राज्य के कानूनों की वार्षिक समीक्षा 2022
भारतीय संविधान प्रत्येक राज्य में एक विधायिका का प्रावधान करता है। भारत के सभी 28 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों (यूटी) दिल्ली और पुद्दूचेरी में विधानसभाएं हैं। छह राज्यों (आंध्र प्रदेश, बिहार, कर्नाटक, महाराष्ट्र, तेलंगाना और उत्तर प्रदेश) में दो सदनों, विधानसभा और विधान परिषद के साथ विधायिकाएं हैं। अगस्त 2019 में जम्मू एवं कश्मीर राज्य को जम्मू और कश्मीर (विधायिका के साथ) और लद्दाख के केंद्र शासित प्रदेशों में पुनर्गठित किया गया था। यूटी में चुनाव होने के बाद नई विधायिका का गठन किया जाएगा।
विधानमंडलों की तीन प्राथमिक जिम्मेदारियां होती हैं: बिल पर चर्चा करना और उन्हें पारित करना, सरकारी वित्त की जांच करना और उसे मंजूरी देना, और सरकार को जवाबदेह ठहराना। इस रिपोर्ट में 2022 में 30 राज्य विधानमंडलों की कानून बनाने की भूमिका पर ध्यान केंद्रित करते हुए उनके कामकाज का विश्लेषण किया गया है।
राज्य विधानमंडलों पर आंकड़े और जानकारियां आसानी से उपलब्ध नहीं हैं। यह विश्लेषण राज्य विधानसभाओं, राज्य के गैजेट्स से प्राप्त आंकड़ों और सूचना के अधिकार (आरटीआई) से संबंधित अनुरोधों के उत्तरों पर आधारित है। सूत्रों और पद्धतियों पर एक विस्तृत टिप्पणी पेज 17 पर उपलब्ध है।
संपूर्ण रिपोर्ट के रेखाचित्रों में राज्य विधानसभाओं के लिए निम्नलिखित संक्षिप्त नामों का उपयोग किया गया है।
राज्य |
संक्षिप्त नाम |
राज्य |
संक्षिप्त नाम |
राज्य |
संक्षिप्त नाम |
आंध्र प्रदेश |
AP |
झारखंड |
JH |
पुदुचेरी |
PY |
अरुणाचल प्रदेश |
AR |
कर्नाटक |
KA |
पंजाब |
PB |
असम |
AS |
केरल |
KL |
राजस्थान |
RJ |
बिहार |
BR |
मध्य प्रदेश |
MP |
सिक्किम |
SK |
छत्तीसगढ़ |
CG |
महाराष्ट्र |
MH |
तमिलनाडु |
TN |
दिल्ली |
DL |
मणिपुर |
MN |
तेलंगाना |
TS |
गोवा |
GA |
मेघालय |
MG |
त्रिपुरा |
TR |
गुजरात |
GJ |
मिजोरम |
MZ |
उत्तराखंड |
UK |
हरियाणा |
HR |
नगालैंड |
NL |
उत्तर प्रदेश |
UP |
हिमाचल प्रदेश |
HP |
ओडिशा |
OD |
पश्चिम बंगाल |
WB |
विषय सूची
खंड |
|
राज्य विधानमंडलों का कामकाज |
|
विधि निर्माण पर एक नजर |
|
विषय आधारित कानून |
|
स्रोत और कार्य पद्धति |
|
अनुलग्नक 1: 2022 में राज्य कानूनों की सूची |
|
अनुलग्नक 2: 2022 में राज्यों द्वारा पारित बिल की सूची |
|
अनुलग्नक 3: 2022 में राज्यों द्वारा जारी अध्यादेशों की सूची |
|
राज्य विधायिका का कामकाज
विधायिका की तीन प्राथमिक जिम्मेदारियां होती हैं: बिल पर चर्चा करना और उन्हें पारित करना, सरकारी वित्त की समीक्षा करना और उसे मंजूरी देना, और सरकार को जवाबदेह ठहराना। ये कार्य विधानमंडलों की बैठकों (विधायिका की पूर्ण बैठक), और विधानमंडलों की समितियों में किए जाते हैं। पिछले कई वर्षों के दौरान विधानमंडलों की बैठकें कम दिनों के लिए होती हैं जिससे उनके काम पर असर पड़ता है। अधिकतर राज्यों में ऐसी समितियां नहीं हैं जो अच्छी तरह से काम करें। बिल के पारित होने से पहले उनकी समीक्षा शायद ही कभी की जाती है, जबकि राज्यों के खर्च हर साल बढ़ रहे हैं लेकिन विधानमंडल द्वारा मंजूर होने से पहले खर्च पर विस्तार से चर्चा नहीं की जाती है। 2022 में राज्य विधायमंडलों की बैठकें औसतन 21 दिनों तक चलीं और प्रत्येक बैठक औसतन पांच घंटे चली। इस दौरान, विधानमंडलों ने 500 से अधिक बिल्स और संबंधित राज्यों के बजट पारित किए।
2021 में सिर्फ सात राज्यों में 30 दिनों से अधिक बैठकें हुईं
2022 में 28 राज्यों के विधानमंडलों की बैठकें औसतन 21 दिनों तक चलीं। कर्नाटक में सबसे अधिक दिन (45), उसके बाद पश्चिम बंगाल (42), और केरल (41) में बैठकें हुईं। पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र में 2021 की तुलना में 2022 में ज्यादा दिन बैठकें हुईं। 2021 में वहां क्रमश: 19 और 15 दिन बैठक हुई थीं। 2021 की तुलना में 2022 में जिन राज्यों में कम दिन बैठकें हुईं, उनमें हिमाचल प्रदेश, केरल और तेलंगाना शामिल हैं। 17 राज्यों में 20 दिनों से कम बैठके हुईं, और इनमें से तीन में 10 दिनों से भी कम बैठक हुई (अरुणाचल प्रदेश, नगालैंड और त्रिपुरा)।
रेखाचित्र 1: 2022 में राज्य विधानमंडलों की बैठकों की संख्या
नोट: मणिपुर और उत्तराखंड के आंकड़े उपलब्ध नहीं थे। स्रोत: विभिन्न राज्यों की विधानसभा वेबसाइट्स; आरटीआई; पीआरएस।
छह राज्यों (आंध्र प्रदेश, बिहार, कर्नाटक, महाराष्ट्र, तेलंगाना और उत्तर प्रदेश) में दो सदन- विधानसभा और विधान परिषद वाली विधायिका हैं। विधान परिषद के सदस्यों को जनसंख्या के विभिन्न वर्गों (शिक्षक, ग्रैजुएट्स, स्थानीय निकाय और विधायक) द्वारा चुना जाता है और उसके पास बिल पर पुनर्विचार की मांग करने और सवाल पूछने की शक्ति है। 2022 में विधान परिषदों की बैठक संबंधित विधानसभा के बराबर या कुछ कम दिनों के लिए हुई। औसतन उसकी बैठक 25 दिन हुई। |
रेखाचित्र 2: 2022 में राज्य विधान परिषदों की बैठकों की संख्या नोट: बिहार और उत्तर प्रदेश के आंकड़े उपलब्ध नहीं थे। स्रोत: विभिन्न राज्यों की विधानसभा वेबसाइट्स; पीआरएस। |
61% बैठकें बजट सत्र के दौरान हुईं
अधिकतर राज्यों में एक वर्ष में विधानमंडलों के दो या तीन सत्रों संचालित किए जाते हैं- बजट सत्र सबसे लंबा होता है जोकि जनवरी और मार्च के बीच संचालित होता है। इसके बाद मानसून और शीतकालीन सत्र छोटे होते हैं। 12 राज्यों में 2022 में केवल दो सत्र हुए, जिनमें से पूर्वोत्तर क्षेत्र के पांच राज्य शामिल हैं।
2022 में 61% बैठकें बजट सत्र के दौरान हुईं। तमिलनाडु में 90% से अधिक बैठकें बजट सत्र के दौरान की गईं। गुजरात और राजस्थान में 80% से अधिक बैठकें बजट सत्र के दौरान हुईं।
प्रत्येक बैठक औसत पांच घंटों तक चलीं
2022 में बैठकों की औसत अवधि (20 राज्यों में) पांच घंटे थी। महाराष्ट्र में एक बैठक औसत आठ घंटे तक चली, जबकि सिक्किम में दो घंटे। हालांकि राज्य में बैठकों की अवधि में काफी भिन्नताएं हो सकती हैं। उदाहरण के लिए छत्तीसगढ़ में एक बैठक औसत सात घंटे तक चली, लेकिन एक बैठक (जब अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा हुई थी) 13 घंटे से भी लंबे समय तक चली।
रेखाचित्र 3: 2022 में बैठकों की औसत अवधि (घंटों में)
स्रोत: विभिन्न राज्यों की विधानसभा वेबसाइट्स; आरटीआई; पीआरएस।
पिछले कुछ वर्षों में अधिकतर राज्यों में बैठक के दिनों की संख्या घट रही है
2016 से 2022 के बीच 24 राज्यों की विधानमंडलों की औसतन 25 दिन बैठकें हुईं। केरल में एक वर्ष में बैठकों के औसत दिन सबसे अधिक हैं, जोकि 48 दिन हैं। इसके बाद ओडिशा (41) और कर्नाटक (35) का स्थान है। 2016 से 2022 के बीच बैठकों के औसत दिनों में लगातार गिरावट आई है। 2020 में कोविड-19 महामारी के दौरान इसमें बड़ी गिरावट हुई थी। तेलंगाना, मध्य प्रदेश और गोवा में बैठकों के दिनों में सबसे ज्यादा गिरावट आई है। हरियाणा, पंजाब और त्रिपुरा में 2016 के बाद से किसी भी वर्ष 20 से अधिक दिन बैठक नहीं हुईं।
|
रेखाचित्र 4: 24 राज्यों में बैठकों के औसत दिन नोट: ऊपर दिए गए चार्ट में केवल 24 राज्य शामिल हैं जो रेखाचित्र 5 में दिखाए गए हैं। |
रेखाचित्र 5: राज्य विधानमंडलों में बैठकों की औसत संख्या (2016-2022)
नोट: सिक्किम और पुद्दूचेरी के आंकड़े 2017-2022 के दौरान बैठक की औसत संख्या हैं; ऊपर दिए गए चार्ट में अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, मणिपुर, मिजोरम, नगालैंड और उत्तराखंड शामिल नहीं हैं।
स्रोत: विभिन्न राज्यों की विधानसभा वेबसाइट्स; आरटीआई; पीआरएस।
संविधान के कामकाज की समीक्षा करने के लिए राष्ट्रीय आयोग (एनसीआरडब्ल्यूसी) ने सुझाव दिय़ा था कि विधानसभा में सदस्यों की संख्या के आधार पर राज्य विधानसभाओं के लिए बैठक के दिनों की न्यूनतम संख्या निर्धारित की जाए।[1] कर्नाटक, राजस्थान और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों ने अपने विधानमंडलों के लिए बैठकों के न्यूनतम दिनों को अनिवार्य कर दिया है। यह उनके विधानमंडलों की प्रक्रिया के नियमों के माध्यम से, या कानून के माध्यम से किया गया है।[2] यह सीमा हिमाचल प्रदेश में 35 दिनों से लेकर उत्तर प्रदेश में 90 दिनों तक, अलग-अलग है।[3],[4] इनमें से किसी भी राज्य ने 2016 के बाद से इस लक्ष्य पूरा नहीं किया है (इन राज्यों के लिए इसी वर्ष से आंकड़े जमा किए गए हैं)।
चार राज्यों में एक सत्र पूरे साल चलता रहा
