स्टेट लेजिसलेटिव ब्रीफ
कर्नाटक भीड़ नियंत्रण (कार्यक्रमों और सभा स्थलों पर भीड़ का प्रबंधन) बिल, 2025
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मुख्य विशेषताएं
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प्रमुख मुद्दे और विश्लेषण
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भाग क: बिल की मुख्य विशेषताएं
संदर्भ
कर्नाटक भीड़ नियंत्रण (कार्यक्रमों और सभा स्थलों पर भीड़ का प्रबंधन) बिल, 2025 का उद्देश्य आयोजनों और सभा स्थलों पर भीड़ का प्रभावी प्रबंधन सुनिश्चित करना और गैरकानूनी भीड़ को रोकना है। अगस्त 2025 में बिल कर्नाटक विधानसभा में पेश किया गया था और इसे समीक्षा के लिए एक सिलेक्ट कमिटी (चेयर: डॉ. जी. परमेश्वर) के पास भेजा गया है।
अखिल भारतीय स्तर पर 2013 और 2023 के बीच भगदड़ के 1,272 मामले दर्ज किए गए जिनमें 1,394 लोगों की मृत्यु हुई।[1] कर्नाटक में 2013 में आठ मामले और 2014 में छह मामले दर्ज किए गए।1 2015 और 2023 के बीच कर्नाटक में कोई मामला दर्ज नहीं किया गया।1 जून 2025 में बेंगलुरू में एक कार्यक्रम के दौरान भगदड़ की वजह से 11 लोगों की मृत्यु हुई थी।[2]
वर्तमान में भीड़ प्रबंधन के विभिन्न पहलुओं के लिए कई कानून मौजूद हैं। भारतीय न्याय संहिता, 2023 पांच या उससे अधिक व्यक्तियों के गैरकानूनी जमावड़े पर रोक लगाती है।[3] भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 पुलिस को यह अधिकार देती है कि वह सार्वजनिक शांति या सुरक्षा के लिए खतरा पैदा करने वाली भीड़ को तितर-बितर कर सकती है।[4] संहिता एग्जीक्यूटिव मजिस्ट्रेट को पांच या उससे अधिक व्यक्तियों के जमावड़े पर रोक लगाने का भी अधिकार देती है।4 पुलिस एक्ट, 1861 जिला प्राधिकारियों को सार्वजनिक सभाओं और जुलूसों के लिए लाइसेंस की आवश्यकता का अधिकार देता है।[5] कर्नाटक पुलिस एक्ट, 1963 अधिकारियों को अधिकार देता है कि वे सार्वजनिक मनोरंजन स्थलों के लिए लाइसेंस की आवश्यकता की मांग करें, और उसे नियंत्रित करें, साथ ही ऐसे स्थानों और सार्वजनिक सभाओं में कानून व्यवस्था बहाल रखें।[6] 2021 में राज्य सरकार ने बेंगलुरू में विरोध प्रदर्शनों को रेगुलेट करने के लिए 1963 के एक्ट के तहत एक आदेश जारी किया।[7]
राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन एक्ट, 2005 भीड़ प्रबंधन पर भी लागू होता है।[8],[9] 2014 में राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने आयोजनों और सामूहिक समारोहों में भीड़ प्रबंधन के लिए दिशानिर्देश जारी किए।9 उसने निम्नलिखित प्रमुख मुद्दों पर प्रकाश डाला: (i) परमिट जारी करने और रीन्यूअल में लापरवाही, (ii) परमिट देने वाले निकायों में पर्याप्त मानव संसाधन का अभाव और (iii) लागत बचाने के लिए अकुशल या अप्रशिक्षित निजी सुरक्षाकर्मियों की तैनाती। उसने कहा कि इस बात पर बहस की आवश्यकता है कि क्या आयोजन के दौरान मानवीय आपदाओं के लिए आयोजकों को कानूनी रूप से उत्तरदायी होना चाहिए। उसने सामूहिक समारोहों वाले सभी आयोजनों के लिए बीमा अनिवार्य करने का सुझाव दिया।
