स्टेट लेजिसलेटिव ब्रीफ

महाराष्ट्र

शक्ति क्रिमिनल लॉ (महाराष्ट्र संशोधन) बिल, 2020 

मुख्य विशेषताएं

  • बिल महिलाओं और बच्चों के साथ कुछ अपराधों, जैसे बलात्कार के लिए मौत की सजा को प्रस्तावित करता है। 
  • कुछ अपराधों जैसे गलत सूचना देने या एसिड फेंकने के लिए सजा को बढ़ा दिया गया है।
  • बिल प्रस्ताव रखता है कि कुछ अपराधों के लिए जांच, सुनवाई और अपील के निपटारे की समय अवधि को कम किया जाए। 

विचारणीय मुद्दे

  • बिल अनिवार्य मृत्यु दंड का प्रावधान करता है जिसे असंवैधानिक करार दिया गया है।
  • जांच और सुनवाई की कम समयावधि संबंधित प्रक्रियाओं को पूरा करने के लिए अपर्याप्त हो सकती है।
  • डेटा इंटरमीडियरीज़ और कस्टोडियंस पर जांच हेतु डेटा शेयर करने की बाध्यता लगाई गई है लेकिन कोई सुरक्षात्मक उपाय नहीं किए गए हैं। 

 

भारतीय दंड संहिता, 1860 (आईपीसी) के दायरे में आने वाले मामले और क्रिमिनल लॉ (आपराधिक कानून) संविधान की समवर्ती सूची के अंतर्गत आते हैं।[1]  इसका अर्थ यह है कि केंद्र और राज्य, दोनों आपराधिक कानून बना सकते हैं। पिछले कुछ वर्षों में संसद ने बलात्कार के कुछ जघन्य मामलों की सजा बढ़ाने के लिए आईपीसी में संशोधन किया है। जैसे क्रिमिनल लॉ (संशोधन) एक्ट, 2013 ने आईपीसी में संशोधन किए ताकि बलात्कार के उन मामलों में मृत्यु दंड दिया जा सके, जहां संबंधित क्रूरता से पीड़ित की मृत्यु हो गई है या वह लगातार वेजिटेटिव हालत में है, और अपराध दोहराने वालों के मामले में।[2]  क्रिमिनल लॉ (संशोधन) एक्ट, 2018 में 12 वर्ष से कम उम्र की बच्चियों के बलात्कार और सामूहिक बलात्कार के लिए मृत्यु दंड का प्रावधान है।[3]   

हाल ही में आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश और छत्तीसगढ़ ने भी आईपीसी में संशोधन किए हैं ताकि महिलाओं के साथ होने वाले कुछ अपराधों में सजा बढ़ाई जा सके। उदाहरण के लिए आंध्र प्रदेश ने दिशा बिल, 2019 को पारित किया है जिसके अंतर्गत महिलाओं के साथ होने वाले अपराधों के लिए अधिक सजा का प्रावधान है (मृत्यु दंड सहित)।[4]  शक्ति क्रिमिनल लॉ (महाराष्ट्र संशोधन) बिल, 2020 (शक्ति बिल) को दिसंबर 2020 में पेश किया गया था और इसके प्रावधान आंध्र प्रदेश दिशा बिल, 2019 के समान ही हैं।

शक्ति बिल महाराष्ट्र में आईपीसी, दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (सीआरपीसी) और यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (संशोधन) एक्ट, 2012 (पॉक्सो एक्ट) के एप्लिकेशन में संशोधन करता है। वह महिलाओं और बच्चों के साथ होने वाले अपराधों के लिए इन कानूनों में संशोधन करता है ताकि उनके साथ होने वाले यौन अपराधों को रोका जा सके। बिल को विधान सभा और विधान परिषद के सदस्यों की ज्वाइंट सिलेक्ट कमिटी के पास भेजा गया है।

मुख्य विशेषताएं

शक्ति बिल की मुख्य विशेषताओं में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • मृत्यु दंडबिल एसिड के इस्तेमाल से गंभीर नुकसान पहुंचाने, बलात्कार और सामूहिक बलात्कार जैसे अपराधों के लिए मृत्यु दंड का प्रावधान करता है। आईपीसी के अंतर्गत इन अपराधों के लिए अधिकतम सजा उम्र कैद और जुर्माना है। बिल आईपीसी में संशोधन करता है और इन अपराधों के लिए मृत्यु दंड का प्रावधान किया जा सके, जहां अपराध जघन्य हैं, पक्के सबूत हैं और परिस्थितियां कठोर सजा का समर्थन करती हैं।
     
  • सजा बढ़ानाबिल आईपीसी और पॉक्सो एक्ट के अंतर्गत कुछ अपराधों के लिए कारावास की अवधि और जुर्माना बढ़ाता है, जैसे कि तालिका 1 में प्रदर्शित किया गया है।  

तालिका 1एक्ट और बिल के अंतर्गत कुछ अपराधों के लिए सजा (न्यूनतम-अधिकतम सजा) 

अपराध

एक्ट (न्यूनतम-अधिकतम)

2020 बिल (न्यूनतम-अधिकतम)

