राजस्थान भूजल (संरक्षण एवं प्रबंधन) प्राधिकरण बिल, 2024

 

मुख्य विशेषताएं

  • बिल भूजल के संरक्षण और प्रबंधन के लिए एक राज्य भूजल प्राधिकरण की स्थापना करता है।

  • सभी गैर-कृषि उपयोगकर्ताओं को भूजल उपयोग के लिए अनुमति प्राप्त करनी होगी और मात्रा-आधारित शुल्क का भुगतान करना होगा।

  • भूजल की अनाधिकृत निकासी, ड्रिलिंग या प्रदूषण पर दंड लगाया जाएगा, जिसका निर्धारण राज्य सरकार द्वारा नियमों के माध्यम से किया जाएगा।

प्रमुख मुद्दे और विश्लेषण

  • कृषि उपयोगकर्ताओं, जो भूजल का 85% उपयोग करते हैं, को अनुमति लेने और शुल्क भुगतान करने की आवश्यकता से छूट दी गई है।

  • बिल नियमों के माध्यम से अनाधिकृत कार्यों के लिए दंड निर्धारित करता है जो एक्सेसिव डेलिगेशन यानी अत्यधिक प्रत्यायोजन हो सकता है।

  • बिल में प्राधिकरण के निर्णयों के विरुद्ध अपील करने की कोई व्यवस्था नहीं है।

 

राजस्थान भूजल (संरक्षण और प्रबंधन) प्राधिकरण बिल, 2024 को राजस्थान विधानसभा में 26 जुलाई, 2024 को पेश किया गया था। इसे 1 अगस्त, 2024 को सिलेक्ट कमिटी को भेजा गया। कमिटी के सुझावों को शामिल करने के बाद बिल का संशोधित संस्करण 19 मार्च, 2025 को कमिटी को वापस भेज दिया गया था। प्रस्तुत ब्रीफ कमिटी के पास लंबित बिल के संशोधित संस्करण पर आधारित है।

 

       

भाग क: बिल की मुख्य विशेषताएं

संदर्भ

जल राज्य सूची के तहत आने वाला विषय है लेकिन इसके बावजूद भूजल का रेगुलेशन और प्रबंधन, राज्य और केंद्र दोनों स्तरों पर किया जाता है।[1]  केंद्रीय स्तर पर केंद्रीय भूजल प्राधिकरण (सीजीडब्ल्यूए) को भूजल के रेगुलेशन और प्रबंधन का कार्य सौंपा गया है।1  सीजीडब्ल्यूए भूजल निकासी के लिए दिशानिर्देश जारी करता है और उद्योगों को भूजल निकासी हेतु अनापत्ति प्रमाणपत्र (एनओसी) जारी करता है।1  2023 तक 12 राज्यों (जम्मू और कश्मीर सहित) ने अपने-अपने अधिकार क्षेत्र में भूजल निकासी और उपयोग को रेगुलेट करने के लिए भूजल प्राधिकरणों का गठन किया है।[2]  ये प्राधिकरण जल उपयोग के लिए परमिट जारी करते हैं, अति-दोहित क्षेत्रों को अधिसूचित करते हैं और भूजल उपयोग के लिए दिशानिर्देश तैयार करते हैं। केंद्र ने राज्यों को कई मॉडल बिल भी भेजे हैं, जिनमें से सबसे नया मॉडल भूजल (सतत प्रबंधन) एक्ट, 2016 है।[3]

भारत में भूजल ग्रामीण जलापूर्ति का 85% और शहरी जलापूर्ति का 50% स्रोत है।[4] यह सिंचाई के लिए उपयोग किए जाने वाले 62% पानी की भी आपूर्ति करता है।4 अधिकांश राज्यों की तरह राजस्थान भी ज़रूरत से ज़्यादा पानी निकालता है। 2024 में राजस्थान कुल निकासी योग्य भूजल से 50% अधिक भूजल निकासी करेगा।4 खेती के लिए 85% भूजल उपयोग किया जाता है। इसके बाद घरेलू उपयोग (14%) और औद्योगिक उपयोग (0.8%) का स्थान आता है।4