मुख्य विशेषताएं
तालिका 1: अनुमति देने के लिए निर्दिष्ट प्राधिकारी
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उपस्थित लोगों की संख्या |
प्राधिकारी |
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5,000 से 7,000 |
नजदीकी पुलिस स्टेशन के प्रभारी अधिकारी |
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7,000 से 50,000 |
पुलिस उपाधीक्षक |
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50,000 से अधिक |
पुलिस अधीक्षक या पुलिस आयुक्त |
प्राधिकारी की भूमिका: अनुमति हेतु आवेदन प्राप्त होने पर निर्दिष्ट प्राधिकारी निम्नलिखित के बारे में जांच करेगा: (i) आयोजकों का विवरण, (ii) आयोजन का उद्देश्य और स्थान, (iii) अपेक्षित भीड़ एकत्र करना, (iv) भीड़ की सुरक्षा के उपाय, और (v) अग्नि सुरक्षा, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण, लोक निर्माण और यातायात पुलिस जैसे विभागों से अनापत्ति प्रमाण पत्र। प्राधिकारी को आवेदन प्राप्त होने के चार दिनों के भीतर अनुमति या नामंजूरी देनी होगी। आयोजकों और निर्दिष्ट विभागों के साथ बैठक करने के बाद अनुमति दी जा सकती है। प्राधिकरण को बंदोबस्त या सुरक्षा योजना तैयार करनी होगी और बैठक के दो दिनों के भीतर अपने वरिष्ठ अधिकारियों को प्रस्तुत करनी होगी। प्राधिकारी किसी आपात स्थिति या अप्रत्याशित घटना की स्थिति में अनुमति रद्द कर सकता है या किसी चालू कार्यक्रम को रोक सकता है।
आयोजकों की भूमिका: आयोजकों को कार्यक्रम के अंदर और बाहर भीड़ की सुचारू आवाजाही सुनिश्चित करनी होगी। उन्हें एक करोड़ रुपए के क्षतिपूर्ति बांड पर हस्ताक्षर करने होंगे। आयोजकों को सार्वजनिक या निजी संपत्ति को हुए किसी भी नुकसान या मृत्यु की स्थिति में भी क्षतिपूर्ति करनी होगी। दोषी आयोजकों की संपत्तियां निचली अदालत के आदेश पर ज़ब्त करके पीड़ितों में वितरित की जा सकती हैं।
अपराध और सज़ा: अनुमति के बिना कार्यक्रम आयोजित करने पर तीन से सात वर्ष तक की कैद, एक करोड़ रुपए तक का जुर्माना, या दोनों हो सकते हैं। नागरिक अशांति फैलाने पर तीन वर्ष तक की कैद, 50,000 रुपए का जुर्माना, या दोनों हो सकते हैं। नागरिक अशांति को शांति भंग करना या लोगों के किसी भी ऐसे जमावड़े के रूप में परिभाषित किया जाता है जहां सामूहिक हिंसा, संपत्ति के नष्ट होने या अन्य गैरकानूनी काम का खतरा हो। किसी पुलिस अधिकारी द्वारा सभा स्थल से हटने के निर्देशों की अवहेलना करने पर 50,000 रुपए का जुर्माना भरना होगा और एक महीने के लिए सामुदायिक सेवा करनी होगी।
बिल भीड़ संबंधी आपदा को दंडनीय बनाता है: (i) अगर किसी को चोट लगती है तो तीन से सात वर्ष की कैद होगी, और (ii) अगर किसी की मृत्यु होती है तो न्यूनतम 10 वर्ष और अधिकतम आजीवन कारावास भुगतना होगा। भीड़ संबंधी आपदा की परिभाषा इस प्रकार है कि भीड़ बढ़ने के कारण लोगों का कुचल जाना, जो (i) खतरे की आशंका, (ii) फिजिकल स्पेस के खत्म होने, या (iii) लोगों की व्यवस्थित आवाजाही में रुकावट के कारण होता है।
