
स्टेट लेजिसलेटिव ब्रीफ
राजस्थान गैरकानूनी धर्मांतरण निषेध बिल, 2025
मुख्य विशेषताएं
प्रमुख मुद्दे और विश्लेषण
भाग क: बिल की मुख्य विशेषताएं
2025 तक 11 राज्यों ने सार्वजनिक व्यवस्था के आधार पर धर्मांतरण को रेगुलेट करने के लिए कानून पारित किए हैं (विवरण के लिए अनुलग्नक में तालिका 2 देखें)। संविधान का अनुच्छेद 25 अंतःकरण की स्वतंत्रता का मौलिक अधिकार प्रदान करता है जिसके तहत व्यक्ति को धर्म को स्वतंत्र रूप से मानने, उसका अभ्यास करने और उसका प्रचार करने का अधिकार है। सर्वोच्च न्यायालय (1977) ने फैसला दिया था कि इस मौलिक अधिकार में किसी अन्य व्यक्ति को अपने धर्म में परिवर्तित करने का अधिकार शामिल नहीं है बल्कि इसमें अपने सिद्धांतों की व्याख्या करके अपने धर्म को प्रसारित या फैलाना शामिल है।[1]
राजस्थान विधानसभा ने 2006 और 2008 में धर्मांतरण को रेगुलेट करने के लिए कानून पारित किए थे; हालांकि इन्हें स्वीकृति नहीं मिली।[2] राजस्थान गैरकानूनी धर्मांतरण निषेध बिल, 2025 को फरवरी 2025 में विधानसभा में पेश किया गया था।[3]
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तालिका 1: गैरकानूनी धर्मांतरण के लिए दंड
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धर्मांतरण करने वाले व्यक्ति को धर्मांतरण के बाद भी डीएम को एक और घोषणा पत्र भेजना होगा। इस घोषणा को नोटिस बोर्ड पर प्रदर्शित किया जाएगा जिसमें उस व्यक्ति का विवरण होगा, जैसे पिता का नाम, जन्म तिथि, पता, निवास स्थान और जिस धर्म में और जिस धर्म से उसने परिवर्तन किया है, उसका विवरण। अगर डीएम को कोई आपत्ति प्राप्त होती है, तो आपत्तिकर्ता का विवरण और आपत्ति की प्रकृति दर्ज की जाएगी। धर्म परिवर्तन करने वाले व्यक्ति को अपनी पहचान स्थापित करने और अपनी घोषणा की विषयवस्तु की पुष्टि करने के लिए डीएम के समक्ष उपस्थित होना होगा।
उपरोक्त व्यवस्था का पालन किए बिना होने वाले धर्मांतरण को अवैध और अमान्य माना जाएगा। धर्मांतरण की पूर्व घोषणा न करने पर छह महीने से तीन वर्ष तक की कैद और न्यूनतम 10,000 रुपए का जुर्माना हो सकता है। आवश्यक सूचना न देने पर धर्म परिवर्तन कराने वाले व्यक्ति को एक से पांच वर्ष तक का कारावास तथा न्यूनतम 25,000 रुपए का जुर्माना देना होगा।
भाग ख: प्रमुख मुद्दे और विश्लेषण
धर्मांतरण को रेगुलेट करने के सिद्धांत
1960 के दशक में ओड़िशा और मध्य प्रदेश ने बल, धोखाधड़ी या लालच के जरिए धर्मांतरण को प्रतिबंधित करने के लिए कानून पारित किए।[4],[5] इन कानूनों को दो आधारों पर न्यायालयों के समक्ष चुनौती दी गई: (i) राज्य विधायिका के पास विधायी क्षमता नहीं है क्योंकि कानून धर्म को रेगुलेट करता है, जो संघ सूची के तहत एक विषय है, और (ii) उन्होंने धर्म का प्रचार करने के मौलिक अधिकार का उल्लंघन किया है। सर्वोच्च न्यायालय (1977) ने इन कानूनों को यह कहते हुए बरकरार रखा कि वे जबरन धर्मांतरण को प्रतिबंधित करके सार्वजनिक व्यवस्था को रेगुलेट करते हैं।1 सार्वजनिक व्यवस्था राज्य सूची के तहत एक विषय है। ये कानून स्वयं धर्म को रेगुलेट नहीं करते हैं।1 न्यायालय ने यह भी कहा कि धर्मांतरण का अधिकार धर्म का प्रचार करने के अधिकार का हिस्सा नहीं है।1 इसमें केवल अपने सिद्धांतों को समझाकर किसी के धर्म का प्रसार करने की स्वतंत्रता शामिल है।1