एक विधानसभा सत्र राज्यपाल द्वारा सम्मन (या आह्वान) के साथ शुरू होता है, और जब राज्यपाल सत्रावसान का नोटिस जारी करता है, तो उसके साथ सत्र का समापन होता है। सम्मन और सत्रावसान दोनों राज्य मंत्रिमंडल की सलाह पर जारी किए जाते हैं। 2022 में कई राज्यों में पूरे वर्ष के लिए सत्रों का अवसान नहीं किया गया। दिल्ली, राजस्थान, तेलंगाना और पश्चिम बंगाल में बैठकों के बीच लंबे स्थगन के साथ, वही सत्र साल भर चलता रहा। इससे विधानसभाओं में राज्यपाल द्वारा जारी सम्मन के बिना बैठक होती रही। राजस्थान ने 2021 में भी अपने सत्र का अवसान नहीं किया था। प्रेस रिपोर्ट्स से पता चलता है कि राजस्थान के राज्यपाल ने 2020 में विधानसभा बुलाने की कैबिनेट की सिफारिश पर सवाल उठाया था।[5],[6]
राज्यों ने औसत आठ दिनों तक बजट पर चर्चा की
संविधान के अनुच्छेद 202 के तहत राज्य सरकार को प्रत्येक वर्ष विधानसभा के समक्ष अपना बजट पेश करना होता है। बजट पर चर्चा, और उसे पारित करके, विधायिका सरकार की वित्तीय समीक्षा करती है। बजट पर दो चरणों में चर्चा होती है, आम चर्चा जोकि बजट पेश करने के तुरंत बाद होती है, और फिर मंत्रालयों के व्यय पर चर्चा की जाती है (देखें रेखाचित्र 6)। 2022 में 20 राज्यों ने आठ दिनों तक चर्चा की। तमिलनाडु में पूरी बजट चर्चा पर 26 दिन व्यतीत हुए। इसके बाद कर्नाटक (15), केरल (14) और ओडिशा (14) का स्थान आता है। दिल्ली, मध्य प्रदेश और पंजाब में से प्रत्येक ने दो दिनों तक बजट पर चर्चा की। नगालैंड ने एक ही दिन में बजट पर चर्चा की और उसे पारित किया।
रेखाचित्र 6: राज्य विधानमंडलों में बजट पारित होने की प्रक्रिया
नोट: डॉट वाली रेखा, और अलग-अलग कलर कोडिंग बताती है कि समिति वाला चरण सभी राज्यों में मौजूद नहीं है।
रेखाचित्र 7: 2022 में बजट और मंत्रालयों के व्यय पर व्यतीत दिन
नोट: आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, असम, बिहार, मणिपुर, पुद्दूचेरी, सिक्किम, तेलंगाना, त्रिपुरा और उत्तराखंड के आंकड़े उपलब्ध नहीं थे।
स्रोत: विधानसभा की वेबसाइट्स; पीआरएस।
संसद में संसदीय समितियां पहले मंत्रालयों के व्यय की समीक्षा करती हैं, और फिर उन पर सदन में चर्चा होती है। हालांकि अधिकतर राज्यों में इस काम के लिए समितियां नहीं हैं। आम चर्चा के तुरंत बाद ही मंत्रालयों के व्यय पर चर्चा शुरू हो जाती है। 2022 में 13 राज्यों में आम चर्चा वाले दिन या उसके अगले दिन मंत्रालयों के व्यय पर चर्चा शुरू हो गई। केरल, ओडिशा और तमिलनाडु में दोनों चर्चाओं के बीच पांच से अधिक दिनों का अंतराल था। मंत्रालयों के व्यय पर चर्चा से पहले अंतराल होने से विधायकों को प्रत्येक मंत्रालय के बजटीय व्यय की समीक्षा करने के लिए अधिक समय मिलता है।
रेखाचित्र 8: राज्यों में मंत्रालय के व्यय पर सामान्य चर्चा और चर्चा के बीच के दिन नोट: एक दिन के भीतर का अर्थ यह है कि मंत्रालय के व्यय पर चर्चा उस दिन शुरू हुई, जिस दिन आम चर्चा खत्म हुई, या उसके अगले ही दिन। |
मंत्रालयों के व्यय की समीक्षा के लिए समितियां फरवरी 2023 में हरियाणा ने वर्ष 2023-24 में मंत्रालय के व्यय की समीक्षा के विशिष्ट उद्देश्य के लिए आठ स्थायी समितियों का गठन किया।[7] प्रत्येक समिति को कुछ मंत्रालय आवंटित किए गए जिनके बजट की समीक्षा की जानी थी। मंत्रालय के खर्च पर चर्चा से पहले उनकी रिपोर्ट सदन में पेश होनी थी। अरुणाचल प्रदेश, गोवा और नगालैंड सहित छह राज्यों ने अपने कार्य प्रक्रिया के नियमों में बजट समितियों का प्रावधान किया है। गोवा में यह समिति बजट उपरांत समीक्षा करती है।[8] तीन उप-समितियां विभिन्न मंत्रालयों के बजट की समीक्षा करती हैं। उप-समितियों की रिपोर्ट, अध्यक्ष के समक्ष प्रस्तुत करने के बाद संबंधित मंत्रालयों को भेजी जाती हैं। मंत्रालयों को 60 दिनों के भीतर उप-समिति के सुझावों पर की गई कार्रवाई का जवाब दाखिल करना होता है। |
केंद्र की तरह राज्य सभी मंत्रालयों के व्यय की मांगों पर चर्चा नहीं करते। राजस्थान और पश्चिम बंगाल जैसे कुछ राज्यों ने सदन के पटल पर सरकारी मंत्रालयों के प्रस्तावित व्यय के 50% से कम पर चर्चा की। मध्य प्रदेश, पंजाब और उत्तर प्रदेश सहित पांच राज्यों ने सभी मंत्रालयों की बजटीय मांगों को बिना चर्चा के पारित कर दिया। |
विधि निर्माण पर एक नजर
2022 में राज्य विधानमंडलों ने भूमि, श्रम और सामाजिक न्याय जैसे विभिन्न विषयों पर 500 से अधिक बिल पारित किए। इस खंड में राज्य विधानमंडलों के विधायी कार्यों पर चर्चा की गई है। इस विश्लेषण में विनियोग (एप्रोप्रिएशन) बिल को शामिल नहीं किया गया है जोकि सरकारी व्यय को मंजूर करने के लिए पारित किया जाता है।
रेखाचित्र 9: राज्य विधानमंडल में बिल पारित होने की प्रक्रिया
नोट: पहला तीर डॉटेड है क्योंकि सभी बिल्स समिति को नहीं भेजे जाते। द्विसदनीय विधानमंडलों में यह प्रक्रिया दूसरे सदन, यानी विधान परिषद में भी दोहराई जाती है।
2022 में राज्यों ने औसत 21 बिल पारित किए
2022 में 28 राज्यों ने औसत 21 बिल पारित किए। सबसे अधिक असम (85), इसके बाद तमिलनाडु (51) और गोवा (38) ने बिल पारित किए। 2022 में असम ने 85 बिल पारित किए जोकि 2021 में पारित बिल (34) से 51 अधिक है। 13 अन्य राज्यों ने 2021 के मुकाबले 2022 में अधिक बिल पारित किए। 11 राज्यों, जिनमें पंजाब, उत्तर प्रदेश और ओड़िशा शामिल हैं, ने 2021 के मुकाबले 2022 में कम बिल पारित किए। नागालैंड ने सबसे कम बिल पारित किए (3) और इसके बाद पुद्दूचेरी का स्थान आता है (4)। राज्यों में पारित बिल्स की सूची अनुलग्नक में दी गई है।
रेखाचित्र 10: 2022 में राज्यों द्वारा पारित बिल की संख्या
नोट: ऊपर दिए गए चार्ट में मणिपुर और उत्तराखंड शामिल नहीं हैं।
स्रोत: राज्य गैजेट्स, विभिन्न राज्यों की विधानसभाओं की वेबसाइट्स; आरटीआई; पीआरएस।
56% बिल उसी दिन पारित हुए, जिस दिन उन्हें पेश किया गया
विधायिका में पारित होने (और राज्यपाल/राष्ट्रपति की सम्मति) के बाद कोई बिल कानून बनता है। कानून निर्माताओं को बिल को पारित करने से पहले बिल पर विस्तार से चर्चा और उसकी समीक्षा करनी चाहिए। हालांकि राज्य विधायिका अक्सर अधिकतर बिल्स पर बहस और विचार-विमर्श के बिना ही उन्हें तुरत-फुरत पारित कर देती है जिससे उन कानूनों की क्वालिटी पर सवाल खड़े होते हैं। 2022 में 56% बिल, यानी 322 बिल को पेश होने वाले या उससे अगले दिन पारित कर दिया गया। 2021 में यह अनुपात 44% था। 2022 में बिहार, गुजरात, पंजाब और पश्चिम बंगाल जैसे नौ राज्यों ने बिल पेश होने के एक दिन के भीतर उन्हें पारित कर दिया। इन राज्यों ने 2021 में भी सभी बिल एक दिन के भीतर पारित कर दिए थे।
चार राज्यों को अपने अधिकतर बिल पारित करने में पांच दिन से ज्यादा लगाए। ये हैं, कर्नाटक, केरल, मेघालय और राजस्थान। राजस्थान ने अपने 73% बिल विधानसभा में पेश करने के कम से कम पांच दिन बाद उन्हें पारित किया। केरल के लिए यह आंकड़ा 67% और कर्नाटक के लिए 59% है।
रेखाचित्र 11: 2022 में बिल पारित करने में लगने वाला समय
नोट: ऊपर दिए गए चार्ट में मणिपुर और उत्तराखंड शामिल नहीं हैं। एक बिल को एक दिन के भीतर पारित माना जाता है, अगर वह पेश होने के दिन या अगले दिन पारित हो जाता है। द्विसदनीय विधायिका वाले राज्यों में, बिल को दोनों सदनों में पारित किया जाता है। चार्ट में ऐसे चार राज्यों को शामिल किया गया है, जहां दो सदन हैं, लेकिन इसमें बिहार और उत्तर प्रदेश शामिल नहीं हैं (क्योंकि वहां विधान परिषद की जानकारी उपलब्ध नहीं है) और वहां इस बात को ध्यान में रखा गया है।
स्रोत: विधानसभा की वेबसाइट्स, विभिन्न राज्यों के ई-गैजेट; आरटीआई; पीआरएस।
बिल्स पर चर्चा के लिए समय का आवंटन राज्य विधानमंडल प्रत्येक सत्र की शुरुआत में एक विधायी एजेंडा प्रकाशित करते हैं। इसमें उन बिल को सूचीबद्ध किया जाता है जिन्हें आगामी सत्र में पेश किया जाएगा, चर्चा की जाएगी और पारित किया जाएगा, और प्रत्येक बिल पर कितना समय व्यतीत किया जाएगा। प्राय: अलग-अलग बिल पर चर्चा के लिए बहुत कम समय आवंटित किया जाता है। उत्तराखंड में नवंबर 2022 में एक दिन में 13 बिल को चर्चा और पारित करने के लिए सूचीबद्ध किया गया था। इनमें से 11 बिल पर पांच-पांच मिनट चर्चा होनी थी और फिर उन्हें पारित किया जाना था। अन्य दो बिल के लिए 20-20 मिनट आवंटित किए गए थे। स्रोत: विधानसभा की वेबसाइट; पीआरएस। |
राज्यों में विधायी कामकाज कुछ ही दिनों में केंद्रित होता है। उदाहरण के लिए जुलाई 2022 में गोवा ने दस दिनों के अपने सत्र के आखिरी दो दिनों में 26 बिल पेश और पारित किए। अन्य दोनों दिनों में बहुत कम विधायी कामकाज हुआ। हरियाणा में 15 बिल दिसंबर 2022 में एक ही दिन पेश हुए और अगले दो दिनों के भीतर सभी को पारित कर दिया गया। आंध्र प्रदेश विधायिका ने सितंबर 2022 में एक ही दिन 13 बिल पारित किए। इनमें से छह को एक ही दिन दोनों सदनों में पेश और पारित किया गया।
