स्टेट लेजिसलेटिव ब्रीफ

हरियाणा

हरियाणा राज्य स्थानीय उम्मीदवारों को रोजगार बिल, 2020

मुख्य विशेषताएं

  • बिल निजी इस्टैबलिशमेंट्स में स्थानीय उम्मीदवारों के लिए 75% नई नौकरियों को आरक्षित करने का प्रयास करता है।
     
  • निजी इस्टैबलिशमेंट्स छूट का दावा कर सकते हैं, अगर अपेक्षित दक्षता वाले उम्मीदवार उपलब्ध न हों।
     
  • इस्टैबलिशमेंट्स को 50 हजार रुपए से कम की मासिक आय वाले सभी कर्मचारियों का रजिस्ट्रेशन निर्दिष्ट पोर्टल पर अनिवार्य रूप से करना होगा। 

विचारणीय मुद्दे

  • निवास के आधार पर निजी इस्टैबलिशमेंट्स में आरक्षण का प्रावधान करना वाला राज्य बिल संवैधानिक नहीं हो सकता।
     
  • आरक्षण की 75% सीमा सर्वोच्च न्यायालय के दिशानिर्देशों का उल्लंघन कर सकता है।
  • निजी इस्टैबलिशमेंट्स की भर्तियों में रुकावट से उनकी कार्यकुशलता पर बुरा असर पड़ सकता है।

 

       

हरियाणा राज्य विधानसभा ने नवंबर 2020 में हरियाणा राज्य स्थानीय उम्मीदवारों को रोजगार बिल, 2020 पारित किया।[1] बिल हरियाणा राज्य में स्थित विभिन्न कंपनियों, सोसायटीज़, ट्रस्ट्स और लिमिटेड लायबिलिटी पार्टनरशिप्स में स्थानीय उम्मीदवारों के लिए 75नई नौकरियों को आरक्षित करने का प्रयास करता है। यह आरक्षण सभी रोजगारों में उन स्थानीय उम्मीदवारों के लिए होगा, जिनका पारिश्रमिक 50,000 रुपए प्रति महीने से कम हो। बिल के उद्देश्यों और कारणों के वक्तव्य के अनुसार, बिल आवश्यक है क्योंकि राज्य में प्रवासियों की बड़ी संख्या है और वे निम्न वेतन वाली नौकरियों के लिए प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार, 2002-2011 के दौरान हरियाणा में आठ लाख लोगों ने प्रवास किया और देश के सभी राज्यों की तुलना में यह चौथा सबसे ज्यादा आंकड़ा है (महाराष्ट्र, गुजरात और दिल्ली के बाद)।[2]  

पिछले कुछ वर्षों के दौरान कई दूसरे राज्यों ने भी स्थानीय निवासियों को रोजगार में आरक्षण देने की घोषणा की है या इस संबंध में उपाय किए हैं। तालिका 1 में प्रदर्शित किया गया है कि विभिन्न राज्यों ने पिछले कुछ वर्षों में (सार्वजनिक या निजी) रोजगार में आरक्षण देने के लिए क्या-क्या उपाय किए हैं।  

तालिका 1रोजगार में आरक्षण देने वाले राज्य और उनके द्वारा किए गए उपाय (पिछले पांच वर्षों के आंकड़े) 

राज्य

वर्ष

आरक्षण

क्षेत्र

हरियाणा

2020

निजी उद्योगों में स्थानीय लोगों को 75% आरक्षण

निजी क्षेत्र

आंध्र प्रदेश

2019

उद्योगों/कारखानों (पीपीपी मोड सहित) में स्थानीय लोगों को 75% आरक्षण

निजी क्षेत्र

कर्नाटक

2016

ब्ल्यू-कॉलर नौकरियों में स्थानीय लोगों को 100% आरक्षण (ड्राफ्ट)