पॉक्सो एक्ट, 2012

 

 

यौन हमला

3 वर्ष

5 वर्ष

गंभीर यौन हमला

5 वर्ष

7 10 वर्ष 

16 वर्ष से कम उम्र के बच्चे पर पेनेट्रेटिव यौन हमला

20 वर्ष – उम्र कैद और जुर्माना

 

20 वर्ष – मृत्यु दंड और कम से कम पांच लाख रुपए का जुर्माना

 

आईपीसी, 1860

 

 

अपनी मर्जी से एसिड फेंकना या फेंकने की कोशिश करना

5 वर्ष

7 10 वर्ष

पब्लिक सर्वेंट को जानबूझकर गलत सूचना देना

छह महीने (अधिकतम) 

वर्ष (अधिकतम)

स्रोत: आईपीसी, 1860; पॉक्सो एक्ट, 2012; शक्ति क्रिमिनल लॉ (महाराष्ट्र संशोधन) बिल, 2020पीआरएस

  • महिला को धमकी देनाबिल कहता है कि किसी महिला को धमकाने पर दो वर्ष तक के कारावास की सजा और एक लाख रुपए तक का जुर्माना भरना पड़ेगा। इस धमकी में निम्नलिखित शामिल हैं: (iआपत्तिजनक बातचीत (जोकि अशिष्ट प्रकृति की हो), और (iiमहिला को बदनाम करने के लिए सोशल मीडिया का इस्तेमाल, इत्यादि।
     
  • जांच के लिए डेटा शेयर न करनाबिल में प्रावधान है कि जांच अधिकारी आईपीसी और पॉक्सो एक्ट के अंतर्गत महिलाओं और बच्चों के साथ होने वाले विशेष अपराधों की जांच के लिए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स या टेलीकॉम सर्विस प्रोवाइडर्स से डेटा मांग सकते हैं। अधिकारियों को सात वर्किंग दिनों में इस डेटा को शेयर करना चाहिए। इस निर्धारित समय में डेटा शेयर न करना दंडनीय अपराध होगा जिसके लिए एक महीने तक के कारावास की सजा हो सकती है, या पांच लाख रुपए तक का जुर्माना भरना पड़ सकता है, या दोनों सजा भुगतनी पड़ सकती है।
     
  • पहचान का खुलासाआईपीसी के अंतर्गत महिलाओं और बच्चों से बलात्कार के अपराधों में पीड़ित की पहचान का खुलासा करने पर कारावास और जुर्माने की सजा होती है। बिल अन्य अपराधों में भी इस प्रावधान को लागू करता है जैसे यौन उत्पीड़न, वॉयरिज्म और स्टॉकिंग।
     
  • कुछ अपराधों की सूचना देनासीआरपीसी के अंतर्गत जिस व्यक्ति को फिरौती के लिए अपहरण, और डकैती जैसे अपराधों या उनके इरादे की जानकारी है, उसे इन अपराधों या अपराध के इरादे के बारे में निकटवर्ती मेजिस्ट्रेट या पुलिस अधिकारी को सूचना देनी चाहिए। बिल अन्य अपराधों में भी इस आवश्यकता को लागू करता है, जैसे यौन उत्पीड़न, स्टॉकिंग और बलात्कार। 
  • समय कम करनाबिल महिलाओं और बच्चों से जुड़े अपराधों जैसे बलात्कार और सामूहिक बलात्कार के लिए जांच, सुनवाई और अपील के निपटान में लगने वाले समय को कम करता है। यह समय-सीमा एसिड हमलों की जांच और अन्य संबंधित प्रक्रियाओं को पूरा करने पर भी लागू होगी।

तालिका 2: न्यायिक प्रक्रिया के लिए समय सीमा (बलात्कार और सामूहिक बलात्कर सहित अपरधों के लिए)

प्रक्रियाएं

सीआरपीसी1973

2020 बिल

जांच की अवधि

महीने

15 वर्किंग दिन (जिसे 7 दिन बढ़ाया जा सकता है)

जार्चशीट को फाइल करने की तारीख से जांच या सुनवाई की अवधि 

महीने

30 वर्किंग दिन

सजा के खिलाफ अपील के निपटान की अवधि

महीने

45 दिन

स्रोत: सीआरपीसी, 1973शक्ति क्रिमिनल लॉ (महाराष्ट्र संशोधन) बिल, 2020पीआरएस 

विचारणीय मुद्दे

मृत्यु दंड से संबंधित प्रावधान 

बिल अनिवार्य मृत्यु दंड का प्रावधान करता है जोकि असंवैधानिक है

बिल आईपीसी में संशोधन करता है ताकि एसिड के इस्तेमाल से गंभीर नुकसान पहुंचाने, बलात्कार और सामूहिक बलात्कार जैसे कुछ अपराधों के लिए मृत्यु दंड का प्रावधान किया जा सके। वह पॉक्सो एक्ट में संशोधन करता है और 16 वर्ष से कम उम्र के बच्चों पर पेनेट्रेटिव यौन हमले के लिए मृत्यु दंड का प्रावधान करता है। इन अपराधों के लिए मृत्यु दंड वहां लागू होगा, जहां अपराध की प्रकृति जघन्य है, पक्के सबूत हैं और परिस्थितियां कठोर सजा का समर्थन करती हैं। इसकी व्याख्या यूं की जा सकती है कि ऐसे मामलों में अनिवार्य मृत्यु दंड का प्रावधान किया गया है। 

सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया था कि किसी अपराध के लिए अनिवार्य मृत्यु दंड का प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और अनुच्छेद 21 (जीवन का अधिकार) का उल्लंघन करता है।[5]  अदालत ने कहा था कि अनिवार्य मृत्यु दंड स्वेच्छाचारी और अन्यायपूर्ण है, चूंकि यह अदालतों को इस संबंध में अपने विवेक का इस्तेमाल नहीं करने देता कि वे मौत की सजा दें या नहीं।5,[6]   अदालत ने यह फैसला भी दिया था कि मौत की सजा का विकल्प चुनने से पहले ‘अपराध और ‘अपराधी’ के हालात पर विचार किया जाना चाहिए।[7]  हालांकि बिल में प्रावधान है कि मृत्यु दंड वहां लागू होगा, जहां अपराध जघन्य है और परिस्थितियां कठोर सजा का समर्थन करती हैं। ये प्रावधान अपराधी की परिस्थितियों का हिस्सा नहीं होते। विधि आयोग (2015) ने गौर किया था कि अदालतों ने कुछ ऐसे मामलों में भी मृत्यु दंड नहीं दिया जिन्हें उन्होंने जघन्य माना था। चूंकि उसकी गंभीरता को कम करने वाले कारक थे, जैसे आरोपी का कम उम्र का होना और सुधार की संभावना।[8]    

बलात्कार की सजा के तौर पर मृत्यु दंड 

दूसरा सवाल यह है कि क्या बलात्कार के अपराध के लिए मृत्यु दंड दिया जाना चाहिए। जस्टिस वर्मा कमिटी (2013) ने कहा था कि हालांकि बलात्कार एक हिंसक अपराध है, इसकी सजा आनुपातिक होनी चाहिए। क्योंकि सर्वाइवर का पुनर्वास संभव होता है।[9]  कमिटी ने बलात्कार की सजा बढ़ाने का समर्थन किया था जोकि उम्र कैद तक हो सकती है लेकिन मृत्यु दंड का नहीं। पिछले कई सालों के दौरान संसद ने बलात्कार के कुछ खास मामलों में मृत्यु दंड की अनुमति देने के लिए कानून बनाए हैं। जैसे क्रिमिनल लॉ (संशोधन) एक्ट, 2013 ने आईपीसी में संशोधन किए ताकि बलात्कार के उन मामलों में मृत्यु दंड दिया जा सके, जहां संबंधित क्रूरता से पीड़ित की मृत्यु हो गई है या वह लगातार वेजिटेटिव हालत में है, और अपराध दोहराने वालों के मामले में।2  क्रिमिनल लॉ (संशोधन) एक्ट, 2018 में 12 वर्ष से कम उम्र की बच्चियों के बलात्कार और सामूहिक बलात्कार के लिए मृत्यु दंड का प्रावधान है।3

दूसरी तरफ यह कहा जा सकता है कि बलात्कार के लिए मृत्यु दंड देने से लोग अपराध करने से घबराते हैं और ऐसी घटनाएं कम होती हैं।[10]  इसके अतिरिक्त मौत की सजा देने से पीड़ित को दंडात्मक न्याय मिलता है।10  पिछले वर्ष सर्वोच्च न्यायालय ने मृत्यु दंड को रेयरेस्ट ऑफ द रेयर मामलों तक सीमित कर दिया है और यह निर्धारित करने के मानदंड जारी किए हैं कि क्या आरोपी को मृत्यु दंड मिलना चाहिए।5,7  इसका यह अर्थ है कि अदालत सिर्फ खास स्थितियों में ही बलात्कार के लिए मृत्यु दंड दे सकती है जिसमें दोषी का सुधार और पुनर्वास संभव न हो।9  

कुछ अपराधों की जांच और सुनवाई के लिए कम समय 

बिल बलात्कार, सामूहिक बलात्कार और एसिड हमलों जैसे अपराधों में जांच, सुनवाई और अपील के निपटान में लगने वाले समय को कम करता है। फिलहाल जांच और सुनवाई, प्रत्येक के लिए दो महीने की समयावधि नियत है। इसके बावजूद इन अपराधों और महिला संबंधी अन्य अपराधों के मामले अभी भी जांच और सुनवाई के लिए लंबित हैं। संभव है कि इस समय को कम करने से संबंधित प्रक्रियाओं को पूरा करने के लिए पर्याप्त समय न मिले।  

अपराधों की जांच के लिए कम समय

बिल में प्रस्ताव है कि एफआईआर दायर होने के बाद बलात्कार, सामूहिक बलात्कार जैसे अपराधों के लिए जांच 15 वर्किंग दिनों में पूरी हो जानी चाहिए। अगर स्पेशल इंस्पेक्टर जरनल ऑफ पुलिस या कमीश्नर ऑफ पुलिस को जांच अधिकारी  लिखित कारण देता है तो इस समय को सात दिनों के लिए और बढ़ाया जा सकता है।