2013 में राजस्थान ने जल संसाधनों के प्रबंधन और रेगुलेशन तथा जल उपयोग की दरें निर्धारित करने के लिए राजस्थान जल संसाधन रेगुलेटरी एक्ट, 2012 पारित किया।[5] हालांकि 2025 तक इस एक्ट को लागू नहीं किया गया है। राजस्थान भूजल (संरक्षण एवं प्रबंधन) प्राधिकरण बिल, 2024 को 26 जुलाई, 2024 को पेश किया गया था।[6]  इसे 1 अगस्त, 2024 को एक सिलेक्ट कमिटी को भेजा गया। कमिटी के सुझावों को शामिल करने के बाद बिल का संशोधित संस्करण 19 मार्च, 2025 को कमिटी को वापस भेज दिया गया।

मुख्य विशेषताएं

  • भूजल (संरक्षण एवं प्रबंधन) प्राधिकरण: बिल राजस्थान भूजल (संरक्षण एवं प्रबंधन) प्राधिकरण की स्थापना करता है। इसकी अध्यक्षता सरकार के सचिव या मुख्य भूजल अभियंता के पद पर रह चुके व्यक्ति द्वारा की जाएगी। अन्य सदस्यों में निम्नलिखित शामिल होंगे: (i) विधानसभा के दो सदस्य, (ii) भूजल, वित्त, कृषि, प्रदूषण नियंत्रण, वन, जन स्वास्थ्य और उद्योग जैसे विभागों के प्रतिनिधि, और (iii) दो विषय विशेषज्ञ। प्रत्येक जिले में एक जिला भूजल एवं प्रबंधन समिति भी होगी, जो जिला भूजल संरक्षण एवं प्रबंधन योजनाएं तैयार करेगी।

  • भूजल निकासी हेतु अनुमतियां और शुल्क: कृषि उपयोग को छोड़कर भूजल के सभी उपयोगकर्ताओं को मौजूदा और प्रस्तावित निकासी संरचनाओं के लिए अनुमति प्राप्त करना आवश्यक होगा। भूजल प्राधिकरण किफायती, दक्षता, समता और स्थिरता के सिद्धांतों के आधार पर जल उपयोग के लिए शुल्क लगाएगा।

  • प्राधिकरण के कार्य: भूजल प्राधिकरण, राज्य भूजल विभाग द्वारा तैयार राज्य भूजल संरक्षण और प्रबंधन योजना की समीक्षा करेगा। यह राज्य सरकार को जल स्तर की गुणवत्ता और मात्रा के आधार पर राज्य को ज़ोन्स में वर्गीकृत करने का भी सुझाव देगा। इसके अलावा प्राधिकरण ग्रामीण जलापूर्ति, नगरपालिका जलापूर्ति और औद्योगिक जलापूर्ति के लिए जल अधिकारों का सुझाव देगा। भूजल प्राधिकरण निम्नलिखित पर भी निर्देश जारी कर सकता है: (i) मौजूदा भूजल निकासी संरचनाओं के काम करने की शर्तें, (ii) भूजल उपयोग पर प्रतिबंध, (iii) ड्रिलिंग रिग्स और किसी भी प्रकार की ऊर्जा के जरिए भूजल निकासी का पंजीकरण, (iv) भूजल की रीसाइकलिंग, रीयूज़ और रीचार्ज को बढ़ावा देना, और भूजल की बर्बादी को कम करना, और (v) भूजल की गुणवत्ता और मात्रा और उसकी निकासी को मापने के लिए उपकरणों की स्थापना।