निजी क्षेत्र

राजस्थान

2019

कुछ समुदायों को 5% आरक्षण

सार्वजनिक रोजगार में 

महाराष्ट्र

2018

कुछ समुदायों को 13% आरक्षण

सार्वजनिक रोजगार में

तेलंगाना

2017

पिछड़े वर्गों, एससी और एसटी के आरक्षण को बढ़ाकर 62% किया गया

सार्वजनिक रोजगार में 

स्रोतविभिन्न राज्य कानून और रेगुलेशंसपीआरएस।

मुख्य विशेषताएं

  • एप्लिकेबिलिटी: बिल निम्नलिखित पर लागू होता है: (i) सभी कंपनियों, पार्टनरशिप फर्म्स, सोसायटीज़, ट्रस्ट्स, लिमिटेड लायबिलिटी फर्म्स, (ii) 10 या उससे अधिक लोगों को नौकरी पर रखने वाले व्यक्ति। यह केंद्र या राज्य सरकारों, या उनके स्वामित्व वाले संगठनों पर लागू नहीं होता। यह 10 वर्ष की अवधि के लिए प्रभावी रहेगा।
     
  • स्थानीय उम्मीदवारों के लिए आरक्षण: ऐसे सभी नियोक्ताओं को स्थानीय उम्मीदवारों (ऐसे सभी उम्मीदवार जो राज्य में निवास करते हैं) को 50,000 रुपए तक के सकल मासिक वेतन वाली 75नई नौकरियां प्रदान करनी होंगी।   
     
  • अनिवार्य रजिस्ट्रेशन: बिल के प्रभावी होने के तीन महीने के अंदर जिन इस्टैबलिशमेंट्स पर यह लागू होता है, उसके नियोक्ताओं को निर्दिष्ट पोर्टल पर 50,000 रुपए से कम के मासिक वेतन वाले अपने सभी कर्मचारियों को रजिस्टर करना होगा। जब तक रजिस्ट्रेशन पूरा नहीं होता, तब तक किसी नए व्यक्ति को काम पर नहीं रखा जा सकता।
     
  • छूट: नियोक्ता इस शर्त से छूट का दावा कर सकता है, अगर अपेक्षित दक्षता, योग्यता या कुशलता वाले स्थानीय उम्मीदवार पर्याप्त संख्या में उपलब्ध नहीं होते। इस दावे का मूल्यांकन डेप्युटी कमीशनर या उससे उच्च पद वाला अधिकारी करेगा। अधिकारी निम्नलिखित कर सकता है (i) दावे को मंजूर कर सकता है, (ii) कारण दर्ज करते हुए दावे को नामंजूर कर सकता है, या (iii) नियोक्ता को यह निर्देश दे सकता है कि वह अपेक्षित दक्षता या कुशलता हासिल करने के लिए स्थानीय उम्मीदवारों को प्रशिक्षित करे।
     
  • अपराध और सजा: बिल विभिन्न अपराधों के लिए सजा निर्दिष्ट करता है। उदाहरण के लिए स्थानीय उम्मीदवारों को 75% नए रोजगार प्रदान न करने पर 50,000 रुपए से दो लाख रुपए के बीच जुर्माना लगेगासाथ ही उल्लंघन जारी रहने तक प्रत्येक दिन के लिए 1,000 रुपए का अतिरिक्त जुर्माना लगाया जाएगा।

प्रमुख मुद्दे और विश्‍लेषण

बिल से संबंधित संवैधानिक मुद्दे

संविधान सभी नागरिकों को मौलिक अधिकारों की गारंटी देता है। इनमें कानून के समक्ष समानता का अधिकार, देश के किसी भी स्थान पर निवास करने की आजादी का अधिकार, और कोई भी व्यवसाय या व्यापार करने का अधिकार शामिल है। संविधान धर्म, नस्ल, जाति, लिंग या निवास के स्थान के आधार पर भेदभाव को प्रतिबंधित करता है। हालांकि राज्य शिक्षा या रोजगार में आरक्षण के जरिए समाज के कुछ वर्गों की प्रगति का प्रावधान कर सकता है। यह आरक्षण निवास या पिछड़ेपन के आधार पर प्रदान किया जा सकता है। 