यह कहा जा सकता है कि यह समय अवधि जांच करने के लिए अपर्याप्त हो सकती है। जांच के कई चरण होते हैं जैसे सबूत इकट्ठे करना और बयान रिकॉर्ड करना। ऐसे मामले भी हो सकते हैं जोकि जटिल हों और जिनकी जांच के लिए और समय की जरूरत हो। इसके अतिरिक्त महाराष्ट्र के पुलिस विभाग में कर्मचारियों की काफी कमी है जिससे समय पर जांच पूरी होने पर असर हो सकता है। 2019 तक महाराष्ट्र में प्रति लाख आबादी पर औसत 175 पुलिसकर्मी थे। संयुक्त राष्ट्र ने 222 पुलिसकर्मियों के अनुपात का सुझाव दिया है और भारत की दर इससे कम है।[11]  तालिका 3 में भारत में बलात्कार और एसिड हमलों की लंबित जांच और महाराष्ट्र में महिलाओं के साथ होने वाले अपराध के मामलों का विवरण दिया गया है। 

तालिका 3: कुछ अपराधों की जांच के लंबित मामले (2019)

अपराध

2018 में लंबित जांच के मामले

2019 में दर्ज मामले

2019 के अंत तक लंबित जांच के मामले

लंबित जांच के मामलों का % 

भारत

बलात्कार

13,480

32,033

14,961

33%

एसिड हमले

88

192

96

34%

महाराष्ट्र

महिलाओं के साथ अपराध

24,915

37,144

27,216

44%

स्रोतभारत में अपराध- 2019, राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड्स ब्यूरोपीआरएस

अपराधों की सुनवाई के लिए कम समय

बिल यह प्रस्ताव भी रखता है कि ऐसे मामलों में चार्जशीट फाइल होने की तारीख से 30 वर्किंग दिनों के भीतर सुनवाई पूरी होनी चाहिए। कई मामलों में यह समय अवधि अपर्याप्त होगी, जोकि उनकी जटिलता और मामलों से जुड़े पक्षों की उपलब्धता जैसी परिस्थितियों पर निर्भर करता है। तालिका 4 में भारत में बलात्कार और एसिड हमलों में लंबित सुनवाई और महाराष्ट्र में महिलाओं के साथ होने वाले अपराध के मामलों का विवरण दिया गया है। 

तालिका 4 कुछ मामलों में सुनवाई के लंबित मामले (2019)

अपराध

2018 में लंबित सुनवाई के मामले

2019 में सुनवाई के लिए भेजे गए मामले

वर्ष के अंत तक लंबित सुनवाई के मामले

 

लंबित सुनवाई के मामलों का %

भारत

बलात्कार

1,37,893

24,848

1,45,632

90%

एसिड हमले

375

155

501

95%

महाराष्ट्र

महिलाओं के साथ अपराध

1,92,201

28,234

2,07,220

94%

स्रोतभारत में अपराध- 2019, राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड्स ब्यूरोपीआरएस

‘पर्सन इन अथॉरिटी’ या सेपरेशन के दौरान पति के यौन अपराधों की जांच की समय सीमा कम नहीं की गई

बिल महिलाओं और बच्चों के साथ कुछ अपराधों, जैसे बलात्कार और सामूहिक बलात्कार की जांच की समय सीमा को दो महीने से घटाकर 15 दिन करता है (सीआरपीसी में)। हालांकि सेपरेशन के दौरान पति या ‘पर्सन इन अथॉरिटी’ द्वारा सेक्सुअल इंटरकोर्स के अपराधों की जांच की समय सीमा कम नहीं की गई है। यह अस्पष्ट है कि इन अपराधों में जांच की समय सीमा कम क्यों नहीं की गई है। ‘पर्सन इन अथॉरिटी’ में निम्नलिखित शामिल हैं: (i) पब्लिक सर्वेंट, (iiजेल का सुपरिंटेंडेंट, या (iiiअस्पताल के प्रबंधन या स्टाफ का कोई व्यक्ति, इत्यादि।

एक जैसे अपराधों के लिए अनेक प्रकार के कानून 

बिल आईपीसी में संशोधन करता है और किसी महिला के शील को भंग करने सहित उसे धमकी देने पर दो वर्ष तक के कारावास और एक लाख रुपए तक के जुर्माने का प्रावधान करता है। इस धमकी में निम्नलिखित शामिल है: (i) इलेक्ट्रॉनिक तरीके से आपत्तिजनक बातचीत (जोकि अशिष्ट प्रकृति की हो) करना, (ii) सेक्सुअल एक्ट्स में शामिल महिला को दर्शाने वाली सामग्री का प्रसार, (iiiमहिला को बदनाम करने के लिए सोशल मीडिया का इस्तेमाल, और (ivमहिला की प्राइवेसी का उल्लंघन करने वाली पर्सनल इनफॉरमेशन का इस्तेमाल। उल्लेखनीय है कि इनमें से कुछ अपराध मौजूदा एक्ट्स, जैसे आईपीसी और इनफॉरमेशन टेक्नोलॉजी एक्ट, 2000 (आईटी एक्ट) में स्पष्ट हैं (तालिका 5)। इन सभी अपराधों के लिए बिल में उल्लिखित सजा की तुलना में आईटी एक्ट में अधिक कड़ी सजा है।  

