स्टेट लेजिसलेटिव ब्रीफ
असम
भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन में उचित मुआवजा और पारदर्शिता का अधिकार (असम संशोधन) बिल, 2023 |
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मुख्य विशेषताएं
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प्रमुख मुद्दे और विश्लेषण
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भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन में उचित मुआवजा और पारदर्शिता का अधिकार (असम संशोधन) बिल, 2023 को 14 सितंबर, 2023 को असम विधानसभा में पेश किया गया। बिल संसद में पारित भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन में उचित मुआवजा और पारदर्शिता का अधिकार एक्ट, 2013 में असम राज्य से संबंधित प्रावधानों में संशोधन करता है। |
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भाग क: बिल की मुख्य विशेषताएं
संदर्भ
संविधान के तहत, संपत्ति का अधिग्रहण समवर्ती सूची के तहत आता है, जिसका अर्थ यह है कि संसद और राज्य, दोनों अधिग्रहण पर कानून बना सकते हैं।[1] भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन में उचित मुआवजा और पारदर्शिता का अधिकार एक्ट, 2013 (2013 का एक्ट) भूमि अधिग्रहण को प्रशासित करने वाला मुख्य केंद्रीय कानून है।[2] कुछ राज्यों के पास अधिग्रहण से संबंधित अपने खुद के कानून हैं या उन्होंने कुछ बदलावों के साथ 2013 के एक्ट को अपनाया है। 2013 के एक्ट के तहत, सरकार निजी स्वामित्व वाली भूमि का अधिग्रहण कर सकती है। ऐसा अधिग्रहण सरकारी, निजी कंपनियों या सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी) के लिए किया जा सकता है, लेकिन भूमि का उपयोग सार्वजनिक उद्देश्य के लिए किया जाना चाहिए। अगर अधिग्रहण किसी निजी कंपनी या पीपीपी के लिए है, तो भूस्वामियों की सहमति प्राप्त की जानी चाहिए। यह निर्धारित करने के लिए एक सामाजिक प्रभाव आकलन (एसआईए) किया जाना चाहिए कि क्या परियोजना के संभावित लाभ अधिग्रहण की सामाजिक लागत से अधिक हैं। भूस्वामियों को मुआवजा दिया जाना चाहिए। प्रत्येक अधिग्रहण के लिए प्रभावित परिवारों का पुनर्वास और पुनर्स्थापन किया जाना चाहिए। 2013 के एक्ट और राज्य कानूनों के अतिरिक्त 13 केंद्रीय कानून हैं जिनमें रेलवे, विशेष आर्थिक क्षेत्र और राष्ट्रीय राजमार्ग जैसे विशिष्ट क्षेत्रों में भूमि अधिग्रहण के प्रावधान हैं। 2013 के एक्ट के तहत मुआवजे और पुनर्वास एवं पुनर्स्थापन से संबंधित प्रावधानों को इन 13 कानूनों में भी शामिल किया गया है।[3]
महाराष्ट्र, गुजरात और तमिलनाडु सहित कई राज्यों ने 2013 के एक्ट में अपने संबंधित राज्य से जुड़े प्रावधानों में संशोधन किया है।[4],[5] ये संशोधन कुछ श्रेणियों की परियोजनाओं हेतु अधिग्रहित भूमि को एसआईए, सहमति, खाद्य सुरक्षा प्रावधानों और पुनर्वास और पुनर्स्थापन (आर एंड आर) संबंधी प्रावधानों से छूट देते हैं। रक्षा, ग्रामीण अवसंरचना, किफायती आवास, औद्योगिक गलियारे और अवसंरचना से संबंधित परियोजनाओं को यह छूट दी गई है। इसके अलावा जिन पीपीपी में जमीन पर सरकार का स्वामित्व है, उसे भी यह छूट है (अनुलग्नक में तालिका 2 देखें)।
मुख्य विशेषताएं
