स्टेट लेजिसलेटिव ब्रीफ |
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असम, गोवा, गुजरात, हरियाणा, हिमाचल, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, ओड़िशा, पंजाब, राजस्थान, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश |
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श्रम कानूनों में छूट देने वाले अध्यादेश और अधिसूचनाएं |
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मुख्य विशेषताएं
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विचारणीय मुद्दे
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वर्तमान में श्रम के विभिन्न पहलुओं को रेगुलेट करने वाले लगभग 100 राज्य कानून और 40 केंद्रीय कानून हैं। ये कानून औद्योगिक विवादों को निपटाने, कार्यस्थितियों, सामाजिक सुरक्षा और वेतन इत्यादि पर केंद्रित हैं।[1] श्रम कानूनों के अनुपालन को आसान बनाने और उनमें एकरूपता लाने के लिए दूसरे राष्ट्रीय श्रम आयोग (2002) ने सुझाव दिया था कि मौजूदा श्रम कानूनों को एकीकृत किया जाए।[2] पिछले कई वर्षों के दौरान केंद्र सरकार ने वेतन, व्यवसायगत सुरक्षा एवं स्वास्थ्य, औद्योगिक संबंध और सामाजिक सुरक्षा से संबंधित विभिन्न श्रम कानूनों के स्थान पर चार संहिताओं को पेश किया है। संसद ने इनमें से कोड ऑन वेजेज़, 2019 को पारित कर दिया है।
श्रम संविधान की समवर्ती सूची में आने वाला विषय है।[3] इसलिए संसद और राज्य विधानसभाएं, दोनों श्रम को रेगुलेट करने के लिए कानून बना सकती हैं। राज्य अपने कानून बनाकर या राज्य में लागू होने वाले केंद्रीय श्रम कानूनों में संशोधन करके श्रम को रेगुलेट कर सकते हैं। जिन स्थितियों में केंद्रीय और राज्य कानूनों में तालमेल न हो, वहां केंद्रीय कानून लागू होते हैं। हालांकि केंद्रीय कानून से तालमेल न रखने वाला राज्य कानून उस स्थिति में राज्य में लागू रह सकता है, जब उसे राष्ट्रपति की सहमति मिल जाए।[4]
भारत में कोविड-19 की रोकथाम के लिए केंद्र सरकार ने 24 मार्च, 2020 को देश व्यापी लॉकडाउन किया।[5] लॉकडाउन के अंतर्गत अनिवार्य गतिविधियों को छोड़कर अधिकतर आर्थिक गतिविधियों पर रोक थी। इस दौरान राज्यों ने गौर किया कि आर्थिक गतिविधियां न होने के कारण अनेक लोगों और व्यवसायों को आय का नुकसान हुआ।[6],[7] आर्थिक गतिविधियों को दोबारा शुरू करने और नए निवेश को आकर्षित करने के लिए कुछ राज्यों ने कुछ इस्टैबलिशमेंट्स को मौजूदा श्रम कानूनों और रेगुलेशंस में छूट दी है। इस नोट में श्रम कानूनों में छूट से संबंधित मुख्य मुद्दों का विश्लेषण किया गया है।
मुख्य परिवर्तन और विचारणीय मुद्दे
विभिन्न राज्यों ने निवेश को आकर्षित करने और आर्थिक वृद्धि को बढ़ावा देने के लिए श्रम कानूनों में राहत को मंजूरी दी है। ये दो प्रकार से किया गया है: (i) कारखानों में काम के घंटों को बढ़ाकर, और (ii) इस्टैबलिशमेंट्स को कुछ श्रम कानूनों से छूट देकर (मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के मामलों में)। मध्य प्रदेश ने औद्योगिक विवाद को हल करने, स्वास्थ्य एवं सुरक्षा संबंधी सुविधाएं प्रदान करने तथा निरीक्षण इत्यादि को रेगुलेट करने वाले कानूनों से कारखानों को छूट दी है। उत्तर प्रदेश ने कारखानों को कुछ शर्तों के साथ सभी श्रम कानूनों से छूट देने का प्रस्ताव रखा है। हम यहां विभिन्न राज्यों में इन परिवर्तनों से जुड़े मुख्य मुद्दों का विश्लेषण कर रहे हैं।
काम के घंटों में बदलाव