  • राजस्थान भूजल (संरक्षण एवं प्रबंधन) प्राधिकरण कोष: भूजल प्राधिकरण एक व्यक्तिगत जमा खाते या सरकार के निर्देशानुसार किसी अन्य खाते में एक कोष का निर्माण करेगा। इस कोष में राज्य या केंद्र सरकार के अनुदान, प्राधिकरण को मिलने वाला शुल्क, प्रभार और जुर्माना, तथा सरकार द्वारा निर्दिष्ट अन्य स्रोतों से प्राप्त धनराशि जमा की जाएगी।

  • प्रवेश और निरीक्षण की शक्तियां: बिल राज्य सरकार को जांच के लिए अधिकारी नियुक्त करने का अधिकार देता है। इन जांच अधिकारियों को राज्य प्राधिकरण द्वारा दिए गए आदेशों या निर्देशों के अनुपालन का निर्धारण करने के लिए किसी भी परिसर में प्रवेश करने का अधिकार होगा।

  • अपराध और दंड: बिल के तहत अनाधिकृत कार्यों में निम्नलिखित शामिल हैं: (i) भूजल निकासी संरचना का निर्माण या उसमें परिवर्तन, या बिना अनुमति के भूजल के लिए खुदाई, (ii) भूजल को प्रदूषित करना या उसकी गुणवत्ता को कम करना, और (iii) किसी भी जल संरचना में बाधा डालना या उसे नुकसान पहुंचाना। अनाधिकृत कार्यों के लिए दंड राज्य सरकार द्वारा नियमों के माध्यम से निर्धारित किया जाएगा। अपराध को बार-बार दोहराने पर निर्धारित जुर्माने से पांच गुना अधिक जुर्माना लगाया जाएगा। बिल के तहत जारी निर्देशों का पालन न करने पर 50,000 रुपए तक का जुर्माना हो सकता है। इसके बाद अपराधों पर छह महीने तक की कैद या एक लाख रुपए तक का जुर्माना, या दोनों हो सकते हैं।  

 

भाग ख: प्रमुख मुद्दे और विश्‍लेषण

भूजल के उपयोग को रेगुलेट करने की चुनौतियां

भारत में भूजल का स्वामित्व कानूनी रूप से भूमि स्वामित्व से जुड़ा हुआ है।[7] 1882 के सुखभोग एक्ट के तहत प्रत्येक भूमि स्वामी को अपनी भूमि के ऊपर और नीचे के जल को एकत्रित करने और उसका निपटान करने का अधिकार है जिससे वह प्रभावी रूप से एक निजी संसाधन बन जाता है।7  बिल में भूजल निकालने वाले उपयोगकर्ताओं को अनुमति प्राप्त करने और शुल्क का भुगतान करने की आवश्यकता है, जिसका अर्थ है कि भूजल अब एक निजी संसाधन नहीं रहा। भूजल के उपयोग को रेगुलेट करने में कुछ चुनौतियां हैं। हम नीचे उनकी चर्चा करेंगे।

निजी स्वामित्व वाले मॉडल की दो चुनौतियां हैं। पहली, यह गैर-भूस्वामियों को भूजल तक पहुंच से वंचित कर सकता है। सर्वोच्च न्यायालय ने जल के अधिकार की व्याख्या अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार के एक भाग के रूप में की है।[8] दूसरी, यह मॉडल जल की पर्यावरणीय प्रकृति के अनुरूप नहीं हो सकता है। भूजल भूगर्भीय और जलवैज्ञानिक स्थितियों के आधार पर जलभृतों यानी एक्विफर्स में प्रवाहित होता है। इस तरह एक भूस्वामी द्वारा अत्यधिक दोहन आस-पास के क्षेत्रों में जल स्तर को कम कर सकता है, और एक हिस्से में प्रदूषण दूसरे हिस्सों में जल को प्रदूषित कर सकता है। इसलिए, भूजल को रेगुलेट करने का संपत्ति-आधारित दृष्टिकोण भूजल की साझा प्रकृति को संबोधित नहीं कर सकता है।