भाग ख: प्रमुख मुद्दे और विश्लेषण
आयोजकों द्वारा देय मुआवज़ा
आयोजकों को गलती की परवाह किए बिना मुआवज़ा देना होगा
बिल आयोजकों को उपद्रव या भीड़ संबंधी आपदा के परिणामस्वरूप सार्वजनिक या निजी संपत्ति को हुए नुकसान या क्षति, या मानव जीवन की हानि के लिए क्षतिपूर्ति हेतु उत्तरदायी बनाता है। यह दायित्व इस बात पर ध्यान दिए बिना लागू होता है कि नुकसान उनकी गलती या लापरवाही के कारण हुआ है और असीमित है। प्रश्न यह है कि क्या ऐसा पूर्ण दायित्व उचित है। उदाहरण के लिए किराये के किसी ऑडिटोरियम में कोई कार्यक्रम आयोजित करने पर, बहुत से लोग छत के गिरने के कारण घायल हो सकते हैं, या आग लग सकती है और अग्नि सुरक्षा से जुड़े अपर्याप्त प्रावधानों के कारण भगदड़ हो सकती है, लोगों को चोट लग सकती है और उनकी मौत हो सकती है। किसी भी कार्यक्रम के आयोजन से पहले आयोजकों को निर्दिष्ट प्राधिकारी से अनुमति लेनी होगी। अनुमति देने से पहले प्राधिकारी को जोखिम का आकलन करना होगा और अग्नि सुरक्षा जैसे विभागों से अनापत्ति प्रमाण पत्र के बारे में पूछताछ करनी होगी। अगर अनुमति प्राप्त करने के बाद किसी स्थल पर कार्यक्रम आयोजित किया गया है तो यह प्रश्न उठ सकता है कि घटना के लिए कौन उत्तरदायी होगा। प्रश्न यह भी है कि क्या दायित्व आयोजकों (जैसा कि बिल में कहा गया है), उचित जांच के बाद अनुमति देने वाले प्राधिकारी, स्थल को सुरक्षित प्रमाणित करने वाली एजेंसियों या परिसर के मालिक का होना चाहिए।
सार्वजनिक दायित्व बीमा एक्ट, 1991 जैसे कुछ कानून खतरनाक पदार्थों से जुड़े मामलों में दोष की परवाह किए बिना दायित्व निर्धारित करते हैं।12 हालांकि दायित्व की सीमा के संबंध में विभिन्न कानूनों में दृष्टिकोण अलग-अलग हैं (तालिका 2)। ये कानून यह भी अनिवार्य करते हैं कि उत्तरदायी व्यक्ति को बीमा कवर करना होगा। राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (2014) ने सुझाव दिया था कि सामूहिक समारोहों के लिए बीमा कवर अनिवार्य होना चाहिए।9
तालिका 2: विभिन्न कानूनों के तहत मुआवजे के लिए दायित्व की सीमा
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एक्ट |
संबंधित दायित्व |
किनका दायित्व |
मुआवज़ा देने का दायित्व |
दायित्व की सीमा |
बीमा कवर की आवश्यकता |
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मोटर वाहन एक्ट, 1988[10] |
मोटर वाहन का इस्तेमाल |
वाहन का मालिक |
मुआवज़े की दो अलग-अलग व्यवस्थाएं: (i) दोष-आधारित, और (ii) दोष पर ध्यान दिए बिना11 |
दोष की स्थिति में असीमित; दोष-रहित व्यवस्था के अंतर्गत सीमित, निर्दिष्ट फॉर्मूला के आधार पर निर्धारित[11] |
हां |