कोविड-19 की रोकथाम के लिए लॉकडाउन की घोषणा की गई थी। इस लॉकडाउन में राहत देने के साथ कारखानों को काम करने की अनुमति दी गई। हालांकि कुछ राज्य सरकारों ने कहा कि लॉकडाउन के कारण श्रमिकों की कमी हो गई है। इस संबंध में असम, गोवा, गुजरात, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, ओड़िशा, पंजाब, राजस्थान और उत्तर प्रदेश सरकारों ने अपने राज्य के श्रमिकों के काम के अधिकतम घंटों को बढ़ाकर 12 घंटे कर दिया। कर्नाटक और उत्तराखंड ने काम के घंटों को बढ़ाकर क्रमशः 10 और 11 घंटे कर दिया (उत्तराखंड में सतत प्रक्रिया उद्योगों में 12 घंटे)। कर्नाटक, राजस्थान और उत्तर प्रदेश ने बाद में अपनी अधिसूचनाएं वापस ले लीं। तालिका 1 में कारखानों में दैनिक और साप्ताहिक काम के अधिकतम घंटों को प्रदर्शित किया गया है।
कारखाना एक्ट, 1948 में राज्य सरकारों को अनुमति दी गई है कि वे कुछ स्थितियों में कारखानों को कानून के कुछ प्रावधानों से छूट दे सकती हैं। राज्यों ने काम के घंटों में परिवर्तन के लिए कारखाना एक्ट, 1948 के दो विभिन्न प्रावधानों का उपयोग किया है। ये प्रावधान हैं: (i) पब्लिक इमरजेंसी में तीन महीने की छूट (सेक्शन 5), और (ii) अत्यधिक काम की स्थिति से निपटने के लिए कारखानों को छूट (सेक्शन 65)।[8] गुजरात, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, ओड़िशा और उत्तराखंड ने काम के घंटों को बढ़ाने के लिए ‘पब्लिक इमरजेंसी’ वाली छूट दी है। पब्लिक इमरजेंसी को ऐसी गंभीर इमरजेंसी के तौर पर परिभाषित किया गया है, जब युद्ध, बाहरी आक्रमण या आंतरिक अशांति से राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा हो। यह अस्पष्ट है कि क्या कोविड-19 महामारी या लॉकडाउन को इस परिभाषा के अंतर्गत पब्लिक इमरजेंसी माना जा सकता है। कर्नाटक और उत्तर प्रदेश ने भी काम के घंटों को बढ़ाने के लिए पब्लिक इमरजेंसी वाली छूट का इस्तेमाल किया था, लेकिन उच्च न्यायालय में चुनौती मिलने के बाद इन अधिसूचनाओं को वापस ले लिया गया।
असम, गोवा, हरियाणा और पंजाब ने उस प्रावधान का इस्तेमाल करके काम के घंटों में वृद्धि की, जिसके अंतर्गत अत्यधिक काम की स्थिति में छूट दी जाती है। 1948 का एक्ट ऐसी छूट के लिए निम्नलिखित शर्तों को स्पष्ट करता है: (i) काम के घंटे हफ्ते में 60 घंटों से अधिक नहीं हो सकते, (ii) काम के घंटे दिन में 12 घंटे से अधिक नहीं हो सकते, और काम का विस्तार 13 घंटों से अधिक नहीं हो सकता (विश्राम के अंतराल सहित), और (iii) श्रमिकों से एक स्ट्रेच में सात दिनों से अधिक और एक तिमाही में 75 घंटे से अधिक ओवरटाइम नहीं कराया जा सकता।
उल्लेखनीय है कि भारत ने आवर्स ऑफ वर्क (इंडस्ट्री) (काम के घंटे (उद्योग)) कन्वेंशन, 1919 को मंजूर किया जिसे अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन की जनरल कॉन्फ्रेंस में अनुमोदित किया गया था।[9] कन्वेंशन निर्दिष्ट करता है कि औद्योगिक उपक्रमों में काम के घंटे एक दिन में नौ से अधिक और हफ्ते में 48 से अधिक नहीं होने चाहिए। जिन मामलों में प्रक्रियाओं को निरंतर किया जाता है, वहां काम के अधिकतम घंटे 54 से अधिक नहीं होने चाहिए।
तालिका 1: विभिन्न राज्यों में दैनिक और साप्ताहिक काम के घंटों में बदलाव
राज्य |
इस्टैबलिशमेंट्स |
सप्ताह में काम के अधिकतम घंटे |
दैनिक काम के अधिकतम घंटे |
ओवरटाइम वेतन |
समय अवधि |
असम[10] |
सभी कारखाने |
निर्दिष्ट नहीं |
बढ़ाकर 12 घंटे |
आवश्यक |
तीन महीने |
गोवा[11] |
सभी कारखाने |
48 घंटे से बढ़ाकर 60 घंटे |
बढ़ाकर 12 घंटे |
आवश्यक |
लगभग तीन महीने |
गुजरात[12] |
सभी कारखाने |
बढ़ाकर 72 घंटे |
बढ़ाकर 12 घंटे |
आवश्यक नहीं |
तीन महीने |
हरियाणा[13] |
सभी कारखाने |
निर्दिष्ट नहीं |
बढ़ाकर 12 घंटे |
आवश्यक |