राष्ट्रीय सुरक्षा परियोजनाओं को छूट: एक्ट सार्वजनिक उद्देश्य के लिए भूमि अधिग्रहण से पहले एसआईए को अनिवार्य करता है। इस अध्ययन में निम्नलिखित शामिल हैं: (i) यह आकलन करना कि क्या प्रस्तावित अधिग्रहण कोई सार्वजनिक उद्देश्य पूरा करता है, (ii) प्रभावित परिवारों का अनुमान, और (iii) भूमि, सार्वजनिक और निजी घर और सामान्य संपत्ति किस सीमा तक प्रभावित हो सकती हैं। इसके अतिरिक्त, यह असाधारण परिस्थितियों को छोड़कर, सिंचित बहुफसली भूमि के अधिग्रहण पर रोक लगाता है। अगर सार्वजनिक-निजी परियोजनाओं और निजी प्रतिष्ठानों के लिए भूमि का अधिग्रहण किया जा रहा है, तो क्रमशः 70% और 80% भूस्वामियों की सहमति जरूरी होगी। बिल राष्ट्रीय सुरक्षा या रक्षा हेतु महत्वपूर्ण परियोजनाओं के लिए अधिग्रहित भूमि को इन प्रावधानों से छूट देता है, जिसमें रक्षा या रक्षा उत्पादन की तैयारी भी शामिल है। यह उपरोक्त उद्देश्यों के लिए भूमि अधिग्रहण के मामले में पुनर्वास और पुनर्स्थापन की आवश्यकता को भी हटाता है। इसके बदले राज्य सरकार मुआवजे के रूप में एकमुश्त राशि का भुगतान करेगी।
जांच के बिना भूमि देना: 2013 के एक्ट के तहत, कलेक्टर को नोटिस देना होगा और प्रस्तावित भूमि अधिग्रहण पर सार्वजनिक आपत्तियों की जांच करनी होगी। जांच के बाद कलेक्टर भूमि का वास्तविक क्षेत्र, भूमि का मुआवजा और भूमि में रुचि रखने वाले व्यक्तियों के बीच मुआवजे का विभाजन निर्धारित करेगा। बिल के अनुसार, अगर सभी संबंधित व्यक्तियों ने लिखित में एक समझौता कर लिया है तो कलेक्टर किसी जांच के बिना यह कार्य कर सकता है।
मुआवजे के दावे: एक्ट के तहत, अगर भूमि 2013 के एक्ट के लागू होने से पहले अधिग्रहित की गई थी और तब तक अधिकांश भूमि जोत के लिए मुआवजे का भुगतान नहीं किया गया था, तो निर्दिष्ट लाभार्थी 2013 के एक्ट के अनुसार मुआवजे के हकदार होंगे। बिल में प्रावधान है कि लाभार्थियों को 2013 के एक्ट के अनुसार मुआवजा तभी मिलेगा, जब उनकी जमीन को कानून के लागू होने से कम से कम पांच साल पहले अधिग्रहित किया गया हो। इस अवधि में कानूनी कार्यवाही के परिणामस्वरूप होने वाला विलंब शामिल नहीं होगा।
अधिग्रहित भूमि की वापसी: एक्ट में प्रावधान है कि अगर अधिग्रहित भूमि, भूमि पर कब्ज़ा लेने की तारीख से पांच साल तक प्रयोग नहीं की जाती है तो उसे मूल मालिकों, उनके कानूनी उत्तराधिकारियों या सरकारी भूमि बैंक को वापस कर दिया जाना चाहिए। इसके बजाय बिल में प्रावधान है कि अप्रयुक्त भूमि को पांच साल या परियोजना स्थापित करने के लिए निर्दिष्ट अवधि, जो भी बाद में हो, के बाद वापस किया जाना चाहिए।
भूमि का स्वैच्छिक अधिग्रहण: बिल राज्य सरकार को यह अनुमति देता है कि वह सार्वजनिक उद्देश्यों के लिए भूमि बेचने के इच्छुक भूस्वामियों से भूमि अधिग्रहण हेतु एक समझौता कर सकती है। जहां भूमि मालिकों के अलावा अन्य परिवार ऐसे अधिग्रहण से प्रभावित होते हैं, वहां राज्य सरकार उनके पुनर्वास और पुनर्स्थापन के लिए एकमुश्त राशि का भुगतान भी करेगी।
छूट: बिल के प्रावधान असम भूमि (मांग और अधिग्रहण) एक्ट, 1964 के तहत अधिग्रहण पर लागू नहीं होंगे। 1964 का एक्ट राज्य सरकार को मुख्य रूप से बाढ़ नियंत्रण कार्यों के लिए भूमि की मांग और अगर जरूरी हो तो अधिग्रहण की अनुमति देता है। हालांकि 2013 के एक्ट के मुआवजे और पुनर्वास संबंधी प्रावधानों को ऐसे अधिग्रहण पर लागू किया जा सकता है। ऐसा राज्य विधानसभा द्वारा प्रस्ताव पारित होने के बाद ही किया जा सकता है।