उदाहरण के लिए संविधान संसद को राज्य के अंतर्गत आने वाले किसी कार्यालय में रोजगार के संबंध में कानून बनाने की शक्ति प्रदान करता है जिसमें राज्य में निवास की शर्त हो सकती है (अनुच्छेद 16 (3))। राज्य सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्ग के नागरिकों या अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों की उन्नति के लिए प्रावधान कर सकता है (अनुच्छेद 15(4) के अंतर्गत)। इसके अतिरिक्त राज्य नागरिकों के ऐसे किसी भी पिछड़े वर्ग के हित में नियुक्तियों या पदों पर आरक्षण के लिए प्रावधान कर सकता हैजिनका राज्य की सेवाओं में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है (अनुच्छेद 16(4) के अंतर्गत)।

बिल हरियाणा के स्थानीय उम्मीदवारों के लिए सभी निजी इस्टैबलिशमेंट्स में नई नौकरियों में 75आरक्षण का प्रावधान करता है। इससे तीन मुद्दे उठते हैं। पहला, निजी संस्थान में आरक्षण से उनके व्यवसाय या व्यापार करने के अधिकार का उल्लंघन हो सकता है। दूसरा, निवास के स्थान पर आरक्षण प्रदान करने वाला राज्य कानून असंवैधानिक हो सकता है। तीसरा, रोजगार में 75आरक्षण से सर्वोच्च न्यायालय के दिशानिर्देशों का उल्लंघन हो सकता है। हम यहां इन मुद्दों पर चर्चा कर रहे हैं। 

निजी संस्थानों में आरक्षण से उनके व्यवसाय या व्यापार करने के अधिकार का उल्लंघन हो सकता है

बिल सभी कंपनियों, सोसायटीज़, ट्रस्ट्स, पार्टनरशिप फर्म्स, या हरियाणा राज्य के किसी भी व्यक्ति जिसने 10 या उससे अधिक लोगों को काम पर रखा हुआ है, के लिए यह अनिवार्य करता है कि वे स्थानीय उम्मीदवारों को 75नई नौकरियां दें। अनुच्छेद 19 (1) के अंतर्गत सभी नागरिकों के पास यह मौलिक अधिकार है कि वे कोई भी पेशा अपनाएं या कोई भी व्यवसाय, व्यापार या कारोबार करें। निजी कंपनियों को उम्मीदवारों के एक निश्चित समूह को नियुक्त करने के लिए बाध्य करना, उस कंपनी के अपने व्यवसाय को जारी रखने के अधिकार का अतिक्रमण कर सकता है।  

2002 में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि गैर सहायता प्राप्त निजी शिक्षण संस्थानों को अपने प्रशासन एवं प्रबंधन पर स्वायत्तता मिलनी चाहिए।[3] 2005 में अदालत ने कहा था कि जिन निजी शिक्षण संस्थानों को राज्य की तरफ से सहायता नहीं दी जाती, उन पर राज्य इस बात का जोर नहीं डाल सकते कि मेरिट के अतिरिक्त किसी और मानदंड पर आरक्षण लागू करें।[4]  यह माना गया कि केवल इसलिए कि व्यावसायिक शिक्षा प्रदान करने के लिए राज्य के पास सीमित संसाधन हैंनिजी शिक्षण संस्थानों को राज्य द्वारा आरक्षण प्रदान करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है। ऐसा करते हुए अदालत ने कहा कि शिक्षण संस्थान की स्थापना और प्रशासन का अधिकार भी अनुच्छेद 19(1)(जीके अंतर्गत एक पेशा है।