पुनः धर्मांतरण के विभिन्न प्रावधान समानता के अधिकार का उल्लंघन कर सकते हैं
यह बिल धर्मांतरण को रेगुलेट करता है और जबरन धर्मांतरण पर प्रतिबंध लगाता है। किसी व्यक्ति द्वारा अपने पिछले धर्म में पुनः धर्मांतरण को इस बिल के तहत धर्मांतरण नहीं माना जाएगा। इससे कानून के समक्ष समानता के अधिकार पर सवाल उठता है।
सर्वोच्च न्यायालय (1950) का मानना है कि संविधान का अनुच्छेद 14 सभी व्यक्तियों के लिए समान व्यवहार की अपेक्षा करता है, वहीं यह असमान वर्गों के व्यक्तियों के लिए भिन्न व्यवहार की अनुमति देता है।[6] ऐसा व्यवहार तभी अनुमत है, जब निम्नलिखित तीन शर्तें पूरी हों: (i) वर्ग एक-दूसरे से स्पष्ट रूप से भिन्न हों, (ii) कोई वैध उद्देश्य हो, और (iii) ऐसा वर्गीकरण उद्देश्य को पूरा करता हो। धर्मांतरण और पुनः धर्मांतरण, दोनों ही मामलों में व्यक्ति का धर्मांतरण शामिल होता है। हालांकि यह बिल केवल धर्मांतरण के मामलों पर लागू होता है, पुनः धर्मांतरण के मामलों पर नहीं। जहां धर्मांतरण बल या लालच के कारण हो सकता है, वहीं पुनः धर्मांतरण के भी बलपूर्वक होने की आशंका है। प्रश्न यह है कि क्या धर्मांतरण और अपने पिछले धर्म में पुनः धर्मांतरण के लिए भिन्न व्यवहार अनुच्छेद 14 के मानकों को पूरा करता है।
हिमाचल प्रदेश धर्म स्वतंत्रता एक्ट, 2006 में भी पुनः धर्मांतरण का ऐसा ही प्रावधान था। इसमें किसी व्यक्ति को उसके मूल धर्म में वापस लौटने से छूट दी गई थी।7 उच्च न्यायालय ने इस प्रावधान को अतार्किक और अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करने वाला घोषित किया था[7] और इस प्रावधान को रद्द कर दिया था।8
धर्मांतरण के बाद सार्वजनिक सूचना प्राइवेसी के अधिकार का उल्लंघन हो सकती है
बिल के तहत, धर्मांतरण करने वाले व्यक्ति को धर्मांतरण के बाद डीएम को एक घोषणा पत्र भेजना होगा। यह घोषणा पत्र डीएम कार्यालय के नोटिस बोर्ड पर पिता का नाम, वर्तमान निवास का पता और जन्मतिथि जैसे विवरणों के साथ प्रदर्शित किया जाएगा। धर्मांतरण के साथ-साथ व्यक्ति के ऐसे व्यक्तिगत विवरणों को सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित करने की आवश्यकता उसकी प्राइवेसी के अधिकार का उल्लंघन हो सकती है।
सर्वोच्च न्यायालय (2017) का मानना है कि व्यक्तियों को प्राइवेसी का अधिकार है।[8] उनकी व्यक्तिगत पसंद, जो उनके जीवन जीने के तरीके को नियंत्रित करती है, प्राइवेसी का अभिन्न अंग है, और इसमें आस्था का चुनाव और आचरण भी शामिल हो सकता है।9 न्यायालय ने यह भी माना था कि किसी व्यक्ति की धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार में यह भी शामिल है कि वह अपनी आस्था चुन सके, और उसे आजादी है कि वह इस पसंद को सार्वजनिक रूप से घोषित न करे।9 उल्लेखनीय है कि विशेष विवाह एक्ट, 1954 के तहत भी विवाह के इच्छुक जोड़े की जानकारी सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित करनी होती है।[9] हालांकि इलाहाबाद उच्च न्यायालय (2020) ने फैसला दिया है कि चूंकि विवाह एक व्यक्तिगत मामला है, इसलिए सार्वजनिक सूचना की आवश्यकता स्वैच्छिक है, अनिवार्य नहीं।[10]
