स्टेट लेजिसलेटिव ब्रीफ

 

हरियाणा

हरियाणा पुलिस (संशोधन) बिल, 2022

 

मुख्य विशेषताएं

  • बिल राज्य और जिला स्तरीय पुलिस शिकायत अथॉरिटी (पीसीए) की उस शक्ति को समाप्त करता है जिसके तहत वे अपने संज्ञान से पुलिसकर्मियों के खिलाफ दुर्व्यवहार के मामलों की जांच शुरू कर सकती हैं।
  • जिन मामलों में पुलिसकर्मियों ने गैरकानूनी जमावड़ों, प्रदर्शनों या धरनों से निपटने के लिए बल का प्रयोग किया है, उन मामलों में राज्य पीसीए उनके खिलाफ शिकायतों की जांच नहीं करेगी।
  • पुलिसकर्मियों द्वारा बलात्कार या गंभीर चोट को सिर्फ तभी गंभीर दुर्व्यवहार माना जाएगा, जब वह पुलिस कस्टडी में होता है।

प्रमुख मुद्दे और विश्लेषण

  • बिल कई तरह से पीसीए की शक्तियों को सीमित करता है। वह पुलिस द्वारा गंभीर दुर्व्यवहार के मामलों में खुद संज्ञान लेकर जांच शुरू करने की पीसीए की शक्ति को समाप्त करता है। गंभीर दुर्व्यवहार की परिभाषा से बलात्कार की कोशिश को हटाने के लिए, उसे संकुचित किया गया है, और सिर्फ तभी जांच की अनुमति दी गई है, जब पुलिस कस्टडी में बलात्कार हुआ है या गंभीर चोट लगी है।
  • इससे अब पीसीए कम मामलों में पुलिसकर्मियों के खिलाफ जांच कर पाएगी जिससे पुलिस की जवाबदेही पर असर पड़ सकता है।     

 

बिल को 10 अगस्त, 2022 को हरियाणा विधानसभा में पेश किया गया और इसके बाद सिलेक्ट कमिटी को भेज दिया गया। यह बिल हरियाणा पुलिस एक्ट, 2007 में संशोधन करता है जिसमें पुलिस शिकायत अथॉरिटी जैसे प्राधिकरणों की स्थापना के जरिए राज्य पुलिस को रेगुलेट करने का प्रावधान है। बिल इन शिकायत अथॉरिटीज़ की शक्तियों में संशोधन करता है जिनके तहत वे पुलिसकर्मियों के खिलाफ जांच कर सकती हैं।

 

       

भाग क: बिल की मुख्य विशेषताएं

संदर्भ

राज्यों के पास यह अधिकार है कि वे पुलिस को रेगुलेट करने वाले कानून लागू कर सकते हैं, चूंकि यह भारतीय संविधान की राज्य सूची मे आने वाला विषय है।[1] पुलिस एक्ट, 1861 पुलिस को रेगुलेट करता है और कुछ राज्यों ने पुलिस एक्ट के आधार पर अपने खुद के कानूनों को लागू किया है।[2] पिछले कुछ वर्षों के दौरान सर्वोच्च न्यायालय (2006) सहित कई आयोगों ने पुलिस सुधारों का सुझाव दिया है जिससे पुलिस बलों को अधिक कार्य-कुशल, जवाबदेह बनाया जा सके और उन्हें नए किस्म के अपराधों से निपटने के लिए लैस किया जा सके। 2006 में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बाद गृह मंत्रालय ने मॉडल पुलिस एक्ट, 2006 को जारी किया जिसे 1861 के पुलिस एक्ट की जगह लाने का प्रस्ताव था।[3] फरवरी 2022 तक 17 राज्यों ने मॉडल पुलिस एक्ट को लागू किया है।2 

तालिका 1: हरियाणा में राज्य पुलिसकर्मियों के खिलाफ मामले

वर्ष

पंजीकृत मामले

गिरफ्तार

चार्जशीट

मामले वापस/ निस्तारित

ट्रायल पूरा

दोषी

2017

39

0

23

3

4

0

2018

64

0

26

7

2

1

2019

61

45

37

1

0

0

2020

49

37

35

1

1

0

2021

43

15

9

2

0

0

स्रोत: भारत में अपराध, राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड्स ब्यूरो (2017-2021); पीआरएस।