भाग ख: प्रमुख मुद्दे और विश्लेषण
बिल की आवश्यकता
2013 के एक्ट के तहत, भूमि केवल सार्वजनिक उद्देश्यों के लिए अधिग्रहित की जा सकती है। इनमें निम्नलिखित से संबंधित परियोजनाएं शामिल हैं: (i) राष्ट्रीय सुरक्षा, (ii) अवसंरचना, और (iii) कुछ विकास कार्य।2 यह निर्धारित करने के लिए एसआईए किया जाना चाहिए कि प्रस्तावित अधिग्रहण से लाभ सामाजिक लागत से अधिक है या नहीं। अगर अधिग्रहित भूमि बहुफसली सिंचित भूमि है तो यह राज्य सरकार द्वारा अधिसूचित सीमा से अधिक नहीं होनी चाहिए। अगर भूमि पीपीपी या निजी कंपनियों के लिए अधिग्रहित की जा रही है, तो उन्हें क्रमशः 70% या 80% भूस्वामियों की सहमति प्राप्त करनी होगी। बिल राष्ट्रीय सुरक्षा या देश की रक्षा के लिए महत्वपूर्ण परियोजनाओं को एसआईए, सहमति संबंधी शर्तों और बहु-फसली सिंचित भूमि के अधिग्रहण पर प्रतिबंध से छूट देता है। इससे कुछ मुद्दे उठते हैं, जिन पर यहां चर्चा की जा रही है।
रक्षा या राष्ट्रीय सुरक्षा परियोजनाओं के लिए भूमि अधिग्रहण मौजूदा तात्कालिकता खंड के अंतर्गत आता है
बिल के उद्देश्यों और कारणों के विवरण के अनुसार, संशोधन यह सुनिश्चित करने का प्रयास करते हैं कि सार्वजनिक उद्देश्य की परियोजनाओं के लिए भूमि समय पर उपलब्ध हो। इसलिए राष्ट्रीय सुरक्षा या रक्षा के लिए महत्वपूर्ण परियोजनाओं को 2013 के एक्ट के तहत कुछ आवश्यकताओं से छूट दी जा रही है। हालांकि 2013 का एक्ट पहले ही रक्षा या राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित तात्कालिता की स्थिति में त्वरित भूमि अधिग्रहण का प्रावधान करता है (कलेक्टर द्वारा नोटिस प्रकाशित करने के 30 दिनों के बाद)। तात्कालिता से संबंधित प्रावधानों के कारण सरकार को अधिग्रहण के लिए एसएआई करने से छूट मिल जाती है। हालांकि अगर जमीन को तात्कालिता के खंड के जरिए अधिग्रहित किया गया है तो मुआवजे का 80% अग्रिम भुगतान किया जाता है। इसके अलावा भूस्वामियों को कुल मुआवजे का 75% अतिरिक्त भुगतान किया जाता है।
छूट रक्षा और राष्ट्रीय सुरक्षा परियोजनाओं में देरी को कम करने में मदद नहीं कर सकती
बिल में दी गई छूट से भूमि अधिग्रहण में लगने वाले समय में कोई खास कमी नहीं आएगी। 2013 के एक्ट के तहत, अधिग्रहण प्रक्रिया को पूरा करने के लिए आवश्यक अधिकतम समय 50 महीने है। बिल में प्रस्तावित बदलावों से यह समय घटकर 42 महीने रह जाएगा। इसके अलावा, ऐसी परियोजनाओं में देरी केवल भूमि अधिग्रहण के कारण नहीं होती है। रक्षा मंत्रालय के अनुसार (2019), परियोजना में देरी के कारणों में वन मंजूरी प्राप्त करने में लगने वाला समय, जलवायु की स्थितियों और इलाके की चुनौतियां और निर्माण सामग्री की कमी शामिल हैं।[6] उल्लेखनीय है कि रणनीतिक और सुरक्षा-संबंधी परियोजनाओं में तेजी लाने के लिए, अगस्त 2023 में वन संरक्षण एक्ट, 1980 में संशोधन किया गया था ताकि ऐसी परियोजनाओं के लिए और भारत की सीमा के 100 किमी के भीतर वन भूमि को 1980 के एक्ट के प्रावधानों से बाहर रखा जा सके।[7]