किसी व्यक्ति के प्राइवेसी के अधिकार को कानून द्वारा प्रतिबंधित किया जा सकता है, अगर निम्नलिखित शर्तें पूरी होती हैं: (i) एक वैध सार्वजनिक उद्देश्य है, (ii) कानून का ऐसे उद्देश्य से तर्कसंगत संबंध है, और (iii) प्राइवेसी का उल्लंघन आवश्यक है और उद्देश्य के अनुपात में है।9 बिल का उद्देश्य जबरन धर्मांतरण पर रोक लगाकर सार्वजनिक व्यवस्था कायम करना है, जो पहली शर्त को पूरा करता है। हालांकि सभी धर्मांतरणों की सार्वजनिक सूचना को अनिवार्य करने से सार्वजनिक व्यवस्था की और समस्याएं पैदा हो सकती हैं क्योंकि ऐसे धर्मांतरणों का खुलासा करने से सांप्रदायिक झड़पें हो सकती हैं। हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय (2011) ने हिमाचल प्रदेश धार्मिक स्वतंत्रता एक्ट, 2006 में सार्वजनिक सूचना की आवश्यकताओं की जांच करते समय इसी तरह की टिप्पणियां की थीं।8 न्यायालय ने कहा था कि राज्य द्वारा प्रस्तावित सार्वजनिक सूचना का उपाय सार्वजनिक व्यवस्था के लिए खतरे की समस्या से अधिक हानिकारक हो सकता है।8 ऐसे मामले हो सकते हैं, जब धर्मांतरण करने वाले को प्रभावित पक्षों द्वारा शारीरिक और मानसिक यातना दी जाती है। 2006 के एक्ट को 2019 में बदल दिया गया और नए कानून में धर्मांतरण के लिए सार्वजनिक सूचना अनिवार्य नहीं है।[11]
कर्नाटक, हरियाणा और उत्तर प्रदेश को छोड़कर अन्य राज्यों के कानूनों में धर्मांतरण को सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित करने की आवश्यकता नहीं है। इनमें केवल यह प्रावधान है कि व्यक्ति को डीएम को अग्रिम सूचना देनी होगी, जिसके बाद डीएम द्वारा धर्मांतरण के कारण, आशय और उद्देश्य की जांच की जाएगी। बिल में पहले से ही ऐसी ही व्यवस्था है।
धर्मांतरण की प्रक्रिया
बिल में धर्मांतरण की प्रक्रिया का विवरण दिया गया है, जिसमें धर्मांतरण से पहले और बाद में उठाए जाने वाले कदम भी शामिल हैं। हालांकि, कई विवरण गायब प्रतीत होते हैं, जिससे धर्मांतरण की प्रक्रिया पर स्पष्टता का अभाव हो सकता है। हम यहां इनमें से कुछ पर चर्चा कर रहे हैं।
जांच पूरी करने की प्रक्रिया और समय-सीमा पर कोई स्पष्टता नहीं
बिल के तहत धर्मांतरण करने और धर्मांतरण कराने वाले व्यक्ति डीएम को इसकी जानकारी देंगे, इसके बाद डीएम द्वारा जांच की जाएगी। पुलिस की मदद से की जाने वाली इस जांच में धर्मांतरण के वास्तविक इरादे की पुष्टि की जा सकती है। हालांकि जांच की प्रक्रिया स्पष्ट नहीं है। बिल में यह भी स्पष्ट नहीं किया गया है कि ऐसी जांच कितने दिनों के भीतर पूरी की जानी चाहिए।
कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) एक्ट, 2013 जैसे अन्य कानूनों में इस तरह के विवरण दिए गए हैं।[12] 2013 के एक्ट में यौन उत्पीड़न की शिकायतों की जांच के लिए एक आंतरिक समिति गठित करने का प्रावधान है।13 यह समिति गवाहों को बुलाकर और संबंधित दस्तावेज़ प्रस्तुत करके जांच करती है।13 यह जांच शिकायत की तारीख से 90 दिनों के भीतर पूरी होनी चाहिए।13