कई बिल के एक ही दिन पारित होने का मतलब यह है कि विधायिका सदन के पटल पर बिल के विभिन्न प्रावधानों पर कम समय चर्चा कर रही है। उदाहरण के लिए हिमाचल प्रदेश में एक बिल पर औसत 10 मिनट के लिए चर्चा हुई थी।
लगभग 5% बिल्स को समीक्षा के लिए समितियों के पास भेजा गया
सदन में बिल को पेश किए जाने के बाद इसे विस्तृत समीक्षा के लिए विधानमंडल की एक समिति के पास भेजा जा सकता है। चाहे विधानमंडल सत्र में हो या न हो, समितियां काम करती हैं और बिल के प्रत्येक खंड पर गहन चर्चा करती हैं। वे किसी बिल के निहितार्थ को समझने के लिए हितधारकों, क्षेत्रीय विशेषज्ञों और सरकारी अधिकारियों से भी जानकारी प्राप्त कर सकती हैं। इससे कानून बनाने की प्रक्रिया में भागीदारी बढ़ती है और विधायी प्रस्तावों पर विशेषज्ञ प्रतिक्रिया प्राप्त होती है। हालांकि राज्य विधानमंडल शायद ही कभी समीक्षा के लिए बिल समितियों के पास भेजते हैं। 2022 में राज्यों में 30 से भी कम बिल विस्तृत अध्ययन के लिए समितियों के पास भेजे गए थे।
किसी बिल की समीक्षा के विशिष्ट उद्देश्य के लिए विधायिका तदर्थ (एडहॉक), प्रवर (सिलेक्ट) या संयुक्त (ज्वाइंट) समितियों (द्विसदनीय विधायिकाओं के मामले में) का भी गठन कर सकती हैं। हरियाणा पुलिस (संशोधन) बिल, 2022 और राजस्थान स्वास्थ्य अधिकार बिल, 2022 को 2022 में पेश किया गया और प्रवर समितियों को भेजा गया। राजस्थान स्वास्थ्य अधिकार बिल, 2022 की समीक्षा करने वाली प्रवर समिति ने बिल को भेजे जाने के छह महीने बाद 20 मार्च, 2023 को अपनी रिपोर्ट पेश की। अगले ही दिन बिल पारित हो गया। 2021 में प्रवर समितियों को भेजे गए दो बिल 2022 में पारित किए गए- हरियाणा खेल विश्वविद्यालय बिल, 2021, और हिमाचल प्रदेश भू-जोत अधिकतम सीमा (संशोधन) बिल, 2021।
कुछ राज्य, जैसे केरल, विषय संबंधी स्थायी समितियों के पास बिल भेजते हैं। 2022 में केरल में पारित 80% बिल की समितियों ने समीक्षा की। केरल सार्वजनिक स्वास्थ्य बिल, 2021 को 2021 में पेश किया गया था और विषय संबंधी समिति को भेजा गया था। राज्य भर के शहरों में बिल पर सार्वजनिक परामर्श आयोजित किए गए, और निष्कर्षों को समिति की रिपोर्ट में शामिल किया गया।[9] बिल 2023 में पारित किया गया। हालांकि केरल में विषय संबंधी समितियों की अध्यक्षता उनके संबंधित मंत्रियों द्वारा की जाती है। संसद में मंत्री विषय संबंधी समितियों का हिस्सा नहीं होते हैं। पश्चिम बंगाल और ओडिशा ने भी विषय संबंधी समितियों का गठन किया है। इनमें से किसी भी राज्य में मंत्री समितियों का हिस्सा नहीं होते हैं।[10],[11]
प्रवर समिति ने राजस्थान स्वास्थ्य अधिकार बिल, 2022 की समीक्षा की राजस्थान स्वास्थ्य अधिकार बिल, 2022 को विधानसभा में 22 सितंबर, 2022 को पेश किया गया और अगले ही दिन उसे प्रवर समिति को भेज दिया गया।[12] बिल राज्य के लोगों को स्वास्थ्य अधिकार और स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच प्रदान करता है। इसमें राज्य के निवासियों को किसी क्लिनिकल इस्टैबलिशमेंट में मुफ्त स्वास्थ्य देखभाल सेवा प्रदान करना शामिल है। यह अधिकार सुनिश्चित करने और सार्वजनिक स्वास्थ्य को बरकरार रखने के लिए राज्य सरकार पर दायित्व भी निर्धारित करता है। बिल को 21 मार्च, 2023 को पारित किया गया और उसमें प्रवर समितियों के कुछ सुझावों को शामिल किया गया। इसमें निम्नलिखित शामिल हैं:
|
57% बिल्स को एक महीने के भीतर राज्यपाल की सम्मति मिल गई
कानून बनने के लिए एक बिल को राज्यपाल या राष्ट्रपति की सम्मति मिलनी चाहिए। संविधान का अनुच्छेद 200 राज्यपाल को: (i) सम्मति प्रदान करने, (ii) सम्मति को रोकने, (iii) बिल को पुनर्विचार के लिए लौटाने, या (iv) बिल को राष्ट्रपति की राय के लिए सुरक्षित रखने का अधिकार देता है।[13] संविधान में प्रावधान है कि कि राज्यपाल जल्द से जल्द बिल पर सम्मति दे।
2022 में 57% बिल पर एक महीने के भीतर संबंधित राज्यपाल की सम्मति प्राप्त हुई। जिन राज्यों में बिल पर सम्मति मिलने में औसत सबसे कम समय लगा, उनमें सिक्किम (दो दिन), गुजरात (छह दिन) और मिजोरम (छह दिन) शामिल हैं। दिल्ली में किसी बिल पर सम्मति प्राप्त करने में औसत 188 दिन लगे जोकि सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में सबसे लंबा समय है। सम्मति के लिए तुलनात्मक रूप से अधिक समय वाले अन्य राज्य पश्चिम बंगाल (औसतन 97 दिन) और छत्तीसगढ़ (89 दिन) हैं।
रेखाचित्र 12: 2022 में बिल पर सम्मति में लगने वाला समय नोट: रेखाचित्र 10 में प्रदर्शित राज्यों में 2022 में पारित और 4 मई, 2023 तक सम्मति प्राप्त बिल प्रस्तुत किए गए हैं। |
तमिलनाडु ऑनलाइन गैंबलिंग और गेमिंग बिल पर सम्मति में देरी 1 अक्टूबर, 2022 को राज्यपाल द्वारा तमिलनाडु ऑनलाइन गैंबलिंग निषेध और ऑनलाइन गेम रेगुलेशन अध्यादेश, 2022 को जारी किया गया। अध्यादेश ऑनलाइन गैंबलिंग और धन या अन्य दांव के लिए खेले जाने वाले ऑनलाइन खेलों पर रोक लगाता है। अध्यादेश की जगह एक बिल पेश किया गया और 19 अक्टूबर, 2022 को विधानसभा में पारित किया गया। हालांकि इसे राज्यपाल ने वापस लौटा गया। इसके बाद इसे फिर से पेश किया गया और 23 मार्च, 2023 को विधानसभा में पारित किया गया। बिल को 7 अप्रैल, 2023 को राज्यपाल की सम्मति मिली। 10 अप्रैल, 2023 को विधानसभा ने एक प्रस्ताव पारित किया जिसमें कहा गया कि विधानसभा में पारित बिल को एक विशिष्ट समय सीमा के भीतर राज्यपाल को सम्मति देनी चाहिए। स्रोत: विधानसभा वेबसाइट्स; समाचार रिपोर्ट; राज्य ई-गैजेट; पीआरएस। |
2022 में 12 राज्यों ने 79 अध्यादेश जारी किए
जबकि कानून बनाने की प्राथमिक शक्ति विधायिका के पास है, संविधान कार्यपालिका को आपातकालीन स्थितियों में कानून बनाने की कुछ शक्तियां भी देता है। अनुच्छेद 213 के तहत, किसी राज्य का राज्यपाल असाधारण परिस्थितियों में अध्यादेश जारी कर सकता है, जिसका कानून जैसा प्रभाव होगा।[14] ये अस्थायी कानून हैं जिन्हें सरकार तब बना सकती है जब विधानमंडल का सत्र न चल रहा हो। अगर उन्हें अगली बैठक के छह सप्ताह के भीतर विधानमंडल द्वारा मंजूर नहीं किया जाता है, तो वे लैप्स हो जाते हैं। सर्वोच्च न्यायालय (1970) ने माना है कि कानून बनाने के लिए अध्यादेश का उपयोग केवल असाधारण परिस्थितियों में किया जाना चाहिए, और उन्हें विधायिका की कानून बनाने की शक्तियों की जगह इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए।[15]
राज्यों ने 2022 में 79 अध्यादेश जारी किए। यह पिछले दो वर्षों की तुलना में बहुत कम है। राज्यों ने 2020 में लगभग 265 और 2021 में लगभग 255 अध्यादेशों को जारी किया था। यह बड़ी संख्या आंशिक रूप से केरल द्वारा 2020 में 81 अध्यादेश और 2021 में 144 अध्यादेश जारी करने के कारण है। 2022 में केरल ने सबसे अधिक संख्या में अध्यादेश (15) जारी किए, इसके बाद महाराष्ट्र का स्थान है (13)। मेघालय, जिसने 2020 में कोई अध्यादेश जारी नहीं किया, 2021 में चार और 2022 में 10 अध्यादेश जारी किए।
रेखाचित्र 13: 2020 में राज्यों द्वारा जारी अध्यादेशों की संख्या
नोट: 2022 में सिक्किम में कोई अध्यादेश जारी नहीं किया गया था। अन्य राज्यों का डेटा उपलब्ध नहीं था या उसकी पुष्टि नहीं की जा सकती थी।
स्रोत: राज्यों के गैजेट्स, विभिन्न राज्यों की विधानसभा वेबसाइट्स; पीआरएस।
विषय आधारित कानून
राज्यों की विधायिकाएं संविधान की सातवीं अनुसूची की राज्य सूची और समवर्ती सूची के तहत आने वाले विषयों पर कानून बनाती हैं।[16] राज्य सूची के तहत सार्वजनिक व्यवस्था, स्थानीय सरकार, कृषि और स्वास्थ्य जैसे विषय शामिल हैं। समवर्ती सूची में आपराधिक और नागरिक प्रक्रिया, शिक्षा, कॉन्ट्रैक्ट और न्याय प्रशासन आदि शामिल हैं। इस खंड में 2022 में राज्यों द्वारा पारित कानूनों और इन कानूनों में शामिल विषयों का अवलोकन किया गया है। एप्रोप्रिएशन और फाइनांस बिल को इस विश्लेषण से बाहर रखा गया है।
रेखाचित्र 14: 2022 में राज्यों द्वारा पारित विषय-वार कानून
नोट: इस रेखाचित्र में रेखाचित्र 10 के सभी बिल शामिल हैं। अन्य में पर्यावरण, वन, स्वास्थ्य, न्याय, धर्म, राजस्व और व्यापार एवं वाणिज्य संबंधी बिल्स शामिल हैं।
शिक्षा