2015 में संसद में एक बिल पेश किया गया था, जिसमें अधिग्रहण की प्रक्रिया में ऐसे ही संशोधन प्रस्तावित किए गए थे। उस बिल के तहत भी सरकार कुछ श्रेणी की परियोजनाओं को एसआईए और सहमति की शर्तों और बहु-फसली भूमि के अधिग्रहण पर प्रतिबंधों से छूट दे सकती थी। जिन श्रेणियों की परियोजनाओं को छूट दी गई थी, उनमें रक्षा, किफायती आवास और औद्योगिक गलियारे शामिल हैं।[8] 16वीं लोकसभा के भंग होने के साथ ही यह बिल लैप्स हो गया।
तालिका 1: एलएआरआर एक्ट, 2013 के तहत निर्दिष्ट भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया में किए गए परिवर्तन
2013 के एक्ट में बताए गए कदम* |
एलएआरआर एक्ट 2013 में निर्दिष्ट समय सीमा |
असम संशोधन की समय सीमा |
सामाजिक प्रभाव आकलन |
6 महीने |
राष्ट्रीय सुरक्षा और रक्षा के लिए महत्वपूर्ण परियोजनाओं को एसआईए प्रावधानों से छूट दी गई है |
विशेषज्ञ समिति द्वारा एसआईए रिपोर्ट का मूल्यांकन |
2 महीने |
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सरकार द्वारा भूमि अधिग्रहण एवं एसआईए के प्रस्ताव की जांच |
कोई समय सीमा नहीं |
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मूल्यांकन रिपोर्ट के बाद भूमि अधिग्रहण की प्रारंभिक अधिसूचना |
12 महीने (सरकार इस अवधि को बढ़ा सकती है) |
वही |
भूमि अधिग्रहण हेतु घोषणा |
12 महीने (सरकार इस अवधि को बढ़ा सकती है) |
वही |
भूमि अधिग्रहण का फैसला (मुआवजा) |
12 महीने (सरकार इस अवधि को बढ़ा सकती है) |
वही |
मुआवजा देना |
3 महीने |
वही |
आर एंड आर का मौद्रिक हिस्सा |
6 महीने (मुआवजा चुकाने का समय शामिल)** |
वही |
कुल समय (विस्तार के बिना) |
50 महीने |
42 महीने |
स्रोत: भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन में उचित मुआवजा और पारदर्शिता का अधिकार एक्ट, 2013, भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन में उचित मुआवजा और पारदर्शिता का अधिकार (असम संशोधन) बिल, 2023; पीआरएस।
नोट: *यह गणना मानती है कि अनुक्रमिक प्रक्रिया के प्रत्येक भाग में 2013 के एक्ट के तहत अनुमत अधिकतम समय लगेगा। कुछ अन्य शर्तें इस तालिका में उल्लिखित चरणों के समानांतर चलती हैं। उल्लेखनीय है कि 2013 का एक्ट कुछ प्रक्रियाओं के लिए समय सीमा बढ़ाने की अनुमति देता है, और बिल इन प्रावधानों को बरकरार रखता है। **जमीन का कब्ज़ा मुआवजे के भुगतान (सौंपे जाने से 3 महीने की समय सीमा के साथ) और पुनर्वास के मौद्रिक पहलू प्रदान करने (सौंपे जाने से 6 महीने की समय सीमा के भीतर) के बाद दिया जाएगा।
भूमि का स्वैच्छिक अधिग्रहण
बिल में एक प्रावधान जोड़ा गया है जिसके तहत राज्य सरकार सार्वजनिक उद्देश्यों के लिए भूमि बेचने के इच्छुक भूस्वामियों से भूमि अधिग्रहण करने के लिए एक समझौता कर सकती है। हालांकि अधिग्रहण खरीदारी से अलग है। एक इच्छुक खरीदार और विक्रेता के बीच लेनदेन एक खरीद/बिक्री है। अधिग्रहण तब होता है, जब कोई ज़मीन मालिक अपनी ज़मीन छोड़ने को तैयार नहीं होता है, और परिणामस्वरूप, सरकार जबरन उससे ज़मीन का अधिग्रहण कर लेती है। अगर कोई भूस्वामी अपनी ज़मीन सरकार को बेचने को तैयार है, तो यह स्पष्ट नहीं है कि ऐसी ज़मीन का अधिग्रहण क्यों किया जाना चाहिए।
आर एंड आर के बदले मुआवजा देने से कानून की भावना कमजोर हो सकती है