जांच के बाद डीएम द्वारा उठाए जाने वाले कदमों पर स्पष्टता का अभाव
बिल में डीएम से यह अपेक्षा की गई है कि वह धर्मांतरण से पहले धर्मांतरण के वास्तविक उद्देश्य को समझने के लिए जांच करे। हालांकि बिल यह स्पष्ट नहीं करता कि जांच के बाद डीएम द्वारा क्या कदम उठाए जाएंगे।
हरियाणा धर्म स्वतंत्रता एक्ट, 2022 के अंतर्गत, अगर धर्मांतरण से पहले प्रदर्शित सार्वजनिक सूचना पर कोई आपत्ति प्राप्त होती है, तो डीएम द्वारा जांच की जाती है।[13] अगर डीएम इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि धर्मांतरण बलपूर्वक, गलत बयानी, धोखाधड़ी, जबरदस्ती या लालच से किया गया है, तो लिखित में कारण बताकर धर्मांतरण को अस्वीकार किया जा सकता है।14 जांच के दौरान अगर डीएम इस बात से संतुष्ट है कि धर्मांतरण स्वेच्छा से किया गया है और जबरन नहीं, तो उसके द्वारा एक प्रमाण पत्र जारी किया जाता है।14 इनमें से कोई भी आदेश एक निश्चित अवधि के भीतर पारित किया जाना चाहिए।
धर्मांतरण पर आपत्तियों के असर और धर्मांतरण पूरा होने के संबंध में स्पष्टता का अभाव
धर्मांतरण के बाद डीएम को धर्मांतरण की घोषणा की एक प्रति नोटिस बोर्ड पर प्रदर्शित करनी होगी। अगर डीएम को सार्वजनिक सूचना पर कोई आपत्ति प्राप्त होती है, तो उसे आपत्ति की प्रकृति और विवरण दर्ज करना होगा। हालांकि बिल यह स्पष्ट नहीं करता कि धर्मांतरण कब पूरा हो जाएगा। बिल यह भी स्पष्ट नहीं करता कि ऐसी आपत्तियां प्राप्त होने का धर्मांतरण प्रक्रिया पर क्या प्रभाव पड़ेगा।
कर्नाटक धर्म अधिकार संरक्षण एक्ट, 2022 के अनुसार, धर्मांतरण से पहले और बाद में सार्वजनिक सूचना प्रदर्शित करना भी अनिवार्य है।[14] कर्नाटक के कानून के तहत, अगर डीएम को धर्मांतरण के बाद कोई आपत्ति प्राप्त होती है, तो उसे धर्मांतरण के उद्देश्य को समझने के लिए पुनः जांच करनी होगी।15 जांच के बाद अगर डीएम इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि कानून के तहत कोई अपराध हुआ है, तो उसके द्वारा पुलिस अधिकारियों से आपराधिक कार्रवाई शुरू करने का अनुरोध किया जा सकता है।15 अगर डीएम धर्मांतरण के इरादे से संतुष्ट है, तो उसके द्वारा आधिकारिक अधिसूचना जारी की जाएगी और संबंधित अधिकारियों को धर्मांतरण के बारे में सूचित किया जाएगा।15
अपील की व्यवस्था का अभाव
बिल के अनुसार, जिले में धर्मांतरण की निगरानी की ज़िम्मेदारी डीएम की है। डीएम को घोषणाएं प्राप्त होंगी, उसके द्वारा पुलिस की मदद से जांच की जाएगी, धर्मांतरण की सार्वजनिक सूचना जारी की जाएगी और प्राप्त आपत्तियों को दर्ज किया जाएगा। डीएम द्वारा धर्मांतरण की सार्वजनिक सूचना जारी न करने पर भी धर्मांतरण अवैध और अमान्य हो सकता है। हालांकि बिल में ऐसी कोई अपील व्यवस्था नहीं है जिसका पालन व्यक्ति तब कर सकता है, जब वह डीएम की कार्यप्रणाली से परेशान हो।
हरियाणा गैरकानूनी धर्म परिवर्तन रोकथाम एक्ट 2022 के तहत, जांच करने के बाद डीएम द्वारा धर्मांतरण को कानूनी या अवैध घोषित किया जा सकता है।14 अगर कोई व्यक्ति डीएम के फैसले से व्यथित है, तो वह डिविजनल कमीश्नर के पास अपील कर सकता है।14