विश्वविद्यालय के चांसलर: अधिकांश राज्यों में राज्यपाल राज्य के सार्वजनिक विश्वविद्यालयों के पदेन चांसलर या प्रशासनिक प्रमुख के रूप में कार्य करते हैं। उनके पास विभिन्न शक्तियां और जिम्मेदारियां होती हैं, जिनमें वाइस चांसलर (वीसी) जैसे अन्य प्रशासनिक पदों पर नियुक्तियां करने की शक्ति भी शामिल है। 2022 में केरल, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल ने विश्वविद्यालय प्रशासन में राज्यपाल की भूमिका में संशोधन करने वाले बिल पारित किए। केरल ने दो बिल पारित किए जिनमें पदेन चांसलर के रूप में राज्यपाल की जगह पर राज्य सरकार द्वारा चांसलर नियुक्त करने संबंधी प्रावधान हैं।[17],[18] तमिलनाडु ने दो बिल पारित किए जिनमें वीसी को नियुक्त करने की चांसलर की शक्ति को राज्य सरकार को सौंपना शामिल है।[19],[20],[21],[22],[23] पश्चिम बंगाल ने विश्वविद्यालयों में राज्यपाल की प्रशासनिक भूमिका को खत्म करने के लिए कानून पारित किए।[24],[25],[26],[27],[28],[29] इन कानूनों में राज्यपाल की जगह (i) सार्वजनिक विश्वविद्यालयों में पदेन चांसलर के रूप में मुख्यमंत्री, और (ii) निजी विश्वविद्यालयों में उच्च शिक्षा मंत्री को रखा गया है। विश्वविद्यालय के विजिटर के पास शक्तियां और जिम्मेदारियां होती हैं, जिनके तहत वे उन निर्णयों को रद्द कर सकते हैं, जो विश्वविद्यालयों को स्थापित करने वाले कानूनी प्रावधानों का उल्लंघन करते हैं, इसके अलावा विजिटर विश्वविद्यालय के मामलों, रिकॉर्ड्स और सुविधाओं का निरीक्षण करते हैं। अरुणाचल प्रदेश ने राज्यपाल को आठ विश्वविद्यालयों का विजिटर नियुक्त करते हुए कानून पारित किया।
नए विश्वविद्यालयों की स्थापना: 2022 में नए विश्वविद्यालयों की स्थापना करने वाले कई बिल पारित किए गए। त्रिपुरा और मेघालय में राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालयों की स्थापना करने वाले दो बिल लाए गए।[30],[31] एक बिल के तहत तमिलनाडु में सिद्ध, यूनानी, आयुर्वेद, प्राकृतिक चिकित्सा और वैकल्पिक चिकित्सा के अन्य रूपों के लिए एक विश्वविद्यालय की स्थापना की गई है।[32] महाराष्ट्र ने कौशल विकास से संबंधित विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए बिल पेश किया।[33]
विश्वविद्यालयों के लिए सामान्य भर्ती निकाय: तेलंगाना ने तेलंगाना विश्वविद्यालय सामान्य भर्ती बोर्ड बिल, 2022 पारित किया।[34] बोर्ड चिकित्सा विश्वविद्यालयों को छोड़कर, तेलंगाना के विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में शिक्षण और गैर-शिक्षण पदों पर सीधी भर्ती के लिए व्यक्तियों की सिफारिश करेगा। इन्हीं सिफारिशों के आधार पर नियुक्तियां की जाएंगी।
कानून और न्याय
दंड प्रक्रिया संहिता, 1973: असम, गुजरात, हरियाणा, झारखंड, राजस्थान और उत्तर प्रदेश ने दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (सीआरपीसी) में संशोधन पेश किए हैं।[35],[36],[37],[38],[39],[40] झारखंड संशोधन में उन अभियुक्तों की अनुपस्थिति में सुनवाई की अनुमति दी गई है जो जमानत या मुचलके पर रिहा हो गए हैं, लेकिन सम्मन की तामील के बाद उपस्थित नहीं हुए हैं। हरियाणा का बिल सीआरपीसी की धारा 306 में संशोधन करता है। इस धारा के तहत किसी अपराध में सहअपराधी होने वाले व्यक्ति को क्षमा प्रदान करने की अनुमति है, लेकिन इसकी शर्त यह है कि वह तथ्यों और अन्य शामिल लोगों का खुलासा करे। सीआरपीसी के तहत क्षमा की इस शर्त को मानने वाले सहअपराधियों को मुकदमे की अवधि के लिए हिरासत में लिया जाना चाहिए। हरियाणा का बिल उन्हें जमानत पर रिहाई की अनुमति देने के लिए इस प्रावधान में संशोधन करता है। उत्तर प्रदेश संशोधन उन अपराधों की सूची का विस्तार करता है जिनके लिए अग्रिम जमानत नहीं मांगी जा सकती है। इनमें यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण एक्ट, 2012 के तहत किए गए अपराध, ऐसे अपराध जिनके लिए मौत की सजा है, और भारतीय दंड संहिता, 1860 के तहत बलात्कार और गैरकानूनी सेक्सुअल इंटरकोर्स के अपराध शामिल हैं।
सार्वजनिक सुरक्षा: गुजरात ने गुजरात सार्वजनिक सुरक्षा (उपाय) प्रवर्तन बिल, 2022 पारित किया है।[41] इस कानून के तहत, एक अधिसूचित सीमा से अधिक फुटफॉल वाले इस्टैबलिशमेंट के ओनर या मैनेजर को इन इस्टैबलिशमेंट्स में आने वाले लोगों की सुरक्षा के लिए उपाय करने होंगे (जैसे सीसीटीवी लगाना)। उन्हें 30 दिनों के लिए वीडियो फुटेज को सेव करना होगा और निर्दिष्ट प्राधिकरण द्वारा आवश्यक होने पर उसे प्रदान करना होगा। बिल एक सार्वजनिक सुरक्षा समिति का भी प्रावधान करता है जिसे परिसर का निरीक्षण करने और सार्वजनिक सुरक्षा उपायों को लागू न करने वाले मैनेजर या ओनर पर जुर्माना लगाने का अधिकार होगा।
कैदियों की अस्थायी रिहाई: हरियाणा सदाचारी कैदी (अस्थायी रिहाई) एक्ट, 2022 पैरोल या फर्लो पर कैदियों की अस्थायी रिहाई का प्रावधान करता है।[42] पैरोल के मायने हैं कि आपात स्थिति, विजिटेशन या किसी अन्य उद्देश्य, जिसका मूल्यांकन निर्दिष्ट अधिकारी द्वारा किया जाएगा, के लिए आवेदन करने पर जेल से अस्थायी रिहाई। फर्लो अच्छे व्यवहार पर एक अवधि के लिए अस्थायी रिहाई को कहा जाता है, जिसे सजा की सेवा के तौर गिना जा सकता है। एक्ट अस्थायी रिहाई के लिए प्रक्रिया और शर्तों को निर्दिष्ट करता है, जिसमें ऐसे अपराध और सजा शामिल हैं जो कैदियों को अस्थायी रिहाई के लिए अपात्र बनाती हैं।
धर्म परिवर्तन: हरियाणा और कर्नाटक, दोनों ने बलपूर्वक, गलत बयानी, धोखाधड़ी, या जबरदस्ती के माध्यम से किसी अन्य व्यक्ति के किसी भी धर्म में परिवर्तन पर रोक लगाने वाले कानून पारित किए।[43],[44] इन कानूनों के तहत, विवाह द्वारा धर्मांतरण सहित सभी स्वैच्छिक धर्मांतरणों के लिए जिला मजिस्ट्रेट को एक घोषणापत्र प्रस्तुत करना आवश्यक है। आपत्ति आमंत्रित करने के लिए जिला मजिस्ट्रेट को 30 दिनों के लिए ऐसी घोषणाओं को सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित करना होगा। इन कानूनों का उल्लंघन करते हुए धर्मांतरण करना अवैध माना जाएगा। उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और गुजरात ने 2021 में इसी तरह के कानून पारित किए थे।[45],[46],[47]
गैंबलिंग विरोधी कानून: छत्तीसगढ़ ने छत्तीसगढ़ गैंबलिंग (निषेध) बिल, 2022 पेश किया।[48] यह बिल सार्वजनिक स्थानों पर गैंबलिंग करने, गैबलिंग हाउस रखने या वहां पाए जाने, और ऑनलाइन गैबलिंग को प्रतिबंधित और दंडित करता है। तमिलनाडु ने ऑनलाइन गैबलिंग निषेध और ऑनलाइन गेम रेगुलेशन, बिल 2022 को भी पारित किया।[49] यह बिल ऑनलाइन गैंबलिंग और धन या किसी अन्य दांव के लिए खेले जाने वाले ऑनलाइन खेलों पर प्रतिबंध लगाता है। यह तमिलनाडु ऑनलाइन गेमिंग प्राधिकरण की स्थापना भी करता है जोकि संयोग के खेलों पर प्रतिबंध लगाएगी और ऑनलाइन गेम प्रोवाइडर्स को रेगुलेट करेगी।
मीडियाकर्मियों के साथ होने वाली हिंसा पर प्रतिबंध: गोवा ने गोवा मीडियाकर्मी और मीडिया संस्थान (हिंसा और नुकसान या संपत्ति को क्षति की रोकथाम) बिल, 2022 पारित किया।[50] यह मीडियाकर्मियों के खिलाफ हिंसा को प्रतिबंधित और दंडित करता है, जिसमें पत्रकार, संपादक, कार्टूनिस्ट, फोटो जर्नलिस्ट और अन्य संबंधित व्यवसायों में संलग्न व्यक्ति शामिल हैं। मीडियाकर्मियों के साथ हिंसा के कृत्य गैर-संज्ञेय, गैर-जमानती अपराध होंगे, जिसमें तीन साल तक की कैद और/या 50,000 रुपए तक का जुर्माना हो सकता है।
शहरी क्षेत्रों में बिजनेस का रेगुलेशन: हरियाणा में हरियाणा नगरपालिका (संशोधन) बिल, 2022 पारित किया गया, जो हरियाणा नगरपालिका एक्ट, 1973 और हरियाणा नगरपालिका परिषद एक्ट, 1994 के तहत विभिन्न व्यावसायिक गतिविधियों के लिए लाइसेंसिंग की शर्तों को हटाता है।[51] बिल ग्लास कटिंग और कपड़े की रंगाई जैसी व्यावसायिक गतिविधियों को उन गतिविधियों से हटाता है जिनके लिए लाइसेंस की आवश्यकता होती है। जहां 1994 के एक्ट ने नगर निगम के आयुक्त को यह निर्धारित करने का अधिकार दिया है कि कौन सी गतिविधियां खतरनाक हैं और इस प्रकार उसे लाइसेंस की आवश्यकता है, बिल राज्य सरकार को यह अधिकार देता है। इसके अलावा बिल के तहत लाइसेंस फीस तय करने की शक्ति आयुक्त को नहीं, राज्य सरकार को सौंपी गई है।
स्वास्थ्य
2022 में सात राज्यों, छत्तीसगढ़, गोवा, हरियाणा, केरल, राजस्थान, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल में स्वास्थ्य से संबंधित बिल पेश किए गए।[52],[53],[54],[55],[56],12,[57],[58] इन सात बिल्स में से पांच पारित हो गए।
सार्वजनिक स्वास्थ्य: राजस्थान ने राजस्थान स्वास्थ्य अधिकार बिल, 2022 को पेश किया।12 बिल में प्रावधान है कि राज्य के प्रत्येक व्यक्ति को मुफ्त स्वास्थ्य सेवाओं सहित स्वास्थ्य और स्वास्थ्य सेवा तक पहुंच का अधिकार है। राज्य सरकार के कुछ दायित्व होंगे जैसे क्षेत्र और जनसंख्या घनत्व को ध्यान में रखते हुए स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराना और सुरक्षित पेयजल और पौष्टिक भोजन उपलब्ध कराना। बिल स्वास्थ्य देखभाल में सुधार के लिए योजना बनाने, उन्हें लागू करने और तंत्र की निगरानी करने के लिए राज्य और जिला स्तर पर स्वास्थ्य प्राधिकरणों के निर्माण का प्रावधान करता है। इस बिल की जांच राज्य के स्वास्थ्य मंत्री की अध्यक्षता वाली एक प्रवर समिति ने की थी।