बिल के तहत राज्य सरकार को राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण परियोजनाओं के लिए पुनर्वास और पुनर्स्थापन (आर एंड आर) प्रदान करने के बदले मुआवजा देना होगा। इससे कानून की भावना कमजोर हो सकती है। 2013 के एक्ट की प्रस्तावना के अनुसार प्रभावित लोगों को विकास में सक्रिय भागीदार बनाने के लिए आर एंड आर महत्वपूर्ण है। राष्ट्रीय पुनर्वास और पुनर्स्थापन नीति 2007 में कहा गया है कि आर एंड आर प्रभावित परिवारों को अपने जीवन का पुनर्निर्माण करने और कमजोर समुदायों के अधिकारों की रक्षा करने में मदद करता है।[9]
ग्रामीण विकास से संबंधित स्टैंडिंग कमिटी, जिसने भूमि अधिग्रहण पुनर्वास और पुनर्स्थापन बिल, 2011 की समीक्षा की थी, ने सुझाव दिया था कि राज्य सरकारों को मुआवजे और आर एंड आर में संशोधन का अधिकार देने वाले प्रावधान कानून की भावना के अनुसार होने चाहिए।[10] रक्षा संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (2005) ने भी रक्षा मंत्रालय को अधिग्रहित भूमि से विस्थापित लोगों के पुनर्वास और पुनर्स्थापन के लिए उचित पहल करने का सुझाव दिया था।[11]
सरकारी कर्मचारियों को जवाबदेह ठहराने की सीमा बढ़ा दी गई है
2013 के एक्ट के तहत, अगर कोई सरकारी कर्मचारी अपराध करता है, तो सरकारी विभाग के प्रमुख को दोषी माना जाएगा, जब तक कि वह यह प्रदर्शित न कर दे कि उसने पूरी मेहनत से आवश्यक कदम उठाए हैं। किसी कंपनी के निदेशकों और किसी फर्म के भागीदारों के लिए समान प्रावधान मौजूद हैं। बिल सरकारी अधिकारियों से संबंधित प्रावधान में संशोधन करते हुए कहता है कि अगर कोई सरकारी कर्मचारी 2013 के एक्ट के तहत अपराध करता है, तो उस पर मुकदमा चलाने से पहले सरकार की पूर्व मंजूरी की आवश्यकता होगी। इससे सरकारी कर्मचारियों को जवाबदेह माने जाने की सीमा रेखा बढ़ सकती है।
उल्लेखनीय है कि यह लोकपाल और लोकायुक्त एक्ट 2013 से भिन्न है, जहां अभियोजन के लिए पूर्व मंजूरी की आवश्यकता लोकपाल से होती है, न कि सरकार से।[12]
अनुलग्नक
तालिका 2: भूमि अधिग्रहण एक्ट, 2013 में राज्य संशोधनों के बीच तुलना
असम (बिल) |
आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तेलंगाना[13] |
महाराष्ट्र, गुजरात4 |
हरियाणा[14] |
झारखंड[15] |
तमिलनाडु5 |
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ऐसी परियोजनाएं जिन्हें (i) सहमति संबंधी प्रावधानों, (ii) सामाजिक प्रभाव मूल्यांकन, (iii) खाद्य सुरक्षा प्रावधानों से बाहर रखा जा सकता है |
राष्ट्रीय सुरक्षा या रक्षा |
(i) राष्ट्रीय सुरक्षा या रक्षा, (ii) ग्रामीण अवसंरचना (iii) किफायती आवास, (iv) औद्योगिक गलियारे और (v) अवसंरचना परियोजनाएं |
(i) राष्ट्रीय सुरक्षा या रक्षा, (ii) ग्रामीण अवसंरचना (iii) किफायती आवास, (iv) औद्योगिक गलियारे और (v) अवसंरचना परियोजनाएं |
निर्दिष्ट नहीं |
(i) सरकारी अवसंरचना परियोजनाएं (ii) परिवहन परियोजनाएं, और (iii) आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए आवास |
निर्दिष्ट नहीं |
पुनर्स्थापन एवं पुनर्वास के बदले मुआवजा |
हां; कुछ परियोजनाओं के लिए |
हां; कुछ परियोजनाओं के लिए |
हां; कुछ परियोजनाओं के लिए |
नहीं |
नहीं |
नहीं |
कम उपयोग की गई भूमि को पांच वर्ष या परियोजना स्थापित करने के लिए निर्दिष्ट अवधि, जो भी बाद में हो, के भीतर वापस करना |