कई डीएम को शामिल करने से भ्रम पैदा हो सकता है
बिल में यह कहा गया है कि डीएम को धर्मांतरण से पहले और बाद की प्रक्रियाओं को पूरा करना होगा। धर्मांतरण के इच्छुक व्यक्ति को यह घोषणा उस जिले के डीएम को करनी होगी, जिसमें वह व्यक्ति रहता है। इसी तरह धर्मांतरण कराने वाले व्यक्ति को भी उस जिले के डीएम को अग्रिम सूचना देनी होगी, जहां धर्मांतरण किया जाएगा। ये दोनों घोषणाएं प्राप्त होने के बाद, डीएम को पुलिस की मदद से जांच करनी होगी। जिन मामलों में, जहां धर्मांतरण कराने वाला व्यक्ति एक जिले में रहता है, और धर्मांतरण किसी दूसरे जिले में होने वाला है, दो डीएम शामिल होंगे। ऐसे में यह स्पष्ट नहीं है कि जांच की जिम्मेदारी किस डीएम की होगी।
अगर डीएम नोटिस को प्रदर्शित नहीं करता तो धर्मांतरण को अवैध और अमान्य घोषित किया जा सकता है
बिल में कहा गया है कि कुछ मामलों में धर्म परिवर्तन को अवैध और अमान्य घोषित किया जा सकता है। ऐसा ही एक मामला वह है, जब डीएम धर्म परिवर्तन के बारे में सार्वजनिक सूचना प्रदर्शित न करे। ऐसे में बिल किसी व्यक्ति के धर्म परिवर्तन को अमान्य घोषित करने की अनुमति देता है, जबकि उस व्यक्ति की अपनी कोई गलती नहीं है। प्रश्न यह है कि क्या यह उचित है।
अपराध और सजा
बर्डन ऑफ प्रूफ के खिलाफ सुरक्षा उपायों की कमी अनुच्छेद 21 का उल्लंघन हो सकती है
बिल धर्म परिवर्तन कराने वाले व्यक्ति पर बर्डन ऑफ प्रूफ डालता है। आरोपी को यह साबित करना होगा कि धर्म परिवर्तन बल, गलत बयानी, जबरदस्ती, लालच, विवाह या किसी भी धोखाधड़ी के जरिए नहीं कराया गया था। भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 के अनुसार, सबूत देने करने का भार प्रॉसीक्यूशन पर है।[15] हालांकि सर्वोच्च न्यायालय ने माना है कि कुछ परिस्थितियों में सबूत देने का बोझ उलटा किया जा सकता है और इसे आरोपी पर डाला जा सकता है। इनमें निम्नलिखित शामिल हैं: (i) आरोपी को विशेष तथ्यों की जानकारी है, (ii) प्रॉसीक्यूशन अपराध को सिद्ध करने के लिए आधारभूत तथ्य देता है, (iii) आरोपी को नकारात्मक तथ्य साबित नहीं करने होते, और (iv) खुद को निर्दोष साबित करने का भार आरोपी के लिए कठिनाई पैदा नहीं करेगा।[16],[17],[18] बिल बर्डन ऑफ प्रूफ को उलटते समय ऐसे सुरक्षात्मक उपाय निर्दिष्ट नहीं करता। इस प्रकार यह संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन हो सकता है जिसकी व्याख्या इस प्रकार की गई है कि सभी कानून या प्रक्रियाएं निष्पक्ष और उचित होनी चाहिए।
नारकोटिक ड्रग्स और साइकोट्रॉपिक पदार्थ एक्ट, 1985 (एनडीपीएस) जैसे कई कानून बर्डन ऑफ प्रूफ को उलटते हैं लेकिन वे आरोपी के लिए कुछ सुरक्षात्मक उपाय भी प्रदान करते हैं।[19] 1985 के एक्ट में प्रॉसीक्यूशन को पहले आरोपी के पास मादक पदार्थ होने का सबूत देना होगा, जिसके बाद बर्डन ऑफ प्रूफ आरोपी पर आ जाता है।
महिलाओं और एसी/एसटी समुदायों के लोगों के लिए अलग-अलग दंड समानता के अधिकार का उल्लंघन हो सकता है