गोवा सार्वजनिक स्वास्थ्य (संशोधन) बिल, 2022 में गोवा सार्वजनिक स्वास्थ्य एक्ट, 1985 के तहत विभिन्न दंडों के रूप में कारावास को हटाया गया है।53इनमें उपद्रव को शांत करने के लिए स्वास्थ्य अधिकारी के निर्देशों का पालन करने में असफलता और बिना परमिट के एम्बुलेंस का संचालन शामिल है।
मेडिकल टेक्नोलॉजी में सुधार के मद्देनजर 2011 में मानव अंग प्रत्यारोपण एक्ट, 1994 में संशोधन किया गया जोकि एक केंद्रीय कानून है।[59] हरियाणा ने 2011 के संशोधनों के तहत राज्य द्वारा की गई कार्रवाइयों को मान्य करने के लिए मानव अंग प्रत्यारोपण (हरियाणा मान्यकरण) एक्ट, 2022 पारित किया, जोकि उक्त संशोधनों के लागू होने की तिथि से पूर्वव्यापी होगा।54
क्लिनिकल इस्टैबलिशमेंट्स: केरल और पश्चिम बंगाल ने अपने-अपने क्लिनिकल इस्टैबलिशमेंट एक्ट्स में संशोधन वाले बिल पेश किए। एक्ट्स क्लिनिकल इस्टैबलिशमेंट्स के पंजीकरण और अनुपालन किए जाने वाले मानकों का प्रावधान करते हैं। केरल ने अपने एक्ट में दो बार संशोधन किया, ताकि अनंतिम पंजीकरण की अवधि बढ़ाई जा सके और एक्ट के कार्यान्वयन की कठिनाइयों को दूर करने के लिए राज्य सरकार अधिसूचना जारी कर सके।55,56 पश्चिम बंगाल ने पश्चिम बंगाल क्लिनिकल इस्टैबलिशमेंट्स (पंजीकरण, रेगुलेशन और पारदर्शिता) (संशोधन) बिल, 2022 पारित किया ताकि इसमें स्वास्थ्य जिले के मुख्य चिकित्सा अधिकारी को पंजीकरण और लाइसेंसिंग प्राधिकरण के रूप में जोड़ा जा सके।58
वित्त
राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन (एफआरबीएम): सभी राज्यों में एफआरबीएम कानून हैं जो राजकोषीय घाटे, राजस्व घाटे और राज्य की बकाया देनदारियों की सीमा निर्धारित करते हैं, यह सुनिश्चित करते हुए कि उनकी उधारी नियंत्रण में है। 2020-21 से पहले राज्यों को अपने सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) का 3% तक उधार लेने की अनुमति थी। 2020-21 में सरकारी वित्त पर कोविड-19 महामारी के प्रभाव के कारण, केंद्र सरकार ने कुछ शर्तों के तहत राज्यों को अपनी जीएसडीपी का 5% तक उधार लेने की अनुमति दी।[60] 2021-22 में इस सीमा को घटाकर 4% कर दिया गया था। वित्तीय वर्ष 2022-23 के लिए केंद्र सरकार ने राज्यों को अपने जीएसडीपी के 3.5% तक उधार लेने की अनुमति दी।[61] राज्यों को बिजली क्षेत्र में कुछ सुधारों के लिए अपने जीएसडीपी के अतिरिक्त 0.5% उधार लेने की अनुमति दी गई थी। सुधार राजस्व अंतर को समाप्त करने और राज्य के स्वामित्व वाली डिस्कॉम के तकनीकी और वाणिज्यिक घाटे को कम करने से संबंधित थे। 2022 में असम, बिहार, केरल और पश्चिम बंगाल सहित कई राज्यों ने अपने संबंधित एफआरबीएम एक्ट्स में संशोधन किए ताकि इस अतिरिक्त उधारी की गुंजाइश बन सके।[62],[63],[64],[65],[66]
असम ने 2022-23 से शुरू होने वाले अगले पांच वर्षों के लिए अपने बकाया ऋण लक्ष्य को जीएसडीपी के 28.5% से बढ़ाकर 32% कर दिया। कर्नाटक ने 2022-23 के लिए अपने राजकोषीय घाटे के लिए 3.5% की सीमा निर्धारित की। केरल ने वर्ष 2026 तक अपने राजकोषीय घाटे को 3% तक कम करने का लक्ष्य रखा है। 2022-23 के लिए पश्चिम बंगाल ने जीएसडीपी के 4% पर अधिकतम राजकोषीय घाटे का लक्ष्य निर्धारित किया है।
असम, झारखंड, मेघालय और पश्चिम बंगाल ने अपनी आकस्मिकता निधि के कुल कोष को बढ़ाने के लिए अपने-अपने कानूनों में संशोधन किया।[67],[68],[69],[70] संविधान का अनुच्छेद 267(2) राज्य विधानसभाओं को किसी भी अप्रत्याशित व्यय को पूरा करने के लिए एक आकस्मिक निधि स्थापित करने की अनुमति देता है।[71]
कराधान: असम, कर्नाटक और तेलंगाना ने मोटर वाहनों पर कराधान से संबंधित कानून पारित किए।[72],[73],[74] असम ने 10 साल से पुराने सभी परिवहन वाहनों और 15 साल से पुराने सभी गैर-परिवहन वाहनों द्वारा भुगतान किए जाने वाले हरित कर को लागू करने के लिए कानून में संशोधन किया। यह टैक्स फिटनेस सर्टिफिकेट के नवीनीकरण के वक्त देना होगा, जो गैर-परिवहन वाहनों के मामले में हर पांच साल में जरूरी होता है। इसके अलावा मोटर वाहन कर का 75% वाहन पंजीकरण के समय और शेष पांच साल के भीतर भुगतान करना होगा। कर्नाटक संशोधन तिमाही, अर्धवार्षिक या वार्षिक आधार पर देय तिथि से एक महीने के भीतर मोटर वाहनों पर अग्रिम कर के भुगतान का प्रावधान करता है। एक्ट में यह भुगतान 15 दिनों के भीतर किए जाने का प्रावधान है।[75] तेलंगाना का बिल भारत में निर्मित मोटर वाहन की मूल निर्माण लागत और उस पर उत्पाद शुल्क, बिक्री कर या जीएसटी को शामिल करने के लिए वाहन की लागत को परिभाषित करता है।
गोवा ने इंफ्रास्ट्रक्चर पर गोवा कर एक्ट, 2009 में संशोधन किया।[76] एक्ट आवासीय, वाणिज्यिक और औद्योगिक भवनों में इंफ्रास्ट्रक्चर के निर्माण पर कर लगाने का प्रावधान करता है। यह एक्ट के प्रावधानों के उल्लंघन के लिए एक वर्ष तक के कारावास और/या देय कर की राशि का दोगुना जुर्माना लगाता है। संशोधन में कारावास के प्रावधान को हटाया गया है और जुर्माना देयता बरकरार रखी गई है।[77]
स्थानीय गवर्नेस
नगर प्रशासन: तमिलनाडु ने शहरों में नए नगर निगमों की स्थापना के लिए कई बिल पारित किए।[78],[79],[80],[81],[82],[83] राज्य ने तमिलनाडु टाउन और कंट्री प्लानिंग (दूसरा संशोधन) बिल, 2022 भी पारित किया, जिसने शहरी नियोजन क्षेत्रों और शहरी विकास एजेंसियों (यूडीए) की स्थापना की।[84] इन क्षेत्रों को राज्य द्वारा अधिसूचित किया जाएगा, और यूडीए ऐसे क्षेत्रों के सर्वेक्षण के लिए जिम्मेदार होंगे। उनकी जिम्मेदारियों में एक मास्टर प्लान विकसित करना भी शामिल है जो अधिसूचित क्षेत्रों में भूमि उपयोग को नियंत्रित करता है और इस योजना को लागू करता है। यूडीए में एक अध्यक्ष, एक उपाध्यक्ष, राज्य सरकार के तीन अधिकारी, एक राज्य विधायक, यूडीए के मुख्य योजनाकार और स्थानीय प्राधिकारी प्रतिनिधियों सहित सदस्य शामिल होंगे।
राज्य ने तमिलनाडु शहरी स्थानीय निकाय (संशोधन) बिल, 2022 भी पारित किया।[85] यह बिल शहरी स्थानीय निकायों के चुनावों के लिए वार्डों के परिसीमन की आवृत्ति को पांच साल से बढ़ाकर दस साल करता है ताकि यह पिछली जनगणना के साथ मेल खाए। बिल के तहत, नगर परिषदों के अध्यक्षों का चुनाव परिषद सदस्यों द्वारा अपने बीच से किया जाता है, जबकि पहले वे मतदाता सूची में मतदाताओं द्वारा सीधे चुने जाते थे। बिल महिलाओं के लिए आरक्षित परिषद सीटों और महापौरों और अध्यक्षों के कार्यालयों के अनुपात को एक तिहाई से बढ़ाकर आधा करता है। यह राज्य सरकार को पार्षदों और अध्यक्षों को कार्यालय से हटाने की शक्ति भी देता है। वर्तमान में परिषद स्वयं मतदान या प्रस्ताव द्वारा सदस्यों को हटाती है।
असम ने असम नगर निगम बिल, 2022 को पारित किया।[86] इस बिल के तहत, राज्यपाल किसी क्षेत्र को उसके जनसंख्या घनत्व, स्थानीय प्रशासन के लिए उत्पन्न राजस्व, आर्थिक महत्व और कृषि में नियोजित जनसंख्या के प्रतिशत तथा अन्य कारकों के आधार पर नगर निगम घोषित कर सकते हैं। यह बिल एक निगम के गठन, उसके कार्यों और रेगुलेरटी अधिकार क्षेत्र, निगम के चुनाव और कराधान की शक्तियों का भी प्रावधान करता है।
परिवहन नियोजन प्राधिकरण: कर्नाटक और असम ने शहरी परिवहन की योजना और प्रबंधन के लिए प्राधिकरण बनाने वाले कानून पारित किए।[87],[88] यह उद्देश्य राष्ट्रीय शहरी परिवहन नीति, 2006 द्वारा निर्धारित किया गया था।[89] असम एकीकृत महानगर परिवहन प्राधिकरण बिल, 2022, असम के शहरों में शहरी परिवहन की योजना बनाने के लिए एकल एकीकृत महानगर परिवहन प्राधिकरण (यूएमटीए) की स्थापना करता है। यूएमटीए अपने अधिकार क्षेत्र के लिए एक व्यापक गतिशीलता योजना तैयार करेगा और परिवहन परियोजनाओं को मंजूरी देने के लिए जिम्मेदार होगा। इसी तरह, कर्नाटक ने बेंगलुरू महानगर भू परिवहन प्राधिकरण बिल, 2022 पारित किया। यह बेंगलुरू महानगर भू परिवहन प्राधिकरण की स्थापना करता है जो बेंगलुरू महानगर क्षेत्र में उसी तरह का काम करेगा।
श्रम और रोजगार
श्रम रेगुलेशन: असम ने भवन और निर्माण श्रमिकों, बीड़ी और सिगार श्रमिकों और प्रवासी श्रमिकों को रेगुलेट करने वाले अपने कानूनों में संशोधन किया।[90],[91],[92] भवन और अन्य निर्माण श्रमिक (रोजगार और सेवा की शर्तों का रेगुलेशन) एक्ट, 1996 में संशोधन के जरिए कानून का उल्लंघन करने पर कारावास के प्रावधानों को हटाया गया है। बीड़ी और सिगार श्रमिक (रोजगार की शर्तें) एक्ट, 1966 में जुर्माने और कारावास की अवधि को बढ़ाने के लिए संशोधन किया गया था।
