• हिमाचल प्रदेश जलविद्युत उत्पादन पर जल उपकर बिल, 2023 को 14 मार्च, 2023 को हिमाचल प्रदेश विधानसभा में पेश किया गया और 16 मार्च, 2023 को पारित किया गया। यह 15 फरवरी को जारी हिमाचल प्रदेश जलविद्युत उत्पादन पर जल उपकर अध्यादेश, 2023 का स्थान लेता है। बिल राज्य में जलविद्युत उत्पादन पर उपकर लगाने का प्रयास करता है। बिल की प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं:
  • जल उपकर: जलविद्युत उत्पादन की प्रक्रिया के दौरान निकाले गए पानी की मात्रा पर उपकर लगाया जाएगा। यह सरकारी विभागों, स्थानीय निकायों, साथ ही कंपनियों (जिन्हें उपयोगकर्ता कहा जाता है) द्वारा संचालित जलविद्युत परियोजनाओं पर लागू होगा। निकाले गए पानी की मात्रा को परियोजना के प्रवेश और निकास बिंदुओं पर जल स्तर के अंतर के आधार पर मापा जाएगा। उपकर की दर राज्य सरकार द्वारा अधिसूचित की जाएगी। बिल उपकर लगाने के लिए राज्य जल उपकर आयोग की स्थापना करता है। आयोग की स्थापना होने तक, जल शक्ति विभाग के सचिव के पास आयोग की शक्तियां होंगी, और वह आयोग के तौर पर काम करेगा।
  • आयोग में पंजीकरण: जलविद्युत उत्पादन के लिए पानी निकालने के इच्छुक उपयोगकर्ताओं को आयोग में पंजीकरण कराना होगा। ऐसे उपयोगकर्ता आयोग को एक परियोजना रिपोर्ट प्रस्तुत करेंगे, जिसे ऊर्जा निदेशक या केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण या किसी अन्य प्राधिकरण, जैसा भी मामला हो, द्वारा स्वीकृत किया जाएगा। मौजूदा परियोजनाओं को बिल के प्रावधान लागू होने की तारीख से एक महीने के भीतर पंजीकरण के लिए आवेदन करना होगा। आयोग को आवेदन के एक महीने के भीतर इन मौजूदा परियोजनाओं को पंजीकरण प्रदान करना होगा।
  • निकाले गए पानी का माप: आयोग जलविद्युत उत्पादन के लिए निकाले गए पानी का आकलन करेगा और उपकर की राशि की गणना करेगा। इसके लिए आयोग जलविद्युत परियोजना के परिसर के भीतर एक फ्लो मेजरिंग डिवाइस  लगवाएगा। उपयोगकर्ता इसे लगवाने की लागत का वहन करेंगे। निकाले गए पानी के आकलन के लिए आयोग कोई भी अप्रत्यक्ष तरीका अपना सकता है। आयोग उपकर से संबंधित विवादों पर फैसला करेगा।
  • अगर परिसर में लगे डिवाइस को कोई नुकसान पहुंचता है तो उपयोगकर्ता उसे बदलने के लिए जिम्मेदार होगा। ऐसा नहीं करने पर 50,000 रुपए का जुर्माना लगेगा। अगर कोई उपयोगकर्ता उपकर का भुगतान करने में असफल रहता है तो आयोग द्वारा निर्धारित दंड लगाया जाएगा। आयोग के फैसलों का उल्लंघन करने की स्थिति में 10 लाख रुपए तक का जुर्माना लगाया जा सकता है। लगातार डिफॉल्ट करने पर प्रतिदिन 5,000 रुपए तक का अतिरिक्त जुर्माना भी लगाया जा सकता है। जुर्माना लगाने से पहले आयोग को सुनवाई का मौका देना होगा।
  • आयोग की संरचना: आयोग में एक अध्यक्ष और अधिकतम चार सदस्य होंगे। इनकी नियुक्ति की अवधि तीन वर्ष होगी। अध्यक्ष को राज्य सरकार के सचिव के पद (वर्तमान या पूर्व) से नीचे का अधिकारी नहीं होना चाहिए। सदस्यों के पास इंजीनियरिंग, वित्त, वाणिज्य, कानून या प्रबंधन के क्षेत्र में कम से कम 15 वर्ष का अनुभव होना चाहिए। कम से कम एक सदस्य को हाइड्रोपावर इंजीनियरिंग के क्षेत्र में चीफ इंजीनियरिंग के पद पर होना चाहिए, या वह कभी इस पद पर रहा हो।
  • नियुक्तियों के लिए खोज समिति: एक खोज समिति आयोग को नियुक्तियों पर सुझाव देगी। राज्य सरकार के मुख्य सचिव, समिति की अध्यक्षता करेंगे। समिति के अन्य सदस्य (i) बिजली, (ii) जल शक्ति, (iii) कानून, और (iv) वित्त विभागों के सचिव होंगे।
  • आयोग की न्यायिक शक्तियां: एक्ट के तहत जांच करते समय या कोई कार्यवाही शुरू करते समय, आयोग के पास सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 के तहत सिविल कोर्ट की शक्तियां होंगी जैसे: (i) गवाहों को समन करना और शपथ दिलाकर उनसे पूछताछ करना, (ii) हलफनामों पर साक्ष्य प्राप्त करना, और (iii) किसी सार्वजनिक रिकॉर्ड की मांग करना।
  • जलविद्युत उत्पादन पर जल उपकर आयोग कोष: आयोग के खर्चों और बिल के उद्देश्यों और कारणों पर होने वाले खर्चों को पूरा करने के लिए बिल के तहत एक कोष की स्थापना की गई है। इस कोष को निम्नलिखित के माध्यम से वित्तपोषित किया जाएगा: (i) राज्य सरकार द्वारा अनुदान या ऋण, (ii) आयोग द्वारा प्राप्त शुल्क, और (iii) राज्य सरकार द्वारा अधिसूचित अन्य स्रोतों से आयोग को प्राप्त होने वाली धनराशि।

 

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