 

पुलिस की जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए एक तरीका यह है कि पुलिस के दुर्व्यवहार या अपनी शक्तियों के दुरुपयोग के मामलों की जांच एक स्वतंत्र निकाय द्वारा की जाए। पुलिस की जवाबदेही सुनिश्चित करने और पुलिस की ज्यादातियों पर नजर रखने के लिए कई व्यवस्थाएं (जैसे पुलिस की विभागीय जांच) मौजूद हैं कि पुलिसकर्मियों के खिलाफ शिकायत दर्ज की जा सके। हालांकि यह देखा गया है कि ऐसे मामलों में पुलिस विभागों की जांच पक्षपातपूर्ण होती है और अनुचित तरीके से की जाती है।[4] सर्वोच्च न्यायालय (2006) और अन्य विशेषज्ञ निकायों ने सुझाव दिया था कि पुलिस शिकायत अथॉरिटीज़ (पीसीएज़) की स्थापना की जाए। ये ऐसे स्वतंत्र निकाय होंगे जो पुलिस के दुर्व्यवहार के मामलों (जैसे पुलिस कस्टडी में गंभीर चोट लगना) की जांच करेंगे। [5] फरवरी 2022 तक 31 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में राज्य और जिला स्तर पर पीसीएज़ की स्थापना हो गई थी।2

मुख्य विशेषताएं

 

हरियाणा पुलिस एक्ट, 2007 के तहत राज्य और जिला स्तर पर पीसीएज़ का गठन किया गया है। ये प्राधिकरण या तो स्वतः संज्ञान (अपने आप) लेकर या पीड़ित या उसकी ओर से किसी अन्य व्यक्ति या राष्ट्रीय/राज्य मानवाधिकार आयोगों की शिकायत पर गंभीर दुर्व्यवहार के आरोपों की जांच कर सकते हैं।[6]  बिल स्वतः संज्ञान लेकर जांच करने की शक्तियों को समाप्त करता है और गंभीर दुर्व्यवहार के उन मामलों की सूची में संशोधन करता है जिनकी जांच पीसीए द्वारा की जा सकती है।6 निम्नलिखित तालिका 2 में बिल द्वारा प्रस्तावित मुख्य परिवर्तनों को प्रस्तुत किया गया है।

तालिका 2: हरियाणा पुलिस (संशोधन) बिल, 2022 द्वारा प्रस्तावित मुख्य परिवर्तन

हरियाणा पुलिस एक्ट, 2007

हरियाणा पुलिस (संशोधन) बिल, 2022

पीसीए द्वारा पुलिसकर्मियों के खिलाफ जांच

राज्य और जिला पीसीए या तो स्वतः संज्ञान लेकर या पीड़ित या उसकी ओर से किसी अन्य व्यक्ति या राष्ट्रीय/राज्य मानवाधिकार आयोगों की शिकायत पर गंभीर दुर्व्यवहार के आरोपों की जांच कर सकती हैं।

स्वतः संज्ञान लेकर जांच शुरू करने की शक्तियां समाप्त करता है।

गंभीर दुर्व्यवहार

गंभीर दुर्व्यवहार में निम्नलिखित शामिल हैं: (i) पुलिस कस्टडी में मृत्यु, (ii) बलात्कार या बलात्कार की कोशिश, (iii) गंभीर चोट, और (iv) भारतीय दंड संहिता (आईपीसी), 1860 में दर्ज किसी भी अपराध, जिसकी न्यूनतम सजा 10 वर्ष है, में पुलिस अधिकारी द्वारा कार्रवाई न करना।