बागान श्रम एक्ट, 1951 (केंद्रीय कानून), जो बागान श्रमिकों को रेगुलेट करता है और उनके कल्याण के लिए प्रावधान करता है, एक निरीक्षक के काम में बाधा डालने पर 10,000 रुपए तक का जुर्माना और/या छह महीने तक की कैद की सजा देता है।[93] असम ने जुर्माने में संशोधन कर 50,000 रुपए से एक लाख रुपए के बीच जुर्माना लगाया है। लगातार उल्लंघन करने पर तीन महीने तक की कैद और जुर्माने में और वृद्धि या दोनों हो सकते हैं।[94]
श्रम कल्याण कोष: आंध्र प्रदेश, गोवा और केरल ने श्रम कल्याण कोष से संबंधित अपने कानूनों में संशोधन किया।[95],[96],[97],[98],[99],[100] गोवा का संशोधन बिल नियोक्ता के अपराध की कंपाउंडिंग का प्रावधान करता है जिसके लिए उसे किसी अपराध के अधिकतम जुर्माने का 75% चुकाना होगा। कंपाउंडिंग उन मामलों में लागू नहीं होती है जहां दंड के लिए कारावास की सजा है, उसके साथ दूसरे अपराध शामिल हैं, या अगर पांच साल से पहले अपराध किया गया था।
केरल मोटर परिवहन श्रमिक कल्याण कोष एक्ट, 1985 में केरल के संशोधन ने कर्मचारी की परिभाषा को व्यापक बनाया है ताकि ऑटोरिक्शा चालक, इलेक्ट्रीशियन, मैकेनिक, कारपेंटर और ऑटोमोबाइल वर्कशॉप में मोटर वाहन मेनटेनेंस श्रमिकों जैसे श्रमिकों को उसमें शामिल किया जा सके।[101] राज्य ने केरल डॉक्यूमेंट राइटर्स स्क्राइब्स और स्टाम्प विक्रेता कल्याण कोष एक्ट, 2012 में भी संशोधन किया जिससे फंड के भुगतान में चूक करने वाले सदस्यों की सदस्यता को पुनर्जीवित करने के लिए एकमुश्त निपटान प्रदान किया जा सके।[102]
सामाजिक न्याय
अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति का कल्याण: राजस्थान ने राजस्थान राज्य अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति विकास निधि (वित्तीय संसाधनों की योजना, आवंटन और उपयोग) बिल, 2022 को अधिनियमित किया है।[103] यह प्रावधान करता है कि राज्य को अनुसूचित जाति (एससी) विकास निधि और अनुसूचित जनजाति (एसटी) विकास निधि के लिए वार्षिक बजट में एक निश्चित राशि निर्धारित करनी चाहिए।
कर्नाटक ने कर्नाटक अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (शैक्षणिक संस्थानों में सीटों का आरक्षण और राज्य के तहत सेवाओं में नियुक्तियों या पदों का आरक्षण) बिल, 2022 पारित किया।[104] यह शैक्षणिक संस्थानों में सीटों और सेवाओं में नियुक्तियों या पदों पर अनुसूचित जातियों के लिए 17% और अनुसूचित जनजातियों के लिए 7% आरक्षण का प्रावधान करता है। सेवाओं में सरकार, राज्य विधायिका, स्थानीय प्राधिकरण और राज्य सरकार के स्वामित्व वाले निगम या कंपनियां शामिल हैं।
राज्य के निवासियों के लिए लाभ: झारखंड ने राज्य के निवासियों के लिए विशेष प्रावधान प्रदान करने वाले स्थानीय जन और परिणामी सामाजिक, सांस्कृतिक और अन्य लाभ बिल, 2022 को पारित किया।[105] राज्य के निवासी सामाजिक सुरक्षा, बीमा और रोजगार पर राज्य की नीतियों के लाभार्थी होंगे। वे भूमि, रोजगार और ऋण पर विशेष अधिकार और सुरक्षा के भी हकदार होंगे। व्यापार और वाणिज्य के लिए, विशेष रूप से पारंपरिक और सांस्कृतिक उद्यमों के लिए उन्हें तरजीह दी जाएगी।
सार्वजनिक रोजगार में आरक्षण: झारखंड ने पदों और सेवाओं की रिक्तियों में झारखंड आरक्षण (संशोधन) बिल, 2022 पारित किया, जिसके तहत राज्य में सार्वजनिक रोजगार और शिक्षा में संचयी आरक्षण को 60% से बढ़ाकर 77% कर दिया गया।[106] बिल ने ओबीसी के लिए आरक्षण का प्रतिशत 14% से बढ़ाकर 27%, अनुसूचित जाति के लिए 10 से 12% और अनुसूचित जनजाति के लिए 26% से 28% तक बढ़ा दिया।[107] बिल ने आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (ईडब्ल्यूएस) के लिए 10% आरक्षण भी पेश किया। यह बिल राज्यपाल की सम्मति के लिए लंबित है।
झारखंड ने राज्य सरकार के पदों पर आरक्षण के आधार पर प्रोन्नत सरकारी सेवकों की परिणामी वरीयता का विस्तार बिल, 2022 को भी पारित किया।[108] बिल में प्रावधान है कि अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के अधिकारियों को रिक्ति होने पर और योग्यता मानदंड, जिसे निर्दिष्ट किया जाएगा, के आधार पर गैर-आरक्षित सीटों पर भी पदोन्नत किया जा सकता है।
भूमि
भू स्वामित्व: आंध्र प्रदेश ने भू स्वामित्व की स्थापना, प्रशासन और प्रबंधन के लिए एक कानून पारित किया।[109] बिल आंध्र प्रदेश भूमि प्राधिकरण की स्थापना का प्रावधान करता है जो अधिसूचित क्षेत्र में सभी अचल संपत्तियों का रिकॉर्ड तैयार करेगा। इनमें से प्रत्येक रिकॉर्ड में संबंधित संपत्ति और संपत्ति की सीमाओं पर टाइटिल (या स्वामित्व) का रिकॉर्ड होगा। ये रिकॉर्ड्स टाइटिल रजिस्ट्रेशन ऑफिसर द्वारा प्रकाशित किए जाएंगे। बिल किसी भी विवाद की स्थिति में टाइटल निर्धारित करने के तंत्र का भी प्रावधान करता है।
असम ने असम भूमि और राजस्व रेगुलेशन एक्ट, 1886 में संशोधन किया ताकि दो अन्य कानूनों के प्रावधानों को उसमें शामिल किया जा सके, और दो कानूनों को निरस्त किया।[110] ये कानून हैं, असम ग्रामदान एक्ट, 1961 और असम भूदान एक्ट, 1965, जो भूस्वामियों द्वारा भूमि के दान का प्रावधान करते हैं। बिल में कहा गया है कि दोनों एक्ट्स के तहत अनुदान प्राप्त करने वालों के अधिकार और देनदारियां प्रभावित नहीं होंगी और उन्हें भूमि धारक या बंदोबस्त धारक माना जाएगा।
भूमि का रेगुलेशन: पंजाब ने पंजाब ग्राम सामान्य भूमि (रेगुलेशन) एक्ट, 1961 में संशोधन किया, जो शामलात देह क्षेत्रों में अधिकारों को रेगुलेट करने का प्रावधान करता है। इसमें ग्राम पंचायत के स्वामित्व और ग्राम समुदाय के उद्देश्यों के लिए उपयोग की जाने वाली वाली भूमि शामिल है।[111] बिल में कहा गया है कि इनमें वे जमीन भी शामिल होंगी जो पूर्वी पंजाब होल्डिंग्स (चकबंदी और विखंडन की रोकथाम) एक्ट, 1948 के तहत सामान्य उद्देश्यों के लिए आरक्षित थीं और 1961 के एक्ट के तहत ग्राम पंचायत के प्रबंधन और नियंत्रण के अधीन थीं।
भू-जोत पर सीलिंग का असम निर्धारण (संशोधन) बिल, 2022 कुल चाय बागान के 5% हिस्से को पर्यावरण-पर्यटन, पशुपालन, हरित ऊर्जा और सामाजिक अवसंरचना के लिए उपयोग करने का प्रावधान करता है।[112] यह एक्ट के उन प्रावधानों से अलग है जिनके तहत विभिन्न प्रयोजनों के लिए 50 बीघा से अधिक भूमि के उपयोग की अनुमति दी गई है।[113]
अनाधिकृत विकास का नियमितीकरण: गुजरात ने गुजरात अनाधिकृत विकास का नियमितीकरण बिल, 2022 को पारित किया।[114] यह कानून उन मालिकों या कब्जाधारियों को शुल्क का भुगतान करके संपत्ति के नियमितीकरण का आवेदन करने की अनुमति देता है जिन्हें अनाधिकृत विकास को हटाने या बदलने का आदेश दिया गया है। इस तरह के आवेदनों को अस्वीकार किया जा सकता है, अगर कतिपय प्रकार की भूमि पर अनधिकृत विकास हुआ है, जैसे कि सरकार के स्वामित्व वाली भूमि, या यदि वह अग्नि सुरक्षा कानून जैसे अन्य नियमों का उल्लंघन करता है। हिमाचल प्रदेश स्लम निवासी (मालिकाना अधिकार) बिल, 2022 भी 2022 में पारित किया गया था।[115] यह स्लम निवासियों के रूप में परिभाषित लोगों को मालिकाना अधिकार प्रदान करता है, जो खराब निर्मित या अस्थायी बस्तियों, कम से कम 15 घर वाली, में रहने वाले भूमिहीन लोग हैं। इन अधिकारों की पात्रता के लिए आवश्यक है कि स्लम निवासी के जीवित माता-पिता को वैसे ही अधिकार नहीं मिले हों और वे स्लम एरिया में ही रहते हों। यह बिल कहता है कि प्रत्येक स्लम निवासी को 75 वर्ग मीटर तक की भूमि पर मालिकाना हक देने पर विचार किया जाए। अगर ये अधिकार विरासत में मिले हैं, तो उन्हें पट्टे, बिक्री, या अन्य माध्यमों से हस्तांतरित नहीं किया जा सकता।
जन सुविधाओं की सुरक्षा: हरियाणा ने एक बिल पारित किया जो सार्वजनिक हित या सार्वजनिक उपयोग के लिए किसी भी भूमि पर जन सुविधाओं के साथ छेड़छाड़ या उसे तोड़ने पर रोक लगाता है।[116] जन सुविधाओं में सड़कें, रास्ते, सार्वजनिक स्वास्थ्य निर्माण, नालियां, सार्वजनिक संस्थान और कोई भी केंद्र जो जनता द्वारा या सार्वजनिक लाभ के लिए उपयोग की जाती है या उपयोग की जा रही है। यदि कोई व्यक्ति इन प्रावधानों का उल्लंघन करता है, तो उसे छह महीने तक की कैद या 2,000 रुपए से 10,000 रुपए के बीच जुर्माना या दोनों से दंडित किया जा सकता है। जन सुविधाओं की बहाली के लिए खर्च की गई लागत उल्लंघनकर्ता से वसूल की जा सकती है।
भूराजस्व: छत्तीसगढ़, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, मिजोरम, राजस्थान और त्रिपुरा ने अपने भूराजस्व कानूनों में संशोधन किया।[117],[118],[119],[120],[121],[122],[123] हिमाचल प्रदेश संशोधन वित्तीय आयुक्त को उनके समक्ष लंबित या स्थापित किसी भी भूमि रिकॉर्ड मामले के रिकॉर्ड की जांच करने का अधिकार देता है। हिमाचल प्रदेश भूमि राजस्व एक्ट, 1954 में वित्तीय आयुक्त के साथ-साथ कलेक्टरों और आयुक्तों को ऐसे भूमि रिकॉर्ड मामलों पर विचार करने का अधिकार दिया गया था।[124]
