स्टैंडिंग कमिटी की रिपोर्ट का सारांश

बेनामी लेनदेन निषेध (संशोधन) बिल, 2015

  • वित्त संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (चेयर: वीरप्पा मोइली) ने 28 अप्रैल, 2016 को बेनामी लेनदेन निषेध (संशोधन) बिल, 2015 पर अपनी रिपोर्ट सौंपी। यह बिल 13 मई, 2015 को लोकसभा में पेश किया गया था। इस बिल में बेनामी लेनदेन एक्ट, 1988 में संशोधन का प्रस्ताव है जिसके तहत बेनामी लेनदेन पर रोक है और बेनामी संपत्तियों को जब्त किया जा सकता है।
     
  • बिल में निम्नलिखित प्रस्ताव हैं : (i) बेनामी लेनदेन की परिभाषा में संशोधन, (ii) बेनामी लेनदेन से निपटने के लिए न्यायिक निर्णय देने वाली अथॉरिटी (एड्जुडिकेटिंग अथॉरिटी) और अपीलीय ट्रिब्यूनल की स्थापना, और (iii) बेनामी लेनदेन के लिए दंड का प्रावधान। कमिटी की प्रमुख टिप्पणियां और सुझाव निम्नलिखित हैं।
     
  • नए कानून की जरूरतः कमिटी ने कहा है कि आय कर एक्ट, 1961 में कर चोरी और बेहिसाब दौलत जैसे विषयों से निपटने के लिए पर्याप्त प्रावधान हैं। प्रस्तावित बिल से इन प्रावधानों की संख्या बढ़ जाएंगी। एक अलग कानून बनाने के बजाय, आय कर एक्ट, 1961 में कुछ संशोधन करके बेनामी नामों के तहत अस्पष्ट निवेशों से निपटा जा सकता है। इससे प्रस्तावित बिल के उद्देश्यों को भी हासिल किया जा सकता है।
     
  • बेनामी लेनदेन की परिभाषाः बिल के तहत बेनामी लेनदेन ऐसा लेनदेन है जिसमें संपत्ति का धारक एक व्यक्ति हो लेकिन उसे वह संपत्ति किसी और द्वारा प्रदान की गई हो। अगर किसी व्यक्ति ने अपनी आय का इस्तेमाल करते हुए कोई संपत्ति खरीदी हो और उसका धारक उसके परिवार का कोई सदस्य हो तो उसे बेनामी संपत्ति नहीं माना जाएगा। कमिटी ने सुझाव दिया कि ऐसा अपवाद उस स्थिति में लागू माना जाना चाहिए जब किसी व्यक्ति ने आय के अतिरिक्त दूसरे धन स्रोत, जैसे ऋण के माध्यम से संपत्ति खरीदी हो। कमिटी ने यह भी कहा कि धन का स्रोत वैध होना चाहिए।
     
  • परिभाषा के तहत न आने वाले लेनदेनः कमिटी ने कहा कि बेनामी लेनदेन की मौजूदा परिभाषा में कुछ वैध लेनदेन, जैसे ‘जरनल पावर ऑफ एटॉर्नी’ के जरिये संपत्ति का हस्तांतरण शामिल नहीं हैं। जरनल पावर ऑफ एटॉर्नी वह तंत्र है जिसके जरिये कोई व्यक्ति संपत्ति पर लेनदेन के अपने अधिकार को किसी दूसरे व्यक्ति को हस्तांतरित कर सकता है। कमिटी ने सुझाव दिया कि बिल के तहत ऐसे लेनदेन को बेनामी नहीं कहा जाना चाहिए।
     
  • जब्त संपत्तियों को निहित करनाः बिल उन संपत्तियों को जब्त करने का प्रावधान करता है जिन्हें बेनामी संपत्ति घोषित किया गया हो। इन संपत्तियों पर केंद्र सरकार का अधिकार होता है। कमिटी ने कहा, चूंकि भूमि संविधान के तहत राज्य का विषय है, इसलिए जब्त की गई संपत्तियों पर केंद्र सरकार की बजाय राज्य सरकार का अधिकार होना चाहिए।
     
  • प्रारंभिक कार्यवाही के लिए समय-सीमाः बिल के तहत, एक प्रारंभिक अधिकारी (इनशिएटिंग ऑफिसर) किसी लेनदेन के खिलाफ कार्यवाही शुरू कर सकता है, अगर उसके पास यह मानने के कारण हैं कि वह बेनामी लेनदेन है। कमिटी ने सुझाव दिया कि इसके लिए एक समय सीमा तय होनी चाहिए जिसके अंदर लेनदेन के खिलाफ कार्यवाही शुरू हो और खत्म भी।
     
  • जानकारी प्रदान करने के लिए समयः बिल के तहत बेनामी लेनदेन की जांच करने वाली एड्जुडिकेटिंग अथॉरिटी संबंधित पक्षों से 30 दिन के अंदर पूरी जानकारी प्रस्तुत करने की अपेक्षा करती है। कमिटी ने कहा कि ग्रामीण भारत में भूमि के रिकॉर्ड का पता लगाना मुश्किल होता है और भूमि के मालिकों को इस तरह की जानकारियां प्रस्तुत करने में समय लग सकता है। कमिटी ने सुझाव दिया कि इसके लिए समय सीमा को 30 दिन से तीन महीने तक बढ़ा देना चाहिए।
     
  • अपीलीय ट्रिब्यूनल के लिए निपटारे की समय सीमाः कमिटी ने सुझाव दिया कि बिल के तहत अपीलीय ट्रिब्यूनल द्वारा मामलों को निपटाने की समय सीमा तय होनी चाहिए। इस समय सीमा को हाई कोर्ट की मंजूरी से बढ़ाया जा सकता है।
     
  • अंतर क्षेत्रीयः कमिटी ने सुझाव दिया कि बिल में ऐसे लेनदेन के प्रावधान भी होने चाहिए जिनमें लेनदेन करने वाले लोग और संपत्ति विदेशों में स्थित हो।
     
  • भूमि रिकॉर्ड का डिजिटलीकरणः कमिटी ने कहा कि भूमि रिकॉर्ड के डिजिटल होने से बेनामी लेनदेन को रोका और दूर किया जा सकता है। कमिटी ने सुझाव दिया कि संपत्ति हस्तांतरण एक्ट, 1882 और पंजीकरण एक्ट, 1908 में संशोधन करके निम्नलिखित के लिए प्रावधान किया जा सकता हैः (i) सभी अचल संपत्ति का ऑनलाइन पंजीकरण, (ii) संपत्ति की खरीद में शामिल सभी पक्षों के आधार और पैन को जोड़ना और (iii) पंजीकरण अथॉरिटी द्वारा टैक्स अथॉरिटी से आंकड़े साझा करना।

यह सारांश मूल रूप से अंग्रेजी में तैयार किया गया था। हिंदी रूपांतरण में किसी भी प्रकार की अस्पष्टता की स्थिति में अंग्रेजी के मूल सारांश से इसकी पुष्टि की जा सकती है।