बिल में नाबालिग, महिला और अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति समुदायों के व्यक्तियों के गैरकानूनी धर्मांतरण के लिए अलग-अलग दंड निर्धारित किए गए हैं। बिल में इन समूहों के धर्मांतरण के लिए कारावास की अवधि और जुर्माने की राशि लगभग दोगुनी कर दी गई है। हालांकि नाबालिग कानूनी रूप से अपने अभिभावक पर निर्भर होते हैं और उन्हें उच्च सुरक्षा की आवश्यकता होती है, फिर भी यह प्रश्न उठ सकता है कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समुदायों की महिलाओं और व्यक्तियों को ऐसी सुरक्षा किस आधार पर प्रदान की गई है।
महिलाओं तथा अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति समुदायों के लोगों के लिए अलग-अलग दंड का यह प्रावधान अरुणाचल प्रदेश को छोड़कर सभी राज्यों में धार्मिक स्वतंत्रता कानूनों के समान है (अनुलग्नक में तालिका 2 देखें)।
अधिकतम जुर्माना अनिर्धारित है
बिल अपराधों के लिए जुर्माने की न्यूनतम राशि निर्दिष्ट करता है। हालांकि जुर्माना राशि की कोई अधिकतम सीमा निर्धारित नहीं की गई है। इससे अदालतों द्वारा लगाए जा सकने वाले जुर्माने की अधिकतम राशि पर सवाल उठ सकता है। भारतीय न्याय संहिता, 2023 में कहा गया है कि जब जुर्माने की कोई अधिकतम सीमा निर्धारित नहीं होती है, तो आरोपी द्वारा चुकाई जाने वाली अधिकतम राशि असीमित होती है, लेकिन यह अत्यधिक नहीं होनी चाहिए।[20] दिल्ली उच्च न्यायालय (2016) ने कहा था कि जुर्माने की राशि अपराध की गंभीरता के अनुपात में होनी चाहिए।[21] बिल में जुर्माने की अधिकतम सीमा का अभाव गैर अनुपातिक दंड का कारण बन सकता है।
अरुणाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, झारखंड और ओड़िशा जैसे राज्यों ने अपने धर्मांतरण कानूनों में अधिकतम जुर्माना निर्दिष्ट किया है (अनुलग्नक में तालिका 2 देखें)।
जुर्माने के अतिरिक्त मुआवज़ा देना अनुचित हो सकता है
बिल में कहा गया है कि अदालत आरोपी को जुर्माने के अलावा पीड़ित को पांच लाख रुपए तक का मुआवज़ा देने के लिए कह सकती है। भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 के अनुसार, अदालतें निम्नलिखित मामलों में अतिरिक्त मुआवज़ा वसूल सकती हैं: (i) प्रॉसीक्यूशन के दौरान हुए खर्चों की भरपाई के लिए, (ii) चोट से हुई हानि के लिए, (iii) मृत्यु से हुई हानि के लिए, और (iv) चोरी, विश्वासघात या धोखाधड़ी से हुई संपत्ति की हानि के लिए।[22] इस मामले में बिल यह स्पष्ट नहीं करता कि जबरन धर्मांतरण से कितना नुकसान हो सकता है। इसमें उन आधारों का भी उल्लेख नहीं है जिनके तहत ऐसा अतिरिक्त मुआवज़ा वसूला जा सकता है।
हरियाणा, कर्नाटक, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश में धर्मांतरण कानूनों में अतिरिक्त मुआवजा देने के समान प्रावधान मौजूद हैं (अनुलग्नक में तालिका 2 देखें)।
अनुलग्नक तालिका 2: धर्म परिवर्तन कानूनों के बीच तुलना |
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राज्य/लागू होने का वर्ष |
पिछले धर्म में पुनः धर्मांतरण पर छूट
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विवाह द्वारा धर्मांतरण पर प्रतिबंध
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सार्वजनिक नोटिस का प्रदर्शन