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सार्वजनिक दायित्व बीमा एक्ट,1991[12] |
खतरनाक पदार्थो की हैंडलिंग |
इकाई का मालिक |
दोष पर ध्यान दिए बिना |
असीमित |
हां; निर्धारित राशि या 500 करोड़ रुपए का बीमा कवर, जो भी कम हो |
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परमाणु क्षति के लिए नागरिक दायित्व एक्ट, 2010[13] |
परमाणु ऊर्जा संयंत्र का परिचालन |
संयंत्र का परिचालक |
दोष पर ध्यान दिए बिना |
एक निर्दिष्ट राशि तक सीमित; किसी भी अतिरिक्त राशि का भुगतान केंद्र सरकार द्वारा किया जाता है |
हां; बीमा कवर या वित्तीय सुरक्षा देनी चाहिए
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स्रोत: "एक्ट" कॉलम में चिह्नित एंडनोट्स को देखें; पीआरएस।
चोट के लिए कोई मुआवज़ा नहीं
बिल में जानमाल के नुकसान की स्थिति में मुआवज़े का प्रावधान है। हालांकि इसमें घायलों के लिए मुआवज़े का प्रावधान नहीं है। सार्वजनिक दायित्व बीमा एक्ट, 1991, परमाणु क्षति के लिए नागरिक दायित्व एक्ट, 2010 और मोटर वाहन एक्ट, 1988 जैसे कानून भी पीड़ितों को चोट लगने पर मुआवज़े का प्रावधान करते हैं।[14],[15],[16]
क्या पारिवारिक आयोजनों को छूट दी जानी चाहिए
बिल का उद्देश्य आयोजनों और सभा स्थलों पर भीड़ के प्रभावी प्रबंधन का प्रावधान करना है। यह भीड़ को 5,000 या उससे अधिक व्यक्तियों के समूह के रूप में परिभाषित करता है जो एक सामान्य उद्देश्य या इरादे से एकत्रित होते हैं। यह किसी समारोह या आयोजन को एक सामान्य उद्देश्य के लिए, किसी विशेष सभा स्थल पर, उस सामान्य उद्देश्य की पूर्ति हेतु बड़ी संख्या में लोगों के एकत्र होने के रूप में परिभाषित करता है। बिल निजी परिसरों में आयोजित होने वाले पारिवारिक समारोहों या विवाह जैसे आयोजनों को छूट प्रदान करता है। निजी परिसरों में पट्टे पर लिया गया, किराए पर लिया गया या कॉन्ट्रैक्ट पर लिया गया कोई भी परिसर शामिल है। पारिवारिक आयोजन के मामले में भी भीड़ प्रबंधन संबंधी चिंताएं लागू हो सकती हैं। इससे यह प्रश्न उठ सकता है कि क्या केवल आयोजन के उद्देश्य के आधार पर छूट देना उचित है।
बिना अनुमति के कार्यक्रम आयोजित करने पर व्यापक दंड का प्रावधान
बिल के तहत, बिना अनुमति के किसी कार्यक्रम का आयोजन करने पर तीन से सात वर्ष तक की कैद, एक करोड़ रुपए तक का जुर्माना या दोनों हो सकते हैं। हालांकि इस सीमा के भीतर सजा निर्धारित करने के लिए कोई दिशानिर्देश नहीं दिए गए हैं। जब किसी अपराध के लिए सजा की एक सीमा होती है तो न्यायाधीश से अपेक्षा की जाती है कि वह मामले की परिस्थितियों का आकलन करे और उस सीमा के भीतर सजा की सीमा निर्धारित करे। इस मामले में अपराध बिना अनुमति के कार्यक्रम आयोजित करने का है। यह पूरी तरह से तथ्यों का मामला है। यह स्पष्ट नहीं है कि अपराध करते समय अलग-अलग परिस्थितियां कैसे हो सकती हैं।
कंपनियों द्वारा किए गए अपराधों के लिए किसे उत्तरदायी ठहराया जाएगा, इस पर स्पष्टता का अभाव