छत्तीसगढ़ भू-राजस्व संहिता (संशोधन) बिल 2022 में जिला सर्वेक्षण अधिकारी एवं उप सर्वेक्षण अधिकारी के नए पदों का सृजन किया गया है। यह राजस्व सर्वेक्षणों से मिट्टी के वर्गीकरण को बाहर करने का प्रावधान करता है और इसके बजाय सभी को फील्ड बुक तैयार करनी होगी। बिल में तहसीलदार को ई-नामांतरण पोर्टल पर भूमि रिकॉर्ड के संबंध में विवरण प्रदान करने और इच्छुक पार्टियों को इसके बारे में सूचित करने की भी आवश्यकता है। विवाद की स्थिति में विवरण ई-राजस्व न्यायालय के अंतर्गत ई-नामांतरण पोर्टल से पंजीकृत कराना होगा।
कर्नाटक ने सरकारी भूमि के अनाधिकृत कब्जे के नियमितीकरण के लिए आवेदन करने की समय सीमा बढ़ाने हेतु कर्नाटक भूमि राजस्व एक्ट, 1964 में संशोधन किया।[125] एक्ट सरकार को इन भूमि अनुदान मामलों से निपटने के लिए तालुक समितियों के गठन का अधिकार देता है।
भूमि हड़पने पर रोक: गुजरात और कर्नाटक ने भूमि हड़पने पर रोक लगाने के लिए अपने कानूनों में संशोधन किया।[126],[127] गुजरात एक्ट भूमि हड़पने के मामलों की सुनवाई के लिए विशेष अदालतों के गठन का प्रावधान करता है। संशोधन में प्रावधान है कि विशेष अदालत के आदेशों के खिलाफ उच्च न्यायालय में अपील की जा सकेगी। यह यह भी प्रावधान करता है कि अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) एक्ट, 2006 में दी गई भूमि के प्रकारों को भूमि कब्जा एक्ट, 2020 के दायरे से बाहर रखा जाएगा।
कर्नाटक का बिल कर्नाटक भूमि कब्जा निषेध एक्ट, 2011 में संशोधन करता है, जो भूमि हड़पने पर रोक लगाता है और इसके प्रावधानों का उल्लंघन करने पर सजा का प्रावधान करता है।127,[128] 2011 का एक्ट निम्नलिखित को शामिल करने के लिए भूमि को परिभाषित करता है (i) राज्य सरकार और उसके द्वारा प्रबंधित संस्थाओं, स्थानीय प्राधिकरण, धार्मिक प्राधिकरण और धर्मार्थ संगठन से संबंधित भूमि, और (ii) भूमि पर अधिकार, इससे जुड़ी संपत्ति और इससे होने वाले लाभ। बिल उपरिलिखित परिभाषा के पहले भाग में संशोधन करता है जिससे बृहद बेंगलुरू महानगर पालिके सहित कर्नाटक में नगर निगमों की सीमाओं के भीतर आने वाली भूमि के दायरे में उसे शामिल किया जा सके।
प्रशासन और कार्मिक
नियुक्तियों के लिए आयोग: केरल ने केरल लोक उद्यम (चयन और भर्ती) बोर्ड बिल, 2022 पारित किया जो केरल लोक सेवा आयोग के माध्यम से की गई नियुक्ति के अलावा विभिन्न पदों पर उम्मीदवारों की नियुक्ति के लिए एक चयन सूची तैयार करेगा।[129] बोर्ड उद्योग और वाणिज्य विभाग के तहत प्रबंध निदेशक या पीएसयू के प्रमुख के पद के लिए भी उम्मीदवारों की सिफारिश करेगा।
सेवानिवृत्ति की आयु बढ़ाना: आंध्र प्रदेश, केरल और तेलंगाना ने विभिन्न पदों के लिए सेवानिवृत्ति की आयु बढ़ाने वाले कानून पारित किए। उदाहरण के लिए आंध्र प्रदेश लोक रोजगार (सेवानिवृत्ति का रेगुलेशन) (संशोधन) बिल, 2022 ने आंध्र प्रदेश में सरकारी कर्मचारियों के लिए सेवानिवृत्ति की आयु 60 से बढ़ाकर 62 कर दी।[130]
सरकारी भाषा: आंध्र प्रदेश राजभाषा (संशोधन) बिल, 2022 उर्दू को पूरे आंध्र प्रदेश में दूसरी आधिकारिक भाषा के रूप में शामिल करता है।[131] तमिलनाडु सरकारी कर्मचारी (सेवा की शर्तें) संशोधन एक्ट, 2020, तमिलनाडु लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित प्रवेश परीक्षाओं की अन्य विशेषताओं को संशोधित करने के अलावा, तमिल को इन परीक्षाओं के लिए एक भाषा के रूप में जोड़ता है।[132] यह अंग्रेजी के अतिरिक्त है।
कृषि
कृषि उत्पाद और मार्केटिंग: आंध्र प्रदेश, गोवा, झारखंड और तेलंगाना ने कृषि उपज और मवेशियों की मार्केटिंग पर अपने कानूनों में संशोधन किया।[133],[134],[135],[136] आंध्र प्रदेश के कानून के जरिए केंद्रीय बाजार कोष में अतिरिक्त योगदान को सक्षम किया गया है ताकि कृषि एवं कृषि मार्केटिंग गतिविधियों के लिए बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर का निर्माण किया जा सके। पंजाब, राजस्थान, तमिलनाडु और त्रिपुरा ने कृषि बाजारों को रेगुलेट करने वाले अपने कानूनों में संशोधन किए।[137],[138],[139],[140] ये राज्य कृषि उपज मार्केटिंग समितियों (एपीएमसी) के माध्यम से अपने कृषि बाजारों को रेगुलेट करते हैं। एपीएमसीज़ का उपयोग राज्यों में कृषि उपज को रेगुलेट करने के लिए किया जाता है। पंजाब संशोधन ने प्रावधान किया कि सभी पूर्व नामित समितियों का अस्तित्व समाप्त हो जाएगा और एक वर्ष के भीतर उनका पुनर्गठन किया जाएगा। राजस्थान के संशोधन ने बाजार समितियों को गैर-अधिसूचित कृषि उपज और खाद्य उत्पादों को खरीदने/बेचने के लिए उपयोगकर्ता शुल्क एकत्र करने का अधिकार दिया।
मिजोरम ने अपने कृषि उत्पाद बाजारों को रेगुलेट करने के लिए एक नया कानून बनाया है।[141] यह सरकार को बाजारों को स्थापित/बंद करने, स्टालों के लिए किराया एकत्र करने और मांस, सब्जियों और फलों की कीमत को रेगुलेट करने का अधिकार देता है। यह दंड का भी प्रावधान करता है, अगर व्यक्ति बाजार रेगुलेशंस से संबंधित प्रावधानों का उल्लंघन करता है। अधिकतम खुदरा दर से ऊपर कृषि उपज बेचने वाले व्यक्ति को 1,000 रुपए तक का जुर्माना या तीन महीने तक का कारावास, या दोनों से दंडित किया जाएगा।
सिंचाई: असम और गोवा ने अपने सिंचाई कानूनों के तहत अपराधों की सजा कम करने के लिए इन कानूनों में संशोधन किए लेकिन मौद्रिक जुर्माना बढ़ा दिया।[142],[143],[144],[145] अपराधों में सिंचाई कार्य की क्षति या उसमें किसी प्रकार की बाधा शामिल है।
विधानमंडल
वेतन और अन्य लाभों में परिवर्तन: छत्तीसगढ़, दिल्ली, कर्नाटक, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, त्रिपुरा और उत्तर प्रदेश ने विधायकों और सरकारी अधिकारियों के लिए वेतन, पेंशन और अन्य लाभों से संबंधित कानून पारित किए। उदाहरण के लिए महाराष्ट्र ने एक बिल पारित किया जो राज्य सरकार को विधायकों और मंत्रियों के निजी सहायकों के वेतन को निर्दिष्ट करने की शक्ति देता है। संशोधन में प्रावधान है कि ये वेतन कानून के बजाय राज्य सरकार के एक आदेश द्वारा निर्धारित किए जाएंगे।[146]
स्रोत और कार्य पद्धति
स्रोत
यह रिपोर्ट 28 राज्यों और दो केंद्र शासित प्रदेशों के विधानमंडलों के आंकड़ों पर आधारित है। इसमें छह प्रकार के स्रोतों से डेटा जमा किया गया है: (i) विधानसभा सत्रों के रेस्यूम्स या सिनॉप्सिस, जो आम तौर पर एक सत्र की समाप्ति के कुछ सप्ताह बाद प्रकाशित किए जाते हैं, और सत्र की सभी गतिविधियों का विवरण प्रदान करते हैं; (ii) बैठक-वार कार्य-सूची (बैठक का एजेंडा), बुलेटिन (कार्य-सूची का सारांश), और प्रक्रिया; (iii) राज्य विधानमंडल की वेबसाइट्स पर उपलब्ध सारांश दस्तावेज; (iv) सूचना के अधिकार संबंधी अनुरोधों पर प्रतिक्रिया; (v) राज्य के गैजेट्स के पब्लिकेशंस; और (vi) राज्य विधानमंडल के अनुसंधान अधिकारियों या सचिवालय के साथ सीधे संवाद के माध्यम से प्राप्त दस्तावेज। प्रत्येक डेटा को विभिन्न स्रोतों से सत्यापित किया गया है।
कार्य पद्धति
‘बैठक के दिन’ को उन कैलेंडर दिनों की संख्या के रूप में परिभाषित किया गया है जब किसी सदन का सत्र होता है। अगर किसी सदन में एक दिन दो बैठकें होती हैं तो उसे एक बैठक के दिन के रूप में गिना गया है। रेखाचित्र 5 में जिन राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को शामिल नहीं किया गया है, वहां पहले के वर्षों के बैठकों के आंकड़े उपलब्ध नहीं थे या उनकी पुष्टि नहीं की जा सकती थी।
बजट सत्रों को ऐसे सत्रों के रूप में चिन्हित किया जाता है, जब वार्षिक बजट पेश किया जाता है। आमतौर पर राज्यों में एक वर्ष में एक बजट सत्र होता है। हालांकि कुछ राज्यों ने एक सत्र में लेखानुदान (वित्तीय वर्ष के एक भाग के लिए व्यय की स्वीकृति) और अगले सत्र में पूर्ण बजट पारित किया। इन राज्यों के लिए जिस सत्र में पूर्ण बजट पारित किया गया, उसे बजट सत्र माना गया है।
बैठक के दिनों के आंकड़ों से सिर्फ यह पता चलता है कि विधानसभाओं की बैठकों की फ्रीक्वेंसी कितनी है लेकिन इससे यह जानकारी नहीं मिलती कि हर दिन उन्होंने कितने घंटों तक काम किया। विधानमंडलों की बैठक की औसत अवधि या तो सांख्यिकीय विवरणों से संकलित की गई है, या उनकी गणना दैनिक बुलेटिनों या पूरी कार्यवाही से की गई है। रेखाचित्र 3 में जिन राज्यों का उल्लेख नहीं किया गया है, उनके लिए बैठकों में लगने वाले समय की गणना नहीं की जा सकती है।