अदालतों ने भूजल पर सार्वजनिक न्यास का सिद्धांत (पब्लिक ट्रस्ट डॉक्टरिन) लागू किया है जिसके तहत सरकार जनता के उपयोग के लिए सार्वजनिक संसाधनों की सुरक्षा और रखरखाव करती है। सर्वोच्च न्यायालय (2004) ने कहा था कि राज्य प्राकृतिक संसाधनों को जनता के न्यास के रूप में रखता है।[9] राष्ट्रीय जल संरचना बिल, 2016 का ड्राफ्ट और मॉडल भूजल (सतत प्रबंधन) एक्ट, 2016 में भी भूजल के रेगुलेशन का यही आधार है।3,[10]  अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी, इटली, मोरक्को, दक्षिण अफ्रीका, तंजानिया, युगांडा और ज़िम्बाब्वे जैसे देशों ने भूजल को एक सार्वजनिक संसाधन के रूप में परिभाषित किया है।[11]  

इसके अतिरिक्त भूजल और सतही जल, दोनों की जलविज्ञान प्रणाली आपस में जुड़ी हुई हैं।4  सतही जल की निकासी भूजल की उपलब्धता और उसके रीचार्ज, यानी दोबारा से भरने को प्रभावित करता है। उदाहरण के लिए, अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में भूजल की रीचार्ज, नदियों, तालाबों या मौसमी धाराओं जैसे सतही जल पर बहुत अधिक निर्भर करता है।4  इन दोनों को अलग-अलग रेगुलेट करना, कारगर नहीं हो सकता है। हालांकि बिल भूजल प्रबंधन योजनाओं की तैयारी को अनिवार्य बनाता है, लेकिन यह सतही जल और भूजल की परस्पर निर्भरता को स्पष्ट रूप से संबोधित नहीं करता है। यह जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा संरक्षण मंत्रालय द्वारा तैयार किए गए मॉडल भूजल एक्ट, 2016 के विपरीत है।3  मॉडल एक्ट के अनुसार भूजल नियोजन में सतही जल की उपलब्धता पर विचार किया जाना चाहिए और भूजल की रीचार्ज को बढ़ावा देना चाहिए।3

85% भूजल उपयोग को अनुमतियों और शुल्क से छूट दी गई है

बिल कृषि उपयोगकर्ताओं को भूजल निकासी से संबंधित संरचनाएं बनाने के लिए अनुमति लेने की आवश्यकता से स्पष्ट रूप से छूट देता है। इसके पीछे का तर्क स्पष्ट नहीं है। राजस्थान में कृषि भूजल का एक प्रमुख उपभोक्ता है, और 2024 में 85% भूजल उपयोग सिंचाई के लिए हुआ।4  मॉडल एक्ट, 2016 के तहत केवल औद्योगिक और थोक उपयोगकर्ताओं के लिए ही जल शुल्क का भुगतान करना अनिवार्य है।3  पंजाब का कानून पेयजल और घरेलू जल उपयोग को शुल्क से छूट देता है।[12]

शुल्क संरचना को लागू करने के लिए अवसंरचना विस्तार करने की जरूरत हो सकती है

बिल भूजल प्राधिकरण को भूजल उपयोग की विभिन्न श्रेणियों के लिए मात्रा-आधारित शुल्कों का सुझाव देने का अधिकार देता है। शुल्क की संरचना को राज्य सरकार द्वारा अनुमोदित किया जाना आवश्यक है और इसमें संशोधन भी किया जा सकता है। मात्रा-आधारित शुल्क लागू करने के लिए अवसंरचना का बड़े पैमाने पर बढ़ाना होगा। जैसे भूजल निकासी को मापने के लिए मीटरिंग सिस्टम, गुणवत्ता और मात्रा की जांच के लिए उपकरण, और उपयोग और बिलिंग पर नज़र रखने के लिए डेटा प्रबंधन प्रणालियां स्थापित करना। बिल यह भी स्पष्ट नहीं करता है कि मापन और निगरानी संबंधी व्यवस्था की स्थापना करने का खर्चा कौन उठाएगा।