तालिका 5: मौजूदा कानूनों और बिल में निर्दिष्ट सजा के बीच तुलना

प्रावधान

आईपीसी, 1860

आईटी एक्ट, 2000

शक्ति बिल (क्लॉज 8)

आपत्तिजनक बातचीत

 

  • इलेक्ट्रॉनिक रूप में अश्लील/कामुक सामग्री का प्रसार (सेक्शन 67)
  • कैदवर्ष तक
  • जुर्माना: राशि निर्दिष्ट नहीं
  • इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों का उपयोग करते हुए आपत्तिजनक और कामुक सामग्री का प्रसार
  • कैद: 2 वर्ष तक
  • जुर्माना: 1 लाख रुपए तक

प्राइवेसी का उल्लंघन/ शील भंग 

 

  • व्यक्ति की प्राइवेसी का उल्लंघन करने के लिए इमेज का इलेक्ट्रॉनिक प्रसार 
  • कैदवर्ष तक
  • जुर्मानालाख रुपए तक
  • महिला के नाम/फोटो का इस इरादे से इस्तेमाल कि उसका शील भंग या प्राइवेसी का उल्लंघन किया जा सके
  • कैद: 2 वर्ष तक
  • जुर्माना: 1 लाख रुपए तक

सेक्लुअली एक्सप्लिसिट (स्पष्ट) सामग्री का प्रसार करना

  • प्राइवेट एक्ट (सेक्सुअल एक्ट सहित) में शामिल महिला को दर्शाने वाली इमेज का प्रसार करना (सेक्शन 354सी)
  • कैदसे 3 वर्ष (पहला अपराध), 3 से 7 वर्ष (बाद के अपराध)
  • जुर्माना: राशि निर्दिष्ट नहीं
  • सेक्लुअली एक्सप्लिसिट (स्पष्ट) सामग्री (बच्चों से जुड़ी सामग्री सहित) का इलेक्ट्रॉनिक तरीके से प्रसार करना (सेक्शन 67ए, 67बी)
  • कैद: 5 वर्ष तक (पहला अपराध), वर्ष तक (बाद के अपराध) 
  • जुर्माना10 लाख रुपए तक
  • महिला के शरीर के किसी हिस्से को या उसे सेक्सुअल एक्ट में शामिल दिखाने वाली किसी सामग्री को मीडिया के जरिए प्रसारित करने की धमकी देना
  • कैद: 2 वर्ष तक
  • जुर्माना: 1 लाख रुपए तक

स्रोत: आईपीसी, 1860; आईटी एक्ट, 2000शक्ति क्रिमिनल लॉ (महाराष्ट्र संशोधन) बिल, 2020पीआरएस 

डेटा इंटरमीडियरीज़ और कस्टोडियंस पर डेटा शेयर करने की बाध्यता

बिल में प्रावधान है कि अगर कोई सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म, इंटरनेट या मोबाइल टेलीफोन डेटा प्रोवाइडर किसी जांच अधिकारी को महिलाओं और बच्चों के साथ होने वाले अपराधों की जांच के लिए डॉक्यूमेंट्स या इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड्स सहित दूसरे डेटा नहीं देता तो उसे सजा मिलेगी। यह सजा एक महीने तक की कैद या पांच लाख रुपए तक का जुर्माना, या दोनों हो सकती हैं। इसके अतिरिक्त सूचना सात दिनों के भीतर दे दी जानी चाहिए। बिल के अंतर्गत इसके लिए अदालती आदेश या वॉरंट की जरूरत नहीं है, या इसमें जांच के लिए ऐसी सूचना मांगने के दौरान कोई सुरक्षात्मक उपाय नहीं दिए गए हैं।

उल्लेखनीय है कि आईपीसी और आईटी एक्ट में ऐसे प्रावधान शामिल हैं जिनके अंतर्गत व्यक्ति से अधिकृत व्यक्ति को डॉक्यूमेंट्स देने की जरूरत होती है। आईपीसी में प्रावधान है कि कोई भी व्यक्ति जो किसी पब्लिक सर्वेंट को कोई डॉक्यूमेंट या इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड पेश करने के लिए कानूनी रूप से बाध्य है, उसे कानून का पालन न करने पर सजा दी जाएगी।[12]  यह सजा एक महीने तक की कैद या पांच लाख रुपए तक का जुर्माना या दोनों हो सकते हैं। आईटी एक्ट के अंतर्गत एक अधिकृत व्यक्ति, लिखित रूप में दर्ज किए जाने वाले कारणों के लिए, आदेश द्वारा, व्यक्तियों को कुछ जानकारी का एक्सेस देने का निर्देश दे सकता है।[13]   कारणों में भारत की सुरक्षा का हित, कुछ अपराधों को उकसाने से रोकना, या किसी अपराध की जांच शामिल हैं। ऐसी जानकारी साझा न करने पर कैद हो सकती है, जोकि सात वर्ष तक बढ़ाई जा सकती है, और जुर्माना भरना पड़ सकता है।   