हां |
हां |
नहीं; कम उपयोग की गई भूमि को केवल पांच वर्षों के भीतर वापस किया जा सकता है |
नहीं; कम उपयोग की गई भूमि को केवल पांच वर्षों के भीतर वापस किया जा सकता है |
नहीं; कम उपयोग की गई भूमि को केवल पांच वर्षों के भीतर वापस किया जा सकता है |
नहीं; कम उपयोग की गई भूमि को केवल पांच वर्षों के भीतर वापस किया जा सकता है |
किसी सरकारी कर्मचारी पर मुकदमा चलाने से पहले सरकार की पूर्व अनुमति की आवश्यकता होगी |
हां |
हां |
हां |
हां |
नहीं |
नहीं |
स्रोत: संबंधित राज्य कानूनों के लिए संबंधित एंडनोट्स देखें; पीआरएस।
[1]. List III (42), Seventh Schedule, Constitution of India.
[2]. The Right to Fair Compensation and Transparency in Land Acquisition, Rehabilitation and Resettlement Act, 2013.
[3]. The Right to Fair Compensation and Transparency in Land Acquisition, Rehabilitation and Resettlement (Removal of Difficulties) Order, 2015.
[4]. The Right to Fair Compensation and Transparency in Land Acquisition, Rehabilitation and Resettlement (Maharashtra Amendment) Act, 2018, The Right to Fair Compensation and Transparency in Land Acquisition, Rehabilitation and Resettlement (Gujarat Amendment) Act, 2018.
[5]. The Right to Fair Compensation and Transparency in Land Acquisition, Rehabilitation and Resettlement (Tamil Nadu Amendment) Act, 2014.
[6]. Report No. 50: Provision of all-weather road connectivity under Border Roads Organisation (BRO) and other agencies up to international borders as well as the strategic areas including approach roads an appraisal, Standing Committee on Defence, February 12, 2019.
[8]. The Right to Fair Compensation and Transparency in Land Acquisition, Rehabilitation and Resettlement (Second Amendment) Bill, 2015.
[10]. 31st Report: The Land Acquisition, Rehabilitation and Resettlement Bill, 2011, Standing Committee on Rural Development, May 17, 2012.
[11]. 13th Report: A critical review of rehabilitation of displaced persons, Standing Committee on Defence, August 3. 2006.
[12]. Clause 23, The Lokpal, and Lokayuktas Act 2013.
[13]. The Right to Fair Compensation and Transparency in Land Acquisition, Rehabilitation and Resettlement (Andhra Pradesh Amendment) Act, 2018, The Right to Fair Compensation and Transparency in Land Acquisition, Rehabilitation and Resettlement (Karnataka Amendment) Act, 2019, The Right to Fair Compensation and Transparency in Land Acquisition, Rehabilitation and Resettlement (Telangana Amendment) Act, 2016.
[14]. The Right to Fair Compensation and Transparency in Land Acquisition, Rehabilitation and Resettlement (Haryana Amendment) Act, 2018.
[15]. The Right to Fair Compensation and Transparency in Land Acquisition, Rehabilitation and Resettlement (Jharkhand Amendment) Act, 2018.
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