बिल में प्रवेश और निरीक्षण की शक्तियों के मद्देनजर सुरक्षा उपायों का अभाव है

बिल निरीक्षकों को कानून का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए किसी भी परिसर में प्रवेश करने की शक्ति प्रदान करता है। इसी तरह के प्रावधानों वाले कानूनों में ऐसी कार्रवाइयों के मद्देनजर कुछ सुरक्षा उपाय होते हैं। ऐसे सुरक्षा उपाय इस बिल में मौजूद नहीं हैं।

उदाहरण के लिए, खाद्य सुरक्षा और मानक एक्ट, 2006 में प्रावधान है कि खाद्य सुरक्षा अधिकारियों के प्रवेश और निरीक्षण के अधिकारों पर भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (बीएनएसएस) के प्रावधान लागू होंगे।[13] इन सुरक्षा उपायों में निम्नलिखित शामिल हैं: (i) यह लिखित रूप में दर्ज करना कि किस विश्वास के आधार पर कार्रवाई की जा रही है, (ii) इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से तलाशी की रिकॉर्डिंग करना, और (iii) पड़ोस के दो या दो से अधिक व्यक्तियों को गवाह के रूप में बुलाना।13 2006 का एक्ट उन अधिकारियों को भी दंडित करता है जो परेशान करने के इरादे से और किसी उचित आधार के बिना किसी वस्तु को जब्त करते हैं। सर्वोच्च न्यायालय (1959) ने कहा था कि चूंकि तलाशी एक अत्यधिक मनमानी प्रक्रिया है, इसलिए कानूनों के तहत उस पर कड़ी शर्तें लगाई गई हैं।[14]  बीएनएसएस के तहत तलाशी की ऑडियो-वीडियो रिकॉर्डिंग करना भी जरूरी है।[15] 

राज्य स्तरीय प्राधिकरण के फैसलों के खिलाफ अपील की कोई व्यवस्था नहीं है

भूजल प्राधिकरण को जल निकासी की अनुमति देने या न देने तथा जुर्माना लगाने का अधिकार है। यह कुछ क्षेत्रों में भूजल के उपयोग को प्रतिबंधित कर सकता है, पंजीकरण अनिवार्य कर सकता है, और अनाधिकृत निकासी या संरचनात्मक परिवर्तनों के लिए दंडात्मक कार्रवाई कर सकता है। इसे जल उपयोग पर शुल्क लगाने का सुझाव देने का भी अधिकार है। हालांकि बिल प्राधिकरण के निर्णयों के विरुद्ध अपील की कोई व्यवस्था निर्दिष्ट नहीं करता है। कर्नाटक और पश्चिम बंगाल के ऐसे ही कानूनों में अपील प्रक्रिया का स्पष्ट प्रावधान है।[16],[17]  इन राज्यों में अपील राज्य सरकार द्वारा निर्दिष्ट प्राधिकरण के समक्ष की जा सकती है।16,17

नियमों के तहत दंड निर्धारित करना, अत्यधिक प्रत्यायोजन हो सकता है

बिल उन विभिन्न कार्यों को निर्दिष्ट करता है जिन्हें अनाधिकृत माना जाएगा। किसी भी अनाधिकृत कार्य में शामिल होने पर दंड का प्रावधान होगा, जो राज्य सरकार द्वारा नियमों के माध्यम से निर्धारित किया जाएगा। बिल इन दंडों के निर्धारण के संबंध में कोई और दिशानिर्देश प्रदान नहीं करता है। सर्वोच्च न्यायालय का कहना है कि अधीनस्थ विधान की विषय-वस्तु पर मानकों, मानदंडों या सिद्धांतों के अभाव में, कार्यपालिका को दी गई शक्तियां वैध प्रत्यायोजन की स्वीकृत सीमाओं से परे जा सकती हैं।[18] 