बिल के अंतर्गत जानकारियों की मांग पर, अगर अदालती आदेश की जरूरत नहीं होगी या सुरक्षात्मक उपाय नहीं होंगे (ऐसी स्थितियां, जिनके लिए जांच अधिकारी डेटा को एक्सेस कर सकता है) तो इससे प्राइवेसी के अधिकार का उल्लंघन हो सकता है। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि व्यक्तियों को प्राइवेसी का मूलभूत अधिकार होता है।[14]  प्राइवेसी पर पाबंदी तीन स्थितियों में लगाई जा सकती है: (i) पाबंदी कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुकूल होनी चाहिए, (ii) कानून को एक वैध राज्य उद्देश्य (आवश्यकता) हासिल करना चाहिए, और (iii) पाबंदी उद्देश्य के अनुपात में होनी चाहिए।14  पर्याप्त सुरक्षात्मक उपाय न होने पर बिल प्राइवेसी के अधिकार पर जो पाबंदी लगाता है, वह सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्दिष्ट शर्तो को पूरा नहीं कर पाएंगे। 

गलत सबूत देने पर सजा 

बिल आईपीसी में संशोधन करता है और किसी व्यक्ति को अपमानित करने, उससे वसूली करने, उसे बदनाम या परेशान करने के इरादे से उसके खिलाफ झूठी शिकायत करने या गलत सूचना देने को दंडनीय अपराध बनाता है। यह महिलाओं के साथ होने वाले कुछ अपराधों (जैसे एसिड हमला और बलात्कार) पर भी लागू होगा। इसके लिए एक वर्ष तक की कैद, या जुर्माना या दोनों भुगतने पड़ सकते हैं। इससे महिलाओं और बच्चों के साथ होने वाले अपराधों को दर्ज कराने में रुकावट आ सकती है, जिन्हें पहले ही कम संख्या में दर्ज कराया जाता है।  

उल्लेखनीय है कि महिलाओं का कार्यस्थलों पर यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) एक्ट, 2013 में ऐसे ही प्रावधान हैं जो झूठी शिकायत दर्ज कराने पर महिलाओं को सजा देते हैं।[15]  जस्टिस वर्मा कमिटी (2013) ने कहा था कि यह प्रावधान उत्पीड़क हैं और कानून के उद्देश्य को ही बेअसर कर देते हैं।9 उल्लेखनीय है कि क्राइम स्टैटिसटिक्स कमिटी की रिपोर्ट (2011) में कहा गया था कि महिलाओं के साथ होने वाले अपराधों को बहुत कम संख्या में दर्ज कराया जाता है।[16]  कमिटी ने यह अनुमान लगाया था कि राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (2005-06) की तुलना में एनसीआरबी (2009) में महिलाओं के साथ होने वाले कुल अपराधों को 0.16% कम दर्ज किया गया था।16  

इसके अतिरिक्त झूठी शिकायत करने और गलत सूचना देने से जुड़े अपराधों की सजा आईपीसी और पॉक्सो एक्ट में पहले से मौजूद है (तालिका 6)। जबकि इन कानूनों में छह महीने तक की कैद की सजा का प्रावधान है, बिल एक वर्ष तक की सजा का प्रावधान करता है।

तालिका 6झूठी शिकायत के लिए मौजूदा कानूनों से बिल की तुलना 

एक्ट/बिल

अपराध

आईपीसी, 1860

(सेक्शन 211)

  • ठेस पहुंचाने के इरादे से झूठा आरोप लगाना
  • कैदवर्ष तक (7 वर्ष तक, अगर ऐसे अपराध के लिए आरोप लगाए गए हैं जिसकी सजा मृत्यु या उम्र कैद है)जुर्माना: राशि निर्दिष्ट नहीं

पॉक्सो एक्ट, 2012 

(सेक्शन 22) 

  • किसी व्यक्ति को सिर्फ अपमानित करने, उससे वसूली करने, उसे बदनाम या परेशान करने के इरादे से उसके खिलाफ बच्चे पर यौन हमला करने के अपराध की झूठी शिकायत करना या गलत सूचना देना 
  • कैद: 6 महीने तकजुर्माना: राशि निर्दिष्ट नहीं 

2020 बिल

(सेक्शन 4)

  • किसी व्यक्ति को सिर्फ अपमानित करने, उससे वसूली करने, उसे बदनाम या परेशान करने के इरादे से उसके खिलाफ महिला के साथ अपराध (जैसे एसिड हमला या बलात्कार) करने की झूठी शिकायत करना या गलत सूचना देना
  • कैद: 1 वर्ष तकजुर्माना: राशि निर्दिष्ट नहीं  

स्रोत: आईपीसी, 1860; पॉक्सो एक्ट, 2012; शक्ति क्रिमिनल लॉ (महाराष्ट्र संशोधन) बिल, 2020पीआरएस

राज्यों में महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा के प्रावधानों में एकरूपता 