दो महीने |
हिमाचल प्रदेश[14] |
सभी कारखाने |
बढ़ाकर 72 घंटे |
बढ़ाकर 12 घंटे |
आवश्यक |
तीन महीने |
मध्य प्रदेश[15] |
सभी कारखाने |
बढ़ाकर 72 घंटे |
बढ़ाकर 12 घंटे |
आवश्यक |
तीन महीने |
ओड़िशा[16] |
सभी कारखाने |
48 घंटे से बढ़ाकर 72 घंटे |
8 घंटे से बढ़ाकर 12 घंटे |
आवश्यक |
तीन महीने |
पंजाब[17] |
सभी कारखाने |
निर्दिष्ट नहीं |
9 घंटे से बढ़ाकर 12 घंटे |
आवश्यक |
तीन महीने |
सभी कारखाने और निरंतर प्रक्रिया उद्योगों को राज्य सरकार द्वारा कार्य करने की अनुमति |
हफ्ते में अधिकतम 6 दिन काम |
8 घंटे से बढ़ाकर 11 घंटे (निरंतर प्रक्रिया उद्योगों में 12 घंटे) |
आवश्यक |
तीन महीने |
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कर्नाटक*[20] |
सभी कारखाने |
बढ़ाकर 60 घंटे |
बढ़ाकर 10 घंटे |
आवश्यक |
वापस लिया[21] |
राजस्थान*7 |
सभी कारखाने |
48 घंटे से बढ़ाकर 72 घंटे |
8 घंटे से बढ़ाकर 12 घंटे |
आवश्यक |
वापस लिया [22] |
उत्तर प्रदेश*[23] |
सभी कारखाने |
बढ़ाकर 72 घंटे |
बढ़ाकर 12 घंटे |
आवश्यक |
वापस लिया [24] |
Note: *withdrawn. Payment for overtime in Gujarat will be done at a proportionate rate, not at double rate as per the Factories Act, 1948.
Sources: Respective state notifications; PRS.
ओवरटाइम काम के लिए वेतन
कारखाना एक्ट, 1948 में नियोक्ता से यह अपेक्षा की जाती है कि वह एक दिन 9 घंटे से अधिक या हफ्ते में 48 घंटे से अधिक काम करने पर कर्मचारियों को ओवरटाइम वेतन चुकाएगा (सेक्शन 54 और 51)। यह ओवरटाइम वेतन सामान्य वेतन का दोगुना होना चाहिए। उदाहरण के लिए अगर श्रमिक को एक दिन में 9 घंटे काम करने पर 30 रुपए प्रति घंटे के हिसाब से मिलते हैं तो उसे 9 घंटे के बाद काम करने पर प्रति घंटा 60 रुपए भुगतान किया जाएगा। गुजरात सरकार ने अधिसूचना के जरिए सभी कारखानों में काम करने के अनुमत दैनिक घंटों को 9 घंटे से बढ़ाकर 12 घंटे और साप्ताहिक घंटों को 48 घंटे से बढ़ाकर 72 घंटे किया। रोजाना 9 घंटों और हफ्ते में 48 घंटों से अधिक काम करने के लिए अधिसूचना में नियोक्ताओं से आनुपातिक दर से वेतन चुकाने की अपेक्षा की गई है, यानी सामान्य वेतन दर के समान, जोकि कारखाना एक्ट, 1948 का उल्लंघन करता है।
मध्य प्रदेश
मध्य प्रदेश सरकार ने निवेश को आकर्षित करने और आर्थिक वृद्धि को बढ़ावा देने के लिए इस्टैबलिशमेंट्स को कुछ श्रम कानूनों से छूट दी है।[25] तालिका 2 में उन कानूनों को स्पष्ट किया गया है जिनके अंतर्गत छूट दी गई है।
तालिका 2: मध्य प्रदेश में विभिन्न इस्टैबलिशमेंट्स को छूट देने वाले कानून
व्यवस्था |
कानून में छूट/संशोधन |
परिवर्तन |
प्रभाव |
मध्य प्रदेश श्रम कानून (संशोधन) अध्यादेश, 2020[26] |
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औद्योगिक विवाद एक्ट, 1947 के सेक्शन 36बी के अंतर्गत अधिसूचना |
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मध्य प्रदेश औद्योगिक संबंध एक्ट, 1960 के सेक्शन 1 के अंतर्गत अधिसूचना |
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कारखाना एक्ट, 1948 के सेक्शन 5 के अंतर्गत अधिसूचना |
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कारखाना एक्ट, 1948 के सेक्शन 8 और 112 के अंतर्गत अधिसूचना |
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Sources: Respective state and central level Acts; Various notifications, Labour Department, Government of Madhya Pradesh, https://prsindia.org/files/covid19/notifications/4989.MP_exemptions%20under%20labour%20laws_May05.pdf; PRS.
