स्टैंडिंग कमिटी की रिपोर्ट का सारांश

प्रतिस्पर्धा (संशोधन) बिल, 2022

  • वित्त संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (चेयर: जयंत सिन्हा) ने 13 दिसंबर, 2022 को प्रतिस्पर्धा (संशोधन) बिल, 2022 पर अपनी रिपोर्ट सौंपी। बिल प्रतिस्पर्धा एक्ट, 2002 में संशोधन का प्रयास करता है। एक्ट बाजार में प्रतिस्पर्धा को रेगुलेट करने के लिए भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (सीसीआई) की स्थापना करता है। कमिटी के मुख्य निष्कर्ष और सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • लेनदेन के मूल्य (डील वैल्यू) की सीमा: एक्ट किसी व्यक्ति या उद्यम को ऐसे किसी कॉम्बिनेशन में प्रवेश करने से रोकता है जिसका प्रतिस्पर्धा पर अच्छा-खासा प्रतिकूल असर पड़े। कॉम्बिनेशंस का मतलब है, उद्यमों का विलय, अधिग्रहण या अमैल्गमैशन (समामेलन)। यह प्रतिबंध संचयी परिसंपत्तियों (कुमुलेटिव एसेट्स) और संचयी कारोबार (कुमुलेटिव टर्नओवर) पर कुछ निश्चित सीमाओं के आधार पर लागू होता है। बिल कॉम्बिनेशंस की परिभाषा का दायरा बढ़ाता है ताकि इसमें 2,000 करोड़ रुपए से अधिक मूल्य के लेनदेन को शामिल किया जा सके। कमिटी ने कहा कि बिल में इस बात का दिशानिर्देश नहीं दिया गया है कि किसी सौदे के मूल्य की गणना कैसे की जाएगी। इससे ऐसे लेनदेन भी सीसीआई की जांच के दायरे में आ जाएंगे, जिनके प्रतिस्पर्धा पर प्रतिकूल प्रभाव डालने की आशंका नहीं है। उसने सुझाव दिया कि बिल में यह प्रावधान होना चाहिए कि रेगुलेशंस के जरिए लेनदेन के मूल्य की गणना के तरीके को  निर्धारित किया जाए।

  • बिल में यह प्रावधान भी है कि लेनदेन के मूल्य की सीमा को लागू करने के लिए, उस उद्यम का भारत में पर्याप्त रूप से कारोबारी कामकाज होना चाहिए जोकि लेनदेन का एक पक्ष है। कमिटी ने सुझाव दिया कि यह मानदंड सिर्फ उन उद्यमों पर लागू होता है जिनका अधिग्रहण किया गया है।

  • निबटारे और प्रतिबद्धता के लिए संरचना: बिल सीसीआई को इस बात की अनुमति देता है कि वह प्रतिस्पर्धा विरोधी समझौते करने, या प्रभावी स्थिति का दुरुपयोग करने पर उद्यमों के खिलाफ जांच की कार्यवाही को रोक सकता है, अगर उद्यम निम्नलिखित की पेशकश करता है: (i) निबटारा या (ii) प्रतिबद्धताएं। कमिटी ने सुझाव दिया कि कार्टेल्स को भी ऐसे निबटारों की अनुमति मिलनी चाहिए।

  • कमिटी ने गौर किया कि बिल में यह निर्दिष्ट नहीं कि क्या निबटारे और प्रतिबद्धताओं के लिए अपराध को स्वीकार करने की जरूरत होगी। उसने सुझाव दिया कि अपराध स्वीकार करने को अनिवार्य नहीं किया जाना चाहिए। उसने यह सुझाव भी दिया कि सीसीआई के अंतिम आदेश के बाद निबटारे/प्रतिबद्धता पर फिर से चर्चा के लिए आवेदक को सीसीआई के सामने अपील करने की अनुमति होनी चाहिए। कमिटी के अनुसार, बिल के तहत सीसीआई के पास यह अधिकार है कि वह निबटारे/प्रतिबद्धता की कार्यवाहियों को रोक दे। उसने बिल में संशोधन करने का सुझाव दिया ताकि आवेदकों को सुनवाई की तारीख से सात कार्य दिवसों के भीतर निबटारे के अपने आवेदन को वापस लेने को अनुमति दी जा सके। 