बिल महाराष्ट्र में महिलाओं और बच्चों के साथ होने वाले अपराधों के लिए आईपीसी, सीआरपीसी और पॉक्सो एक्ट के एप्लिकेशन में संशोधन करता है। क्रिमिनल लॉ (आपराधिक कानून) संविधान की समवर्ती सूची के अंतर्गत आते हैं, इसलिए इन कानूनों में संशोधन करना राज्यों के दायरे में आता है। सवाल यह है कि अलग-अलग राज्यों में ऐसे अपराधों की सजा अलग-अलग हो, क्या यह उचित है।

आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों ने कानूनों में संशोधन किए हैं ताकि महिलाओं के साथ होने वाले अपराधों के लिए अधिक सजा का प्रावधान किया जा सके (तालिका 7)। उल्लेखनीय है कि कई बार एक क्रिमिनल मामला किसी एक राज्य में दर्ज हो सकता है लेकिन तथ्यों और स्थितियों के आधार पर उसकी सुनवाई किसी दूसरे राज्य में की जा सकती है। 2019 में बलात्कार के 117 मामलों और पॉक्सो एक्ट के अंतर्गत 94 मामलों को दूसरे राज्य या एजेंसी को ट्रांसफर कर दिया गया था।[17]  

तालिका 7: आईपीसी में महिलाओं के साथ होने वाले अपराधों से संबंधित राज्य स्तरीय संशोधन

कुछ अपराधों के लिए सजा

आईपीसी, 1860

महाराष्ट्र

आंध्र प्रदेश

अरुणाचल प्रदेश

छत्तीसगढ़

महिला का शील भंग करने के इरादे से हमला

1-वर्ष

-

5-वर्ष

2-वर्ष

2-वर्ष

महिला को निर्वस्त्र करने के इरादे से हमला

3-वर्ष 

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पहला अपराध: 3-वर्ष

बाद के अपराध: 7-10 वर्ष

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महिला को स्टॉक करना

बाद के अपराध: वर्ष तक

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बाद के अपराध: 3-वर्ष

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बलात्कार

10 वर्ष से लेकर उम्र कैद

मृत्यु दंड, जहां अपराध की प्रकृति जघन्य है, पक्के सबूत हैं और परिस्थितियां कठोर सजा का समर्थन करती हैं

मृत्यु दंड, जहां अपराध की प्रकृति जघन्य है, पक्के सबूत हैं और परिस्थितियां कठोर सजा का समर्थन करती हैं

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स्रोत: भारतीय दंड संहिता, 1860; पॉक्सो एक्ट, 2012; शक्ति क्रिमिनल लॉ (महाराष्ट्र संशोधन) बिल, 2020भारतीय दंड संहिता (आंध्र प्रदेश संशोधन) एक्ट, 1991आंध्र प्रदेश दिशा बिल- क्रिमिनल लॉ (आंध्र प्रदेश संशोधन) बिल, 2019क्रिमिनल लॉ (आंध्र प्रदेश संशोधन) एक्ट, 2018क्रिमिनल लॉ (छत्तीसगढ़ संशोधन) एक्ट, 2013; पीआरएस

महिलाओं की सुरक्षा के लिए अन्य उपाय 

बिल आईपीसी, सीआरपीसी और पॉक्सो एक्ट में संशोधन करता है ताकि महिलाओं के साथ बलात्कार और सामूहिक बलात्कार संबंधी मामलों में सजा को बढ़ाया जा सके और उनमें महिलाओं को धमकाने एवं उनके शील को भंग करने जैसे अपराधों के लिए सजा का प्रावधान करता है। जबकि बिल महिलाओं के साथ होने वाले कुछ अपराधों के लिए सजा बढ़ाता है, कई कमिटियों ने अन्य उपाय भी सुझाए हैं जिन्हें लागू करके महिलाओं की सुरक्षा में सुधार किया जा सकता है।

जस्टिस वर्मा कमिटी (2013) ने कहा था कि कानून प्रभावी बने रहें, इसके लिए कानून प्रवर्तन करने वाली एजेसियों की कार्यकुशलता और सभी नागरिकों के व्यक्तिगत हित जरूरी होते हैं।9  मानव संसाधन विकास पर संसद की स्टैंडिंग कमिटी ने महिला सुरक्षा से संबंधित मुद्दों पर विचार करते हुए कहा था कि कानूनी संरचनाओं के बावजूद महिलाओं को असमानताभेदभाव और हिंसा का सामना करना पड़ता है।[18]  मानव संसाधन विकास संबंधी स्टैडिंग कमिटी ने निम्नलिखित मुख्य सुझाव दिए थे:18

  • कार्यान्वयनकमिटी ने सुझाव दिया था कि महिलाओं की सुरक्षा के लिए कानूनों को सख्ती से लागू किया जाना चाहिए। जिन तरीकों से कानूनों के कार्यान्वयन में सुधार किया जा सकता है, उनमें निम्नलिखित शामिल हैं: (i30 दिनों के भीतर आरोप पत्र दाखिल करना, (ii) आरोपियों को जमानत देने से इनकार करनाऔर (iii) छह महीने के भीतर लंबित मामलों की सुनवाई।
     