छूट देने का तर्क
मध्य प्रदेश ने विभिन्न इस्टैबलिशमेंट्स को केंद्रीय और राज्य स्तरीय श्रम कानूनों के प्रावधानों से छूट दी है जैसा कि तालिका 2 में स्पष्ट किया गया है। छूट देने का उद्देश्य यह है कि नई कंपनियां राज्य में अधिक निवेश करें और मौजूदा कंपनियों की आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा मिले। इससे दो मुद्दे उठते हैं जिन पर निम्नलिखित चर्चा की गई है।
अस्थायी छूट
मध्य प्रदेश ने श्रम कानूनों के प्रावधानों से विभिन्न समयावधि के लिए इस्टैबलिशमेंट्स को अस्थायी छूट दी है। उदाहरण के लिए सभी नए कारखानों को 1,000 दिनों के लिए एक्ट के प्रावधानों से छूट मिलेगी, सिवाय उनके जो श्रमिकों की छंटनी कर रहे हैं, उपक्रमों को बंद कर रहे हैं या उपक्रमों को शुरू कर रहे हैं।[27] इसके अतिरिक्त कारखानों को कारखाना एक्ट, 1948 के कुछ प्रावधानों का तीन महीने के लिए अनुपालन नहीं करना होगा, जैसे क्रेश, वॉशरूम, कचरे का निस्तारण और खतरनाक कामकाज।25
चूंकि नई कंपनियों को छूट देने का उद्देश्य निवेश को बढ़ाना है, इसलिए श्रम कानूनों से अस्थायी छूट देने से कोई लाभ नहीं होने वाला। कारखाना लगाने और काम शुरू करने में जितना समय लगता है, उसे देखते हुए ऐसी छूट का लाभ बहुत कम समय के लिए उपलब्ध होगा।
श्रम कानून से छूट से अपने आप निवेश आकर्षित नहीं होता
दूसरे राष्ट्रीय श्रम आयोग (2002) ने कहा था कि भारत में मौजूदा श्रम कानून बहुत जटिल, पुराने प्रावधानों और असंगत परिभाषाओं वाले हैं।2 इसके अतिरिक्त 2018-19 के आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया था कि व्यापार की पर्याप्त वृद्धि न होने का तमाम कारणों में से एक है श्रम संबंधी रेगुलेशंस। ये रेगुलेशंस छोटी कंपनियों को अनुपालन से छूट देते हैं, और इस प्रकार उन्हें छोटा ही बने रहने को प्रोत्साहित करते हैं।[28] हालांकि राष्ट्रीय श्रम आयोग (2002) ने यह कहा था कि ऐसा नहीं है कि सिर्फ श्रम कानूनों की वजह से दूसरे देशों की तुलना में विदेशी निवेश आकर्षित नहीं होता।2 उद्योगों की कार्यकुशलता को प्रभावित करने वाले अन्य कारणों में प्रभावशाली और भरोसेमंद इंफ्रास्ट्रक्चर जैसे परिवहन और बिजली की उपलब्धता, अपेक्षित ऋणों का समय पर न मिलना, मैटीरियल की उपलब्धता, प्रतिस्पर्धात्मक तकनीक में निरंतर सुधार होना और सरकारी नीतियां शामिल हैं।2
छूट का केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तावित कानूनों से टकराव हो सकता है
चूंकि श्रम एक समवर्ती विषय है, इसलिए केंद्र सरकार भी इसे रेगुलेट करने के लिए कानून बना सकती है। अगर भविष्य में ऐसे केंद्रीय कानून को लागू किया जाता है जिसका राज्यों द्वारा प्रदत्त छूट से तालमेल न हो तो केंद्रीय कानून बहाल रहेंगे और छूट अमान्य हो जाएगी। उल्लेखनीय है कि केंद्र सरकार ने संसद में तीन श्रम संहिताएं प्रस्तावित की हैं जो व्यवसायगत सुरक्षा एवं स्वास्थ्य, औद्योगिक संबंधों और सामाजिक सुरक्षा से संबंधित मौजूदा केंद्रीय श्रम कानूनों का स्थान लेती हैं। इसके अतिरिक्त संसद ने कोड ऑन वेजेज़, 2019 को पारित किया है जोकि वेतन भुगतान से संबंधित मौजूदा श्रम कानूनों का स्थान लेती है। इसके अधिसूचित होने के बाद मौजूदा कानून रद्द हो जाएंगे।