सार्वजनिक खाते से इतर निधियों का रखरखाव  

बिल में एक कोष की स्थापना का प्रावधान है, जिसका रखरखाव और संचालन भूजल प्राधिकरण द्वारा किया जाएगा। इस कोष में राज्य या केंद्र सरकार के अनुदान, प्राधिकरण को मिलने वाला शुल्क, प्रभार और जुर्माना, तथा सरकार द्वारा निर्दिष्ट अन्य स्रोतों से प्राप्त धनराशि जमा होगी। इस कोष का उपयोग प्राधिकरण के वेतन, भत्ते और अन्य खर्चों को पूरा करने के लिए किया जाएगा। इससे हितों का टकराव हो सकता है क्योंकि जुर्माना लगाने की जिम्मेदारी प्राधिकरण की है। प्रतिस्पर्धा कानून के तहत, जुर्माने भारत के समेकित कोष में जमा किए जाते हैं।[19]

बिल में यह प्रावधान भी है कि निधि को व्यक्तिगत जमा खाते या सरकार के निर्देशानुसार किसी अन्य खाते में रखा जाएगा, और निधि का वार्षिक ऑडिट करना जरूरी है। केंद्र सरकार के 2005 के दिशानिर्देशों में यह प्रावधान है कि रेगुलेटरी निकायों की निधियां सार्वजनिक खाते में रखी जाएंगी।[20]  नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) के एक ऑडिट में सेबी के खातों को सरकारी खाते से इतर रखने पर चिंता व्यक्त की गई थी। उसमें कहा गया था कि यह केंद्र सरकार के दिशानिर्देशों के विपरीत है और न्यायपालिका, यूपीएससी, कैग, ट्राई और चुनाव आयोग जैसे अन्य संवैधानिक और स्वतंत्र प्राधिकरणों की कार्यप्रणाली के भी विपरीत है।[21] 

मॉडल कानून और अन्य राज्य स्तरीय कानूनों से तुलना

निम्नलिखित तालिका में इस बिल की तुलना मॉडल बिल, 2016 और अन्य राज्य कानूनों के साथ की गई है।

अनुलग्नक

तालिका 1: चुनींदा राज्यों में भूजल रेगुलेशन के बीच तुलना

प्रावधान

राजस्थान

मॉडल बिल3

कर्नाटक16

महाराष्ट्र17

पंजाब12

उत्तर प्रदेश[22]

शामिल सरकार का स्तर

जिला समितियों के साथ राज्य स्तरीय प्राधिकरण

ग्राम पंचायत और नगरपालिका की उप-समितियां, जिला परिषदें, राज्य परिषद

केवल राज्य-स्तरीय प्राधिकरण

राज्य और जिला प्राधिकरण, पंचायतें योजना बनाने में सहायता करेंगी

राज्य स्तरीय प्राधिकरण, सलाहकार समिति और परिषद

राज्य प्राधिकरण, जिला परिषदें, ग्राम पंचायत की उप-समितियां, ब्लॉक, पंचायत, नगर समितियां