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शिकायत कौन दर्जा करा सकता है, उसका उल्लेख
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सजा |
संवेदनशील समूहों के लिए दंड का वर्गीकरण
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जुर्माने के अलावा मुआवज़ा
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धर्म परिवर्तन कराने वाले पर बर्डन ऑफ प्रूफ
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राजस्थान (2025)3 |
हां |
हां |
हां |
हां |
कारावास: 1-5 वर्ष, जुर्माना: कम से कम 15,000 रुपए |
हां |
हां। पांच लाख तक |
हां |
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कर्नाटक (2022)15 |
हां |
हां |
हां |
हां |
कारावास: 3-5 वर्ष, जुर्माना: कम से कम ₹25,000 |
हां |
हां। पांच लाख तक |
हां |
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हरियाणा (2022)14 |
निर्दिष्ट नहीं |
हां |
हां |
हां |
कारावास: 1-5 वर्ष, जुर्माना: कम से कम ₹1,00,000 |
हां |
हां। राशि निर्दिष्ट नहीं |
हां |
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मध्य प्रदेश (2021)4 |
निर्दिष्ट नहीं |
हां |
निर्दिष्ट नहीं |
हां |
कारावास: 1-5 वर्ष, जुर्माना: कम से कम ₹25,000 |
हां |
निर्दिष्ट नहीं |
हां |
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उत्तर प्रदेश (2021)[23] |
हां |
हां |
हां |
हां |
कारावास: 1-5 वर्ष, जुर्माना: कम से कम 15,000 रुपए |
हां |
हां। पांच लाख तक |
हां |
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हिमाचल प्रदेश (2019)[24] |
हां |
हां |
निर्दिष्ट नहीं |
निर्दिष्ट नहीं |
कारावास: 1-5 वर्ष, जुर्माना: राशि निर्दिष्ट नहीं |
हां |
निर्दिष्ट नहीं |
हां (धर्मांतरण करने वाले व्यक्ति पर) |
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उत्तराखंड (2018)[25] |
हां |
हां |
निर्दिष्ट नहीं |
हां |
कारावास: 1-5 वर्ष, जुर्माना: राशि निर्दिष्ट नहीं |
हां |
निर्दिष्ट नहीं |
हां (धर्मांतरण करने वाले व्यक्ति पर) |
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झारखंड (2017)[26] |
निर्दिष्ट नहीं |
निर्दिष्ट नहीं |
निर्दिष्ट नहीं |
निर्दिष्ट नहीं |
कारावास: 3 वर्ष तक, जुर्माना: 50,000 रुपए तक |
हां |
निर्दिष्ट नहीं |
निर्दिष्ट नहीं |
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छत्तीसगढ़ (2006)[27] |
हां |
निर्दिष्ट नहीं |
निर्दिष्ट नहीं |
निर्दिष्ट नहीं |
कारावास: 3 वर्ष तक, जुर्माना: 20,000 रुपए तक |
हां |
निर्दिष्ट नहीं |
निर्दिष्ट नहीं |
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गुजरात (संशोधन) (2021)[28] |
निर्दिष्ट नहीं |
हां |
निर्दिष्ट नहीं |
हां |
कारावास: 3-5 वर्ष, जुर्माना: कम से कम 2 लाख रुपए |
हां |
निर्दिष्ट नहीं |
हां |
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अरुणाचल प्रदेश (1978)[29] |
निर्दिष्ट नहीं |
निर्दिष्ट नहीं |
निर्दिष्ट नहीं |
निर्दिष्ट नहीं |
कारावास: 2 वर्ष तक, जुर्माना: 10,000 रुपए तक |
निर्दिष्ट नहीं |
निर्दिष्ट नहीं |
निर्दिष्ट नहीं |
