• हिमाचल प्रदेश राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन (संशोधन) बिल, 2023 को 5 जनवरी, 2023 को पेश किया गया। यह बिल हिमाचल प्रदेश राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन एक्ट, 2005 में संशोधन करता है। एक्ट का उद्देश्य राज्य सरकार द्वारा विवेकपूर्ण वित्तीय प्रबंधन सुनिश्चित करना है।
  •  राजस्व घाटा उन्मूलन: एक्ट में राज्य सरकार से 2011-12 तक राजस्व घाटा समाप्त करने और बाद के वर्षों में राजस्व अधिशेष बरकरार रखने की अपेक्षा की गई है। जब राजस्व व्यय, राजस्व प्राप्तियों से अधिक होता है तो राजस्व घाटा होता है। बिल निर्दिष्ट करता है कि राज्य सरकार को: (i) राजस्व घाटा समाप्त करना चाहिए और (ii) राजस्व अधिशेष बरकरार रखना चाहिए। लेकिन बिल में घाटे को खत्म करने के लिए लक्षित वर्ष को हटा दिया गया है।
  • राजकोषीय घाटे की सीमा: राजकोषीय घाटा कुल प्राप्तियों (उधारियों को छोड़कर) की तुलना में कुल व्यय (ऋण अदायगी को छोड़कर) की अधिकता है। इसे आमतौर पर राज्य के सकल घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) के प्रतिशत के रूप में मापा जाता है। एक्ट जीएसडीपी के % के रूप में राजकोषीय घाटे के लिए निम्नलिखित लक्ष्यों को निर्दिष्ट करता है: (i) 2010-11 तक 3.5% या उससे कम, (ii) 2011-12 तक 3% या उससे कम, और (iii) आगामी वर्षों में 3% या उससे कम। बिल इसमें संशोधन करता है और जीएसडीपी के % के रूप में राजकोषीय घाटे के लिए निम्नलिखित लक्ष्य निर्दिष्ट करता है: (i) 2022-23 में 6% या उससे कम, (ii) 2023-24 में 3.5% या उससे कम, और (iii) बाद के वर्षों में 3% या उससे कम।
  • बिल निर्दिष्ट करता है कि पूंजीगत व्यय के लिए केंद्र सरकार द्वारा प्राप्त 50-वर्षीय ब्याज मुक्त ऋणों को राजकोषीय घाटे और बकाया ऋण सीमाओं को लागू करने के लिए उधारी के रूप में नहीं गिना जाएगा। इसके अलावा अगर पिछले वर्ष की कोई अप्रयुक्त उधारी बाद के वर्षों में कैरी फॉरवर्ड की जाती है, तो बिल के तहत राजकोषीय घाटा निर्धारित सीमा से अधिक हो सकता है।
  • बकाया ऋण: एक्ट 2010-11 और 2014-15 के बीच के वर्षों के लिए बकाया ऋण का वार्षिक लक्ष्य निर्धारित करता है। बकाया ऋण राज्य की कुल संचित उधारी को कहा जाता है। बिल इन वार्षिक लक्ष्यों को हटाता है और निर्दिष्ट करता है कि नियमों के अनुसार इसे कम किया जाना चाहिए।
  • लक्ष्यों का पालन न करना: एक्ट निर्दिष्ट करता है कि राष्ट्रीय सुरक्षा के मद्देनजर या प्राकृतिक आपदा के कारण राज्य से धनराशि की अप्रत्याशित मांग होने पर राजस्व घाटा, राजकोषीय घाटा और ऋण के लक्ष्य को पार किया जा सकता है। ऐसे मामलों की घोषणा केंद्र सरकार या राज्य सरकार द्वारा की जाती है। यदि कोई लक्ष्य पार हो जाता है, तो विधानसभा में एक बयान देना होता है। बिल इन लक्ष्यों को पार करने के लिए अतिरिक्त मानदंड के रूप में निम्नलिखित को निर्दिष्ट करता है: (i) विकासात्मक और अन्य अपरिहार्य व्यय में वृद्धि, या (ii) केंद्र सरकार द्वारा अनुमत उधार सीमा में वृद्धि।
  • अनुपालन तंत्र: एक्ट में प्रावधान है कि राज्य सरकार को राजकोषीय सुधार मार्ग की समीक्षा और निगरानी के लिए एक स्वतंत्र तंत्र स्थापित करना चाहिए। बिल यह निर्दिष्ट करने के लिए इसमें संशोधन करता है कि राज्य सरकार अनुपालन की समीक्षा करने के लिए भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (कैग) को सशक्त कर सकती है। ऐसी समीक्षाएं विधानसभा में पेश की जाएंगी।

 

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