इसके बाद 2005 में 93वां संवैधानिक संशोधन एक्ट पारित किया गया था ताकि राज्य को निजी शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश से संबंधित मामलों में सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्ग के नागरिकों या अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों की उन्नति के लिए प्रावधान करने की अनुमति मिल सके।[5] हालांकि संशोधन राज्य को यह शक्ति नहीं देते कि वे निजी संस्थानों में रोजगार के लिए ऐसे प्रावधान बना सके। इसलिए बिल में आरक्षण का प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (जी) का उल्लंघन हो सकता है।

सिर्फ निवास के आधार पर आरक्षण देने वाला राज्य बिल असंवैधानिक हो सकता है

बिल इस्टैबलिशमेंट्स के लिए यह अनिवार्य करता है कि वे स्थानीय उम्मीदवारों को रोजगार में आरक्षण दें। स्थानीय उम्मीदवार वे व्यक्ति हैं जिनका हरियाणा राज्य में निवास है। 1957 में सार्वजनिक रोजगार (निवास की शर्त) एक्ट, 1957 को पारित किया गया था। इसका उद्देश्य ऐसे सभी बिल्स को निरस्त करना था जिनमें सार्वजनिक रोजगार के लिए राज्य के भीतर निवास करने की शर्तें रखी गई थी।[6]   इसके अतिरिक्त संविधान का अनुच्छेद 16 (2) विशेष रूप से सार्वजनिक रोजगार के मामलों में जन्म स्थान या निवास के आधार पर किसी भी तरह के भेदभाव को प्रतिबंधित करता है। हालांकि पहले कुछ राज्यों ने निवास के आधार पर आरक्षण देने के उपाय किए हैं। इन मामलों में सर्वोच्च न्यायालय ने माना है कि केवल निवास के आधार पर रोजगार में आरक्षण संविधान के अनुच्छेद 14 (कानून के समक्ष समानता) और अनुच्छेद 16 (2) का उल्लंघन है। अदालत ने कहा है कि निवास आरक्षण प्रदान करने के लिए अपने आप में कोई वैध या उचित वर्गीकरण प्रदान नहीं करता है।

उदाहरण के लिए 2002 में सर्वोच्च न्यायालय ने राजस्थान में सरकारी शिक्षकों की नियुक्ति को असंवैधानिक करार दिया था। यहां राज्य सरकार किसी खास क्षेत्र के आवेदकों को वरीयता दे रही थी।[7] अदालत ने कहा था कि भौगोलिक वर्गीकरण का उपयोग सामाजिक-आर्थिक पिछड़ेपन के वर्गीकरण के लिए किया जा सकता है। हालांकि किसी राज्य में अपने आप में निवास करना आरक्षण का आधार नहीं हो सकतासिवाय अनुच्छेद 16(3) में जो प्रावधान किया गया है। उल्लेखनीय है कि अनुच्छेद 16(3) के अंतर्गत सिर्फ संसद के पास यह शक्ति है कि वह निवास के आधार पर आरक्षण (सार्वजनिक रोजगार में) देने वाला कानून बना सकती है। इसी तरह 1995 में सर्वोच्च न्यायालय ने आंध्र प्रदेश सरकार द्वारा सार्वजनिक सेवाओं में तेलुगू मीडियम वाले उम्मीदवारों को वरीयता देने के नियम को रद्द कर दिया था।[8] उसने कहा था कि ऐसे प्रावधानों से बेहतर उम्मीदवार छंट जाएंगे और कम मेधावी विद्यार्थियों को बेजा फायदा मिल जाएगा।

हालांकि हाल के वर्षों में कुछ अन्य राज्यों ने भी निजी क्षेत्र में स्थानीय उम्मीदवारों के लिए आरक्षण प्रदान करने के उपाय किए हैं। जुलाई 2019 में आंध्र प्रदेश सरकार ने उद्योगों या कारखानों में स्थानीय लोगों को 75% आरक्षण प्रदान करने के लिए एक कानून पारित किया। इस एक्ट को आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय में चुनौती दी गई है। मई 2020 में उच्च न्यायालय ने कहा कि निजी नौकरियों में स्थानीय लोगों के लिए कोटा असंवैधानिक हो सकता हैऔर सरकार से जवाब मांगा। मामला फिलहाल विचाराधीन है।