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ओड़िशा (1967)5 |
निर्दिष्ट नहीं |
निर्दिष्ट नहीं |
निर्दिष्ट नहीं |
निर्दिष्ट नहीं |
कारावास: 1 वर्ष तक जुर्माना: 5,000 रुपए तक |
हां |
निर्दिष्ट नहीं |
निर्दिष्ट नहीं |
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स्रोत: 'राज्य/लागू होने का वर्ष' कॉलम में चिह्नित एंडनोट्स को देखें; पीआरएस। |
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[1]. Rev. Stainislaus vs State Of Madhya Pradesh & Others, 1977 AIR 908, Supreme Court of India, January 17, 1977, https://api.sci.gov.in/jonew/judis/5403.pdf.
[2]. Bills and Acts, Rajasthan State Legislative Assembly website as accessed on September 01, 2025, https://assembly.rajasthan.gov.in/Containers/Legislation/GovernmentBills.aspx.
[3]. The Rajasthan Prohibition of Unlawful Conversion of Religion Bill, 2025,
https://prsindia.org/files/bills_acts/bills_states/rajasthan/2025/Bill1of2025RJ.pdf.
[4]. The Madhya Pradesh Freedom of Religion Act, 2021, https://prsindia.org/files/bills_acts/acts_states/madhya-
pradesh/2021/ACT%20No%205%20of%202021%20MP.pdf.
[5]. The Orissa Freedom of Religion Act, 1967, https://law.odisha.gov.in/sites/default/files/2020-12/act_884132771_1437987451.pdf.
6. Chiranjit Lal Chowdhuri vs The Union of India and others, W. P. (Civil) No. 72 of 1950, Supreme Court of India, December 4, 1950, https://api.sci.gov.in/jonew/judis/1227.pdf.
[7]. Evangelical Fellowship v. State of Himachal Pradesh, W.P. (Civil) No. 438 of 2011, High Court of Himachal Pradesh, August 30, 2012,
[8]. Justice K.S. Puttaswamy (Retd) vs. Union of India, W.P. (Civil) No. 494 of 2012, Supreme Court of India, August 24, 2017, https://api.sci.gov.in/supremecourt/2012/35071/35071_2012_Judgement_26-Sep-2018.pdf.
[9]. The Special Marriage Act, 1954, https://www.indiacode.nic.in/bitstream/123456789/15480/1/special_marriage_act.pdf.
[10]. Safiya Sultana v. State of Uttar Pradesh, W.P. (Civil) No. 16907 of 2020, High Court of Allahabad, January 12, 2021,https://elegalix.allahabadhighcourt.in/elegalix/WebDownloadOriginalHCJudgmentDocument.do?translatedJudgmentID=1729.
[11]. The Himachal Pradesh Freedom of Religion Act, 2019, https://prsindia.org/files/bills_acts/acts_states/himachalpradesh/2019/Act%2013%20of%202019%20HP.pdf.
[12]. The Sexual Harassment of Women at Workplace (Prevention, Prohibition and Redressal) Act, 2013, https://www.indiacode.nic.in/bitstream/123456789/2104/1/A2013-14.pdf.
[13]. The Haryana Prevention of Unlawful Conversion of Religion Act, 2022, https://prsindia.org/files/bills_acts/acts_states/haryana/2022/Act%20No.%2016%20of%202022%20Haryana.pdf.
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