बिल के तहत आयोजकों में कंपनी को भी शामिल किया गया है। पर बिल यह निर्दिष्ट नहीं करता कि कंपनी में कौन अपराधों के लिए उत्तरदायी होगा। यह अन्य कानूनों से अलग है। आपदा प्रबंधन एक्ट, 2005 और पर्यावरण (संरक्षण) एक्ट, 1986 जैसे कानून निर्दिष्ट करते हैं कि कंपनियों द्वारा अपराध की स्थिति में, व्यवसाय के संचालन के लिए जिम्मेदार कर्मचारी उत्तरदायी होंगे।[17],[18] इसके अलावा ये कानून निदेशक, प्रबंधक, सचिव और अन्य अधिकारियों को भी मिलीभगत या लापरवाही के मामले में उत्तरदायी ठहराते हैं। ये कानून सुरक्षा प्रदान करते हैं, अगर कर्मचारी यह साबित कर सकता है कि: (i) अपराध उसकी जानकारी के बिना किया गया था, या (ii) उसने सभी ड्यू डेलिजेंस किए थे। कर्नाटक के कई राज्य कानूनों में भी इसी तरह के प्रावधान मौजूद हैं।[19],[20],[21],[22],[23]
यह स्पष्ट नहीं है कि क्षतिपूर्ति बांड कब उपयोग किया जाएगा
बिल में आयोजकों से किसी कार्यक्रम के आयोजन की अनुमति प्राप्त करते समय एक करोड़ रुपए का क्षतिपूर्ति बांड जमा करने की अपेक्षा की गई है। हालांकि इसमें उन शर्तों का उल्लेख नहीं किया गया है जिनके तहत क्षतिपूर्ति बांड का उपयोग किया जा सकता है।
कुछ शब्दों को परिभाषित नहीं किया गया है
‘पारिवारिक समारोह या आयोजन’ परिभाषित नहीं
बिल पारिवारिक समारोहों या आयोजनों को परिभाषित नहीं करता। यह केवल उदाहरण के तौर पर प्रावधान करता है कि पारिवारिक आयोजनों में विवाह भी शामिल हैं। लेकिन वह इस संबंध में कोई मार्गदर्शन नहीं देता कि किसी आयोजन को पारिवारिक आयोजन या समारोह कैसे माना जाए। इससे कुछ आयोजनों पर बिल की एप्लिकेबिलिटी को लेकर विवाद पैदा हो सकता है। उदाहरण के लिए, यह प्रश्न उठ सकता है कि क्या किसी परिवार द्वारा अपने निजी परिसर में शहर के सभी लोगों को आमंत्रित करके आयोजित किया जाने वाला गणपति पूजा पंडाल जैसा सांस्कृतिक आयोजन पारिवारिक आयोजन है या नहीं।
‘सामूहिक जमावड़ा’ परिभाषित नहीं
बिल में कहा गया है कि किसी भी ऐसे आयोजन के लिए आयोजक को अनुमति लेनी होगी जिसमें सामूहिक जमावड़ा या भीड़ जुटने की संभावना हो। बिल में भीड़ को तो परिभाषित किया गया है, लेकिन सामूहिक जमावड़े को परिभाषित नहीं किया गया है।
[1]. Year-wise data on Accidental Deaths and Suicide in India, National Crime Records Bureau, https://www.ncrb.gov.in/accidental-deaths-suicides-in-india-table-content.html?year=2000.
[2]. “11 die in stampede at RCB cup celebration in Bengaluru”, The Hindu, June 05, 2025, https://www.thehindu.com/news/cities/bangalore/rcb-ipl-victory-celebrations-stampede-bengaluru-death-toll/article69656538.ece.
[3]. Section 189-195, Chapter XI: Of Offences Against the Public Tranquillity, The Bharatiya Nyaya Sanhita, 2023, https://prsindia.org/files/bills_acts/bills_parliament/2023/Bharatiya_Nyaya_Sanhita,_2023.pdf.
