- जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने 25 जुलाई, 2019 को लोकसभा में अंतरराज्यीय नदी जल विवाद (संशोधन) बिल, 2019 पेश किया। बिल अंतरराज्यीय नदी जल विवाद एक्ट, 1956 में संशोधन करता है। एक्ट राज्यों के बीच नदियों और नदी घाटियों से संबंधित विवादों में अधिनिर्णय का प्रावधान करता है।
- एक्ट के अंतर्गत राज्य सरकार केंद्र सरकार से आग्रह कर सकती है कि वह अंतरराज्यीय नदी विवाद को अधिनिर्णय के लिए ट्रिब्यूनल को सौंपे। अगर केंद्र सरकार को ऐसा लगता है कि बातचीत से विवाद का निवारण नहीं हो सकता तो वह शिकायत प्राप्त करने के एक साल के अंदर जल विवाद ट्रिब्यूनल स्थापित कर सकती है। बिल इस व्यवस्था को बदलने का प्रयास करता है।
- विवाद निवारण कमिटी: बिल के अंतर्गत अगर राज्य किसी जल विवाद के संबंध में अनुरोध करता है तो केंद्र सरकार उस विवाद को सौहार्दपूर्ण तरीके से हल करने के लिए विवाद निवारण कमिटी (डीआरसी) की स्थापना कर सकती है। डीआरसी में एक अध्यक्ष और विशेषज्ञ होंगे। विशेषज्ञों को संबंधित क्षेत्रों में कम से कम 15 वर्ष का अनुभव प्राप्त होना चाहिए और उन्हें केंद्र सरकार द्वारा नामित किया जाएगा। कमिटी में उन राज्यों के एक-एक सदस्य होगा (संयुक्त सचिव स्तर का) जो विवाद का पक्ष हैं। इन सदस्यों को भी केंद्र सरकार द्वारा नामित किया जाएगा।
- डीआरसी एक साल के अंदर विवादों को हल करने का प्रयास करेगी (इस अवधि को छह महीने तक और बढ़ाया जा सकता है) और केंद्र सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंपेगी। अगर डीआरसी द्वारा विवाद का निपटारा नहीं होता तो केंद्र सरकार इस मामले को अंतरराज्यीय नदी विवाद ट्रिब्यूनल को भेज सकती है। ऐसा डीआरसी की रिपोर्ट के प्राप्त होने के तीन महीने के अंदर होना चाहिए।
- ट्रिब्यूनल: केंद्र सरकार जल विवादों पर फैसला देने के लिए अंतरराज्यीय नदी विवाद ट्रिब्यूनल की स्थापना करेगी। इस ट्रिब्यूनल की अनेक खंडपीठ हो सकती हैं। सभी मौजूदा ट्रिब्यूनलों को भंग कर दिया जाएगा और उन ट्रिब्यूनलों में निर्णय लेने के लिए जो मामले लंबित पड़े होंगे, उन्हें नए ट्रिब्यूनल में स्थानांतरित कर दिया जाएगा।
- ट्रिब्यूनल की संरचना: ट्रिब्यूनल में अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और तीन न्यायिक सदस्य तथा तीन विशेषज्ञ होंगे। उन्हें सिलेक्शन कमिटी की सलाह से केंद्र सरकार द्वारा नामित किया जाएगा। ट्रिब्यूनल की खंडपीठ में एक अध्यक्ष या उपाध्यक्ष, एक न्यायिक सदस्य और एक विशेषज्ञ होंगे। केंद्र सरकार सेंट्रल वॉटर इंजीनियरिंग सर्विस में काम करने वाले दो विशेषज्ञों को एसेसर्स के तौर पर नियुक्त कर सकती है जो खंडपीठ की कार्यवाही के संबंध में उसे सलाह दे सकते हैं। यह एसेसर उस राज्य से नहीं होना चाहिए जोकि विवाद का पक्ष है।
- समयावधि: एक्ट के अंतर्गत ट्रिब्यूनल को अपना फैसला तीन सालों के अंदर देना चाहिए। इस अवधि को दो साल के लिए और बढ़ाया जा सकता है। बिल के अंतर्गत प्रस्तावित ट्रिब्यूनल को दो सालों के अंदर विवाद पर फैसला देना चाहिए जिसे एक वर्ष के लिए और बढ़ाया जा सकता है।
- एक्ट के तहत अगर राज्य और विचार करने के लिए किसी मामले को दोबारा ट्रिब्यूनल के पास भेजता है तो ट्रिब्यूनल को अपनी रिपोर्ट एक वर्ष के अंदर केंद्र सरकार को सौंपनी होगी। इस अवधि को केंद्र सरकार और बढ़ा सकती है। बिल इस प्रावधान में संशोधन करता है और कहता है कि यह अवधि अधिक से अधिक छह महीने हो सकती है।
- ट्रिब्यूनल का फैसला: एक्ट के अंतर्गत ट्रिब्यूनल का फैसला केंद्र के सरकारी गजट में प्रकाशित होना चाहिए। प्रकाशन के बाद इस फैसले को सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के समान ही लागू माना जाएगा। बिल में सरकारी गजट में फैसले के प्रकाशन की शर्त को हटा दिया गया है। बिल में यह भी कहा गया है कि ट्रिब्यूनल की खंडपीठ का फैसला अंतिम और विवाद में शामिल सभी पक्षों के लिए बाध्यकारी होगा। एक्ट के अनुसार केंद्र सरकार ट्रिब्यूनल के फैसले को लागू करने के लिए योजना बना सकती है। बिल केंद्र सरकार के लिए ऐसी योजना बनाना बाध्यकारी बनाता है।
- डेटा बैंक: एक्ट के अंतर्गत केंद्र सरकार राष्ट्रीय स्तर पर प्रत्येक नदी बेसिन से जुड़े डेटा बैंक और सूचना प्रणाली का रखरखाव करेगी। बिल के अंतर्गत केंद्र सरकार राष्ट्रीय स्तर पर प्रत्येक नदी बेसिन से जुड़े डेटा बैंक और सूचना प्रणाली का रखरखाव करने के लिए एक एजेंसी को नियुक्त या अधिकृत करेगी।
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