रोजगार में आरक्षण की 75% सीमा से सर्वोच्च न्यायालय के दिशानिर्देशों का उल्लंघन हो सकता है 

बिल के अंतर्गत सभी इस्टैबलिशमेंट्स को हरियाणा राज्य में निवास करने वाले उम्मीदवारों को 75% नई नौकरी देनी होगी। यह सर्वोच्च न्यायालय के दिशानिर्देशों का उल्लंघन हो सकता है। 1992 में सर्वोच्च न्यायालय ने पिछड़ेपन के लिए अनुच्छेद 16(4) के माध्यम से प्रदान किए गए आरक्षण के दायरे को सीमित करने वाले दिशानिर्देश निर्धारित किए।[9]  अदालत ने कहा था कि प्रशासन में दक्षता बनाए रखने के लिए अनुच्छेद 16 (4) (यानी सार्वजनिक सेवाओं में पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण) के अंतर्गत आरक्षण 50% से अधिक नहीं हो सकता। इसके अतिरिक्त यहां पर पिछड़ेपन को मुख्य रूप से सामाजिक पिछड़ापन माना गया है। हालांकि अदालत ने कहा कि 50% का नियम हैलेकिन असाधारण स्थितियों में नियम में ढील देन पड़ सकत है। 

हाल के वर्षों में तेलंगाना (पिछड़ा वर्ग, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति एक्ट 2017), राजस्थान (पिछड़ा वर्ग संशोधन बिल, 2019), और महाराष्ट्र (सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़ा वर्ग (एसईबीसी) एक्ट, 2018) ने सार्वजनिक सेवाओं में आरक्षण प्रदान करने वाले कानून पारित किए हैं जोकि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित 50% आरक्षण की सीमा का उल्लंघन करते हैं। सितंबर 2020 में सर्वोच्च न्यायालय ने महाराष्ट्र एसईबीसी एक्ट, 2018 की समीक्षा की और इसके कार्यान्वयन पर रोक लगा दी। उसने कहा कि किसी समुदाय का सामाजिकशैक्षिक और आर्थिक पिछड़ापन और सार्वजनिक सेवाओं में पर्याप्त कर्मचारी न होने के संबंध में आंकड़े उपलब्ध होने का यह मतलब नहीं कि 50% से अधिक आरक्षण देने के लिए 'असाधारण परिस्थितियांउत्पन्न हो गई हैं।[10] 

स्थानीय उम्मीदवारों को काम देने के लिए कंपनियों को बाध्य करने से उनकी प्रतिस्पर्धात्मकता प्रभावित हो सकती है   

बिल सभी कंपनियों, सोसायटीज़, ट्रस्ट्स, पार्टनरशिप फर्म्स, या हरियाणा राज्य के किसी भी व्यक्ति जिसने 10 या उससे अधिक लोगों को काम पर रखा हुआ है, के लिए यह अनिवार्य करता है कि वे स्थानीय उम्मीदवारों को 75नई नौकरियां दें। अगर व्यवसायों में भर्तियों में रुकावट डाली जाएगी तो उससे उन पर निम्नलिखित प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकते हैं: (i) पर्याप्त कुशल घरेलू श्रम उपलब्ध न हो जो उनकी दक्षता और प्रतिस्पर्धात्मकता को नुकसान पहुंचा सकता है, और (ii) जिन उम्मीदवार के समूह से वे लोगों को नौकरी पर रख सकते हैं, वह सीमित हो जाएगा, इसका यह मतलब है कि हो सकता है कि वे सर्वोत्तम उम्मीदवार को काम पर न रख पाएं। 