इसके अतिरिक्त संसद में प्रस्तुत स्वास्थ्य एवं सुरक्षा कानून कारखाना एक्ट, 1948 और औद्योगिक संबंध कानून औद्योगिक विवाद एक्ट, 1947 का स्थान लेते हैं। मध्य प्रदेश ने इन दोनों एक्ट्स के प्रावधानों से छूट दी है। इस प्रकार केंद्रीय स्तर पर कानून पारित होने के बाद छूट बेअसर हो जाएगी।
कारखानों को स्वास्थ्य, सुरक्षा एवं कार्य की स्थितियों से संबंधित प्रावधानों से छूट दी गई है
कारखानों को कारखाना एक्ट, 1948 के कुछ प्रावधानों से छूट दी गई है जोकि श्रमिकों के बुनियादी स्वास्थ्य, सुरक्षा और काम करने की स्थितियों से जुड़े प्रावधानों को सुनिश्चित करता है।25 उदाहरण के लिए कारखानों को अब क्रेश, वॉशरूम्स, पीने के पानी, रोशनी, हवा की सुविधा देने, कचरे का निस्तारण करने की जरूरत नहीं, और वे खतरनाक कामकाज भी कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त कारखानों को एक्ट के अंतर्गत निर्दिष्ट विभिन्न अपराधों के लिए सजा से भी छूट दी गई है, जिनमें निम्नलिखित शामिल हैं: (i) जोखिमपूर्ण प्रक्रियाओं से उत्पन्न खतरे की स्थिति में कोई उपाय न करना, (ii) जोखिमपूर्ण प्रक्रियाओं से जुड़े खतरों की जानकारी न देना, (iii) जोखिमपूर्ण पदार्थों की हैंडलिंग के लिए क्वालिफाइड श्रमिकों को नियुक्त न करना, और (iv) ऐसा काम के लिए श्रमिकों की सुरक्षा के लिए जरूरी सुविधाएं न देना।
दूसरे राष्ट्रीय श्रम आयोग (2002) ने सुझाव दिया था कि सभी इस्टैबलिशमेंट्स श्रमिकों के स्वास्थ्य एवं सुरक्षा से संबंधित कानूनों के अंतर्गत आने चाहिए।2 इसके अतिरिक्त सर्वोच्च न्यायालय ने कंज्यूमर एजुकेशन एंड रिसर्च सेंटर बनाम भारतीय संघ (1995) के मामले में कहा था कि किसी के स्वास्थ्य एवं शक्ति को सुरक्षित रखने के लिए स्वास्थ्य एवं मेडिकल देखभाल का अधिकार, संविधान के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत श्रमिक के मौलिक अधिकार में आता है।[29]
कुछ इस्टैबलिशमेंट्स को औद्योगिक विवादों के रेगुलेशन से छूट
मध्य प्रदेश सरकार ने सभी नए कारखानों को औद्योगिक विवाद एक्ट, 1947 के कुछ प्रावधानों से छूट दे दी है।27 श्रमिकों की छंटनी और उन्हें नौकरी से हटाने से संबंधित प्रावधान, और इस्टैबलिशमेंट्स को बंद करने से संबंधित प्रावधान लागू रहेंगे। हालांकि औद्योगिक विवाद निवारण, सामूहिक सौदेबाजी, हड़ताल और लॉकआउट और ट्रेड यूनियंस से संबंधित अन्य प्रावधान नए कारखानों पर लागू नहीं होंगे। यह छूट अधिसूचना की तारीख (5 मई, 2020) से 1,000 दिनों (33 महीनों) के लिए दी गई है। इसके अतिरिक्त मध्य प्रदेश ने टेक्सटाइल, आयरन और स्टील, चीनी तथा केमिकल उद्योग से जुड़े इस्टैबलिशमेंट्स को मध्य प्रदेश औद्योगिक संबंध एक्ट, 1960 के सभी प्रावधानों से स्थायी छूट दी है।[30] 1960 का एक्ट औद्योगिक विवादों के निपटारे और नियोक्ता-कर्मचारी संबंधों को रेगुलेट करता है।[31] इससे दो सवाल उठते हैं।
