स्टैंडिंग कमिटी की रिपोर्ट का सारांश

उपभोक्ता संरक्षण बिल, 2015

  • खाद्य, उपभोक्ता मामले और सार्वजनिक वितरण संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (अध्यक्ष- श्री जे.सी.दिवाकर) ने 26 अप्रैल, 2016 को उपभोक्ता संरक्षण बिल, 2015 पर अपनी रिपोर्ट सौंपी। यह बिल 10 अगस्त, 2015 को लोकसभा में पेश किया गया था। यह उपभोक्ता संरक्षण एक्ट, 1986 का स्थान लेगा जो उपभोक्ता अधिकार प्रदान करता है और उपभोक्ता विवादों से निपटने के लिए शिकायत निवारण तंत्र की स्थापना करता है।
     
  • बिल निम्नलिखित का प्रयास करता हैः (i) उपभोक्ता अधिकारों को लागू करने के लिए रेगुलेटरी बॉडी स्थापित करना, (ii) उपभोक्ता विवादों से निपटने के लिए शिकायत निवारण तंत्र को स्थापित करना, (iii) उत्पाद दायित्व के संबंध में क्लेम फाइल करने के लिए उपभोक्ताओं को सक्षम बनाना और (iv) अनुचित अनुबंधों को स्पष्ट करना तथा उपभोक्ताओं को उनके खिलाफ शिकायत दर्ज करने की अनुमति देना। कमिटी के प्रमुख सुझावों का सारांश नीचे दिया गया हैः
     
  • उत्पाद दायित्व में सेवाओं का समावेशः यह बिल उत्पाद दायित्व को निर्माता के दायित्व के रूप में पारिभाषित करता है जोकि खराब उत्पाद या सेवाओं में कमी के कारण होने वाले नुकसान का मुआवजा देगा। कमिटी ने कहा है कि यह स्पष्ट नहीं है कि क्या इस बिल में सेवाओं में कमी को कवर किया जाएगा। यह सुझाव दिया गया है कि बिल को सेवाओं में कमी को निर्धारित करने वाली शर्तों को भी स्पष्ट करना चाहिए।
     
  • उत्पाद दायित्व को क्लेम करने की शर्तें: बिल खराब उत्पाद के संबंध में छह शर्तों को स्पष्ट करता है जिसे उपभोक्ता को उत्पाद दायित्व को क्लेम करने के लिए साबित करना होगा। कमिटी ने पाया कि इससे उपभोक्ता पर अनुचित दबाव पड़ता है, क्योंकि अगर कोई भी शर्ते पूरी नहीं होती तो उपभोक्ता दायित्व के संबंध में दावा नहीं कर पाएगा। कमिटी ने सुझाव दिया कि प्रावधान को इस प्रकार दोबारा तैयार किया जाना चाहिए कि उपभोक्ता को सभी छह की बजाय किसी भी एक शर्त को पूरा करना हो।
     
  • अनुचित अनुबंधः बिल अनुचित अनुबंध को उपभोक्ता और निर्माता के बीच के ऐसे अनुबंध के रूप में पारिभाषित करता है जिसमें अनुबंध की निर्दिष्ट छह में से कोई भी एक शर्त शामिल हो। कमिटी ने सुझाव दिया है कि बिल को उन सिद्धांतों को निर्धारित करना चाहिए जो यह तय करें कि क्या अनुबंध की शर्त अनुचित है। इस सुझाव से यह संभव होगा कि अनुचित अनुबंध की परिभाषा निर्दिष्ट छह शर्तों तक सीमित नहीं रहेगी। अन्य शर्तों को भी इसमें शामिल किया जा सकेगा।
     
  • उपभोक्ता अधिकारः बिल उपभोक्ता के छह अधिकारों को स्पष्ट करता है जिसमें माल या सेवाओं की गुणवत्ता और मात्रा के बारे में जानने का अधिकार, अनुचित कारोबारी व्यवहार के खिलाफ शिकायत करने का अधिकार इत्यादि शामिल है। कमिटी ने सुझाव दिया कि बिल में उपभोक्ता के अधिकारों को व्यापक बनाना चाहिए जिसमें माल और सेवाओं की गुणवत्ता के आधार पर अनुबंध को रद्द करने का अधिकार शामिल हो।
     
  • भ्रामक विज्ञापनः बिल में अनुचित कारोबारी व्यवहार की परिभाषा के तहत भ्रामक विज्ञापनों की प्रस्तुति शामिल है। कमिटी का सुझाव है कि भ्रामक विज्ञापन से निपटने के लिए कठोर दंड को बिल में शामिल किया जाना चाहिए। कमिटी ने ऐसे विज्ञापनों को रोकने के लिए 10 लाख रुपए का जुर्माना या दो साल की कैद या दोनों देने का सुझाव दिया है। उसने यह भी कहा है कि यह दंड उन लोगों पर भी लगाया जाना चाहिए जो विज्ञापनों में उत्पादों का प्रचार करते हैं।
     
  • सेंट्रल कंज्यूमर प्रोटेक्शन अथॉरिटीः उपभोक्ता की शिकायतों की पूछताछ और जांच करने, निर्देश जारी करने और दंड लगाने के लिए बिल के तहत सेंट्रल कंज्यूमर प्रोटेक्शन अथॉरिटी (सीसीपीए) की स्थापना की गई है। बिल उपभोक्ता विवादों से निपटने के लिए शिकायत निवारण आयोगों का गठन भी करता है। कमिटी का कहना है कि सीसीपीए का यह कार्य आयोगों के कार्य को बाधित करेगा। इसलिए यह सुझाव दिया जाता है कि सीसीपीए में किसी प्रकार की न्यायिक शक्ति निहित न की जाए।
     
  • जिला आयोगों का आर्थिक अधिकार क्षेत्रः बिल राष्ट्रीय, राज्य और जिला स्तरों पर उपभोक्ता विवाद शिकायत निवारण आयोगों की स्थापना करता है। बिल के तहत, 50 लाख रुपए मूल्य के माल या सेवाओं से संबंधित उपभोक्ता विवाद जिला आयोग में जाएंगे और 10 करोड़ रुपए तक के विवाद राज्य आयोग में जाएंगे। कमिटी ने सुझाव दिया है कि जिला आयोग के अधिकार क्षेत्र को एक करोड़ रुपए तक बढ़ाया जा सकता है।
     
  • उत्पादों में मिलावटः कमिटी ने सुझाव दिया है कि खान-पान, दवा, फर्टिलाइजर, बीज इत्यादि उत्पादों में मिलावट के मामलों से निपटने के लिए देश में सुविधा संपन्न प्रयोगशालाओं (लेबोरेट्री) की स्थापना की जानी चाहिए। कमिटी ने ऐसे उत्पादों में मिलावट के लिए 10 लाख रुपए के जुर्माने, दो साल की कैद और दो साल के लिए लाइसेंस रद्द करने के दंड का सुझाव दिया है।

 

यह सारांश मूल रूप से अंग्रेजी में तैयार किया गया था। हिंदी रूपांतरण में किसी भी प्रकार की अस्पष्टता की स्थिति में अंग्रेजी के मूल सारांश से इसकी पुष्टि की जा सकती है।