- अनरेगुलेटेड डिपॉजिट स्कीम्स पर प्रतिबंध अध्यादेश, 2019 को 21 फरवरी, 2019 को जारी किया गया। इससे पूर्व 13 फरवरी, 2019 को ऐसा ही एक बिल लोकसभा में पारित किया गया था। लेकिन 16वीं लोकसभा के भंग होने के साथ यह बिल लैप्स हो गया। मौजूदा अध्यादेश अनरेगुलेटेड डिपॉजिट स्कीम्स पर प्रतिबंध लगाने और डिपॉजिटर्स के हितों की रक्षा करने का मैकेनिज्म प्रदान करता है। यह तीन कानूनों, भारतीय रिजर्व बैंक एक्ट, 1934, सिक्योरिटीज़ एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया (सेबी) एक्ट, 1992 और मल्टी-स्टेट कोऑपरेटिव सोसायटीज़ एक्ट, 2002 में संशोधन करता है।
- डिपॉजिट: अध्यादेश के अनुसार डिपॉजिट उस धनराशि को कहा जाता है जिसे एडवांस, लोन या किसी दूसरे रूप में प्राप्त किया जाता है, साथ ही यह वादा किया जाता है कि उसे ब्याज या बिना ब्याज के लौटा दिया जाएगा। ऐसे डिपॉजिट को नकद या किसी सेवा के तौर पर लौटाया जा सकता है और उसे लौटाने की अवधि निर्दिष्ट हो सकती है या निर्दिष्ट नहीं भी हो सकती है। इसके अतिरिक्त अध्यादेश स्पष्ट करता है कि कुछ राशियां डिपॉजिट्स की परिभाषा में शामिल नहीं की जाएंगी, जैसे रिश्तेदारों से ऋण के रूप में प्राप्त राशि और किसी पार्टनरशिप फर्म में पार्टनरों द्वारा पूंजी का योगदान देना।
- वर्तमान में नौ रेगुलेटर विभिन्न डिपॉजिट स्कीम्स की निगरानी और उन्हें रेगुलेट करते हैं। इनमें निम्नलिखित शामिल हैं : (i) भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई), (ii) सिक्योरिटीज़ एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया (सेबी), (iii) कॉरपोरेट मामलों का मंत्रालय, और (iv) राज्य एवं केंद्र शासित प्रदेशों की सरकारें। उदाहरण के लिए आरबीआई नॉन बैंकिंग फाइनांशियल कंपनियों की डिपॉजिट स्कीम्स को रेगुलेट करता है, सेबी म्युचुअल फंड्स को रेगुलेट करता है और राज्य एवं केंद्र शासित प्रदेशों की सरकारें चिट फंड्स को रेगुलेट करती हैं, इत्यादि। सभी डिपॉजिट टेकिंग स्कीम्स को संबंधित रेगुलेटर के पास पंजीकृत किया जाता है।
- अनरेगुलेटेड डिपॉजिट स्कीम: अगर कोई डिपॉजिट टेकिंग स्कीम अध्यादेश में सूचीबद्ध रेगुलेटरों के पास पंजीकृत नहीं की गई है तो उसे अनरेगुलेटेड माना जाता है।
- डिपॉजिट टेकर: अध्यादेश के अनुसार डिपॉजिट टेकर व्यक्ति, व्यक्तियों का समूह या कोई कंपनी हो सकता है जो डिपॉजिट की मांग करता है (इच्छा रखता है) या उसे प्राप्त करता है। बैंक या किसी दूसरे कानून के अंतर्गत स्थापित एंटिटीज डिपॉजिट टेकर नहीं होतीं।
- सक्षम प्राधिकारी (कॉम्पेटेंट अथॉरिटी): अध्यादेश में सक्षम प्राधिकारी के तौर पर एक या एक से अधिक सरकारी अधिकारियों की नियुक्ति का प्रावधान है। ये अधिकारी राज्य या केंद्र सरकार के सचिव के पद से नीचे के अधिकारी नहीं होंगे। अध्यादेश के अंतर्गत किए गए अपराधों की सूचना मिलने पर पुलिस अधिकारी सक्षम प्राधिकारी को रिपोर्ट करेंगे। इसके अतिरिक्त पुलिस अधिकारी (पुलिस स्टेशन के ऑफिसर-इन-चार्ज के पद से नीचे का अधिकारी नहीं) वारंट के साथ, या उसके बिना ऐसी किसी प्रॉपर्टी में प्रवेश कर सकते हैं, उसकी तलाशी ले सकते हैं या उसे जब्त कर सकते हैं जिसे अध्यादेश के अंतर्गत किए जाने वाले अपराधों से जुड़ी माना जाता है। सक्षम प्राधिकारी: (i) डिपॉजिट टेकर की संपत्ति और प्राप्त किए गए सभी डिपॉजिट्स को अस्थायी रूप से कुर्क कर सकता है, (ii) सबूत हासिल करने के उद्देश्य से, अगर जरूरी हो तो किसी व्यक्ति को सम्मन दे सकता है और उसकी जांच कर सकता है, और (iii) रिकॉर्ड्स और सबूत को पेश करने का आदेश दे सकता है। सक्षम प्राधिकारी की शक्तियां सिविल अदालत के समान होंगी।