कुछ इस्टैबलिशमेंट्स के लिए औद्योगिक विवाद निवारण की कोई व्यवस्था नहीं
औद्योगिक विवाद एक्ट, 1947 राज्य सरकार को यह अनुमति देता है कि अगर औद्योगिक विवादों की जांच और निपटारे की पर्याप्त व्यवस्था है तो कुछ इस्टैबिशमेंट्स को एक्ट के प्रावधानों से छूट दी जा सकती है।[32] हालांकि इस अधिसूचना के बाद कुछ उद्योगों जैसे टेक्सटाइल, आयरन और स्टील, चीनी और कैमिकल से जुड़े नए कारखाने ऐसी किसी प्रक्रिया से रेगुलेट नहीं होंगे। इसलिए 1947 के अंतर्गत राज्य सरकार को कुछ इस्टैबलिशमेंट्स को छूट देने से संबंधित प्रावधान लागू ही नहीं होंगे।
सामूहिक सौदेबाजी का अधिकार
औद्योगिक विवाद एक्ट, 1947 नियोक्ताओं और कर्मचारियों के लिए अपने विवादों को निपटाने हेतु सामूहिक सौदेबाजी की एक व्यवस्था प्रदान करता है। यह श्रमिकों के सामूहिक सौदेबाजी के अधिकार में दखलंदाजी को अनुचित श्रम कार्य पद्धति के रूप में वर्गीकृत भी करता है। मध्य प्रदेश में नए कारखानों को यह व्यवस्था भी उपलब्ध नहीं होगी क्योंकि उन्हें औद्योगिक विवाद एक्ट, 1947 के प्रावधानों से छूट दी गई है। उल्लेखनीय है कि अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन 1998 के कार्यस्थल पर मूलभूत सिद्धातों और अधिकारों से जुड़े घोषणापत्र में सामूहिक सौदेबाजी को मूलभूत अधिकार के रूप में मान्यता देता है।[33] हालांकि भारत ने संगठन और सामूहिक सौदेबाजी के अधिकार से जुड़े 1949 के कन्वेंशन का अनुमोदन नहीं किया है, फिर भी इस घोषणापत्र के कारण भारत से यह अपेक्षा की जाती है कि वह सामूहिक सौदेबाजी के अधिकार के सिद्धांत को लागू करे।[34] इसलिए दूसरे राष्ट्रीय श्रम आयोग (2002) ने कहा था कि सामूहिक सौदेबाजी का अधिकार अपरिहार्य है और श्रम कानूनों एवं श्रम नीति की किसी भी प्रणाली में प्रत्येक श्रमिक को मिलना चाहिए।2
उत्तर प्रदेश
उत्तर प्रदेश कैबिनेट ने उत्तर प्रदेश विशिष्ट श्रम कानूनों से अस्थायी छूट अध्यादेश, 2020 को मंजूरी दी।6 चूंकि अध्यादेश कई केंद्रीय कानूनों में छूट प्रदान करने का प्रयास करता है, उसे राष्ट्रपति की सहमति की जरूरत होगी। अध्यादेश के ड्राफ्ट के अनुसार, यह मैन्यूफैक्चरिंग प्रक्रियाओं में लगे सभी कारखानों और इस्टैबलिशमेंट्स को अगले तीन वर्षों के लिए सभी श्रम कानूनों से छूट देने का प्रयास करता है, अगर वे कुछ शर्तों को पूरा करते हों।[35] इन शर्तों में निम्नलिखित शामिल हैं:
इन प्रावधानों के आधार पर मुख्य मुद्दों की यहां चर्चा की जा रही है।
‘श्रम कानूनों’ की परिभाषा