समाप्त करता है: (i) भारतीय दंड संहिता (आईपीसी), 1860 में दर्ज किसी भी अपराध, जिसकी न्यूनतम सजा 10 वर्ष है, में पुलिस अधिकारी द्वारा कार्रवाई न करना, और (ii) बलात्कार की कोशिश। सिर्फ पुलिस कस्टडी में गंभीर चोट या बलात्कार को गंभीर दुर्व्यवहार माना जाएगा।    

पीसीएज़ की जांच से छूट के मामले

  • राज्य पीसीए की जांच के दायरे से किसी मामले को छूट नहीं है।
  • जिला पीसीए के लिए निम्नलिखित मामलों में छूट है:
  1. जहां दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 के सेक्शन 173 के तहत कोई रिपोर्ट संबंधित अदालत में दायर कर दी गई है;
  2. मामला राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग/राज्य मानवाधिकार आयोग/राज्य अनुसूचित जाति आयोग में लंबित है या वे उसे निपटा चुके हैं;
  3. घटना के कथित रूप से घटने के एक वर्ष से ज्यादा समय बीतने के बाद मामला उसके क्षेत्राधिकार में आया है; और
  4. जिन मामलों में पुलिसकर्मियों ने गैरकानूनी जमावड़े, प्रदर्शन, धरने, किसी सार्वजनिक रास्ते को बंद करने या अनिवार्य सेवाओं में रुकावट पैदा करने जैसी स्थितियों से निपटने के लिए बल का इस्तेमाल किया है  
  • जिला पीसीए की ही तरह राज्य पीसीए भी कुछ मामलों में जांच नहीं कर सकतीं। 
  • जिला पीसीए कुछ अथॉरिटीज़ में लंबित या उनके द्वारा निपटाए गए मामलों की जांच नहीं कर सकतीं। ये अथॉरिटीज़ हैं, राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग, राष्ट्रीय/राज्य महिला आयोग और राष्ट्रीय/राज्य अल्पसंख्यक आयोग या राज्य लोकायुक्त।

मामलों की जांच के लिए समय सीमा

  • जिला पीसीए: घटना के घटित होने के एक वर्ष बाद मामलों की जांच नहीं की जाएगी।
  • राज्य पीसीए: दिया नहीं गया है।
  • जिला पीसीए: समय सीमा को बढ़ाकर तीन वर्ष करता है।

 

  • राज्य पीसीए: घटना के घटित होने के तीन वर्ष बाद मामलों की जांच नहीं की जाएगी।.

शिकायत पर फैसला लेने की समय सीमा

  • जिला पीसीए: शिकायत मिलने की तारीख से छह महीने।
  • राज्य पीसीए: दिया नहीं गया है।

राज्य पीसीए के पास भी छह महीने की समय सीमा होगी।

 

 

भाग ख: प्रमुख मुद्दे और विश्‍लेषण

बिल पुलिस दुर्व्यवहार के आरोपों में जांच को सीमित कर सकता है

हरियाणा पुलिस एक्ट, 2007 में राज्य और जिला स्तर पर पीसीए का प्रावधान है जोकि या तो स्वतः संज्ञान (अपने आप) लेकर या पीड़ित या उसकी ओर से किसी अन्य व्यक्ति या राष्ट्रीय/राज्य मानवाधिकार आयोगों की शिकायत पर पुलिसकर्मियों के खिलाफ गंभीर दुर्व्यवहार के आरोपों की जांच कर सकती हैं।6  बिल पीसीए की स्वतः संज्ञान की शक्तियों को समाप्त करता है, और कुछ मामलों को जांच के दायरे से बाहर करता है, जैसे बलात्कार की कोशिश और गैरकानूनी जमावड़ों से निपटने के लिए पुलिस द्वारा बल प्रयोग। इस प्रकार वह पीसीए की शक्तियों को सीमित करता है।6  चूंकि पीसीए का उद्देश्य पुलिस की जवाबदेही को सुनिश्चित करना है, यह स्पष्ट नहीं है कि कुछ शक्तियों को सीमित या संकुचित क्यों किया गया है।