जिला प्राधिकरण की संरचना निर्दिष्ट

नहीं

हां

लागू नहीं

हां

लागू नहीं

हां

पर्यावरण प्रभाव आकलन

निर्दिष्ट नहीं

उद्योगों/अवसंरचना के लिए अनिवार्य

निर्दिष्ट नहीं

निर्दिष्ट नहीं

निर्दिष्ट नहीं

प्रावधान है

पंजीकरण/शुल्क से छूट प्राप्त उपयोगकर्ता

कृषि को अनुमतियों और शुल्कों से छूट दी गई

जल दर केवल औद्योगिक या थोक उपयोगकर्ताओं के लिए

कोई शुल्क नहीं, सभी उपयोगकर्ताओं को पंजीकरण कराना आवश्यक

सेस केवल गैर-अधिसूचित क्षेत्रों में विद्यमान गहरे कुओं के लिए

घरेलू उपयोग को शुल्क से छूट दी गई

शुल्क केवल वाणिज्यिक, औद्योगिक, अवसंरचनात्मक या थोक उपयोगकर्ताओं पर लागू होता है

जलभृत-आधारित योजना उपलब्ध

जिला-स्तर पर, पूरी तरह से जलभृत-आधारित नहीं

जलभृतों के आधार पर सभी स्तरों पर योजनाएं

निर्दिष्ट नहीं

वाटरशेड, जलभृत-आधारित योजनाएं

प्रशासनिक ब्लॉक-स्तरीय योजना

वाटरशेड-आधारित ब्लॉक और नगरपालिका स्तर की योजनाएं

जल संचयन/रीचार्ज संबंधी आदेश

सुझाव है, निर्दिष्ट नहीं

स्थानीय सरकारों के अनुसार संचयन और जलग्रहण

शहरी/चिह्नित क्षेत्रों में अनिवार्य

कुछ परिसरों में अनिवार्य

सुझाव है, निर्दिष्ट नहीं

नियमों के माध्यम से संचयन और जलग्रहण अनिवार्य

स्रोत: संबंधित राज्य कानून; मॉडल भूजल (सतत प्रबंधन) एक्ट 2016; पीआरएस।

 

[1]. Report No. 9 of 2021, Comptroller and Auditor General of India, 2021, https://cag.gov.in/en/audit-report/details/115026.

[2]. Central Ground Water Authority, as accessed on July 25, 2023, https://cgwa.mowr.gov.in/StateGroundWaterAuthorities.html.

[3]. Model Groundwater (Sustainable Management) Act, 2016, https://www.ielrc.org/content/e1605.pdf.

[6]. Rajasthan Ground Water (Conservation and Management) Authority Act, 2024, https://prsindia.org/files/bills_acts/bills_states/rajasthan/2024/Bill7of2024RJ.pdf.

[8]. 1991 AIR 420, 1991 SCR (1) 5, Subhash Kumar vs State Of Bihar And Ors, January 9, 1991, https://indiankanoon.org/doc/1646284/.

[9]. 10 SCC 201, 2004, State Of West Bengal vs Kesoram Industries Ltd. And Or January 15, 2004, https://indiankanoon.org/doc/879535/.

[11]. The United Nations World Water Development Report 2022 “Groundwater: Making the invisible visible’ https://unesdoc.unesco.org/ark:/48223/pf0000380721/PDF/380721eng.pdf.multi

[12]. The Punjab Water Resources (Management and Regulation) Act, 2020 https://prsindia.org/files/bills_acts/acts_states/punjab/2020/Act%20No.%202%20of%202020%20Punjab.pdf.

[14]. AIR 1960 SC210, The State of Rajasthan vs Rehman, October 14, 1959 https://indiankanoon.org/doc/842696/.

[15]. Sections 96-110, 185, The Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023, https://www.indiacode.nic.in/bitstream/123456789/20099/1/eng.pdf.

[16]. The Karnataka Ground Water (Regulation and Control of Development and Management) Act, 2011, https://dpal.karnataka.gov.in/storage/pdf-files/25%20of%202011%20(E).pdf.

[17]. Section 19, The West Bengal Ground Water Resources (Management, Control & Regulation) Act, 2005, https://www.wbwridd.gov.in/swid/downloads/WB%20GW%20Act%20&%20Rules.pdf.

[18]. AIR 1960 SC 554, Hamdard Dawakhana and Anr. vs. Union of India and Ors., Supreme Court of India.

[20]. Ministry of Finance, Department of Economic Affairs January 7, 2005, https://dea.gov.in/sites/default/files/om_budget_28042016.pdf.

[21]. Report No.CA 1 of 2008, Comptroller and Auditor General of India, 2008, https://cag.gov.in/uploads/old_reports/union/union_compliance/2007_2008/Civil/Report_no_1/chap_6.pdf

[22]. The Uttar Pradesh Ground Water (Management and Regulation) Act, 2019, https://prsindia.org/files/bills_acts/acts_states/uttar-pradesh/2019/2019UP13.pdf.

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