अध्यादेश सभी कारखानों और मैन्यूफैक्चरिंग इस्टैबलिशमेंट्स को तीन वर्षों के लिए सभी श्रम कानूनों से छूट देता है, अगर वे कुछ शर्तों को पूरा करते हों। इनका उल्लेख ऊपर किया जा चुका है। चूंकि अध्यादेश ‘श्रम कानूनों’ को स्पष्ट नहीं करता, इसलिए यह अस्पष्ट है कि इन इस्टैबलिशमेंट्स पर कौन से कानून लागू रहेंगे और किन कानूनों के अंतर्गत छूट मिलेगी। मौजूदा रेगुलेशंस के अनुसार, उत्तर प्रदेश में 40 केंद्रीय श्रम कानून और आठ राज्य स्तरीय श्रम कानून लागू हैं। ये कानून वेतन, सामाजिक सुरक्षा, व्यवसायगत सुरक्षा एवं स्वास्थ्य और औद्योगिक विवादों जैसे विभिन्न पहलुओं को रेगुलेट करते हैं। इसके अतिरिक्त कॉन्ट्रैक्ट पर काम करने वाले श्रमिकों, प्रवासी मजदूरों, असंगठित श्रमिकों और बच्चों जैसी श्रेणियों के लिए विशिष्ट श्रम कानून हैं। कुछ कार्यस्थलों जैसे खदानों, कंस्ट्रक्शन साइट्स, बागान और चीनी मिलों को अपने अपने उद्योग से संबंधित कानूनों का अनुपालन करना होता है।
सुरक्षा संबंधी प्रावधान
अध्यादेश स्पष्ट करता है कि कारखाना एक्ट, 1948 के श्रमिकों की सुरक्षा से जुड़े प्रावधान लागू रहेंगे। हालांकि यह निर्दिष्ट नहीं करता कि एक्ट के कौन से खंड या अध्याय लागू रहेंगे। इसलिए यह अस्पष्ट है कि क्या इन प्रावधानों में एक्ट के अंतर्गत स्वास्थ्य एवं कार्य घंटों से संबंधित प्रावधान शामिल हैं जिनका श्रमिकों की सुरक्षा पर असर होता है, जैसे काम के घंटों की सीमा, विश्राम के लिए अनिवार्य अंतराल, कचरे और अपशिष्ट का उचित तरीके से निस्तारण, पर्याप्त हवा, और उपयुक्त तापमान।
महिलाओं और बच्चों के लिए श्रम कानून प्रावधान
अध्यादेश निर्दिष्ट करता है कि विभिन्न श्रम कानूनों के बच्चों और महिलाओं से जुड़े प्रावधान लागू रहेंगे। हालांकि इसमें उन एक्ट्स या एक्ट्स के विशिष्ट प्रावधानों की कोई सूची नहीं दी गई है। यह अस्पष्ट है कि क्या महिलाओं या बच्चों को काम पर रखने वाले इस्टैबलिशमेंट्स को सिर्फ महिला एवं बच्चों से जुड़े विशिष्ट प्रावधानों या कानूनों का अनुपालन करना है या उनके रोजगार को रेगुलेट करने वाले सभी श्रम कानूनों का अनुपालन करना है, जैसे कारखाना एक्ट, 1948 और असंगठित श्रमिक सामाजिक सुरक्षा एक्ट, 2008।
मौजूदा व्यवस्था के अंतर्गत कुछ ऐसे कानून हैं जो महिलाओं और बच्चों के लिए विशिष्ट तौर से बनाए गए हैं जैसे मातृत्व लाभ एक्ट, 1961 और बाल एवं किशोर श्रमिक (प्रतिबंध एवं रेगुलेशन) एक्ट, 1986। इसके अतिरिक्त दूसरे श्रम कानूनों में उनके रोजगार की शर्तों को रेगुलेट करने वाले विशिष्ट प्रावधान हैं। जैसे कारखाना एक्ट, 1948 में महिलाओं और बच्चों के लिए काम के घंटों की सीमा से संबंधित प्रावधान हैं। उसमें कारखानों से यह अपेक्षा की गई है कि वे कुछ मामलों में क्रेश का प्रावधान करें और उसमें 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के रोजगार पर प्रतिबंध है।
[1] “Suggested Labour Policy Reforms”, Federation of Indian Chambers of Commerce & Industry, 2014.