[4]. Section 148-151, Chapter XI: Maintenance of Public Order and Tranquillity, The Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023, https://prsindia.org/files/bills_acts/bills_parliament/2023/Bharatiya_Nagarik_Suraksha_Sanhita,_2023.pdf.
[5]. Section 30 and 30A, The Police Act, 1861, https://www.mha.gov.in/sites/default/files/police_act_1861.pdf.
[6]. Section 31(w), The Karnataka Police Act, 1963, https://prsindia.org/files/bills_acts/acts_states/karnataka/1964/1964KR4.pdf.
[7]. Suo Motu v. the State of Karnataka, W.P. No. 5781 of 2021, High Court of Karnataka, August 01, 2022, https://judiciary.karnataka.gov.in/rep_judgmentcase.php.
[8]. Section 2(d) and 2(e), The Disaster Management Act, 2005, https://prsindia.org/files/bills_acts/acts_parliament/2005/the-disaster-management-act-2005.pdf.
[9]. Managing Crowds at Events and Venues of Mass Gathering, National Disaster Management Authority, 2014, https://ndma.gov.in/sites/default/files/PDF/Reports/managingcrowdsguide.pdf.
10. Section 140, 146, 147, 163A, and 166, The Motor Vehicles Act, 1988, https://www.indiacode.nic.in/bitstream/123456789/9460/1/a1988-59.pdf.
[11]. Deepal Girishbhai Soni v. United India Insurance Co. Ltd, Baroda, Supreme Court of India, March 18, 2004, https://api.sci.gov.in/jonew/judis/25992.pdf.
12. Section 3, 4, 7, and 8, The Public Liability Insurance Act, 1991, https://www.indiacode.nic.in/bitstream/123456789/1960/5/A1991-06.pdf.
13. Section 4, 5, 6, 7, 8, 14, The Civil Liability for Nuclear Damage Act, 2010, https://www.indiacode.nic.in/bitstream/123456789/2084/5/A2010-38.pdf.
[14]. Section 8, The Public Liability Insurance Act, 1991, https://www.indiacode.nic.in/bitstream/123456789/1960/5/A1991-06.pdf.
[15]. Section 14, The Civil Liability for Nuclear Damage Act, 2010, https://www.indiacode.nic.in/bitstream/123456789/2084/5/A2010-38.pdf.
[16]. Section 140, 163A, and 166, The Motor Vehicles Act, 1988, https://www.indiacode.nic.in/bitstream/123456789/9460/1/a1988-59.pdf.
[17]. Section 58, The Disaster Management Act, 2005, https://ndmindia.mha.gov.in/ndmi/images/The%20Disaster%20Management%20Act,%202005.pdf.
[18]. Section 16, The Environment (Protection) Act, 1986, https://www.indiacode.nic.in/bitstream/123456789/4316/1/ep_act_1986.pdf.
[19]. Section 355, The Greater Bengaluru Governance Act, 2024, https://prsindia.org/files/bills_acts/acts_states/karnataka/2025/Act36of2025KA.pdf.
[20]. Section 34, The Karnataka Ground Water (Regulation and Control of Development and Management) Act, 2011, https://prsindia.org/files/bills_acts/acts_states/karnataka/2011/2011KR25.pdf.
[21]. Section 31, The Karnataka State Road Safety Authority Act, 2017, https://www.indiacode.nic.in/bitstream/123456789/7615/1/45_of_2017%28e%29.pdf.
[22]. Section 14, The Karnataka Epidemic Diseases Act, 2020, https://www.indiacode.nic.in/bitstream/123456789/17217/1/26_of_2020_%28e%29.pdf.
[23]. Section 110, The Karnataka Co-operative Societies Act, 1959, https://www.indiacode.nic.in/bitstream/123456789/7131/1/11of1959%28E%29.pdf.
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