जिन मामलों को पीसीए के दायरे से हटाया गया है, उन्हें दर्ज कराने के ए्हें दर्ज कराने के लइ रे माक्यों किया गया है  दायरे से हटाकर, , चूंकि यह लिए पीड़ित व्यक्तियो को दूसरे माध्यमों का इस्तेमाल करना होगा, जैसे जिला मेजिस्ट्रेट, सुपरिंटेंडेंट ऑफ पुलिस (या उच्च अधिकारी), और राष्ट्रीय/राज्य मानवाधिकार आयोग। भारतीय दंड संहिता (आईपीसी), 1860 के तहत पुलिस अधिकारी की कस्टडी में बलात्कार के अपराध के लिए न्यूनतम 10 वर्ष की कैद है, जोकि उम्रकैद और जुर्माने तक बढ़ाई जा सकती है।[7]  हालांकि शिकायतों के लिए इन माध्यमों के साथ कुछ समस्याएं हैं। राष्ट्रीय पुलिस आयोग (1979) ने गौर किया था कि पुलिस की विभागीय जांच में पुलिसकर्मियों के साथ पक्षपात किया जाता है और ऐसी जांच में कई कमियां होती हैं जैसे गवाहों की तहकीकात लापरवाही से की जाती है, और उनके बयान रिकॉर्ड नहीं किए जाते।4  इसके अतिरिक्त, संभव है कि पीड़ित व्यक्ति में यह हिम्मत न हो कि वह सुपरिंटेंडेंट ऑफ पुलिस के पास शिकायत दर्ज करा सके। ऐसी समस्याओं को हल करने के लिए स्वतंत्र निकाय के रूप में पीसीए को स्थापित करने का प्रस्ताव रखा गया था। पुलिस एक्ट ड्राफ्टिंग कमिटी, 2004 (चेयरपर्सन: सोली सोराबजी) ने सुझाव दिया था कि मौजूदा व्यवस्थाओं के अतिरिक्त स्वतंत्र पुलिस जवाबदेही आयोगों के जरिए पुलिस की जवाबदेही सुनिश्चित की जानी चाहिए ताकि वे पुलिस दुर्व्यवहार के मामलों पर नजर रख सकें।[8] 

स्वतः संज्ञान से जांच करने की शक्ति समाप्त करना

बिल पीसीएज़ की उस शक्ति को समाप्त करता है जिसके जरिए वह पुलिसकर्मियों के दुर्व्यवहार की स्वतः संज्ञान से जांच शुरू कर सकती हैं। राष्ट्रीय पुलिस आयोग (1979) ने कहा था कि पुलिस के पास जो शक्तियां (गिरफ्तार करना, तलाशी लेना, जब्त करना) हैं, उसे देखते हुए इस बात की पूरी गुंजाइश होती है कि वे दुर्व्यवहार करने लगें।4  पुलिस दुर्व्यवहार का शिकार बहुत से लोग समाज के कमजोर तबके के होते हैं जिनके पास अपनी शिकायतों को आगे बढ़ाने लायक संसाधन नहीं होते।4 आयोग ने यह भी कहा था कि बड़ी संख्या में पुलिसकर्मी जनता के साथ मिलते-जुलते, काम करते हैं, लेकिन उनके खिलाफ मिलने वाली शिकायतों की संख्या अपेक्षाकृत बहुत कम है। ऐसा इसलिए हो सकता है क्योंकि दुर्व्यवहार की कुछ घटनाओं को अज्ञानता या शिकायत करने की सुविधाओं के अभाव में दर्ज नहीं किया जाता हो।4 स्वतः संज्ञान की शक्तियों को समाप्त करने से, उन स्थितियों में पीसीए दुर्व्यवहार के मामलों की जांच शुरू नहीं कर पाएगी, जिन स्थितियों में शिकायत दर्ज नहीं कराई गई हो। दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग (2007) ने सुझाव दिया था कि राज्य पीसीए के पास ऐसी शक्तियां होनी चाहिए कि वह किसी एजेंसी को दुर्व्यवहार के मामलों की जांच करने को कह सके या उन मामलों की जांच खुद शुरू करे।8  मॉडल पुलिस एक्ट और असम और महाराष्ट्र जैसे राज्य पीसीए को स्वतः संज्ञान से जांच शुरू करने की शक्ति देते हैं।[9]  