[2] Report of the Second National Commission on Labour, Ministry of Labour and Employment, 2002.
[3] Seventh Schedule, List III, Constitution of India.
[4] Article 254, Constitution of India.
[5] Order No. 40-3/2020-DM-I(A), Ministry of Home Affairs, March 24, 2020.
[6] Press Release on Cabinet Decisions, Government of Uttar Pradesh, May 6, 2020.
[7] Order No. F3(15) Legal/F&B/2020/188, Factories and Boilers Inspection Department, Government of Rajasthan, April 11, 2020.
[8] Factories Act, 1948, https://labour.gov.in/sites/default/files/TheFactoriesAct1948.pdf.
[9] Hours of Work (Industry) Convention, 1919, International Labour Organisation.
[10] Notification No. GLR.170/2019/Pt./4, Labour Welfare Department, Government of Assam, May 8, 2020.
[11] Order No. CIF/092(Part-2)/S-II/IFB/2020/191, Department of Labour, Government of Goa, May 7, 2020.
[12] Notification No. GHR/2020/56/FAC/142020/346/M3, Labour and Employment Department, Government of Gujarat, April 17, 2020.
[13] Notification No. 2/17/2020-2Lab, Labour Department, Government of Haryana, April 29, 2020.
[14] Notification No. (A)4-3/2017, Labour and Employment Department, Government of Himachal Pradesh, April 21, 2020.
[15] Notification No. 247-2020-A-XVI, Labour Department, Government of Madhya Pradesh, April 22, 2020.
[16] Notification No. LL2-FE-0003-20202716/LESI, Labour and ESI Department, Government of Odisha, May 8, 2020.
[17] Notification No. 21/07/2015-5L/503, Department of Labour, Government of Punjab, April 20, 2020.
[18] Notification No. VIII/20-91/2008, Labour Department, Government of Uttarakhand, April 28, 2020.
[19] Notification No. VIII/20-91/2008, Labour Department, Government of Uttarakhand, May 5, 2020.
[20] Notification No. KAE 33 KABANI 2020, Labour Department, Government of Karnataka, May 22, 2020.
[21] Notification No. KAE 3 KABANI 2020, Labour Department, Government of Karnataka, June 11, 2020.
[22] Order No. F3(15) Legal/F&B/2020/301, Factories and Boilers Inspection Department, Government of Rajasthan, May 24, 2020.
[23] Notification No. 13/2020/502/36-03-2020-30(Sa.)/2020TC, Labour Department, Government of Uttar Pradesh, May 8, 2020.
[24] Notification No. 15/2020/511/36-03-2020-30(Sa.)/2020TC, Labour Department, Government of Uttar Pradesh, May 15, 2020.
[25] Notification No. 958-02-2020-A-16, Labour Department, Government of Madhya Pradesh, May 5, 2020.
[26] The Madhya Pradesh Labour Laws (Amendment) Ordinance, 2020, Madhya Pradesh Gazette, May 6, 2020.
[27] Notification No. 956-02-2020-A-16, Labour Department, Government of Madhya Pradesh, May 5, 2020.
[28] Chapter 3, Volume 1, Economic Survey 2018-19, Ministry of Finance, July 2019.
[29] Consumer Education and Research Centre vs Union of India, 1995 SCC (3) 42.
[30] Notification No. 957-02-2020-A-16, Labour Department, Government of Madhya Pradesh, May 5, 2020.
[31] The Madhya Pradesh Industrial Relations Act, 1960, http://www.lawsofindia.org/pdf/madhya_pradesh/1960/1960MP27.pdf.
[32] Industrial Disputes Act, 1947, https://labour.gov.in/sites/default/files/THEINDUSTRIALDISPUTES_ACT1947_0.pdf.
[33] ILO Declaration on Fundamental Principles and Rights at Work, International Labour Organisation, June 1998.
[34] ILO conventions ratified by India, Ministry of Labour and Employment, as on June 12, 2020.
[35] Draft of the Uttar Pradesh Temporary Exemption from Certain Labour Laws Ordinance, 2020, Live Law, https://www.livelaw.in/pdf_upload/pdf_upload-374550.pdf.
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