  • प्रतिस्पर्धा विरोधी समझौते: एक्ट के तहत बिल्कुल समान या एक जैसे व्यवसाय करने वाले उद्यमों और व्यक्तियों के बीच किसी समझौते को प्रतिस्पर्धा विरोधी माना जाना चाहिए और उनका प्रतिस्पर्धा पर अच्छा-खासा प्रतिकूल असर पड़ सकता है, अगर वे कुछ कार्यों में संलग्न हैं, जैसे: (i) प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तरीके से खरीद या बिक्री के मूल्यों को निर्धारित करना, (ii) उत्पादन, आपूर्ति, बाजार या सेवाओं के प्रावधान को नियंत्रित करना, या (iii) प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से मिलीभगत करके बोली लगाना। बिल कहता है कि जो उद्यम या व्यक्ति बिल्कुल समान या एक जैसे कारोबार में संलग्न नहीं हैं, वे भी ऐसे समझौतों का हिस्सा माने जाएंगे, अगर वे ऐसे समझौतों को आगे बढ़ाने में सक्रिय रूप से सहायता करते हैं। कमिटी ने कहा कि प्रतिस्पर्धा विरोधी समझौतों में सक्रिय भागीदारी के बारे में बिल में कोई स्पष्टता नहीं है। संभावित रूप से इसके दायरे में निम्नलिखित आ सकते हैं: (i) डिजिटल बाजारों में मध्यस्थता सेवाएं प्रदान करने वाली संस्थाएं, और (ii) संवेदनशील जानकारी साझा करने के लिए बैठकें आयोजित करने वाले कंसोर्टियम, उद्योग संघ और ट्रेड यूनियन। कमिटी ने सुझाव दिया कि ऐसे मामलों में सक्रिय भागीदारी के इरादे को साबित किया जाना चाहिए।

  • प्रभावी स्थिति के दुरुपयोग में आईपीआर छूट: कमिटी ने कहा कि प्रतिस्पर्धा विरोधी समझौतों के मामले में बौद्धिक संपदा अधिकारों (आईपीआर) से छूट दी जाती है। हालांकि यह छूट उन मामलों में नहीं दी जाती, जब प्रभावी स्थिति का दुरुपयोग किया जाता है। कमिटी ने कहा कि आईपीआर के लिए स्पष्ट बचाव के बिना, सीसीआई किसी प्रभावशाली संस्था को प्रभावी स्थिति के दुरुपयोग की जांच के मामले में आईपीआर को बचाव के तौर पर इस्तेमाल करने की अनुमति नहीं देगी। कमिटी ने सुझाव दिया कि प्रभावी स्थिति के कथित दुरुपयोग से संबंधित जांच में आईपीआर को बचाव के तौर पर इस्तेमाल की अनुमति दी जानी चाहिए। 

  • कॉम्बिनेशंस की मंजूरी के लिए समय सीमा: बिल में प्रस्ताव है कि कॉम्बिनेशन की मंजूरी पर सीसीआई द्वारा आदेश पारित करने की समय सीमा को 210 दिन से घटाकर 150 दिन किया जाए। यह 20 दिन की समय सीमा तय करने का भी प्रयास करता है जिसके भीतर सीसीआई प्रथम दृष्टया यह राय कायम करेगी कि क्या कॉम्बिनेशन का प्रतिस्पर्धा पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है। कमिटी ने गौर किया कि प्रस्तावित समय सीमा सीसीआई पर अनुचित बोझ डालेगी। उसने मौजूदा समय सीमाओं को न बदलने का सुझाव दिया।

 

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