जांच के दायरे में आने वाले मामलों की संख्या कम की जा रही है

एक्ट के तहत पीसीए गंभीर दुर्व्यवहार के आरोपों की जांच सकती है, जिसमें पुलिसकर्मियों द्वारा गंभीर चोट और बलात्कार या बलात्कार की कोशिश शामिल हैं। बिल इसमें संशोधन करता है और प्रावधान करता है कि पीसीए सिर्फ पुलिस कस्टडी में गंभीर चोट और बलात्कार के आरोपों की जांच करेगी। सर्वोच्च न्यायालय (2021) ने पुलिस कस्टडी को पुलिस अधिकारियों की विशेष कस्टडी के रूप में परिभाषित किया है। ऐसी कस्टडी मुख्य रूप से मामले की जांच में कस्टोडियल पूछताछ के लिए होती है।[10]  अगर पीसीए का कार्य पुलिस की ज्यादतियों पर नजर रखना है तो यह स्पष्ट नहीं है कि सिर्फ उन्हीं घटनाओं की जांच क्यों की जानी चाहिए, जो पुलिस कस्टडी में घटती हैं।  

सर्वोच्च न्यायालय (2006) ने सुझाव दिया था कि राज्य पीसीए को गंभीर दुर्व्यवहार के उन आरोपों पर गौर करना चाहिए जिनमें पुलिस कस्टडी में गंभीर चोट पहुंची हो या मृत्यु या बलात्कार हुए हों।5  जिला पीसीए अधिकारों के गंभीर दुरुपयोग से संबंधित मामलों पर गौर कर सकती है। अदालत के सुझावों के बाद मॉडल पुलिस एक्ट को जारी किया गया जिसमें ऐसे मामलों को गंभीर दुर्व्यवहार के तौर पर परिभाषित किया गया है जिनमें पुलिस कस्टडी में मौत, गंभीर चोट, बलात्कार या बलात्कार की कोशिश शामिल हैं। उत्तराखंड और कर्नाटक जैसे राज्यों में गंभीर चोट के मामले पुलिस कस्टडी तक सीमित नहीं हैं, और छत्तीसगढ़ और तमिलनाडु में ऐसे मामले पुलिस कस्टडी तक ही सीमित हैं।9 असम और महाराष्ट्र जैसे अन्य राज्यों में बलात्कार के मामले पुलिस कस्टडी तक सीमित नहीं हैं।9

गंभीर दुर्व्यवहार की परिभाषा से मामलों को बाहर करना

एक्ट के तहत राज्य और जिला स्तरीय पीसीए पुलिसकर्मियों के खिलाफ गंभीर दुर्व्यवहार के आरोपों की जांच कर सकती हैं। गंभीर दुर्व्यवहार में निम्नलिखित शामिल हैं: (i) बलात्कार या बलात्कार करने की कोशिश, (ii) गंभीर चोट, और (iii) आईपीसी में दर्ज किसी भी अपराध, जिसकी न्यूनतम सजा 10 वर्ष है, में पुलिस अधिकारी द्वारा कार्रवाई न करना। बिल बलात्कार की कोशिश और आईपीसी में दर्ज किसी भी अपराध, जिसकी न्यूनतम सजा 10 वर्ष है, में पुलिस अधिकारी द्वारा कार्रवाई न करने को गंभीर दुर्व्यवहार की श्रेणी से बाहर करता है। यह अस्पष्ट है कि इन मामलों को पीसीए के दायरे से बाहर क्यों किया गया है। बलात्कार की कोशिश आईपीसी के तहत एक दंडनीय अपराध है।[11]  सर्वोच्च न्यायालय (2004) ने गौर किया था कि बलात्कार की कोशिश दंडनीय है क्योंकि यह डर पैदा करती है जो अपने आप में चोट पहुंचाना ही है और अगर अपराधी सफल हो जाता तो उसका नैतिक दोष वही होता।[12] इसके अतिरिक्त मॉडल पुलिस एक्ट और उत्तराखंड और असम जैसे राज्यों के पुलिस कानूनों में बलात्कार की कोशिश को पुलिसकर्मियों द्वारा गंभीर दुर्व्यवहार में वर्गीकृत किया गया है।3,9

