उसे कुछ प्रतिबंधित दवाएं लेनी जरूरी हैं तो उसे टीयूई दिया जाता है। कमिटी ने कहा कि एक विस्तृत मानक संचालक प्रक्रिया (एसओपी) को तैयार किया जाना चाहिए ताकि पात्र एथलीट्स किसी परेशानी का सामना किए बिना टीयूई हासिल कर सकें।  
     
  • एथलीट्स के लिए सजा: बिल के अंतर्गत एंटी-डोपिंग नियम का उल्लंघन करने पर एथलीट्स को सजा दी जाती है। कमिटी ने सुझाव दिया कि चूंकि एथलीट्स का खेल करियर सीमित होता है, यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि सजा की मात्रा उल्लंघन के स्तर के अनुपात में हो। कमिटी ने कहा कि सजा की अवधि पूरी होने और एथलीट्स के अपना खेल करियर दोबारा शुरू करने के बावजूद, उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार देने पर विचार नहीं किया जाता। उसने सुझाव दिया कि चूंकि यह नीतिगत फैसला है, इसलिए केंद्र सरकार इस मुद्दे की समीक्षा कर सकती है।
     
  • एंटी-डोपिंग पर जागरूकताकमिटी ने कहा कि खेलों में डोपिंग के संकट को दूर करने के लिए एथलीट्स, कोच, सपोर्ट कर्मचारियों और मेडिकल प्रैक्टीशनर्स के लिए बड़े पैमाने पर जागरूकता, शिक्षा और जानकारी की जरूरत है। इसलिए उसने सुझाव दिया कि बिल में एक डेडिकेटेड संस्थान को स्थापित करने का प्रावधान होना चाहिए जोकि एंटी-डोपिंग उपायों को बढ़ावा देने के लिए शोध, जागरूकता संबंधी पहल, एजुकेशनल कंटेंट को विकसित और पाठ्यक्रमों (डिप्लोमा/डिग्री) को संचालित करे। 
     
  • डोप टेस्टिंग लेबोरेट्रीज़: बिल के अंतर्गत मौजूदा राष्ट्रीय डोप टेस्टिंग लेबोरेट्री (एनडीटीएल) को मुख्य डोप टेस्टिंग लेबोरेट्री माना जाएगा। बिल में केंद्र सरकार को इस बात की अनुमति दी गई है कि वह डोप टेस्टिंग के लिए दूसरी राष्ट्रीय लेबोरेट्रीज़ भी बना सकती है। कमिटी ने गौर किया कि विश्व में वाडा की मान्यता प्राप्त कुल 29 (एनडीटीएल) लेबोरेट्रीज़ हैं। 29 में से छह लेबोरेट्रीज़ एशिया में हैं। कमिटी ने और अधिक टेस्टिंग लेबोरेट्रीज़ को खोलने पर जोर दिया, खास तौर से हर राज्य में एक। इससे देश की जरूरत तो पूरी होगी ही, इसके अलावा एंटी-डोपिंग विज्ञान और शिक्षा के क्षेत्रों में भारत दक्षिण पूर्वी एशिया का अग्रणी देश बन जाएगा।  
     
  • भारत में एंटी-डोपिंग इकोसिस्टम को मजबूतीकमिटी ने देश में एंटी-डोपिंग इकोसिस्टम को सुधारने और उसे मजबूती देने के लिए कई उपायों का सुझाव दिया। इन उपायों में निम्नलिखित शामिल हैं: (i) एंटी-डोपिंग निकायों (जैसे नाडा और एनडीटीएल) के लिए मैनपावर बढ़ाना जिनमें इस समय कर्मचारियों की कमी है, (ii) ‘डोप फ्री सर्टिफाइड सप्लिमेंट्स की लेबलिंग और इस्तेमाल के लिए रेगुलेटरी कार्रवाई करना, (iii) एथलीट्स द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले सप्लिमेंट्स के लिए स्वतंत्र निकायों के डोप-फ्री सर्टिफिकेशन को अनिवार्य करना, (iv) हर खेल शिविर में एथलीट्स को सलाह देने और उसका इलाज करने के लिए कम से कम एक सर्टिफाइड स्पोर्ट्स मेडिसिन डॉक्टर का होना अनिवार्य करना, और (v) एथलीट्स को कानूनी सहायता देने के लिए एक व्यवस्था तैयार करना ताकि वे अथॉरिटीज़/पैनल के सामने अपना पक्ष और राय रख सकें।  

 

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