न्यूज रिपोर्ट्स के अनुसार, औद्योगिक निकायों ने दक्ष श्रमिकों की कमी को देखते हुए बिल के संबंध में चिंता जताई है।[11] दक्ष घरेलू श्रमशक्ति की कमी से निजी उद्योगों की उत्पादकता पर असर हो सकता है और दूसरे राज्यों या देशों के उद्योगों की तुलना में वे गैर प्रतिस्पर्धी बन सकते हैं। उल्लेखनीय है कि आर्थिक सर्वेक्षण 2019-20 में पाया गया था कि सरकारी हस्तक्षेप अक्सर निवेश और आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए बाजारों की क्षमता को कमजोर कर देत हैं।[12] उसने सुझाव दिया था कि ऐसे हस्तक्षेप कम से कम होने चाहिए। 

बिल के अंतर्गत नियोक्ता स्थानीय लोगों को आरक्षण देने की शर्त से छूट का दावा कर सकता है, अगर अपेक्षित दक्षता, योग्यता या कुशलता वाले स्थानीय उम्मीदवार पर्याप्त संख्या में उपलब्ध नहीं होते। हालांकि यह छूट निर्दिष्ट अधिकारी के निर्णय के आधार पर दी जाएगी। निर्दिष्ट अधिकारी छूट का दावा करने वाली कंपनी को निर्देश भी दे सकता है कि वह स्थानीय उम्मीदवारों को आवश्यक कौशल का प्रशिक्षण दिलाए। इससे निजी कंपनियों को अतिरिक्त खर्च करना होगा। उल्लेखनीय है कि बिल के किसी भी प्रावधान का पालन न करने पर 10,000 रुपए से 50,000 रुपए तक का जुर्माना लगाया जा सकता हैसाथ ही उल्लंघन जारी रहने तक हर दिन अतिरिक्त जुर्माना लगाया जा सकता है।

[2] Census 2011, Office of the Registrar General & Census Commissioner, Ministry of Home Affairs. 

[3] T.M.A. Pai Foundation vs. State of Karnataka (2003), AIR 2003 SC 355.

[4] PA Inamdar vs. State of Maharashtra (2005), AIR 2005 SC 3226.

[7] Kailash Chand Sharma vs State of Rajasthan (2002), AIR2002 SC 2877.

[8] Sunanda Reddy vs State of Andhra Pradesh (1995), AIR1995 SC 914.

[9] Indra Sawhney and Ors. vs Union of India and Ors. (1992), AIR 1993 SC 477.

[10] Laxmanrao Patil vs. The Chief Minister and Anr. (202), The Supreme Court of India, 2020(5) ALLMR607.

[12] “Undermining Markets: When Government Intervention Hurts More Than It Helps”, Economic Survey 2019-20.

अस्वीकरणः प्रस्तुत रिपोर्ट आपके समक्ष सूचना प्रदान करने के लिए प्रस्तुत की गई है। पीआरएस लेजिसलेटिव रिसर्च (पीआरएस) के नाम उल्लेख के साथ इस रिपोर्ट का पूर्ण रूपेण या आंशिक रूप से गैर व्यावसायिक उद्देश्य के लिए पुनःप्रयोग या पुनर्वितरण किया जा सकता है। रिपोर्ट में प्रस्तुत विचार के लिए अंततः लेखक या लेखिका उत्तरदायी हैं। यद्यपि पीआरएस विश्वसनीय और व्यापक सूचना का प्रयोग करने का हर संभव प्रयास करता है किंतु पीआरएस दावा नहीं करता कि प्रस्तुत रिपोर्ट की सामग्री सही या पूर्ण है। पीआरएस एक स्वतंत्रअलाभकारी समूह है। रिपोर्ट को इसे प्राप्त करने वाले व्यक्तियों के उद्देश्यों अथवा विचारों से निरपेक्ष होकर तैयार किया गया है। यह सारांश मूल रूप से अंग्रेजी में तैयार किया गया था। हिंदी रूपांतरण में किसी भी प्रकार की अस्पष्टता की स्थिति में अंग्रेजी के मूल सारांश से इसकी पुष्टि की जा सकती है।