कुछ मामलों में पुलिस द्वारा बल प्रयोग के मामलों को बाहर करने का तर्क स्पष्ट नहीं है

एक्ट में प्रावधान है कि जिला पीसीए ऐसे मामलों की जांच नहीं करेगी, जिनमें पुलिसकर्मियों ने गैरकानूनी जमावड़े, प्रदर्शन, धरने, किसी सार्वजनिक रास्ते को बंद करने या अनिवार्य सेवाओं में रुकावट पैदा करने जैसी स्थितियों से निपटने के लिए बल प्रयोग किया है। बिल इस छूट को राज्य पीसीए की जांच पर भी लागू करता है। लेकिन वह यह परिभाषित नहीं करता कि प्रदर्शन या धरना क्या होता है। इसके अतिरिक्त यह स्पष्ट नहीं है कि ऐसे मामलों को राज्य पीसीए की जांच के दायरे से बाहर क्यों किया गया है। राष्ट्रीय पुलिस आयोग (1979) ने कहा था कि पुलिस दुर्व्यवहार पर विभागीय जांच के दौरान कथित कदाचार को दबाने की प्रवृत्ति होती है, जब यह कर्तव्यों को निभाने के दौरान हुआ हो, जैसे दंगाइयों की भीड़ को काबू करने के दौरान बल का अत्यधिक प्रयोग।4  मॉडल पुलिस एक्ट और तमिलनाडु, गुजरात और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में पुलिसकर्मियों के बल प्रयोग जैसे मामलों को जांच के दायरे से बाहर नहीं रखा गया है।3,के मामलों के दौरान 9 

अन्य राज्यों में पीसीएज़: विभिन्न राज्यों में पीसीएज़ की शक्तियों की तुलना तालिका 3 में गई है।

 

अनुलग्नक

तालिका 3: विभिन्न राज्यों में पुलिस शिकायत अथॉरिटी की शक्तियां

 

मॉडल पुलिस एक्ट, 2006

हरियाणा

असम

केरल

उत्तराखंड

छत्तीसगढ़

तमिलनाडु

महाराष्ट्र

गुजरात

कर्नाटक

स्वतः संज्ञान से जांच शुरू करने की शक्ति

हां

राज्य: नहीं

जिला: नहीं

राज्य: हां

राज्य: नहीं

राज्य: नहीं

राज्य: नहीं

राज्य: नहीं

राज्य: हां

राज्य: नहीं

राज्य: हां

जिला: नहीं

जिला: नहीं

जिला: नहीं

*

जिला: नहीं

जिला: हां

जिला: नहीं

जिला: नहीं

पीसीएज़ जिन मामलों की जांच कर सकती हैं, उनमें शामिल हैं

पुलिस कस्टडी में मौत; गंभीर चोट, बलात्कार या बलात्कार की कोशिश, कानूनी प्रक्रिया का पालन किए बिना गिरफ्तारी या हिरासत में लेना

 

पुलिस कस्टडी में मौत; बलात्कार; गंभीर चोट; कानूनी प्रक्रिया का पालन किए बिना कस्टडी या हिरासत में लेना; आईपीसी में दर्ज किसी भी अपराध, जिसकी न्यूनतम सजा 10 वर्ष है, में पुलिस अधिकारी द्वारा कार्रवाई न करना (देखें तालिका के नीचे दिए गए नोट्स)

पुलिस कस्टडी में मौत; गंभीर चोट; छेड़छाड़, बलात्कार या बलात्कार की कोशिश; कानूनी प्रक्रिया का पालन किए बिना गिरफ्तारी या हिरासत में लेना; ब्लैकमेल या वसूली; एफआईआर दर्ज न करना