पारित होने वाले बिल की कुल संख्या सत्र के रेज्यूमेज़ और बुलेटिन्स के जरिए निर्धारित की गई है। प्रत्येक बिल और एक्ट को तिथि अनुसार क्रमबद्ध किया जाता है। इस क्रम को कमियों, अगर कोई है, की पहचान करने के लिए इस्तेमाल किया गया है। हालांकि सभी राज्य अपने-अपने बिल और एक्ट की नंबरिंग अलग-अलग तरह से करते हैं और कुछ राज्यों के बिल और एक्ट की प्रतियां नहीं मिल पाई हैं। उदाहरण के लिए, केरल के क्रम में, कई तरह के बिल शामिल हैं। इनमें ऐसे बिल शामिल हैं जो गैजेट में प्रकाशित हुए हैं, लेकिन उन्हें सदन में पेश भी नहीं किया गया। असम के बिल में नंबर उपलब्ध नहीं हैं। इस विश्लेषण में एप्रोप्रिएशन बिल्स और फाइनांस बिल्स पर विचार नहीं किया गया है और इसमें सिर्फ ऐसे बिल शामिल हैं जो 2022 में विधानमंडल द्वारा पारित किए गए।
बिल को पेश करने, उसे पारित करने और सम्मति मिलने की तारीखों के आधार पर इस बात का विश्लेषण किया गया है कि किसी बिल को पारित करने में कितना समय लगा (रेखाचित्र 11) और राज्यपाल की सम्मति मिलने में कितना समय लगा (रेखाचित्र 12)। जिन राज्यों में विधानसभा के साथ-साथ विधान परिषद भी मौजूद है, वहां बिल को पेश करने की तारीख वह है जब उसे पहले सदन में पेश किया गया। उसे पारित करने की तारीख वह तारीख है, जब बिल को दूसरे सदन में पारित किया गया। लेकिन ऐसा उन छह में से सिर्फ चार विधानमंडलों के लिए किया जा सका है, जहां द्विसदनीय विधानमंडल हैं। चूंकि बिहार और उत्तर प्रदेश विधान परिषद के कामकाज का कोई डेटा उपलब्ध नहीं था, इसलिए वहां विधानसभा में बिल के पेश और पारित होने वाली तारीखों पर ही विचार किया गया है।
जहां तक बैठक के दिनों का मुद्दा है, वहां किसी बिल को पेश करने और पारित होने के बीच का अंतराल इस बात को प्रदर्शित नहीं करता कि उस पर विधायी समीक्षा की गुणवत्ता क्या थी। इसे अन्य संकेतकों के जरिए मापा जा सकता है, जैसे सदन में बिल पर चर्चा में लगने वाला समय, बिल पर बहस का विवरण, और बहस में भाग लेने वाले सदस्यों की संख्या। हालांकि संसद से अलग, अधिकतर राज्य पूरी कार्यवाही या बिल पर बहस की विस्तृत सूचना प्रकाशित नहीं करते। केरल में सत्र के रेज्यूमेज़ में संशोधन प्रस्तावों की संख्या सहित बहस पर जानकारियां जारी की जाती हैं। लेकिन उत्तर प्रदेश, हरियाणा और गोवा जैसे अन्य राज्यों में इन विवरणों को सदन की कार्यवाहियों से हटा दिया जाता है।
उपरोक्त स्रोतों के समान स्रोतों से ही बजट संबंधी डेटा भी प्राप्त किया गया। जबकि बजट पेश करने और उन पर चर्चा की तारीखें आसानी से उपलब्ध थीं, लेकिन अधिकतर राज्यों के संबंध में यह जानकारी नहीं मिली कि वहां बजट पर कितनी अवधि तक चर्चा हुई। अधिकतर राज्यों के संबंध में यह सुनिश्चित नहीं किया जा सका कि सदन में मंत्रालयी बजट की मांगों की संख्या और गिलोटिन (बिना मतदान के पारित) की संख्या कितनी है। हालांकि, ये संकेतक राज्य विधानमंडल के कामकाज के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करते हैं।
डेटा एकत्र करने और उनकी सत्यापन प्रक्रिया की मुख्य चुनौती यह है कि राज्य विधानमंडलों के डेटा प्रकाशित करने के तरीकों में बहुत विसंगतियां हैं। कुछ राज्य अपनी वेबसाइट्स या नेशनल ई-विधान एप्लिकेशन (यह सभी विधानमंडलों के बारे में जानकारियां जमा करने की एक केंद्रीय पहल है) को नियमित रूप से अपडेट नहीं करते। यहां हमने जिन संकेतकों को चुना है, सभी राज्यों/केंद्र शासित प्रदेश में उनसे संबंधित डेटा उपलब्ध नहीं हैं। इस कमी को दूर करने के लिए न्यूज रिपोर्ट्स पर भरोसा किया गया। सरकारी दस्तावेजों में भी विसंगतियां पाई गईं, जिससे सत्यापन प्रक्रिया में समय लगा। कुछ राज्यों में क्षेत्रीय भाषा में दस्तावेज उपलब्ध थे जिससे डेटा को एकत्र करने और उसे सत्यापित करने में कठिनाइयां बढ़ीं।
अनुलग्नक 1: 2022 में राज्य कानूनों की सूची
इस सूची में 2022 में अधिनियमित राज्य कानून दिए गए हैं। ये राज्य विधानसभाओं की वेबसाइट्स और राज्य गैजेट्स में उपलब्ध हैं।
अनुलग्नक 2: 2022 में राज्यों द्वारा पारित बिल की सूची
इस सूची में ऐसे बिल शामिल हैं जो 2022 में पारित किए गए, लेकिन 4 मई, 2023 तक उन्हें मंजूरी नहीं मिली।
अनुलग्नक 3: 2022 में राज्यों द्वारा जारी अध्यादेशों की सूची
[1] Report by the National Commission to Review the Working of the Constitution, https://legalaffairs.gov.in/sites/default/files/chapter%205.pdf.
[2] The Karnataka Conduct of Government Business in the State Legislature Act, 2005, https://prsindia.org/files/bills_acts/acts_states/karnataka/2005/2005KR26.pdf.
[3] Rules of Procedure and Conduct of Business in Himachal Pradesh Legislative Assembly, https://secure.evidhan.nic.in/SecureFileStructure/Rules/1228-VS-2016-RulesENg.pdf.
[4] Rules of Procedure and Conduct of Business of the U.P. Legislative Assembly, 1958 (As corrected upto February, 2022) https://uplegisassembly.gov.in/Niyamavali/pdf/Rules_english/1_niyamavali_1958_english.pdf.
[5] “Rajasthan governor spurns CM Gehlot for 3rd time over House session request”, Hindustan Times, 29 July 2020, https://www.hindustantimes.com/india-news/rajasthan-governor-spurns-cm-gehlot-for-3rd-time-over-house-session-request/story-UFAZXKAS2qWvw8xLNhzoII.html.
[6] “Rajasthan governor seeks another Cabinet proposal from Ashok Gehlot govt for calling session for floor test”, The Times of India, July 27, 2020, https://timesofindia.indiatimes.com/india/rajasthan-governor-seeks-another-cabinet-proposal-from-ashok-gehlot-govt-for-calling-session-for-floor-test/articleshow/77202493.cms.
[7] Haryana Committees for Scrutinizing Demands, https://haryanaassembly.gov.in/wp-content/uploads/2023/02/Committee.pdf.
[8] Rule 242, Rules of Procedure of Goa Assembly, https://www.goavidhansabha.gov.in/uploads/downloads/19_file_Goa-Legislature-Assembly-Rules-Pdf.pdf.
[9] Report of the Select Committee on the Kerala Public Health Bill, 2021, http://www.niyamasabha.org/codes/15kla/bills/Public%20Health%20Select%20Committee%20Report.pdf.
[10] Rule 310ZG, Rules of Procedure and Conduct of Business in the West Bengal Legislative Assembly.
[11] Rule 174-I (1), Rules of Procedure and Conduct of Business in the Odisha Legislative Assembly, https://odishaassembly.nic.in/Rules.aspx.
[12] The Rajasthan Right to Health Bill, 2022, https://prsindia.org/files/bills_acts/bills_states/rajasthan/2022/Bill%20No.%2021%20of%202022%20Rajasthan.pdf.
[13] Article 200, Constitution of India.
[14] Article 213, Constitution of India.
[15] RC Cooper vs. Union of India (1970), https://main.sci.gov.in/judgment/judis/1504.pdf.
[16] Seventh Schedule, The Constitution of India, https://lddashboard.legislative.gov.in/sites/default/files/COI_English.pdf.
[17] The University Laws (Amendment) Bill, 2022, https://prsindia.org/files/bills_acts/bills_states/kerala/2022/Bill%20No.%20132%20of%202022%20KRL.pdf.
[18] The University Laws (Amendment) (No.2) Bill, 2022, https://prsindia.org/files/bills_acts/bills_states/kerala/2022/Bill%20No.%20149%20of%202022%20KRL.pdf.
[19] The Tamil Nadu Universities Laws (Amendment) Bill, 2022, https://prsindia.org/files/bills_acts/bills_states/tamil-nadu/2022/BillNo24of2022TamilNadu.pdf.
[20] The Chennai University (Amendment) Bill, 2022, https://prsindia.org/files/bills_acts/bills_states/tamil-nadu/2022/BillNo25of2022TamilNadu.pdf.
[21] The Tamil Nadu Dr.Ambedkar Law University (Amendment) Bill, 2022, https://prsindia.org/files/bills_acts/bills_states/tamil-nadu/2022/BillNo29of2022TamilNadu.pdf.
[22] The Tamil Nadu Dr.M.G.R. Medical University, Chennai (Amendment) Bill, 2022, https://prsindia.org/files/bills_acts/bills_states/tamil-nadu/2022/BillNo39of2022TamilNadu.pdf.
[23] The Tamil Nadu Agricultural University (Amendment) Bill, 2022, https://prsindia.org/files/bills_acts/bills_states/tamil-nadu/2022/BillNo40of2022TamilNadu.pdf.
[24] The West Bengal University Laws (Amendment) Bill, 2022, https://prsindia.org/files/bills_acts/bills_states/west-bengal/2022/Bill%20No.%209%20of%202022%20WB.pdf.
[25] The West Bengal Krishi Viswa Vidyalaya Laws (Second Amendment) Bill, 2022, https://prsindia.org/files/bills_acts/bills_states/west-bengal/2022/Bill%20No.%2011%20of%202022%20WB.pdf.