- नामित अदालतें: अध्यादेश में विशिष्ट क्षेत्रों में एक या एक से अधिक नामित अदालतों की स्थापना का प्रावधान है। इस अदालत की अध्यक्षता ऐसे जज द्वारा की जाएगी, जो जिला और सत्र जज, या अपर जिला और सत्र जज के पद से नीचे का जज न हो।
- डिपॉजिट टेकर के एसेट्स को अस्थायी रूप से कुर्क करने के बाद सक्षम प्राधिकारी निम्नलिखित के लिए नामित अदालत जा सकता है : (i) अस्थायी कुर्की को स्थायी बनाने के लिए, और (ii) एसेट्स को बेचने की अनुमति मांगने के लिए। सक्षम प्राधिकारी को 30 दिनों के भीतर अदालत जाना होगा (जिसे 60 दिनों तक बढ़ाया जा सकता है)। नामित अदालत के निर्देशानुसार सक्षम प्राधिकारी जमा राशि की उगाही करने और डिपॉजिटरों में उसे बांटने के लिए एक बैंक खाता भी खोलेगा।
- नामित अदालत की निम्नलिखित शक्तियां होंगी: (i) वह अस्थायी कुर्की को स्थायी कर सकती है, (ii) अस्थायी रूप से कुर्क की गई संपत्ति के कुछ हिस्से को कुर्की से मुक्त कर सकती है या कुर्की के आदेश को रद्द कर सकती है, (iii) डिपॉजिटर्स और उनकी बकाया राशि की लिस्ट को फाइनल कर सकती है, और (iv) सक्षम प्राधिकारी को निर्देश दे सकती है कि वह संपत्ति को बेचकर उससे प्राप्त होने वाली राशि को डिपॉजिटर्स के बीच समान रूप से बांटे। सक्षम प्राधिकारी के अदालत जाने के 180 दिनों के भीतर अदालत को इस प्रक्रिया को पूरा करना होगा।
- सेंट्रल डेटाबेस: अध्यादेश में कहा गया है कि केंद्र सरकार डिपॉजिट टेकर्स की सूचनाओं का ऑनलाइन सेंट्रल डेटाबेस बनाने के लिए किसी अथॉरिटी को नामित कर सकती है। सभी डिपॉजिट टेकर्स को अपने कारोबार के संबंध में डेटाबेस अथॉरिटी को सूचना देनी होगी। सक्षम प्राधिकारी अनरेगुलेटेड डिपॉजिट्स की सभी सूचनाओं को अथॉरिटी के साथ साझा करेगा।
- अपराध और सजा: अध्यादेश तीन प्रकार के अपराधों और उनकी सजा को स्पष्ट करता है। इन अपराधों में निम्नलिखित शामिल हैं : (i) अनरेगुलेटेड डिपॉजिट स्कीम्स को चलाना (विज्ञापन देना, प्रमोट और ऑपरेट करना या उसके लिए धनराशि लेना), (ii) रेगुलेटेड डिपॉजिट स्कीम्स में धोखे से डीफॉल्ट करना, और (iii) जान-बूझकर झूठे तथ्य देकर अनरेगुलेटेड डिपॉजिट स्कीम्स में निवेश करने के लिए डिपॉजिटर्स को गलत तरीके से उकसाना। उदाहरण के लिए अनरेगुलेटेड डिपॉजिट प्राप्त करने पर दो से लेकर सात साल तक के कारावास की सजा भुगतनी होगी और तीन से 10 लाख रुपए तक का जुर्माना भरना होगा। अनरेगुलेटेड डिपॉजिट्स के रीपेमेंट में डीफॉल्ट करने पर तीन से लेकर 10 साल तक के कारावास की सजा भुगतनी होगी और पांच लाख रुपए से लेकर डिपॉजिटर्स की जमा राशि से दुगुनी राशि का जुर्माना भरना होगा। अध्यादेश के अंतर्गत बार-बार अपराध करने पर पांच से लेकर 10 साल तक के कारावास की सजा भुगतनी होगी और 10 लाख से लेकर पांच करोड़ रुपए तक का जुर्माना भरना होगा।
अस्वीकरणः प्रस्तुत रिपोर्ट आपके समक्ष सूचना प्रदान करने के लिए प्रस्तुत की गई है। पीआरएस लेजिसलेटिव रिसर्च (पीआरएस) के नाम उल्लेख के साथ इस रिपोर्ट का पूर्ण रूपेण या आंशिक रूप से गैर व्यावसायिक उद्देश्य के लिए पुनःप्रयोग या पुनर्वितरण किया जा सकता है। रिपोर्ट में प्रस्तुत विचार के लिए अंततः लेखक या लेखिका उत्तरदायी हैं। यद्यपि पीआरएस विश्वसनीय और व्यापक सूचना का प्रयोग करने का हर संभव प्रयास करता है किंतु पीआरएस दावा नहीं करता कि प्रस्तुत रिपोर्ट की सामग्री सही या पूर्ण है। पीआरएस एक स्वतंत्र, अलाभकारी समूह है। रिपोर्ट को इसे प्राप्त करने वाले व्यक्तियों के उद्देश्यों अथवा विचारों से निरपेक्ष होकर तैयार किया गया है। यह सारांश मूल रूप से अंग्रेजी में तैयार किया गया था। हिंदी रूपांतरण में किसी भी प्रकार की अस्पष्टता की स्थिति में अंग्रेजी के मूल सारांश से इसकी पुष्टि की जा सकती है।