पुलिस अधिकारियों और सुपरिंटेंडेंट ऑफ पुलिस से ऊंचे ओहदे के लोगों के खिलाफ सभी प्रकार के दुर्व्यवहार, और अन्य अधिकारियों के खिलाफ हिरासत में महिलाओं का यौन उत्पीड़न या मौत, बलात्कार आदि की गंभीर शिकायतें

पुलिस कस्टडी में मौत; गंभीर चोट, बलात्कार या बलात्कार की कोशिश, कानूनी प्रक्रिया का पालन किए बिना गिरफ्तारी या हिरासत में लेना; भ्रष्टाचार

मृत्यु; बलात्कार या बलात्कार की कोशिश; पुलिस कस्टडी में गंभीर चोट 

पुलिस कस्टडी में मौत; बलात्कार; पुलिस कस्टडी में गंभीर चोट

पुलिस कस्टडी में मौत; गंभीर चोट, बलात्कार या बलात्कार की कोशिश, कानूनी प्रक्रिया का पालन किए बिना गिरफ्तारी या हिरासत में लेना; भ्रष्टाचार, वसूली; जमीन या घर हड़पना

परिभाषित नहीं है

 

पुलिस कस्टडी में मौत; गंभीर चोट, बलात्कार या बलात्कार की कोशिश, कानूनी प्रक्रिया का पालन किए बिना गिरफ्तारी या हिरासत में लेना

 

गैरकानूनी जमावड़े में पुलिस कार्रवाई जैसे मामलों को जांच के दायरे से छूट देना 

नहीं

हां (बिल के बाद)

नहीं

नहीं

नहीं

नहीं

नहीं

नहीं

नहीं

नहीं 

अथॉरिटी को घटनाओं की सूचना देने की समय-सीमा

राज्य: नहीं

जिला: नहीं

जिला: 1 वर्ष

राज्य: उपलब्ध नहीं, बिल दोनों के लिए 3 वर्ष करता है

  नहीं

 नहीं

नहीं 

घटना की तारीख से छह महीने

 नहीं

नहीं 

नहीं 

नहीं 

चेयरपर्सन के रूप में पूर्व न्यायाधीश

राज्य: हां

जिला: हां

राज्य: नहीं

जिला: नहीं

राज्य: हां

जिला: नहीं

राज्य: हां

जिला: हां

राज्य: हां

जिला: हां

राज्य: हां**

*

राज्य: नहीं

जिला: नहीं

राज्य: हां

जिला: हां#

राज्य: हां ##

जिला: नहीं:

राज्य: हां

जिला: नहीं

न्यूनतम एक महिला सदस्य

राज्य: हां

जिला: नहीं

राज्य: हां

जिला: नहीं

राज्य: हां

जिला: नहीं

नहीं

राज्य: नहीं

जिला: नहीं

हां

*

राज्य: नहीं

जिला: नहीं

राज्य: नहीं

जिला: नहीं

राज्य: नहीं

जिला: नहीं

राज्य: हां

जिला: नहीं

दुर्व्यवहार रोकने के लिए पुलिस को सामान्य दिशानिर्देश

राज्य: हां

जिला: नहीं

राज्य: नहीं

जिला: नहीं

राज्य: हां

जिला: नहीं

राज्य: नहीं

जिला: नहीं

राज्य: हां

जिला: नहीं

नहीं

*

राज्य: नहीं

जिला: नहीं

राज्य: नहीं

जिला: नहीं

राज्य: नहीं

जिला: नहीं

राज्य: नहीं

जिला: नहीं

अपने कामकाज की वार्षिक सूचना

राज्य: हां

जिला: हां

राज्य: नहीं

जिला: नहीं

राज्य: हां

जिला: हां

राज्य: नहीं

जिला: नहीं

राज्य: हां

जिला: नहीं

राज्य: नहीं

*

राज्य:  नहीं

जिला: नहीं

राज्य: नहीं

जिला: नहीं

राज्य: नहीं

जिला: नहीं

राज्य: हां

जिला: हां

विभागीय जांच की निगरानी/शिकायत पर कार्रवाई की शक्ति

राज्य: हां

जिला: हां

राज्य: नहीं

जिला: नहीं

राज्य: हां

जिला: जांच में देरी के बारे में राज्य अथॉरिटी को बताना

जिला पीसीए अधिकारियों के खिलाफ विभागीय जांच शुरू करने का सुझाव दे सकती है

राज्य: हां

जिला: नहीं

नहीं

*

राज्य: नहीं

जिला: नहीं

राज्य: नहीं

जिला: नहीं

राज्य: नहीं

जिला: हां

राज्य: नहीं

जिला: नहीं

नोट: बिल पुलिस हिरासत में गंभीर चोट और बलात्कार को जोड़ता है, और आईपीसी के 10 साल की न्यूनतम सजा वाले अपराधों में पुलिस निष्क्रियता को हटाता है; *एक्ट में जिला स्तरीय पुलिस शिकायत अथॉरिटी का प्रावधान नहीं है; ** या उच्च न्यायिक सेवा के सेवानिवृत्त न्यायाधीश; # सेवानिवृत्त मुख्य जिला न्यायाधीश; ## या एक सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारी जो गुजरात सरकार के प्रधान सचिव के पद से नीचे का न हो।   

स्रोत: एंडनोट 3,6 और 9 को देखें; पीआरएस।

 

[1]. List II- State List, Seventh Schedule, The Constitution of India.

[2]. Report No. 237: ‘Police - Training, Modernisation and Reforms’, Standing Committee on Home Affairs, February 10, 2022.  

[3]. The Model Police Act, 2006, Ministry of Home Affairs, October 30, 2006.

[4]. First Report, National Police Commission, February 1979.

[5]. Prakash Singh & Ors vs Union of India & Ors, Supreme Court of India, September 22, 2006.

[6]. The Haryana Police Act, 2007; The Haryana Police (Amendment) Bill, 2022.

[7]. Section 376 (2), Indian Penal Code, 1860.

[8]. Fifth Report, Second Administrative Reforms Commission, June 2007.

[9]. Assam Police Act, 2007; Chhattisgarh Police Act 2007; Maharashtra Police Act, 1951; Gujarat Police Act, 1951; Kerala Police Act, 2011; Karnataka Police Act, 1963; Uttarakhand Police Act, 2007; Tamil Nadu Police (Reform) Act, 2013.

[10]. Gautam Navlakha vs National Investigation Agency, Supreme Court of India, May 12, 2021. 

[11]. Section 376 and 511, Indian Penal Code, 1860.

[12]. Koppula Venkat Rao vs State of Andhra Pradesh, Supreme Court of India, March 10, 2004.

 

अस्वीकरणः प्रस्तुत रिपोर्ट आपके समक्ष सूचना प्रदान करने के लिए प्रस्तुत की गई है। पीआरएस लेजिसलेटिव रिसर्च (पीआरएस) के नाम उल्लेख के साथ इस रिपोर्ट का पूर्ण रूपेण या आंशिक रूप से गैर व्यावसायिक उद्देश्य के लिए पुनःप्रयोग या पुनर्वितरण किया जा सकता है। रिपोर्ट में प्रस्तुत विचार के लिए अंततः लेखक या लेखिका उत्तरदायी हैं। यद्यपि पीआरएस विश्वसनीय और व्यापक सूचना का प्रयोग करने का हर संभव प्रयास करता है किंतु पीआरएस दावा नहीं करता कि प्रस्तुत रिपोर्ट की सामग्री सही या पूर्ण है। पीआरएस एक स्वतंत्र, अलाभकारी समूह है। रिपोर्ट को इसे प्राप्त करने वाले व्यक्तियों के उद्देश्यों अथवा विचारों से निरपेक्ष होकर तैयार किया गया है। यह सारांश मूल रूप से अंग्रेजी में तैयार किया गया था। हिंदी रूपांतरण में किसी भी प्रकार की अस्पष्टता की स्थिति में अंग्रेजी के मूल सारांश से इसकी पुष्टि की जा सकती है।