  • इंफ्रास्ट्रक्चरकुछ इंफ्रास्ट्रक्चरल और संस्थागत उपायों को लागू किया जा सकता है। इनमें निम्नलिखित शामिल हैं(iपुलिस स्टेशनों में महिला इकाई की स्थापना करना, जो जेंडर आधारित हिंसा के मामलों में प्रशिक्षित हों, (iiमहिला पुलिस अधिकारियों की संख्या में वृद्धि, (iiiमहिला सुरक्षा संबंधी शिकायतों के लिए सिंगल हेल्पलाइन नंबर स्थापित करना, (ivसभी राज्यों की राजधानियों में फॉरेंसिक लैब्स की स्थापना करना, और (v) सार्वजनिक परिवहन के सभी साधनों में सीसीटीवी और पैनिक बटन लगाना।
     
  • शिक्षा और जागरूकता: महिलाओं की सुरक्षा से जुड़े कानूनों और उनके उल्लंघन के नतीजों के बारे में जनता को शिक्षित करने के लिए मीडिया के जरिए सार्वजनिक जागरूकता कार्यक्रम चलाया जाना चाहिए। टेक्स्टबुक्स और स्कूली पाठ्यक्रम में महिलाओं का सम्मान करना सिखाया जाना चाहिए। इसके अतिरिक्त विश्वविद्यालयों में महिला अध्ययन विभाग स्थापित किए जाने चाहिए जोकि परेशान महिलाओं की काउंसिलिंग करें। स्वास्थ्यकर्मियों को जेंडर आधारित हिंसा के पीड़ितों के साथ व्यवहार करने के संबंध में शिक्षित करना चाहिए। इसके अतिरिक्त अधीनस्थ और उच्च न्यायपालिका में सभी न्यायाधीशों को जेंडर सेंसिटिविटी का प्रशिक्षण मिलना चाहिए।
     
  • फंड्स का उपयोगकमिटी ने कहा कि कई राज्यों ने महिलाओं की सुरक्षा जैसे वन स्टॉप सेंटर्स (हिंसा की शिकार महिलाओं को चिकित्सा सहायता, कानूनी सहायता और आश्रय) और महिला हेल्पलाइन के लिए विभिन्न योजनाओं के अंतर्गत आबंटित धनराशि का इस्तेमाल नहीं किया है। इसके अतिरिक्त उसने कहा कि संबंधित मंत्रालयों ने कार्यक्रमों को लागू करने के लिए निर्भया फंड के अंतर्गत आबंटित कुल राशि में से सिर्फ 36% का संवितरण किया है। कमिटी ने कहा कि इन कार्यक्रमों को समय पर लागू किया जाना चाहिए और आबंटित राशि को तुरंत इस्तेमाल किया जाना चाहिए।  

[2]Criminal Law (AmendmentAct, 2013, https://www.indiacode.nic.in/handle/123456789/12634?locale=en

[3]The Criminal Law (AmendmentAct, 2018

[5]Mithu vsState of Punjab (19832 SCC 277, https://main.sci.gov.in/jonew/judis/9810.pdf.

[6]Dalbir Singh vState of Punjab, 2006, https://main.sci.gov.in/jonew/bosir/orderpdf/1465081.pdf.

[7]Bachan Singh vsState of Punjab (19802 SCC 684.

[8]Report No262The Death Penalty, Law Commission of India, August 2015, https://lawcommissionofindia.nic.in/reports/report262.pdf

[9]Report of the Committee on Amendments to Criminal Law, 2013, January 23, 2013, http://adrindia.org/sites/default/files/Justice_Verma_Amendmenttocriminallaw_Jan2013.pdf

[10]Report No35Capital Punishment, Law Commission of India, September 1967, https://lawcommissionofindia.nic.in/1-50/report35vol2.pdf.

[11]. “Data on Police Organisations, Bureau of Police Research and Development, 2020, https://bprd.nic.in/WriteReadData/userfiles/file/202101011201011648364DOPO01012020.pdf

[12]Section 175, The Indian Penal Code.

[13]Section 69, the Information Technology Act, 2000.

[14]Justice KSPuttaswamy (Retd.) and Anrvs Union of India and Ors, W.P. (CNo494 of 2012, August 24, 2017, https://main.sci.gov.in/supremecourt/2012/35071/35071_2012_Judgement_24-Aug-2017.pdf.

[15]The Sexual Harassment of Women at Workplace (Prevention, Prohibition and RedressalAct, 2013, http://legislative.gov.in/sites/default/files/A2013-14.pdf

[16]Report of the Committee on Crime Statistics, Ministry of Statistics and Programme Implementation, http://mospi.nic.in/sites/default/files/publication_reports/Report_crime_stats_29june11.pdf

[17]Crime in India – 2019, The National Crime Records Bureau,  https://ncrb.gov.in/sites/default/files/CII%202019%20Volume%201.pdf.

[18]Report on issues related to safety of women, Standing Committee on Human Resource Development, Rajya Sabha, March 19, 2020, https://rajyasabha.nic.in/rsnew/Committee_site/Committee_File/ReportFile/16/123/316_2020_3_12.pdf

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